सरला शर्मा: सुरता के बादर ....
पंडित दानेश्वर शर्मा
बैसाख के चिलचिलावत घाम , अकास मं जगमगावत ,तपत सुरुज हे तभो मन के अंगना मं सुरता के बादर घनघोर बरसत हे ।
सन् 2019 मं दुर्ग जिला साहित्य समिति के तत्कालीन अध्यक्ष श्री अरुण कुमार निगम अउ सचिव स्व . नवीन तिवारी के उदिम सफ़ल होइस जब पंडित दानेश्वर शर्मा के नागरिक अभिनन्दन समारोह के भव्य आयोजन होइस । ये आयोजन मं बहुत अकन साहित्यिक संस्था मन भी पंडित दानेश्वर शर्मा के अभिनन्दन करिन । उनला बहुत खुशी होइस अउ हमन ल उंकर अमोघ आशीर्वाद मिलिस ।
छत्तीसगढ़ के यशस्वी कवि , प्रवचनकार , स्तम्भ लेखक अउ मंचीय कवि रहिन । उंकर अध्ययन , स्मरण शक्ति सराहनीय , अनुकरणीय रहिस।
थोरकुन सुरता करिन के ओ समय के हिंदी , छत्तीसगढ़ी पत्र पत्रिका के अलावा उंकर रचना ब्लिट्ज अउ नागपुर टाइम्स अंग्रेजी दैनिक अखबार मं भी प्रकाशित होवत रहिस माने उन संस्कृत , हिंदी , छत्तीसगढ़ी संग अंग्रेजी भाषा अउ साहित्य के अध्ययनकर्ता रहिन । " तपत कुरु भाई तपत कुरु " हर मौसम में छंद लिखूंगा " , श्रीमद्भागवत अनुवाद असन किताब के लिखइया ल कभू भुलाए नइ जा सकय ।
जतका लोकप्रियता उनला मंच मं काव्य पाठ करके मिलिस ओतके तो व्यास गद्दी मं बैठ के श्रीमद्भागवत के प्रवचन मं भी मिलिस । उंकर तीर बइठे ले ओ समय के साहित्यकार मन के संस्मरण सुने बर मिलय चाहे वो गोपाल दास नीरज , नन्दू लाल चोटिया , शेषनाथ शर्मा 'शील' , आनन्दी सहाय शुक्ल , कोदू राम दलित , विद्या भूषण मिश्र , रामेश्वर 'अंचल' के ही काबर न होवय । ज्ञान के भंडार रपोटे रहिन जेकर फायदा सुनइया ल मिलत रहिस ।
विश्व प्रसिद्ध संस्था फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत मं विकास बर सरकारी अउ गैर सरकारी संगठन मन के संग 50 साल के साझेदारी बर प्रकाशित किताब के संपादकीय सलाहकार रहिन पंडित दानेश्वर शर्मा ...। शिकागो विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित रिवोल्युशनिज्म इन छत्तीसगढ़ी पोएट्री मं डॉ . नरेंद्र देव वर्मा इंकर जिक्र करे हें । अपन समय के उन पहिली कवि / गीतकार रहिन जिंकर गीत मन के ग्रामोफोन रिकॉर्ड अउ कैसेट " हिज मास्टर्स वॉयस ( कोलकाता ) , म्यूजिक इंडिया पॉलिमोर ( मुंबई ) , सरगम रिकॉर्डस (बनारस ), वीनस रिकॉर्ड्स (मुंबई ) मन बनाये हें ।
भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विभाग मं पदस्थ रहिन ओ समय पंथी नर्तक देवदास बंजारे , पंडवानी गायिका तीजन बाई असन कतको झन ल राष्ट्रीय , अंतर्राष्ट्रीय स्तर मं प्रस्तुति देहे के सुजोग , मार्गदर्शन दिहिन । कतको झन नवा लिखइया मन ल रस्ता देखाइन ।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष बनिन त भिलाई मं आयोजन उंकरे मार्गदर्शन मं होए रहिस जेला आजो लोगन सुरता करथें । स्मारिका के प्रकाशन होइस , राज भर के महिला साहित्यकार मन ल मंच मिलिस उंकर कार्यकाल ल स्वर्णकाल कहे जाथे ।
असमय के बादर तो आय त बहुते गरजत , बरसत हे फेर अब कलम ल थकासी लग गिस के स्याही मं पानी मिंझर गिस ..लिखत नइ बनत हे भाई .। पंडित दानेश्वर शर्मा ल आखर के अरघ दे के छुट्टी मांगत हंव 🙏🏼
सरला शर्मा
दुर्ग
[5/14, 12:39 PM] रामनाथ साहू: -
*बने निकता डॉक्टर*
(छत्तीसगढ़ी कहिनी)
फुलझर के कुला म बनेच बड़े केशटुटी हो गय हे । बनेच चउक -चाकर ल थरोय हे।दई हर लिरबिटी जरी ल चिक्कन पीस के लेपन लगा दिस। कुछु नई होइस। आगू दिन गहुँ आटा ल बने गूंथ के ,केश टूटी उपर पकनहा छाबिस, फेर थोरकुन मुहड़ा छोड़ देय रहिस।अइसन करे ल , आटा हर चिरमोट थे,अउ मुहड़ा म ल सफाई हो जाथे। फेर इहाँ कुछु नइ होइस।
"बेटा, तोर देहे हर वज्रर ये।ये कुछु भी देशी दवई मन काम नइ करत यें। नहीं त नानमुन पिरकी केश टूटी मन तो एमे ,एके दिन म पाक फुट के बरोबर हो जाथे ।"
"दई टपकत हे, ओ..!"फुलझर किल्ली- गोहार पारत रहिस।
"का करहां बेटा, झटका जानत रहंय ,वोतका सब ल तो बउर दारय,फेर कामे नई करत ये।"महतारी घलव रोनरोनही हो गय रहिस।
तब वोकर सियान मोला बलवाय रहिस।
" कइसे बने भला चंगा तो रहे,बाबू।का हो गय तोला।" मंय अब्बड़ मयारुक बनत कहंय,वोकर हाथ ल धरत।
" केशटुटी...!" फुलझर के बदला म वोकर सियान कहिस।
" ये कहाँ करा हो गय जी..!" मोर मया हर अबले घलव चुचुवाते रहिस।
" वोला वोइच बताही..।" वोकर सियान कहिस थोरकुन हाँसत ।
मैं थोरकुन ओकर कपड़ा ल हटा के देखे के कोशिश करें ।तव बोहर बल भर के मना करत मोर हाथ ल ठेलिस।
" तँय डॉक्टर उवा कुछु अस का। देख के तँय का करबे।" फुलझर थोरकुन कड़कत कहिस।
"तब मंय, तोर फिर का सेवा करों ,बाबू साहब। " मंय वोला कहंय ।
" येला शहर ले जा बेटा, डाक्टरी इलाज लागही, कहू लागत हे..!" वोकर सियान कहिस।
" लागही कहू लागत हे, कथे ..! देखत नइ ये हालत ल..!!" फुलझर कड़क जात रहिस।
" ये बबा गा, ले जा तो येला शहर।देखवा दे बने डॉक्टर ल ।"वोकर सियान कहिस।
" कका तँय काबर, नइ ले गय।" मोला तो शहर जाय के नाव म ही मजा आये के शुरू हो गय रहे। राजू होटल के समोसा अउ कढ़ी मोर ,आँखी के आगू म झूल गइन ।
"अरे ये टुरा -बाँड़ा, मनखे छाँटत हे।अउ तोला बलवाय हे।"वोकर सियान थोरकुन रोसियावत कहिस।
येती अपन उपयोगिता सिद्ध होये ले महुँ बहुत खुश होवत रहंय।
झटकुन झोला -झंडा साईकल म ओरमा के हमन निकल गयेन, शहर कोती। ले दे के फुलझर ल सायकल के आगू डण्डा म बइठारें मंय,अउ सायकल ल आंटे लागैं । सड़क हर रहिस, हमर छत्तीसगढ़िया, अउ हमर छत्तीसगढ़ हर बिहार तो होइस नहीं,जिहाँ के सड़क मन हे*-मा*नी के गाल आसन चिक्कन रथिन।खंचवा-डबरा सड़क हमर। सायकल हर गड्ढा म उतरे तब बैकुन्ठ के सुख ल ,शायद फुलझर हर पाय ,तब तो वोकर मुख ल..ये दद्दा रे..!ये द ..दई ओ..!! बरोबर निकलत रहीस ।वोहर आज ददा अउ दई ल बड़ सुमिरत रहीस।
" ये दद्दा रे..!!अब मारीच डारबे का..?"फुलझर मोर बर अब्बड़ अकन रोसियावत रहे।
" कइसे का हो गय भई..!" मैं साईकल ल बिरिक मारत कहंय।
" कइसे का हो गय, भई कहथस । इहाँ तीनो पुर ल देख डारे न।रोक रोक सायकिल ल।मंय पाछु म बइठ हं ।"फुलझर तो एकदम बम्म हो गय रहय।
"ले त पीछू म बइठ।"मंय कहें अउ वोकर बहां ल धर के पीछू कैरियर म बइठार देंय।
फेर वोकर से का होना रहिस।फेर कुछु नइ होइस ,कहना हर उचित नोहे।जउन बुता ल लिरबिटी के जरी,आंटा के लेपन मन नइ कर पाँय रहिन ।वोला सायकिल के कैरियर हर कर दिस।
अब वोला शहर मंय लेके जावत हंव तब मोला तो पता रहही कि कहाँ ले जाना हे। मंय वोला, हमरे गांव तीर के एक झन बने पढ़इया लइका हर पोठ डाक्टरी पढ़ के,शहर म जउन अस्पताल खोले हे, उहाँ ले गएं ।
डॉ 0 राधेश्याम सिदार हर अपन जान चिन्ह के बढ़िया भाव दिस।अउ तुरत ताही जांच करे लागिस।
"येकर केश टूटी हर तो फुट गय हे।चीरा लगाय के जरूरत नइये। अपने आप सफाई हो गय हे।मंय ड्रेसिंग करवा देत हंव। अउ ये दवाई ल खरीद लिहा बजार ले।" डॉक्टर कहिस। फीस पुछेव तब डॉ0 सिदार हर खुद हाथ जोड़ लिस।मोर इलाका के चिन्हार मनखे तँय आय हस अउ मोर कुछु खर्चा नइ होय ये,तब फीस कइसन..?
मंय तो धन्य हो गएं। विश्वास कर के इहाँ ले आने रहें।अउ डॉक्टर हर नइ चिंनहतिस अउ भाव नइ देथिस तब मंय का करथें।
फेर येती मन आही तब न..!
"चल वोती ,बने इलाज नइ होइस।"फुलझर झरझराइस।
"कइसे ..?"
" ये साले छत्तीसगढ़ीया मन कुछू जानथें।बासी के खाने वाला मन..!"
"फुलझर...!"मोर अवाज हर थोरकुन खर हो गय रहिस।
" एक ठन सूजी तक नइ मारिस हे।अउ हो गय इलाज ।"
"त अब कइसे करबो..!"
"अउ कइसे करबो।चल कनहु बने डॉक्टर करा चल ।"
" तँय जानथस कनहु ल.."
"नहीं.. फेर अब कन्हू छत्तीसगढ़िया करा झन ले के जाबे। वोमन ल कुछु नइ आय।"
अब तो मरना हो गय रहे। वोला सायकल म बइठार के बढ़िया डॉक्टर के खोझार करना रहिस,फेर शर्त रहिस के वोहर छत्तीसगड़ीया झन रहय।
सड़क म चलत नाव के तख्ती मन ल पढ़त आगू बढ़त रहेन।इलाज फुलझर ल कराना रहिस।ते पाय के वोकरेच निर्णय हर ठीक रहिस।एक दु ठन नाव मन ल पढेंन,फेर ये नाम मन नइ जचिन।
आगू बढ़ेंन..।फुलझर एक ठन नाव ल हाथ के इशारा म बताइस अउ कहिस-ये नाम हर बने लागत हे।
वो नाम ल महुँ पढेंव- डॉ० जितेन्द्र र*तोगी।
"अरे फुलझर,ये डॉक्टर के नांव हर खुद रोगी कस लागत हे रे।"मंय थोरकुन चकरावत कहंय।
"नही नही इहर ठीक लागत हे।"वो कहिस।
अब भला मंय काबर बात ल काटथें ।
अंदर गयेन।धड़ाधड़ इलाज शुरू।अरे!छोटे ऑपरेशन अउ क्यूरेटेज लागही।"
"का होही..!कर देवा बबा।"
अनेशथेसिया -भोथवा लग गय।तभो ले किल्ली गोहार..!
" हैवी एंटीबायोटिक दे।जल्दी सुखाही।"
"हो गय ,सर।"
नर्स सांय सांय सूजी मारत हे।
"टेस्टोस्टेरोन दे।घाव जल्दी भरही।"
"सर टेस्टोस्टेरोन..?"
"अरे दे,नॉर्म म नइ ये तभो ल दे।जल्दी बने होही तब तो फिर इहाँ आही।"
"जी..!"
"अउ सुन,स्टेरॉयड घलव दे,येला तुरत फुरत बने लागही।"
इलाज होवत रहिस।फेर पहिलाच बिल ल पटा के पईसा ल छेवर कर डारे रहेंव।
वो गॉंव के बंशी ल देखें त कका ल शोर पठोय अउ रुपिया लाने बर।
समोसा..?अउ कहाँ के..!!
*रामनाथ साहू*
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