Thursday, 23 May 2024

लघुकथा) गोठियइया आगे ना

 (लघुकथा)


गोठियइया आगे ना

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 यमुना देवी हा तीन महिना पाछू अपन घर लहुटे हे।वो हा अपन बेटी के जजकी बखत ले सेवा जतन करे बर वोकर ससुरार गाँव गे रहिसे।जाना जरूरी रहिसे काबर के दमाद एकसरवा उहू मा बहुत दूर के जिला बस्तर मा शिक्षक के नौकरी कतेक दिन ले छुट्टी मा रइतिच।इहाँ घर मा बेटी के न तो एको झन बड़ी सास-काकी सास, न तो देरानी- जेठानी,न तो एको झन ननद।वोकर विधवा सियनहिन सास बपुरी हा अकेल्ली परशान हो जतिच।

 मँझनिया बखत बइठक मा बइठे अपन रिटायर्ड ग्राम सेवक पति जगन्नाथ संग गोठियत पूछ परिस--

"कइसे एकदम दूबराये असन अउ उदास दिखत हस--तबियत खराब होगे रहिसे का?"

"नहीं अइसे कोनो बात नइये--सब ठीक हे "--जगन्नाथ कहिस।

"नहीं कुछु तो बात हे--ठंग से गोठियावत तको नइ अच?"

"का गोठियाववँ---गोलू बेटा के रवइया एकदम बदल गे हे।"

"फेर काय होगे तेमा? नौकरी-चाकरी नइ मिलिच त का होगे--बेटा हा तो अपन पैर मा खड़े हे ना-- अपन परिवार चलाये के लइक दुकानदारी करके कमावत तो हे ना?" --यमुना देवी कहिस।

"तैं महतारी अच ना--बाप के दर्द ला का समझबे--खैर छोड़ वो सब ला। आजकल गोलू हा मोर से ठंग से बात तको नइ करै--कुछु कइबे त हूँ हाँ--अतके निकलथे वोकर जुबान ले। ये तीन महिना मा तीन पइत मोर तीर मा बइठ के गोठियाये होही--हाल चाल ,तबियत ला पूछे होही ता बहुत बड़े बात हे। वो दिन बैंक ले मोर खाता के स्टेटमेंट निकलवाके लाये ला कहेंव ता हूँकिच न भूँकिच ।जाके लाये बर लाइच फेर मोला नइ देके टी वी मेर मढ़ा दिच ।काबर जानत हे पापा हा समाचार देखे बर टी वी ला चालू करे बर आबेच करही तहाँ ले देखबे करही।अरे उही ला एदे लाये हँव कहिके दे देतीच ला जियान पर जतीच का?" जगन्नाथ झल्लावत कहिस।

"तुमन मोर बर काबर झल्लाथव जी।एमा नराज होये के का बात हे--जेन काम अढ़ोये तेला कर दिच ना --अउ भला का गोठियातिच। लिखरी-लिखरी बात ला निचट दिल मा ले लेथव।अइसने मा तुहँर तबियत खराब होथे "-यमुनादेवी समझावत कहिस।

"अच्छा ये लिखरी बात होगे?"

" हहो छोड़व ये सब गुनइ ला-- समझव ना के ओकर संग गोठियाये बर हमर बहुरिया हे-- टुड़बुड़-टइया गोठियाये बर हीरा असन नान चुक लइका हे। हमर संग काला गोठियाही। सोला आना बहू हे ना जेन हा समे मा भोजन-पानी बर पूछत रहिथे। हमन ला अउ का चाही?एक बात काहँव - मानहू का?"

"का बाते ये ते काह ना भई , काबर नइ मानहूँ "--शांत होवत जगन्नाथ कहिस।

"हमरो संग गोठियइया हें--तैं हस--मैं हँव--अउ टुड़बुड़-टइया गोठियइया नन्हा नाती आगे हे ना ओकरे संग गोठियावत रहिबो--मन ला भुलवारत रहिबो"-- अइसे 

काहत-काहत यमुनादेवी के गला भर्रागे--आँखी डबडबागे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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