(लघुकथा)
कमीशन खोरी
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उड़ीसा के भुवनेश्वर के एक ठन कंपनी म छत्तीसगढ़िया परमानेंट इजीनियर विश्राम सिंह ह उहें लइका लोग मन ल पढ़ाये-लिखाये बर घर-दुवार बनाके बसुंदरा होगे हे फेर जब -जब परिवार म कोनो सुख-दुख के बड़का कारज होथे त अपन पेंड़ी गाँव जरूर आथे।पिछू पाँच बरस ले मउका नइ आये रहिसे फेर ये बछर अक्ती म वोकर भतीजिन के बिहाव हे त माई पिल्ला आये हें।
वो ह गाँव अइस अउ अपन बचपन के लँगोटिया सँगवारी सुवंशी ले नइ मिलही अइसे हो नइ सकय? आजो वोकर घर म बइठे हे फेर अकचकाये हे काबर के सुवंशी के पहिली के रहन-सहन अउ अभी के म जमीन-आसमान के फरक हे। कहाँ खपरा वाले दू ठन कुरिया के घर अउ अब -- पाँचे साल म एसी,टाइल्स लगे पाँच कमरा,लम्बा-चौड़ा परछी,पानी-बिजली के सुविधा के संग चकाचक टायलेट सुविधा ,कार--अइसे लागत हे कोनो बड़हर के बंगला ये।जादा गुने के सेती विश्राम ह पूछना उचित समझ के कहिस--
"कइसे संगवारी कोनो बड़का नौकरी मिलगे या फेर कोनो तगड़ा बिजनेस करे ल धर ले हस का जी ?"
"नौकरी कहाँ मिलिच भाई मैं खुदे दसो झन ल डिलवरी ब्याव के रूप म नौकरी म रखे हँव। महूँ ल डिलवरी ब्याव समझ ले।"
"अच्छा अइसे कोन से आइटम हे जेकर डिलवरी करथस जेमा अतेक पइसा हे?" अचरज म मुहँ ल फारत विश्राम ह पूछिस।
"गाँव-गाँव, होटल-ढाबा ,पान ठेला मन म तको बस दारू के सफ्लाई करथवँ।"
अरे ये तो बहुतेच अनलिगल हे संगवारी-- छोड़ ये धंधा ल।"
" काबर छोड़हूँ।अउ काबर अनलिगल हे। सरकार ह भट्ठी म बेंचत हे तेन लीगल अउ मैं ह उहें ले ले लेके, सकेल के बेंचथवँ तेन ह अनलिगल काबर होही? सरकार बेंचना बंद करय--मोर रोजगार बंद हो जही।रही बात जादा म बेंचथँव त समझ ले वो मोर दरूहा भाई मन ल सुविधा देये के कमीशन आय। कमीशन खोरी म बड़े-बड़े सरकार अउ बड़े-बड़े सरकारी आदमी फलत-फूलत हें।ओइसने मोरो किस्सा हे।"
तभो ले मोला गलत लागत हे काहत विश्राम ह अपन घर लहुटगे।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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