Thursday, 23 May 2024

*उपन्यास अंश अउ वोकर सौंदर्य शास्त्र*


    *उपन्यास अंश अउ वोकर सौंदर्य शास्त्र*

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                   *सोनकमल*


                        (1)


         उपन्यास सोनकमल के पहले पृष्ठ म ही एक ठन बिम्ब हे।बिरिज(ब्रज) गौटिन के बहू जलकुंवर  (नायिका सोनकमल के मां) गाढ़ निंद्रा म  सुते  हे। अइसन नींद 'रति क्लांति (नैसर्गिक क्रीड़ा के बाद उपजे थकान,अल्लर होवई)' के बाद आथे। जलकुंवर एई अवस्था  म हे। वोला इहाँ बिहा हो के आय तीन बच्छर हो गे हे फेर आज तक कुछु(सन्तान) दिखे नई ये। येकर ले खुद,जलकुंवर के छोड़ सब ,थोरकुन फिकिर म हें। उपन्यास के दृश्य हर, वोकर शरीर भीतर म निषेचन अउ सन्तान सोनकमल के कोख म आय के दृश्य ये। जलकुंवर देखत हे वोकर देह हर, अनन्त ब्रम्हांड ये, उहां  सादा गोरस के धार लाख लाख तारा मन येती ल वोती कूदत हें(तेज गति ले भागत पुरुष पिंड शुक्र) अउ आगु रस्ता म,एकठन पींयर जोगिनी (मादा पिंड ओवम ) बइठे हे।एकठन बलखरहा ताकतवर तारा हर आके वो जोगनी के हाथ धरत वोकर भीतर म समा गिस हे(निषेचन पूर्ण)...


      "जल कुँवर देखत हे,  आज अगास हर  बड़  जगर -मगर करत हे । आज एके पइत कइसन अतेक तारा  मन  उपला गय हें अगास म !  ये कइसन गोरस के धार बोहात हे अगास म ...! ये गोरस के धार म वोहर तउरत हे बने मजा के । ये गोरस के धार कहाँ ले आवत अउ कहाँ जावत ,पता नइये । अब तो वोहर ये तारा- जोगनी मन ल  कुदा- कुदा के अपन ओली म धरत जाथे ; फेर येमन तुरंतेच वोकर ओली ल बाहिर निकल जावत हें । फेर वोहर तो कुदातेच हे, अब तो ये तारा -जोगनी मन घलव वोकर संग म खेले बर लग गईंन हें , वोमन खुद येला छकात हें । देखते- देखत  वोहर कतेक न कतेक बड़े हो गिस हे अउ ये गोरस कस सेत वरन धार हर  अभी तो वोकर भीतर म   बोहाय लागिस हे । सब ल देखत हे वोहर पांच-परगट ! ये सेत वरन धार भीतर म लाख लाख  -करोड़ ठीक वईसनहेच चमकत सितारा  मन चमकत हें । वोमन के गति के आगु म सब फीका हे । अतेक तेज फेर कतेक सुहावन हे येमन के ये गति हर ।  कतेक न कतेक गझिन  लागत हे, ये जगहा हर । ये तारा मन के डहर म एकझन जोगनी हर बइठे हे । तभे एकझन सबले बड़े  बलवान अउ तेज अउ तेज तारा हर  अइस हे अउ टप्प ले वो जोगनी के हाथ ल धर के वोकर भीतरी म समा गिस हे"


            जलकुंवर के सपना खंडित नई होय ये। अब वोहर देखत हे कि  वोहर एकठन  फुलवारी म आ गय हे, जिहां कतेक न कतेक  फूल  अउ तितली मन हें।  वो तितली मन म ले, एकझन तितली हर  उड़त उड़त आके, वोकर अंचरा म समा गिस हे, अउ अंचरा म समात, वोकर अंतस म समा गिस हे। वोकर गरभ म तितली (सोनकमल ) आ गिस हे...



      "ये अब कइसन वोहर घन वन -डोंगरी भीतर पहुँच गय ! चारो कोती कट कट... हरियर । अतेक कटकटात हरियर के, हरियर के  छोड़ अउ आन कुछु नई दिखत हे , फेर वो तो ये गहिल अउ गहिल जाते -जात हे । जावत हे  वोहर फेर अब  गहिल  -अंधियार ले ये नावा अंजोर कोती आ गय हे ।  फूल अउ फूल...तितली अउ... तितली ! जतेक वरन के फूल हाँवे, वोतकी  वरन के तितली -फिलफिली ! अउ वोकर तो बस वोइच बुता - अब कुदा -कुदा के ये तितली मन ल धरई । फेर वोमन हाथ नि आवत यें ।   तभो ले वोहर ये एकठन बड़ सुंदर तितली ल धर डारिस हे । अउ वो तितली वोकर अंचरा तीर म आइस हे । अउ अब  तो  वोहर ,वोकर अंचरा म आ गिस हे...! अरे  येहर तो अंचरा के भीतर जावत- जावत वोकर अंतस म समा गिस हे अउ बड़ मजा लेवत उहाँ जा बइठ लागिस हे।"


  

 (ये बरनन हर, कनहुँ ल अभद्र, भदेस अउ अप्रिय लागही; वोकर ले, लेखक हर,अगाहु माफी मांग लेत हे।



*रामनाथ साहू*



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