Saturday, 21 December 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंजन - डॉ. मीता अग्रवाल

"पुष्टई ले भरपूर छत्तीसगढ़ी व्यंजन"

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, कला अउ साहित्य के अपन एक अलग पहचान हवे, इही गोठ ला चेत करके घर के रँधनी ले अपन गोठ के शुरुआत करत हँव । हमर जिनगी म खानपान के बहुतेच महत्व हवे।  छत्तीसगढ़ी जेवन के ररँधई जब महमहाथे तव मुँह मा पानी भर जाथे। "धान के कटोरा" कहाए वाला छत्तीसगढ़ मा किसम -किसम के चाँउर के उत्पादन होथे। लगभग 1000 ला आगर धान के पैदावार हमर खानपान के महत्वपूर्ण जिनिस हवे। चाँउर - दार, साग- भाजी के अलावा,  आनी बानी के कलेवा घलो बनाए जाथे, जेमा- फरा, दूध फरा, चीला, चौसेला चाँउर-पिसान ले रोजेच बनाय जाथे।
          तीज तिहार मा बनने वाला पकवान अउ जेवन  मा, चाँउर पिसान संग गँहूं पिसान, बेसन भी प्रयोग करें जाथे। इन पकवान मा ठेठरी ,खुरमी, देहरवरी ,अइरसा, गुझिया, कुसली, पिडिया,  बिडिया, खाजा, पपची, कुर लाड़ू ,बरा ,बोबरा प्रमुख हवें।
खान पान मा इहाँ विविधता के कमी नइये। रँधनी मा रोजेच
भाजी के बड़ महत्व हे।,कहावत घलो जनजीवन में प्रचलित हवे -"छत्तीसगढ़ के भाजी, जेमा भगवान राजी"।  छत्तीसगढ़ मा बासी संग भाजी सबे झन खाथें। बटकी मा बने बासी के सेवाद संग भाजी खाय के अलगे मजा हवे। इहाँ पचास ले ज्यादा किसम के भाजी गाँव अउ शहर मन मा राँधे जाथे, जउन विटामिन ले भरपूर रथे। प्रमुख भाजी मा- सरसों भाजी ,खेड़ा भाजी, बोहार भाजी , कुरमा भाजी, चाटी भाजी, चरोटा भाजी, बथुआ भाजी, खोटनी भाजी, खट्टा भाजी, मुनगा भाजी, मुरई भाजी, गोंदली भाजी, गोल भाजी, तिनपनिया भाजी, करमत्ता भाजी, चेंच भाजी, चौलाई भाजी, पाला भाजी, लाल भाजी ,अमारी भाजी, गुमी भाजी, उरीद- मूंग भाजी ,मछरिया भाजी, गुडरु भाजी,  मुस्केनी भाजी उल्ला भाजी, बर्रे भाजी चना भाजी ,मेथी भाजी ,तिवरा भाजी ,पोई भाजी, मखना भाजी, कांदा भाजी, कुसुम भाजी छत्तीसगढ़ मा ये भाजी मन अधिकतर बनाये जाथें।

कुछ भाजी ल कम बनाए जाथे ,ऐमा- भाजी मिरचा भाजी, पीता भाजी, लमकेनी भाजी, कुलफा भाजी, खोटलिइया भाजी, धरकूट भाजी ,बरेजहा  भाजी, कुरमा भाजी, कौवकानी भाजी, इमली भाजी, पटवा भाजी, कोईलार भाजी, कोचई भाजी, गिरहुल भाजी पत्थरी भाजी, सेमी भाजी, लेड़गा भाजी ,लेवना भाजी, बर्रा भाजी , उल्ला भाजी ये सबो भाजी ला बिशेष बिंध ले राँधे जाथे, जेमा फोरन मा लसून, लाल मिरचा, तिली, पताल नून डार के पकाये जाथे।
साग म जिमीकाॅदा इहाँ के राजा साग हवे जे बरबिहाव के समधी भोज मा खवाना जरुरी रथे अउ देवारी अनकूट मा घर-घर राँधेन जाथे। सुक्सा साग मा भाटा, गोभी, बुंदेला मुरई, दही मिर्चा, किसम किसम के बरी-रखिया तूमा, पपीता, कोहडा के अलावा,भात ,लाई, अदौरी बरी, विशेष कर बनाय जाथे। चाँउर पापर,चाँउर कुरेरी, रखिया बीजा के बिजौरी ला तर के पहुना ला खवाय के चलन हवे। अथान गुराम, चटनी, अरक्का के  सेवाद ह, खाना के सेवाद ला बढ़ाथे।

छत्तीसगढ़ में बनने वाला ये व्यंजन के सेवाद, केवल प्रदेश मा ही नही, पूरा देश मा, बगरे हवे, काबर कि ये व्यंजन, छत्तीसगढ़ के पहचान के संगे संग पुष्टई मा प्रोटीन, विटामिन, खनिज- लवण, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि ले घलो भरपूर हवे। राँधे गढ़े  मा आज के जमाना मा एकर तरीका आसान हवे। मेला- मँडई मा लोगन व्यंजन के सेवाद ल लेके आनी बानी के जेवन के प्रशंसा करत नइ थकँय।
 इही कोशिश मा मँय हर 2002 छत्तीसगढ़ी व्यंजन-"आनी बानी के जेवन" के नाम ले पुस्तक लिखे हँव , उन हमर राज्य के व्यंजन ला घरोघर बगराय म फलित होवत हवे । हमर छत्तीसगढ़ के खानपान के तरीका अपन आप मा बिशेष महत्व रखथे।

लेखिका -  डाॅ. मीता अग्रवाल मधुर, रायपुर
 छत्तीसगढ़

Tuesday, 10 December 2019

सोनाखान के शान: वीर नारायण महान - कन्हैया साहू "अमित", चोवाराम "बादल"


(1) सोनाखान के शान: वीर नारायण महान
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        छत्तीसगढ़ राज हा अपन पोठ खनिज संपत्ति के कारन देश-बिदेश मा प्रसिद्ध हावय। इहां चारो खुँट जंगल के हरियाली अउ अन-धन के अगाध खुशहाली बगरे हावय। धान-पान अउ ओनहारी बर हमर राज मा भन्डार आगर भरे रथे। एखरे सेती धान के कटोरा हमर छत्तीसगढ़ राज हा कहाथे। धरम-करम अउ दान-पुन मा घलाव हमार ए राज हा अघुवा हावय। मंदिर-देवाला,मेला-मङई,तीरथ-बरथ के कोनो कमी नइ हे। प्रकृति  हा घलो हमर राज ला अंतस ले मया लुटाय हावय तभे तो इहां
नंदिया-नरवा,कछार-भाँठा,मइदान,घाटी अउ खेत-खलिहान के भरमार हे। सबले बङे बात हमर ए नेवरिया राज हा बिकास के रद्दा मा सरलग दउड़त हावय। नवा राज बने सोला बच्छर होगे हे फेर बिकास के रद्दा मा रेंगई हा अजादी बिन बड़ मुसकुल रहीस। हमर देश ला अजाद होय सत्तर बच्छर होगे हे अउ बिकास के रथ मा सवार होके समे के संगे संग सुग्घर भागत हावय। फेर ए अजादी के बरदान हा तन-मन अउ धन के लाखों बलिदान ले मिले हावय। अइसने सोज्झे फोटईहा कोनो रद्दा मा परे नइ मिले हे हमर ए अजादी हा। देश के संगे संग हमर छत्तीसगढ प्रदेश मा ए अजादी मा सरबस निछावर करईया *दधीचि* मन के कोनो कमी नइ हे। अजादी के अमर शहीद बलिदानी मा हमर राज के नांव के अलख जगईया मा सबले अघुवा अमर वीर नारायण सिंह के नांव हा अव्वल हावय।
               छत्तीसगढ के गरब अउ गुमान वीर नारायण सिंह हा
आदिवासी जमींदार परवार के सपूत रहीन। ए मन हा अपन बाहर ददा के जमीन-जयदाद मा बड़ अराम ले एश-अराम के जिनगी ला बिता सकत रहीन। वीर नारायण हा अराम ले जादा परहित मा, देशहित मा अजादी ला अपन मन मा रमा लीन। अपन जनमभूमि अउ जनता के रक्षा बर ए मन हा अपन परान हाँसत-हाँसत निछावर कर दीन। इंखर इही करनी हा इनला अमर बना दीस। छत्तीसगढ के असल अउ सरल निवासी आदिवासी बंस मा
जनम लेवईया नारायण सिंह हा बिंझवार समाज के बीर बेटा रहीन। इंखर जनम हा महानदी के घाटी अउ छत्तीसगढ के माटी सोनाखान मा बछर 1795 मा होय रहीस। इंखर ददा रामसाय हा सोनाखान के जमींदार रहीन। बछर 1818-19 के बखत मा
अंग्रेज अउ भोंसले राजा मन हा बड़ अतियाचार करत रहीन। इही अतियाचार के बिरोध मा जमींदार रामसाय हा तलवार उठाय रहीन फेर ए बिदरोह ला केप्टन मैक्सन हा दबा दे रहीन। बिदरोह के बाद मा रामसाय हा अपन बिंझवार आदिवासी समाज के समरथन अउ सहजोग ले अपन दल-बल ला सकेल के पोठ करीन। इंखर बाढ़त
दल-बल ला देख के अंग्रेज मन हा जमींदार रामसाय ले राजीनामा कर लीन। देशभक्ति अउ बहादुरी नारायण सिंह ला अपन बाप ले बपउती मा मिले रहीस। ददके मृत्यु पाछू ए मन हा बछर 1830 मा सोनाखान के जमींदार बन गीन।
                     नारायण सिंह हा अपन आदत बेवहार ले जन-जन के हितवा,नियाव धरमी, बहादुर जमींदार के रुप मा लोकप्रिय बन गीन। लोगन मन के अंतस मा नारायण सिंह प्रजा पालक,अनियाव ले लड़ईया अउ जनता के पोसईया के रुप
मा जघा बनाईन। ए मन हा जन-जन के अघुवा अउ हितवा जमींदार बन के अपन अंचल मा लोकप्रिय अउ जनप्रिय होगें। इंखर इही प्रसिद्धि हा परोसी जमींदार मन ला फुटहा आँखी मा घलाव नइ सुहावत रहीस। तीर तखार के इंखर संगी जमींदार मन हा इंखर ले बैर अउ जलन भाव रखंय। बछर 1854 मा अंग्रेज मन हा कर वसूली बर एक ठन नवा कर *टकोली* ला लागू कर दीन। ए *टकोली* कर के नारायण सिंह हा जनता के हित मा बड़ भारी बिरोध करीन। एखरे सेती रइपुर मा वो समे के डिप्टी मिशनर इलियट हा इंखर सबले बङे बिरोधी अउ बैरी बनगे।

बछर 1856 मा सरी छत्तीसगढ मा पानी नइ गिरीस ता सुख्खा के संग अकाल परगे। लोगन भूखन-लाँघन मरे ला धर लीन। खाये-पीये के अब्बङ समसिया समागे। नारायण सिंह हा बिपदा के ए घड़ी मा अपन प्रजा के संग खाँध मा खाँध डारके खङे होगीन। अपन अंचल ले भुखमरी ला मिटाय बर ए मन हा सरी उदिम करीन। अपन मालगुजारी के सरी माल अउ अनाज ला जनता के दुख-पीरा ला मेटाय बर बाँट दीन। अपने जइसन भुखमरी मेटाय के उदिम करे के बिनती परोसी जमींदार मन ले करीन फेर कोनो मानीन ता कोनो नइच मानीन। जनता के भुखन-लाँगन रहई हा एमन ला घातेच जियानीस। इही दरद-पीरा ला ले के नारायण सिंह हा अपन परोसी जमीदार कसडोल के बैपारी माखन ले मदद के गोहार लगाईन। एमन बिनती करीन के अपन गुदाम मा भरे अनाज ला इहां के गरीब मन ला बाँट दंय। ए बात ला बैपारी हा नइ मानीच। एखरे सेती नारायण सिंह हा वो बैपारी के गोदाम के तारा ला टोरवा के उहां भरे सरी अनाज ला गरीब जनता मा बटवा दीन। वो बैपारी हा ए बात के सिकायत अंग्रेज अधिकारी ले कर दीस। अंग्रेज सरकार हा नारायण सिंह ला 24 अक्टूबर 1856 मा संबलपुर ले पकड़ के रइपुर के जेल मा बन्द कर दीस। इही समे मा देशभर मा अजादी के लड़ई मात गे ता वो अंचल के लोगन मन हा जेल मा बन्द नारायण सिंह ला अपन अघुवा मान लीन अउ अजादी के लड़ई मा सामिल होगें। नारायण सिंह हा घलाव अंग्रेज के बाढ़त अतियाचार ले लड़े बर अजादी के लड़ई मा कूद दीन अउ जेल ले भाग गीन।
अंग्रेज मन संग लड़ई लड़ीन अउ अपन आप ला अंग्रेज ला संउप दीन। अगस्त 1857 मा देशभक्त सैनिक अउ अपन सहजोगी के मदद ले वीर नारायण सिंह एक बेर फेर जेल ले निकल भागीन अउ ए दरी अपन गांव सोनाखान जा पहुँचीन। अपन गाँव मा
पाँच सौ बंदुक वाले मन के सेना बनाइन। अंग्रेथ घलाव कलेचुप नइ बईठीन। एहू मन हा अपन दल-बल के संघरा सोनाखान बर निकल गीन। अंग्रेज मन ला सोनाखान के बारा मा कुछु जादा जानकारी नइ रहीस फेर लालची अउ गद्दार जमींदार मन के
मदद ले सोनाखान आ पहुँचीन। सोनाखान के जंगल मा वीर नारायण सिंह के सेना अउ अंग्रेज मन के भारी लड़ई मात गे। अंग्रेज मन हा हारे ला धर लीन। एखर ले अंग्रेज मन खखुवागें अउ जनता उपर अतियाचार ला बढ़ा दीन। वीर नारायण सिंह
हा अपन जनता ला अंग्रेज के अतियाचार ले बचाये खातिर अपन आप ला सोनाखान ले निकाल के लकठा के एक ठन पहाड़ी मा जाके सरन ले लीन। अंग्रेज मन हा सोनाखान मा खुसर के सरी गांव भर मा आगी लगा दीन। नारायण सिंह मा जब तक  शक्ति अउ समरथ रहीस अपन छापामार बिधि ले अंग्रेज मन ले लड़त अउ पदोवत रहीन। बड़ दिन ले ए लुकाय-चोराय लड़ई बिधि ले लड़ई चलते रहीस फेर तीर तखार के जमींदार मन हा गद्दारी करके नारायण सिंह ला पकड़वा दीन। वीर नारायण सिंह उपर राजद्रोह
के मुकदमा चलाय गीस। एक परजा पालक,जन-जन के हितवा उपर राजद्रोह के मुकदमा हा सरासर गलत अउ लबारी रहीस फेर अंग्रेज मन के नियाव के नाटक अइसनहे होवय। अपन मनमरजी नियाव के नाव मा अनियाव करंय।
                      अंग्रेज मन हा राजद्रोह के नांव मा वीर नारायण
सिंह ला मृत्युदंड के रुप मा फाँसी के सजा सुना दीन। 10 दिसम्बर 1857 के दिन रइपुर के जयस्तंभ चउक मा वीर नारायण सिंह फाँसी मा टाँग दे गीन। फाँसी मा झुलत इंखर देंह ला तोप ले उङा दीन। ए हमर भाग हे के अइसन वीर सपूत हा हमर छत्तीसगढ महतारी के कोरा  बलौदाबाजार मा जनम धरे रहीन। भारत देश अउ छत्तीसगढ राज घलाव अमर शहीद बलिदानी वीर नारायण के करजा लागत हे। इही करजा ला चुकाय खातिर भारत सरकार हा बछर 1987 मा 60 पइसा के डाक टिकिट छापे रहीन। ए डाक टिकिट मा वीर नारायण सिंह ला तोप के आगू मा बंधाय देखाय गे हे। छत्तीसगढ हा घलाव अपन राज के एकलउता अंतराष्ट्रीय
क्रिकेट स्टेडियम के नांव ला वीर नारायण सिंह के नांव मा राख के सनमान दे हावय। एखरे संगे संग छत्तीसगढ सरकार हा खाद्य सुरक्षा अधिनियम ला सबले पहिली अपन राज मा लागू करीन हे। ए अधिनियम ले सस्ता अनाज गारंटी जन-जन ला मिलथे। ए योजना ला देश भर मा सबले पहिली हमर राज मा लागू करे के पाछू वीर नारायण सिंह के सबला अनाज मिलय, कोनो भूख झन मरय ए सोच अउ समझ हा हावय। अइसन जन-जन के अघुवा अमर बलिदानी अजादी के मयारू वीर नारायण सिंह ला ए
छत्तीसगढ राज हा 10 दिसम्बर के दिन हर बछर अपन श्रद्धांजलि अरपित करे जाथे। छत्तीसगढ के आन बान शान सोनाखान के माटी अउ उंखर सपूत वीर नारायण सिंह ला जींयत भर सत-सत पयलगी।
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*कन्हैया साहू "अमित"*
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(2)
*शहीद वीर नारायण सिंह*

छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाँ जेला तइहा के जुग मा दक्षिण कौशल घलो काहयँ, बड़े-बड़े संत, गुरु, ज्ञानी अउ वीर सपूत मन ला अपन गोदी में खेलइया महतारी आय । ए महतारी के अँचरा मा घन जंगल घटते हे  त  हीरा, सोना ,चाँदी  के खदान घलो हाबय । इहाँ के नदिया मन मीठ पानी ले भरे कुलकत- गावत रहीथें ।किसान के कोठी ह अन्न मा भरे  छलकत रहिथे ।भगवान राम के महतारी माता कौशिल्या के मइके ए भुइयाँ मा सदा  धरम-करम के अलख जागे रहिथे। इहाँ के रहवासी मेहनती, सरु किसान मन ला  देख के कतको झन काहत रहिथें-- छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।
     जुन्ना जुग ले ए भुइयाँ  मा देशभक्ति के पुरवइया तको फुरुर-फुरुर चलत हे।अन्याय, अत्याचार के विरोध करें मा छत्तीसगढ़िया कभू पिछू नइ राहयँ। भारत के पहली स्वतंत्रता संग्राम ले घलो पहिली इहाँ के सपूत मन अंग्रेज मन के मुकाबला करे  हें।उही कड़ी मा सोनाखान के वीर सपूत नारायण सिंह अउ ओकर  पूर्वज मन ला भुलाये नइ जा सकय।
  वर्तमान मा बलौदाबाजार जिला मुख्यालय ले लगभग 70 किलोमीटर दूरिहा मा डोंगरी पहाड़ के बीच, घन जंगल मा सोनाखान  नाम के गाँव, जेला सिंघगढ़ घलो काहयँ, हाबय। जेन हा 17 वीं शताब्दी मा सारंगढ़ के राजा के वंशज मन के जमीदारी के राजधानी बने रहिसे। इहें के परजा हितैषी वीर जमीदार रामराय के धर्मपत्नी  रानी रामकुँवर देवी के  कोंख ले सन 1795 मा महान प्रतापी बालक नारायण सिंह के जनम होइच।
     कहे गे  हे--होनहार बिरवान के होत चिकने पात। सोला आना सहीं बात आय। बालक  नारायण सिंह ला खून मा दाई के धार्मिक संस्कार और पिता के दयालु पन ,वीरता के गुण मिले रहिसे। जमीदार रामराय परजा के हित करे बर कई बेर अंग्रेज मन ले झगरा लड़ाई करिच ।अपन बिंझवार आदिवासी सेना के संग मा सन 1818- 19 म अंग्रेज अउ भोंसले राजा के विरोध मा तलवार उठाइच। तेकर सेती  कैप्टन मैक्सन हा ओला अपन बड़े दुश्मन मानय।
    परोपकारी जमीदार राम राय के सन 1830 मा इंतकाल होये के बाद 35 साल के  उमर मा  युवराज नारायण सिंह हा सोनाखान के जमीदार बनिच अउ अपन जिनगी ला परजा मन के सेवा मा खपाये ल धरलिच । ओकर निस्वार्थ सेवा अउ राजकाज ला देख के जम्मों परजा अब्बड़ खुश राहयँ । 
    जमीदार नारायण सिंह ह अपन दुलरुवा घोड़ा म बइठ के, कनिहा मा तलवार खोंचे, घूम-घूम के  अपन परजा के सुख-दुख के सोर -सन्देशा लेवत राहय। एक दिन एक झन आदिवासी हा गोहराइच-- जमीदार महराज, रक्षा करव। एक ठन बघवा हा  अबड़ेच उतपित करत हे। हमर पाले-पोंसे गाय-गरुवा, छेरी-बोकरा मन ला हबक-हबक के खावत हे।अतका  ला सुन के वीर नारायण हा  अपन जान के बाजी लगाके तुरते बघवा ला खोज के मार देइच ।चारों मुड़ा जय जयकार होगे। बताये जाथे उही दिन ले वोला चालबाज अंग्रेज मन वीर के उपाधि देये रहिन।
  सन 1856 के बात आय। भारी दुकाल परगे।लोगन दाना-दाना बर मोहताज होके भूँख मा मरे ल धरलिन। वीर नारायण सिंह  ले उँकर दुख देखे नइ जाय। अपन कोठी के जम्मों धान कोदो ला  बाँट दिच  फेर कतका झन ला पुरतिच भला ? वोहा बड़े-बड़े सेठ साहूकार  मन सो हाथ पसार के अन्न माँगय।जेन मिलय तेला बाँट दय।सहीं बात ये - पाँचों अँगुरी एके बरोबर  नइ होवय। कतको के हिरदे पथरा कस निष्ठुर होथे।ओइसने काइयाँ कसडोल के सेठ माखन रहिसे। वीर नारायण सिंह ह उहू ला गोहरावत कहिच-- सेठ जी! लोगन भूख मा  मरत हें। तोर गोदाम मा  अबड़े  धान-चाउँर भरे हे।  किरपा करके ओला  बाँट दे ।आगू बछर धान- पान होगी तहाँ ले तोला लहुटा देबो।ओतका ला सुन के माखन भन्नागे अउ इंकार करत हाथ हलादिच । तब तो वीर नारायण सिंह हा आव देखिच न ताव ,  गोदाम के तारा ल टोर के धान -चाउँर ला बाँट दिच।वोती  माखन ह रायपुर जाके अंग्रेज कैप्टन इलियट करा शिकायत कर दिच। अंग्रेज मन तो ओखी खोजत राहयँ। चोरी अउ डकैती के आरोप मा 24 अक्टूबर 1856 के संबलपुर मा वीर नारायण ला पकड़ के रायपुर के जेल मा डारदिन।
  फेर शेर हा पिंजरा मा कतका दिन ले धँधाये रतिच ? 28 अगस्त 1857 ई. मा वीर नारायण सिंह हा अपन तीन झन साथी मन संग जेल ले फरार होके सीधा  सोनाखान पहुँच गिच। वो हा अंग्रेज मन ले निपटे बर तीर-कमान वाले सेना के संग 500 बंदूकधारी सेना के गठन  करिच ।एति एलियट हा कैप्टन स्मिथ ला आदेश देवत कहिच--जा नारायण ला जिंदा या  मुर्दा लाके देखा।आदेश पाके कैप्टन स्मिथ हा भारी सेना लेके  सोनाखान ला चारों मुड़ा ले घेरलिच।वीर नारायण सिंह हा कुर्रूपाट के डोंगरी ऊपर मोर्चा संभाले राहय।भारी लड़ाई होइच। स्मिथ अउ ओकर सेना के पाँव उखड़े ल धरलिच। बहुँते सैनिक मरगें।उही समय देवरी के गद्दार जमीदार हा आके स्मिथ सँग मिलगे। भारी मारकाट मातगे।फेर वीर नारायण हाथ आबे नइ करत रहिच। तब अंगेज मन गाँव मन मा आगी लगाये ल धरलिन। निहत्था परजा मन ला मारे काटे ल धरलिन।जेला देख के अपन परजा ला बँचाये खातिर वीर नारायण हा आत्म समर्पण कर दिच।
      कैप्टन स्मिथ ला ओला पकड़ के रायपुर के जेल मा ओलिहा दिच। अंग्रेज मन ओकर उपर चोरी अउ डकैती के देखवटी  मुकदमा चलाके, मौत के सजा सुनाके 10 दिसम्बर 1857 के दिन आज के रायपुर मा जेन जगा जयस्तम्भ चौंक हे उही जगा तोप मा बाँध के उड़ा दिन।
       अपन परजा अउ महतारी भुइयाँ खातिर जान गवाँके  वीर नारायण सिंह हा अमर होगे। जब ले ए धरती रइही, जब ले सुरुज- चन्दा रइही ,तब ले वीर नरायन सिंह के नाम अम्मर रइही।
      छत्तीसगढ़ महतारी के वीर सपूत , प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ला कोटि कोटि प्रणाम हे।

 चोवा राम 'बादल '
 हथबन्द (छत्तीसगढ़)
9926195747