Saturday, 21 December 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंजन - डॉ. मीता अग्रवाल

"पुष्टई ले भरपूर छत्तीसगढ़ी व्यंजन"

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, कला अउ साहित्य के अपन एक अलग पहचान हवे, इही गोठ ला चेत करके घर के रँधनी ले अपन गोठ के शुरुआत करत हँव । हमर जिनगी म खानपान के बहुतेच महत्व हवे।  छत्तीसगढ़ी जेवन के ररँधई जब महमहाथे तव मुँह मा पानी भर जाथे। "धान के कटोरा" कहाए वाला छत्तीसगढ़ मा किसम -किसम के चाँउर के उत्पादन होथे। लगभग 1000 ला आगर धान के पैदावार हमर खानपान के महत्वपूर्ण जिनिस हवे। चाँउर - दार, साग- भाजी के अलावा,  आनी बानी के कलेवा घलो बनाए जाथे, जेमा- फरा, दूध फरा, चीला, चौसेला चाँउर-पिसान ले रोजेच बनाय जाथे।
          तीज तिहार मा बनने वाला पकवान अउ जेवन  मा, चाँउर पिसान संग गँहूं पिसान, बेसन भी प्रयोग करें जाथे। इन पकवान मा ठेठरी ,खुरमी, देहरवरी ,अइरसा, गुझिया, कुसली, पिडिया,  बिडिया, खाजा, पपची, कुर लाड़ू ,बरा ,बोबरा प्रमुख हवें।
खान पान मा इहाँ विविधता के कमी नइये। रँधनी मा रोजेच
भाजी के बड़ महत्व हे।,कहावत घलो जनजीवन में प्रचलित हवे -"छत्तीसगढ़ के भाजी, जेमा भगवान राजी"।  छत्तीसगढ़ मा बासी संग भाजी सबे झन खाथें। बटकी मा बने बासी के सेवाद संग भाजी खाय के अलगे मजा हवे। इहाँ पचास ले ज्यादा किसम के भाजी गाँव अउ शहर मन मा राँधे जाथे, जउन विटामिन ले भरपूर रथे। प्रमुख भाजी मा- सरसों भाजी ,खेड़ा भाजी, बोहार भाजी , कुरमा भाजी, चाटी भाजी, चरोटा भाजी, बथुआ भाजी, खोटनी भाजी, खट्टा भाजी, मुनगा भाजी, मुरई भाजी, गोंदली भाजी, गोल भाजी, तिनपनिया भाजी, करमत्ता भाजी, चेंच भाजी, चौलाई भाजी, पाला भाजी, लाल भाजी ,अमारी भाजी, गुमी भाजी, उरीद- मूंग भाजी ,मछरिया भाजी, गुडरु भाजी,  मुस्केनी भाजी उल्ला भाजी, बर्रे भाजी चना भाजी ,मेथी भाजी ,तिवरा भाजी ,पोई भाजी, मखना भाजी, कांदा भाजी, कुसुम भाजी छत्तीसगढ़ मा ये भाजी मन अधिकतर बनाये जाथें।

कुछ भाजी ल कम बनाए जाथे ,ऐमा- भाजी मिरचा भाजी, पीता भाजी, लमकेनी भाजी, कुलफा भाजी, खोटलिइया भाजी, धरकूट भाजी ,बरेजहा  भाजी, कुरमा भाजी, कौवकानी भाजी, इमली भाजी, पटवा भाजी, कोईलार भाजी, कोचई भाजी, गिरहुल भाजी पत्थरी भाजी, सेमी भाजी, लेड़गा भाजी ,लेवना भाजी, बर्रा भाजी , उल्ला भाजी ये सबो भाजी ला बिशेष बिंध ले राँधे जाथे, जेमा फोरन मा लसून, लाल मिरचा, तिली, पताल नून डार के पकाये जाथे।
साग म जिमीकाॅदा इहाँ के राजा साग हवे जे बरबिहाव के समधी भोज मा खवाना जरुरी रथे अउ देवारी अनकूट मा घर-घर राँधेन जाथे। सुक्सा साग मा भाटा, गोभी, बुंदेला मुरई, दही मिर्चा, किसम किसम के बरी-रखिया तूमा, पपीता, कोहडा के अलावा,भात ,लाई, अदौरी बरी, विशेष कर बनाय जाथे। चाँउर पापर,चाँउर कुरेरी, रखिया बीजा के बिजौरी ला तर के पहुना ला खवाय के चलन हवे। अथान गुराम, चटनी, अरक्का के  सेवाद ह, खाना के सेवाद ला बढ़ाथे।

छत्तीसगढ़ में बनने वाला ये व्यंजन के सेवाद, केवल प्रदेश मा ही नही, पूरा देश मा, बगरे हवे, काबर कि ये व्यंजन, छत्तीसगढ़ के पहचान के संगे संग पुष्टई मा प्रोटीन, विटामिन, खनिज- लवण, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि ले घलो भरपूर हवे। राँधे गढ़े  मा आज के जमाना मा एकर तरीका आसान हवे। मेला- मँडई मा लोगन व्यंजन के सेवाद ल लेके आनी बानी के जेवन के प्रशंसा करत नइ थकँय।
 इही कोशिश मा मँय हर 2002 छत्तीसगढ़ी व्यंजन-"आनी बानी के जेवन" के नाम ले पुस्तक लिखे हँव , उन हमर राज्य के व्यंजन ला घरोघर बगराय म फलित होवत हवे । हमर छत्तीसगढ़ के खानपान के तरीका अपन आप मा बिशेष महत्व रखथे।

लेखिका -  डाॅ. मीता अग्रवाल मधुर, रायपुर
 छत्तीसगढ़

7 comments:

  1. छत्तीसगढ़ी खानपान के बड़ सुग्घर वर्णन करे खातिर आपला बहुत-बहुत बधाई

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  2. वाह्ह्ह्ह्ह् दीदी ,भाजी मन के नाम ल बढ़िया गिने हव

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  3. बहुत-बहुत बधाई दीदी बहुते सुग्घर

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  4. अति सुन्दर दीदी जी बधाई हो

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  5. गजब सुग्घर दीदी

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  6. छंद खजाना मा लेख ला स्थान मिलिस, गुरु देव आपला बहुत बहुत धन्यवाद,आपके असीस मिलत रहे ,प्रणाम ।

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