Friday, 29 July 2022

छत्तीसगढ़ी कहानी- धुँधरा


 

छत्तीसगढ़ी कहानी- धुँधरा

                              चन्द्रहास साहू

                          मो 8120578897


 एक लोटा पानी पीयिस  गड़गड़-गड़गड़ बिसालिक हा अउ गोसाइन ला तमकत झोला ला माँगिस। आगू ले जोरा-जारी कर डारे रिहिस। अउ झोला...?  झोला नही भलुक संदूक आय दू दिन के थिराये के पुरती जिनिस धराये हाबे।  गोसाइन घला कोनो कमती नइ हाबे। बिहनिया चारबज्जी उठके सागभाजी चुनचुना डारिस चुल्हा चुकी सपूरन करके टिफिन जोर डारिस। गोसाइया ला जेवन करवाइस। गोसइया तियार होइस अउ एक बेर फेर देवता कुरिया मा खुसरगे। ससन भर देखिस बरत दीया अउ अगरबत्ती ला। दुनो हाथ जोरके कुछु फुसफुसाइस अउ जम्मो देबी देवता के पैलगी करिस। लाल ओन्हा मा बँधाये रामायण, फोटो मा दुर्गा काली हनुमान अउ बंदन पोताये तिरछुल वाला देवता, लिम्बू खोंचाये लाली पिवरी धजा - जम्मो ले आसीस माँगिस। 

       अब शहर के रद्दा जावत हावय जवनहा बिसालिक हा। डोंगरी पहाड़ ला नाहक के मेन रोड मा आइस । फटफटी मा पेट्रोल भरवाइस। अब शहर अमरगे। शहर के कछेरी अउ कछेरी मा अपन वकील के केबिन कोती जावत हाबे।

"नोटरी करवाना हे का ?''

"लड़ाई झगरा के मामला हे का ?''

"जमीन जायदाद के चक्कर हे का ?'' 

आनी-बानी के सवाल पूछे लागिस वकील के असिस्टेंट मन। बिसालिक रोसियावत हाबे फेर शांत होइस।  कुकुर भूके हजार हाथी चले बाजार । बिसालिक काखरो उत्तर नइ दिस अउ आगू जावत हे। वोकर वकील के केबिन सबले आखरी मा हाबे। 

"तलाक करवाना हे का ?''

एक झन वकील के असिस्टेंट अउ पूछिस अगियावत बिसालिक ला।

"बिहाव के चक्कर हाबे का भइयां ! लव मैरिज फव मैरिज।''

"हँव बिहाव करहुँ तुंहर बहिनी मन हाबे का बता ....?''अब सिरतोन तमतमाये लागिस बिसालिक हा अउ मने मन फुसफुसाइस।


"का भइयां ! तहुँ मन एकदम मछरी बाजार बरोबर चिचियावत रहिथो। दू झन लइका के बाप आवव भइयां । मोर बर- बिहाव होगे हे। ....अउ मेहां कोन कोती ले कुंवारा दिखथो ? आनी-बानी के सवाल झन पूछे करो भई।''

बिसालिक अब शांत होवत किहिस ।

"अरे ! आनी-बानी के सवाल नइ हाबे। सरकारी उमर एक्कीस ला नाहक अउ कभु भी बिहाव कर कभु भी तलाक ले...! उम्मर के का हे....? उम्मर भलुक बाढ़ जाथे फेर दिल तो जवान रहिथे। पच्चीस वाला घला आथे अउ पचहत्तर वाला घला  आथे बिहाव करवाये बर अउ तलाक लेये बर।''

वकील के असिस्टेंट किहिस अउ दुनो कोई ठठाके हाँस डारिस। कम्प्यूटर मा आँखी गड़ियाये ऑपरेटर अउ टकटकी लगाके देखत परिवार के जम्मो मइनखे करिया कोट मा खुसरे वकील पान चभलावत नोटरी अउ दुख पीरा मा दंदरत क्लाइंट । 

                  बिसालिक घला क्लाइंट तो आय नामी वकील दुबे जी के। वकील केबिन ला देखिस झांक के। दुबे जी बइठे रिहिस कोनो डोकरी संग कोई केस साल्व करत रिहिस। अब क्लाइंट मन बर लगे खुर्सी मा बइठगे। असिस्टेंट नाम पता लिखिस पर्ची मा अउ वकील दुबे जी के आगू मा मड़ा दिस।

               झूठ लबारी दुख तकलीफ सब दिखथे कछेरी अउ अस्पताल मा। उहाँ मइनखे जान बचाये बर जाथे अउ इहाँ ईमान बचाये बर। उहाँ मरके निकलथे अउ इहाँ मरहा बनके निकलथे मइनखे हा। नियाव मिलही कहिके आस मा हर पईत आथे बिसालिक हा फेर मिल जाथे तारीख। तारीख बदलगे मौसम बदलगे बच्छर बदलगे वकील कोर्ट जज बदलगे फेर नइ सुलझिस ते एक केस। बिसालिक अउ वोकर नान्हे भाई बुधारू के बीच के जमीन विवाद।

               बिसालिक गाँव मा रहिथे अपन परिवार संग अउ बुधारू हा शहर मा अपन परिवार के संग। दाई ददा के जीते जीयत बाँटा-खोंटा हो गे रिहिस। नानकुन घर खड़ागे। खार के खेत दू भाग होगे। अउ बाजार चौक के जमीन ....? इही आय  विवाद के जर । दाई ददा के सेवा-जतन सूजी पानी ऊँच नीच जम्मो बुता बिसालिक करिस। बुधारू तो सगा बरोबर आइस अउ सगा बरोबर गिस। ऊँच नीच मा कभु दू चार पइसा दे दिस ते .?....बहुत हे। "ड्राइवर के बुता अउ आगी लगत ले महंगाई , वेतन पुर नइ आवय भइयां।''

अइसना तो कहे बुधारू हा जब पइसा मांगे बिसालिक हा तब। दाई ददा के जतन करे हस बाजार चौक  के जमीन तोर हरे बिसालिक। गाँव के सियान मन किहिन। कोनो विरोध नइ करिन। अब बिसालिक अपन कमई ले  काम्प्लेक्स बना दिस आठ दुकान के । ....अउ बुधारू के आँखी गड़गे। 

"मोर दू झन बेटा हाबे बिसालिक भइयां ! दू दुकान ला दे दे। नौकरी चाकरी नइ लगही ते दुकान धर के रोजी रोटी कमा लिही लइका मन, पानी -पसिया के थेभा।''

 अतकी तो अर्जी करे रिहिस बुधारू हा। बिसालिक तो तमकगे। 

"मोर कमई ले दुकान बनाये हँव नइ देवव कोनो ला।''

अब घर के झगरा परिवार मा गिस। परिवार ले पंचायत अउ अब कोर्ट कछेरी। छे बच्छर होगे केस चलत। पइसा भर ला कुढ़ोथे अउ नियाव नइ मिले तारीख मिलथे....।

 "बिसालिक !''

 आरो करिस  असिस्टेंट हा अउ बिसालिक वकील के कुरिया मा खुसरगे। जोहार भेट होइस। अपन जुन्ना सवाल फेर करिस।

"केस के फैसला कब होही वकील साहब !'' 

अवइया तीस तारीख बर अर्जी करहुँ जज साहब ले। उँही दिन फैसला हो जाही। केस जीतत हन संसो झन कर। साढ़े सात हजार फीस जमा कर दे असिस्टेंट करा ।''

वकील किहिस अउ आस मा पइसा जमा करिस बिसालिक हा। घर लहुटगे अब।


 "बड़ा बाय होगे बिसालिक !''

रामधुनी दल के मैनेजर आय। दउड़त हफरत आइस अउ किहिस।

"का होगे कका! बताबे तब जानहु।''

"का बताओ बेटा ! फभीत्ता हो जाही, जग हँसाई हो जाही अइसे लागथे। राम के पाठ करइया गणेश हा अपन गोसाइन संग झगरा होके भागगे रे ! गुजरात जावत हे कमाये खाये बर। वोकर पाठ ला कोन करही एकरे संसो हाबे बेटा ! तेहाँ करबे न !'' 

"मेहां...? नइ आय कका ! जामवंत रीछ के पाठ करथो खाल ला ओढ़के उँही बने लागथे। ''

बिसालिक अब्बड़ मना करिस फेर मैनेजर तियार कर डारिस। 

          आगू गाँव भर मिलके कलामंच मा रामलीला करे अउ रावण मारे फेर अब तो गाँव भर दुराचारी रावण होगे हे तब कोन मारही रावण......? रामलीला नंदा गे। अब रामधुनी प्रतियोगिता होथे उँही मा झाँकी निकाल के रामकथा देखाथे मैनेजर हा। जम्मो कलाकार मन ला जुरिया के लेगिस आमदी गॉंव अउ तियारी करे लागिस अपन कार्यक्रम के।

               गवइया सुर लमाइस। नचइया  मटकाइस। मंच मा बाजा पेटी केसियो ढ़ोलक मोहरी बाजिस।  मंगलाचरण आरती होये के पाछू कथा शुरू होइस राम बनवास के कथा। बिसालिक पियर धोती पहिरे हे। मुड़ी मा जटा, बाहाँ मा रुद्राक्ष के बाजूबंद, नरी मा रुद्राक्ष के माला, गोड़ मा खड़ाऊ कनिहा मा लाल के पटका। माथ मा रघुकुल के तिलक अउ सांवर बरन दमकत चेहरा। दरपन मा देख के अघा जाथे। धनुष बाण के सवांगा मा सौहत राम उतरगे अइसे लागत हे।

          राजा दशरथ कोप भवन मा जाके केकयी ला मनाथे। अउ नइ माने तब पूछथे का वचन आय रानी माँग ले।


"मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु।

माँग -माँग तो कथस महाराज फेर देस नही।'' कैकयी हाँसी उड़ावत किहिस। 

"दुहुँ सिरतोन !''

"रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई ।''

"तब सुन महाराज ! मोर पहिली वचन


सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका॥

दुसर वचन

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी॥

राम ला चौदह बच्छर के वनवास अउ मोर भरत ला राजगद्दी।

अइसने किहिस कैकेयी हा। दशरथ तो पछाड़ खा के गिरगे। 

                 अब्बड़ मार्मिक कथा संवाद मैनेजर गा के , रो के रिकम-रिकम के अभिनय करके बतावत हे।

 जम्मो  देखइया के आँसू चुचवाये लागिस। कतको झन कैकयी के बेवहार बर रोसियाये घला लागिस। 

राम के बरन धरे बिसालिक सबले आगू कैकेयी के पांव परके आसीस माँगथे। फूल कस सीता घला रिहिस। लक्ष्मण घलो संग धरिस अउ गोसाइन उर्मिला ले बिदा माँगिस। उर्मिला मुचकावत बिदा दिस। अब गंगा पार करके चल दिस जंगल के कांटा खूंटी रद्दा मा। भरत तमतमाये लागिस राजपाठ ला नइ झोंको कहिके। अब राम के खड़ाऊ ला धर के लहुटगे। भाई भरत तपस्वी होगे अउ शत्रुघन राज चलावत हे- रामराज ला। 

              सिरतोन कतका मार्मिक कथा हाबे। समर्पण अउ त्याग के कथा आय रामायण। जम्मो ला देखाइस बिसालिक मन। बिसालिक गुनत हे जम्मो कोई अपन सवांगा ला हेर डारिस अब,  फेर बिसालिक नइ हेरिस।

कार्यक्रम सुघ्घर होइस बिसालिक घला बने पाठ करिस। अब गाँव वाला मन ले बिदा लेवत हाबे। 

"चाहा पीके जाहू। छेरकीन डोकरी घर हाबे जेवनास हा।''

गाँव के सियान किहिस अउ चाहा पियाये बर लेग गे।

जम्मो कोई ला चाहा पियाइस डोकरी हा। राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन के पाठ करइया मन चाहा पीयिस फेर मंथरा अउ कैकेयी ला नइ परोसे।

"दाई यहुँ बाबू ला दे दे ओ !''

मैनेजर के गोठ सुनके दाई खिसियाये लागिस।

"इही मन तो बिगाड़ करिस मोर फूल बरोबर सीता ला, राम ला बनवास पठोइस। नइ देव चाहा।''

डोकरी बखाने लागिस। राम बने बिसालिक किहिस चाहा बर तब वोमन चाहा पीयिस। अब जम्मो के आसीस लेके लहुट गे अपन गाँव बिसालिक अउ संगवारी मन।

       अधरतिया घर अमरिस बिसालिक हा। गोड़ हाथ धो के सुतिस फेर नींद नइ आय। गुने लागिस रामायण ला। नत्ता ला कइसे निभाये जाये ..? त्याग समर्पण इही तो सार बात आय रामायण के। ददा के बात मान के राम जंगल गिस - पुत्र धर्म के मान राखिस। गोसइया के संग देये बर फूल कस सीता चल दिस। उर्मिला मुचकावत लक्ष्मण ला बिदा दिस। भरत राजपाठ तियाग के तपस्वी होगे।...... अउ छोटे भाई शत्रुघन राज करत हे। जम्मो अनित करइया,चौदह बच्छर के बनवास भेजइया माता कैकयी ला प्रथम दर्जा देके पैलगी करथे राम हा। कोनो बैर नही, कोनो मन मइलाहा नही.....! जम्मो कोई ला मान देवत हे। अतका होये के पाछू घला भरत बर मया......? सिरतोन राम तेहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम राम आवस।


बिसालिक गुनत हे।..........अउ मेहां .....?अपन छोटे भाई संग का करत हँव.......? शहर के रहवइया मोर छोटे भाई ड्राइवर तो हरे। हटवारी के दू दुकान ला मांगत हाबे। .....अउ में निष्ठुर चोला कोट-कछेरी रेंगावत हँव।

               मुँहू चपियागे। लोटा भर पानी पी डारिस। अब महाभारत के सुरता आये लागिस। पांडव मन आखिरी मा पाँच गाँव तो माँगिस वहुँ ला नइ दिस चंडाल दुर्योधन हा अउ अपन कुल के नाश कर डारिस।

मोर छोटे भाई हा घला दू दुकान ला मांगत हाबे अउ मेहां कोर्ट कछेरी ......? सिरतोन महंगाई मा वोकर घर नइ चलत होही ....? कभु एक काठा चाउर तो नइ पठोये हँव एक्के मे रेहेन तब। ड्राइवर के कतका कमई ...?  दुर्योधन बरोबर मोर बेवहार ....?

नत्ता गोत्ता मा बीख घोर डारेव....। भलुक राम नइ बन सकव ते का होइस...भरत बन के दू दुकान के तियाग कर देव.....?

बिसालिक अब्बड़ छटपटावत हे अब। 

             अब नवा संकल्प लिस मेहां लहुटाहू आठ में से चार दुकान ला । बिहनिया जाहू छोटे भाई घर ....। सुख दुख जम्मो बेरा मा नत्ता निभाहु.....। बिसालिक अब अगोरा करे लागिस बिहनिया के । वोकर मन के जम्मो मइलाहा  धोवा गे रिहिस। अब मन के धुँधरा सफा होगे रिहिस अउ नत्ता-गोत्ता के मिठपन समाये लागिस।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल: 


मनखे के जिनगी म सुख-दुख लगे रहिथे। जब मनखे ल सुवारथ घेर लेथे त मनखे कतको किसम के मुसीबत म फँसे लगथे। जिहाँ ले निकल पाना मनखे के बस म नइ राहय। सुवारथ म फँसे मनखे के मति हजा जथे। बुध नाश हो जथे। ओला अपन सिवा अउ कखरो भल-अनभल ले मतलब नइ राहय।चाहे वो बाँटे भाई परोसी च काबर नइ होय।

        पुरखा मन कहे हे के जइसे ही महतारी कोख ले दूसरइया बेटा अवतरथे, घर के बँटवारा के नेंव, नेरवा संग गड़ जथे। ए अलगे बात आय के मया परेम अउ दाई-ददा के असीस ले अँगना दू फाँकी नइ होवय। फेर दुनिया के रीत आय। कतेक दिन ले भाई बाँटा ल रोके जा सकत हे। एक दिन बँटवारा के बेरा आइच जथे। बँटवारा के पीरा दाई-ददा के हिरदे ल चीर देथे। महतारी के मया बाँटे नइ जा सकय। तभो ले महतारी-बाप अपन छाती म बँटवारा के पखरा ल लाद कलेचुप रहिथे। अपन जनम भुइयाँ अउ करम भूमि ल कहाँ बिसरा पाथे मनखे ह। चाह के दू दिन के सुख बर अपन डीह डोंगर ल नइ छोड़य। पुरखा मन के मन के भाव कुछ अइसन रहिथे- छोड़ के आमा बर, पीपर के छाँव, नइ तो जाँव। वृंदावन लागे रे मोर गँवई-गाँव। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अइसने नइ केहे गे हे।

       आज तक अइसे कोनो बँटवारा नइ होय हे, जेकर ले सबो झन संतोष करँय। तुरते नइ ते कुछ दिन पाछू होय बँटवारा के झगरा होते च रहिथे। जहाँ सुमति, तहाँ सम्पति नाना, जहांँ कुमति तहाँ बिपति निदाना। बात घर ले बाहिर अदालत-कछेरी चल देथे। वकील अउ कछेरी के चक्कर काटत कतको बछर गुजरे लगथे, फेर नियाव के कोनो आरो नइ मिलय। गाड़ी-घोड़ा के खर्चा, काम बूता के नागा अलगेच होथे। फेर मन म कोनो किसम के शांति आबे नइ करय। दिनोंदिन मनखे के सुभाव चिड़चिड़ा होय धर लेथे। घर म कलहा बाढ़ जथे। घर के सुख चैन सुवारथ के चक्की म गहूँ सहीं पिसावत वकील अउ कछेरी के भेंट चढ़ जथे। बँटवारा के मूल ले उपजे अंतस् के संसो अउ पछतावा ल कथानक बना के लिखे गे सुग्घर कहानी आय धुँधरा। 

      हमर पौराणिक कथा मन जिनगी ल नवा उजास देथें, जिनगी म नवा रंग भरथें। मनखे ल नवा संदेश देथें। एक कोती रामायण जिहाँ रिश्ता म एक दूसर बर समर्पण अउ त्याग के संदेश बगराथे अउ मर्यादा के पाठ पढ़ाथे, उहें महाभारत म होय जान माल के विनाश सुवारथ म पड़ के अपने बिगाड़ ले बाँचे के संदेशा देथे। 

         अदालत-कछेरी के चक्कर काटत अउ लीला के बलदा चलत नवा रीत झाँकी म राम के रोल करत बिसालिक के हिरदे परिवर्तन छत्तीसगढ़िया जनजीवन म बड़ सहज ढंग ले देखे जा सकत हे। छत्तीसगढ़िया जइसन जीथें, वइसन दिखना चाहथें। इही इहाँ के मनखे के सुभाव आय। राम छत्तीसगढ़िया के आदर्श आय। राम इहाँ के रग-रग म समाय हे। एकर बड़का प्रमाण ए आय कि मूल छत्तीसगढ़िया भाँचा म राम के दर्शन करथे। ए भुइँया राम के ममियारो आय। तभे तो छेरकीन डोकरी, मंथरा अउ कैकेयी के रोल करइया मन ल चाहा नइ दिस।

        कहानी म बिसालिक के माध्यम ले बढ़िया विचार मंथन करत सुवारथ के छाय धुँधरा ल मेटे के सुग्घर उपाय हे। कहानी के भाषा म प्रवाह हे। सरलता हे। बँटवारा ले उपजे असंतोष ल घलो दुरिहाय बर पौराणिक कथा के प्रसंग मन के वर्णन अउ चिंतन करे म चंद्रहास साहू जी सफल होय हे। कहानी अपन उद्देश्य ले भटके नइ हे।

       पौराणिक कथा के प्रसंग मन के अइसन ढंग ले प्रस्तुति अउ बँटवारा के मूल समस्या ऊप्पर कहानी म बड़ सुघरई ले प्रयोग निश्चित ही समाज ल सुमत के डहर म ले जाही। 

        जइसे धरती म छाय धुँधरा सुरुज नरायन के बाढ़त अँजोर के संग सफा होवत जाथे, वइसने बिसालिक के अंतस् के धुँधरा रमायण म समाय समर्पण अउ त्याग के जगमग अँजोर ले सफा होवत गिस अउ स्वारथ ले भरे मइलाहा मन म मया पलपलाय लगिस। मन के भेद के मिटगिस। अइसन भाव ले कहानी के शीर्षक धुँधरा सार्थक हे। काबर कि मनखे के अंतस् म दुर्गुण वइसने क्षणिक रहिथे, जइसन धुँधरा।

      अतेक सुग्घर कहानी लिखे बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई।💐🌹


*पोखन लाल जायसवाल*

पठारीडीह(पलारी)

9977252202

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