कबीर जयंती मा विशेष आलेख-अजय अमृतांसु
#संतो देखत जग बौराना#
*सच काहूँ तो मारन धावे झूठे जग पतियाना संतो देखत जग बौराना.....* कबीरदास जी के ये बानी तब भी प्रासंगिक रहिस अउ आज भी प्रासंगिक हवय । कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला आप काट नइ सकव, मानेच ल परही काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात करथे । कोरी कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म नइ मिलय। कबीर के साहित्य ल मूल रूप ले तीन भाग म बाँटे जाथे- साखी, सबद रमैनी ।
'साखी' शब्द साक्षी शब्द के अपभ्रंश आय । येकर अर्थ - "आँखों देखी बात।" कबीर के साखी मन दोहा मा लिखे गए हवय जेमा भक्ति अउ ज्ञान के उपदेश हवय। 'रमैनी' और 'सबद' हा 'गीत / भजन' के रूप में मिलथे हैं ।
उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे । पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े ज्ञानी मन घलो बूझ नइ पात रहिन ।
कबीर के शिक्षा के बारे म विद्वान मन म मतैक्य नइ हे। कुछ के मानना हवय कि कबीर ल पढे-लिखे के अवसर नइ मिलिस लेकिन विद्वान मन के संग उन खूब रहिन तेकर सेती वेद अउ शास्त्र के पूरा जानकारी उमन ला रहिस। उँकरे शब्द मा--
*"मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।"*
कबीर के छवि समाज सुधारक के रहिस। उँकर साहित्य हा काव्य पांडित्य दिखाय बर नइ रहिस बल्कि उँकर काव्य ह भक्ति काव्य रहिस जेमा रहस्यवाद के अद्भुत दर्शन मिलथे । कबीर ल स्वतंत्र अउ सम्मानजनक जीवन प्रिय रहिस,रूखा सूखा खा के ठंडा पानी पी के भी उन संतुष्ट रहिन। कबीर कहिथे :--
*खिचड़ी मीठी खांड है,मांहि पडै टुक लूण।*
*पेड़ा पूरी खाय के,जाण बंधावै कूण ॥*
कबीर के भाखा सधुक्कड़ी माने जाथे जेमा- खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी के शब्द बहुतायत म मिलथे। उमन अपन भाखा ल सरल अउ सुबोध राखिन ताकि आम आदमी घलो समझ जाय । जीव ही ब्रम्ह आय अउ आत्मा ही परमात्मा ये बात ल कबीर कतका सुन्दर ढंग ले समझाथे-
*ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।*
*तेरा सार्इं तुझमें है, जाग सके तो जाग।*
ईश्वर के खोज म भटकइया मनखे ल कबीर सचेत करथे-
*मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में*
कबीरदास जी युग प्रवर्तक के रूप म जाने जाथे । हिंदी साहित्य के 1200 साल के इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न तो अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात ल सबो स्वीकारथे ।
-----अजय अमृतांसु----
#संतो देखत जग बौराना#
*सच काहूँ तो मारन धावे झूठे जग पतियाना संतो देखत जग बौराना.....* कबीरदास जी के ये बानी तब भी प्रासंगिक रहिस अउ आज भी प्रासंगिक हवय । कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला आप काट नइ सकव, मानेच ल परही काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात करथे । कोरी कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म नइ मिलय। कबीर के साहित्य ल मूल रूप ले तीन भाग म बाँटे जाथे- साखी, सबद रमैनी ।
'साखी' शब्द साक्षी शब्द के अपभ्रंश आय । येकर अर्थ - "आँखों देखी बात।" कबीर के साखी मन दोहा मा लिखे गए हवय जेमा भक्ति अउ ज्ञान के उपदेश हवय। 'रमैनी' और 'सबद' हा 'गीत / भजन' के रूप में मिलथे हैं ।
उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे । पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े ज्ञानी मन घलो बूझ नइ पात रहिन ।
कबीर के शिक्षा के बारे म विद्वान मन म मतैक्य नइ हे। कुछ के मानना हवय कि कबीर ल पढे-लिखे के अवसर नइ मिलिस लेकिन विद्वान मन के संग उन खूब रहिन तेकर सेती वेद अउ शास्त्र के पूरा जानकारी उमन ला रहिस। उँकरे शब्द मा--
*"मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।"*
कबीर के छवि समाज सुधारक के रहिस। उँकर साहित्य हा काव्य पांडित्य दिखाय बर नइ रहिस बल्कि उँकर काव्य ह भक्ति काव्य रहिस जेमा रहस्यवाद के अद्भुत दर्शन मिलथे । कबीर ल स्वतंत्र अउ सम्मानजनक जीवन प्रिय रहिस,रूखा सूखा खा के ठंडा पानी पी के भी उन संतुष्ट रहिन। कबीर कहिथे :--
*खिचड़ी मीठी खांड है,मांहि पडै टुक लूण।*
*पेड़ा पूरी खाय के,जाण बंधावै कूण ॥*
कबीर के भाखा सधुक्कड़ी माने जाथे जेमा- खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी के शब्द बहुतायत म मिलथे। उमन अपन भाखा ल सरल अउ सुबोध राखिन ताकि आम आदमी घलो समझ जाय । जीव ही ब्रम्ह आय अउ आत्मा ही परमात्मा ये बात ल कबीर कतका सुन्दर ढंग ले समझाथे-
*ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।*
*तेरा सार्इं तुझमें है, जाग सके तो जाग।*
ईश्वर के खोज म भटकइया मनखे ल कबीर सचेत करथे-
*मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में*
कबीरदास जी युग प्रवर्तक के रूप म जाने जाथे । हिंदी साहित्य के 1200 साल के इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न तो अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात ल सबो स्वीकारथे ।
-----अजय अमृतांसु----
बेहतरीन लेख👍👏👌💐💐
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर लेख सर
ReplyDelete