मुहाचाही ....गुड़ाखु अउ नून...
परन दिन साँझकुन नोनी के दाई के मोबाइल घनघनाइस...अपन आदत अनसार दँवड़त आइस।मैहर हर बार के जइसे टोकेंव,देख के बाई बिछल-बिछली जाबे।फेर वहु हर घाँव जइसे मोरो बात ला अनदेखी करके, सड़दंग आँट म रखे मोबाइल के घेंचउरी ला दबाइस कहिस...हलो.. हलो &&&....हाँ बहिनी अब्बड़ दिन म लगाय या।अउ का-का करत हो,अभी तो घरे म होहू... लोग लइका अउ दमांद बने हे।का बताँव बहिनी काली के हावा-गरेरा म हमर जम्मो आमा झरगे.. पेंड़वा फरकके बहिनी।पारा के गढ़ऊना टुरा मन लाहो लिन, अउ अब बाँचे-खोंचे ला दुखाही धूंका खा डारिस।सबो ला सकेल के लटपट बने-बने ला काट-पऊल के अथान डारेंव अउ गिरे-फूटे ला खुला कर दे हों।
अब ओती ले ...हाँ दीदी सब बने-बने ओ...बस दुखाही कोरोना हा घर खुसरी बना देहे।घरे के काम बुता हा बाढ़गे बहिनी..दिन रात रँधइ -गढ़ई ...कपड़ा लत्ता, धोवइ-पोंछइ तो...अउ हमर भाँटो कइसे हे.. लइका मन बने तो हावे।भाँटो तो लॉक डाउन में घोस-घोस ले होगे होही ,खा-खा के।महुँ गाँवे म आमा लेके अथान डारे हौं।ये रोगही कोरोना तो सबो जिनीस ला महँगी कर देहे।अउ ये दुकान वाला मन के बरवाही आगे हे।असमान ले उप्पर बेचत हे गड़ऊना मन हा।आलू गतर ला 30 रुपिया,गोंदली तो रोवा डारिस बहिनी।हमर पारा के दुकान वाला तो लाहो लेथे बहिनी...अई सुन न दीदी तुँहर डाहर गुड़ाखु मिलत हे या।
अरे नहीं रे बहिनी तोला का दुख ला बताँव ,गाँव भर के दुकान में खोजवा डारेंव फेर काकरो करा नइये।होही नहीं ओ आधा तो जलन खोरी म नई दे बहिनी महीना के राशन ला बागबाहरा ले लानथन ।ओकरे चीड़ म हमन ला नई दे।अउ भीतरे-भीतर अपन ग्राहिक मन ला 60-60 रुपिया म देवत हें कथे। अरे हमला 65 में दे देतिस...फेर उही जलन खोरी...त तोर भाँटो ला बागबाहरा भेजेंव ,काकर करा लें दू पुड़ा आनिसे... काहत रिहिस...36-36 रुपिया परे हे एक ठन हा... अउ गाँव वाला मन ला देख कइसे लूट मचाय हे दोखहा हा।अब गाँव वाला मन ^मरता का न करता^..बिचारा-बिचारी मन लेवत हवें।हम तो अउ नई रही सकन बहिनी ..हमला दु बेर चहा अउ 4 बेर मँजन होना..भले खाय बर मिले मत मिले दाई।
हव दीदी हमरो घर तोर दमाँद उड़ीसा बार्डर जाके सराबोंग ले बड़े 5 किलो वाला डब्बा ला आने हे।ओतो ओकर सँगवारी उहें बुता करथे कहिके जुगाड़ होगे।भले बपरा रेट लिस तो लिस फेर अपन समझके दे दिस, नई ते ओमन दुकान वाला मन ला ही देवत हे।हमर गाँव के एक दुकान वाला तो उही डब्बा वाला गुड़ाखु ला जुन्ना सकेले डबिया म डारके 20-20 रुपिया म बेचत हे, तभो सबो झपा परत हे।
अई हव बहिनी का गोठ ला गोठियाबे मोला तो धुक-धुकी धर डारे रिहिस,गुड़ाखू के नाम में।फेर ओकर पापा फिकर करके खोज-ढूँढ़ के आनिसे।हमर परोसिन गुलापा ला जानथस न...उही तोरई मुँहू के...बहिनी वहू ला माँग डारेंव ..होही तो एको डबिया दे न बहिनी कहिके..फेर बइरी चनचनही हा मुँहू ओथारे नई ये कहिस।अउ साँझ कुन वहा मार घँसर-घँसर के गुड़ाखु करत रिहिस।में नइ भूलों बहिनी ओकर ठेसरा मरई ला।
ले दीदी कूछु नई होय,भाँटो तो अब्बड़ असन लान देहे तोर बर... अब ते देखाबे टूहूँ ।
टूहूँ निहि बहिनी मेंहा उधार नी राखों, कालिच्चे सब पारा भर बता देंव,मोरो करा आगे गुड़ाखू...&&&..हिहिहिहि...देख न बहिनी मोला नइये किहिस।
अई सुन तो बहिनी गोठ बात म भुलागेंव हमर इँहा तोर दमांद कहत रिहिस की नून घला बजार म सिरागे हे, कँहुचो नई मिलत हे।ले देके 5 पाकिट ला चुपे चाप दुकान वाला चूतिया बनाके आने हे, अभी गाँव म कोनों ला पता नइये न।गाय-गरवा के पसिया बर 1 बोरी घला लानिसे.... फेर ओ दुकान वाला जान गे लागथे...1 किलो के 100 रुपिया लिसे।अब कइसे करबे बहिनी बिगन नून के
साग-डार अउ पानी-पसिया कूछुच नई मिठाय।तंहुँ हा कलेचुप भाँटो ला कहिके गाँव के दुकान ले काकरो करा जतका मिले लेइच ले।एकर पहिली की कोई अउ जाने ,मँगवाईच ले,रेट ला झन देख बहिनी।
अई हाय नोनी बने करे दाई बता देस,एकर पापा तो निच्चट भोकवा आय ओ,दुनियादारी ला नई जाने।बस अपन मस्त राम परे रहिथे।घर के चिंता मोर बोझा बहिनी... नई बतांव बहिनी कोनो ला अउ झटकुन नून मँगवाथों।
कहानीकार:- धनराज साहू,खोपली बागबाहरा
बहुत सुग्घर कहानी सर जी। फेर मात्रा सम्बन्धी बहुत दोष हे । बने देख लेहू।
ReplyDeleteठउका बखत के बढ़िया रचना
ReplyDeleteवर्तमान स्थिति के सुग्घर गोठ सर
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर कहानी है
ReplyDeleteआज के समय मे
ये दुनो चीज के बहुत ही चर्चा है
सुग्घर वर्तमान समय मा लोग बाग मन गुडाखु नून बर परेसान हवय,बने गोठ।
ReplyDeleteसुग्घर बियंग धनराज भाई
ReplyDeleteगुड़ाखू वाला मन जानव इहाँ हमला दारु माँहगी होय के फिकर हो गेहे
ReplyDeleteबढ़िया लिखे हव बधाई
ReplyDeleteसुग्घर रचना गा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर
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