Friday, 11 June 2021

जिंदा खेलौना* (कहानी)

 *जिंदा खेलौना*

(कहानी)

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संझा के बेरा रामबती ह अपन मंदबुद्धि अउ दिव्यांग छोटे बेटा कुमार ल जेन ह न तो रेंगे सकय,न तो बोले सकय--- उपर ले बेचारा के लार बोहावत रहिथे ल परछी म बइठे खेलावत राहय ओतके बेर ओकर पति चपरासी हुलास ह घर आइस।अँगना म साइकिल ल खड़ाँग ले टेंकाइस तहाँ ले मनमाड़े गुसियावत कहिस---तोला घेरी पइत चेताये हँव न--ये तोर मंदबुद्धि बेटा ल मोर घर आये के बेरा कुरिया म धाँध के राखे कर।एला  देखते साठ मोर तन-बदन म भुर्री फूँका जथे। एखर मारे जीना हराम होगे हे फेर तोला कुछु समझ नइ आवय ।निच्चट घेक्खरहिन होगे हस---।

       ये दे फेर तोर किटिर-किटिर चालू होगे न। पता नहीं काबर ये ते,एला देखथस तहाँ ले तोर बइगुन उमड़ जथे। एखर जतन-पानी तो मैं हर करथँव न---तैं तो हिरक के नइ निहारस--- नइ सहे सकस त एला धरके कहूँ निकल जहूँ। बनी भूती करके पोंस लेहूँ मैं ह।अउ का कहे तोर बेटा----एहा तोर बेटा नोहय का? नइ सहे सकस त मुरकेट के मार डर एला--रामबती ह झुँझवावत कहिस।

     तहीं जहर देके मार डर।बियाये तो तैं हस न? तोर दाई ददा के खानदान म अइसने अउ कोनो रहिस होही ---हुलास ह बइहाये सहीं कहिस।

       दाई-ददा कोती दोष लगावत सुनके रामबती ह बिफरत कहिस--मोर कोंख ल दोष झन लगा अउ मोर दाई-ददा ल झन अमर। पढ़े-लिखे हस फेर बोले के तको सहुँर नइये। एखर ले बड़े दू झन अउ लइका हे तेन मन तो अइसना नइयें। ये हा तोर कोनो जनम के पाप के भुगतना आय।

   इँखर किल्लिर-कइया ल देख के बड़े बेटा महेश ह चुपकरावत बोलिस-- का बात हे बाबू?पहिली तो अइसन नइ गुसियावत रहे। आजकल बात-बात म चिड़चिड़ावत रहिथस।कुछु कारण हे का ?आफिस कोती कोनो परशानी हे का?

        आफिस कोती कुछु परशानी नइये--सरी परशानी घरे कोती ले हे। कोनो बइठया-उठइया आथे या कोनो सगा -सोदर आथे त ये मंदबुद्धि लइका के सेती मोर मन म हीन भावना आथे।कहूँ आये-जाये ल परथे तभो अच्छा नइ लागय।दूसर म ये साल दुलारी अउ तोर बिहाव तको खच्चित करना हे।दू साल होगे रिश्ता खोजत। ये मंदबुद्धि लइका के बारे म जान के सगा मन भिरक जथें तइसे लागथे--हुलास ह थोकुन शांत होवत कहिस।

     अच्छा त तनाव के ये कारण हे बाबू। तैं फिकर झन कर।अइसन बात होही त हमन शादीच नइ करन। मँझली बेटी दुलारी ह चाय-पानी देवत कहिस।

   नहीं बेटी !असो बिहाव तो माढ़बे करही। हुलास ह चाय पियत थिरबाँव होवत कहिस।

     बात आये-गये होगे।रतिहा बने जेवन-पानी होइस तहाँ ले सोवा परिस। बिहनिया हुलास ह रामबती ल कहिस-- चल तो आज सरकारी अस्पताल जाबो जिहाँ बच्चा मन के ,नवाँ बड़े डाक्टरिन आये हे सुने हँव। अतेक बइद-गुनिया,डाक्टर मन सो इलाज करवा के थक हारगेन त उहू ल एक पइत देखा देबो। हो सकथे वोकर हाथ म जस लिखाये होही अउ कुमार बेटा ह ठीक हो जही।

   हव ,ले का होही चल देबो। जम्मों पुराना एक्सरे अउ रिपोट मन झोला म भराये माढे़ हें। सबो ल चेत करके धर लेबे--रामबती कहिस।

       वोमन ठीक दस बजे अस्पताल पहुँच गेइन। डाक्टरिन ह आगे राहय। शुरुच म नंबर लगगे। डाक्टरिन ह कुमार के जाँच करके अउ पुराना एक्सरे, रिपोट संग दवई-पानी के पर्ची मन ल देख के पूछिस--इस बच्चे की डिलवरी कहाँ हुई थी?

    घरे म होये रहिस हे डाक्टरिन जी।गाँव के एक झन सियनहीन दाई ह बड़ मुश्किल म डिलवरी कराये रहिस--रामबती बताइस।

      हाँ--,यही तो बात है।उल्टी-सीधी डिलवरी के कारण बच्चे का पीटयूटरी पूरा डैमेज हो गया है।पैदाइशी में देरी के कारण इसको उस समय आक्सीजन भी ठीक से नहीं मिला जिसके कारण यह विकलांग हो गया। एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानेंगे आप लोग-

        काबर बुरा मानबो मैडम जी।बोलव का बात ये ते--हुलास कहिस।

     इस बच्चे का कहीं इलाज नहीं हो सकता । व्यर्थ  में भटकते और धन लुटाते रहोगे। अच्छा ये बताओ--इसकी उम्र कितनी है?

     सोला साल के होगे हे मैडम जी।

     ठीक है--मैं यह बताना चाह रही हूँ कि ऐसे बच्चों का उम्र ज्यादा नहीं होता है।मेरे ख्याल से यह एक-दो वर्ष और जीवित रहेगा। 

     का करबो मैडम जी, हमला अपन पाप के फल अउ करम दंड ल तो भोगेच ल परही--हुलास ह उदास होवत कहिस।

      अरे कोई पाप, कर्म दंड -वंड नहीं है।यह तो एक मेडिकल इशु है।फिर भी लगता है आप थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के हो तो इतना तो मानते ही होगें कि दीन-दुखियों की सेवा करनी चाहिए। उससे पुण्य की प्राप्ति होती है-डाक्टरिन बोलिस।

    हाँ मैडम जी।ये तो सिरतो बात ये--हुलास हामी भरिस।

      तो फिर इस बच्चे की सेवा करो ।यह तो बहुत ही दीन-दुखी है।सेवा का अवसर सबको नहीं मिलता। आप लोगों को तो अपने घर में ही ,अपने ही बच्चे की सेवा का सौभाग्य मिल रहा है। एक बात और--देखो जैसे छोटे बच्चे निर्जीव गुड्डा-गुड्डी या अन्य खिलौनों से खेलकर खुश होते हैं वैसे ही आप लोग इस जिंदा खिलौने से खेलकर आनंद लो।

      डाक्टरिन के बात ल सुनके रामबती अउ हुलास के आँखी छलछलागे। उँखर मन ल बहुत ढाँढ़स मिलिस। आज पहिली बार कुमार ल लेके मन ल शांति मिलिस।तहाँ ले वोमन हाँसी-खुशी डाक्टरिन मैडम ले छुट्टी माँग के अपन जिंदा खेलौना संग खेलत घर आगें।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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