"पव्वा के बदला खव्वा "
आजादी के पच्हत्तर बरस बीत गे फेर आज ले गरीबी रेखा जिंदा हे। गरीबी घला घेक्खर किसीम के जीव आए ।नानहे नानहे मनखे मन ल जमगरहा पकड़थे। हम सोचे रेहेन हमन इक्कीसवीं सदी मा आ गे हन त अब के तांत्रिक मन एक फूंक म गरीबी ला भगा दिही फेर ये हमर सोच गलत आय हमर तांत्रिक मन गरीबी ला भगावत भगावत हाफ डरिस। ऊंकर फूंकई फूंकई म हमर आंखी कान घला पिरागे ।उमन मंतर पांच बछर के पांच बछर पड़थे। उंखर भभूति ला खावत खावत पांच बाछर कईसे बीत जथे पता घलों नई चले । अब के तारीख म पढ़ लिख के रोजगार मिल जाएगी एकर कोई गारंटी नई हे ।फेर मोर सोच आय की सरकार ल बईगई गुनियई ला पढ़ाई के पाठ्यक्रम में शामिल जरूर करना चाही। बईगा गुनिया मन भले कम पढ़े लिखे रहिथे बिचारा मन फेर ऊंखर इसतर ह गरीबी रेखा के ऊपर जरूर मिलथे। एकर कोचिंग क्लास घलो खुलना चाहिए कम से कम बेरोजगार मन ल रोजगार घलो मिलही ।कतिक सुघ्घर लागही फलाना कोचिंग सेंटर,इहां एक ले बड़के एक बईगा गुनिया मन ले सिखाए जाथे । पांच मंतर म एक (फ्री) फोकट।आम जनता के संगे संग सरकार ल घलो राहत मिलही। इही बहाना कहीं सरकार घलो बन जाही। वैइसे कोचिंग क्लास के धंधा कोई बुरा भी नई हे" दान के दान इनाम के इनाम"।
हमन इक्कीसवीं सदी के मनखे आन नवा नवा शब्द गड़े मां एक्सपर्ट हन जइसे अंधभक्त सोशल मीडिया मां भक्त और अंधभक्त के लड़ाई बढ़ जब्बर होथे। फेर हमर समझ म भक्त अऊ अंधभक्त एके आए भक्त घलो आंख मूंद के भक्ति करथे,अऊ अंधभक्त घलो आंखी मूंद के भक्ति करथे फेर दर्शन होथे कि नई होए ये तो वही मन जान ही ।हम तो फकीर मनखे हमला का।
अब तो कुंवारा मन ल बर बिहाव करना मतलब "दुब्बर बर दू असाड़" ।आधा तो लड़की मन के बायोडाटा ल देख के पोटा कांपथे। ऊंखर पढ़ाई लिखई मतलब फूल पेंट अऊ चड्डा कस फरक दिखथे ।कई झन के बायोडाटा म लिखे रहिथे किसानी अमुक एकड़ डबल फसल जाने-माने होवईया दमाद के नाम एकात फसल कर दीही। वो तो भला करे भगवान के ये नई लिखे रहाय, खातू कचरा ,दवाई बूटी, छितईया ही मिले। अइसन बायोडाटा ल देखके जाहिर से बात आए कोनो पकौड़ा तलइया थोड़ी ना मिलही ।
इहां तो बटवारा मां देश के चानी चानी होगे त का पुरखा के जमीन ह भाई बंटवारा म का बचही।चार ले दू, दू ले एक ,एक ले आधा,आधा ले पव्वा। तेखरे सेती कबाड़ी वाले मन घला चिल्लात रहिथे "पव्वा के बदला खव्वा ले"।
फकीर प्रसाद साहू
" फक्कड़" सुरगी
बहुत ही बढ़िया आलेख सर जी
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