Friday, 24 February 2023

किताब के गोठ// लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'


 

किताब के गोठ//

लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'


    मयारुक रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' के हाले म आए बाल कविता संग्रह 'फुरफुन्दी' ल हाथ म धरते अपन लइकई ह आॅंखी-आॅंखी म झुले लागिस. जब हमन फुरफुन्दी के पाछू भागत-भागत बारी-बखरी के संगे-संग स्कूल तक चल देवत रेहेन, अउ लहुटत घलो उहिच उदिम म बूड़े राहन. कभू-कभू तो फुरफुन्दी के पूछी म सुतरी बॉंध के संगी मन संग रेस घलो लड़ा देवन, के काकर फुरफुन्दी जादा उड़ियाथे.


    फुरफुन्दी किताब के भीतर म अमाते अपन लइकई के संगे-संग अपन नाती-नतुरा मन संग खेलत, उनला लुढ़ारत अउ कुछ बने बुता करे के गोठ सिखोवत जम्मो दृश्य ह चित्रमय कविता संग दिखे लागिस.


    आज के छत्तीसगढ़ी लेखन म चारों खुंट गहराई अउ चिंतन-मनन देखे म आवत हे. अब गरब होथे इहाँ के रचना संसार ल देख के अउ मन म भरोसा जागथे, के अब एला कोनो भी लोकभाषा संग सरेखा कर के देखे जा सकथे. खासकर अभी लेखन म सक्रिय नवा पीढ़ी जेन किसम ले हर विषय अउ हर विधा म कलम चलावत हे, वो ह अंतस ल आनंदित करने वाला हे.


    कन्हैया साहू जी प्राथमिक शाला म शिक्षक होए के संगे-संग एक सिद्धहस्त छंदबद्ध कविता के रचनाकार घलो आय, एकरे सेती उंकर ए संकलन म उंकर ए दूनों रूप के चिन्हारी मिलथे. नान्हे लइका मनला कक्षा म पढ़ावत-सिखावत उन उंकर मन-अंतस म झॉंके अउ टमड़े के उदिम करथें, उही मनला अपन कविता के विषय घलो बना लेथें. ठउका अइसने छंदबद्ध कविता लेखन म पारंगत होय के सेती उंकर जम्मो रचना मन म लय-ताल सउंहे दिखे लगथे. जब ए मनला पढ़बे त मन मस्तिष्क म सुर-ताल अपने-अपन गूंजे लागथे. देखव उंकर घरघुॅंदिया  खेले बर बलावत कविता ल-


आवव अघनू, अगम, अघनिया.

खेलन फुतका मा घरघुॅंदिया.. 

घर अॅंगना अउ कोलाबारी.

सुग्घर सबके पटही तारी.. 


    लइकई म फिलफिली चलाय के अपने च आनंद  होथे. देखव ए डॉंड़ ल-


चलय फिलफिली फरफर-फरफर. 

अपने सुर मा सरसर-सरसर.. 

रिंगी-चिंगी रंग मा रंगे.

चक्कर खाय हवा के संगे.. 

सनन-सनन ये बड़ इतरावय.

लइका मनला पोठ लुहावय.. 


    ए किताब के शीर्षक रचना फुरफुन्दी ल देखव-


लइकन ला भाथे फुरफुन्दी.

सादा, लाली, छिटही बुन्दी.. 

पकड़े बर लइका ललचाथे.

आगू-पाछू उरभट जाथे.. 

फूल-फूल मा झूमे रहिथें.

कान-कान म का इन कहिथें..

 

    रचना मन म ओ जम्मो विषय ल संघारे के कोशिश होय हे, जेन लइका मन बर आवश्यक होथे, एकर संगे-संग जनउला अउ हाना मनला घलो संघारे गे हवय. मच्छर जेला हमन छत्तीसगढ़ी म भुसड़ी कहिथन. एकर ले संबंधित ए जनउला देखव-


बिन बलाय मैं आथॅंव जाथॅंव.

फोकट म सुजी घलो लगाथॅंव.. 

साफ सफाई जे नइ राहय.

वोला तुरते रोग धराथॅंव.. 


    पान-सुपारी खवावत एक जनउला देखव-


पॉंच परेवा पॉंचों संग.

महल भितरी एक्के रंग.. 

एक जगा जम्मो सकलाय.

नइ कोनो पहिचाने पाय.. 


    जी. एच. पब्लिकेशन, प्रयागराज ले छपे ए बाल कविता संग्रह म कुल 47 कविता मनला संग्रहित करे गे हवय. कुल 64 पेज म सकलाय ए संग्रह के कीमत 150 रु. राखे गे हवय. 


    ए संकलन खातिर मैं रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना देवत हौं, उन आगू घलो अइसन पोठ उदिम करत राहॅंय, छत्तीसगढ़ी के ढाबा ल भरत राहॅंय.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

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