किताब के गोठ//
लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'
मयारुक रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' के हाले म आए बाल कविता संग्रह 'फुरफुन्दी' ल हाथ म धरते अपन लइकई ह आॅंखी-आॅंखी म झुले लागिस. जब हमन फुरफुन्दी के पाछू भागत-भागत बारी-बखरी के संगे-संग स्कूल तक चल देवत रेहेन, अउ लहुटत घलो उहिच उदिम म बूड़े राहन. कभू-कभू तो फुरफुन्दी के पूछी म सुतरी बॉंध के संगी मन संग रेस घलो लड़ा देवन, के काकर फुरफुन्दी जादा उड़ियाथे.
फुरफुन्दी किताब के भीतर म अमाते अपन लइकई के संगे-संग अपन नाती-नतुरा मन संग खेलत, उनला लुढ़ारत अउ कुछ बने बुता करे के गोठ सिखोवत जम्मो दृश्य ह चित्रमय कविता संग दिखे लागिस.
आज के छत्तीसगढ़ी लेखन म चारों खुंट गहराई अउ चिंतन-मनन देखे म आवत हे. अब गरब होथे इहाँ के रचना संसार ल देख के अउ मन म भरोसा जागथे, के अब एला कोनो भी लोकभाषा संग सरेखा कर के देखे जा सकथे. खासकर अभी लेखन म सक्रिय नवा पीढ़ी जेन किसम ले हर विषय अउ हर विधा म कलम चलावत हे, वो ह अंतस ल आनंदित करने वाला हे.
कन्हैया साहू जी प्राथमिक शाला म शिक्षक होए के संगे-संग एक सिद्धहस्त छंदबद्ध कविता के रचनाकार घलो आय, एकरे सेती उंकर ए संकलन म उंकर ए दूनों रूप के चिन्हारी मिलथे. नान्हे लइका मनला कक्षा म पढ़ावत-सिखावत उन उंकर मन-अंतस म झॉंके अउ टमड़े के उदिम करथें, उही मनला अपन कविता के विषय घलो बना लेथें. ठउका अइसने छंदबद्ध कविता लेखन म पारंगत होय के सेती उंकर जम्मो रचना मन म लय-ताल सउंहे दिखे लगथे. जब ए मनला पढ़बे त मन मस्तिष्क म सुर-ताल अपने-अपन गूंजे लागथे. देखव उंकर घरघुॅंदिया खेले बर बलावत कविता ल-
आवव अघनू, अगम, अघनिया.
खेलन फुतका मा घरघुॅंदिया..
घर अॅंगना अउ कोलाबारी.
सुग्घर सबके पटही तारी..
लइकई म फिलफिली चलाय के अपने च आनंद होथे. देखव ए डॉंड़ ल-
चलय फिलफिली फरफर-फरफर.
अपने सुर मा सरसर-सरसर..
रिंगी-चिंगी रंग मा रंगे.
चक्कर खाय हवा के संगे..
सनन-सनन ये बड़ इतरावय.
लइका मनला पोठ लुहावय..
ए किताब के शीर्षक रचना फुरफुन्दी ल देखव-
लइकन ला भाथे फुरफुन्दी.
सादा, लाली, छिटही बुन्दी..
पकड़े बर लइका ललचाथे.
आगू-पाछू उरभट जाथे..
फूल-फूल मा झूमे रहिथें.
कान-कान म का इन कहिथें..
रचना मन म ओ जम्मो विषय ल संघारे के कोशिश होय हे, जेन लइका मन बर आवश्यक होथे, एकर संगे-संग जनउला अउ हाना मनला घलो संघारे गे हवय. मच्छर जेला हमन छत्तीसगढ़ी म भुसड़ी कहिथन. एकर ले संबंधित ए जनउला देखव-
बिन बलाय मैं आथॅंव जाथॅंव.
फोकट म सुजी घलो लगाथॅंव..
साफ सफाई जे नइ राहय.
वोला तुरते रोग धराथॅंव..
पान-सुपारी खवावत एक जनउला देखव-
पॉंच परेवा पॉंचों संग.
महल भितरी एक्के रंग..
एक जगा जम्मो सकलाय.
नइ कोनो पहिचाने पाय..
जी. एच. पब्लिकेशन, प्रयागराज ले छपे ए बाल कविता संग्रह म कुल 47 कविता मनला संग्रहित करे गे हवय. कुल 64 पेज म सकलाय ए संग्रह के कीमत 150 रु. राखे गे हवय.
ए संकलन खातिर मैं रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना देवत हौं, उन आगू घलो अइसन पोठ उदिम करत राहॅंय, छत्तीसगढ़ी के ढाबा ल भरत राहॅंय.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
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