Friday, 20 November 2020

दू ठन उपराहा-चोवाराम वर्मा 'बादल' (कहानी)

 दू ठन उपराहा-चोवाराम वर्मा 'बादल'

(कहानी)


मातर के बिहान दिन बिहनिया-बिहनिया पारा के माई लोगिन मन बोरिंग मेर पानी भरे बर जुरियाये साग-भात, रोटी-पीठा ,खाना-पीना , कपड़ा-लत्ता अउ तिहार के चिनहा गाहना गूठी ले लेके गाँव म होये झगरा-झंझट ल गोठियाये म मगन रहिन उही समे रामबती ह तको हँउला धरे पहुँचगे। वोकर गोड़ के नवाँ साँटी ल देख के परोसिन काकी ह कहिस- ए वो बहुरिया तोला साँटी अब्बड़ फभत हे वो। तिहार के चिनहा आय तइसे लागत हे। कब लेहव वो?

  रामबती कुछु बतायेच नइ पाये रहिस--एक झन अउ पूछ डरिस---के तोला के हाबय बहिनी?बने रोंठ-डाँट दिखत हे।

वोकर बात पूरेच नइ रहिस एक झन ह अपन दुखड़ा रोवत कहे ल धरलिस --हमर घर नोनी के बाबू ह असो के देवारी म माला पहिनाहूँ कहे रहिस फेर का करबे बहिनी धान नइ बेंचाये कहिके नइ लेइच ।ले देके कर्जा बोड़ी करके लइका मन बर अलवा जलवा कपड़ा लत्ता अउ तेल गुड़ ल बिसाइस हे। तुँहर धान बेंचागे का वो रामबती बहिनी?

    हमर धान तो अभी लुयाये नइये दीदी, बेंचाही कहाँ ले। ये पानी-बादर म खेते म परे हे।बाबू के ददा ह चेत नइ करत हे।रामबती ह कहिस।

   हँ--- तुमन काम बुता करके पइसा सकेले रहे होहू तेकर ले होहू न वो बहुरिया--काकी ह पूछिस।

     कहाँ के काम बूता चलत हे काकी तेमा धन जोर डरबो। कइसनो करके पेज-पसिया म जिनगी चलत हे तेने बड़े बात हे। रामबती ह चिटिक नराज होवत कहिस।

 अतका ल सुनके कई झन एक सूर म कहि डरिन---त ए नवाँ साँटी कहाँ ले आगे वो। 

  नइ बताना हे त झन बता बहुरिया। हमन नँगा थोरे लेबो वो। जरे म नून डारे कस काकी कहिस।

   बेचारी रामबती ल नवाँ साँटी के किस्सा ल लाजे-काने बताये बर परगे। 

वो कहिस--बाबू के ददा ह सुरहुत्ती के दिन तीस -चालीस हजार जुआ म जीते रहिसे त ए दे बीस तोला के मोला साँटी पहिनाये हे।

     बने करिस भौजी फेर जुआ चित्ती खेलना अच्छा नइ होवय। आज जितही-काल हार जही। सियान मन कहे हें--जुआ किसी का न हुआ। जुआरी मन के मारे खेत-खार, गाहना-गूठी, बर्तन-भाँड़ा ,इहाँ तक धोये चाँउर तक नइ बाँचय कहिंथे। ताश के नशा म सब बेंच-भाँज के खुवार कर डरथें।पाँडव मन अपन रानी दुरपती ल हारगे रहिन--सुने तो होबे। बरज वो--भइया ल बने बरज--ताश झन खेलन दे। एक झन पढ़े लिखे पानी भरे ल आये नोनी ह समझावत कहिस।

      सच काहत हस  नोनी। अब्बड़ बरजतथँव फेर तोर भइया मानय नहीं। जेठौनी पुन्नी के जात ले कर्जा  ले ले खेलथे तहाँ ले साल भर कमा कमाके छूटत रहिथे। साल पुट खेत घलो बेंच देथे।

        बोरिंग ल टेंड़-टेंड़ के गोठ-बात करत  सब झन पानी भरके अपन अपन घर आगें।

     अठुरिया बिते रहिस होही।एक दिन बिहनिया बोरिंग म पानी भरे बर रामबती गिस त उहाँ पहिली ले चार-पाँच झन महिला मन संग काकी तको पहुँचे राहय। वो ह रामबती ल देखिस तहाँ ले पूछे ल धरलिस---कइसे वो बहुरिया तोर साँटी कहाँ गै वो। गोड़ दुच्छा लागत हे। खिनवा अउ  ऐंठी ल तको नइ पहिने अस। दोंदवी कस दिखत हस?

 सुनके रामबती कलबलाबे फेर का काहय। बेचारी ह सुसकत कहिस--बाबू के ददा ह एक ठन साँटी पहिराये रहिस हे वोकर संग म मोर दू ठन उपराहा गाहना ल ताश म हार के बेंच दिस।

        

चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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