देवारी तिहार, जन मान्यता अउ वैज्ञानिकता-पोखनलाल जायसवाल
भारत भुइँया ल तीज-तिहार के देश कहे जाथे। अपन सँस्कृति, संस्कार अउ मान्यता ले हमर देश संसार भर अपन अलग चिन्हारी राखथे। ए भुइँया ऋषि-मुनि अउ तपस्वी मन के भुइँया आय। ए धरतीपूत किसान घलो कोनो तपस्वी मन ले कम नइ रेहे हे, न कम हावै। अपन मेहनत ले ए धरती ला सदा दिन सजाय अउ सिरजाय के बूता करे हे अउ करते हे। दिन रात खेत म गड़े रहिथे। कभू सुरताय के नाँव नइ लै। एक बूता पूरा होइस, त दूसर बूता के जोखा माढ़ जथे। अभीच देख लौ, धान-पान ल बटोरत हे अउ ओनहारी उतेरे अउ बोय के जोखा करत हावै। ओनहारी सियारी सकेले के पाछू थोरकेच दिन म खातू-पाला पालथे। इही बीच मेड़ पार म ढेलवानी घलो दे डारथे। ए तरह ले देखन त किसान मनखे मेर फुरसुदहा बइठे बर बेरा बाँचबे नइ करै। उन ला कोनो दिन छुट्टी नइ मिलै।
तइहा जुग म थके-हारे मनखे मन अपन आप ल आराम दे हे खातिर उपाय करे रहिन। मुहाचाही गोठियाय बतियाय बर अउ सुरताय बर उदीम करिन। इही उदीम अउ उपाय हर तीज तिहार आय। जे मा एक बूता ल करे के पहिली अउ करे के बाद मन म नवा उछाह अउ उमंग ले बूता ल शुरु करे के सोचिन हे, कहे बानी लगथे। उछाह शब्द उत्साह के छत्तीसगढ़ी रूप कहे जा सकथे। इही उत्साह ले उत्सव शब्द के उत्पत्ति विद्वान मन माने हें। कोनो भी उत्सव के आय ले काम बूता ले छुट्टी मिल जथे। छुट्टी याने छूट मतलब दू छिन काम नइ करे के बखत। फेर हमर पुरखा मन अइसन बखत के चुनाव करें हावैं कि कोनो बूता म बाधा होबे झन करै। आप गुनान करके देख लौ, कोनो तिहार आप ल अइसन नइ मिलै, जे काम बूता म बाधा बनै। बहुत अकन तिहार म आप ल वैज्ञानिक आधार भी देखे म मिलही। ए आधार आप खुदे खोजे के कोशिश करौ।
तिहार मन म अइसने देवारी तिहार घलो हे। जेन म लक्ष्मी दाई के पूजा, गोवर्धन पूजा अउ भाईदूज प्रमुख माने जाथे। धनतेरस घलो शामिल होथे।
लक्ष्मी जेन ल हिन्दू रीति-रिवाज ले धन के देवी कहे या माने जाथें। धन के नाँव लेते साठ मन म संपत्ति, दौलत, जमीन जायदाद अउ धान-पान के भाव आथे। धरती पूत के मेहनत ले उपजे खेत के लक्ष्मी के घर म स्वागत ही लक्ष्मी पूजा ले जाने जाथे। इही स्वागत म दीया बारे जाथे। ए दीया कुम्हार ले बिसा के उँखर अँधियार जिनगी म अँजोर बाँटे के उदीम होथे। ए दिन के एक मान्यता ए हवै कि इही कातिक अमावस्या के दिन भगवान राम चौदह बछर के वनवास ले लहुटे रहिन। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम आसुरी शक्ति मन के नाश करिन, जन कल्याण करिन। ते पाय के राम जन-जन के पूज्यनीय बनिन। ओकरे स्वागत म अयोध्या नगरी म ओरी-ओर दीया बारे गे रहिस। एकरे सेती एला दीपावली कहे जाथे। छत्तीसगढ़ राम के ममियारो आय, ते पाय के छत्तीसगढ़ म अपन भाँचा के जिनगी म अच्छा दिन लहुटे के खुशी अउ राज मिले के आस म घरोघर अँजोर बाँटथे। सुरहुति दिया बारथे। दूसर मान्यता यहू हवै कि धन के देवी लक्ष्मी ए रात के धरती के विचरण करथे। अपन कृपा प्रसाद ले कतको मन ल तारथे। जेकर ऊपर कृपा बरसथे, ओकर घर समृद्धि आथे। इही पाय के साफ-सफई के जतन घरोघर करे जाथे। साफ-सफई ले रहे ले जिहाँ तन बने रहिथे, उहें बने बने बिचार आय ले दिल अउ दिमाग के पोषण होथे। जेकर ले समृद्धि के दुआर खुलथे। ए दिन ल लेके अउ कतको मान्यता अउ विश्वास जुड़े हावैं।
दूसरइया दिन देवारी जेला अन्नकूट या गोवर्धन पूजा के नाँव ले जानथन। ए दिन कतको परिवार नवा खाय बर अपन कुलदेवता ले असीस लेथे, उन ल नवा चाउँर के बने रोटी-पीठा (रोंठ)चढ़ा के पूरा परिवार हली-भली ले नवा खाथे। नवा खाना मतलब नवा फसल के अनाज/अन्न ल पका के भरपूर आदर भाव ले सपरिवार उपभोग करना आय। अइसे मान्यता हवै कि आज के दिन ही कृष्ण भगवान गोवर्धन परबत ल उठा के गोकुल वासी मन के रक्षा करे रहिन हे। तिही पाय के एला गोवर्धन पूजा घलो कहे जाथे। ए दिन गाँव-गाँव म साँहड़ा देव चौक म गोबर के गोवर्धन बना के राउत बंधुमन कोति ले पूजा करे जाथे, जेमा गाँव के सबो समाज के मनखे जुरियाथें अउ एक दूसर ल बधाई देथे, शुभकामना देथे।
आज के बदलत समय म कतको विचार धारा इहाँ पनप गे हे। जेन मन दीपावली देवारी के अपन ढंग ले व्याख्या करथें। इही नवा विचारधारा ले प्रेरित एक वर्ग हे जउन मन देवारी तिहार ल गरीब मजदूर अउ किसान ल लूटे के षड़यंत्र बताथे। बैपारी वर्ग के षड़यंत्र हरे कहिथें। ए मन वैज्ञानिकता के नाँव ले गरीब अउ अशिक्षित मन के आस्था ल भटकाय के बूता करथे। बने होतिस कि संस्कार, संस्कृति, अउ रीति रिवाज के वैज्ञानिक पक्ष खोजतिन अउ उन ल बाँटे के साजिश नइ करतिन। मैं अतका जानथौं कि जेन लुटाना चाहथे तेने ल कोनो लूटथे। आज कतको धोखाधड़ी होवत हे, सुनत हें, पेपर म पढ़त हें, तभो ले मनखे लालच म पड़ के लुटेरा मन के चंगुल म फँस जथे। आज जमाना अइसे होगे हवै कि फोकट म कोनो ल एक रूपया देवइया नइ मिलै, त इनाम अउ लाटरी के नाँव म कोन दानी ह हम ला दान दिही? सोचे के बात हे। बैपार के मतलब सोज-सोज कहन त लेन-देन आय। ए तो तब ले चले आवत हें, जब ले मानव जीवन के विकास यात्रा शुरु होय हे। बजार-हाट अउ मँड़ई-मेला बैपार ल बढ़ाय के जगह आय। मँड़ई-मेला अउ हाट-बजार के जानकारी पुरातत्व वेत्ता मन देथे। सिरपुर म घलो खनन के बाद ए बात के प्रमाण आजो देखे जा सकत हे। बैपारी दू पइसा कमाबे करही। ए अलग बात आय कि आज मनखे के सइता नइ रहिगे हे। सकेलो-सकेलो होगे हे। इही चक्कर म जादा मुनाफा कमाय धर ले हे। आबादी बाढ़े पाछू बैपार घलो बाढ़े हे। आज बजार म सबो जाति अउ वर्ग के बैपारी हवै। अइसन म तिहार-बार ल बैपारी मन के षड़यंत्र बताना समाज ला तोड़े के प्रयास मानथौं। हमर सियान मन के सियानी गोठ हे, पाँव ओतके पसार जतका लम्बा चद्दर हे। मैं तिहार के आड़ म उदाली मारत जादा खरचा करिहौं त नुकसान तो मोरे होही। करजा बोड़ी करहूँ त छूटे ल मुही ला परही। अब *पर भरोसा तीन परोसा*, के जमाना नइ हे। ए सबो जाने धर ले हे।
तीज-तिहार के आय ले परिवार अउ समाज जुरमिल के उछाह मनाथे, मनखे एक दूसर ले सुख-दुख ल बाँटे के मौका पाथे। ए तीज-तिहार के पाछू के मरम मनखे ल नैतिक रूप ले अच्छा चरित्रवान बनाथे। काम-बूता के हरहर-कटकट ले थोकिन आराम करे अउ खुश होय के मौका लाथे। जेन ल ए सब नी भाय ओमन रंग मा भंग डारे खातिर नवा-नवा उदीम खोज तइहा के चलागन ला फालतू बताय के कोशिश करथे। तीज तिहार मन घर-परिवार अउ गाँव मा एका के कारण बनथे। जे मन नी चाहे कि गाँव अउ समाज म सुमता अउ एका राहै, ओमन कतको मनगढ़ंत गोठ बना भेंगराजी डारथे अउ अपन काम निकालथे।
मौसम/ऋतु परिवर्तन के बाद चिखला माटी सूखा जथे। घर-अँगना, बारी-बखरी अउ तीर तखार के साफ-सफाई जरूरी हो जथे। ए सब तिहार के नाँव लेके हो पाथे। एक तरह ले देवारी तिहार स्वच्छता ले तइहा के जुड़े हावै। आज स्वच्छता के महत्तम ला सबो जाने धर ले हें। साफ-सफई रहे ले बेमारी के फैलाव नइ होय। जेकर ले तन ल कोनो कष्ट नी मिलै। धन के बचत घलो होथे। मन चंगा घलो रहिथे। अइसन मा समृद्धि घर म आथे। ए बात के जानबा हमर पुरखा मन ल रहिन हें तभे देवारी तिहार मा साफ-सफई, लिपई-पोतई के नेंग राखे रहिन। इही ए तिहार के वैज्ञानिक आधार आय कहे जा सकत हे।
भाई-दूज देवारी तिहार के आखिरी दिन आय। जेन भाई-बहन के प्रेम के उद्गार आय। भाई-बहन एक-दूसर के हित बर सोचथे। ए जग कल्याण के भावना ले भरे परब आय। हो सकत हे हमर पुरखा मन अज्ञानता ले जेन ल भगवान के दरजा देइंन उन ल हम भगवान नइ मानन। भगवान जइसे कोनो जिनीस नइ होय काहन। फेर ओकर पीछू के मंगल भावना जग कल्याणकारी हे। ए ल जरूर सोचे के जरूरत हे।
हाँ! समय के संग बदलाव जरूरी हे। बदलाव प्रकृति के नियम ए। जे बदलाव जिनगी मा खुशी भरै। जिनगी मा रंग भरै। वो बदलाव होना चाही। बदलाव के नाँव म आँखीं मूंद के अपन पुरखा मन के रीति-रिवाज ल छोड़े नइ जा सकै। ए बात के खियाल राखे ल परही।
*पोखन लाल जायसवाल*
पलारी बलौदाबाजार
9977252202
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