सुरता डॉ नरेंद्र देव वर्मा -सरला शर्मा
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" अरपा पैरी के धार , महानदी हे अपार
इंद्रावती हर पखारे तोर पैंया ..
जय हो , जय हो छत्तीसगढ़ मइया ..। "
एहर हमर छत्तीसगढ़ के राज गान घोषित करे गए हे त बड़े बात एहू हर तो आय के बहुत पहिली ले छत्तीसगढ़िया मनसे के मन मं रच बस गए रहिस हे ।
डॉ नरेंद्र देव वर्मा छतीसगढ़ी भाषा के नींव के पोट्ठ पथरा कहे जाथें , मानें जाथें । उन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दुनों भाषा के सामरथ , अध्ययनशील साहित्यकार रहिन ।
कृतियां .....1..अपूर्वा ( गीत संग्रह ) 2 ...सुबह की तलाश ( उपन्यास ) 3 ..छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास 4 ..हिंदी स्वच्छंदवाद 5 ..प्रयोगवादी कविता 6 ..नई कविता सिद्धांत अउ सृजन
7 हिंदी नवस्वच्छंदता वाद आदि ..।
साहित्य के इतिहास मं उन कवि , नाटककार , उपन्यासकार , कथाकार , समीक्षक , भाषाविद , के रूप मं जाने , माने जाथें । साप्ताहिक हिंदुस्तान मं " सुबह की तलाश " उपन्यास सरलग छपे बर शुरू होइस त पाठक छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल चीन्हे , जाने लगिन ।
" मोला गुरु बनाई लेबे " प्रहसन ओ समै बहुत लोकप्रिय होये रहिस । एकर अलावा उन संगीत मर्मज्ञ गायक भी रहिन , लोक कला , लोक मंच " सोनहा बिहान " ल तो कभू भुलाए नई सकय । उन एकर उद्घोषक रहिन ।
अनुवाद के रूप मं मोंगरा ल प्रसिद्धि मिलिस , दूसर डहर श्री मां की वाणी , ईसा मसीह की वाणी , मोहम्मद पैगम्बर की वाणी सफल अनुवाद आय । उनला " शब्दों के जादूगर " कहे रहिन डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा ।
शब्द मन के ऊंच ऊंच लहरा देखे लाइक हे उंकर गद्य - पद्य , हिंदी छत्तीसगढ़ी सबो रचना मं ।
स्वामी विवेकानन्द के दर्शन से प्रभावित रहिन त कबीर के अवधूत सुभाव के प्रशंसक रहिन ।
" दुनिया हर रेती के महल ए ओदर जाही ,
दुनिया अठवारी बजार ए उसल जाही । "
संसार के चार दिन के चहल - पहल , परिवर्तन शीलता , निस्सारता के सच्चा वर्णन करे हें ।
जीवन के चौथइया दशक पूरा करे बिना धरा रपटी सरग के रस्ता धर लिहिन फेर ओतके कम समय मं साहित्य , संस्कृति , लोक कला , लोक मंच बर जौन काम कर गिन तेला कभू भुलाए नई जा सकय । आज उनला आदर सहित सुरता करत , उनला सादर स्मरणाजंलि देवत हंव ।
सरला शर्मा
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