(व्यंग्य)
चींव चाँव--काँव काँव
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तरिया ले इसनान करके अपन घर लहुटत मितान हा अपने अपन बड़बड़ावत राहय।मैं अपन चँवरा मा बइठे रहेंव ।वोला देखके राम रमउव्वल करे बर खड़ा होयेंव।लकठा मा आइस ता जादा ते नहीं बस अतके ला सुन पायेंव वो बड़बड़ावत राहय-- बड़े बिहनिया ले बस चींव चाँव--काँव काँव।
जै जोहार,राम रमउव्वल होये के पाछू कहेंव--चिटिक बइठ ले मितान।का होगे तेमा बड़बड़ावत हव। कती बर तू मन ला बड़े बिहनिया ले चिरई मन के चींव-चाँव अउ कउवाँ मन के काँव-काँव सुनागे ते।ये तो बड़ा अच्छा बात ये।हम ला तो पाँच बजे बिहनिया ले उठे रहिथन तभो ले चिरई मन के चहकई अउ बरेंडी मा बइठे कउवाँ के काँव काँव सुनाबे नइ करय। चिरई के चहकई ला कोन काहय -- चिरईच नइ दिखय। बामँहन चिरई अउ कँउवा मन तो सिरागे तइसे लागथे।हाँ एक दिन बखरी के पेंड़ तरी साँप निकलगे रहिसे त पता नहीं कहाँ ले चिरई अउ कउवाँ मन सकलाके मनमाड़े चींव -चाँव ,काँव-काँव करत रहिन हें। तहूँ मन कोनो जगा देख डरेव का।वो थोकुन मुस्कावत कहिस-- हाँ मितान पूरा गाँव भर मा साँप निकलगे हें तेकरे सेती चींव- चाँव,काँव-काँव होवत हे। मैं कहेंव --- मजाक झन करव भई,का बात ये तेला चिटिक फोरिया के बतावव? वो कहिस--का मितान तहूँ हा? अरे माहौल ला सुँघियाके तको बात ला समझ जाना चाही।नइ जानच का पंयायती चुनाव के फारम भरा गेहे।गाँव के जतका बिखहर नाग-नागिन हे ते मन निकलके गली-गली,घरो-घर चुनाव प्रचार करत हें।माईलोगिन मन ला देख ले बोरिंग -कुआँ मेर पानी भरत,तरिया घठौंदा मा नाँहवत-खोरत बस ईंकरे बात करत हें।ऊकर गोठ ला सुनबे त चिरई असन चींव चाँव लागथे।अउ बेहाड़ू टूरा मन येकर ला पीके वोकर ला पीके बड़े बिहनिया ले फलाना भइया जिंदाबाद--ठेकानीन भउजी जिंदाबाद चिल्लावत काँव-काँव करे ला धर लेथे।सुन सुनके माथा झन्नाये ला धर लेहे।मितान के गोठ ला सुनके मैं हाँसत कहेंव-- छिमा करबे मितान ,मैं तुँहर गहिर अरथ वाले बात ल नइ समझ पावत रहेंव।अब समझ म आगे।
थोकुन मजा लेये बर गोठ बात ल लमियावत पूछेंव --- त सरपंची बर कोन-कोन खड़े हें मितान? वो हा अपन खिसा मा नोट कस चपिया के धरे दस-बारा ठो पांपलेट ल निकाल के देखावत कहिस-- ये देख --ये हा मनमोहन के पांपलेट आय। ये उही टूरा आय जेन पाछू बछर परोसी महिला ले छेड़कार के केस मा जेल जाके जमानत मा छूटे हे।ये दे देला दो देख येहा भंगीलाल के पाम्पलेट आय जेमा लिखाय हे--गाँव मा सुख शांति लाये बर,विकास के गंगा बोहाये बर भारी मतों से विजयी बनावें।दुष्ट कहीं के दारू कोंचिया हा गाँव भर मा दारू बेंचवा के टूरा टनका मन दरुहा बनाके अशांति फइला डरे हे तेन हा सुख शांति लाही।शरम तको नइ लागय --मितान हा भन्नावत कहिस।
मैं पूछेंव अउ कोनो हे का मितान।
हाँ हाबय न।अभी तो कोरी खइरका बाँचे हे।ये देख--ये हाथ जोरे खड़े हे तेन हा सेवा राम ये। ये उही सेवाराम ये जेन हा बिना टेंचरही मारे ककरो सो नइ गोठियावय।अपन दाई ददा ला टेंपा देखावथ रहिथे तेन हा का लिखवाये हे तेला पढ़त हँव--- सरल हृदय--मिलन सार--सेवा भावी अपन बेटा ला सबो झन वोट देके भारी मत ले विजयी बनानव।येला तो खनके गाड़े के मन करथे। ये देख ये भूरे लाल के पांपलेट ये--- धरती पुत्र तुँहर सुख-दुख के साथी। ये हा गाँव के गौंटिया ये। गरीब मन ला चुहक-चुहक के एकर पुरखा मन चीज बस सकेले हें।तहीं बता मितान ये कइसे मा धरती पुत्र होइस--कभू नाँगर के मुठिया ला धरे होही? ककरो घर के मरनी-हरनी,शादी बिहाव, छट्ठी-छेवारी म हिरक के नइ निहारय तेन सुख-दुख के साथी बने फिरत हे। ये देख ये हा पुराना सरपंच दुर्जनसिंग के पाम्पलेट आय।ये मा लिखाय हे--गाँव ला सरग बनाये बर।गली-गली ला चकाचक करे बर।हर हाथ ला काम देये बर। महिला के सम्मान बर-- नौजवान मन के रोजगार बर भारी मत ले फेर एक पइत सेवा के मौका दव। देखे मितान एकर परपंची ला।पक्का चार सौ बीस आदमी।पाछू बछर अस्सी लाख के गबन मा बर्खास्त होवत होवत बाँचिस।कती ले कइसे करके स्टे ले आइस।पंच मन ला अउ गाँव के दू चार धिंगरा मन ला खवा-पिया के पटा लिस। गली कांक्रेटी करण मा अइसे जमके चूना लगाये हे के जम्मों उखड़ के खउराहा होगे।स्कूल के छत हा एके साल मा भोसकगे।असादी मा पूरा गाँव ला नरक बना दिस।पइसा खा खाके बेजा कब्जा करवा डरिस।चरागन तको नइ बाँचिस।हा वोकर दू कुरिया के घर म बिल्डिंग टिकगे।हूँह येला जितवाबो--?
मैं कहेंव--- ले बाँकी ल घरिया दे मितान। ऊँकर का हे- नँकटा के नाक काटे सौ हाथ बाढ़े।तोर-मोर बी० पी० बाढ़ जही।मैं समझगेंव गाँव के जम्मों डोमी मन फुसकारत चुनाव मा खड़े हें। अच्छा ये बता मितान-- ये चुनाव म कोनो बने असन आदमी नइ खड़े ये का?
वो कहिस खड़े हे न। वो भइया भिखारी दास खड़े हे।जेन सच मा संत बरोबर हे।सब के सुख दुख मा आगू खड़े रहिथे।हमीं मन फारम भरवाये हन। फेर वो बेचारा सो पांपलेट छपवाये बर तको पइसा नइये।अइसने मुँह अँखरा सब ला गोहरावत हावन।
मैं कहेंव ठीक हे मितान। यहा बिखहर मन के राहत ले-- वो आदमी बाँच जही त बड़े बात हो जही।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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