सुरता--- बचपन अउ चुनावी रंग
कहे जाथे सबले सोनहा बेरा बचपन होथे, अउ येमा कोनो शक तको नइहे। फेर पहली के लइका मन के बचपन अउ आज के लइका मन के बचपन मा धरती आसमान के अंतर हे। हमर बेरा के बचपन के अइसने एक सुरता, नजरे नजर मा झूलथे। जब चुनाव के बेरा आय, ता बड़े मन अपन अपन दल बल मा माते रहे, फेर हम सब लइका मन मा कोनो पार्टी विशेष के नशा मा नही, बल्कि लईकई के नशा मा माते रहन। कोनो भी पार्टी के प्रचार गाड़ी होय, ए कोती ले वो कोती गाड़ी के पाछू पाछू भागना, कोनो दल के रैली होय सब मा शामिल होके मनमाड़े चिल्लाना, पेंटर मन जब दीवाल मा प्रचार बर कुछु लिखे ता वोला टकटकी लगाके घण्टो देखना, प्रचार गाना बाजा मा नाचना, सबो पार्टी के बिल्ला, पाम्पलेट, टिकली, झंडा ला सँकेलना--- आदि आदि, इही सब हमर बुता रहय। जेमा बड़ आनंद आवव, फेर पार्टी विशेष के मोह दूर दूर तक नइ रहय। हाँ फेर कभू लगे कि फलां छाप बढ़िया पाम्प्लेट देथे, ता ओखर इंतजार जरूर रहय। पार्टी मन द्वारा बाँटे टोपी, गमछा, स्टीकर अउ रंग बिरंगी बिल्ला,पाम्प्लेट बड़ मन मोहक लगे,तेखरे सेती हम सब सहज खीचा जावन। न हमन वोट डारन न कोनो पार्टी ल जानन फेर चुनावी रंग मा चुनाव के बेरा मनमाड़े रँगे रहन।
पहली सबे पार्टी द्वारा एक ले बढ़के एक रंगीन बिल्ला, पाम्प्लेट, झंडा छपवाके बाँटे, अउ प्रचार गाड़ी वाले मन हम सब लइका मन ला देख के फेके, जेला सँकेले बर गाड़ी के पाछू पाछू भागन। उहू का दिन रिहिस जब थैली मा रंग रंग के बिल्ला पाम्पलेट धन बरोबर धराय रहय। जेन जतका सँकेले वो ओतकेच धनी जनाय। आलपिन, काँटापिन के अभाव मा काँटा मा तको थैली ला छेदा करके बिल्ला लगावन। लगे बिल्ला भले कोनो दल के राहत रिहिस होही, फेर हमन कखरो दल बल बर नही अपन उमंग बर ये सब करन, या या कहन लईकई के लगन मा सवार रहन। सबे पार्टी के नाचा गम्मत, गाना बाजा ला बड़ चाव ले देखन सुनन। कभू कभू तो कोनो ला लिखत देख मन मा पेंटर उमड़ जाय अउ छुही, गेरू ला घोर के कतको दीवाल ला कोनो पार्टी के नही बल्कि अपन उमंग के रंग मा रंग देत रहेन। भले बनाये या लिखे चीज कोनो पार्टी के नकल रहय, फेर ये सब करत बेरा हमर कहाँ अकल रहय।
आज के लइका मन मा अइसन कहाँ दिखथे, अउ पहली कस पाम्पलेट बिल्ला फेकना तको नही के बरोबर दिखथे। भले रंग रंग के बैनर, पाम्पलेट, स्टीकर, गाना, बाजा, नाचा आजो होथे फेर आज के लइका मन ना पहली कस जुरे अउ ना वो मन ला भाव मिले। काबर कि ओमन वोटर थोरे हरे। पार्टी वाले मन काम के आदमी ला, जेन वोटिंग करथे, ओखरे तीर मा लोरे दिखथे, अउ उही मन ला रिझाथे। लइका बिचारा मन तो मोबाइल ,कार्टून मा बिजी दिखथे, भला उंखर कर भला, हमर कस समय कहाँ?जेन चुनावी रंग मा रँगे। आज यदि कोनो लइका मन हमर वो समय कस करही ता दाई ददा मन तको नइ भाही, अउ दू चार मुटका खा तको जाही, काबर कि आज हर मनुष के मन मा पार्टी/दल बिराजमान हे। सब कोनो ना कोनो दल के चेला हें, कोनो स्वतंत्र नइहे, अइसन मा लइका मन कइसे स्वतंत्र हो पाही? फेर हमर लईकई के स्वतन्त्रा, आज कोनो ना कोनो पार्टी के साँकड़ मा बंधा गय हे। *एक वो बेर रिहिस अउ आजो एक बेर हे। फेर ये बेर वो समय के पार नइ पा सके।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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