बजट
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हम ठहरेन पढ़े लिखे छोटकुन वेतन भोगी आदमी।हमर घर के वित्तमंत्री हा हर महिना बजट पेश करथे तहाँ ले वोला लागू करे बर घानी के बइला कस जोंतावत रहिथँव।
पिछू दू बछर ले वो ह महिना पुट कटौती उपर कटौती वाला बजट पेश करत हे।अब देख न मोरे कमाये पइसा के जेब खर्चा अउ पेट्रोल पानी बर पहिली दू हजार अनुदान देवत रहिसे तेनो ह कटा-कटा के बुचड़ी होके अधियागे हे।अइसे लागथे के अब चार बजे रात के उठके मार्निंग वाक करत ड्यूटी जाये ला परही काबर के ये एक हजार ल पेट्रोल के दिन दूना रात चौगुना बाढ़े दाम ह पाके आमा कस चुहक देही त मैं ह कभू कभार चाय पानी ल कामा पी हँव।अइसे भी अबड़ दिन होगे हे चोंगी माखुर ल संगवारी मन सो माँग के खाये पिये ल परथे। हप्ता म दाढ़ी मेंछा बनवाववँ तेनो म कटौती होगे हे। सकल-सूरत बइहा कस दिखथे।
कटौती के बात चलिस त हम का बतावन--पहिली किराना समान म चार किलो फल्ली तेल आवय तेन अब डेड़ किलो आथे। भितरहीन ह पानी के छिंटा मार-मार के साग ल भुंजथे तइसे लागथे।पापड़-सापड़ के बाते छोंड़ दव वोकर तो दरशने दुर्लभ होगे हे। सगा-सोदर आये म कभू तिहार मना लन तेमा अघोषित प्रतिबंध लगे हे। भाजी पाला म काम चल जथे। लइका मन कभू पिकनिक-सिकनिक बर देवता चढ़े कस घोंडइया मारथें त आलू चिप्स बर पाँच रुपिया देके कइसनो करके मना लेथन।ये पाँच-दस रुपिया तको भारी पर जथे।
आप मन सोचत होहू--ये तो बने बात ये--भारी बँचत होवत होही।हाँ--महूँ अइसनेच सोचत रहेंव। हम तो ये मान के चलत रहेंन के बाई ह चरपी के चरपी दबिया के रखे होही।एक दिन मजाके मजाक में हम ये कहि परेन --तैं बँचा के दू चार हजार धरे होबे त दे न--काम हे। अतका ल सुनते वो भड़क के कहिस--तोला कुछु लागथे , धन नहीं। जतका कमाथच तेन महिना भर तको नइ पूरय। मोर टिकली-फुँदरी बर तको रुपिया- दू रुपिया नइ बाँचय अउ तैं ह दू चार हजार के गोठ करथच।ये काय नौकरी ये तोर-ठकठक ले तनखा बस ल लाके धरा देथस।हमीं जानबो के हम घर ल कइसे चलावत हन तेला।एक ठन नवा लुगरा लेये बर तरस जथँव। तोला कुछु चिंता-फिकर हे धन नहीं ते--कोरोना म बीमार परे रहेच त मोर मइके ले उधारी पइसा माँग के लाये हँव तेनो एको पइसा छुटाये नइये। हूँह---बँचत के बात करथस---तोर सबो पास बुक मन ल झर्राये म कतका झरे रहिस-- फुक्का। ये मँहगाई डायन हा अइसे चुहक देथे के महिना पूरे नइ पावय--उधारी चढ़ जथे। दूध वाला के पाछू महिना के तको देवाये नइये।
हम वोकर चंडी रूप ल देख के सकपकागेंन। अइसे लागिस के ये मजाक ह मँहगा परगे।हम समझगेन बँचत कहाँ ---इहाँ तो घाटे-घाटा के बजट हे।बँचत बिन बिकास कइसे---बेंदरा बिनास तो होबे करही। हम चुपेचाप गली कोती सरकगेंन।
बिहान भर एक फरवरी रहिस। महिना भर पहिली ले ये दिन ल टकटकी लगाये हम ओइसने जोहत रहेन जइसे कोनो प्रेमी-प्रेमिका मन एक दूसर ल जोहथें या फेर दाना-पानी मिलही सोच के चिरई के नान-नान पिलवा मन झाँकत रहिथे या फेर जइसे माँगन-जाँचन मन जोहथें। आशा रहिसे के ये दरी के केंद्रीय बजट म हमर कल्याणे-कल्याण होगी। इंकमटेक्स म छूट मिलही। फेर जब बजट आइस त पता चलिस के हमर बर पाछू बछर के मुरझाये फूल ल सूँघे बर मढ़ाये गेहे।आशा के डोरी रट ले टूट गे।हम ला अइसे लागिस के कल्याण सागर म बूड़के स्वर्गवासी हो जवँ।फेर का करबे मरना अतका सरल थोड़े हे? टी वी के कान ल कई पइत अँइठ-अँइठ के पूछ डरेंव के हमर लइक कुछू होही त बता न रे भाई? फेर उहाँ जेन भइया मन सुनावत रहिन मतलब बड़बड़ावत रहीन तेन हा कुछु समझे नइ आइस।मूड़़ी -पूछी के पतेच नइ चलिस।अतके जनइस के संसद म झगरा माते हे।
दूसर दिन साँझकुन गुड़ी चँवरा कोती बइठे ल गेंव त उहाँ बहुत झन सकलाये राहयँ। उहों बजटे उपर जुबानी खर्चा मतलब चर्चा होवत राहय। हम सोचेन ए मन ल, मोरे जइसे ,बजट के बारे म--वो कइसे बनथे--काबर बनथे --थोरको पता नइ होही फेर ये मन चिल्ल पों काबर मतायें हें।
हमूँ जाके भेंड़िया धसान म कूद गेन।मंगलू कहिस--ये बजट म कुछ नइये। एकदम बेकार, फालतू हे।जीरो बटे सन्नाटा हे।
वोतका ल सुनके झंगलू कहिस--'कइसे कुछु नइये।बने पावर वाले चश्मा ल ओरमा के पेपर ल पढ़। देख एमा धड़धड़ावत बुलेट ट्रेन हे, ड्रोन हे, एंड्राइड फोन हे, चाँदी हे सोन हे। अउ ये नइ दिखत ये का-अँधरा के बेटा जिरजोधन--दू करोड़ नौकरी हे, बरा हे, बरी हे, जिनिस सरी हे। स्टार्ट अप हे--वादा लबालब हे।सड़क हे-तड़क भड़क हे।'
अतका ल सुनके पंच पंचूराम ह ठोलियावत कहिस--'हाँ ,कका बने बताये। सब कागज म अउ भाषण म दिखत हें फेर राशन म नइ दिखत ये।'
'वाह कइसे नइ दिखत ये। बिन पइसा के झोला-झोला चाँउर नइ दिखत ये का। तोर बाई के खाता म महतारी वंदन होवत नइ दिखत ये का? पी एम, सी एम म बने घर-कुरिया नइ दिखत ये का। खाता म आये पइसा नइ दिखत ये का '-- सियनहा मेहतरु ह कहिस।
बात के उत्तर बात म देवत रमेशर भिंड़गे-- सब टकटक ले दिखत हे बड़े ददा। यूरिया, पोटाश के बाढ़े कीम्मत दिखथे। दू सौ रूपिया किलो दार दिखथे। बादर ला अमरत तेल के भाव दिखथे। सब जिनिस के मनमाड़े बाढे दाम दिखथे। सुसाईट अउ सुसाईटी दिखथे। बोरा के किल्लत दिखथे--किसान के जिल्लत दिखथे। एम एस पी ल अगोरत अनाज दिखथे--बिगड़े सब काज दिखथे।'
इँकर तनातनी ल सुनके एक झन सियनहा हा समझावत कहिस- दैखौ बाबू हो तुमन धीर धरौ।धीर म खीर मिलथे। तुमन ल ये बजट म जेन थोड़-बहुत मिल जही उही म संतोष करौ। अइसे भी खाँटी रबड़ी तो बड़े-बड़े पेटल्लू मन ल मिलथे।वो मन ल कइसनों करके मिल जही। तुमन काबर नइ सोचव-- ये बजट भविष्य के सपना ये ,पच्चीस साल आगू ल देख के बनाये गेहे।'
सबके ल सुनत वो मेर बइठे बेरोजगार नवयुवक मनोज कहिस--वो तो सब ठीक हे फेर हमर वर्तमान के का होही कका?
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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