"ऋतु के राजा बसंत"
हमर भारत देश मा प्रमुख रूप ले छः ऋतु माने गे हे। सबो ऋतु ला दो-दो महीना मा बाँट दे गे हे। बरसा ऋतु असाढ़ ले सावन, शरद ऋतु भादो ले कुँवार, हेमन्त कातिक ले अगहन अउ शिशिर ऋतु पूस ले माघ, बसंत ऋतु फागुन ले चइत, गरमी बइसाख ले जेठ तक। दो-दो महिना तक सब ऋतु अपन-अपन महिमा दिखाथे। सबो के अपने-अपन महता हे फेर बसत ऋतु ल अतका काबर मान मिलथे येला काबर ऋतु के राजा कहिथें आवव जानन।
जम्मों ऋतु के परिवर्तन हमर भौगोलिक कारण ले होथे जेन हा भौतिक दुनिया के संगे-संग मानव मन ला घलो परिवर्तित कर देथे। जब वर्षा ऋतु आथे त रिमझिम बरखा बहार, करिया-करिया बादर जम्मों प्रकृति ल सुन्दर बना देथे चारो कोती हरियर-हरियर हो जाथे अउ सबो प्रानी मन के भन बरखा के पानी ले अघा जाथे। अइसने शरद, हेमन्त, शिशिर, ग्रीष्म हा घलो अपन-अपन प्रभाव ला देखाथें। फेर बसंत ऋतु के आगमन हा प्रकृति जगत के संगे-सँग मनखे के अन्तरमन मा प्रेम के भाव जगा देथे। ये ऋतु मा मौसम के तापमान समान रहिथे न जादा गर्मी न जादा ठंडा। ये ऋतु मा रुखराई के पत्तामन झर के नवा पत्ता ले भर जाथें। चारो कोती खेत-खार मा घलो सरसों के पिंवरा-पिंवरा फूल अइसे लगथे के धरती दाई ला पिंवरा चुनरी ओढ़ा दे हे। परसा के लाल-सफेद, केसरिया फूल हा धरती मा अपन महक बगराथे। आमा के पेड़ मन मा सुग्घर सोहना बौर लग जाथे। जेकर महक हा प्रकृति ल सुगंधित कर देथे। ताल तलैया कमल कुमुदनी के फूल ले सुग्घर दिखे लागथे। ये सबो मन बसंत ऋतु के अगुवई करथें त बसंत ऋतु के राजा काबर नइ कहलाही।
बसंत ऋतु के वर्णन करत महाकवि कालिदास हा अपन "ऋतुसंहार" मा कहिथें –
"सर्व प्रिये चातुर बसंते"
अर्थात बसंत ऋतु सबला प्रिय हे।
आयुर्वेद के दुनिया मा "नवीनीकरण कायाकल्प" के समय माने गे हे बसंत ऋतु ला।
भगवान श्री कृष्ण हा गीता के दसवाँ अध्याय पैतीसवाँ श्लोक मा बताय हे –
"मासानां मार्गशीर्षो अहम ऋतुनाम कुसुमाकरः" ।
अर्थात ऋतुओं में "मैं बसंत हूँ" कहिके बसंत ला श्रेष्ठ बताय हे।
बसंत ऋतु मनखे के अंतर मन ला प्रकृति के सुग्घर दर्शन करा के प्रेम के उछाह देथे। त दूसरा कोती इहीइच मौसम मा एकाकीपन के घलो अनुभव होथे। पौराणिक कथा मन मा बसंत ला कामदेव के बेटा कहे गे हे। येला सृष्टि रचना के आधार मानेगे हे। फेर कोनो येकर भाव बिगड़ जाथे तब ये "अनंग" घलो बन जाथे। इही बसंत ऋतु मा माता पार्वती अउ भोलेनाथ के मिलन होय जेन हा सृष्टि बर अनासक्त प्रेम के उदाहरण आय। येकर ले बसंत ऋतु के महता बाढ़ जाते। इही बसंत मा माघ अंजोरी पाख के पंचमी के दिन माता सरस्वती के जनम दिवस बसंत पंचमी के रूप मा मनाथन। येमा दाई सरस्वती के ज्ञान, कामदेव के काम अउ विवेक अनश्वर ऊर्जा के स्रोत बन जाथें।
बसंत प्रकृति ला अपन माध्यम बना के मनखे के नीरस जीवन मा रस भर देथे अउ अनासक्त प्रेम के भाव जगाथे। फेर आज मनखे मन उन्माद मा आके प्रेम के गलत अर्थ समझ लेथें जेन हा सही नइ हे। आज मनखे ला बसंत के सही अर्थ ला समझ के जीवन मा निर्लिप्त प्रेम के भाव ला समझे ला पड़ही।अउ "ऋतु के राजा बसंत" के
महिमा ला जाने ला पड़ही।
डॉ पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य
बहुत बहुत धन्यवाद भैया जी छंद खजाना मा मोर लेख ला सहेजे बर🙏
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