Sunday, 23 February 2025

बाई के बड़ई

 बाई के बड़ई

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कका --- कका ! थोकुन रुकतो--पड़ोस के भतीजा कहिस।

'काये बता ?'--मैं पूछेंव।

चल ना आज रायपुर जाबो कका।

कइसे--काबर ?

कुछु नहीं।एकक हजार के दू ठो टिकट कटा डरे हँव।एक झन अगमजानी महराज के दरबार में जाये बर।

मैं नइ जाववँ।मोला अइसन अरबार-दरबार पसंद नइये।अइसने कतेक झन ढग-जग मन धंधा चलावत हें। तैं दू ठन टिकट कटाये हस त दूनो परानी जावव न जी।

अब काला बताववँ कका तोर बहू ला रतिहा ले कसके बुखार हे।वो नइ जाववँ कहि दिस तेकर सेती ताय --तोला काहत हँव।मोर एक हजार के टिकट बेकार हो जही।

मैं हा थोकुन हर गुन के कहेंव- 'तैं काहत हस त चल देहूँ फेर कुछु पूछवँ- पाछँव नहीं।'

'ले कुछु नइ होवय कका।संगवारी बरोबर चल देबे ततके काफी हे,मुँहाचाही हो जही' --वो कहिस।

 रायपुर के बड़े जान होटल मा दरबार लगे लागय।हमर पहुँचत ले हाल हा खचाखच भरगे राहय टिकट के बुकिंग के अनुसार कुर्सी लगे राहय।हमन ला आगूच मा जगा मिलगे।

 उहाँ दू झन सुंदर नोनी मन माईक धरे एकर-वोकर सो जात राहँय।जेकर सो जायँ तेन हा अपन समस्या ला-परेशानी ला बतावय तहाँ ले भारी सजे-धजे मंच मा बइठे -- वेषभूषा ले भारी तपसी-महात्मा कस लागत महराज हा दू चार ठन प्रश्न पूछ के बतावय के भगवान के किरपा एमा अटके हे, वोमा अटके हे तहाँ ले उपाय तको बतावय।

 वो एक झन माईक वाले नोनी मोरो सो आके दँतगे अउ बोले ला कहिस।मैं हा माईक ला भतीजा कोती टरका देंव।वो तो तइयार बइठे राहय।माईक ला धरके टिंग ले खड़ा होगे।

महराज बोलिस-- बताओ बच्चा क्या परेशानी है?

 काला बताववँ महराज बहुत परेशानी मा जिनगी चलत हे। मोला थरथरासी- थरथरासी लागत रहिथे।बाई हा सीधा मुँह बात नइ करै।लोग लइका मन बात नइ मानैं।खेती-खार चौंपट होगे।नानचुक दुकान खोले हँव तेनो दिनों-दिन खिरावत जावत हे।ग्राहक नइ आवयँ।।पइसा कमाथँव तेन टिकबे नइ करय।कोनो जादू-टोना करदे हें तइसे लागथे।बँचालव महराज जी---बोलत बोलत भतीचा के गला भर्रागे।आँखी ले आँसू बोहागे।

महराज ढाँढ़स बँधावत कहिस-- बहुत दुखी हो बच्चा सब ठीक हो जायेगा।अच्छा ये बतावो-- मिर्ची भजिया कब खाये हो?

'आजे दू घंटा पहिली खाये हवँ महराज।'

और जलेबी?

'उहू ल आजे वोकरे संग होटल मा नाश्ता करत खाये हँव।'

सुनके महराज थोकुन चुप होके -- अपन आँखी ला मूँद के एक ठन माला ल अपन मूँड़ मा घुमाके ,काय-काय बुदबुदाइस तहाँ ले बोलिस-- 'अच्छा ये बताओ बेटा।तुम्हारी पत्नी है न?'

'हाँ हाँ हाबय न महराज।'

वो भोजन बनाती है कि कोई और?'

'उही बनाथे महराज।मैं कहाँ रसोईया राखे सकहूँ।मोर हैसियत नइये।'

अच्छा ठीक है ।ये बताओ अपनी पत्नी के बनाये खाने का तरीफ कब किये हो?'

'मोला तो सुरता नइ आवत ये महराज।शायदे करे होहूँ।'

बस-बस कारण समझ में आ गया।कृपा वहीं अटकी है।जाओ आज ही तारीफ करना सब ठीक हो जायेगा।'

भतीजा हा हव महराज कहिके चुपचाप बइठगे।

ऊँकर सवाल-जवाब ला सुनके मोला खलखलाके हाँसी आवत रहिसे तभो मुँह ला तोपके चुपचाप बइठे रहेंव।

दरबार सिरइच तहाँ ले घर  लहुटत ले जेवन के बेरा होगे।वोकर जिद्द करे मा महूँ हा सँघरा वोकरे घर जेवन करे बर बइठगेंव।बहू हा लाके जेवन पानी देइस।भतीजा हा एके कौंरा मुँह मा लेगिस तहाँ ले शुरु होगे-- अजी कमला सुन तो।आज के भोजन जोरदार बने हे।आलू साग ला तो झन पूछ----अँगठी ला चाँट- चाँट के खाये के मन करत हे।'

वोतका सुनके बहू हा भन्नावत कहिस-- तोला लाज तको नइ लागय।आलू साग ला फूटे आँखी नइ भावच तेन हा।थारी-कटोरी ला फेंक के औंखर-औंखर गारी देथच तेन हा।तोला तो कुकरी-बोकरा अउ दारू चाही।'

'मैं  दिन भर बुखार मा हँफरत हँव।तोला हरियर सूझे हे।वो तो परोसिसन रम्हला काकी बेचारी हा अलवा-जलवा राँध दे हे त खाये ला मिलगे नहीं ते लाँघन सुते रइते।'

'आँय -का कहे? येला तैं नइ राँधे अच?'

'हव। बताये हँव न।'--बहू कहिस।

मोला लागिस के इँकर कुकरी झगरा मात जही का? भतीचा ला चुपेचाप खाये ला कहेंव अउ भोजन करके अपन घर लायेंव तहाँ ले समझावत कहेंव--'देख बाबू फोकट के ढोंगी मन के चक्कर मा आके दू -ढाई हजार रूपिया ला फूँक देयेच। कृपा तो अभो अटके हे।एक बात ला मान जबे ता सदा दिन भगवान के किरपा बरसे ला धर लिही।तैं हा रात-दिन दारू पियई ला छोंड़ दे।तोर तबियत घलो ठीक हो जही।घर के पूरा माहौल दारू के सेती खराब कर डरे हस।लोग लइका,बाई सब टेंशन मा रहिथें। दारू पीके दुकान मा बइठतच त भला कोन ग्राहिक आही? थोक बहुत कमाथस तेन ला दारू मा उड़वाथस त पइसा कहाँ ले बाँचही। एक बात अउ- बहू ले अच्छा बरताव करबे तभे तो गृहस्थी बने चलही।बाई के बड़ई करे मा,वोकर सम्मान करे मा बरकत आथे जी।बात समझ मा आइस न?'

वो हा हव कहिके मुँड़ी ला हलाइस।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

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