Sunday, 25 February 2024

मंच माईक अउ मँय जी*. (ब्यंग)

 *मंच माईक अउ मँय जी*.               

(ब्यंग)


           एक ठन हाना हे कि, राजा के पदई पाये ते हागत खानी गीत गाये। थोर बहुत नाम अउ पदवी पाये ले मनखे अपन आप ला खास मन के टोली मा सँघेर लेथे। अइसन मौका तलासी नामधारी मन अपन पहिचान ला जियाके राखे बर कोनों ना कोनों मंच मा हाजरी के मौका खोजत मिलथें। खुद के मँय मा अतका खुसर जथें कि फुनगी मा दीया बारत दिखथें। अपन आगू मा कोनों दूसर ला देखना सुनना नइ चाहे। ओइसे देखे जाय तौ मनखे के पहिचान तीन चीज के थुनही मा टेके हे। जेकर ले पान गुटका खाके थूँक मा ललियाय पथरा ला भगवान कहिके पैलगी करइया बुद्धिजीवी समाज आदर के भाव ले देखथे। इही तीन चीज ला हम मंच माईक अउ मँय के  रूप देख सकथन। जेन जगा मा तीनों के हाजरी हे तब वैचारिक शिखर वार्ता मा हिस्सा लेके खुद ला साबित करना मुख्य मंसा रथे।

मंच-----ये हा सबो साधन सुविधा ले सोभित जगा होथे। अइसन जगा मा भले जमघट कम रहय फेर बइठे के ठिकाना दू गुना रहना चाही। काबर कि कतको बखत खाली खुरसी ला घलो सुनाना परथे। अइसन मंच के खास बात ये होथे कि आखरी छोर पिछोत मा बइठने वाला ला घलो माईक उपर खड़े मँय जी के दरसन पा सके।

माईक-------जेकर अवाज उँकरो कान तक जाना चाही जे मन चाह के घलो सुनना नइ चाहे।

मँय-----ये जीयत जागत मानुस प्राणी होथे। जेला खास नेंवता देके मँगाए जाथे। इही तीसर हर दूनो के भोक्ता होथे। मंचासीन होय के बाद माईक तक चरण चल दिस तब एकर बीच हम या हमर, तोर तुँहर बर कोनों जगा नइ रहय। रथे तो फकत मँय।

            इही आदरणीय मँय जी ले भेंटाय के मौका पीछू हप्ता हमरो बनगे। घर मोहाटी मा पींयर चाँउर छिंतके जाही तभे बिहाव के नेंवता माने जाही अइसे नइये। वाट्सअपी निमंत्रण के नवाचार घलो उधो के पाती ले कम नइये। जेला स्वीकार के हमू मन चल पड़ेन। दुरिहा दुरिहा ले पधारे नामधारी अतिथि के सँग तिर तखार के  वरिष्ठता के गमछा टाँगे वाला मन के आगमन रिहिस। पारा मुहल्ला के गोठ होतिस तब तो माईक पोंगा के मुँहूँ ला हमरे घर कोती रखवातेन अउ परछी मा बइठके ज्ञान गंगा मा उबुक चुबुक होतेन। गहिरा बिचार मंथन के रसपान करतेंन।

     वो तिर मा आवत हे तब फरज बनथे कि दू लीटर पेट्रोल फूँक के एकाद झोरा सुविचार सीख संदेश लाने जा सके। उपर वाले जतका देय हवे वोमा खाल्हे वाले के ला अउ समोये जा सके। हमर असन के जेब मा दू रुपिया वाले लिखो फेंको अउ आधा लिखे कविता के सइघो कागज के छोड़े अउ कुछु नइ रहय। इही अधुरा कविता बर ज्ञान सकेले के फेरा मा चल पड़ेन। रसता मा सँगवारी मन ला ये कहिके चाहा पानी नइ पियायेन कि उँहा सबके तइयारी हे। आयोजक संयोजक मन ला धन्यवाद एकर सेती जरूरी हे कि अइसन सत्संग मा आधा तो बराती बनके पदार्पण करथें। जेकर सम्मान जरूरी हे। काबर कि दुलहा ला दुलहिन मिलथे समधी ला दाइज डोर। बजनिया अउ बराती ला तो पेटभरहा पकवान ही चाही। ओइसे आजकल तो भात देखके ही भीड़ बाढ़थे। भीड़ हर ही आयोजन के सफलता के सूत्रधार होथे।  भीड़ सकेलना घलो कला होथे। बेंदरा के करतब कइसनों रहय। डुगडुगी जोरलगहा बजना चाही। एकर ले जे नइ जाने कि वो आवत हे ओहू जान लेथे कि वो आवत हे। राजनीति के मंच होथे तब भीड़ बर दिन के रोजी खाना पीना अउ आवाजाही बर मोटर गाड़ी सब मिलथे। भीड़ मा खींचे फोटू ला सम्हाल के एकर सेती रखना परथे कि भगदड़ मा नेताजी के भक्ति मा चपकागेस तब माला डारे बर फोटू तो होना चाही।

           वरिष्ठ विचार वाचक वक्ता वो होथे जे मंच मा अपन बर पहिली ले जगा पोगराय के सामर्थ राखथे। राखथे के मतलब रिजर्वेशन आरक्षण करवाना। नइते वेटिंग लिस्ट वाले वक्ता मन समझौता करके अपन नाम के बोरा जठाय मा पीछू नइ रहय। काबर कि मंचासीन बने बर सम्मान सकेले बर समझौता वादी कायदा चलन मा हे। इँहा हर तिसरा कलम के सिपाही सफल वक्ता हें। चारन भाट गिरी करइया कवि मन राष्ट्रीय कवि मा गिने जाथे।बस नेता जी अउ वोकर पारटी के महिमा आरती गाये बर झन छोड़। 

            आदरणीय मँय जी ला बने फूल माला मा लादके मंचासीन कराये गिस लाम लाहकर परिचय देय मा संचालक जी कोनों कमी नइ करिस। माईक तक ताली पिटवा के हाजिर करे गिस।अब ओकर बाद मँय से शुरू। मँय ये करेंव मँय वो करेंव। मँय कठिन तप साधना करके छै ठन ग्रंथ लिखेंव। मँय साहित्य के सबो विधा ला घोर के पी डारे हवँ। कविता कहानी उपन्यास नाटक सब के दू दू जोड़ी छपवा डारे हवँ। मँय कोरी अकन जगा मा सम्मानित होय हवँ। मोर संस्मरण सुरता के तिसरा संकलन जल्दी अवइया हे। बड़का साहित्यकार जे मन ये दुनिया मा नइये उँकर सँग रेंगे के सुरता ला सकेलत हवँ। मँय जी अपन उपलब्धि ला सवा घंटा सुरता कर करके सुनाय के बाद हुरहा सुरता आइस कि समय के मरियादा हे। महानुभाव जी मँय मा अतका बुड़गे कि मँय अउ मोर के छोड़ तुम या तुँहर बर कुछु नइ बाचिस।

             भीड़ अगास ले रसगुल्ला बरसे के आस मा मुँहूँ फार के देखत रहिगे। काम के बरसा ला आदरणीय जी के उपलब्धि के हवा फाँक दिस। सबो श्रोता समाज मँय जी के उपलब्धि ला गठियाके लेगे बर गमछा के छोर तमड़त रिहिस। आयोजन मा चरचा तो पूस के रात उपर होना रिहिस फेर  वरिष्ठ वक्ता मँय जी के गोठ जेठ के मँझनिया मा फँसे रहिगे। विचार विन्यास धरती मां के करुण पुकार उपर होना रिहिस। फेर मँय जी अपन ससुरार यात्रा संस्मरण मा हास्य किस्सा सुनाके ताली पिटवाय मा मगन रिहिस। हम घर ले ये सोच चले रेहेन कि कम खरचा मा केसर युक्त पान मसाला खाय बर मिलही। आज हमर आधा अधुरा कविता बर मसाला मिल जही। फेर चिचोल बीजा ला सुपारी समझ के पघुरात रहिगेन। चरचा के विषय मँय जी के उपलब्धि मा रमँजागे। बुद्धिजीवी श्रोता मन ताली पीट पीट के अपन गुस्सा शांत करत मिलिस। आदरणीय मँय जी के उदारता ये रिहिस कि वो बड़का मंच के नेवता ला छोड़ के इँहा के नेवता स्वीकारे रिहिस।  जे हर ये मंच के उपलब्धि ले कम नइ रिहिस। अइसन सफल आयोजन के खबर वाट्सअप के ये डारा ले वो डारा बेंदरा कस कूदे मा कमती नइ करिस। आयोजन समाचार बनके अखबार मा अउ फ़ेसबुक मा सदा दिन बर लटकगे ।

           जेमन ला मँयमयी बिचार राखे के मौका नइ लगिस, वो ईर्ष्यालु बराती रूपी वक्ता मन घराती ला ताना सुनाके आधा बीच मा आधा सुनके चुकता प्रस्थान कर लिन। अवइया बेरा मा आयोजक मंडल अउ बड़का मंच सजाके कोनों नामधारी विचार वाचक ला हाजिर करहीं। तब हमर अधुरा कविता बर सीख सकेलाही। बिनती ये रही कि मंच मा विषय रहय, विषय संगत विचार रहय। अपन खुद के उपलब्धि के बोजहा धरके रेंगइया कोनों मँय जी झन रहय।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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