दुदपिया के मौज-मस्ती अउ निबंध
महेंद्र बघेल
पढ़इया लइका मन बर परीक्षा म निबंध लिखे के का महत्व होथे वोला उही ह अनुभो कर सकथे जेन ह कभू निबंध लिखे के मजा लूट सके होही। अब इहाँ मजा लूटे के मतलब दही लूटे कस हड़िया फोड़ इन्ज्वाय करे ले बिल्कुल नइहे, भलुक बिना नकल-चकल के निबंध लिखे के पढ़ंतापन ले हे। एक तरह ले यहू कहे जा सकथे कि जनमानस म निबंध के कलेवर ह भाषा के मान-सम्मान ल बढ़ाय के काम करथे। येला पाठ्यक्रम बनइया अउ पेपर छटइया विद्वान मन के महान कृपा कहे म कोनो हरज घलव नइहे। काबर कि इँखरे परसादे निबंध अउ वोकर महापरसाद आवेदनपत्र ह गिरे-परे-हपटे अउ डगमगडोल करत लइका (विद्यार्थी) मन के बैतरनी पार लगाय के काम करथे। सहीच म ये दूनो के नइ रहे ले कतको विद्यार्थी मन पढ़त-पढ़त बूढ़ा जतिन फेर भासा म पास नी हो पातिन।अइसन बीपीएल वाले मन ल पुलू ढकेले बर निबंध के दस अउ आवेदन के छे नंबर ल न्याय के गारंटी समझ..।भाषा विषय के निबंध संग दस अउ बारा नंबर के गहरा नाता हवय। हमर जानत म निबंध ह येकर ले कभू पार नी पा सके हे अउ भविष्य म कोनो गुंजाइश घलव नी दिखे।
जती देखबे तती देश के चारो मूड़ा म निबंध के जलवाच-जलवा दिखत हे। ये निबंध ह परीक्षा अउ साहित्य जगत म अपन उपस्थिति दरज कराके ग्लोबल तरीका ले न्यायपालिका म घूसरत एकतरफा धाक जमाना शुरू कर देहे।कभू-कभू तो अइसे लगथे कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के जज साहेब ह निबंध म नहावत-अचोवत होही का..।तभे तो वोकर मगज म देवता खेले बरोबर निबंध लिखवाय के भूत सवार होगे हे। दुनिया जहान ह जानथे कि तब ले लेके अब तक परीक्षा म निबंध के दस नंबरी प्रश्न ल हल करे के जरूरत पड़थे। फेर आजकल निबंध के सेती दू-दी झन ल एक्सीडेंट करइया रईस के बिगड़े बेवड़ा औलाद ऊपर रहम करई ह समझ ले बाहिर हे। सेटिंग के कमाल अइसे कि जज साहेब ह जजमेंट देय बर न्यायपालिका म अपन बायोलॉजिकल उपस्थिति ल नकारात अवतारी महामानव बरोबर एवमस्तु कहिके निबंध ले धांसू अनुबंध कर डरिस।
एक समय अइसे घलव रहिस जब हमर पड़ोसी गांव के भुखऊ ल खीरा चोरी के आरोप म हप्ता भर ले अंदर रहे के संग साल भर ले पेशी खटना पड़िस। रद्दा चलत धनवा के साइकिल म मनवा के कुकरी ह रेताके आंखी ल नटेर दिस।कुकरी के अनचाहे मर्डर के आरोप में धनवा ऊपर अइसे धारा लगिस कि धारे-धार बोहागे अउ जुर्माना म वोकर कनिहा-कुबर ह टेड़गागे।पता नइ खीरा अउ कुकरी के केस म फैसला देवइया जज साहेब मन ह कोदो देके पढ़े रहिन ते का देके पढ़े रहिन उही मन जाने। फेर ये मन भुखऊ अउ धनवा ले,न तो नानकुन निबंध लिखवा सकिन न आवेदन पत्र..। इहाँ ले लेके उहाँ तक हमर देश म भूखऊ अउ धनवा जइसे जुच्छा जेब वाले ठनठन गोपाल मन ल आज घलव पेशी म रगड़ावत अउ पीसावत अपन आँखी म देख सकथो।
ये तो पुणे जैसे शहर म जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के किस्मत आय जिहाँ ऊपर वाले के कृपा ले निबंध ह उहाँ के जज जैसे अवतारी पुरुष के झोली म आके गिर गे।नइते आदरणीय निबंध जी ह उही परीक्षा के पेपर म आठ-दस नंबर के भरोसा म अपन ऐसी तैसी करवात रहितिस।अवयस्क अउ रसूख के नाम म नाच नचावत बारवीं पास मंदहा रईसजादा ल निबंध के आड़ म बरी करे के फैसला ह तीसरा अउ चौथा खंभा के खाल्हे म खलबली मचा के रख देहे।मोटहा भासा म कहे जाय तो पढ़इया लइका मन बर निबंध के मतलब गाय, मेरी पाठशाला, विज्ञान के चमत्कार, राष्ट्रीय पर्व ,महापुरुष,होली अउ दीवाली जैसे शीर्षक ले भला हवय। फेर भुक्तभोगी भुखऊ अउ धनवा मन अपन अंतस के पीरा ल कोन ल समझाय..। तीन सौ शब्द म निबंध लिखे के खबर ल जब ले सुने हे तब ले येमन मनचलहा कस होगे हें। कुछु-कहीं गोठियाय के उदीम करथें फेर उनकर मन के बात ह मने म चभक जथे।
संविधान म कानून के धारा ह सब बर एकसमान होथे। वो अलग बात आय कि ये धारा के प्रभारी मन नोट के बंडल के आगू म धारा के दिशा ला बदले बर विशेष रुचि लेवत अपन टुच्चईपन के खुलेआम प्रदर्शन कर देथें।जिनकर माथा म रहिसी के जलवा नइ रहय उनकर नानुक गलती म धारा के ऐसे बौछार हो जथे कि वोकर जिनगी ह धारेधार बोहावत बेअधर हो जथें।जिनकर हस्तक अउ मस्तक के भाग्य रेखा म पोर्श लिखाय रहिथे उनकर सोर्स ह कहाॅं-कहाॅं दस्तक देवत होही तेकर अंदाजा आप खुदे लगा सकथो।
तेकरे सेती कहे सुने बर मिल जथे कि कानून ह अमीर मन के जेब म रहिथे। कोर्ट के खईरपा ल संडे के दिन खुलवा लेना, डॉक्टर के परखनली ले खून के सैंपल बदलवा देना अउ तीन सौ शब्द म एक्सीडेंटल निबंध लिखवाना ह रसूखदार मन बर कन्हो भारी बात नोहे। पुलिस, डॉक्टर अउ जज ले लेके पता नहीं कोन-कोन ल सेट करे बर कतिक- कतिक रेट देना पड़े होही ते..। पैसा के असर म बिगड़े मंदहा टूरा (दुदपिया) के समाचार ल छापे बर दू-तीन दिन ले अखबार के स्याही ह अपने-अपन सूखागे रहिस। पीरकी ल घोर-घोर के घाव बतइया बकबकहा टीवी एंकर मन के बक्का नी फूटत रहिस। भला होय जनता जनार्दन के.., जिनकर जागरूकता के सेती ये बिकाऊ कंपनी के हटहा माल मन के हलवा टाइट हो सकिस।
पता नइ हमर देश के मनखे मन के खोपड़ी के डिजाइन ह कते साँचा म ढलाय रहिथे..।एक डहर येमन अपन हक-अधिकार बर रपेट के लड़ना जानथें त दूसर डहर बड़े- ले-बड़े मामला ल लघियाँत भुलवार घलव डारथें।एक तो लापरवाही के कारण होय दुर्घटना अउ उपर ले प्रशासनिक ढिलाई ह जनता के अंतस म गुस्सा ल भर देथे। तुरते ताजा मामला म खखवाय -गुस्साय जनता ह जोशे -जोश म कैंडल मार्च घलव निकाल लेथें। फेर जैसे-जैसे मामला के उपर समय के परत चढ़त जथे सबे जोश-खरोश ह अपने- अपन ठंडा पड़ जथे।जनता-जनार्दन म इही जोश (एकता) के कमी ल रसूखदार मन बिलई ताके मुसवा कस जोहत रहिथे। मउका मिलते साट ये रसूखदार मन अपन पाढ़ू मन ले उल्टा-सीधा काम ल सीध करवई लेथें।मौजमस्ती करत बिगड़े औलाद ह चाहे दारू पिये, अपन गर्लफ्रेंड संग रंग-झांझर मताय, दू सौ के रफ्तार म अँखमुंदा कार चलाय तभो ले वो कानून के नजर म दूदपिया लइका आय।व्यवस्था के इही आत्मघाती झोल ह रसूखदार मन के परवरिश के पोल ल दबाय बर टानिक के काम करथे। हे जज महोदय.., दारू पीके दू झन ल कार म कुचले के अपराध म काश तँय पंद्रह घंटा म बरी करे के जगा म वो बेवड़ा टूरा ल तीन लात जमाके ओइला दे रहितेस..। तब तोर खुरापाती खोपड़ी म तीन सौ शब्द म निबंध लिखवाय के नौबते नइ आय रहितिस।
महेंद्र बघेल डोंगरगांव
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