हिजगा पारी
(छत्तीसगढ़ी कहानी)
कमलेश शर्माबाबू
गाँव गँवई मा बड़ेजक अस्पताल अउ उहाँ पढ़े-लिखे डिगरीधारी डाँक्टर बिकट भाग्य ले मिलथे।जब ले गाँव मा बड़ेजक अस्पताल खुले रिहिस तब ले गाँव अउ आसपास के जनता मन भारी खुश रिहिन।अउ हो न घलो काबर कि वो डाँक्टर कोनो आने डाहन के नहीं ऊखरे गाँव के रामसिंग रजक के बेटा ये।
कतको झन तो वोला डाँक्टर साहब नहीं वोखर नामे लेके पुकारँय,,,सेऊक डाँक्टर ,,,सेऊक डाँक्टर ।घर के मुरगी दाल बरोबर।नाम से तो वो सेवक राम रजक राहय फेर गाँव वाला मन कब सेऊक बना दीन पता नइ चलिस।
डाँक्टरी तो कतको लइका मन पढ़िन अउ सीखिन फेर डिगरी लेके कोनो गाँव मा खोले बर तइयार नइ होइन।पइसा के चकाचौंध मा सब शहर कोती बसेरा कर लीन।बड़े-बड़े दवाखाना बना लीन।
आखिर उनला पढ़ई लिखई के खरचा वसूलना हे, बड़े-बड़े नर्सिंग होम बनाना हे।अउ अतका भर नहीं,,,अपने बरोबर के डाँक्टर डिगरीधारी छोकरी संग बिहाव करना हे।पइसा ह पइसा कमाथे।शहर मा खटाखट,फटाफट,चकाचक पइसा मिलथे।
फेर गाँव गँवई मा रइही त कहाँ तरक्की कर पाहीं ?अउ इही दकियानूसी सोच के सेती सब डिगरीधारी डाँक्टर मनला शहर जाय के भूत सवार होगे हे।
कई झन दाई ददा मन अपन डिगरीधारी बेटा मनला गाँव मा या आस-पास के चऊक-चौराहा मा अस्पताल खोले बर किहिन फेर,,,कोनो मूड़ नइ उठाइन !अउ उल्टा नाक मुहु सिकोड़त दाई ददा मनला दू-चार बात सुना दीन,,,हमर लइका मन इहाँ कहाँ पढ़हीं, अच्छा इस्कूल कालेज नइहे,घूँमे बर गार्डन पिकनिक स्पाट नइहे काहत बेलबेला दीन।
जइसे हजारों कोइला खदान मा एक न एक हीरा मिल जथे वोइसने हजारों मनखे मा कोनो न कोनो अइसे मनखे भगवान जरुर बनाथे जेखर सोंच सब ले अलगे होथे।वो पइसा कम नाम जादा कमाथे।
उही हजारों मनखे मा राहय डाँक्टर सेवक राम रजक । माँ-बाप के सरवन बेटा सेवक राम एम.बी.बी.एस.डिगरी धरके सीधा अपन गाँव 'बेरा बतर' आ गे।अउ अपन गाँव ल ही जन्मभूमि के संग कर्मभूमि बनावत दवाखाना के शुरुवात करिस।
बहुत ही कम समय मा वोखर दवाखाना के जघा-जघा शोर उड़गे। बिना फीस के मरीज मनला देखय,कम खरचा मा बढ़िया ईलाज के सेती मरीज मनके लाइन लगे राहय।
कतका बेर काखर भाग्य बदल जही केहे नइ जा सकय।फेर,, गाँव के एक छोटे घर के लइका भगवान के किरपा ले अतका बड़े डाँक्टर बनगे,,,चमत्कार बरोबर लगथे।शुरु ले होनहार सेवक राम हर कक्षा मा टाप करे रिहिस। बारहवीं साइंस मा तो पूरा जिला मा अव्वल रिहिस।नीट के परीक्षा बिना ट्यूशन करे दूसरा नंबर मा निकाले रिहिस।सेवक ल अउ आगे पढ़ाय बर तो वोखर बाप साफ-साफ नाहना हार दे रिहिस फेर ममा मामी मन अधरे ले उठालिन,,,वोला थोरको भार नइ लगन दीन।
कल तक गाँव के एक साधारण सा दिखइया लड़का सेवक राम,,पढ़ते-पढ़त कब अतका बड़े डाँक्टर बनगे पता नइ चलिस।आज दुरिहा-दुरिहा के मरीज मनके वोखर दवाखाना मा तांता लगे रहिथे।
आज गाँव भर तिहार मानत रिहिन। कोतवाल रात के घलो हाँका पारे हे अउ सुबे ले घलो चिचियावत हे,,,सात बजे ले मतदान चालू होगे हे,,,, सब अपन-अपन वोट डारे बर स्कूल में जावत जाव हो।
डाँक्टर सेऊक साते बजे जवइया रिहिस फेर का करबे एकझन जचकी वाले इमरजेंसी केस आगे।अइसे-तइसे ग्यारह बजगे। दू-चार झन अउ मरीज ल निपटाइस अउ थोरिक पोंडा समय देख के जल्दी आवत हँव कहिके कम्पोटर मनला चेताइस,,, अउ फटफट-फटफट मतदान केन्द्र पहुँचगे।
मिडिल इस्कूल मा भारी भीड़, लंबा लाइन लगे राहय।मई के महिना,,,ऊपर ले नवटप्पा आसमान ले आगी बरसावत राहय,,, ४२डिगरी ले उप्पर तापमान सब के मूड़ मा चढ़ के नाचत राहय।सबझन जल्दी-जल्दी वोट डार के घर आय के फिराक मा लगे राहँय।कतको झन अपन-अपन उरमाल अउ पंछा मा रहि-रहि के धुँकत राहँय।
भारी लंबा लाइन हे भई,,,,येखरे सेती सुबेच ले आवत रेहेंव काहत डाँक्टर सेवक राम पुरुष मनके लाइन मा आघू डाहन जाके खड़ा होगे।
पाछू डाहन ले एक दमकरहा आवाज आइस,,,,,हमन घंटा भर ले इहाँ आलू छिने बर खड़े हन का जी ? हमन ल बेवकूफ गँवार समझथस का ? चल पाछू कोती लाइन लग।
,,,'आय बर पाछू अउ खाय बर आघू',,,तोरे असन ल कीथे डेड़ हुसियारी,,,इहाँ नइ चले तोर डाँक्टिरी गिरी। रिखी राम के दमकरहा आवाज संग पाछू डहन ले अउ दू-चार झन मुड़पेलवा मनके आवाज आय लागिस।
तीर मा खड़े एक-दू झन सियान मन टोकिन बरजिन अउ दमकाइन कि,,,अरे मूरख हो तुमन ला थोरको छोटे-बड़े के लिहाज नइहे,,,तुँहर अक्कल मा पथरा परगे हे का? या पैरा- भूषा खाय बर चल दे हे।निच्चट बइला बुद्धि हो जहू का?,,,अरे भई कोनो भी डाँक्टर, मास्टर, अधिकारी, कर्मचारी के हिजगा नइ करे जाय। ईखर कतको काम रिथे, जनता के सेवक होथें,,, ईखर बर लाइन लगाना अच्छा बात नोहय।ईखर समय बड़ा कीमती होथे।कुछु भी बोले के पहिली बने ढंग के सोच ले करव,,कहिके जुन्ना सियान मन समझाय लागिन।
फेर मूरख मनला कतका समझाबे।ज्ञानिक ल ज्ञान मारे पखरा ल टाकी,मूरख ल का मारे पखरा अउ लाठी,,,,अकडू मन सियान मनके बात ल अपेल दीन। थोरको धियान नइ दीन ऊपर से चिल्लाय लागिन। आज के लइका मन बर,,, जुन्ना सियान मन कोन खेत के ढेला बरोबर होगे हें।
डाँक्टर सेवक राम हँसमुख मिलनसार सीधा-साधा सज्जन आदमी रिहिस,फालतू छाप बकवास करना वोला थोरको पसंद नइ आय।फेर कहिथे न खोजइया मन चंदा मा घलो दाग खोज लेथें,,,राम मा घलो दोष देख लेथें अउ कृष्ण मा घलो लांछन लगा देथें,,,त फेर ये सेऊक राम कोन खेत के मूली ये।
जब ले सेऊक राम के दवाखाना के शोर चारोमुड़ा बगरिस तब ले कईझन कामचोर जलनहा कयराहा मन के छाती फाटगे।अपने-अपन, अपने तेल मा चुरे लागिन। खुद तो दाई ददा मन के ऊपर बोझ बनके ऊखर छाती मा मूंग दरत रिहिन अउ दूसर बर खाँचा कोड़त राहँय।
रात दिन डाँक्टर ल गिराय के कोशिश मा कुछ मनखे मन अतका गिरगें रिहिन कि झगरा बर नान-नान ओखी खोजत राहँय।कोनो सीरियस मरीज अस्पताल लावत-लावत पहुँच के मर जाय त फोकटे-फोकट बदनाम करँय।येमा कईझन माछी हँकइया खोद्दा डाँक्टर मन घलो शामिल रिहिन।
एक इस्तरी (आयरन) चलइया धोबी के बेटा अतका बड़े डाँक्टर बनगे,,,अनदेखना जलकुकड़ा मन के आँखी फूटगे।अउ इही जलकुकड़ा गैंग के सरदार रिहिस रिखी राम उठमिलवा।
सब के जोर-जोर से आवाज ल सुनिस त दू-झन ड्यूटी मा तैनात फौजी मन दउँड़त आइन अउ रिखी राम ल रोसियावत देख के डाँक्टर ल पाछू कोती लाइन लगे बर ईशारा करिन।
डाँक्टर सेऊक राम लाइन मा लगे सोंचे लागिस,,,,, येमा तो कम से कम घंटा डेड़ घंटा लगी जही,,,एकेठन बूथ हे चलो कोई बात नहीं फेर सीरियस मरीज आ जही त का होही? फेर मोबाइल घलो अस्पताल मा छूटे हे,इहाँ लाना मनाही हे। येती मतदान घलो एक यज्ञ बरोबर आय ,,,ये प्रजातंत्र के हवन कुंड मा हम सबके आहूति जरुरी हे।
चलो ठीक हे! भगवान ये मनला एकदिन सद्बुद्धि जरुर दिही। फेर समझ नइ आय,,, एक डाँक्टर बर हिजगा पारी करथें,,अतका संवेदनहीन अउ मूरख कइसे होगे मनखे,,,,अगर आदमी सहीं-गलत,नियाव-अनियाव मा फरक नइ कर पाहीं त अइसने मा भविष्य भयावह हो जही। धरम,करम,सेवा,उपकार सब धीरे-धीरे नँदा जही।
मने-मन डाँक्टर सोंचत जाय,,, अउ जइसे-जइसे लाइन आघू बढ़य अपनो तिल-तिल खिसकत जाय।
,,,,चलो एक घंटा तो गुजरगे,,,अब दस पन्द्रह झन के बाद मोरो पारी आ जही,, काहत मन ल संतोष करत माथा के पछीना पोछे लागिस।
कोनो ल जब अपन बात में समर्थन मिल जथे त वो फूले नइ समाय अपन आप ल बहुत बड़े लीडर समझथे।रिखी राम उठमिलवा अपन कउँवा मितान मन संग वोट डार के दांत निपोरत,,, मेछा अईठत,,,विजयी मेघनाद बरोबर अकड़त बाहर निकलगे।
दूसर बर खाँचा खनइया खुद गड्डा मा झपाथे ये बात आज घलो सोला आना सच हे। कुछ देर बाद रिखी राम उठमिलवा बइहा पागल बरोबर चिल्लावत मतदान केन्द्र डाहन पल्ला भागत आवत राहय। एकझन बेटा सोनू आज अस्पताल मा परे सेप-सेप करत हे,,आँखी मा चंदरजोत लगगे हे,,,जेने डाँक्टर ल बइरी मानिस वोखरे अस्पताल मा तड़फत परे हे।
देखइया मन बताइन,,,, बिजली के खंबा मा फटफटी सुद्धा टकराय हे त मूड़ सइघोजर फूटे हे,मरहम पट्टी करे के बाद घलो लहू रिसत हे,,कम्पोटर मन कतका चेत करँय,,,डाँक्टर तो इहाँ वोट डारे बर लाइन लगे हे। मोबाइल घलो घर मा छूटे हे।जेन टूरा मन वोला धरके अस्पताल लानिन तेनो मन छोड़ के फरार होगें।एक-दू झन टूरा मन बताइन कि सोनू एजेंट बने हे रातभर अपन सँगवारी मन संग घर-घर दारू बांटे हे। रात दिन के उसनिंदा कतेक ल सइही,,,,झपागे।
सोनू के हालत ल देख के रिखी राम के जीव छटाक भर होय राहय,,,बइहा बरन होय अपन आप ल दुत्कारत, कोषत, हँफरत जाय अउ बड़बड़ावत जाय,,,,,
नहीं!,,, नहीं!,,,मोर सोनू ल कुछ नइ होय!
अउ हो जही त,,,,,,
नहीं! नहीं,,,,सारी दुनिया मोला हत्यारा कइही,,,बेटा के हत्यारा बाप कइही,,,मोर मुँहु मा खखार के थूंकहीं,,, धिक्कारहीं ।
नहीं! नहीं!मोर गलती के सजा मोर बेटा ल झन देबे भोलेनाथ,,,सियान मन सही काहत रिहिन मही बनमानुख नइ मानेंव,,अगर आज डाँक्टर अस्पताल मा होतिस त मोर बेटा के हालत अतका नाजुक नइ होतिस।घंटा भर ले बेहूश परे हे,येखर बर मैं जुम्मेवार हँव।येमा डाँक्टर के कोनो गलती नइहे,,, वोला तो लाइन मा लगे बर मही मूरख करमछंडा मजबूर करे हँव,,
,,,,, आज तो मँय अपने गोड़ मा कुल्हाड़ी मार डरे हँव,,,मोर बर चारोंमुड़ा अँधियार होगे,,,,
नहीं! नहीं! सोनू तोला कुछ नइ होय बेटा,,,काहत अपटत गिरत मतदान केन्द्र डाहन गिस अउ डाँक्टर के पाँव तरी घोलंडगे।
,,,,मोर बेटा ल बचा ले डाँक्टर साहेब,,,मोर बेटा तड़फत हे डाँक्टर साहेब,,,,मोला माफी दे दे डाँक्टर साहेब,,,जल्दी चलव नइ तो मोर बेटा नइ बाँचही डाँक्टर साहेब काहत भारी गिड़गिड़ाय लागिस।
डाँक्टर लाइन कोती ल देखिस त बस दू झन के बाद पारी आगे रिहिस।एक नजर घड़ी कोती देखिस अउ एक नजर रिखी राम कोती देखिस,,,,,,तुरंत फटफटी म रिखी राम ल बइठार के फौरन अस्पताल पहुँचिस फेर का करबे,,,,,,तब तक सोनू के प्राण पखेरू उड़गे राहय।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी गंडई
जिला केसीजी छत्तीसगढ़
9977533375
समीक्षा---
पोखनलाल जायसवाल:
मनखे जेकर मन म कखरो बर सहयोग के भाव नइ राहय। अइसन मनखे ल कखरो समय के कीमत अउ ओकर करतब(कर्तव्य) के मरम के पता नइ राहय। या रहिथे त अपन आप ल होशियार समझत उन ल नीचा दिखाय के उदिम करथे। जुबान म लगाम नइ राखय अउ अनाप-सनाप बोलत रहिथे। सियान मन के बरजई अउ सियानी गोठ ले उन ल कोनो फरक नइ परय। कहूॅं दू-चार झन अपेलहा सॅंघर गे तब तो अउ फालतू च मान।
अइसने अपेलहा मन के नादानी कब, कइसे अउ कतेक भारी अलहन के कारण हो सकथे? एकर आरो देवत कहानी आय - हिजगा-पारी।
पढ़े-लिखे अउ गुणवान मनखे कभू अइसन हिजगाहा अउ अपेलहा लोगन ले बाॅंचे के उदिम करथे। उन मन सफाई देवत विवाद/झगरा-झांसी ले बचना चाहथें। कलेचुप बुता निपटाय के कोशिश करथें। फेर अबुझ मनखे तो आगी लगाय के जतन करत रहिथे। चुनाव घरी तो इॅंकर बुद्धि ह बिनाश करे बर बरेंडी म चढ़े रहिथे। आगू देखे न पाछू , बस बुता बिगाड़ना हे। सज्जन मन के मान-सनमान ले कोनो मतलब नइ। जलनहा अउ कइराहा मनखे मन इही बेरा के अगोरा रहिथे। मन के भड़ास ससन भर कोनो बहाना ले सुनाय ले चुकय नहीं। सिरिफ बिगाड़े के सुध रहिथे। जबकि सज्जन मनखे सदा दिन सब के भला करे के सोंचथे। मन सफ्फा रहिथे। इही सफ्फा मन के सेवाभावी डॉ. सेवक गाॅंव ले पलायन नइ करिन। फेर दू-चार झन रइबे करथे जेन ल कखरो सीधापन घलव नइ भाय। दूसर के मीन-मेख देखे के चक्कर म घर के लइका के लाइन रद्दा के सुध नइ रहय।
रिखीराम के संग इही होइस। जवान लइका शराब के चंगुल म फॅंस चुनावी सीजन म दारू बाॅंटत उसनिंदा के चलत खंभा म झपागिस।
एती डार के चूके बेंदरा सही रिखी पछताय लगिस। अब पछताय का होही, जब चिरई चुगगे खेत।
कहानी के भाषा शैली अनुपम हे। प्रवाह अइसे हे कि पाठक ले कहानी पूरा पढ़वा लेथे। हाना-मुहावरा के गजब प्रयोग। संवाद ऑंखी म फोटू खींचत जीवंत लगत हे। कहानीकार पात्र मन के मुताबिक संवाद लिखे म सफल हें।
" हमन घंटा भर ले इहाॅं आलू छिने बर खड़े हन का जी? हमन ल बेवकूफ गॅंवार समझथस का? चल पाछू कोती लाइन लग।"
एकर अलावा घलव अउ कतको संवाद हें।
कहानी म लेखकीय प्रवेश उॅंकर लेखन कौशल के आरो देवत हे। इही कौशल कहानी ल नवा उॅंचास देथे।
समाज हित म लगे मनखे अउ उॅंकर समय के महत्तम बतावत संदेशपरक कहानी बर कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू जी ल हार्दिक शुभकामना।
००००
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
No comments:
Post a Comment