धोबी के कुकुर न घर के न घाट के
रतनपुर के राज खानदान म एक ले बढ़के एक प्रतापी राजा होइन । राजा के संगे संग रानी के घला सुरक्षा बेवस्था मजबूत रहय । अइसने एक काल म एक झिन रानी के सुरक्षा म दरोगा लगे रहय । रानी के नजदीकी होय के कारन दरोगा के अबड़ दबदबा रहय । ओकर हुकुम के पालन बर मनखे मन , राजाज्ञा कस जी जान लगा देवय । ओकरो सरी बूता हा फोकट म हो जाय ।
उही समे के बात आय । रतनपुर म एक झिन लच्छू नाव के धोबी रिहिस । राजमहल के सरी मइलहा कपड़ा ला धोय के जुम्मेवारी ओकरे रिहिस । लच्छू धोबी तिर एक ठिन गदहा अऊ कुकुर रिहिस । धोबी हा गदहा के उपर महल के कपड़ा लाद के तरिया लेगे । काँचे कपड़ा ला तरिया पार म सुखाये बर बगरा देवय जेकर रखवारी कुकुर करय । कुकुर ला धोबी हा अपन संग म राजमहल तक रोज लेगे तब रानी हा राजमहल के जूठा ला धोबी के कुकुर बर पोटली बना के दे देवय । कुकुर हा राजसी भोजन ला तरिया पार म सुखावत कपड़ा तिर बइठके छक के खा डरय । रोज रोज के हाड़ा गोड़ा मछरी कोतरी खा खाके कुकुर हा मोटागे रहय । दरोगा के घर के कपड़ा ला घला लच्छू धोबी हा रनिवास कस बड़ इज्जत से रोज लेगय अऊ धो सुखाके असतरी करके सांझ तक अमरा देवय ।
एक दिन बिहिनिया ले लच्छू धोबी हा जइसे कपड़ा लाने बर रनिवास गिस तइसने पता चलिस के रनिवास म चोरी होगे । रानी के बहुत अकन गहना गूठा हा गायब रहय । राजमहल म हड़कम्प मातगे रहय । धोबी हा अंगना म धोवाये बर बाहिर निकले कपड़ा ला कलेचुप धरके निकले लगिस तइसने म , रानी हा धोबी ला देख परिस तहन , अपन नावा लुगरा ला भितरि ले निकालत धोबी ला विशेष हिदायत देवत किहिस के , येला धियान से धोबे । येमा रातकुन साग के फोरी गिरगे , रसा चुचुवागे अऊ दाग लगगे । धोबी हा मुड़ी हलावत लुगरा ला लपेट के अलग से धरिस अऊ गदहा म लादके कुकुर संग तरिया कोती सुटुर सुटुर मसक दिस । जावत जावत दरोगा घर झांकत गिस त , दरोगा के घर म तारा संकरी लगे पइस । ओ दिन जादा कपड़ा नइ रहय । तरिया पहुंचके धोबी हा कपड़ा ला गदहा के पीठ ले उतारके पार म मढ़हा दिस अऊ मुखारी घसरत रनिवास म होय चोरी के बात ला दूसर घाट म नहवइया गाँव के अपन संगवारी मन ला बताये लगिस ।
धोबी के कुकुर हा रोज के राजसी जूठा खाये मारे टकरहा रिहिस । ओ दिन रनिवास ले कुछु नइ मिले रिहीस । तभे कुकुर के नजर हा पोटली म परिस । ओहा पोटली ला सूंघिस । ओकर नाक म बोकरा मांस के गंध खुसरगे । मालिक हा दे बर भुलागे होही सोंच के कुकुर हा पोटली ला छोर डरिस । नानुक हाड़ा लटके रहय । ओला हेरत ईंचत रानी के नावा लुगरा फरफर ले चिरागे । तब तक मुहुँ कान धोके धोबी पहुँचगे । कुकुर के हरकत देख धोबी तिर मुड़ी पीटे अऊ करम ठठाये के अलावा कुछ नइ बाँचिस । एक तो रनिवास म उही दिन चोरी होय रहय उपर ले रानी के नावा लुगरा चिरागे ....... धोबी हा अवइया परिणाम के कल्पना ला सोंच सोंच के जोर जोर से रोय लगिस । कुकुर ला कोटेला कोटेला अतका छरिस के कुकुर खोरवा होगे ।
सांझकुन कपड़ा धरके धोबी हा रनिवास पहुँचिस तब ओला पता चलिस के , रानी के गहना गूठा के चोरइया मिलगे । रनिवास के दरोगा हा चोरी करे रहय । भागे के तइयारी म पकड़ागे । राजा हा बहुत दयालु रहय । फेर अइसन चोर हा समाज के दुश्मन आय कहिके , दरोगा ला राज के सरी सुभित्ता ले पाँच बछर बर वंचित कर दिस । घर भितरि कपड़ा अमराये बर पहुँचे , धुक पुक धुक पुक करत लच्छू हा , अंगना म बइठे रानी ला देखते साठ , रानी के डंडासरन होगे । बहुत मुश्किल ले किस्सा सुना सकिस अऊ अपन गलती ला घला आसानी ले स्वीकार करत , अपन नान नान नोनी बाबू के जिनगी के दुहाई देवत , रानी तिर माफी उपर माफी के याचना करे लगिस । धोबी के काँपत देंहें , थरथरावत जबान अऊ धारे धार बोहावत आँसू ला देख सुन , रानी के हिरदे पसीजगे । वइसे भी रानी हा अपन चोरी गे गहना गूठा के वापिस मिले ले खुश रहय । ओहा तुरते धोबी ला माफ कर दिस । रानी हा बहुतेच घुस्सेलहिन रिहिस तेकर सेती , धोबी हा कल्पना नइ करे रिहिस के ,आज ओकर जीव बाँचही । मने मन भगवान ला धन्यवाद देवत अऊ रानी के प्रणाम करत धोबी हा अपन घर आगे । फेर कुकुर ला अपन घर म खुसरन नइ दिस ।
चोट्टा दरोगा हा रानी के बहुतेच नजदीकी रिहिस तेकर सेती , राज भर म ओकर बहुतेच दबदबा रिहिस । फेर चोरी पकड़ाये अऊ दंड पाये के पाछू , ओकर मान सन्मान एकदमेच गिरगे । सामाजिक बहिस्कार के सेती ओकर घर के नौकर मन काम छोंड़ दिस । नाऊ हा साँवर बनाये बर मना कर दिस । रऊत छोंड़ दिस । पहटनिन हा गोबर कचरा करे बर मना कर दिस । धोबी हा कपड़ा काँचे ले इंकार कर दिस । गाँव म कन्हो बइठ घला नइ कहय । दरोगा हा एक कनिक के लालच म , अपन सरी इज्जत ला खो डरिस । जेकर तिर जातिस तिही दुतकारतिस ।गाँव के सियान मन लीम चौंरा म बइठके पासा खेलय त , दरोगा ला चौंरा म जगा तक नइ मिलय । बपरा हा टुकुर टुकुर देखत ताकत रहय ।
देखते देखत चौमासा आगे ।अपन बलबूता म , पहिली घाँव खेती कमावत दरोगा के रगड़ा टूटगे । फोकट के खाये मारे टकराहा दरोगा के देंहें , चार महिना म हाड़ा हाड़ा होगे । खेती किसानी के समे नहाके के पाछू , राम बाँड़ा के तिर , कन्हो के पुछे के आस म सियान मनके मुहुँ ताकत , धीरे धीरे रेंगत जावत दरोगा ला , गाँव के कतको झन चिन नइ सकिन । पाके चुंदी , बाढ़हे डाढ़ही अऊ मइलहा ढिल्लम ढोल्लो कपड़ा म , पातर दुबर जुन्ना दरोगा ला देख , कुछ मन ओला मंगइया भिखारी समझिन । ओला देखके दूसर चौंरा म खजवात बइठे धोबी के खोरवा खर्रू कुकुर तको , भुँकत ओकरे कोती दऊँड़े बर धर लिस । है है घुच घुच .. कहत .... जुन्ना दरोगा हा हांथ म धरे कुबरी लउड़ी ले कुकुर ला हुदेरे लगिस । तब ओकर अवाज सुन लोगन ला पता चलिस के , येहा जुन्ना दरोगा आय । ओकर नहाकते साठ , गाँव के मनखे मन आपस म , जुन्ना दरोगा म चारे छै महिना म आये अंतर के बारे म गोठियाये लगिन । तभे लइका मन के ढेला ले आहत काँय काँय करत खर्रू कुकुर ला देख गाँव के एक झिन सियान कहे लगिस - न कन्हो पारा म पूछय .. न गाँव म ... त अइसन हालत तो होनाच हे । बिलकुल धोबी के कुकुर कस होगे हे , जेहा आजो कभू घर के दुवारी म लुहुर टुपुर करत रहिथे ... कभू घाट म पुछी हलावत प्रेम के आस म ताकत रहिथे । खाना तो दूर बलकी दू टेम्पा ये घर म पाथे त चार ओ घर म ... । का करबे भइया ..... करनी के फल ला तो इहीच जनम म भोगेच ला परथे गा ।
अपन करम दंड ला भोगइया अनपुछना बहिस्कृत त्याज्य मनखे बर , धोबी के कुकुर न घर के न घाट के ..... जनता के मुखार बिंद ले आजो घला मौका मौका म सुने बर मिल जथे ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा
No comments:
Post a Comment