Sunday, 9 June 2024

भाव पल्लवन* धन हाबय थोड़ी, गाय लेववँ ते घोड़ी

 *भाव पल्लवन*



धन हाबय थोड़ी, गाय लेववँ ते घोड़ी

---------------------------------------

कहे गे हे--मनखे के मन के गति अपरम्पार होथे। महाभारत मा यक्ष अउ युधिष्ठिर के प्रसंग आथे जेमा यक्ष हा प्रश्न पूछथे के--सबले तेज गति काकर होथे तब युधिष्ठिर हा उत्तर देवत कहिथे के--सबले तेज गति मन के होथे।

   ये  मन हा अतका चंचल होथे के कभू पल भर थिरबाँव नइ राहय,हरदम एती-वोती दँउड़ते रहिथे।कभू पल मा धरती ला नाप लेही ता, कभू सात समुंदर ला नहाक के सरग ला अमरे ला धर लेही।कभू जिनगी के भूतकाल मा भटकत रहिथे ता कभू रंग-रंग के सपना देखत भविष्य बर आनी-बानी के जाल बुनत रहिथे। 

   मन के एही चंचलता हा मनुष्य ला चिंता अउ तनाव के भँवरजाल मा तको बूड़ो देथे। मनेच के करनी आय जेन मनखे ला चौबट्टा मा लाके खड़ा कर देथे जेकर ले अइसे असमंजस हो जथे के सोचें ला पर जथे--कती जाँव ,कती नहीं।

   मन हा बहुतेच ललचाहा तको होथे। एला खाँव ता वोला छोंड़ँव,एला सकेलवँ ता वोला रपोटँव--इही उधेड़बुन मा दिन-रात लगे रहिथे। धन-दोगानी बर तो एकर लार चुचुवावत रहिथे। 

   मनखे के मन हा बैपारी तको होथे। एला एक गाँठ हरदी मा दुकानदारी करत देर नइ लागय। पइसा जादा राहय ते कम ये हा किसिम-किसिम के योजना बनाये मा उलझेच रहिथे । पइसा कम हे ता गाय लेववँ या फेर घोड़ी लेववँ---का लेना ठीक होही---कामा जादा फायदा मिलही --इही तरकना करत परेशान होवत रइथे अउ कुछु सही निर्णय नइ ले पावय।

     मन के अइसनहे चाल-चलन हा दुख के कारण होथे। एकर ले उबरे बर--मन रूपी सरपट दँउड़त घोड़ा मा लगाम लगाये बर --योग अउ ध्यान ला उपाय बताये जाथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

 हथबंद,छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment