नौतप्पा म धरती नइ तिपय त का होथे ?
दू दिन मूसा कातरा, दू दिन टिड्ढी ताव।
दू दिन पाछू जल हरय, दू विषधर दू वाव।।
माने नौटप्पा म पहिली दू दिन तक धरती म गरमी (लू) नइ चलय, त धरती म अब्बड़ मुसुवा अउ फसल ल नुकसान करइया कीरा- मकोरा (कातरा) बाड़ जथे। अगला दू दिन तक गरमी नइ परय, त टिड्ढी, फांफा अउ पतंगा मन के अंडा ह नाश नइ होवय अउ बुखार लवइया जीवाणु- कीटाणु मन नइ मरय। अगला दू दिन तक गरमी नइ होवय, त सांप- बिच्छी, जहरीला जीव-जंतु मन अब्बड़ पनपथे अउ ककरो काबू म नइ आवय। अगला दू दिन तक गरमी नइ होय ले अँधउर गरेर आथे, पानी टिपकथे। जेकर ले अवइया बरस म दुकाल परे के संभावना रइथे।
अशोक धीवर "जलक्षत्री"
( पेंटर, मूर्तिकार अउ साहित्यकार /छंद साधक )
तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
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