*छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कोदूराम 'दलित' के 55 वीं पुण्यतिथि मा सादर नमन...हेमलाल सहारे
*दलित जी के 'छन्नर-छन्नर पैरी बाजय' में ग्राम्य जनजीवन के चित्रण*
छत्तीसगढ़ी साहित्य के गिरधर कविराय के रूप में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, लेखक, जनकवि कोदूराम दलित के साहित्य जगत म बिसेस महत्व हवय। उँखर छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी के पद्य-गद्य में बरोबर पकड़ रिहिस। दलित जी हिन्दी के छन्द में छत्तीसगढ़ी कविता लिखय। उँखर कविता मन हा गाँधीवादी विचारधारा ले प्रेरित रहय। हास्य-व्यंग्य घलो बनेच रहय। कवि सम्मेलन मन म अपन इहि विशिष्ट शैली ले लोगन मन ल जागरूक करत अब्बड़ मनोरंजक करय। दलित जी के कविता में देशप्रेम भाव, जनजागरण,प्रकति चित्रण, नीतिपरख, समाज सुधार, समाजोपयोगी, मानवतावादी, अउ प्रगतिशील नजरिया के घलो दर्शन होय। येखर सेती दलित जी ल जनकवि के नाव घलो मिले रिहिस।
दलित जी अपन कलम ले लगभग 800 कविता रच के साहित्य संसार के कोठी ल भरे के उदिम करीस। आज 55 वीं पुण्यतिथि म उँखर कविता संग्रह के किताब "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" के सुरता करत मोर आदरांजलि देवत हों। ये किताब ल संपादक नंदकिशोर तिवारी जी अउ गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के स्वत्वाधिकार म सन 2007 म प्रकाशित होय हे। ये किताब म समाज सुधार,देशप्रेम भावना के संगे-संग किसान-मजदूर के पीरा ल कहत अपन अधिकार बर जगात, मद्यपान निषेध, राष्ट्रीय तिहार, भारतमाता ल आजादी करे बर गोहार अउ खादी ग्रामोद्योग के कविता मन प्रमुख हवय। ये किताब के कविता मन हमर ग्राम्य जनजीवन के चित्रण ले भरे हे। दलित जी के विचार ल ये किताब के 32 ठन कविता ल पढ़के जाने जा सकत हे। कवि के लगभग सबो भाव ये कविता संग्रह में आगे हवय। येला पढ़के साहित्य प्रेमी मन बिना सहराये नई रह सकय।
दलित जी शिक्षण काम के जुड़े के सेती सबो झन बर शिक्षा के चिंता करना स्वभाविक बात आय। अनिवार्य शिक्षा के महत्व ल बतात उँखर पहली कविता 'अनिवार्य सिक्छा' में जम्मो लइका मन के शाला भेजे बर किहिस-
"पढ़े लिखे बर जाव-गुन सीखे बर जाव,
पढ़ लिख के भईया! बने नाम ल कमाव।"
लइका मन के चिंता के पीछू सियान मन के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम बर बने चेतावत घलो कहत हे-
"रतिहा आठ बजे आ जाहू, साढ़े नौ के छुट्टी पाहू।
आए बर झन करौ कोताही, बिगर बलाए आना चाही।"
हमर समाज बर अभी सबके बड़े बुराई हवे त ओ हरे मंद-मउँहा के पियई। दलित जी ह येला रोके अउ जनमानस ल येकर के बचे के प्रयास बर लिखिस। येहा घर, परिवार, समाज अउ देश ल नुकसान करथे। पियईया मन ल फटकारत किहिस-
"पियइ में तोर लगे आगी, जर जाय तोर ये जिनगानी।
पीथस निपोर तैं ढकर-ढकर, ये सरहा मौहा के पानी।"
सहकारिता अपनाय बर कवि के लेखनी कम नई चले हे। सबो झन ल सहकारिता लाय बर सहयोग करे के जरूरत हवय। सबो मिलके हमर देश के बेकारी, भुखमरी अउ गरीबी ल दूर करे के संकेत देवत हे-
"हम्मन भिड़बो तो भारत में,लाबो स्वर्ग उतार।
सहकारिता हमर देस के, कर देही उद्धार।"
दलित जी के देशप्रेम 'भारत ला बैकुण्ठ बनाबो' कविता में साफ-साफ दिखत हे। गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होय के भाव देखव-
"अवतारी गाँधी जी आइन,
जप-तप करिन सुराज देवाइन।
हमर देस ल हमर बनाइन,
सुग्घर रसदा घलो देखाइन।"
दलित जी के लिखे के शुरुआत 1926 ले 1967 तक सरलग होईस हे। शुरुवाती के समय स्वतंत्रता संग्राम मचे रहय। त ओकर प्रभाव कविता में आनाच हे। उन स्वतंत्रता सेनानी मन ल अपन कविता म जगह देवत उँखर प्रशंसा करीस। 'भगवान तिलक' कविता में बाल गंगाधर तिलक जी के सुघ्घर बखान करे हे-
"है पावन जेकर तिलक नाव,
हम कस न परीं ओकरेच पाँव।"
ग्रामीण जनजीवन के सउँहत चित्रण उँखर कविता 'हम सुग्घर गाँव बनाबो' में दिखथे। संग मा ग्रामीण परिवेश के साफ-सफाई,वृक्षारोपण, समानता के भाव, पंचायती-राज, खेती-खार के गोठबात सहज, सरल शैली में केहे हे-
"घर कुरिया अउ गली खोर मन ला,
साफ रखत हम जाबो।
हवा-अँजोर निंगे खातिर,
घर-घर खिरकी लगवाबो।"
"बस्ती के बहिरी-भितरी रुख,
राई खूब लगाबो।
नवा ढंग मा खेती करबो,
गजब अन्न उपजाबो।"
स्वतंत्रता आंदोलन के समय उपजे वर्गभेद, ऊंच-नीच, छुआछूत जईसन घातक कुरीति मन ला दलित जी अपन कलम ले निशाना साधत हरिजन मन बर मंगलकारी-जन हितकारी सुराज ला सामाजिक समता के अचूक उपाय बताईस-
"गांधी बबा सब्बो झन खातिर,
लाये हवय सुराज।
ओकर प्रिय हरिजन मन ला,
अपनाना परही आज।"
अपन कविता '15 अगस्त के सुराजी परब' में अमीर-गरीब के बीच वर्ग-संघर्ष ल मार्मिक ढंग के चित्रित करीस कि कईसे स्वतंत्रता के सुराज सिर्फ बड़े मन बर आईस हे, छोटे वर्ग तो आज घलो आर्थिक कमजोरी, बेकारी, गरीबी ले जुझते हवय-
"कइसे सुराजी परब ला मनाई,
नइ हे गा घर मा एकोठन पाई।
पंदरा अगस्ते के होही देवारी,
चमकीही दाऊ के महाल-अटारी।
हमर घर में रहि घुप-अँधियारी,
जरजा गरीबी, तँय मर जा बुजारी।
पोनी अउर तेल,का में बिसाई,
नइ हे गा घर में एकोठन पाई।"
छत्तीसगढ़ी गीत के राजा ददरिया के राग में 'बापू जी' कविता में गाँधीजी जी के सत्य, अहिंसा, हरिजन उद्धार अउ आजादी बर करे कठिन संघर्ष के बानगी देखे के लईक हवे-
"हमला पढ़ाये अहिनसा के पाठ,
छेरी-बघवा-ला पानी पिलाये एके घाट।"
कविता 'भारत माता से' सवैया छंद में अंग्रेज मन के गुलामी में जकड़े हमर भारतमाता ला ये कहके भरोसा देवात हवे, कि हमन सब झन मिलके तोला ये फिरंगी मन के मुक्त करा लेबो दाई, अउ वो मन का कइसनो करके इन्हां ले खेदार के ही सांस लेबो-
"अब रो मत भारत माता कभू,
हम बंधन-मुक्त कराबोन तोला।
अंगरेज के संग,करे बर जंग,
करे हन राजी इहाँ के सबो ला।"
देश के आजादी के लड़ई लड़े बर दलित जी ह गांव के मजदूर और किसानों मन ला जगाके अंग्रेज मन ले दू-दू हाथ करे बर तैयार करे हे-
"आजादी खातिर लड़ना हे,
जागो मजूर जागो किसान।
गोरा-ला खूब कुचरना हे,
जागो मजूर जागो किसान।"
इंकर संग जवान मन ल घलो आजादी के लड़ई बर चेत करे ल किहिस। आलसीपन ल छोड़व अउ देश बर आघू आवव-
"हे नव भारत के तरुण वीर,
ये भीम,भगीरथ, महावीर।
झन भुला अपन पुरूसारथ बल,
खँडहर मा रच अब रंग महल।"
आजादी बर किसान, मजदूर, जवान मन ला जगाये के बाद सत्याग्रह करे के तैयारी उँखर 'सत्याग्रह' कविता में दिखत हवे। गाँधी जी के बात मानके उँखर रद्दा धरबो-
"अब हम सत्याग्रह करबो,
कसो कसौटी-मा अउ देखो।
हम्मन खरा उतरबो,
अब हम सत्याग्रह करबो...."
लकर-धकर देश के आजादी होय के बाद घलो बैरी- दुश्मन मन पीछू नई छोड़िन। देश के दुश्मन जेमन कश्मीर में घुसपैठ के कोशिश करिन ओमन ला मार भगाये के बात कवि ह 'बंडवा हुंडरा' में केहे हे। अउ घनाक्षरी छंद के माध्यम के चीनी आक्रमण करईया मन ल घलो धमकाईन हे-
"दौड़ो-पकड़ो, मारो खेदारो सँगी हो,
बंडवा हुंडरा-मन हमर देस मां आइन हे।"
"अरे बेसरम चीन! समझे रेहेन तोला,
परोसी के नता-मां अपन बंद-भाई रे।"
पाकिस्तानी आक्रमण बर वीर सिपाही मन ला जोश दिलाये के काम उँखर 'आव्हान' कविता में हवय। अपन मातृभूमि के रक्षा बर बैरी मन ले लड़े बर बंदूक, बम, तोप, तलवार जइसन हथियार उठाये के अब समय आ गेहे। स्वतंत्रता संग्राम के समय सिपाही के आम जनता ला मारना एकोकनी अच्छा नई लगे, येकर सेती ओहा 'झन मार सिपाही' में बड़ा करूणा भरे शब्द में कथे-
"झन मार सिपाही, हमला झन मार सिपाही।
एक्के महतारी के हम-तैं, पूत आन रे भाई।"
दलित जी मूलतः गांधीवादी विचार ले प्रेरित कवि रिहिस। उँखर कविताओं में सत्य, अहिंसा के साथ खादी ग्रामोद्योग के बात तको हे, 'फगुवा अउ फगनी के गोठ' में देवारी तिहार म सबो झन बर स्वदेशी खादी भंडार ले खादी के कपड़ा-लत्ता लेय बर केहे हे। 'तकली' कविता में जम्मो झन ला तकली चलावत आलस्य छोड़के कर्मठ बने के सुझाव दिस। 'सूत कातिहौं वो दाई' में लइका अपन महतारी ले चरखा और तकली लेय बर कहत हवय।
'खादी के टोपी' कविता में आजादी के बाद सबो झन ला खादी के टोपी पहने ल कहत खादी के महिमा अउ खादी ग्रामोद्योग ला बढ़ावा देय के सफल उदिन करे हे-
"पहिनो खादी टोपी भइया!
अब तो तुम्हरे राज हे।
खादी के उज्जर टोपी ये,
गाँधी जी के ताज हे।"
किसान-मजदूर के भुखमरी बर तो दलित जी हा भगवान ला घलो नई छोड़िस। 'न्यायी भगवान' कविता में गरीब मनके लाचारी, बड़े वर्ग द्वारा शोषण के सेती दलित जी हा भगवान के स्वरूप बर प्रश्नचिह्न घलो लगा दिन। इहि दलित जी के प्रगतिवादी कवि होय के प्रमाण आय-
"धन-धन रे न्यायी भगवान,
कहाँ हवय तोर आँखी-कान।
नइये ककरो सुरता-चेत,
देव आस के भूत-परेत।"
गुरु के महिमा, भक्ति, त्याग अउ समर्पण के भाव मनखे के जीवन संवर जथे। अपन लोक-परलोक ल सुधारे बर रत्नावली के फटकार हा तुलसीदास जी ला सत के रद्दा धरा दिस। कविता 'तुलसी भगवान तभे पाइस' में गुरु के महिमा ल बतात केहे हवय-
."पहिली सद्गुरु जी चरण धरिस।
ओकर सेवा दिन-रात करिस।
विदया सीखिस, दस-पांच बरिस।
गुरु ग्यान भरिस, अग्यान हरिस।
मन मंदिर में अँजोर लाइस।
तुलसी,भगवान तभे पाइस।"
दलित जी छत्तीसगढ़ी के संगे-संग हिन्दी के घलो बेजोड़ कवि रिहिन। दूनो भाषा में कवि के समान अधिकार रहय। हिन्दी के देवनागरी लिपि बर उँखर लिखे कविता हिन्दी प्रेम ला स्पष्ट करत हे-
" येकर मान करय सब जनता,
हिन्दी अउर अहिन्दी,
ये जान्हवी बनिस अउ बनगें,
सब भासा कालिन्दी,
बोलंय ये भासा-ला मदरासी,
बंगाली सिंधी,
बनिस रास्ट्रभासा हमार,
हम सबके प्यारी हिन्दी।"
छत्तीसगढ़ के कण-कण ले परिचित होय के सेती उँखर कविता में छत्तीसगढ़ के हर रंग, रूप, संस्कृति, खान-पान, लोक व्यवहार के दर्शन जरूर होथे। छत्तीसगढ़ के कई ठन भाजी में खेड़ा भाजी प्रसिद्ध हवे। येला जरी भाजी घलो कहिथे। ये हमर शरीर बर कतका उपयोगी हवे, दलित जी बतात हे-
"जो चुचुर-चुचुर के खावे।
तन-बदन मस्त हो जावे।
वो हार कभू न माने।
कखरो से भिड़े अभेड़ा।
ये छत्तीसगढ़ के खेंडा।"
छत्तीसगढ़ के किसानी जनजीवन ला सबसे ज्यादा छूये के जतन दलित जी हा अपन रचना में करे हे, किसान पुत्र दलित जी स्वयं बालपन ले ही सबो किसानी काम-काज ला नजदीकी से देखत आय हे, तेकर सेती ओकर रचना मन में किसानी जनजीवन के बारीकी ले चित्रण होय हे। 'हम किसान' कविता के पंक्ति में किसानी काम के कतिक सुंदर चित्रण करे हे-
"चल नांगर सरर-सरर,
खेत चीर चरर-चरर,
छिड़के हन बीज-भात,
छरर-छरर, झरर-झरर।"
किसानी के चार महीना के कठिन परिश्रम के पीछू फसल कटई के समय सबसे ज्यादा आनंददायक होथे। किसान के मेहनत अब बगबग के दिखे ल लगथे। गांव के सभी सँगी-साथी के संग मिलके, ये पुण्य काम के शुरुआत ले आखिरी करथे। धान लुवाई कराये बर अपन-अपन खेत में जादा मनखे जाये के मोह बने रइथे। जेकर ले धान कटई के बुता जल्दी पूरा हो जाये। इहि में लोगन मन के बीच आपसी मनुहार देखते बनथे-
"चल संगवारी,चल संगवारिन,
धान लुए ला जाई।
मातिस धान लुवाई अड़बड़,
मातिस धान लुवाई।"
फसल कटई के समय मोटियारी अउ नवा बहुरिया के तैयारी अउ उँखर संगी-सहेली के साथ हँसी-मजाक के दृश्य सजीव हो उठथे। दलित जी के लेखनी के जादू के ये गीत अमर होगे हे-
"पाटी पारे मांग सँवारे,
हँसिया खोंच कमर मा।
जाँय खेत मोटियारी जम्मों,
तारा दे के घर मा।"
"छन्नर-छन्नर पैरी बाजय,
खन्नर-खन्नर चूरी।
हाँसत, कुलकत,मटकत रेंगय,
बेलबेलहीन टूरी।"
"छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" कविता संग्रह में आखिरी कविता के रुप में 'चउमास' का वर्णन मिलथे। चउमास अर्थात बरसात के चार महीना के चित्रण करे गेहे। चारों दिशा में फईले हरियाली हरे-भरे फसल,पेड़-पौधा ला देखके मन प्रफुल्लित हो जथे। ग्रामीण संस्कृति में जइसे-जइसे घटना-घटित होत जाथे, वइसे-वइसे उँखर रूप के चित्रण बड़ सुघ्घर ढंग ले करे हवय-
"घाम दिन गइस, अइस बरखा के दिन।
सनन-सनन चले पवन लहरिया।
छाये रथे अगास-मां चारों खूँट धुँआ साहीं।
बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।
चमकय बिजली गरजे घन घेरी-बेरी।
बरसे मुसरधार पानी छर-छरिया।
भरगें खाई खोंधरा, कुवाँ, डोली-डांगर 'औ'
टिप-टिप ले भरगें-नदी नरवा तरिया।"
अईसन ढंग के जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के कविता संग्रह "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" में शामिल जम्मो कविता मन में तत्कालीन स्थिति, स्वतंत्रता संग्राम, गांधीवादी विचारधारा, सहकारिता, प्रकृति चित्रण, ग्रामीण जनजीवन, समाज-सुधार, खादी ग्रामोद्योग, सत्य-अहिंसा, किसान-मजदूर के मेहनत उँखर पीरा अउ संघर्ष पुरजोर तरीका के केहे गे हवे। ये संग्रह में वर्तमान समय के स्थिति के घलो चित्रण होय हे। ये कविता संग्रह में कवि के समय के सामाजिक ,राजनीतिक स्थिति, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों, आंदोलन कारी महिला मन के चित्रण का होना जरूरी लगत रिहिस। तिहंक ले ये कविता संग्रह सराहनीय हवे। आज घलो दलित जी के कविता संग्रह "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" सहृदय सबो वर्ग के पाठक मन बर पठनीय हे। येमें शामिल कविता मन वर्तमान स्थिति में घलो प्रासंगिक हवे।
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगांव
No comments:
Post a Comment