कहानी-आरूग फूल
चन्द्रहास साहू
मो 8120578897
"दुरगा !''
"...ये बेटी दुरगा ! आतो नोनी...... आना बेटी ! झन बिटोये कर ओ ! नहा खोर ले...।''
गोमती हा अपन पांच बच्छर के बेटी ला आरो करिस।
"......नही दाई अब्बड़ उंघासी लागत हावे ओ ! बिहनिया ले नाहहू तब अब्बड़ जाड़ घला लागही दाई।
सात बच्छर के दुरगा हा किहिस।
"आज देबी दुरगा पूजा करे ला जाबो ना बेटी !''
गोमती के गोठ ला जइसे सुनिस दुरगा हा उठगे अऊ तरिया ले नहा खोर के आगे। लइका मन ला सियान ले जादा उछाह रहिथे पूजा पाठ के। दुरगा ला कभू बिलम नइ होइस तब आज कइसे होही। ओहा तो जम्मो संगी संगवारी मन ला जुरियाये। अपन बाबू कका मन ला उठाये। बारी के आरुग फूल ला टोरके थारी ला सजाके देबी दुरगा पूजा करे ला चल दिस नोनी दुरगा अऊ संगी मन।
कुंवार महिना चौमासा के झरती अऊ जाड़ के समाती। दू घरी के जुरियाव अगास हा चांदी के चद्दर ओढ़े हावय अऊ ओमा लकलकावत हावय चंदा चंदेनी। कुंवार अऊ चइत इही दुनो महिना मा भगवान सौहत ये भुंइयां मा उतर जाये रहिथे सुख शान्ति बाटे बर,मया अऊ दुलार बाटे बर। जम्मो मइनखे अपन मनौती मनावत हावय। जम्मो शक्ति पीठ मा जोत बरत हावय मया के, उछाह के,आस के अऊ बिसवास के। गांव-गांव मा देबी बिराजे हावय।
सरद्धा अऊ बिसवास हा माटी,पथरा के मुरती मा जान डार देथे। सुम्मत के चिन्हा संग उछाह के चिन्हारी आये हमर गांव के देबी हा। गांव भर के मन नौ दिन अरचना करथे।
" ......दाई उठना ओ।''
आज नोनी दुरगा हा अपन दाई ला उठावत किहिस। गोमती थोकिन कुसमुसाइस अऊ घड़ी ला देखिस।
"अभिन सुत जा बेटी ! अभिन तो तीन बजे हावे। पहाही ताहन उठा दिहू।''
गोमती जमहावत किहिस। दुरगा के अंतस मा अब्बड़ उछाह रहिथे । काबर नइ रही....? आज दुरगा अस्टमी रिहिस। अब्बड बुता रिहिस। गोठियावत बतावत तब कभु सुतत पहागे रात हा। दुरगा हा नहाइस अऊ फूल टोरत किहिस।
"पीवरी कनेर फूल भगवान किसन जी मा,दसमत हा दुरगा देवी मा अऊ फुड़हर हा शिव जी मा चढ़थे।''
नानकून लइका अतका सुघ्घर गोठ गोठियावत हावय। गोमती आज अपन बेटी के मुँहू ला देखे लागिस ।
"दाई ये फूल के भाग जब्बर आये। इही फूल मा माता हा अपन सिंगार करथे। दाई दुरगा के माथ मा चढ़थे गोड़ ला चुमथे अऊ छाती मा मया पाथे। अपन ममहई ले जम्मो दुनिया ला पबित्तर कर डारथे। अपन आनी- बानी के रंग ले जम्मो के मन मोहो डारथे इही फूल हा। चवरासी लाख योनी मा मानुस चोला ला सुघ्घर कहिथे फेर मानुस हा तो इरखा मा बुड़े रहिथे, अनीत करथे। काबर करथे दाई अइसने........?''
दुरगा पुछथे।
गोमती हड़बड़ा गिस ओहा तो अपन नान्हे लइका के गोठ ला सुनके अचरज मा पड़ जाथे। अइसन गोठ तो जोगी बैरागी मन गोठियाथे।
"मोर बेटी...!''
गोमती अपन लइका के माथ ला चुमके विदा करथे दुरगा दाई के पूजा करे बर। गोमती घर दुवार ला लिपत - लिपत सुरता मा बूड़ जाथे।
ओ दिन जब गोमती के एकोझन लइका नइ रिहिस अब्बड़ पूजा-पाठ,तीरथ-बरत करे। जोत -जेवारा बइठारे। आज घलो रिहिस दुरगा अष्टमी । पूजा-पाठ उपास धास के फल पाये के दिन,देबी रूप मा बिराजे नौ कन्या भोज। शीतला दाई के सोला सिंगार होवत रिहिस। आज गाँव के दाऊ हा अपन नतनीन मन ला बलाइस । ओखर गोड़ धोइस। गोड़ मा माहूर लगाइस। काजर आंजिस। मुहरंगी फीता अऊ चुन्नी लगाके लइकामन ला देबी बना डारिस। पटइल घला अपन नतनीन ला बलाइस। गांव मा इही दूनो के तो चलथे। जम्मो कोई आठ झन होइस नोनीमन।
"एकझन नोनी ला अऊ लानव।''
दाऊ किहिस।
ऑखी लाल लाल। मइलाहा कुरता, चिरहा फराक पहिने। गोड़ मा घांव अऊ ओ घांव मा माछी भनकत पीप....।
"छी छी .....कोन घवही टूरी आगे रे ? कोन हरे येहॉ ?''
दाऊ खिसियावत किहिस तीन बच्छर के नोनी ला बइठे देखके।
"कोन जन दाऊ कोन आए ते ? ये गॉव मा ऐ नोनी ला कभू नइ देखे रेहे हन....?''
दाऊ अतकी ला सुनिस ते ओखर रिस तरवा मा चढ़गे अऊ ओखर हाथ हा लइका के बाहा मा जमगे । चेचकार के उठाइस।
"जा तोर बुता नोहे येहॉ कोनो दुवारी मा मांगबे अऊ खाबे ।''
खिसियावत किहिस दाऊ हा। जौन जगा लइका के घांव रिहिस अऊ लाग गे। लहू के धार फुटगे। लइका रोये लागिस अऊ किहिस
"महू दुध भात खाहू। महू हा सोहारी खाहू.....महू हा सोहारी खाहू.....।''
लइका रोये लागिस।
"बाचही तभे तो बोजवाहू रे टूरी ! जास नहीं आने कोती।''
अब पटइल हा चेचकारे लागिस अऊ खिसिया के किहिस। छोटे दाऊ के नतनीन ला बइठारिस तब नौ झन देवी होइस नोनी मन। दाऊ ,पटइल संग जम्मो गांव के मन नौ कन्याभोज करवाइस उछाह संग अब्बड भक्ति भाव मा बुड़ के। पूजा करिस अऊ आसीस लिन।
लइका हरे ते का होइस। वहु हा तो मानुस आए अतका बेज्जती मा कोन ठाढ़े रही ? छिन भर नइ रूकिस अऊ कोलकी कोती रेंग दिस। गोमती जम्मो ला देखत रिहिस। छाती मा मया पलपलाये लागिस गोमती के। ओ लइका ला अपन घर लेगिस गोमती हा। गोड़ हाथ ला धोइस घांव मा मलहम पट्टी करिस। गोड़ मा माहूर लगाइस अऊ लाली चुन्नी डारके देवी बना दिस। दूध भात सोहारी खवाइस पूजा अरचना के पाछू । लइका हा अइसे खाये लागिस जइसे जनम भरके लांघन हे। हाथ मुँहू ला धोवाइस अऊ जम्मो देवी के बिदा करिस फेर ये लइका कहान्चो नइ गिस। कांहा जाही बपरी हा अभी....? न कोनो पता....न कोनो ठिकाना....?
"का नाव हावे बेटी ! कोन गांव रहिथस तेहॉ ?
गोमती पुछिस। फेर लइका कुछू नइ किहिस। मुचले मुचका दिस। गोमती हा लइका ला खटिया मा सुता दिस। गोमती घर के आने बुता करे लागिस। लइका हा आज गोमती घर सुरताये लागिस । सुरूजनारायेन बुड़ती मा गिस अऊ सांझ ले रात होगे।
बिहनियां ले देखिस गोमती हा ।
"कहाँ चल दिस लइका हा...?''
बिहनियां ले देखिस ओ खटिया ला जेनमा लइका सुते रिहिस, नइ रिहिस। बारी.बखरी,दुवार.अंगना,जम्मो ला खोजे लागिस फेर नइ मिलिस लइका हा। गोमती संसो करे लागिस।
गोमती हा सुरता करे लागिस रात के सपना के। धमतरी के बिलई माता गोमती के घर आये रिहिन अऊ गोमती ला आसीस दिस देबी हा। बस अतकी तो देखे रिहिस गोमती हा सपना मा अऊ आगू के सुरता नइ आइस। गोमती हा इही ला गुनत-गुनत गली खोर बखरी बारी ला एक परत देख डारिस ।
"कहान्चो गेये होही ते आ जाही ।''
फुसफुसाइस अऊ कथरी चद्दर ला उरसाये लागिस गोमती हा ।
"ये दाई येहॉ का हरे ..?''
गोमती के मुँहू ले अचरज ले निकलगे। चद्दर मा तोपाये जिनिस ला देखे लागिस।
आरूग फूल दसमत के। एक दो ...तीन....नौ ठन आरूग फूल । कोन जन कहां ले आइस ते ये आरूग फूल हा। लइका हा टोर के तो नइ मढ़ा दे होही.......? सौहत देवी हा तो फूल बनगे का.....? कहां ले आये ये फूल ..... विश्वास अऊ अंधविश्वास के फेर मा नइ परिस भलुक गोमती उछाह मा कूदे लागिस। मुचकाये लागिस। हांसे लागिस अऊ हाँसत मुचकावत ऑखी ले ऑसू के धार फूटगें। गोमती गुने लागिस। ओखर घर मा बइठिस सुतिस तेन हा देवी आए कि कोनो गरीबीन टुरी आवय । कोनो राहय ? आस्था मा कोनो सवाल नही अऊ विज्ञान मा कोनो उत्तर नही .....? फेर रातकुन के सपना......., सपना मा बिलई माता के आसीस......., सपना होवय कि सिरतोन देबी होवय की मइनखे काखरो आसीस अबिरथा नइ जावय!
गोमती जान डारिस देबी हा तो कोनो बरन मा आ जाथे। अऊ देबी दरस बर कोनो मंदिर के डेरउठी ला खुंदे ला नइ परे भलुक नान्हे लइका हा तो देबी के बरन आवय जेखर मन मा कोनो छल कपट अऊ इरखा नइ राहय। ओखरे सेवा कर अऊ मान दे...। गोमती अपन गुने लागिस।
सिरतोन गोमती के आस पुरा होगे। बिंध्यवासिनी के आसीस अबिरथा जाही का ? नही ..। दाई ला एक दरी आरो लगाये ला परथे दाई के किरपा तो जम्मो परानी ऊपर रहिथे।
बच्छर भर नइ बितन पाइस गोमती के कोरा भरगे। गोमती ला दुरगा मिलगे तब ओखर गोसाइयां ला फूल बरोबर बेटी मिलिस।
"दाई......दाई....!''
नोनी दुरगा के आरो ला सुनिस तब गोमती हा सुरता ले उबरिस। ये दे दाई परसाद दुरगा अपन दाई अऊ ददा ला परसाद दिस। दुनो कोई उछाह अऊ श्रद्धा ले परसाद ला झोकिस अऊ किहिस ।
"जय विंध्यवासिनी मॉ !''
"जय बिलई माता !''
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चन्द्रहास साहू
द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब के पास
श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़
493773
मो. 8120578897
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समीक्षा
पोखनलाल जायसवाल: *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवता रमन्ते।*
अर्थात् जिहाँ नारी मन के पूजा होथे, उहाँ देवता मन के वास होथे, या देवता मन विचरण करथें। अइसन हमर भारतीय संस्कृति म मानता हे। अइसन बिसवास हे। अउ देखब म घलो आथे कि जिहाँ नारी मन के मान-सम्मान होथे, उहाँ कोनो किसम के बाधा-बिपत नइ आय। एकर मतलब होथे कि उहाँ देव कृपा जरूर बरसथे। देव कृपा तभे बरसही जब देवता मन उहाँ रइहीं। इही कारण होही कि लक्ष्मी, सरस्वती अउ दुर्गा के पूजा करे के चलन बनिस होही। नारी लक्ष्मी रूप म धन-धान्य, सरस्वती रूप म ज्ञान अउ दुर्गा रूप म शक्ति दे के मनखे के जम्मो दुख पीरा हरथें। धन, बुद्धि अउ शक्ति जिहाँ सकेला जथे उहाँ कोनो किसम के बाधा के टिक नइ पावय। इँकरे असीस ले मनखे के जिनगी म खुशहाली आथे।
नारी मन के हिरदे ममता के गहिर सागर ए, जउन ल नापे नइ जा सकय। ममता के धार उलचे नइ उलचाय। लइका ल सिरिफ लइका मानथे, अपन-बिरान नइ चिह्ने, सबो ल मया लुटाथे। दूसर कोती पुरुष के गोठ करन त उँकर हिरदे पखरा होथे। पझरे जानय न रोये बर जानय। निच्चट पथरा हिरदे के होथें पुरुष मन। पद अउ पैसा कहूँ होगे त अउ जब्बर कठोर बन जथे। घर परिवार ले बाहिर के दुख-पीरा अउ मजबूरी ल समझ के नासमझ बनथे। तभे तो दाऊ अउ रसूखदार मन कहिथें-- "जा तोर बुता नोहे येहा,कोनो दुवारी म माँगबे अउ खाबे।"
अउ बाँचे खोंचे कसर ल पूरा करत पटइल ह हुरसे सहीं कहिथे- "बाँचही तभे तो बोजवाहूँ रे टूरी! जास नहीं आने कोती।"
वाह रे! सभ्य समाज के अगुवा हो...। वहू ल नौ कन्या के भोज के पावन बेरा म अइसन दुत्कार... वहू ल एक नव कन्या ल...। उहें दूसर कोती गोमती उही नोनी ल बने नहवा-खोरा के ओकर भूख मिटाथे। इही तो आय भगवान के लीला अउ करतब। एक के हिरदे ल मया ले भर दे हे अउ दूसर के हिरदे.... अइसन काबर भगवान जाने... अउ पुरुष जात...। फेर नारी धरती सहीं सब ल अपन हिरदे म जघा देथे। अपन -बिरान नइ चिह्ने। अपन हिरदे म सागर सहीं सब ल समोवत रहिथे।
आज समाज म पुरुष के चलती हे। नारीमन पुरुष प्रधान समाज म डर-डर के जीथें। घर-परिवार चाहे मइके होय ते ससुरार दूनो जघा मुँह नइ उलाय सकँय। अपन ममता के बलि चढ़ावत अपन कोख भीतरी नोनी ल मारे बर तियार हो जथे। रोजेच चार आँसू रोथे।फेर मुँह नइ उलाँय। वाह रे नारी... तभे तो लिखे गे हे "हाय अबला! तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।"
तइहा के मनखे मन नोनी जनम होय ले लक्ष्मी आय हे कहि के नारी के पूरा सम्मान करँय। फेर आज विज्ञान के जुग म लोगन मानवता ल ताक म रख सरी हद ल पार कर डरे हे। पता चलतेच साठ कोख भीतर नारी ल मुरकेट डरथे।
चंद्रहास साहू जी संस्कृति अउ परम्परा के बहाना तथाकथित सभ्य समाज ल बढ़िया संदेश दे के कोशिश करे हें। बेटा-बेटी म दुवाभेदी के गहिर खाई म गिरत समाज ल चिंतन के अवसर दे हे। आज नवरात्र म नौ कन्या भोज के बेरा म गाँव म नौ झन कन्या खोजे ल परत हे, संसो के बात आय। अइसन काबर? ए समाज ल सोचे ल परही।
आरूग फूल कहानी एक मनोवैज्ञानिक पक्ष ल समोय कहानी कहे जा सकत हे। ए कहानी म आस्था अउ विज्ञान के सुग्घर समन्वय दिखथे। इही समन्वय म मनोविज्ञान समाय हे। विज्ञान के मानना हे कि नारी विशेष हार्मोन के कमी के चलत महतारी सुख ले वंचित रहि जथे। अउ हार्मोनल ग्रंथि मन एक प्रेरण ले सक्रिय हो जथे। वइसने आस्था के पक्षधर समाज के मानता हे कि देवी माँ सब के अरजी ल सुनथे, कभू कोनो ल निराश नइ करय। असीस जरूर देथे। एकर परछो घलो देथे। गोमती ल लइका के मिलना अउचले जाय म सपना आना उही प्रेरण अउ परछो आय जउन ओला महतारी सुख पहुँचाथे। मनखे चाहे जेन समझय फेर अतका तो माने ल परही कि समाज नर अउ नारी बिगन आघू नइ बढ़य।
कहर-महर महकत फूल जइसे सरी दुनिया ल महकाथे, वइसने गोमती के अँगना म खिले फूल ओकर जिनगी ल महकावत हे। आनी-बानी बरन फूल मन ल हरसाथे, वइसने हमर संस्कृति अउ परम्परा के जम्मो फूल जिनगी म नवा उछाह भरथे। खुशहाली के नवा रस्ता गढ़थे।
सुग्घर भाषाशैली संग छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ परम्परा म पगाय कहानी 'आरूग फूल' बर कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल अंतस् ले बधाई💐💐
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला- बलौदाबाजार छग.
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