बेरा के बात//
अंधविश्वास के जुआ...
बिन गुने-बिचारे ककरो भी बात ल या कोनो किताब के लेखा ल आंखी मूंद के पतिया लेना ह जिनगी बर जुआ बरोबर हो जाथे. ए अंखमुंदा मनई के रद्दा म पढ़े लिखे लोगन ल घलो अभरत देखेब म आथे. फेर एकर जादा चलागन कमती पढ़े अउ निचट निरक्षर मन म जादा देखे बर मिलथे. एमा आस्था एक अइसन रद्दा आय, जेमा एकर सबले जादा बढ़वार देखब म आथे.
तंत्र मंत्र, जादू टोना, बिलई के रद्दा कटई जइसन कतकों किसम के टोटका मन सब एकरे अलग अलग रूप आय. मोला सुरता हे, जब हमन लइका राहन, गाँव म पढ़त राहन, त देवारी तिहार बखत जुआ म जीते खातिर किसम किसम के उपई करन. हमर मनले दू चार बछर के आगर लइका मन जइसन कहि देवंय, तइसन करन.
देवारी आए के पंदरहीच आगू ले जुआ म जीते के जोखा मढ़ाए लागन. किसम किसम के टोटका करन. फेर अब समझ म आथे के वो सब कतका निरर्थक रिहिसे. सबले पहिली बात तो ए के देवारी म जुआ के खेलइच ह कोनो किसम के संहराय के लाइक बात नोहय, लइका ले लेके सियान तक इहिच काहंय के जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छूछू बन जबे. घर के सियान मन घलो हमन ल समझाए ल छोड़ के ये अंधविश्वास के आगी म घी डारे के बुता करंय. भले उन अइसन ठट्ठा मढ़ा के मजा ले खातिर कहि देवत रिहिन होहीं, फेर एकरे चलते देवारी जइसन मयारुक तिहार म गाँव गाँव म जुआ अड्डा के रूप धर लेथे. लोगन अपन संगी संगवारी, रिश्ता नता संग मेल भेंट करे ले छोड़के जुआ चित्ती म बूड़े रहिथे. हार हुरा के घर परिवार म कलह करथे तेन अलगेच. कतकों झन तो एकर चक्कर म पुरखौती चीज बस ल घलो बोर डारथें. जीवन भर बर जुआड़ी अउ वोकर संग म शराबी घलो लहुट जाथें.
अइसन अंधविश्वास के जुआ ले न सिरिफ बांचना जरूरी हे, भलुक लोगन ल घलोक बंचाना जरूरी हे. देवारी के दिन जुआ नई खेलहू त न छूछू बनव न मुसवा, ए सब बिरथा के बात आय. मनखे जो भी बनथे अपन सत्करम के सेती बनथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
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