ग्रामीण अर्थशास्त्र मा छत्तीसगढ़ के नारी के भूमिका-हेमलाल सहारे
हमर छत्तीसगढ़ मा सबले जादा खेती-किसानी के बुता होथे। अउ खेती-किसानी के करईया मन घलो जादा हे। छत्तीसगढ़ के सबो अर्थव्यवस्था हा खेती-किसानी मा ही टिके हवय। मने ग्रामीण अर्थशास्त्र मा खेती-किसानी के महत्व सबले बढ़के हवय। ग्रामीण अर्थशास्त्र ला सजोर बनाके रखे हवय, इंहा के नारी मन हा। इंकर बिना पुरूष मन कोई अर्थ वाले बुता ला कर नई सकय। हमर छत्तीसगढ़ ला 'धान के कटोरा' कथे तेहा इंकरे मेहनत, लगन, चेत के परिणाम आय। भले पुरूष मन कतको कूद-कूद के कहय।
सामान्य रूप मा अर्थशास्त्र के बारे मा केहे जाथे कि वस्तु अउ सेवा के उत्पादन, वितरण, विनिमय अउ उपभोग के अध्ययन हरे। मने धन के बारे मा अध्ययन। येमें हमर छत्तीसगढ़ के महतारी, बहिनी मन पूरा खरे उतरे हवय। हमर ग्रामीण क्षेत्र मा धन के उत्पादन, वितरण, विनिमय अउ उपभोग करके अपन अउ अपन परिवार के आर्थिक स्थिति ला मजबूत करे में बड़का योगदान हवय। ग्रामीण अर्थशास्त्र के धुरी छत्तीसगढ़ के नारी मन हवय येमा कोई अतिश्योक्ति नई होही।
छत्तीसगढ़ के नारी मन बिहने ले उठके जम्मो बुता ला करथे, पुरुष मन के उठे के पहली रांध-गढ़के सुभीता हो जाय रथे। पढ़ईया लोग-लइका ला बिहनिया के नहवा-खोरा, खवा-पिया के तैयार करके अपन खेती-किसानी नहिते अउ दूसर काम बर खुद तैयार होके समय मा निकल जथे। अतिक बुता हा केहे मा एककनी लगथे फेर करईया मन ही जानही, कि ओमन कतिक जल्दी-जल्दी सबो काम-बुता ला समय मा कर डारथे। फेर शुरू होथे अर्थशास्त्र के सबो कोना मा जाके, घर के आर्थिक पक्ष ला मजबूत करे के उँखर सबले बड़े योगदान हा।
किसानी के दिन-बादर ले शुरू करथन ल देखे ल मिलथे कि खेत के डीपरा मन ल खन के बरोबर करना, गड्डा मन ल माटी में भरना, कांटा-खूंटी ल बाहर के जलाना, कांद-दूबी ला निकालना अउ खातू बगराना। फेर धान बोय बर खेत अब तैयार होथे। अतिक बुता हा सिर्फ नारी मन के बस के हवे, कोई पुरुष मन अईसन काम ला नई करे ला धरे। करत होही उँखर संख्या नहीं के बतौर हे। अतिक बुता मा कतिक पैसा बांच जथे, ये नारी मन ही जानही। अभी टेक्टर के आये के नारी मन के नांगर धरई कम होईस हे, नहिते यहु बुता ला पुरूष के बरोबर करत रिहिसे। फेर निंदई के बेरा तो पुरुष मन मोला नींदे ल नई आवय कहिके, मुही पार ल देख के अपन पाप ल काटते। धान के संगे-संग कतको फसल के कतई में नारी मन नई जाही ते कामे नई होवय। सबो बोहा जाही। धान निंदई अउ फसल के कटई में सबके जादा नारी मन के योगदान रइथे।
चार महिना के खेती-किसानी के बाद दूसर काम मा घलो पैसा कमाये अउ बचाये के उदिम मा लगे रइथे। कई झन नारी मन कपड़ा सिलाई अउ कढ़ाई के बुता सीखे रइथे, ओमन हर देवारी, मेला-मड़ई, बर-बिहाव के आत ले कपड़ा सिलाई-कढ़ाई के काम मा रम जाथे अउ बनेच पैसा कमा लेथे। कई झन दीदी मन अचार, मुरब्बा, कैंडी बनाये के बुता करथे अउ बेचथे। घर के साग-भाजी के पैसा बचाये बर रखिया, तुमा, मुरई के बरी, सेमी, भांटा, आलू के खुला अउ पापड़, मुरकु घलो बनाये के काम करथे। ग्रामीण क्षेत्र मा कतको भाजी मन के खुला करके रखे रहिथे, येहा अर्थव्यवस्था के समय-समय मे संतुलन के काम आथे। घर के सियान एक हप्ता बाजार नई जाही तभो ले घर मा साग चुरही। काबर कि नारी महतारी मन पहली ले व्यवस्था करके रखे हवय।
अब तो गाँव-गाँव मा नल लगत हवे। नल के पानी के कइसे उपयोग करना हे, वोला घर के महिला मन बढ़िया जानथे। नल के पानी भरे के बाद बखरी मा बनाये अपन नान्हे सब्जी-बाड़ी में पानी देवत रथे। अउ अपन रसोई बर धनिया, मेथी, मुरई, लाल भाजी, पालक भाजी, चेंच भाजी,पटवा भाजी, बंगाला, मिर्ची लगाए रथे। इहि बाड़ी के सब्जी हर कई बाजार के पैसा ला बचा डारथे।
अर्थशास्त्र के विनिमय के अंतर्गत गाँव मा आज घलो चना के बदला रहेर, लाखड़ी के बदला गेहूँ, उरीद के बदला मूंग, तीली के बदला कुल्थी, पतला हरुना धान के बदला पतला माई धान, कुम्हड़ा के बदला कांदा, कोचई के बदला जिमी कांदा, मीठा आमा के बदला चटनी वाले आमा अउ काम बुता बर घलो धान लुवईया के बदला भारा बँधईया जइसे काम नारी मन के सेती होवत रथे। येकर ले एक दूसर के सहयोग तो होथेच जरूरी चीज मन घलो आ जथे। जेकर ले अर्थशास्त्र बने रथे।
गरमी के दिन मा जंगल के वनोपज मन के आये के बेरा हो जथे। वनोपज के संग्रह मा घलो नारी मन ही प्रमुख रूप के भीड़े रहिथे। हर्रा, बेहरा, आँवला, करण, नीम, कुसुम, परसा फूल-बीजा, धंवई फूल, तेंदू पत्ता-फर, चार-चिरौंजी, पेम फर, महुआ, गुल्ली, आमा, परसा लाख, अमली बीजा, चिरई जाम सकेले बर लगे रथे अउ बाजार मा बेच के घर के जरूरी चीज मन ला लेथे। गाँव के अर्थशास्त्र अईसने काम म अब्बड़ मजबूत रथे। येमन सब बिना पैसा के सिर्फ चिभिक लगा कि कमाये ले मिलथे। अउ अईसन काम मा नारी मन पीछू नई हे।
वनोपज के संगे-संग सरकारी काम-काज मा घलो अघवाय रहिथे। रोजगार गारंटी योजना के काम, सड़क काम, नवा बिल्डिंग काम, पुल-पुलिया के काम, वन-विभाग के काम, मंडी के काम मा घलो नारी मन के प्रमुख भूमिका रथे। इंकर काम ले मिले पैसा ले अपन घर के जरूरत के समान लेके परिवार के आर्थिक सहयोग करत रथे।
आज तो जतिक स्कूल हावे, ओतिक में अधिकतर महिला समूह वाले दीदी मन मध्यान्ह भोजन के संचालन करत हवे, अउ लाभ कमावत हे। स्कूल के अधिकतर रसोइया मन नारी मन हवे। गाँव मा कई ठन समूह वाले काम चलत हवे। अगरबत्ती बनाना, कपड़ा बुनना, रेडी-टू-ईट फूड, पतरी-दोना बनाना, गोठान में गोबर लेना, सब्जी फॉर्म, वर्मी कम्पोस्ट खातू बनाना जइसे काम करत अपन घर के खर्चा चलावत हवे। ये काम मा नारी मन के ही प्रमुख योगदान हवे।
अब तो कहनचो के बाजार रहय, महतारी-दाई मन पुरुष मन के बरोबरी करत पसरा लगाए साग-भाजी बेचत रथे। सब्जी के फॉर्म ले बाजार तक उँखर पहुँच होगे हे। छोटे गाँव अउ कस्बा ले-लेके बड़े शहर के हरेक दुकान मा हमर बहिनी मन सामान लेत-देत देखे जावत हे। मने अब आधा बाजार में नारी मन के जगह बन गेहे। अईसने सरकारी कार्यालय मा घलो चपरासी, रोजगार सहायक, सचिव, पटवारी, पुलिस, बैंक, स्कूल, रेलवे, पोस्ट ऑफिस ले-लेके कलेक्टर तक नारी मन काम करत छत्तीसगढ़ के अर्थशास्त्र मा अपन भूमिका निभावत हे।
कुल मिलाके कहन ता हमर छत्तीसगढ़ राज ल आर्थिक रूप मा आघू बढ़ाये बर, अपन घर-परिवार के स्थिति ला मजबूत करे बर छत्तीसगढ़ के नारी मन के सबले जादा योगदान हवे। इंकरे मेहनत, लगन अउ अपन-आप ल आर्थिक रूप मा सबल बनाये के उदिम हरे कि हमर छत्तीसगढ़ राज अब विकास के रद्दा मा आघू डाहर रेंगत हे।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।
हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के जय हो...🙏
हेमलाल सहारे
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