भाव पल्लवन--
घर म नाग देव, भिंभोरा पूजे ल जाय।
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मनखे के जिनगी मा कतका भटकाव भरे परे हे,गुने मा बड़ अचरज होथे। पूजा करे बर--आशिर्वाद पाये बर घर मा नागदेवता हे तेला नइ जान के व्यर्थ मा खेत खार मा भिंभोरा खोजत बइहा-भुतहा कस घूमत रहिथे। नागदेवता हा एक प्रकार ले उदाहरण आय, असली बात तो मनखे के भटकाव ला फोरियाना आय।वो कभू माया के पिछू परे रहिथे ता कभू मायापति के पिछू।ए चक्कर मा वोकर हालत कस्तुरी मिरगा कस हो जथे। कहे गे हे के--
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी-घटी राम हैं दुनिया जानत नाँहि॥
वो हा सुख ला --आनंद ला ,देवता-धामी ला,भगवान ला नाना प्रकार के अंटा-टंटा मा,टोना-टोटका मा एती-वोती खोजत रहिथे। जबकि असली आनंद तो वोकरे तीर मा--वोकर हिरदे के खजाना मा--आत्मा मा भराये रथे। वोहा अज्ञानता मा परके वोला टमड़ के नइ देखय।भगवान के निवास स्थान तो आत्मा ला बताये गेहे।अइसे भी ईश्वर के सत्ता कण-कण मा हाबय। मनखे हा अपन एही आत्मज्ञान ला जगालिस त वोला पल भर मा तको पा सकथे। भटके के जरूरत नइ परय।संत कबीरदास जी ज्ञान के उजास फइलावत कहे हें--
मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौन क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥
इही बात ला गोस्वामी तुलसीदास कहिथें के--
सिया राम मय सब जग जानी।
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।
तीर्थ यात्रा,पूजा-पाठ सबके महत्व हे फेर कोनो चाहै ता अपने घर मा बिराजमान सब ले बड़े देवी-देवता माता-पिता के निश्छल सेवा करके जम्मों पुण्य के भागी हो सकथे। सब जीव जंतु के आत्मा मा ईश्वर के निवास मान के --सब संग अच्छा व्यवहार करके परमानंद के अनुभव कर सकथे। हर आत्मा मा परमात्मा हे।
सब घट मेरा साईंयां,सूनी सेज न कोय।
बलिहारी वा घट्ट की,जा घट परगट होय।।
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चोवाराम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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