Monday, 18 December 2023

कहानी--मौन मुक्का

 

कहानी--मौन मुक्का

                             

                                   चन्द्रहास साहू

                              मो .8120578897



गाॅंव भर मा सनसनी दउड़गे आज। डोंगरी मा लाश मिले हाबे। मोला तो जानबा नइ रिहिस फेर गोसाइन बताइस  तब जानेंव। धान बेचे ला गेये रेहेंव सोसायटी। रात दिन उहां ओड़ा ला टेकाये रहिबे तब धान बेचाही.....!

 

                      जेवन के पाछू सुतत हंव अउ गुनत हंव अब कोन मरगे रे , कोन फांसी अरो डारिस ते। कायर झन बनो रे । जीये ला सीखो । गुनत -गुनत मोला सुध आये लागिस बिसालिक के। ओखरे तो पाॅंच छे दिन ले आरो नइ हावय। पचपन साठ बच्छर के किसान मोर संग पढ़े हावय। पांचवी मा फेल होगे अउ पढ़ई छोड़ दिस। हमजोली हावय तभो ले मोला कका कहिथे।

"ठाकुर घर के बइला बनके कब तक कमाबे बिसालिक ! नानमुन कोनो करा भुइयां बिसा लेतेस ।''

" हमन जूठा खवइया आन मालिक ! भगवान हमर हाथ के डाढ़ मा अइसने लिखे हावय । ओखर बिना पत्ता नइ हाले। कब देखही हमर कोती ला ते ?''

 मोर गोठ ला सुनके काहय बिसालिक हा संसो करत। जम्मो ला सुरता करत हंव।

                     आज बिसालिक अब्बड़ उछाह मा रिहिस । ओखर संग गाॅंव के आने किसान मन घला रिहिन। जेन ला जुटहा काहय तौन मन आज मालिक बनत हावय। मजदूर मन  बित्ता भर भुइयां बिसा लेथे ते मालिक ला अतका झार लागथे , जइसे मेंछा के चुन्दी ला पुदक डारे हावय। आज तो सिरतोन दो पाॅंच दस अउ बारा एकड़ फारेस्ट भुइयां ला खेत बना के सरकार हा देवत हावय  एक -एक झन ला। हम पातर जंगल ला खेत बनावत हन काबर..? तुंहर विकास बर।  अब तुंहर दुवार तुंहर सरकार  हावय काबर ..? तुंहर विकास बर।  सिरमिट के जंगल बनत हावय काबर..? तुंहर विकास बर। तरिया ला पाटके स्विमिंग पुल बनावत हावन.. काबर ?  तुंहर विकास बर। वन मंत्री गरीब भूमिहीन मजदूर ला वन अधिकार पट्टा बाँटत हावय। अउ नारा लगवावत हावय।

           आज मंत्री जी  लबरा नइ रिहिस। सिरतोन मा जंगल ला काटके  चौमासा के आगू  खेत बना डारिस। चैतू बुधारू  रमतू असन मन ला किसान भूमिस्वामी बना दिस। बिसालिक ला घला पाॅंच एकड़ खेत मिलिस। 

        सिरतोन किसान के पछीना भुइयां मा चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा। भलुक पछिना अउ पानी के रंग एक्के होथे तभो ले जब सिंचाई के पानी मा पछीना मिंझरथे तब ओखर रंग हरियर हो जाथे। चारो कोती हरियर- हरियर दिखत हे। लहरावत धान बड़का -बड़का खेत चाकर मेड़, मेड़ मा राहेर अउ घपटे तिली के पौधा। आज बिसालिक के संग ओखर खेत गे रेहेंव। पोरा तिहार आय न ! धान ला चिला खवाय ला गेये रेहेंव।

"तेहां तो हाथ मार देस बिसालिक अतका धान मा कोन पोठ नइ होही..?''

"हाॅंव कका ! सब तुंहर असीस आवय।'' 

               बिसालिक के खेत ला देख के सिरतोन अकचका गेंव। काली के बंजर भुइयां मा आज अतका फसल लहरावत हे हरियर - हरियर । मेड़ के डिपरा मा छेना मा खपत आगी ला मड़ायेंन। फुलकाछ के लोटा के पानी ले आचमन करेंव। धूप दशांग अउ गुड़ के हुम देयेंव। गुड़हा चिला के नानकुन कुटका ला आगी देव मा अरपन करेंव। सिरतोन हमर कतका सुघ्घर नेग हावय।  किसान हा गभोट धान  अन्न्पूर्णा दाई ला बेटी मानके सधौरी खवाथे । 

"सदा दिन बर छाहत रहिबे अन्न्पूर्णा दाई ! अपन मया बरसाबे ओ ! कोठा कोठार अउ कोठी मा मेछरावत आबे ओ ! हमरो भाग ला जगाबे ओ !''

 अब्बड़ आसीस मांग डारेंव। पाॅंच चिला ला कुटका - कुटका करके आदर ले खेत मा परोसत केहेंव।

 "खेत तो बोये हंव कका ! फेर टोंटा के आवत ले करजा बोड़ी हो गेये हाबे ।''

"अब बड़का काया बर बड़का चददर ओढ़े ला पढ़ही भई। छुटा जाही जम्मो करजा हा।''

बिसालिक के गोठ सुनके केहेंव।

"कोन जन कका .....? तोर बहुरिया नेवनिन रिहिस तब मंगल सूत्र ला किसानी करे बर मांगेंव अउ आज ले नइ चढ़ा सकेंव। एकोदिन ठोसरा नइ मारिस गोसाइन हा फेर सगा - पहुना, बाजार -हाट,मेला-मड़ई, बर-बिहाव मा बजरहा डालडा के जेवर ला पहिरके जाथे तब लजाथे। फेर का करही..? तरी - तरी रो डारथे। मुॅॅंहू फटकार के येदे ला खाहूं नइ किहिस। अपन भुखाये रहिथे तभो ले मोला जेवन करवाथे। ओखरे सेती ये फसल ला बेंच के गोसाइन बर गुलबंद बिसाहूं कका !'' 

बिसालिक किहिस।

खेत किंजरत हंव अउ बिसालिक बतावत हावय।  कभु मुचकावत हावय तब कभु उदास हावय। चेहरा कभु झक्क ले दमक जाथे तब कभु मुरझा जाथे गरीबी अउ अभाव के गोठ करथे तब।

"फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गवां गे चारो कोना। अइसन होगे हावय कका ! थोकिन पइसा सकेलथन अउ घर मा कोनो न कोनो बुता आ जाथे सिराये बर। तीस हजार सकेले रेहेंव गोसाइन के गुलबन्द लेये बर । अबक-तबक जवइया घला रेहेंव सोनार दुकान। उदुप ले दमाद के फोन आगे। बाबू जब ले तोर बेटी हमर घर मा आये हावय तब ले हमर घर मा गरीबी के चमगेदरी उड़ावत हावय। बेटा अउ गोसाइन के जर बुखार मा मोर जैजात सिरावत हावय। आज घला मोर डेरउठी के दीया ला झन बुतावन दे बाबू। मोला पइसा दे...। दे देंव। एक दरी फेर पइसा सकेलेंव । बहुरिया हरू-गुरु होइस। छट्टी बरही , नत्ता-गोत्ता सयनहिन दाई के खात -खवई अउ टूरी के पढ़ई के फीस, जम्मो मा उरकगे फेर गुलबन्द नइ बिसा सकेंव।''

बिसालिक बतावत रिहिस अउ हमन खेत किंजरत रेहेंन। बम्बूर रुख  ला देखेंव। डोड़का के नार छिछले रिहिस। पियर फूल अउ झूलत डोड़का। टोरे लागेंव। 

"लइका मन तो बने कमावत होही बिसालिक ..? संसो झन कर सब सुघ्घर हो जाही । बहुरिया ला गुलबन्द पहिरा डारबे।''

"कोन जन कका...? टूरा मन ला पुछेस!'' बिसालिक मौन मुक्का होगे। फेर किहिस। 

"एक झन ट्रक चलाथे अउ दुसर हा गरवा चरातिस ते जादा कमातिस..। मास्टर हावय। शिक्षा मितान। दूनो के दुये हाल। ट्रक वाला ला बरजथो झन पी रे मंद महुआ। मुॅंही ला भोकवा कहिथे ।  इही तो कलजुग के अमरित आवय ददा ! तभे तो अस्पताल ला प्रावेट डॉक्टर हा चलाथे अउ सरकार हा दारू भठ्ठी ला। अब्बड़ फरजेंट गोठ-बात मा मोला चला देथे। भलुक ओखर गोसाइन लइका ला चलाये के सामरथ नइ हावय अउ एसो सरपंच बनके पंचायत ला चलाहूं कहिथे। बिसालिक बताइस अपन बड़का लइका के बारे मा।

"ले बिसालिक बने अउ समझाबे मंद महुआ ला झन पीये अइसे।''

मेंहा केहेंव। मेड़ मा जागे पटवा अउ अमारी भाजी ला टोरत हन अब दूनो झन। शिक्षा मितान  बने हावय पढ़ लिख के नान्हे टूरा हा। कमती वेतन वाला हा रेगड़ा टूटत ले कमाथे अउ जादा वाला हा मोबाइल मा गेम खेलथे स्कूल मा । अइसना बताथे लइका हा। अब्बड़ सिधवा । कइसनो होवय  लइका लोग ला पालत पोसत हावय। महीना पुट चाउर पठो देथंव । मोला लागथे इही लइका हा नाव के अंजोर करही कका ..।

बिसालिक के चेहरा दमकत रिहिस आस मा।

"कका ! सब लइका मन अब अपन - अपन खोन्दरा सिरजा डारिस। बस नान्हे नोनी के हाथ मा दू गांठ के हरदी लगा देतेंव ते मोरो कन्या दान के नेंग हो जातिस। अब्बड़ संसो रहिथे । कोनो गरीब अलवा-जलवा लइका मिलही ते बताबे कका !

"हाॅंव ।''

बिसालिक के गोठ सुनके हुंकारु देये हंव। जाम पेड़ मा छछले लट्टू कस फरे  तुमा ला टोरे के उदिम करत हंव अब अउ बिसालिक फेर बतावत हावय।

"लइका के दाइज डोली देये बर एको पइसा नइ सकेले हंव कका ! पांव पखारे बर फुलकाछ के लोटा थारी लेये हंव। भांवर बर सील अउ जोरन बर कंडरा ला  झांपी बनवाये बर केहे हंव।  ... अउ  धौरी बछिया ला घला राखे हंव। फेर सगा सोदर बरतिया घरतिया बइठे बर ठौर नइ हावय कका !''

बिसालिक बताये लागिस सुरता कर - कर के। 

''घर तो बने हावय का बिसालिक । आवास योजना मा नाव आये हे कहिके पीछू दरी बताये रेहेस।

"नाव तो आये हे कका   फेर....।'' 

दमकत चेहरा फेर बुतागे बिसालिक के ।

"का होगे ?''

"काला बताओ कका ! पहिली क़िस्त मिलिस  जुन्ना घर ला उछाह मा उझारेंन अउ ईटा पथरा के नेंव निकालेंन अउ धपोड़ दे हावन अभिन। तीन बच्छर होगे थुनिहा गड़िया के  झिल्ली - मिल्ली ला छा के गुजारा करत हावन। एसो बनाहूं कका पक्का घर चाहे सरकार पइसा देये कि नही....। मोर धरती मइयां हा मोला उबारही गरीबी ले । लइका के बिहाव हो जाही घला ।''

".... अउ  तोर गोसाइन के गुलबन्द ?''

"अब तो डोकरी होगे हाड़ा अउ मांस ला साजे के दिन नइ हे अब कका ! का गुलबंद पहिरही गोसाइन कही लिही "लबरा'', सुन लुहूं मेंहा।''

बिसालिक अब बिद्वान महात्मा बरोबर गोठियावत हावय। बोर के हरियर बटन ला मसकिस । बम्बाट पानी निकलिस । पैलगी करिस गंगा मइयां ला। मोही के धार ला बहकाइस अउ अब घर आगेंन दुनो कोई धान ला देख के उछाह मा मगन होवत।

 कुकरी अपन अंडा ला कइसे सेथे  ? पांख मा लुका के।  चियामन ला कइसे राखथे ? महतारी लइका मन ला कइसे बटोर के जतन के राखथे ?  बस वइसना जतन करत हावय बिसालिक हा अपन खेत के, धान के, परिवार के।


"जतका के धान नइ बोये हे लइका लोग ला तियाग देहे । कका ! नान्हे देवर बाबू ला पठो दे तो, खेत ले खोज के ले आनही ।''

बिसालिक के गोसाइन आवय। आज रात के जेवन के बेरा आके किहिस। मोर नान्हे टूरा हा गिस। गाॅंव के निकलती अमरा लिस । खुटूर - खुटुर ठेंगा ला बजावत ठुकुर-ठुकुर खाॅंसत बीड़ी के सुट्टा मारत आवत रहिथे बिसालिक हा रोजिना । 

बिसालिक अउ गोसाइन एक उरेर के झगरा होतिस तेखर पाछू जेवन करतिस।

           ..... अउ सिरतोन भुइयां हा अतका धान उछरिस की देखनी होगे गाॅंव भर। पटवारी हा तो क्राप कटिंग के प्रयोग घला करिस। खेत ले कोठार अमरगे। कोठार ले कोठी जवइया हावय।

          कोठार के मंझोत मा धान के रास (हुंडी)

माड़े हावय। भुर्री के करिया गोल घेरा सोनहा धान अउ बीच के करिया मोती के माला बरोबर। मोखला काॅंटा नजर डीठ ले बाॅंचे बर। काठा कलारी जम्मो । कोठार के तीर मा पैरा के पैरावट । अन्नपूर्णा दाई ला परघा के कोठी अउ ससराल पठोये के तियारी होये लागिस। 

बिसालिक के मन गमके लागिस। मोर जम्मो करजा छुटा जाही नोनी के बिहाव अउ घर...। जम्मो सुघ्घर हो जाही।

                  

                  रतिहा तीन चार बजे ले सोसायटी मा दू दिन ले ओड़ा ला टेकाये रिहिस। कतका लड़ई झगरा तना - तनी सहिस अपन कुरता अउ पगड़ी के बलि दिस । तब टोकन मिलिस। ओ तो बिसालिक के किस्मत जब्बर हावय तभे कनिहा के ओन्हा बाचिस नही ते कतको झन तो ...?

                 इंदर भगवान तो अखफुट्टा आवय सबरदिन । बोता घरी मा भोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे। अउ बिसालिक कोनो राजा  नोहे कि ओखर भाग जब्बर रही..। अउ न ही मालगुजार आवय । धान के सोनहा रास हा ताम्बई रंग के हुंडी बनगे। भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आँखी के पानी नइ अटाये हे। सुरुज नरायेन के किरपा ले सुखाइस अउ सोसायटी मा लेगगे किराया के टेक्टर मा।

"ये धान बिकने लायक नही है। सब बदरंग और पाखर हो गया है।'' 

ससन भर देखिस जम्मो धान ला अउ आँखी ला नटेरत किहिस साहब हा। मॉइश्चर मीटर ले धान के नमी घला नाप लिस। जौन हा जादा रिहिस।

"ले लेव साहब ! येहां धान भर नोहे मोर सपना आय। मोर जिनगी आय....।''

बिसालिक करेजा ला निकाल के किहिस फेर साहब तो दाऊ संग ठठ्ठा करत हावय।

 "साहब ! दाऊ के धान ला बिसा लेव वइसना मोरो....?''

साहेब कलेचुप।

"साहेब ! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा...।''

चभलावत पान के पीक ला थुकिस साहब हा। बिसालिक के गोड़ मा घलो परिस थूक हा फेर का करही ...?

दुनो हाथ जोर के अरजी करिस बिसालिक हा। फेर कलेक्टर मंत्री अउ राजधानी जाये के सुझाव दिस साहेब हा।

" का करहूं साहब  ? मोर मा अतका ताकत नइ हावय। न मेंहा खा सकंव न जानवर ला खवा सकंव।  न बेच सकंव । घुरवा मा घला फेक नइ सकंव तब करहूं ते का....? हा ....फेर जाहूं..... तेहां जिहां पठोबे तिहां जाहूं ।''

 सिरतोन करेजा निकाल के चिचियाइस बिसालिक हा ।

                

            जम्मो ला गुनत-गुनत नींद परगे। चारबज्जी उठेंव। तियारी करेन जाये के।  भिनसरहा होगे । अब जंगल के रस्दा नाहक के डोंगरी ला चढ़त हावन। छे झन पुलिस वाला। लाश ला देखइया जवनहा गाॅंव वाला अउ मेंहा। पुलिस वाला अब पहिली देखइया जवनहा बर गुर्रावत हाबे।

"का करे बर अतका दुरिहा आये रेहेस रे ? लकड़ी जंगली जानवर के तस्करी तो नइ करस न..? करत होबस ते बारा बच्छर बर धांध दुहूं जमानत घला नइ होवय।''

"जब देख डरेस कलेचुप नइ रहितेस । मर जातिस सड़ जातिस नही ते कुकुर कोलिहा खा डारतिस।''

"जिमकांदा खाये रेहेस का बे ! तोर मुॅंहूअब्बड़ खजवात रिहिस । अउ लाश घला छे सात दिन जुन्ना ..। यहुं हा बताये के कोई जिनिस आय ? ''

पुलिस वाला मन जवनहा ला चमकाये लागिस। जवनहा तो अतका चेत गे कि अब न लाश ला  का ...., कोनो ला एक गिलास पानी घला नइ पियाय। 

                         अभिन दूसरिया बेरा आवय मंद के भभका लेवत हावय पुलिसवाला अउ गाॅंव वाला मन। मंद पीये ले लाश नइ बस्साये कहिथे। अब अमरगेंन ओ ठउर मा।

                         ससन भर देखेंव। तेंदू रुख के तीर मा परे तुतारी अउ रुख मा बॅंधाये नायलोन के डोरी ला। डोरी मा गठान अउ गठान मा अरझे झूलत लाश। काया के उप्पर कोती उघरा अउ कनिहा मा नानकुन पटकू सूती के। आँखी के जगा मा मांस के लोथा अऊऊ गोटारन कस झूलत आँखी। कोनो जिनावर कोचक के निकाल देहे। आधा हाथ नइ हे कोलिहा चफल दे होही। नाक के जगा नाक नही, कान के जगा कान नही। पेट तुमा कस फुले छाती मा हाड़ा नही... अउ कही हावय ते बिलबिलावत किरा- सादा सादा। एक,दो , हजार , लाख नही...करोड़ो के संख्या मा सादा किरा। रुख के डारा मा किरा। डोरी मा लबर - लबर रेंगत किरा अउ लाश नइ झूलत हावय अब जइसे किरा हा फांसी के डोरी मा झूलत हावय। लाश के एक कुटका संग अब लंझका-लंझका गिरे लागिस। भुइयां भर बिगरे लागिस किरा अब। मेहत्तर के गोड़ मा चढ़त हे। बुधारू के धोती मा अउ लाश.. हवा के झोंका आइस अउ  फेर एक कोती गिरगे। अकरस पानी .. अउ बस्साई...पेट खदबदाये लागिस । ..उच्छर डारेंव। अपन उम्मर भर नइ देखे रेहेंव अइसन लाश। क्षत- विक्षत लाश। मास्क अउ हेन्ड ग्लव्स पहिरके लाश ला उतारत हावय । लाश नही ....?  किरा ला उतारत हावय। टूरा आवय कि टूरी, माईलोगिन आवय कि बबा जात । कुछु नइ जानबा होवत हावय। 

"वो तो विधान सभा प्रश्न उठ गया है इसलिए इतना मसक्कत करना पड़ रहा है वरना कितने ही लाश को गुमशुदगी अउ लावारिश बना के रफा दफा कर देते है।'' 

पंचनामा बनावत किहिस पुलिसवाला हा। प्लास्टिक के थैली मा भर डारिस अउ लेबल लगा दिस अज्ञात लाश के। फोरेंसिक जांच बर राजधानी जाही । तुतारी ला घला जोरत हावय।

                  कोन जन का पता चलही ते...? बिसालिक घला  कहाॅं गेये हावय ते ? कलेक्टर करा गेये हावय कि मंत्री कि राजधानी। संसो होये लागिस। मन अब्बड़ बियाकुल हावय टीवी चालू करेंव। गाना सुनके मन नइ करिस। फिलिम देखे के मन नइ करिस। समाचार लागयेंव मछरी बाजार कस हांव-हांव होवत रिहिस। कुकुर झगरा। लोकतंत्र के पुजारी आवय ये मन। किसान आत्महत्या के आंकड़ा बतावत रिहिस खुर्सी के सपना देखइया मन। अउ खुर्सी वाला मन सबुत मांगत रिहिस। हमर छत्तीसगढ़ मा एको झन किसान आत्महत्या नइ करे हे...?  मेंहा मौन मुक्का हो गेंव। एकदम चुप कलेचुप। टीवी ला बंद करेंव अउ आरो कोती धियान लगायेंव। बिसालिक के गोसाइन आवय अब्बड़ बम्फाड़ के रोवत रिहिस।

" मोर राजा! मोर दाऊ  ! ते कहा लुकागेस धनी ....?''

थोकिन मा थक गे अउ वहु होगे मौन मुक्का...।


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com



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समीक्षा


      कहानी - मौन मुक्का


कहानीकार - चंद्रहास साहू 


   समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर "


साहित्य के गद्य विधा म  कहानी एक प्रमुख विधा हरे. कहानी के माध्यम ले एक कोति समस्या ल उजागर करे जाथे  त दूसर कोति येकर माध्यम ले सीख देये जाथे. समाज अउ सरकार के धियान दिलाय जाथे कि ये समस्या ल उलझाव झन बल्कि सुलझाव. इही म भलाई हे. समाज अउ सरकार के" मौन मुक्का" होय ले बिपत्ति ह सुरसा सहिक अउ बाढ़थे. अइसने किसान के पीरा ल  महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म  लिखे हावय  युवा कहानीकार भाई चंद्रहास साहू ह अउ कहानी के नांव हे "मौन मुक्का".

        मौन मुक्का कहानी ल पढ़ के प्रेमचंद के कहानी "पूस की रात" , अउ उपन्यास" गोदान" के चित्र बरबस सामने आ जाथे. बाबा नागार्जुन ह अपन कविता "अकाल और उसके बाद" के माध्यम ले अकाल के मार्मिक चित्रण करे हावय.  कतको लेखक,कवि मन किसान के पीरा के बरनन करे हावय.अइसने किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण हावय कहानी " मौन मुक्का" म. येमा एक भारतीय किसान के जांगर टोर कमाई के बखान हे त दूसर कोति करजा -बोरी म डूबे किसान  के चिंता- फिकर ल उकेरे हावय. दाऊगिरि अउ सरकारी बेवस्था के पोल खोले गे हावय. बेईमानी, कामचोरी अउ भ्रष्टाचार के कुवां ह कत्तिक गहरा हे वहू ल बताय गे हावय.लोक तंत्र के बात करथन त विपक्ष अउ पक्ष म कइसे तनातनी होथे. सत्त पक्ष कइसे सबूत ल दबा देथे. टीवी म डिबेट के स्तर कत्तिक गिर गे हावय. विकास के नांव म प्रकृति के जउन बिनाश होवत हे. आज के नवजवान संगवारी मन मंद- महुआ के फेर म पड़ के कइसे अपन जिनगी अउ घर वाले मन के जिनगी ल नरक बना के रख देथे. सरकार ह शिक्षा के नांव म कभू शिक्षाकर्मी त कभू शिक्षा मितान जइसे योजना लाके बेरोजगार मन के मजाक उड़ाथे. कर्मचारी अउ गुरूजी मन के अलग -अलग कैटेगरी बना के फूट डालके राज करथे. घोषणा पत्र म वादा करे रहि तेला पांच बछर म घलो पूरा नइ करय. दू चार महीना म पगार देथे अउ ओपीएस के जगह एनपीएस लाके कर्मचारी मन ल अब्बड़ टेंसन देथे.ये सबके बरनन देखे ल मिलथे " मौन मुक्का " म.

    मौन मुक्का के प्रमुख पात्र हरे बिसालिक. येहा गरीब किसान हरे अउ उमर हे पचपन - साठ बछर के जउन ह पहिली दाऊ घर चरवाहा लगे. सासन के योजना के मुताबिक बिसालिक ल घलो खेती किसानी बर बंजर बन भूमि देये गे हावय. खेती अपन सेति नइ ते नदिया के रेती कहे गे हावय.बिसालिक ह जांगर टोर कमाके बंजर भुइयां ल अब्बड़ उपजाऊ बना डरिन. ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर बरनन करथे कि " सिरतोन किसान के पसीना भुइयां म चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा".

     त दूसर कोति किसान के पीरा के बरनन करत बिसालिक के माध्यम ले कहिथे -" खेत तो बोये हंव कका! फेर टोंटा के आवत ले करजा- बोड़ी हो गेये हावय ". येमा एक भारतीय किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण देखे ल मिलथे.ऊपराहा मउसम के मार ह किसान मन बर दुब्बर बर दू असाड़ हो जाथे. 

  बने धान लुवई के बेरा म मउसम कइसे पेरथे वोकर बरनन करत कहानी ह कहिथे -" इंदर भगवान ह तो अंखफुट्टा आय सबर दिन. बोता घरी म बोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे." मउसम के मार ह किसान ल मार डारथे. किसान के कमर तोड़ के रख देथे बेमउसम बारिश ह. चिंता फिकर म न दिन के चैन मिलथे अउ न रात म नींद आथे. अइसन बिपत्ति के बेरा के बरनन करत कहानीकार ह लिखथे - फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गंवागे चारो कोना ". ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर हाना के प्रयोग करके कहानी के भाषा शैली ल पोठ बनाहे. कइसे बछर भर के कमाई ह पानी के मोल हो जाथे अउ नंगत झड़ी के कारन धान ह खराब हो जाथे. ये जगह अपन पात्र बिसालिक के माध्यम ले प्रकृति के मार के मार्मिक बरनन करथे - " भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आंखी के पानी नइ अटाये हे."

      जब बिसालिक ह अपन धान ल बेचे बर सोसायटी ले जाथे त उहां साहब ह धान ल रिजेक्ट कर देथे. ये जगह कहानीकार ह भ्रष्टाचार ल उजागर करत गरीब किसान बिसालिक के माध्यम ले कहिथे - " साहब! दाऊ के धान ल बिसा लेव वइसना मोरो....?

साहेब कलेचुप...? साहेब! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा ."  येहा सरकारी बेवस्था म ब्याप्त बेईमानी, भ्रष्टाचार ल उजागर करथे कि कइसे दाऊ के खराब धान ल साहेब ह बिसा लेथे अउ गरीब किसान मन ल खून के आंसू रोवाथे.येकर सेति थक- हार के आत्म हत्या जइसे कदम उठा लेथे. फांसी जगह म पुलिस वाले मन के बेवहार के सजीव बरनन कर के जब्बर व्यंग्य करे हावय कि संवेदना नांव के चीज नइ हे.


  कहानी के भाषा सरल अउ सहज हे. पात्र के अनुसार भाषा के चयन करे हावय. किसान ल ठेठ छत्तीसगढ़ी बोलवाय हे त सोसायटी के साहब बर हिंदी भाषा के प्रयोग करे हावय.कहानी लंबा हे पर पाठक वर्ग ल बने बांध के राखथे. कहानी के शैली नदिया के धार कस प्रवाहमयी हे. कहानी के शीर्षक ह  सार्थक हे. एक उद्देश्य हे कि भुइयां के भगवान कत्तिक हे परेशान. समाज अउ सरकार कब तक मौन मुक्का बन के किसान मन के पीरा ल नजर अंदाज करहू अउ कब तक बिसालिक जइसे गरीब किसान मन करजा -बोड़ी म डूबके आत्महत्या जइसे कदम उठात रहि. 

               ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

             सुरगी, राजनांदगांव

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