Monday, 18 December 2023

नानूक कथा - छैँईहा

 नानूक कथा -

     छैँईहा 

देख बहू  -तोर मन म का हे नई जानन? हमन  तोला गरु लागत होबोन त जाव  l तुमन जिंहा जाव तुंहर मर्जी हे  l जिंहा रहे के l ठोस निर्णय सुनावत ससुर कहिस l दिन रात उठा -पटक,बर्तन भाड़ा के  कचराई अउ भांय -भांय के बोली ले तंगा डरेस l  


             बुढ़त खानी म सहे के ताकत नई रहय  मन टोरा  के मन घलो कहिस l ओकर मन रहिस  हर हर कट कट ले हमी मन निकल जातेंन,तेन बने रहिसl

अपन आदमी सुखी ला समझावत रहिस l पर कोठा ले आथे तेन  ला हमर कोठा पर अस लगथे l जी जबो मनटोरा

तिपो के खा लेबो l फेर तपनी ताप नई सहावय l

आजकल के लइका मन ला अलग रहे घूमे फिरे के आजादी चाही l बाहिर म रही त पता चलही l कतका ऐठन हे उलर जही दू एच दिन म l ले अब चुप रह जादा रोस झन कर - मनटोरा कहिस l  अपन छैँईहा बनाके देखाय l गारी देय भर ला आथे  थोथानाहीं ल -थोरको नई घेपय  l मनटोरा अतके कहिके अपन मन ला मढ़ा लीस l

उही दिन ले बहू के मुँह म चपका धरागे l लोगन मन का कइही मोला?

नई कह सकत हे जाथन तोर घर ला छोड़ के l

सास ससुर के छैईहाँ बाहिर म नई मिलय l जान डरिस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

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