नानूक कथा -
छैँईहा
देख बहू -तोर मन म का हे नई जानन? हमन तोला गरु लागत होबोन त जाव l तुमन जिंहा जाव तुंहर मर्जी हे l जिंहा रहे के l ठोस निर्णय सुनावत ससुर कहिस l दिन रात उठा -पटक,बर्तन भाड़ा के कचराई अउ भांय -भांय के बोली ले तंगा डरेस l
बुढ़त खानी म सहे के ताकत नई रहय मन टोरा के मन घलो कहिस l ओकर मन रहिस हर हर कट कट ले हमी मन निकल जातेंन,तेन बने रहिसl
अपन आदमी सुखी ला समझावत रहिस l पर कोठा ले आथे तेन ला हमर कोठा पर अस लगथे l जी जबो मनटोरा
तिपो के खा लेबो l फेर तपनी ताप नई सहावय l
आजकल के लइका मन ला अलग रहे घूमे फिरे के आजादी चाही l बाहिर म रही त पता चलही l कतका ऐठन हे उलर जही दू एच दिन म l ले अब चुप रह जादा रोस झन कर - मनटोरा कहिस l अपन छैँईहा बनाके देखाय l गारी देय भर ला आथे थोथानाहीं ल -थोरको नई घेपय l मनटोरा अतके कहिके अपन मन ला मढ़ा लीस l
उही दिन ले बहू के मुँह म चपका धरागे l लोगन मन का कइही मोला?
नई कह सकत हे जाथन तोर घर ला छोड़ के l
सास ससुर के छैईहाँ बाहिर म नई मिलय l जान डरिस l
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
No comments:
Post a Comment