*छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक ठन कलगी: वीर हनुमान सिंह प्रबंध काव्य*
छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिन बहुरत हे। अब छत्तीसगढ़ी म नरवा नदिया, घाट घटौंदा, डोंगरी-पहाड़, खेत-खार अउ माटी-महतारी के संग शृंगार के गीत भर नइ लिखे जावत हे। आज के साहित्य म मनोरंजन भर नइ रहिगे हावय। अब गंभीर किसम के साहित्य लिखे जावत हे। इतिहास अउ संस्कृति ल सरेखत अउ आज के संघर्ष ले भरे जिनगी के जीजिविषा संग मनखे के चिंतन अब साहित्य के विषय बनत हे। साहित्य के सब विधा म एकर प्रभाव अउ असर दिखत हे। बस जरूरत हे कि हम उन ल पढ़न। हम कखरो लिखना ल पढ़बो तभे तो कोनो हमरो लिखे ल पढ़़ीं। आज भले किताब बिसा के पढ़इया मन के गिनती कमती दिखत हे। फेर व्हाट्सएप अउ फेसबुक जइसन सोशल मीडिया म साहित्य पढ़े जावत हे।
पढ़न अउ पढ़ावन के इही चलन ल आगू बढ़ाय म बड़का उदिम हे, श्री अरुण कुमार निगम जी के छंद के छ परिवार। जेन ऑनलाइन कक्षा के रूप म संचालित होथे। एहर गुरुकुल आय। जेन ह 'सीखबो अउ सिखाबो' के मूल मंत्र ल ले के सरलग आगू बढ़त हे। २०१६ ले अब (२०२३) तक २०० ले आगर अनगढ़ कविता लिखइया मन छंद के साधना करत हें अउ उँकर लेखन छंद साधना के पटरी म सरलग चलत हे। निगम जी के मिहनत रंग लावत हे। छंद के छ परिवार गुरु-शिष्य के परम्परा संग आगू बढ़त उँकर सपना ल पूरा करत हे। जेन हमर पुरखा जनकवि श्री कोदूराम दलित के नेंव धरे आय। अरुण कुमार अपन सियान ददा कोदूराम दलित जी के विरासत ल खड़े करे हें। जे आज एक आंदोलन बनगे हावय। जेकर प्रभाव अउ चर्चा अब छत्तीसगढ़ के साहित्य म दिखत हे, होवत हे। इही गुरुकुल के भट्टी (साधना) म तपे अउ निखरे साधक आँय मनीराम साहू 'मितान'। जे मन मंचीय कवि के रूप म तब चर्चित रहिन अउ आजो छत्तीसगढ़ के चारों खुँट म अपन मंचीय प्रतिभा के लोहा मनवाथें। वीर रस ले सनाय गीत ले जिहाँ श्रोता मन के रग-रग म जोश भरथें, उहें पारम्परिक सुर म साजे गीत ले मनोरंजन कराथें अउ जागरण के गीत सुनाथें। सुधि श्रोता मन बर गंभीर किसम के रचना के पाठ घलव करथें।
छंद म लिखना कोनो खेल तमाशा नोहय। एक कोति छंद के नियम ल साधना रहिथे, त दूसर कोति भाव पक्ष ल सजोर रखे के चुनौती रहिथे। भाव पक्ष लोगन ल झटकुन समझ म आथे। अइसन म भाव पक्ष श्रोता अउ पाठक बर जरूरी हे। अइसे भी कविता बर भाव पक्ष पहिली आवश्यकता बताय जाथे अउ कतकोन बुधियार मन एला पहिली शर्त मानथें। ए दूनो पक्ष कहे के मतलब शिल्प अउ भाव पक्ष म मितान कोनो मेर समझौता करत नइ दिखँय। मितान दूनो पक्ष म बड़ सावचेती ले लेखन करथें। अभ्यास अउ लगन के संग शब्द भंडार बाढ़थे। शब्द भंडार के मामला म मितान धनी आवँय, कहि सकथँव। कतको नँदावत शब्द इँकर रचना म जीयत-जागत हें। छंद म लिखई ल कतकोन मन छँदाना समझ के दुरिहा भागे लगथें। छंद म फँसना मतलब भाव पक्ष ले दुरिहाना ए। भाव नइ समा सकय कहिके अपन कमजोरी ल छुपाथें, फेर मितान ल तो छंद लिखे म मजा आथे। तभे तो इन मन रोज नामचा के गीत लिखे के संग प्रबंध काव्य लिखे बर अपन पाँव उसालिन अउ एक नहीं तीन-तीन ठन खंड काव्य लिख डरिन। हीरा सोनाखान के, महापरसाद अउ छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे : वीर हनुमान सिंह। खंड काव्य कोनो विशिष्ट विषय ऊपर लिखना होथे। जे ल कई खंड/खँड़ म बाट के लिखे जाथे। अतके च नइ, हर खँड़ बर आने-आने छंद के नियोजन करे बर परथे। अइसन सिरिफ उही कर पाथें जे छंद म पकड़ रखथें अउ ओकर बने जानकार होथें।
छंद भर साधे ले रचना के सुघरई नइ आवय। छंद के संग अलंकार अउ रस के सँघरे ले रचना श्रेष्ठ बन जाथे। कालजयी हो जथे। अइसन करे म शब्द चयन के बड़ भूमिका होथे। शब्द चयन ह विषय वस्तु अउ प्रसंग ल जीवंत बनाय म साहमत होथे। एकरे ले अलंकार जगर-मगर होथे। रस के धार बोहाय लगथे। मुहावरा अउ हाना के प्रयोग ले रचनाकार पाठक के तिर पहुँचथे। गद्य साहित्य एकर बिना बिन लिपाय-पोताय घर बरोबर होथे। हाना मुहावरा के प्रयोग पद्य म करना बड़़ कठिन होथे, काबर कि छंद विधान के पालन करना होथे, फेर मँजे छंदकार बर ए कोनो कठिन बुता नोहय। ए बात के प्रमाण आय मितान अउ एक सबूत देवत हे उँकर सिरजाय प्रबंध काव्य वीर हनुमान सिंह। प्रबंध काव्य म प्रसंग के मुताबिक रस तभे आ पाथे जब नायक के जिनगी के वृत्तांत रचनाकार तिर होवय। जीवन वृत्त बर अध्ययनशील अउ जिज्ञासु होना जरूरी होथे। जतके जादा जानबा रही, ओतके सुघर लिखना हो पाही। जानबा सकला करे बर खोजी होना जरूरी हे। मितान पेशा ले मास्टर आय। मास्टर के स्वाभाविक गुण होथे अध्ययनशीलता अउ खोजी। मितान के इही गुण के चलत ए खंडकाव्य संग्रह रूप म आज अपन पाठक तिर पहुँचे के यात्रा पूरा कर ले हावय।
मितान किसनहा परिवार के बेटा आय। किसानी म घलव भरपूर बेरा देथे। खेती अपन सेती, कहे गे हे, एकर मतलब हे मिहनत ले पाछू नइ हटना। इही मिहनत उँकर साहित्य साधना म घलव देखे ल मिलथे। ऐतिहासिक अउ शोधपरक विषय के भुइँया म अध्ययन के बीजा डार लगन अउ मिहनत के खातू पानी ले मितान खंडकाव्य के बड़ पोठ खेती करे हावय। जेकर दाना आज आपके हाथ म हे।
मोर नजर म ए प्रबंध काव्य शिल्प अउ विधान के पैडगरी म कोनो मेर डगमगावत लड़खड़ावत नइ लगत हे। भाव पक्ष के जतका गोठ करन ओतके कम हे। तभे तो ए किताब के भूमिका म प्रणम्य गुरुदेव अरुण कुमार निगम लिखे हवँय- "मनीराम साहू जी वीर रस आधारित ये किताब म कहूँ भी वीर छंद माने आल्हा छंद के प्रयोग नइ करके ये बात ल साबित करिन हें कि बिना आल्हा छंद के घलो वीर रस आधारित प्रबंध काव्य लिखे जा सकथे।"
प्रूफ रीडिंग के कमी के चलत ही कोनो-कोनो तिर व्याकरणिक चूक नजर आवत हे। इशारा अउ इसारा दूनो के प्रयोग 47/41 पृष्ठ। समासिक शब्द खासकर द्वंद्व के चिह्न। कुछ एक जघा म विधान ह पटरी ले बेपटरी हो गे हावय।
टंकन के चलत अर्थ स्वाभाविक अर्थ ले भिन्न हो गे हे।
*तपत हवँय ये गोरा मन हा, मौत उँमन ला भागे हे।*
एमा भा गेहे/ भा गे हे होना चाही। अभी भागना के अर्थ व्यंजित होवत हे। जबकि भा जाना ले भा गे हे होना चाही।
आख्यानक काव्य या प्रबंध काव्य बर जरूरी रचनाकार के उड़ान (कल्पना) सिरतो म वीर हनुमान सिंह म हावय। जे पाठक के नस-नस म उतर जाही।
हमर भारतीय संस्कृति म कोनो भी बड़का काज के शुरुआत करत खानी अपन ईष्ट देव मन ल भजे जाथे। उन ल सुमरन करे जाथे। जेमा काज के सुफल होय बर असीस ले जाथे। ए ह हमर साहित्य म घलव दिखथे। प्रबंध काव्य म इही ह मंगलाचरण के रूप म नजर आथे। जेकर ले काव्य के शुरुआत अउ कतको मन हर खँड़ के शुरुआत मंगलाचरण ले करथे। मितान के ए प्रबंध काव्य म मंगलाचरण दस किसम के छंद म देखे ल मिलथे। जेन म उन मन अपन इष्ट देवी-देवता, जनम भुइयाँ, गुरु सहित बड़का मन ले असीस माँगत वीर हनुमान सिंह के गाथा ल जन-जन तिर पहुँचाय के शुभ काज के श्री गणेश करें हें।
*दोहा*
उमापूत बुधनाथ गा, हे गजकरन कवीस।
भकला मनी मितान ला, देदे बुद्धि असीस।
*अनुष्टप*
दाई उमा भवानी वो, अंतस मा उम्हाव दे।
बीर जस लिखौं मैं हा, आरुग पोठ भाव दे।
रहै न खोट एको माँ, देदे असीस दास ला।
तैं सीघ-सीघ दे माता, अक्षर शब्द रास ला।
तैं हा सुने सबो के माँ, सुनले मोर आज वो।
मूरख ये मनी हावै, दे माई काज साज वो।
संग्रह के पहलइया खँड़ मनहरन खँड़ नाँव के मुताबिक भारत के गौरवशाली इतिहास के बखान करत मन हर लेथे। स्वतंत्रता संग्राम के शंखनाद ले लेके छत्तीसगढ़ के योगदान ल बढ़िया चित्रण हावय। वीर हनुमान के परिचय सुग्घर ढंग ले कराय गे हे।
दउँड़य राजपुताना शोणित, ओकर जब्बर छाती मा।
जेन लगाइस जीव दाँव मा, माटी रक्षा खाती मा।।
दूसर खँड़ म अत्याचारी अंग्रेज मन के अत्याचार ले वीर सपूत मन के हिरदे म धधकत पीरा हे। ए पीरा छत्तीसगढ़ के वीर सपूत शहीद वीर नरायन सिंह ल दे गे फाँसी के घलव आय।
आय दिसम्बर के दस तारिट, करिया घोर उदासी के।
जन-जन ला पीरा देवइया, वीर नरायन फाँसी के।।
विजया खँड़ म गुलामी ले मुक्ति बर अँग्रेज़ मन ले विजय बर दृढ़ निश्चय के जउन नेंव धरे हे। वो कवि के कल्पना हो सकत हे, फेर कवि के ए उड़ान वीर हनुमान सिंह के संकल्प ले आने नइ हे। ए खँड़ म मितान के आखर-आखर भारत माता के सपूत मन के अंतस् के आरो देवत हे। स्वतंत्रता बर ललकार के सुर हे। वीर हनुमान सिंह के संगी-साथी मन म स्वतंत्रता बर अलख जगाय के आह्वान हे। दृष्टांत देखव-
बंदुक ला सब रखव सँवारे, टेंये राखव खाँड़ा ला।
तन के गरमी रखव बढ़ाये, फटकन झन दव जाड़ा ला।
जबर गुलामी साँकड़ काटे, साथ तुँहर मोला चाही।
एक दुये मा बनय नहीं गा, होवय बल हाही-माही।
कृपाण खँड़ के ए ताटंक छंद देखव-
खँधँय बगावत करबो कहि जब, हनुजी के सँगवारी गा।
सोचय बम्बर बारे बर हनु, मेटे बर अँधियारी गा।
इहाँ अँधियारी के मतलब गुलामी ले हे अउ बम्बर बारे के तार जुरे हावय, स्वतंत्रता के उजियार ल जन-जन के अंतस् म जलाय ले।
कृपाण के अर्थ ल सार्थक करत ए खँड़ म हनुमान सिंह अउ उँकर संगवारी मन भारत माँ के बइरी मन ल उँकर नानी याद कराय हे।
बोलत जय जय भारत माता, बीच पेट लउहे जोंगै।
तुरत उठा सँगवारी खाँड़ा, आल पाल वो दे भोंगै।
खींचत वो खाँड़ा ला तुरते, वार दुसर कर देवै गा।
कहत वार ये सिंह फाँसी के, बदला ला ले लेवै गा।
इहें रण क्षेत्र के लड़ई के जीवंतता के दृश्य उकेरे म मितान के कलम पाछू नइ हे-
टकरावँय जब एक दुसर ले, खाँड़ा मन हा भारी जी।
लागय बिजली लउकत हे का, उठय अबड़ चिंगारी जी।
वीर सपूत हनुमान सिंह ल समर्पित ए संग्रह वीर रस म पगाय हे, अइसन म वीर के शौर्य वर्णन खातिर जरूरी अलंकार सहज रूप ले इहाँ झलकथे। कवि के कल्पना सुघ्घर हे।
पचवइया अउ आखिरी खँड़ 'रूप खँड़' म छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे वीर हनुमान सिंह अउ उँकर संगी मन के जे रूप और शौर्य के गुनगान गे हे वो सउँहत स्वतंत्रता दिलाय म कोनो कसर नइ छोड़तिस।
सउँहे यम के दूत असन जब, उँकर रूप हा लागै गा।
डर के मारे बइरी काँपत, भिरभिर भिरभिर भागैं गा।।
तभे एक भिंड़त म गोली बारूद के कमतियाय ले वीर सपूत मन के मन म उदासी आगे फेर हिम्मत ले भारत माँ के रक्षा बर आखिरी साँस तक लड़िन अउ वीर हनुमान ल उहाँ ले सुरक्षित निकल संगठन ल अउ मजबूत करे बर भारत माँ के किरिया दिन। हनुमान सिंह मन मार के उहाँ ले निकलिन अउ दुबारा जबर कोशिश करिन एकर सुघ्घर वर्णन हे, पर आगू कोनो पुख्ता खबर नइ मिलिस।
मनीराम साहू 'मितान' अपन अध्ययन अउ शोध ले जतका हो सकिस वीर हनुमान सिंह के चरित गाथा ल छंद बद्ध समेटे के उदिम करिन अउ दुमदार दोहा के संग छेवर करत लिखिन-
सिधगे पूरा पाँच खँड़, सुग्घर नाने-नान।
लिखके जस हनुमान के, होगे धन्य 'मितान'।।
भाग ला वो सँहरावै।
मया जम्मो के पावै।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के जीवन चरित ल खंड काव्य के रूप म सिरजाय के, मितान के ए उदिम के जतका बड़ई करे जाय, ओतके कमती रही। उँकर ए उदिम ले अउ कतको सेनानी मन के गाथा कोति कवि मन के चेत जाही अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा अउ उत्कृष्ट रचना मिले के आस बँधथे।
छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे: वीर हनुमान सिंह, प्रबंध काव्य छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक कलगी साबित होही। एकर ले छत्तीसगढ़ी साहित्य मान पाही। ए किताब छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा उँचास दिही। वीर हनुमान सिंह के वीरता ल सरेखत मनीराम साहू 'मितान' के मिहनत अउ लेखनी ल नमन। उँकर ए प्रयास स्तुत्य हे, बंदनीय हे।
रचना: *छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे*: वीर हनुमान सिंह
रचनाकार: श्री मनीराम साहू 'मितान'
प्रकाशक: शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष: 2023
पृष्ठ : 96
मूल्य: 299/-
कापीराइट : रचनाकार
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पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग.
मो. 6261822466
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