Wednesday, 20 March 2024

भूरी चन्द्रहास साहू

भूरी

                           चन्द्रहास साहू
                         मो 8120578897

आँखी पथरा होगे वोकर अगोरा मा। बाट जोहत हे वोहा,आही...... फेर अभिन तक वोकर दरसन नइ हावय। आगू बिन भेट करे मर जावँव कहिके गुने फेर अब वोकर ले भेट-पलगी करे बिना चोला नइ छूटे। .... अउ चोला छूटही काबर  ? वोला आय ला परही...। देवी अहिल्या अगोरा करत रिहिस न, दाई शबरी अगोरा करत रिहिस न ....आइस अउ दरसन दिस प्रभु श्री राम हा। भीष्मपितामह बरोबर सौहत बाण के सेज मा सूत के अगोरा भलुक नइ करत हे फेर रुआँ-रुआँ रिसत हे पीरा मा ...अगोरा मा। भलुक जांगर नइ चलत हाबे फेर मन अब्बड़ दउड़त हावय। खेत-खार ला किंजर डारिस। डोंगरी-पहार नदिया -नरवा ला किंजरत-किंजरत अमरइयाँ मा थिरागे। अमरइयाँ के बड़का रुख। बड़का रुख के बडका डारा,बड़का डारा के बड़का आमा फर मा थिरागे। कइसे झूलत हे आमा फर हा चिटरा खखोल डारे हावय तभो ले । लबेदा आथे तीर ले अउ बिन गिराये फर ला लहुट जाथे । 
                 कातिक, हाव इही नाव तो हाबे सत्तर बच्छर ले आगर जियइया सियान के। काया पाक गे हे सियान के । कब ढूल जाही फेर जिनगी अउ मौत के बीच झूलत हाबे-आमा कस। खटिया मा सुते हे अलग-बिलग कोठा मा। बेटा बहुरिया ले साध राखे रिहिस सेवा जतन बर । फेर कोनो ला श्रवण कुमार नइ बनाये रिहिस। कोन सेवा जतन करही....? अउ बहुरिया...? वोमन तो पर के कोठा ले आये हे, मुठा भर भात दिस तब बने अउ नइ दिस तब बने। मेहतरीन हाबे न सेवा करइया। वोमन तो अपन लइका-लोग भरतार मा बिलमे हे। मेहतरीन आथे तब सफा होथे पानी पिसाब मइलाहा हा। अउ नइ आही तब...?   मइलाहा मा बुड़े रहिथे। कोनो देखइया सुनइया आथे तौन हा कहिथे।
"छी..... दई !...... डोकरा मइलाहा मा बुड़े हाबे। भगवान अपन घर लेग जाए ते बने होतिस।'' 
"अई अभिन नइ मरे या डोकरा हा ! करनी दिखथे मरनी के बेर। जवानी मा जतका लाहव लेये हे तेन निकलत हाबे अभिन। बहुरिया भूरी ला कतका तपे हाबे नइ जानस का....? अपन बहुरिया भूरी ला देखे बर चोला अटके हाबे। जभे वो आही तभे प्राण तजही वो !''
गोठियइया मन के अब्बड़ मुँहू। 
                  बहुरिया के नाव रिहिस  राजेश्वरी। राजेश्वरी कागज मा लिखे के नाव रिहिस। असली चिन्हारी तो भूरी ले होवय। भूरी, सिरतोन के भूरी आवय दुधनागिन कस जोखी भराये पड़री बदन, पाका कुन्दरू चानी कस होंठ, कजरारी आँखी, चाकर माथ, गोड़ मा माहुर-आलता, मेहंदी लगे हाथ, सोनपुतरी कस सवांगा पहिरे-ओढ़े लजकुरहिन भूरी ससुरार मा पाँव मड़ाइस  तब गाँव भर देखनी होगे। ये अतराब मा अतका सुघ्घर बरन वाली काखरो बहुरिया नइ हाबे। कातिक अउ गोसाइन फुरफुन्दी कस उड़ा-उड़ा के जम्मो कोई ला बताये लागे। बेटा भुनेश घला किशन बरन होइस ते का होगे, सरकारी अधिकारी हे। दुनो के जोड़ी अब्बड़ सुघ्घर सीता राम के जोड़ी।
         चिरई बरोबर चहचहचावत हावय।तितली बरोबर उड़ावत अउ भौरा बरोबर गुनगुनावत हे भूरी के मन। काबा भर उछाह देवत रिहिस भुनेश हा। ..... अउ भुनेश वो तो अघा जाथे भूरी के बेवहार अउ बरन देख के। भलुक बहुरिया रिहिस भूरी हा फेर बेटी बन के सास-ससुर के जतन करत हाबे। देवर मन नान्हे हावय।
          ड्यूटी वाला गाॅंव ले गोसइया आवय हफ्ता दिन मा काबा भर उछाह धरके। चार-तेंदू बोड़ा-कांदा-कुसा अउ रिकम-रिकम के मिठई फल-फलहरी। भूरी घला चीला दूधफरा अंगाकर रिकम-रिकम के कलेवा बना के खवाये।
"भूरी तोर हाथ मा जादू हाबे ओ ! अब्बड़ सुघ्घर चीला अउ दूधफरा बनाथस। दाई हा थोकिन मोट्ठा बना देथे। बने नइ लागे।''
"वा.....  जी...... वा !   दाई के बनावल कलेवा ला आगू चांट-चांट खावस अउ बाई आगे तब बाई के तारीफ करत हस-पलटू राम ही ... ही .... ।''
भूरी छिटा मारत किहिस गोसइया भुनेश के गोठ ला सुनके।
"कोन पलटू राम.....अई.....?''
"कोन ....?'' 
"तेंहा...!''
" ही....ही.... खी... खी....''
फुलझरे कस हाँसी मा गमकत हे रंधनी कुरिया हा। अउ...... हाँसत-हाँसत अरहज गे। पेट पीरा मा लाहर-ताहर होगे। झटकुन अस्पताल लेगिस भूरी ला भुनेश हा। पेट पीरा इलाज के संग खुशखबरी सुनाइस डॉक्टरीन दीदी हा । भुनेश के छाती फुले लागिस गरब मा मुचमुचाये लागिस। सतरंगी सपना मा बुड़त हाबे गोसइया हा अउ भूरी....? बेटी ले अब खुद महतारी बने के सुभागी बनत हे। घर भर उछाह भरगे।
"भौजी का लानँव।'"
"बहुरिया का खाबे।''
"मोर रानी तोर का सेवा करँव।'' 
जम्मो कोई अपन-अपन ले हियाव करे लागिस।
छत मा टहलत रहिथे तब पर्रा भर चंदा-चंदैनी ले गोहराथे।
" चंदा-चंदैनी तेंहा मोर कोरा मा आ जाबे रानी बन के सुरुज तेंहा  आ जाबे कोरा मा राजा बनके।''
पहेलात नोनी, वोकर पाछू नोनी अउ सबले नान्हे हा बाबू , तीन लइका के महतारी बनगे भूरी हा। देवर मन घला एक ले दू होगे अब। सिरतोन पांच बच्छर मा अब्बड़ बदलाव आगे अब। भलुक लइका मन देवता रिहिस फेर बड़का मन मा राक्षस  के गुण समाये लागिस। लइका मन बर कपट होये लागिस अउ बड़की बहुरिया बर तो ससुर बानी लगा डारिस। जुन्नागे न बड़की हा अब।
           भूरी के नींद उमछगे आज अउ सपना ला सुरता करिस तब ठाड़ सुखागे।
मातादेवाला वाला तरिया के पचरी मा बइठके सुहाग दान करत हाबे भूरी हा। जम्मो सवांगा ला गंगामइयाँ ला अर्पित करत हाबे। पसीना मा भींजगे लोटा भर पानी पीयिस अउ बिहनिया के अगोरा करे लागिस। मास्टर के बेटी आय कोनो अंधविश्वास ला नइ जाने फेर ये सपना मन ला विचलित कर दिस।
बिहनिया जम्मो उदास हाबे। गाय-गरुवा, चिरई-चिरगुन सुन्ना हाबे । कुकुर रोवत हाबे। सास के मन रोनहुत होगे हे। का होवत हे ....? जम्मो कोई अब्बड़ हियाव करत हाबे भूरी के....। 
"दीदी ! जा झटकुन नहा ले।''
"बहुरिया ! जा बेटी झटकुन खा ले।'' 
"जा भूरी ! लइका मन के जतन पानी मेंहा करत हँव।''
आज जम्मो कोई अब्बड़ हियाव करत हे। भूरी के मन अनमनहा लागिस। बिहनिया ले कका भइया महाप्रसाद जम्मो कोई आगे भूरी के । आजेच अब्बड़ मया पलपलावत हे। का होगे...? अब रोनहुत होगे भूरी हा । जम्मो कोई खुसर-फुसुर गोठियाये लागिस। भूरी घर के बुता करत हाबे। कुआँ मा पानी बर गिस तब पनिहारिन मन खुसुर-फुसुर करिस। 
"ये दई फूल असन हाबे ओ भूरी हा....!''
रउताइन काकी तो भूरी ला पोटार के रो डारिस। फेर देरानी खिसियावत बरजिस रोये बर ।
फुसफुसाइस।
"अभिन भूरी कही ला नइ जानत हावय झन बता ।'' 
अउ पानी के गघरा ला बोहो लिस।
                बार्डर के बीर मन ले कमती नइ हावय इहाँ के बीर मन । जम्मो कोई अपन ऑंसू ला आँखी मा राखे हाबे। जम्मो कोई जानथे भूरी के गोसइया भुनेश हा सड़क तीर के सरई रूख मा झपागे अउ एक्सीडेंट मा सतलोकी होगे। फेर कोनो नइ जनवावत हाबे भूरी ला।
"मोर फूल बरोबर भूरी ला छोड़ के कइसे चल देस दमाद बाबू ! तोर तीनों लइका के मुड़ी ले बाप के छइयाँ ला मेट देस बाबू !''
भूरी के दाई रोये लागिस अउ जम्मो कोई हरागे अब । जम्मो गाँव भर रोये लागिस। भूरी तो बेसुध होगे । पथरा के दुवारी मा गिरीस ते कभू सुध नइ आइस । भलुक गोठियावत बतरावत रिहिस फेर जिंदा लाश बरोबर। अपन सुहाग के चिन्हारी ला गंगामइयाँ ला दिस तभो बेसुध रिहिस। ऑफिस ले अधिकारी मन आइस अउ अब्बड़ अकन पइसा दिस । ससुर कातिक झोंकिस । भूरी के का सुध....? भूरी के ददा हा कोचकिस तब सुध आइस भूरी ला।
"बेटी ! तोला जीये ला परही , झन हरा जिनगी ले तोर। नान-नान नोनी बाबू ला देख ! अनुकंपा के नौकरी ला कर। तोर ससुर हा अपन नान्हे बेटा ला अनुकंपा मा लगाये के उदिम करत हे। तोर परवरिश कर लेबो कहिथे। अभिन मीठ-मीठ हाबे बेटी ! आगू जाके जम्मो करू हो जाही...? तीन लइका के संग तोर परवरिश कोनो नइ कर सके, गुन तेंहा। गोसाइया के मिले अनुकंपा नौकरी ला गोसाइन करथे बेटी तब शोभा देथे....।''
ददा अब्बड़ समझाइस तब समझिस भूरी हा। अनुकंपा नियुक्ति बर फॉर्म  भरिस। भलुक सास ससुर के बेटा गिस फेर अपन दुनो बेटा मन कमी ला पूरा कर दिही। भूरी के तो सरबस चल दिस। थोकिन मान रिहिस तहू हा...। ससुर कातिक के जी तरमरागे। 
"बहुरिया नौकरी नइ करे। घर मा रही कलेचुप सादा लुगरा पहिरके।''
मास्टर ससुर सुना दिस सोज्झे। बेटा के सरकारी पइसा ला तो झोंक के उड़ावत हाबे। घर बनावत हे फोकटे-फोकट। चिटफंड कंपनी मा डारत हे-पइसा दुगुना करे बर।.... अउ अब अनुकंपा नौकरी ला घला...? मोला जागे ला परही अपन तीनों लइका बर ... , अपन अधिकार पाये बर...। भूरी गुनिस अउ अपन अधिकार ला पाइस। सहायक ग्रेड तीन मा नौकरी जॉइन करिस दुरिहा के गाँव मा।
         आज नौकरी वाला गॉंव मा जाए बर तियार होगे भूरी हा । सास भलुक रो डारिस फेर ससुर तरमरावत हे । 
"बेटा ला खायेस अब वोकर अनुकंपा नौकरी ला घला खा डारेस। .... जा एके झन। कोनो नइ जावय तोर लइका मन ला राखे बर। मोर घर के मरजाद ला नइ जानेस । बाइस-पच्चीस बच्छर के मोटियारी हस । नौकरी मा पेट नइ भरही ते..... तोर तन ला बेचबे रे बेसिया...।''
 ससुर  अगियावत हे।
"मास्टर होके अइसन झन गोठिया बाबूजी ! भलुक कोनो झन जावव मोर संग फेर अपन आसीस ला दे दे सास-ससुर हो !''
भूरी ससुर के गोड़ मा नवके पाँव परिस अउ चल दिस नौकरी वाला गाँव।
            नौकरी जॉइन करिस अउ किराया के घर लेके रहे लागिस भूरी हा। फेर नारी के अइसन रहवइ सहज नोहे...? दस किसम के मनखे सौ किसम के गोठ। राड़ी के जिनगी मा फूल कमती अउ काँटा जादा रहिथे। ... अउ गोठ के काँटा तो अइसे गड़थे अंतस मा कि जब साँसा सिराही तभे वोकर पीरा हा अतरही।
कोनो बाइस-पच्चीस बच्छर के सुघ्घर बरन वाली माईलोगिन राड़ी हो सकथे का...? अउ होगे तब बिन मरद के कइसे रही...? कइसे रात कटत होही....? कइसे दिन....? एक इशारा कर। जान हाजिर हो जाही ....। 
मनचलहा मन के बड़का टॉपिक आय डिस्क्शन करे बर । अब्बड़ ताना सुने ला पड़त हाबे भूरी ला। 
             ऑंसू ला नापतिस ते समुंदर बन जातिस। पीरा ला नापतिस ते पहाड़। हे भगवान कोनो ला अइसन राड़ी के जिनगी झन दे। बिन गोसइया के जिनगी बीख आय बीख...। भूरी के जी कलप जाथे। 
"पहार कस जिनगी कइसे अकेल्ला पहाहूँ मालिक !''
संसो करथे भूरी हा। 
          एक दू बेर भूरी के माइके वाला मन पुनर्विवाह करे बर टूरा पठोइस फेर ससुर कातिक बाधा बनगे।
"भूरी अब हमर जिम्मेदारी आय समधी महराज ! आप संसो झन करो। एक बेरा तुमन कन्यादान कर डारेव। अब हम करबोंन हमर बेटी कस बहुरिया के हाथ पींयर। '' 
ससुर कातिकराम किहिस मेंछा मा ताव देवत। मुँहू मा राम-राम बगल मा छूरी। भूरी के वेतन के पइसा मिलत हाबे तब काबर पहिरे बर दिही चुरी । कातिक बारा बिटौना करिस अउ "लक्ष्मी'' ला अकेल्ला कर दिस जिनगी के रद्दा मा । दुधारू गाय ला कोन दुरिहा करही.....?       
            बेरा मा जेवन नइ मिले भूख मर जाथे वइसना साध घला होथे। अब तो जम्मो साध मरगे भूरी के।
           सरकार हा ऑफिस मा सरकारी बुता करे बर वेतन देथे फेर कतको बेरा तो भूरी के गोठ ले निकाल देथे "साहब मन''। हितवा अउ गिधवा के दल दिखत हाबे ऑफिस मा घला। बड़की बेटी आज ऑफिस मा दाई ले मिले बर गिस अउ पेपर वेट ला गिरा दिस। पेपरवेट टुटगे अउ लइका के परवरिश मा प्रश्न चिन्ह लगगे।
"बिन बाप के लइका मन अइसने होथे उतबिरिस। चोर डाकू गुंडा मवाली रंडी बेसिया सब बनथे।''
साथी कर्मचारी के गोठ नारी जाति ऊप्पर प्रश्न चिन्ह लगगे। 
"सिरतोन जेखर दाई-ददा दुनो झन रहिथे तेखर लइका श्रवण कुमार होथे का ... ?''
भूरी के आँखी ले ऑंसू निकल जाथे गदगद-गदगद। बड़का-बड़का परीक्षा पास करइया साहब मन करा कोनो उत्तर नइ राहय भूरी के सवाल के । 
"कतको दाई मन अपन लइका के सेवा-जतन करके अब्बड़ नाव कमाये के लइक बनावत हे...। अंधरा हो। पेपर टीवी मा जगजग ले देख लेव- आँखी के फूटत ले......।  देख ले अधिकारी बाबू  हो ...।''
भूरी रगरगावत रिहिस । मोर लइका ला घला समाज के उज्जर बरन वाला बनाहूँ। भूरी किरिया खावत हे मनेमन। काकर संग कतका लड़ई बाजही...? कोन ला कतका समझाही...?
             आज दुनो बेटी के नवोदय विद्यालय मा चयन होगे। का होइस दुरिहाये ला लागही ते...। रही जाहू अकेल्ला फेर लइका के जिनगी बन जाही। भूरी अपन दुनो लइका ला पठो दिस नवोदय विद्यालय।
        आज महीना के दू तारीख आय। एक तारीख के साँझ मुंधियार ले वेतन आथे भूरी के । जम्मो ला जानथे ससुर कातिक हा। धमक गे भूरी के घर। भलुक तिहार-बार के पइसा देथे कपड़ा-लत्ता बिसाथे जम्मो कोई बर। फेर ससुर ला तो कमती पड़ जाथे। भलुक बीस एकड़ के जोतनदार आय अउ छे घंटा बर सरकारी हेडमास्टर तभो ले पइसा कमती हो जाथे...? भूरी ला पदोना हे न।
"बखरी के कुआँ अटागे हे। जम्मो साग भाजी अइलावत हाबे। अब बोर कराहूँ तब बने पानी पलही । अस्सी हजार दे तो।''
ससुर कातिक किहिस।
"पाछू दरी थ्रैशर लेये बर साठ हजार देये रेहेंव। सास के ईलाज बर पन्दरा हजार देये रेहेंव। जादा नइ कमावव बाबूजी ! मोरो उच्च नीच लगे रहिथे। नइ हे ये दरी पइसा ।''
भूरी ससुर के पैलगी करत किहिस। ससुर अगियावत रिहिस। अब्बड़ श्राप डारिस अउ जुड़ होवत किहिस।
"अतका दुरिहा आय हँव ते पेट्रोल के पुरती तो दे ओ !''
भूरी दू सौ के कड़कड़ाती नोट ला दिस तब गिस कातिक हा।
          जिनगी के नदिया मा अब्बड़ डगमगाइस भूरी के डोंगा हा । फेर भंवर मा फँसन नइ दिस। जप तप तपस्या करके लइका मन ला पढ़ाइस भूरी हा । दाई के तपस्या के फल अबिरथा जाथे का ... ? नही। आज बड़की हा सी. ए. हे अउ नान्हे नोनी हा मेकैनिकल इंजीनियर  हाबे। टूरा छोटे हाबे अउ बारवी के परीक्षा देवावत हे।
             अपन जिनगी के किताब के एक-एक पन्ना ला सुरता कर डारिस भूरी हा। जम्मो ला गुनत-गुनत अमरगे अपन गॉंव । अछरा मा अपन ऑंसू पोछिस अउ घर के रद्दा रेंगे लागिस ससुर कातिक ले मिले बर संग मा हाबे तीनों लइका। भलुक ससुर तंग करिस फेर अपन धरम ले विमुख नइ होवय भूरी हा। भूरी के कर्तव्य आय ससुर के जतन करे के।   देवर-देरानी मन तो हीरक के नइ देखे सियान कातिक ला । का होइस ... मेहतरीन तो हाबे महीना पुट पइसा दे देथे भूरी हा। 
... सिरतोन सियान कातिक के अगोरा सिरागे अब। तीनों लइका संग गंगाजल पियाइस सियान  ला । सियान दुनो हाथ जोरे हे जइसे माफी मांगत हाबे। कुछु कहे के उदिम करिस फेर मुँहू ले बक्का नइ फुटिस। गो...गो...ब...ब... के आरो आइस। जीभ बाहिर कोती होगे। ऑंसू वाला आँखी फरिहागे, पथरा होगे अउ काया माटी। 
     अब गाँव भर जुरियागे रोये-गाये बर।  देरानी मन ....? वहू मन आवत हाबे मेकअप करके ।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com

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