Wednesday, 20 March 2024

प्राशन-पाचन अउ पंचेड़बूटी महेंद्र बघेल

 प्राशन-पाचन अउ पंचेड़बूटी 

                    महेंद्र बघेल 


एक दिन मितान ह नाश्ता करत-करत मोला पूछ परिस - तॅंय खाय बर जीथस कि जीये बर खाथस मितान। पहिली तो मॅंय ओकर फेंकू चरित्तर ल देखके ओकर सवाल ल अनसुना कर देंव फेर अंतस म फूटत गुस्सा के लावा के आगू म मुस-मुस हाॅंसी के भाव ल अपन चेहरा म जबरदस्ती ढकेलेंव। काबर कि मोरे घर म नाश्ता झोरत हुसियार चंद ह मुही ल सवाल करत रहय। अरे ओकर सवाल ह तब वाजिब माने जातिस न., जब वोहा अपन डहर ले भोरहाच म सहीं मोला एकाद घाॅंव तो नाश्ता करवाय रहितिस। फलर- फलर मारत फलफलहा मितान के बस एकेच ठिन काम रहिस, सिरिफ अउ सिरिफ इहाॅं-उहाॅं ओसाना..।इही फलफलहा मन के सेती हमर पुरखा सियान मन सहीच बात ल कहिके चले गेहें कि पर के चीज ल भोभस म डारत खानी सबला मेछरासी आथे मने फोकट के पाय दहेल के खाय। डिट्टो वाट्सेप अउ आईटी सेल के तासिर म तलाय ओकर सवाल ल बाजू म तिरियावत मोर तो इही कहना हे कि मॅंय भूख लगथे तभे खाथों।अब मितान ल तय करना हे कि मोर खवई ह ओकर सवाल अउ मोर जवाब के कते एंगल म फिट बइठथे।कभू-कभू मन म विचार आ जथे कि खाय बर जीना अउ जीये बर खाना ये सवाल ले बढ़के मनखे के जिनगी म कोनो सवाल नइहे का..। दुनिया के सबले बड़े सवाल तो ये हे ,का सबो मनखे ल रोज खाय बर मिल पाथे..।फेर इहाॅं विडम्बना ल देखव,भूखर्रा तिर खाय बर दाना नइहे अउ खाता-पीता मन कर पचाय के ताकत नइहे।

         सही बात तो यहू हरे कि हाल कमइया अउ हाल खवइया उपर कोई अइसने टाइप के सवाल दागथे तब जुवाब मिलना बड़ मुश्कुल हो जथे। ये सवाल के बारे म थोकिन ध्यान लगाके सोचबे तब लगथे ये सवाल तो  खाता-पीता मनखे मनके लइक सवाल आय। हमर मोटा दिमाग के मोठ-मोठ नस-नाड़ी वाले ठाढ़-ठाढ़ सोच म येहा दार्शनिक सवाल कस जनाथे। काबर कि बारीक अउ रहस्य भरे सवाल ले जब कन्हो आम आदमी ह अकबक-अकबक करत बकबका जथे तब ओला लगथे ये तो दर्शन शास्त्र के गरभ ले जनमे सवाल होही। वो अलग बात आय कि दर्शन शास्त्र के अइसन सवाल ल हल करे के उदीम म आम आदमी के लासा फूट जथे फेर सफलता हाथ नी लग पाय।येकर मतलब ये नइहे कि ओकर बारे म गोठियाय के संवैधानिक अधिकार ल येमन कलेचुप बरो देय।अइसन बिसकुटा सवाल ल धीर-गंभीर ज्ञाता, विद्वान, प्रज्ञावान अउ तत्ववेत्ता जइसे महान गुणी ज्ञानी मन के बौद्धिक कोठार म ढिलना जादा सही रहिथे। आम आदमी के बुध के कोलकी म अइसन सवाल ल ढिले म ओकर सटके के सेंट परसेंट संभावना बने रहिथे..।

           खवई अउ जियई  के बारे म थोर-बहुत गोठ-बात तो होबे करिस अब खवई अउ पचई के विषय म ज्ञान मिल जाय ते हमर खवई धरम ह घलव धन्य हो जाय।निरवा खवई अउ खात-खवई के इतिहास ह कतका प्राचीन हे येला इतिहासकार मन जाने। बिना चश्मा के आम आदमी के ऑंखी म जतका जुगुर-जुगुर दिख जही इहाॅं उही ल लपेटे के कोशिश करे जाही। इहाॅं हम अउ तुम का सरी दुनिया ह जानत हे पेटला (खाता-पीता) आदमी मन खाय-पीये के बड़ शौकीन होथें, जब भी मन लगे तब खाॅंव- खाॅंव करत खाव-खाव के अधिकार ल अपन तिर सदा सुरक्षित रखथें।सेपला पेट वाले मनखे मन के सरी जिनगी ह खाय-पीये के जुगाड़ म कटत रहिथे। पेटला मने पेट वाले इनकर पेट म भूख लगे के पहिली सॅंउख ह अपन जगा बना लेथे। अइसन मन भूख लगे के पहिली अउ बाद म पेट ल रिचार्ज करे के दम रखथें। बाकी सेपला मन के बारे म कुछु बाते झन पूछ,उनकर पेट ह पेट आय ते पीठ कुछ समझे म नी आय।येला समझे के उदीम म तॅंय समझत-समझत समझते रहि जबे फेर कुछ समझे म नी आ पाही। सरी जिनगी सेपला मन के पेट अउ पीठ म चिपकिक- चिपका होय के ग्लोबल कम्पिटिशन चलत रहिथे।तब तॅंय काला समझ पाबे पेट अउ पीठ के सीरियस स्टोरी ल। अंतिम सत्य तो इही हे न, येमन अपन पेट ल रिचार्ज करे बर टापप वाउचर खातिर सरी जिनगी मेहनत के कारी पसीना म अउॅंटत रहिथें।

             जब पेटला (खाता-पीता) मन खाथे तेला भोजन करई अउ सेपला (ररूहा) मन खाथे तेला बोजई के सांस्कृतिक संबोधन ल इहिचें के मनखे समाज ह तय कर लेथें। तब पेटला अउ सेपला म काकर समाजिक महत्व ह कतिक वजनदार हे तेला आसानी ले समझे जा सकथे।इहाॅं पेटला मन ल पाचन के चिंता हे अउ सेपला मन ल अन्नप्राशन के..।पाचन प्रक्रिया म अरझे पेटला मन ल पहातीच ले आर्डन-गार्डन अउ पाई-परिया म लुहुंग-लुहुंग दौड़त-भागत, नाचत-कूदत नइते कनो कोन्टा म बैठ के सइफों-सइफों करत देखे जा सकथे।येकर छोड़ पेटला मन बर पेट ओसकाय के कई ठन दुकान खुल गेहे। पहिली तो पेटला मन थारी भर-भरके एक ले बढ़के एक हर-दिल- अजीज अउ लजीज आइटम ल ठसाठस जीम लेथें फेर पेट ल पोचकाय बर जीम के रस्ता नापथें। पेट के अतिक दुर्दशा कि पाचन के समाधान करे बर इनला आबा-बाबा के शरणागत होना पड़थे। का दू ऑंखी वाले ल कबे कि पौने दू ऑंखी वाले ल सबे टाइप के बाबा मन सइफों-सइफों करत-करवात अइसने पेटला मन के भरोसा म कारपोरेट जगत म अपन पेट अउ पेटी ल भरत दिख जथें।

            ये उदीम म योग गुरू मन अपन डेरी ऑंखी ल चपक-चपक के पेट ल हलावत-डोलावत पेटाशन-पेटाशन करावत रहिथें।हमर जइसे निपट कामन मैन के इही कहना हे कि पेट ल सहीं -सलामत रखे के संगे-संग जम्मों शरीर के सुरक्षा बर कभू-कभू कूदासन अउ भगासन के घलव अभ्यास करवाना चाही।भीड़भाड़ अउ पुलिस के डंडा-फंडा ले बाचे बर सलवार पहिन के कूदे- फांदे के अभ्यास के बारे म भी बिचार करना चाही।ये नवा आसन ह बेरा-बखत म ककरो काम आ जाय येहा कोनो कम बड़े बात तो नइ होही न।  सियान मन के कहना हे कि अइसन काम म कोनो पौने दू ऑंखी वाले बाबा टाइप के दढ़ियारा मनखे ह जब सलवार सूट ल पहिन के प्राण बचाय बर कूद-फांद के भागथे तब उनला बेपार म बड़ मुनाफा होय के गारंटी रहिथे अउ धकाधक पुण्य लाभ के प्राप्ति होथे। ये काम ल करके योगाचार्य मन ल पुण्य के खच्चित भागीदार बनना चाही। फेर पुण्य के चक्कर म आउटसोर्सिंग ले बच के रहना घलव योग धरम आय। सलवार सूट विशेषज्ञ मन बताथें कि योग अउ भोग के बीच म नानकुन अंतर रहिथे। योग के ओधा म रोग भगाय के नान्हे मानसिकता ह मनखे मन ला भोग डहर ढकेल घलव देथे।इही आउटसोर्सिंग के चक्कर म एक झन पंचेड़बूटी वाले बाबा ह बापू के पदवी ल शोभायमान करे के आस म अपन आप ल काबू म नइ रख पइस। ऑंखी म काजर ऑंजे पंचेड़बूटी के भूरका ल एक गापा मारके हवस के तंग गली म लसरंग- लसरंग नाचत अपन योजना ल सेट करे के आस म कृष्ण जन्मस्थली म सेट होगे हे। त भैया पेट के हवा सुधारे के चक्कर म हवालात के हवा खराब करना कन्हो समझदारी तो नोहे। सफेद दाढ़ी के भीतरी म विराजमान गबरू जवान ल सलाखन के सम्मान म निछावर होवत देख  पंचेड़बूटी ह घलव पछतावत होही कि मॅंय हपसी डोकरा के  सपड़ म कइसे आगे रहेंव...।

                 जब अली-गली म पंचेड़बूटी के चर्चा ह चली गेहे तब ये चर्चा ह महाचर्चा तक तो जाबे करही न..।मने ये चर्चा के महाचर्चा बने के फूल गारंटी समझ। जइसे आजकल गारंटी नामक रेबड़ी ह मीडिया म भारी चर्चा बटोरत हे। जती देखबे तती बटोरन लाल मन उही जुन्ना घोषणा ल नवा सवांगा पहिराके गारंटी नाम के ठप्पा लगावत फूटहा रेडियो कस बाजत दिख जथें।फेर वाह रे पंचेड़बूटी तॅंय सिरतोने म पंचेड़बूटी निकले, तोरे परसादे म डोकरा -डोकरा मन के झुर्री काया म जवानी के पीकी फूट जथे अउ उनकर मन भॅंवरा ह ताता-थइया करे बर कुदे परथे। तोर गुण के जतका गुणगान करे जाय वो कम हे। फेर बेंदरा के हाथ म छूरा धराय म सब गड़बड़े होइ जथे। भलुक तॅंय ये बुढ़ऊ मन के हाथ म नइ लगे रहिते अउ येमन तोला चाट-चाट के नइ खाय रहितिन ते राजनीति अउ आस्था के नाम म लोगन मन चींव-चाॅंव नइ कर पातिन।  जब-जब समाज म जवान टाईप के ये डोकरा मन के सुरता करे जाही  तब -तब पंचेड़बूटी जी ये मयारू दुनिया म तोर नाम के चर्चा बड़ सम्मान के साथ लिए जाही।

          जइसे कि देश-दुनिया म सबे मन ला जानकारी हवय कि झाॅंसा बापू नाम ल सुनके पंचेड़बूटी ह नवा दुल्हिन कस लजा जथे। अइसने पंचेड़बूटी के अंतरात्मा ह एक दिन अपन पुरखा मन के सुरता करत फ्लैश बैक म पहुॅंचगे अउ उत्तराखंड के हसीन (सुरम्य) वादी म विचरण करत ताजा आबोहवा के मजा लेवत  रहिस।तभे पंचेड़बूटी संग बबा एन डी तिवारी के ओरभेट्टा होगे। तब पंचेड़बूटी के का हाल होइस होही तेला आप मन खुदे समझ सकथो। अरे काला बताबे भरे दिसंबर महीना म पंचेड़बूटी के पसीना छूटगे। ओकर अंतरात्मा के उथल- पुथल ल देखके अइसे लगे कि एक्सपायरी डेट वाले खड्डूश मनखे के हाथ म लगे के हीनभावना म कहुॅं सोसाइड तो नी कर डारही।पंचेड़बूटी ह माने चाहे झन माने फेर सही कहिबे ते एन डी अउ झांसा-राम के प्रयोगवादी विचार धारा च ले ओकर नाम ह सरी दुनिया म आम होय हे।ओकर पहिली येला कनवा कुकुर तक ह नइ जानत रहिस,कहाॅं के अंचेड़बूटी अउ कहाॅं के पंचेड़बूटी..। दूनो बुजुर्ग  शिरोमणि उपर गारी-बखाना जइसे अलोकतांत्रिक हमला करई ल छोड़ के पंचेड़बूटी ल इन दूनो के घोलंड-घोलंड के आभार व्यक्त करना चाही। जिनकर परसादे अधेड़ अउ बुजुर्ग समाज म येकर नाम ह टिलिंग म पहुॅंच बना सके हे।

बात चलत रहिस खाय अउ पचाय के तब अइसन बेरा म एन डी टी अउ झासा राम के बारे म राम-रहीम बोलना उचित नी रहिस फेर का करबे पंचेड़बूटी के चक्कर म बइहा दिमाग ह नित्यानंद होगे ।


 महेंद्र बघेल डोंगरगांव

7987502903

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