Wednesday, 20 March 2024

महाशिवरात्रि पर्व विशेष समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं

 महाशिवरात्रि पर्व विशेष

समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं 

महाराज हिमालय अउ माता मैंना दुनों झनअपन बेटी गिरिजा के बिहाव बर बड़ फिकर करँय । एक दिन नारद जी उँकर दरबार म पहुँचिन । ओमन गिरिजा के हाथ ल देखके बिचारिन अउ बतइन के , जम्मो धरती म , एकर लइक वर मिल पाना असम्भव नइये , फेर थोरकुन मुश्किल जरूर हे – अगुन ,अमान , मातु पितु हीना । उदासीन सब संशय छीना ॥ अउ - जोगी जटिल , काम , मन , नगन अमंगल दोष । अस स्वामी एहि कंह मिलहि , परी हस्त असि देख। अर्थात एकर भाग में गुणहीन, मानहीन, बिगन दई-ददा के , उदासीन , लापरवाह ,जोगी , जटाधारी , निष्काम हिरदे , नंगरा अउ अमंगल पहनइया पति हे । पर एकर पाछू घला – समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं । ये मनखे समर्थ होही , जेकर इच्छा ले चंदा – सुरूज , आगी अउ गंगा समर्थ बन जही ।

अब सवाल ये आय के , समर्थ कोन ? जेकर करा ताकत हे  ... या वो आय जेकर करा धन दौलत माल खजाना हे । कुछ तो समर्थ उनला घला कहिथें , जेकर म कुछु दोष नइ रहय । फेर वाजिम म समर्थ वो आए , जेकर तिर देबर कुछु दिखय निही , पर अतका देथे ... जेकर सीमा नइये । भगवान शिव ही केवल समर्थ आए , काबर उही हा अपन जीव के कुटका कुटका करके हमर देंहे म जीव के रोपण करिस , अउ हमन ला जीवन दिस । जम्मो जग म निवास करइया शिव भगवान ही अइसे देवता हरे ... जेकर अराधना उपासना .... मसानगंज तक म होथे । कुछ मानसकार मन ,चंदा - सुरूज , आगी अउ गंगा ल घला समर्थ मानथे , पर असल गोठ ये आय , एमन शिव के अंग के सिवाय अउ कुछु नोहे । शिव एकर नियंत्रक अउ स्वामी घला आए । इही मन शिव म समाए हे , तेकर सेती शिव ल शंकर घला कहिथें ।

शिव ल समर्थ केहे के अउ कतको कारण हे । जग के जम्मो विधा अउ विद्या के ईशान अर्थात स्वामी घला शिवजी आय। उही हा पंचमहाभूत के नियंता घला आय  , जेकर अनुशासन ला दुनिया भर के चेतना लास्वीकारे बर परथे  , प्रमाणस्वरूप ‌-   

ईशान सर्वविधानामीश्वर: सर्वभूतानाम (वेद) 

ईश्वर: सर्व ईशान: शंकर चंद्रशेखर: ( उपनिषद ).  

ईश्वर:सर्वभूतानां हृदयेडर्जुन तिष्ठति ( गीता)

शिव पुरान के अनुसार - ईशता सर्वभूतानां ईश्वर:स्वयँ सिद्ध अउ सर्वमान्य सच हे , अउ तुलसी के शिव – भवानी शंकर वंन्दे ,श्रद्धा विश्वास रूपिणौ । याभ्यां बिना न पश्यंति , सिद्धा: स्वांत स्थामेश्व:।

सागर मंथन ले निकले चौदह रत्न मे एक रत्न जहर रिहिस , जेकर ताप ले लोगन के हाल बिहाल होए लागिस । चारो मुड़ा हाहाकर मातगे । कोन एला अंगिया सकत हे , तेकर खोजाखोज मातगे । ब्रम्हाजी अउ विष्णु भगवान हा जानय के ... शिव के अलावा काकरो म येला अंगियाये के शक्ति सामर्थ्य नइये । जम्मो झिन भगवान शिव ल सुरता करिन । शिवजी प्रकट होके गटागट लील दिस बिषम गरल ला । वेद पुरान बड़ जस गइस । तुलसी कहिथें -  

जरत सकल सुर वृंद , विषम गरल जिन्ह पान किया ।

तेहि न भजसि मतिमंद , को कृपालु संकर सरिस ।

अउ रहीम कहिथें – मान रहित विष पान करि , सम्भु भये जगदीश।

शिव के डमरू ले स्वर अउ व्यंजन के जन्म घला होइस । डमरू के प्रथम घात ले –अ , इ , उ , ल , लृ , च , अउ दूसर घात ले सामवेद के सात स्वर – सा , रे , ग , म ,  प , ध , नि , निकलिस ।

राक्षस मन के गुरू शुक्राचार्य , देवता मन के गुरू वृहस्पति अउ मनखे मन के गुरू वेदव्यास आय , लेकिन ये तीनो के महागुरू शिवजी आय ।

राक्षस मन के बैद्य सुखेन, देवता मन के बैद्य अश्वनीकुमार अउ मनखे मन के वैद्य धनवंतरी घला इनला महावैद्य कहिथें , अउ बिपत परे म शिव के सहारा लेथे । तभे इन ला परल्या वैद्यनाथ घला कहिथें ।

शिव के उपासना श्रृष्टि के शुरूआत ले चलत आवत हे । गाँव गँवई म गोबर लिपइया दाई बहिनी मन के मुँहू ले लिपत लिपत शिव शिव के अवाज अभू घला सुन सकथन । कपड़ा काँचत भाई - दीदी मन के मुहू ले शिव शिव के रटंत अभू घला सुने जा सकत हे । नांगर जोतत किसान अउ बरतन मांजत दाई के ओंठ फुसुर फुसुर शिव शिव जपत गाँव – खेत – खलिहान - बखरी ब्यारा म अभू घला मिल जाथें । वाजिम म हमर जीव , शिव के सबले तिर होथे , तेकर सेती स्वाभाविक रूप ले शिव के सुरता जाने अनजाने म अपने अपन होवत रहिथें । हमर सबो के इही मानना हे कि शिव के ही अंशआय हमर जीव हा , अउ येकरे सेती जीव के नाश नई होवय , तभे ईश्वर अंश जीव अविनाशी कहिथें । अउ येकरे सेती लोगन कहिथें – जीव न पैदा होवय , न मरय , एहा प्रकट होथे , आखिर म शिव म मिल जथे ।

शिवजी के ऊप्पर उदुप ले हपट के गिरके मरइया तक लाशिव जी हा मुक्ति प्रदान करथे । खुद शिवजी कहिथें - काशी मरत जंतु अवलोकी , करउ नाम बल जीव बिसोकी ।

संत मन के अनुसार ... काशी हमर देंह आय  - मन मथुरा , दिल द्वारिका,काया काशी जान । दसवां द्वार देहुरा , तामें ज्योति पिछान ।

पाप , ताप अउ आवेश ले छुटकारा पाए बर , शिव के नाम के जपन करथे लोगन –

जपहु जाई सत संकर नामा , होइहि हृदय तुरत विश्रामा !

शिव के महिमा के बखान मानस मे – शिव सेवा पर फल सुत सोई , अविरल भगति रामपद होई । अउ – शिव पद कमल जिन्हहि रति नाही , रामहि ते सपनेहु न सुहाही।

वेद के अनुसार - असिति गिरि सम्स्यात कज्जलं सिंधु पात्रे । तरूवरं शाखां , लेखनी पत्र मुर्वीम । लिखित यदि गृहित्वा , शारदा सर्वकालं । तदपि तव गुणाणाम ईशं , पारं न याति।

शि अर्थात पाप नाशक , व माने मुक्तिदाता । जे हमर पाप के नाश करके हमन ला मुक्ति प्रदान करथे उही शिव आय –

शि कहते अद्य नाशक , व कहते ही मुक्ति । 

गजानंद शिव शिव कहु , प्रेम ज्ञानयुक्त भक्ति ।

श्रृष्टि ला श्रष्टा से , इडा‌ ला पिंगला से, मैं ला तू से , अहम ला परम से , त्व ला स्वयँ से , पर ला अपर से , अलख ला लख से , चर ला अचर से , जड़ ला चेतन से मिला के जीव ल शिवत्व के बोध करइया स्वयं सिद्ध समर्थ शिव ही आय , जेमा कहींच दोष नइये । तभे शिवजी खातिर रामचरित मानस मा केहे गिस – समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं ।


     लेखक  - हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन 

              छुरा

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