*कहानी : मुड़ के बोझा*
संझा के बेरा रहिस। बुड़ती मुड़ा म बेरा धीरलगहा ढरकत रहिस। बुड़ती बेरा के सेंदूर लाली ले अगास के सुघरई ह मन ल मोहत रहिस। थोरकेच बेर म अँधियार अँजोर ल लीले ल धर लिस। खेती-खार अउ गँवई-गाँव म रतिहा के आरो देवत अँधियार के कब्जा होय लगिस। शहर के सड़क म स्ट्रीट लाइट के दुधिया अँजोर बगर गे राहय। राजधानी ल जोरे, सड़क म मोटर-गाड़ी मन ओसरी-पारी दउँड़त रहिन। चिरई-चिरगुन मन अपन-अपन डेरा लहुट गे रिहिन हें। उँकर चींव-चींव के कुछु आरो नइ आवत रहिस। आरो कति ले आतिस, सोआ जउन परगे रहिस उँकर। मनखे तो नोहय कि अउ कुछु जतन करतिन, बेरा-कुबेरा जगवारी बर। आने जीव मन ले पहिली जगइया अउ सुतइया जीव आय, बेरा म सुतथे अउ बेरा म उठथे।
मनखे मन घलव झटकुन अपन डेरा लहुटे के हड़बड़ी म दिखत रहिन हें। सबो कोति अपन हार्न बजावत रद्दा माँगत गाड़ी मन सड़क म भुर्र-भुर्र भागत रहिन। पो पो.., पी-पीप...म कान भर गे राहय। कोनो-कोनो गाड़ी के धुँगिया पर्यावरण ल मइला कर देत रहिस।
अइसने बेरा आछत, मैं ह टहले के पाछू घर लहुटत रेहेंव। रोज के टहलई मोर आदत म हे। इही टहलई के बहाना तो स्कूल ले आये पाछू मोला दीन-दुनिया के सोर घलव मिल जथे। ए अलग बात आय कि आज सोशल मीडिया के आय ले जम्मो तरा के घटना चार आँगुर के डिस्प्ले म तुरते जंगल के आगी बरोबर बगर जथे।
बस स्टैंड के चउँक पहुँचे रेहेंव कि एक झन लइका आघू म आ मोर रस्ता रोकिस, टुप-टुप मोर पाँव परे लगिस। वो लइका ल चीन्हे म मोला कोनो किसम ले दिक्कत नइ होइस। अपन पढ़ाय लइका ल गुरुजी मन कभू नइ भुलावैं। महूँ तो गुरुजी आवँव, कइसे भुलातेंव अपन पढ़ाय नोनी ल। अइसे भी मोर आँखी ह अतका नइ पतराय हे, कि अपन पढ़ाय लइका ल नइ चिन्हतेंव। यहू सही आय कि मोला चश्मा लग गे हावय। जेन ह पढ़े-पढ़ाय के बखत लागथे। चालीसा के असर ले कोन उबर पाय हे? ..तव .. मैं ..भला कइसे आरुग बाँच पातेंव? अब तो चालीसा के बात नइ रहिगे हावय, पढ़ेच के उमर म नजर के चश्मा नाक-कान ऊपर चढ़ जावत हे। चूँदी के पँड़री होवई (पकई) ह तो दाई -ददा ले अगुवा जावत हे। हाँ! मैं बड़ भागमानी आँव कि अभी मोर चूँदी के रंग बदले नइ हे।
सोनम नाँव के ए नोनी ल पाछू बछर ग्यारहवीं कक्षा पढ़ाय रेहेंव। तब कस्बा नुमा मोर शहर ले दू कोस के भीतर के एकठन गाँव म पोस्टिंग रहिस। अभी मोर ट्रांसफर आने स्कूल म होगे हावय। लइका होशियार नइ रहिस। फेर अतेक कमजोर घलव नइ रिहिस कि ओहा पास नइ होतिस। दसवीं कक्षा के सत्तर लइका म २५-३० लइका मन कापी जँचवावय ओमा यहू ह शामिल रहिस। जे मन बिन कहे सरलग गणित कापी दिखावँय। लइका के मन पढ़े के तो रहिस, फेर घरु बुता के चलत रोज स्कूल नइ आ पात रहिस। नोनी ल देख के मोर मन म कतको किसम के विचार के गरेरा उठय, कभू लगय कि नोनी ह सिरतोन म पढ़ पाही? त कभू लगय कि नोनी के देह कब आही? देखे म ओकर देह निचट सनडउवा काड़ी गढ़न दुब्बर पातर रहिस हे। थोरके ढकेले म ढकला जही सहीं लागे। लइका दिखे म कुपोषण के शिकार हे बानी जनावय। दू तीन पइत तो स्कूल के प्रार्थना ठउर म चक्कर खाके गिरे घलव गे हे। दिन के ११ बजे राहय, पूछे म पता चलय कि बिहनिया ले अभी घलव ओकर पेट म अन्न के एक दाना नइ गे हे। कतको दिन स्कूल नागा झन होवय कहिके बिना कुछु खाये आ जवय।
दाई-ददा मन रायपुर म रहिथें। बुता करे खातिर गे हावँय। लइका आये दिन घर-बुता बर रहि-रहि के छुट्टी माँग के घर जावय। घेरी-बेरी पढ़ई के तार टूटे ले पढ़े-लिखे म ओकर मन नइ लगत रहिस। लगे रहय, सो जानय। घर बुता मन आले-आले लइका के अगोरा करत रहँय। दूनो जुआर के रँधई गढ़ई अउ मँजई। छोटे भाई अउ बबा के कपड़ा-लत्ता धोना घलव उहीच ल करना राहय। भाई ह छठवीं पढ़त रहिस। बबा ह बिमारी के चलत उमर के पहिली अथक होगे रहिस। दवा-पानी ले दम धरे हे। हप्ता के हप्ता दवई बिसाय ल परथे।
इहू सोला आना सिरतोन गोठ आय कि हमर गँवई-गाँव म नोनी जात मन बर आले-आले ले बुता माढ़े रहिथे। दाई-ददा संग म राहय, चाहे दुरिहा म। पानी भरई, बरतन मँजई अउ घर के बहरई-बटोरई तो जइसे ओकर बिगन होनच नइ हे। अउ कुछु मिले ते झन मिले, जनम-जनम बर मँजई-धोवई उँकरेच बाँटा दिखथे। घर म बाँटा घरी भाई बाँटा भले नइ पाहीं नोनी पिला मन, फेर माँजना-धोना सरी दिन ओकरे हिस्सा म आथे। कामकाजी नउकरहिन मन ल दूनो जघा खटे ल परथे। घर बुता ले थके नोनी जब स्कूले म बरोबर रह नइ पावत रहिस, त कति ले ओकर मन पढ़ई च म रमतिस।
'मोला मोर बबा अउ भाई बर भात-साग राँधे बर लागथे। घर म तीने परानी रहिथन। मोर दाई-ददा मन दूनो झिन शहर गे हावँय। रँधई-गढ़ई अउ घर बुता के मारे मोर बर स्कूल अवई ह अजीरन हो गे हावय। बिहनिया ले उठ के चूल्हा-चउकी करत थक जाथँव। बबा के तबीयत ऊँच-नीच होवत रहिथे। ओकर जतन करई मोर बर अलगे बुता हो जथे, सर जी।'
हाव ! ओ घरी अइसने तो बताय रहिस हे, नोनी ह प्रिंसिपल साहब ल। मोला अपन जुन्ना स्कूल के वो दिन सुरता आगिस। जिहाँ सोनम ह पढ़े हावय अउ में ह पढ़ाय हँव।
वो दिन सबो के हिरदे पसीज गे रहिस। ओकर गिलौली ल सुन के।
'जानथँव कि भाई अउ बबा जइसन परिवार जन कभू मुड़ के बोझा नी होवय अउ न पढ़ई ह बोझा आय। घर के बुता घलो हे। मैं पढ़ना चाहथँव, मोला स्कूल आय म देरी बर थोरिक छूट दे देतेव सर जी हो!'
अइसने काहत ओकर आँखी डबडबा गे रहिस हे, वो दिन।
प्रार्थना के बाद स्टॉफ रूम म सकलायेन त अनुकंपा म नौकरी पाय नेवरिया गुरुजी ल काहत सुनेंव ए सब इँकर चोचला आय। मस्तियाय बर जाथें सब। शायद ओला नइ मालूम कि गरीबी अउ मजबूरी का होथे? नइ ते अइसन नइ कहितिस। सबो ल एके तराजू म नइ तउले जाय।
वो दिन मोर मन बिकट व्याकुल रहिस। बड़ छटपटायेंव कि लइका बर कुछ करँव। फेर बिन दाई-ददा के लइका घर सुन्ना म जाय बर मोर पाँव नइ उसलिस। सबो ल लोक-लाज अउ मर्यादा के खिंचाय लक्ष्मण रेखा के खियाल रखे ल परथे।... तब इही लक्ष्मण रेखा.. के चलत मेंहा मन मार के कलेचुप रहिगेंव। कुछु नइ करेंव। हाथ बाँधे ल परगे।
आज उही नोनी ह अभी एक ठन झोला धरे बस के अगोरा म ठाड़े रहिस। झोला म रखे गोल मुहरन के डब्बा बतात रहिस कि ओहर टिफिन डब्बा हरे। पूछे म मोर अनुमान सिरतो निकलिस। नोनी ह शहर के दुकान म बुता करे बर आथे। 'अभी छै महिना होय हे, दुकान आवत। संग म दू झन अउ नोनी संगवारी आथें।' यहू बताइस हे।
'त तैं अकेल्ला कइसे?' मोर अंतस् म उठे सवाल ल नोनी भाँप डरिस अउ बतावत कहिस- 'ओमन आज नइ आय हें, सर! रोजगार गारंटी म गे हावँय।'
'तें काबर नइ गे बेटा?' - मेंहा पूछेंव।
'ओमन तो पंच-सरपंच के परिवार के आय सर जी। मोला कहि दिस कि तोर लइक बुता नइ हे। जिंकर योजना मुताबिक बुता के दिन पूरे नइ हे, उन ल पहिली पूरा दिन बुता देबो। नवा भर्ती अभी नइ देवन।' नोनी ह बताइस।
सोनम के गोठ सुन मोला मोर स्टॉफ के एक झन मास्टर के कहे गोठ के सुरता आय लगिस, उन कहे रहिस - 'रोजगार गारंटी योजना के आये ले मनखे सुखियार कमती अउ अलाल जादा होगे हे। कखरो घर बुता जाय कस नि करय। रोजी बाढ़ गेहे तब ले, जी म जी पारत हाव कहिथे अउ ठउका बुता च के बेरा कान ल मिटका देथे।' ये ह ओकर अनुभव आय। ओहर घर बुता बर कतको बेर धोखा खाय हे। जी म जी पार, बनिहार मन नइ आय आइन। एमा ओकर गुस्सा घलव समाय रहिस।
सोनम आगू कहते गिस- 'नाव रोजगार गारंटी जरूर हे, फेर बुता मिले के गारंटी नइ हे। गारंटी हे त मिले बुता ल घंटा-दू-घंटा म समेट के घर लहुटे के। सरकार पइसा देथे गाँव के विकास बर। गँवइहा मन चार पइसा कमावत अपन गोड़ म खड़ा होवय कहिके। फेर मनखे मन अपने च निस्तारी के नरवा-तरिया म चार आना के बुता घला नइ करत हें। अधिकारी तो अपन ऑफिस म बइठ जही। जिहाँ गुजर-बसर करना हे, उहेंच के मनखे अपने गाँव बर नइ सोचत हें, ए संसो के गोठ आय सर जी। खुदे भ्रष्टाचार के मुसुवा बन अपने तरक्की के भुइँया ल दरे म कोनो कसर नइ छोड़त हें।'
बस के अगोरा म खड़े सोनम के गोठ ल ध्यान दे के सुनत रेहेंव। लइकापन म ओकर क्रांतिकारी विचार सुन के दंग रहिगेंव।
'शहर म दर्रत ले कमाहीं अउ सँझाती नवा जुग के अमरित ल आँखी-कान ल मुँद के गटगट टोंटा के खाल्हे उतारहीं, डीह-डोंगर ले दुरिहा शहर के कोनो रैन-बसेरा म, नइ ते बुता वाले ठिहा च म। अपन म मस्त। भले लइका-पिचका मन कुछु करे गाँव म। सरकारी चाँउर के भरोसा छोड़ जाथे। कुछ मन मजबूरी म जाथे। ओ समझे जा सकथे। फेर चार आना ले आगर मनखे के सुभाव बनगे हे। बाहिर जाना हे कहिके। बस पलायन करना हे। उन ल लइका मन के भविष्य ले कोनो मतलब नइ राहय। उमर के पहिली हाथ घलव पिंवरा देथे। अपन पादा चुकोय बर। जाना मना लइका मुड़ के बोझा आय। खास कर नोनी जात के। अभियो नोनी पिला ल पर के धन माने ल नी छोड़त हे।
बड़ दिन ले गैरहाजिर लइका मन के पालक संपर्क ले लहुटत बेरा अपन संगवारी मास्टर के गोठियाय गोठ ल सुरता कर डारेंव। बहुत घर म लइका मन भाई-बहिनी रहिथे। मुहाटी रखवार डोकरी दाई नइ ते डोकरा बबा कोनो कोनो घर म मिलिस। बाँटा के चक्की म वहू मन पिसावत हें।
बेरा बखत ही कोनो गोठ अइसने सुरता बन पैडगरी डगर म फुदकत चिरई सहीं पाँख लगा आ जथे।
एक ठन गीत ल सुरता घलव कर डारेंव- छइँया-भुइँया ल छोड़ जवइया तें थिराबे कहाँ रे... तब खूब चले हे, फेर आज हाल जस के तस हे। गावत अउ सुनत हे तब ले गाँव ल छोड़ जातेच हे।
तभे नोनी कहिस- 'मोर पापा ह जतका कमाथे, ततका ल सरकारी दुकान के भोभस म भर देथे। ऊप्पर ले मम्मी संग झगरा अलगे मताथे अउ ओकरो कमई ल उड़ाय के उदिम करथे, नइ दे म..... इही पाय के दाई ह ...' नोनी के मुँह ह रोनहुत होगे रहिस। फेर बीच सड़क म रो नइ सकिस। तभे बस आ गिस अउ नोनी सोनम ह ओमा बइठ गिस। महूँ ह अपन घर कोति रेंगे लगेंव।
खाय के पाछू रोज सहीं खटिया म ढलगेंव फेर मोर नींद कहूँ मेर बिसर गे राहय। नोनी के रोनहुत चेहरा आँखी-आँखी म झूले लागिस। खेले-कूदे अउ पढ़े के दिन म नोनी ल बुता करे ल परत हे...मैं सोच भर सकथँव। एकर ले जादा कुछुच कर घलो नइ सकँव। अइसन जान के मोर अंतस् फाट गे। एकर पहिली अतेक लाचार अउ बेबश कभू नइ पायेंव अपन आप ल मेंहा। छत कोति ल देखँव त नोनी के बरन आँखी म फेर झूले लगिस। जउन ह मोला बिजरावत हे कहे बरोबर जनाइस। मैं गुनान करत अपन आँखी मूँदेंव अउ कब नींद मोला अपन बइहाँ म पोटार लिस नइ जानेंव।
बस ले उतर के दू-तीन किमी रेंगत जाना हे सोनम ल। सोनम अकेल्ला म डर्रावत हे। कइसे जाहूँ अकेल्ला... गाँव के बेटी आँव फेर अँगूरी पानी के बस म कोन चिन्ह पाथे... डर अउ संसो के बड़ोरा मन म उमड़े लगिस। १०-१५ मिनट के पाछू बस ले उतरही। ओहर गुनत जावत हे- गाँव ले दू-चार कोस जाके लनइया मन कोन जनी कोन कोनटा ले लानथें ...बस मस्त रहिथें। चार कोस जाय ल परही सोच कुछ झन मन, मन मार के कलेचुप रहि जावय। अब तो घर-मुहाँटीच म मिले धर ले हे, त भला कतेक मुँह लुकाही। नशा चढ़थे तहान बफलत रहिथें। कभू-कभू तो ...इहीच बात ओकर डर आय।
अब नवा किसम के चलागन आगे हे। दू गाँव के बीच सड़क मन के पाई म बगरे पानी पाउच, डिस्पोजल अउ शीशी मन बतावत हें कि गाँव म विकास के गंगा कइसे बोहात हे? दिनबुड़तिहा जघा-जघा जमे जमावड़ा सोचे बर मजबूर करथे कि ओमन हम नवा पीढ़ी ल का सउँपत हें? का सिखावत हें? लइका के पढ़ई-लिखई चूल्हा तरी गय।
बिहनिया उठेंव अउ पेपर पढ़े धर लेंव। पेपर पढ़त दंग रहिगेंव। सरकारी दुकान ले राजकोष के खजाना भरे के आँकड़ा दे राहय। ओला पढ़ के मोर भीतर बइठे किरा फेर गुने धर लिस। जब ले सरकारी खजाना भरे के ठेका सरकार अपन हाथ म लेहे, तब ले गाँव के गति अउ बिगड़ गे हे।
सरकारी टॉनिक नवा नाव धराय हे। बुढ़वा लागय न जवान सबे च सरकारी दुकान के रद्दा ल सोरियावत मिलथें। १५-१६ बछर के लइका मन घलव एकर रस्दा धरत दिखथें। सरकारी खजाना ल भरे म इँकर बड़ योगदान हे। आवत लक्ष्मी ल कोनो लात नइ मारय। त सरकार अपने पाँव म काबर टँगिया मारहीं?
आज मनखे घर-परिवार के सुख ल दारू तिरन गिरवी धर ले हावय। कोन जनी अपन चेत ल कोन खूँटी म टाँगे हे ते? लइका-पिचका मन के संसो नइ करय। सोनम घलव अपन बाप के इही करनी के घानी म पेरावत हे। बाढ़े नोनी ह महतारी के रहिते बिन महतारी के ओकर मया बर सुरर जावत हे। महतारी बरोबर छोटे भाई अउ बबा के सेवा जतन करत हे।
कूट-कूट ले मार खवई के दँदरई ले हलाकान होके महतारी ह मइके के रद्दा नाप ले हावय। सोनम जावय त जावय कहाँ?
"चाहा ह माढ़े-माढ़े पानी होगे, एक घूँट घलो नइ पिये हस," चाहा के कप ल लेगे बर आय गोसाइन के चिल्लई म मेंहा गुनान ले बाहिर आयेंव।
मोर जुन्ना स्कूल के एक झन नोनी ह पढ़ई छोड़ के इहें दुकान म बुता करे आथे। ओला पढ़े म कुछु मदद कर दन का? गोसाइन तिर जम्मो गोठ संग अपन मन के इच्छा ल रखेंव।
गोसाइन कुछ गुनिस अउ कहिस- नोनी पढ़ लिही त नौकरी पा जही जरुरी नइ हे। आज कम्पीटिशन के जमाना आय। ओकर ले कुछ ऊपराहा पइसा देके ओकर घर म टिकली-फुंदरी वाला फैंसी दुकान खोलवा दे, पर के दुकान के बलदा अपने दुकान म बुता करही। अउ बीच-बीच म ओकर आरो लेवत रहिबे। नोनी ह अपन पाँव म खड़ा हो जही। पढ़नच चाही त दुकान चलावत पढ़ घलो लेही।
तैं तो मोर मुड़ी म लदाय बोझा उतार दिए, सिरतोन बड़ मयारुक हावस काहत गोसाइन के हाथ ले ठंडा होय चाहा ल लेंव। अउ बड़ सुवाद लगा के सुपुड़-सुपुड़ पीयत हाँवव।
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह, पलारी
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.
मोबा. 6261822466
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