Wednesday, 20 March 2024

उत्तम लोकाचार*. (ब्यंग)

 *उत्तम लोकाचार*.                        

                                          (ब्यंग) 

                    सँउखिया मनखे मन जब पान ठेला मा सँघरथे तब पान के बनत ले वो सब मुद्दा मा बहस छेड़ देथे, जेकर चरचा समय के हिसाब ले चर्चित रथे। भूत भविष्य के जानपाँड़े होय के हैसियत ले अंतिम समाधान घलो कर ड़ारथें। समस्या गाँव के रहय, देश दुनिया के राजनीतिक चाहे धरम करम के। सबो ले कइसे निपटे जा सकथे इँकर तिर सबके हल निकल जाथे। विचार मंथन के केंद्र पान ठेला के आगू मा बिना मंच माईक के बिना संयोजक अउ सभापति के गोष्ठी मा निदान बताके चल देथें। अइसन सतसंगी मन के तिर व्यवहार के सबो शिष्टाचार अउ लोकाचार के सबो शब्द ज्ञान भरे रथे जेकर ले चौरसता के मरियादा के चेत करत दोषी ला दू चार खुल्ला गारी देय जा सके। हम ये कइसे  कहि देन कि इँकर खुद के बोहाय हे अउ समाज ला धोय के देश ला सुधारे के ठेका उठाय हें। बिना स्वारथ के आगू आके अपन बिचार रखत हे अइसन शुभ चिंतक मन ला नमन कर लेना चाही। इहाँ तो ग्यारा दिन ले भगवत गीता के ज्ञान बँटइया मन हर मनखे ला माया मोह लोभ लालच ले दुरिहा रेहे के उपदेश देथे। अउ आखरी के दिन झोरा बोरा खीसा मा माया मोह ला भर भर के चल देथें। चढ़उतरी कम परथे तब अवइया साल मा ओकर मुँख ले गीतोपदेश सुने बर नइ मिले। 

             तर्क देके हम काकरो लोकाचार के उदारता ला ठेंस नइ लगाना चाहन। फेर लोक अउ परलोक के गोठ ला ओतके दूर तक समझथन जतका हमला जरूरत हे। तभो लोकाचार निभाय बर उदारता देखाय बर कमती घलो नइ करन। लोक के सँग हमर आचार बिचार समगे उही तो लोकाचार आय। आगू वाले निभगे अउ हम निभा डारेंन लोकाचार बर एकर ले जादा अउ का चाही।लोक म लोक व्यवहार कइसे निभे निभाय जाथे आदमी जात ला नारी परानी मन ले सिखना चाही। नानकुन फुँचरा अकन गोठ ला लमा लमाके कहना, चार महिला मंडली मा फारवर्ड करना अउ आखिर मा ये कहिके बोचक जाना कि,  टार बहिनी हम काकरो तीन पाँच मा नइ पड़न ना गोठियान, हमला का करे बर हे। पाँच महिला समूह मा वायरल करे के बाद घलो खबर जल्दी डिलीट नइ होवय। अउ सबो झन ला कहीं कि तुँहरे तिर गोठ निकलगे तौ गोठिया परे हवँ। मोर नाम झन लेहू बहिनी। एक हाथ आगी लगाना त दूसर हाथ मा बुझाय के जोखा जुगाड़ ही उत्तम लोकाचार हो सकथे। 

           आज दुनिया लोकाचार के एके तरज मा चलत हे। समझे बर अतके कहूँ कि हम जेकर कुकरा ला चोरा के लानेन। खाये के बखत दारू धरके ओहू ला बलाथन जेकर घर के कुकरा रथे। सच कहे जाय तौ इही पैतराचार हर असली लोकाचार के मंतर आय। या फेर रात के अँधियार मा डाँका डार अउ दिन के अँजोर मा चार झन के देखउ उही मन ला सद्भावना मा दान  कर। अइसन उदारता भरे सम्मान के हकदार होगेस माने सदाचार के उत्तम लोकाचार निभा डारे। आज अइसने नवाचार के जरूरत हे। नरी तो कटे फेर दरद पता नइ चलना चाही। साग मा नून बने लगे ले चाँट चाँटके सवाद लेथन फेर नून उपर लगे जी एस टी के जानकारी नइ होना चाही। 

        मूँड़ मुँडाय के बखत चेथी कटागे तब हजामची दवा नइ लगाय। मीठ मीठ गोठियाके साहसी हिम्मती बताके बड़ाई कर कर के असली दरद ले चेत बिचेत कर देथे। इही बिधि हर राष्ट निर्माण बर काम करत हे। बस स्वहित के कायदा ले करे वायदा मा फायदा जोड़ना माने लोक के अचार ला अपन

   बरनी ठेकवा मा जोगासन ले अइसे रखना कि अचार संहिता के लगत ले भुसड़ाय झन। 

              अब के जमाना मा कोनो काकरो ले खुश नइये। अच्छा कर तब खराब अउ खराब हे तब खराब। हमर असन ला खुशी तब होथे जब परोसी घर के बिहाव पारटी मा खाये के बेरा जाथन, लिफाफा मा बीस रुपिया धराके माई पिल्ला छकत फेंकत ले खाथन। अब के चले नवा पंगत रिवाज मा चार छै पूड़ी नइ फेंकाइस तहू का काम के खवई। रिस्ताचार के लोकाचार तो घर के माई लोगिन मन निभा लेथे। वोमन पहिली ले तय कर डारे रथें कि, नेंवताय सगा के बीच कते झलझलहा लुगरा ला फू फू सास अउ मोसी सास ला देना हे। अउ कते कते ला मँइके डहर के भउजी भतिजी ला देना हे। जइसे भी होवय शिष्टाचार मा घलो लोकाचार झलकना चाही। बखत परे मा परम मितान ला रुपिया पइसा चलाय बर रथे तब दूसर तिर ले दस परसेंट मा लान के देवत हवँ केहे ला परथे। नइते वापसी के संभावना कम रथे। हम तो आरती मा चिरहा नोट चघाके परम आनंद के सुख पाथन। जब खोटा सिक्का  चलन मा हे तब असल ला आगू लानके बदनामी सहना मूरखपना हो सकथे। जौन बजार के चलन हे ओकर सँग अपन आप ला समो लेना ही लोक के बीच लाज ला बचाथे। देखना सुनना सहज हे फेर सुनके चुप रहना अलग बात हे। ठेही देके सुनाबे तब दिन तो बुलक जथे बात माड़े रथे। अइसन संजोग काकरो घर हो सकथे। नइ होतिस तौ पाँच साल जुन्ना गोठ छट्ठी बर साग खँगगे, लकर धकर कड़ही डबकाके पोरसिन। फेर कतको के हाजमा अतका खराब रथे कि बात कतको साल ले पेट मा गुड़गुड़ी करत रहि जाथे। 

               

             अब गोधूलि बेरा मा बिहाव होबे नइ करे। खुसरा चिरई के बिहाव कस आधा रात के लगिन होथे। सगई बरात अउ लगिन बरात दूनो के सगा सुवागत करत ले बेटी वाले के कनिहा कतका हालिस बिहाव के बाद पता चलथे। पहिली चार झन सियान मन जाके लगिन चाँउर बाँधके आ जावे। अब सगई बरात मा घलो सौ दू सौ बराती नइ आही तौ देखइया मन कहि सकत हें कि एकर दुनिया मा कोई नइये। या फेर जात समाज ले बाहिर हे का? धोखा ले बराती मा कोनो छुटगे तब वो तानाचार के सुर मा सुना के कही कि मोरे बर उँकर गाड़ी छोटे परगे। सच यहू हे कि चली देतिस तौ अद्धी चघाके हुड़दंग ही करतिस। अइसन आदर्शवादी संसकारी बेसरमपना ला सगा होय चाहे समधी आदरपूर्वक झेलथें। एकर ले बड़े उदार लोकाचार कहुँचो देखे ला नइ मिले। चेंदरा मा झूलइया मनखे के लाश उपर जब तक डेढ़ कोरी नवा कपड़ा नइ ओढ़ाबो हमर लोकाचार के गोठ पूरा नइ होवय। एकर ले मुरदा खुश होथे कि जीयत मनखे कहि पाना कठिन हे। मरे आतमा ला शांति देय बर पार वाले अउ पारा वाले मन ला झारा झारा बरा सोंहारी खवाना परथे। नइते मरइया के आतमा परछी मा झूलत रही। शिष्ट लोकाचार के धरम निभाने वाले मन बरा मा नून कम रिहिस कहि सकथे। उन ला ये जानबा नइ रहय कि गरीब घर के तेलई बर तेल लगे हे पानी थूँक। 

             आज आदर्शवादी बन गाँधी गिरी देखाय के जरुरत नइये। धर्माचार बन फेर परसाद के मिलत ले। राष्ट्रवादी आशावादी बन फेर संविधिन के किताब धरके झन रेंग। ये धरती राम के हरे तौ आज के समाज मा कइसे निभना हे तोर उपर हे। लोकाचार मा भाईचारा के किरिया करम नइ करे माने जनम अकारथ जानले। बिना डर भय के अपराध अउ दुस्करम कर सकत हस। काबर कि मानवाधिकार के ताबीज पहिरने वाला दमदार मनखे के तिर मा रेहे ले फाँसी तो का थाना म नइ पहुँच सकस।। 

          सदाचार उदारता के शिष्टाचार मा लोकाचार के टोपी पहिर के सब घूमत हे। उत्तम लोकाचार के रस बड़े बड़े मंच मा खूब सुहाथे। फूटे दरपन मा सकल देखके करम ठठाना ही सार हे। आचरण के अचार बनत रहय, लोक के सँग बिचार के ताल बइठाना समझदारी हे। दोष उही मन गिनत रथे जे मन दूध के धोवल हें। फेर जिहाँ दूध के अंकाल परे हे उहाँ धोवाय कोन हे। समय के लोक धुन मा घुन मत लगे।बस लोकाचार निभाके इही संदेश बगरात रहना हे। जेकर आचरण खराब हे ओकरे चरण पखारौ नइते उत्तम लोकाचार के निभावन ले चूक जाहू। 


राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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