56 वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन.........
छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगइया - जनकवि कोदूराम "दलित"
छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के हर मंच ले दुनिया मा कविता के सब ले छोटे परिभाषा ला सुरता करे जाथे “जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले” अउ एकरे संग सुरता करे जाथे ये परिभाषा देवइया जनकवि कोदूराम “दलित” जी ला. दलित जी के जनम ग्राम टिकरी (अर्जुन्दा) मा 05 मार्च 1910 के होइस. उनकर काव्य यात्रा सन् 1926 ले शुरू होईस. छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा उनकर बराबर अधिकार रहिस. गाँव मा बचपना बीते के कारन उनकर कविता मा प्रकृति चित्रण देखे ले लाइक रथे. दलित जी अपन जिनगी मा भारत के गुलामी के बेरा ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन. अंग्रेज मन के शासन काल मा सरकार के विरोध मा बोले के मनाही रहिस, आन्दोलन करइया मन ला पुलिसवाला मन जेल मा बंद कर देवत रहिन. अइसन बेरा मा दलित जी गाँव गाँव मा जा के अपन कविता के माध्यम ले देशवासी मन हे हिरदे मा देशभक्ति के भाव ला जगावत रहिन. दोहा मा देशभक्ति के सन्देश दे के राउत नाचा के माध्यम ले आजादी के आन्दोलन ला मजबूत करत रहिन. आजादी के पहिली के उनकर कविता मन आजादी के आव्हान रहिन. आजादी के बाद दलित जी अपन कविता के माध्यम ले सरकारी योजना मन के भरपूर प्रचार करिन. समाज मा फइले अन्धविश्वास, छुआछूत, अशिक्षा जइसन कुरीति ला दूर करे बर उनकर कलम मशाल के काम करिस.
जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पहचान छत्तीसगढ़ी कवि के रूप मा होइस हे फेर उनकर हिन्दी भाषा ऊपर घलो समान अधिकार रहिस. लइका मन बर सरल भाषा मा बाल कविता, जनउला, बाल नाटक, क्रिया गीत रचिन. तइहा के ज़माना मा ( सन् पचास के दशक) जब छत्तीसगढ़ी भाषा गाँव देहात के भाषा रहिस कोदूराम दलित जी आकाशवाणी नागपुर, भोपाल, इंदौर मा जा के छत्तीसगढ़ी भाषा मा कविता अउ कहानी सुनावत रहिन. छत्तीसगढ़ी भाषा ला कविसम्मेलन के मंच मा स्थापित करइया शुरुवाती दौर के कवि मन मा उनला सुरता करे जाही. दलित जी के भाषा सरल, सरस औ सुबोध रहिस. व्याकरण के शुद्धता ऊपर वोमन ज्यादा ध्यान देवत रहिन इही पाय के उनकर ज्यादातर कविता मन मा छन्द के दर्शन होथे. दलित जी के हिन्दी रचना मन घलो छन्दबद्ध हें. पंडित सुंदरलाल शर्मा के बाद कोनो कवि हर छत्तीसगढ़ मा छन्द ला पुनर्स्थापित करिस हे त वो कवि कोदूराम "दलित" आय. 28 सितम्बर 1967 के दलित जी के निधन होइस। दलित जी के छन्दबद्ध रचना ला छन्द विधान सहित जानीं।
दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -
संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।
दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।
दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव -
ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगाँय।
मनखे ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खाँय।।
बाहिर ले बेपारी मन आके सिधवा छत्तीसगढ़िया ऊपर राज करे लगिन। ये पीरा ला दलित जी व्यंग्य मा लिखिन हें –
फुटहा लोटा ला धरव, जावव दूसर गाँव।
बेपारी बनके उहाँ, सिप्पा अपन जमाँव।।
टिकरी गाँव के माटी मा जनमे कवि दलित के बचपना गाँवे मा बीतिस। गाँव मा हर चीज के अपन महत्व होथे। गोबर के सदुपयोग कइसे करे जाय, एला बतावत उनकर दोहा देखव –
गरुवा के गोबर बिनौ, घुरवा मा ले जाव।
खूब सड़ो के खेत बर, सुग्घर खाद बनाव।।
छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय। इहाँ के मनखे के मुख्य भोजन बासी आय। दलित जी भला बासी के गुनगान कइसे नइ करतिन –
बासी मा गुन हे गजब, येला सब मन खाव।
ठठिया भर पसिया पियव, तन ला पुष्ट बनाव।।
दलित जी किसान के बेटा रहिन। किसानी के अनुभव उनकर दोहा मा साफ दिखत हे –
बरखा कम या जासती, होवय जउने साल।
धान-पान होवय नहीं, पर जाथै अंकाल।।
जनकवि कोदूराम "दलित" जी नवा अविष्कार ला अपनाये के पक्षधर रहिन। ये प्रगतिशीलता कहे जाथे। कवि ला बदलाव के संग चलना पड़थे। देखव उनकर दोहा मा विज्ञान ला अपनाए बर कतिक सुग्घर संदेश हे –
आइस जुग विज्ञान के, सीख़ौ सब विज्ञान।
सुग्घर आविष्कार कर, करौ जगत कल्यान।।
सोरठा छन्द - ये दोहा के बिल्कुले उल्टा होथे। यहू दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों विषम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ विषम चरण के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 11 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।
बंदँव बारम्बार, विद्या देवी सरस्वती।
पूरन करहु हमार, ज्ञान यज्ञ मातेस्वरी।।
उल्लाला छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। विषम अउ सम चरण या सम अउ सम चरण आपस मा तुकांत होथें अउ हर चरण दोहा के विषम चरण असन होथे। ये छन्द मा 13 अउ 13 मात्रा मा यति होथे।
खेलव मत कोन्हों जुआ, करव न धन बरबाद जी।
आय जुआ के खेलना, बहुत बड़े अपराध जी।।
सरसी छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 16 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। दलित जी सन् 1931 मा दुरुग आइन अउ इहें बस गें। वोमन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। उनकर सरसी छन्द मा गुरुजी के पीरा घलो देखे बर मिलथे –
चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुनलो भइया हाल।
महँगाई के मारे निच्चट , बने हवयँ कंगाल।।
गुरुजी मन के हाल बर सरकार ऊपर व्यंग्य देखव –
जउन देस मा गुरूजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।
कहै कबीरा तउन देस के , होथे बंठाढार।।
दलित जी अइसन गुरुजी मन ऊपर घलो व्यंग्य करिन जउन मन अपन दायित्व ला बने ढंग ले नइ निभावँय –
जउन गुरूजी मन लइका ला, अच्छा नहीं पढ़ायँ।
तउन गुरूजी अपन देस के, पक्का दुस्मन आयँ।।
रोला छन्द - चार पद, दू - दू पद मा तुकांत, 11 अउ 13 मात्रा मे यति या हर पद मा कुल 24 मात्रा।
दलित जी के ये रोला छन्द मा बात के महत्ता बताये गेहे –
जग के लोग तमाम, बात मा बस मा आवैं।
बाते मां अड़हा - सुजान मन चीन्हें जावैं।।
करो सम्हल के बात, बात मा झगरा बाढ़य।
बने-बुनाये काम,सबो ला बात बिगाड़य।।
आज के जमाना मा बेटा-बहू मन अपन ददा दाई ला छोड़ के जावत हें। इही पीरा ला बतावत दलित जी के एक अउ रोला छन्द –
डउकी के बन जायँ, ददा - दाई नइ भावैं।
छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावैं-खावैं।।
धरम - करम सब भूल, जाँय भकला मन भाई।
बनँय ददा-दाई बर ये कपूत दुखदाई।।
छप्पय छन्द – एक रोला छन्द के बाद एक उल्लाला छन्द रखे ले छप्पय छन्द बनथे। ये छै पद के छन्द होथे। गुरु के महत्ता बतावत दलित जी के छप्पय छन्द देखव –
गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे।
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे।।
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे।
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान जी।
गुरु के आदर नित करो, गुरु हर आय महान जी।।
चौपई छन्द - 15, 15 मात्रा वाले चार पद के छन्द चौपई छन्द कहे जाथे। चारों पद या दू-दू पद आपस मे तुकांत होथें।
धन धन रे न्यायी भगवान। कहाँ हवय जी आँखी कान।।
नइये ककरो सुरता-चेत। देव आस के भूत-परेत।।
एक्के भारत माँ के पूत। तब कइसे कुछ भइन अछूत।।
दिखगे समदरसीपन तोर। हवस निचट निरदई कठोर।।
चौपाई छन्द - ये 16, 16 मात्रा मे यति वाले चार पद के छन्द आय। एखर एक पद ला अर्द्धाली घलो कहे जाथे। चौपाई बहुत लोकप्रिय छन्द आय। तुलसीदास के राम चरित मानस मा चौपाई के सब ले ज्यादा प्रयोग होय हे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन कविता ला साकार घलो करत रहिन। उन प्राथमिक शाला के गुरुजी रहिन। अपन निजी प्रयास मा प्रौढ़ शिक्षा के अभियान चला के आसपास के गाँव साँझ के जाके प्रौढ़ गाँव वाला मन ला पढ़ावत घलो रहिन। प्रौढ़ शिक्षा ऊपर उनकर एक चौपाई –
सुनव सुनव सब बहिनी भाई। तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।।
गपसप मा झन समय गँवावव। सुरता करके इसकुल आवव।।
दू दू अक्छर के सीखे मा। दू-दू अक्छर के लीखे मा।।
मूरख हर पंडित हो जाथे। नाम कमाथे आदर पाथे।।
अब तो आइस नवा जमाना।हो गै तुम्हरे राज खजाना।।
आज घलो अनपढ़ रहि जाहू।तो कइसे तुम राज चलाहू।।
पद्धरि छन्द - ये 16, 16 मात्रा मा यति वाले दू पद के छ्न्द आय। एखर शुरुवात मा द्विकल (दू मात्रा वाले शब्द) अउ अंत मा जगण (लघु, गुरु, लघु मात्रा वाले शब्द) आथे। हर दू पद आपस मा तुकांत होथे। दलित जी अपन जागरण गीत मा पद्धरि छन्द के बड़ सुग्घर प्रयोग करिन हें –
झन सुत सँगवारी जाग जाग। अब तोर देश के खुलिस भाग।।
अड़बड़ दिन मा होइस बिहान। सुबरन बिखेर के उइस भान।।
घनघोर घुप्प अँधियार हटिस। ले दे के पापिन रात कटिस।।
वन उपवन माँ आइस बहार। चारों कोती छाइस बहार।।
मनहरण घनाक्षरी - कई किसम के घनाक्षरी छन्द होथे जेमा मनहरण घनाक्षरी सब ले ज्यादा प्रसिद्ध छन्द आय। येहर वार्णिक छन्द आय। 16, 15 वर्ण मा यति देके चार डाँड़ आपस मा तुकांत रखे ले मनहरण घनाक्षरी लिखे जाथे। चारों डाँड़ आपस मा तुकांत रहिथे। घनाक्षरी छन्द ला कवित्त घलो कहे जाथे। जनकवि कोदूराम "दलित" जी के ये प्रिय छन्द रहिस। उनकर बहुत अकन रचना मन घनाक्षरी छन्द मा हें। कविता मा गाँव के नान नान चीज ला प्रयोग मा लाना उनकर विशेषता रहिस। ये मनहरण घनाक्षरी मा देखव अइसन अइसन चीज के बरतन हे जउन मन समे के संगेसंग नँदा गिन। चीज के नँदाए के दूसर प्रभाव भाजहा ऊपर पड़थे। चीज के संगेसंग ओकर नाम अउ शब्द मन चलन ले बाहिर होवत जाथें अउ शब्दकोश कम होवत जाथे। तेपाय के असली साहित्यकार मन अइसन चीज के नाम के प्रयोग अपन साहित्य मा करके ओला चलन मा जिन्दा राखथें। ये घनाक्षरी दलित जी अइसने प्रयास आय –
सूपा ह पसीने-फुने, चलनी चालत जाय
बहाना मूसर ढेंकी, मन कूटें धान-ला।
हँसिया पउले साग, बेलना बेलय रोटी
बहारी बहारे जाँता पिसय पिसान-ला।
फुँकनी फुँकत जाय, चिमटा ह टारे आगी
बहू रोज राँधे-गढ़े, सबो पकवान-ला।
चूल्हा बटलोही डुवा तेलाई तावा-मनन
मिलके तयार करें, खाये के समान-ला।।
जब अपन देश ऊपर कोनो दुश्मन देश हमला कर देथे तब कवि के कलम दुश्मन ला ललकारथे। सन् 1962 मा चीन हर हर देश ऊपर हमला करे रहिस। दलित जी के कलम के ललकार देखव -
चीनी आक्रमण के विरुद्ध (घनाक्षरी)
अरे बेसरम चीन, समझे रहेन तोला
परोसी के नता-मा, अपन बँद-भाई रे।
का जानी कि कपटी-कुटाली तैं ह एक दिन
डस देबे हम्मन ला, डोमी साँप साहीं रे ।
बघवा के संग जूझे, लगे कोल्हिया निपोर
दीखत हवे कि तोर आइगे हे आई रे।
लड़ाई लड़े के रोग, डाँटे हवै बहुँते तो
रहि ले-ले तोर हम, करबो दवाई रे ।।
अइसने सन् 1965 मा पाकिस्तान संग जुद्ध होइस। दलित जी के आव्हान ला देखव ये घनाक्षरी मा –
चलो जी चलो जी मोर, भारत के वीर चलो
फन्दी पाकिस्तानी ला, हँकालो मार-मार के।
कच्छ के मेड़ों के सबो, चिखलही भुइयाँ ला
पाट डारो उन्हला, जीयत डार-डार के।
सम्हालो बन्दूक बम , तोप तलवार अब
आये है समय मातृ-भूमि के उद्धार के।
धन देके जन देके, लहू अउ सोन देके
करो खूब मदद अपन सरकार के।।
गाँव मे पले-बढ़े के कारण दलित जी अपन रचना मन मा गाँव के दृश्य ला सजीव कर देवत रहिन। उनकर चउमास नाम के कविता घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। उहाँ के दू दृश्य मा छत्तीसगढ़ के गाँव के सजीव बरनन देखव –
बाढिन गजब माँछी बत्तर-कीरा "ओ" फांफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मां मउज करें-मेचका भिंदोल घोंघी,
केंकरा केंछुवा जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलयं,
बड़ बिखहर बिच्छी सांप-चरगोरिया ।
कनखजूरा-पताड़ा सतबूंदिया औ" गोहे,
मुंह लेड़ी धूर नाँग, कँरायत कौड़िया ।।
जनकवि कोदूराम "दलित" के एक प्रसिद्ध रचना "तुलसी के मया मोह राई छाईं उड़गे" मा गोस्वामी तुलसी दास के जनम ले लेके राम चरित मानस गढ़े तक के कहिनी घनाक्षरी छन्द मा रचे गेहे। वो रचना के एक दृश्य देखव कि छत्तीसगढ़ के परिवेश कइसे समाए हे –
एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा,
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत,
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी,
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो,
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।।
कुण्डलिया छन्द – ये छै डांड़ के छन्द होथे. पहिली दू डांड़ दोहा के होथे ओखर बाद एक रोला छन्द रखे जथे. दोहा के चौथा चरण रोला के पहिली चरण बनथे. शुरू के शब्द या शब्द-समूह वइसने के वइसने कुण्डलिया के आखिर मा आना अनिवार्य होते. कोदूराम "दलित" जी आठ सौ ले ज्यादा कविता लिखिन हें फेर अपन जीवन काल मा एके किताब छपवा पाइन - "सियानी गोठ"। ये किताब कुण्डलिया छन्द के संग्रह हे। कवि गिरिधर कविराय, कुण्डलिया छन्द के जनक कहे जाथें। उनकर परम्परा ला दलित जी, छत्तीसगढ़ मा पुनर्स्थापित करिन हें। साहित्य जगत मा कोदूराम "दलित" जी ला छत्तीसगढ़ के गिरिधर कविराय घलो कहे जाथे। गिरिधर कविराय के जम्मो कुण्डलिया छन्द नीतिपरक हें फेर दलित जी के कुण्डलिया छन्द मा विविधता देखे बर मिलथे। आवव कोदूराम "दलित" जी के कुण्डलिया छन्द के अलग-अलग रंग देखव –
नीतिपरक कुण्डलिया – राख
नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय।
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय।।
गजब अन्न उपजाय, राख मां फूँको-झारो।
राखे-मां कपड़ा – बरतन उज्जर कर डारो।।
राख चुपरथे तन –मां, साधु,संत, जोगी मन।
राख दवाई आय, राख –ला नष्ट करो झन।।
सम सामयिक - पेपर
पेपर मन –मां रोज तुम, समाचार छपवाव।
पत्रकार संसार ला, मारग सुघर दिखाव।।
मारग सुघर दिखाव, अउर जन-प्रिय हो जाओ।
स्वारथ - बर पेपर-ला, झन पिस्तौल बनाओ।।
पेपर मन से जागृति आ जावय जन-जन मा।
सुग्घर समाचार छपना चाही पेपर-मा।।
पँचसाला योजना (सरकारी योजना) -
पँचसाला हर योजना, होइन सफल हमार।
बाँध कारखाना सड़क, बनवाइस सरकार।।
बनवाइस सरकार, दिहिन सहयोग सजाबो झन।
अस्पताल बिजली घर इसकुल घलो गइन बन।।
देख हमार प्रगति अचरज, होइस दुनिया ला।
होइन सफल हमार, योजना मन पँचसाला।।
अल्प बचत योजना - (जन जागरण)
अल्प बचत के योजना, रुपया जमा कराव।
सौ के बारे साल मा, पौने दू सौ पाव।।
पौने दू सौ पाव, आयकर पड़ै न देना।
अपन बाल बच्चा के सेर बचा तुम लेना।।
दिही काम के बेरा मा, ठउँका आफत के।
बनिस योजना तुम्हरे खातिर अल्प बचत के।।
विज्ञान – (आधुनिक विचार)
आइस जुग विज्ञान के , सीखो सब विज्ञान।
सुग्घर आविस्कार कर , करो जगत कल्यान।।
करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो।
तुम्हू जियो अउ दूसर मन ला घलो जियन दो।।
ऋषि मन के विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस।
सीखो सब विज्ञान, येकरे जुग अब आइस।।
टेटका – (व्यंग्य)
मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग।
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग।।
तइसन बदलिन रंग, बचाय अपन वो चोला।
लिलय गटागट जतका, किरवा पाय सबोला।।
भरय पेट तब पान-पतेरा-मां छिप जावय।
ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय।।
खटारा साइकिल – (हास्य)
अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।
बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।
कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।
सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।
लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा।
पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।
अउ आखिर मा दलित जी के ये कुण्डलिया छन्द, हिन्दी भाषा मा -
नाम -
रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार।
अतः सभी का कर भला, है इसमें ही सार।।
है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ।
अमर रहेगा नाम, किया कर नित परमारथ।।
काया रूपी महल, एक दिन ढह जाना है।
किन्तु सुनाम सदा दुनिया में रह जाना है।।
छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी अपन पहिली कुण्डलिया छन्द संग्रह "सियानी गोठ" (प्रकाशन वर्ष - 1967) मा अपन भूमिका मा लिखे रहिन- "ये बोली (छत्तीसगढ़ी) मा खास करके छन्द बद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें। स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें। ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे। यही सोच के महूँ हर ये बोली मा रचना करे लगे हँव"।
उंकर निधन 28 सितम्बर 1967 मा होइस, उंकर बाद छत्तीसगढ़ी मा छन्दबद्ध रचना लिखना लगभग बंद होगे। सन् 2015 के दलित जी के बेटा अरुण कुमार निगम हर छत्तीसगढ़ी मा विधान सहित 50 किसम के छन्द के एक संग्रह "छन्द के छ" प्रकाशित करवा के दलित जी के सपना ला पूरा करिन। आजकाल छन्द के छ नाम के ऑनलाइन गुरुकुल मा छत्तीसगढ़ के नवा कवि मन ला छन्द के ज्ञान देवत हें जेमा करीब 200 नवा कवि मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा कई किसम के छन्द लिखत हें अउ अपन भाषा ला पोठ करत हें।
आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़
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जनकवि कोदूराम "दलित" जी को समर्पित काव्यांजलि
आल्हा छन्द - शकुन्तला शर्मा
(1) कोदूराम "दलित"
छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ
वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।
कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस ज्ञान
भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।
देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद
आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।
अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल
गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।
शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत
मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।
मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान
ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।
जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार
सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।
दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात
सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।
रचयिता - शकुन्तला शर्मा, भिलाई
जजनकवि कोदूराम “दलित” की साहित्य साधना : शकुन्तला शर्मा
मनुष्य भगवान की अद्भुत रचना है, जो कर्म की तलवार और कोशिश की ढाल से, असंभव को संभव कर सकता है । मन और मति के साथ जब उद्यम जुड जाता है तब बड़े बड़े तानाशाह को झुका देता है और लंगोटी वाले बापू गाँधी की हिम्मत को देख कर, फिरंगियों को हिन्दुस्तान छोड़ कर भागना पड़ता है । मनुष्य की सबसे बड़ी पूञ्जी है उसकी आज़ादी, जिसे वह प्राण देकर भी पाना चाहता है, तभी तो तुलसी ने कहा है - ' पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं ।' तिलक ने कहा - ' स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे ।' सुभाषचन्द्र बोस ने कहा - ' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।' सम्पूर्ण देश में आन्दोलन हो रहा था, तो भला छत्तीसगढ़ स्थिर कैसे रहता ? छत्तीसगढ़ के भगतसिंह वीर नारायण सिंह को फिरंगियों ने सरेआम फाँसी पर लटका दिया और छत्तीसगढ़ ' इंकलाब ज़िंदाबाद ' के निनाद से भर गया, ऐसे समय में ' वंदे मातरम् ' की अलख जगाने के लिए, कोदूराम 'दलित' जी आए और उनकी छंद - बद्ध रचना को सुनकर जनता मंत्र – मुग्ध हो गई -
" अपन - देश आज़ाद करे - बर, चलो जेल - सँगवारी
कतको झिन मन चल देइन, आइस अब - हम रो- बारी।
जिहाँ लिहिस अवतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस
दुष्ट- जनन ला मारिस अउ, भुइयाँ के भार - उतारिस।
उही किसम जुर - मिल के हम, गोरा - मन ला खेदारी
अपन - देश आज़ाद करे बर, चलो - जेल - सँगवारी।"
15 अगस्त सन् 1947 को हमें आज़ादी मिल गई, तो गाँधी जी की अगुवाई में दलित जी ने जन - जागरण को संदेश दिया –
" झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग
सत अउर अहिंसा सफल रहिस, हिंसा के मुँह मा लगिस आग ।
जुट - मातृ - भूमि के सेवा मा, खा - चटनी बासी - बरी - साग
झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग ।
उज्जर हे तोर- भविष्य - मीत,फटकार - ददरिया सुवा - राग
झन सुत सँगवारी जाग - जाग अब तोर देश के खुलिस भाग ।"
हमारे देश की पूँजी को लूट कर, लुटेरे फिरंगी ले गए, अब देश को सबल बनाना ज़रूरी था, तब दलित ने जन -जन से, देश की रक्षा के लिए, धन इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया –
कवित्त –
" देने का समय आया, देओ दिल खोल कर, बंधुओं बनो उदार बदला ज़माना है
देने में ही भला है हमारा औ’ तुम्हारा अब, नहीं देना याने नई आफत बुलाना है।
देश की सुरक्षा हेतु स्वर्ण दे के आज हमें, नए- नए कई अस्त्र- शस्त्र मँगवाना है
समय को परखो औ’ बनो भामाशाह अब, दाम नहीं अरे सिर्फ़ नाम रह जाना है।"
छत्तीसगढ़ के ठेठ देहाती कवि कोदूराम दलित ने विविध छंदों में छत्तीसगढ़ की महिमा गाई है। भाव - भाषा और छंद का सामञ्जस्य देखिए –
चौपाई छंद
"बन्दौं छत्तीसगढ़ शुचिधामा, परम - मनोहर सुखद ललामा
जहाँ सिहावादिक गिरिमाला, महानदी जहँ बहति विशाला।
जहँ तीरथ राजिम अति पावन, शबरीनारायण मन भावन
अति - उर्वरा - भूमि जहँ केरी, लौहादिक जहँ खान घनेरी ।"
कुण्डलिया छन्द -
" छत्तीसगढ़ पैदा - करय अड़बड़ चाँउर - दार
हवयँ इहाँ के लोग मन, सिधवा अऊ उदार ।
सिधवा अऊ उदार हवयँ दिन रात कमावयँ
दे - दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ ।
ठगथें ए बपुरा- मन ला बंचक मन अड़बड़
पिछड़े हावय अतेक इही कारण छत्तीसगढ़ ।"
सार छंद -
" छन्नर छन्नर चूरी बाजय खन्नर खन्नर पइरी
हाँसत कुलकत मटकत रेंगय बेलबेलहिन टूरी ।
काट काट के धान - मढ़ावय ओरी - ओरी करपा
देखब मा बड़ निक लागय सुंदर चरपा के चरपा ।
लकर धकर बपरी लइकोरी समधिन के घर जावै
चुकुर - चुकुर नान्हें बाबू ला दुदू पिया के आवय।
दीदी - लूवय धान खबा-खब भाँटो बाँधय - भारा
अउहाँ झउहाँ बोहि - बोहि के भौजी लेगय ब्यारा।"
खेती का काम बहुत श्रम - साध्य होता है, किंतु दलित जी की कलम का क़माल है कि वे इस दृश्य का वर्णन, त्यौहार की तरह कर रहे हैं। इन आठ पंक्तियों से सुसज्जित सार छंद में बारह दृश्य हैं, मुझे ऐसा लगता है कि दलित जी की क़लम में एक तरफ निब है और दूसरी ओर तूलिका है, तभी तो उनकी क़लम से लगातार शब्द - चित्र बनते रहते है और पाठक भाव - विभोर हो जाता है, मुग्ध हो जाता है ।
निराला की तरह दलित भी प्रगतिवादी कवि हैं । वे समाज की विषमता को देखकर हैरान हैं, परेशान हैं और सोच रहें हैं कि हम सब, एक दूसरे के सुख - दुःख को बाँट लें तो विषमता मिट जाए –
मानव की
" जल पवन अगिन जल के समान यह धरती है सब मानव की
हैं किन्तु कई - धरनी - विहींन यह करनी है सब - मानव की ।
कर - सफल - यज्ञ भू - दान विषमता हरनी है सब मानव की
अविलम्ब - आपदायें - निश्चित ही हरनी - है सब- मानव की ।"
श्रम का सूरज (कवित्त)
" जाग रे भगीरथ - किसान धरती के लाल, आज तुझे ऋण मातृभूमि का चुकाना है
आराम - हराम वाले मंत्र को न भूल तुझे, आज़ादी की - गंगा घर - घर पहुँचाना है ।
सहकारिता से काम करने का वक्त आया, क़दम - मिला के अब चलना - चलाना है
मिल - जुल कर उत्पादन बढ़ाना है औ’, एक - एक दाना बाँट - बाँट - कर खाना है ।"
सवैया -
" भूखों - मरै उत्पन्न करै जो अनाज पसीना - बहा करके
बे - घर हैं महलों को बनावैं जो धूप में लोहू - सुखा करके ।
पा रहे कष्ट स्वराज - लिया जिनने तकलीफ उठा - करके
हैं कुछ चराट चलाक उड़ा रहे मौज स्वराज्य को पा करके ।"
गरीबी की आँच को क़रीब से अनुभव करने वाला एक सहृदय कवि ही इस तरह, गरीबी को अपने साथ रखने की बात कर रहा है । आशय यह है कि - " गरीबी ! तुम यहाँ से नहीं जाओगी, जो हमारा शोषण कर रहे हैं, वे तुम्हें यहाँ से जाने नहीं देंगे और जो भूखे हैं वे भूखे ही रहेंगे ।" जब कवि समझ जाता है कि हालात् सुधर नहीं सकते तो कवि चुप हो जाता है और उसकी क़लम उसके मन की बात को चिल्ला - चिल्ला कर कहती है -
गरीबी –
" सारे गरीब नंगे - रह कर दुख पाते हों तो पाने दे
दाने दाने के लिए तरस मर जाते हों मर जाने दे ।
यदि मरे - जिए कोई तो इसमें तेरी गलती - क्या
गरीबी तू न यहाँ से जा ।"
कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि गाय जो हमारे जीवन की सेतु है, जो ' अवध्या' है, उसी की हत्या होगी और सम्पूर्ण गो - वंश का अस्तित्व ही खतरे में पड जाएगा । दलित जी ने गो - माता की महिमा गाई है । बैलों की वज़ह से हमें अन्न - धान मिल जाता है और गो -रस की मिठास तो अमृत -तुल्य होती है। दलित जी ने समाज को यह बात बताई है कि-"गो-वर को केवल खाद ही बनाओ,उसे छेना बना कर अप-व्यय मत करो" -
गो - वध बंद करो
" गो - वध बंद करो जल्दी अब, गो - वध बंद करो
भाई इस - स्वतंत्र - भारत में, गो - वध बंद करो ।
महा - पुरुष उस बाल कृष्ण का याद करो तुम गोचारण
नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का याद करो तुम किस कारण ?
माखन- चोर उसे कहते हो याद करो तुम किस कारण
जग सिरमौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण ?
मान रहे हो देव - तुल्य उससे तो तनिक-- डरो ॥
समझाया ऋषि - दयानंद ने, गो - वध भारी पातक है
समझाया बापू ने गो - वध राम राज्य का घातक है ।
सब - जीवों को स्वतंत्रता से जीने - का पूरा - हक़ है
नर पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक हैं।
सत्य अहिंसा का अब तो जन - जन में भाव - भरो ॥
जिस - माता के बैलों- द्वारा अन्न - वस्त्र तुम पाते हो
जिसके दही- दूध मक्खन से बलशाली बन जाते हो ।
जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो मौज - उड़ाते हो
अरे उसी - माता के गर्दन- पर तुम छुरी - चलाते हो।
गो - हत्यारों चुल्लू - भर - पानी में डूब - मरो
गो -रक्षा गो - सेवा कर भारत का कष्ट - हरो ॥"
शिक्षक की नज़र पैनी होती है । वह समाज के हर वर्ग के लिए सञ्जीवनी दे - कर जाता है । दलित जी ने बाल - साहित्य की रचना की है, बच्चे ही तो भारत के भविष्य हैं -
वीर बालक
"उठ जाग हिन्द के बाल - वीर तेरा भविष्य उज्ज्वल है रे ।
मत हो अधीर बन कर्मवीर उठ जाग हिन्द के बाल - वीर।"
अच्छा बालक पढ़ - लिख कर बन जाता है विद्वान
अच्छा बालक सदा - बड़ों का करता है सम्मान ।
अच्छा बालक रोज़ - अखाड़ा जा - कर बनता शेर
अच्छा बालक मचने - देता कभी नहीं - अन्धेर ।
अच्छा बालक ही बनता है राम लखन या श्याम
अच्छा बालक रख जाता है अमर विश्व में नाम ।"
अब मैं अपनी रचना की इति की ओर जा रही हूँ, पर दलित जी की रचनायें मुझे नेति - नेति कहकर रोक रही हैं । दलित जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । समरस साहित्यकार, प्रखर पत्रकार, सजग प्रहरी, विवेकी वक्ता, गंभीर गुरु, वरेण्य विज्ञानी, चतुर चित्रकार और कुशल किसान ये सभी उनके व्यक्तित्व में विद्यमान हैं, जिसे काल का प्रवाह कभी धूमिल नहीं कर सकता ।
हरि ठाकुर जी के शब्दों में -
" दलित जी ने सन् -1926 से लिखना आरम्भ किया उन्होंने लगभग 800 कवितायें लिखीं,जिनमें कुछ कवितायें तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और कुछ कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी से हुआ । आज छत्तीसगढ़ी में लिखने वाले निष्ठावान साहित्यकारों की पूरी पीढ़ी सामने आ चुकी है किंतु इस वट - वृक्ष को अपने लहू - पसीने से सींचने वाले, खाद बन कर, उनकी जड़ों में मिल जाने वाले साहित्यकारों को हम न भूलें।"
साहित्य का सृजन, उस परम की प्राप्ति के पूर्व का सोपान है । जब वह अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है तो अपना परिचय कुछ इस तरह देता है, और यहीं पर उसकी साधना सम्पन्न होती है -
आत्म परिचय
" मुझमें - तुझमें सब ही में रमा वह राम हूँ- मैं जगदात्मा हूँ
सबको उपजाता हूँ पालता- हूँ करता सबका फिर खात्मा हूँ।
कोई मुझको दलित भले ही कहे पर वास्तव में परमात्मा हूँ
तुम ढूँढो मुझे मन मंदिर में मैं मिलूँगा तुम्हारी ही आत्मा हूँ।"
शकुन्तला शर्मा, भिलाई
मो. 93028 30030
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*28 सितम्बर, पुण्यतिथि विशेष*
*संघर्ष ले उपजे जनकवि : कोदूराम "दलित"*
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाम ले मशहूर जनकवि कोदूराम "दलित" जी के जन्म 5 मार्च 1910 के ग्राम-टिकरी (अर्जुन्दा) जिला दुर्ग के साधारण किसान परिवार म होय रहिस। किसान परिवार म पालन पोषण होय के कारण पूरा बचपन किसान अउ बनिहार के बीच म बीतिस। ।आजादी के पहिली अउ बाद उन कालजयी सृजन करिन। समतावादी विचार,मानवतावादी दृष्टिकोण अउ यथार्थवादी सोंच के कारण आज पर्यन्त उन प्रासंगिक बने हवय।
दलित जी के कृतित्व मा खेती किसानी के अदभुत चित्रण मिलथे। खेती किसानी ल करीब से देखे अउ जिये हवय येकर सेती उँकर गीत म जीवंत चित्रण मिलथे :-
पाकिस धान-अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,
कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी।
धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,
वो जग-पालनहार बिछाइस,ये सुनहरा बिछौना।
दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,
आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के।
स्वतंत्रता आंदोलन के बेरा लिखे उँकर प्रेरणादायी छन्द -
अपन देश आजाद करे बर,चलो जेल सँगवारी,
कतको झिन मन चल देइन,आइस अब हमरो बारी।
गाँधीजी के विचारधारा ले प्रभावित अंग्रेजी हुकूमत खिलाफ साहित्य ल अपन हथियार बनाईन शिक्षक रहिन तभो ले लइका मनके मन मे स्वतंत्रता के अलख जगाय खातिर राउत दोहा लिख-लिख के प्रेरित करिन :-
हमर तिरंगा झंडा भैया, फहरावै असमान।
येकर शान रखे खातिर हम,देबो अपन परान।
अपन मन के उद्गार ल बेबाक लिखइया दलित जी के रचना मन कबीर के काफी नजदीक मिलथे। जइसन फक्कड़ अउ निडर कबीर रहिन वइसने कोदूराम दलित जी। समाज म व्याप्त पाखण्ड के उन जमके विरोध करिन। एक कुण्डलिया देखव :-
ढोंगी मन माला जपैं, लम्हा तिलक लगायँ ।
हरिजन ला छीययँ नहीं,चिंगरी मछरी खायँ।।
चिंगरी मछरी खायँ, दलित मन ला दुत्कारैं।
कुकुर – बिलाई ला चूमयँ – चाटयँ पुचकारैं।
छोड़ - छाँड़ के गाँधी के, सुग्घर रसदा ला।
भेद-भाव पनपायँ , जपयँ ढोंगी मन माला।
कोदूराम "दलित" ला जनकवि कहे के पाछू खास वजह ये भी हवय कि उँकर रचना म आम जनता के पीरा हे,आँसू हे,समस्या हे। उँकर कविता सुने के बाद आम अउ खास दूनो मनखे प्रभावित होय बिना नइ रह सकिस। उँकर कविता लोगन मन ला मुँह जुबानी याद रहय । उँकर रचना समाज म व्याप्त बुराई उपर सीधा चोट करय। जेन भी बात उन लिखिन बिना कोई लाग लपेट के सीधा-सीधा कहिन। छत्तीसगढ़िया के पीरा ल दलित जी अपन जीवनकाल म उकेरिन जेन आज भी प्रासंगिक हवय। उँकर लिखे एक एक शब्द छत्तीसगढ़िया मनखे के हक के बात करथे :-
छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार।
हवय लोग मन इहाँ के, सिधवा अउ उदार।।
सिधवा अउ उदार, हवयँ दिन रात कमावयँ।
दे दूसर ला भात , अपन मन बासी खावयँ।
ठगथयँ बपुरा मन ला , बंचक मन अड़बड़।
पिछड़े हवय अतेक, इही करन छत्तीसगढ़।
कवि हृदय मनखे प्रकृति के प्रति उदात्त भाव रखथे काबर कि उँकर मन बहुत कोमल होथे । दलित जी के प्रकृति प्रेम घलो ककरो ले छुपे नइ रहिस। उँकर घनाक्षरी मा प्रकृति के अदभुत चित्रण अउ संदेश मिलथे:-
बन के बिरिच्छ मन, जड़ी-बूटी, कांदा-कुसा
फल-फूल, लकड़ी अउ देयं डारा-पाना जी ।
हाड़ा-गोड़ा, माँस-चाम, चरबी, सुरा के बाल
मौहां औ मंजूर पाँखी देय मनमाना जी ।
लासा, कोसा, मंदरस, तेल बर बीजा देयं
जभे काम पड़े, तभे जंगल में जाना जी ।
बाँस, ठारा, बांख, कोयला, मयाल कांदी औ
खादर, ला-ला के तुम काम निपटाना जी ।
विद्यालय कइसन होना चाही दलित जी जे सपना रहिस उँकर कविता मा साफ झलकथे-
अपन गाँव मा शाला-भवन, जुरमिल के बनाव
ओकर हाता के भितरी मा, कुँआ घलो खनाव
फुलवारी अउ रुख लगाके, अच्छा बने सजाव
सुन्दर-सुन्दर पोथी-पुस्तक, बाँचे बर मंगवाव ।
खादी के कुर्ता, पायजामा,गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता देख के कोनो भी मनखे दुरिहा ले दलित जी ल पहिचान लय। हँसमुख अउ मिलनसार दलित जी के रचना संसार व्यापक रहिस। गांधीवादी विचार ले प्रेरित होय के कारण सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के संदेश अक्सर अपन रचना म दँय। हास्य व्यंग्य के स्थापति कवि होय के कारण समाज के विसंगति ल अपन व्यंग्य के हिस्सा बनावय। राजनीति उपर उँकर धारदार व्यंग्य देखव-
तब के नेता जन हितकारी ।
अब के नेता पदवीधारी ।।
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चौथी फेल ।।
तब के नेता लिये सुराज ।
अब के पूरा भोगैं राज ।।
दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा प्रस्तुत करके घला खूब नाव बटोरिन। अपन बेरा मा मंच के सरताज कवि रहिन। सटीक शब्द चयन, परिष्कृत भाखा अउ रचना मन व्याकरण सम्मत रहय जेकर कारण उँकर हर प्रस्तुति प्रभावशाली अउ अमिट छाप छोड़य ।कविता काला कहिथे येकर सबसे बढ़िया अउ सटीक परिभाषा दलित जी के ये मात्र दू लाइन ल पढ़ के आप समझ सकथव : -
जइसे मुसुवा निकलथे बिल से,
वइसने कविता निकलथे दिल से।
छत्तीसगढ़ी कविता ल मंचीय रूप दे के श्रेय पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी "विप्र" अउ कोदूराम "दलित" ला जाथे। 50 के दशक म दलित जी के छत्तीसगढ़ी कविता के सरलग प्रसारण आकाशवाणी भोपाल, इंदौर,ग्वालियर अउ नागपुर ले होइस जेकर ले छत्तीसगढ़ी कविता ल नवा ऊँचाई मिलिस। समाज सुधारक के रूप में दलित जी के संदेश अतुलनीय /अनुकरणीय हवय :-
भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय।
कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय।।
कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के।
खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के।
चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही।
तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।।
दलित जी के कुल 13 कृति के उल्लेख मिलथे जेमा- (१) सियानी गोठ (२) हमर देश (३) कनवा समधी (४) दू-मितान (५) प्रकृति वर्णन (६)बाल-कविता - ये सभी पद्य में हैं. गद्य में उन्होंने जो पुस्तकें लिखी हैं वे हैं (७) अलहन (८) कथा-कहानी (९) प्रहसन (१०) छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ (११) बाल-निबंध (१२) छत्तीसगढ़ी शब्द-भंडार (13) कृष्ण-जन्म (हिंदी पद्य) फेर दुर्भाग्य से उँकर जीवनकाल में केवल एक कृति- "सियानी-गोठ" ही प्रकाशित हो सकिस जेमा ७६ हास्य-व्यंग्य के कुण्डलियाँ संकलित हवय। बाद में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छन्नर छन्नर पैरी बाजे‘ के प्रकाशन होइस। विलक्षण प्रतिभा के धनी लगभग 800 ले आगर रचना करे के उपरांत भी दलित जी आज भी उपेक्षित हवय ये छत्तीसगढ़ी साहित्य बर दुर्भाग्य के बात आय। प्रचुर मात्रा म साहित्य उपलब्ध होय के उपरांत भी दलित जी उपर जतका काम होना रहिस वो आज पर्यन्त नइ हो पाय हवय। कभू कभू तो अइसन भी महसूस होथे कि पिछड़ा दलित समुदाय हा सदियों से जेन उपेक्षा के शिकार रहे हे उही उपेक्षा के शिकार दलित जी भी होगे ।
दलित जी साहित्यकार के संग एक आदर्श शिक्षक, समाज सुधारक, अउ संस्कृत के विद्वान भी रहिन । उमन छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी के घलो शसक्त हस्ताक्षर रहिन दलित जी साक्षरता अउ प्रौढ़ शिक्षा के प्रबल पक्षधर रहिन। दबे कुचले मनखे मन के पीरा लिखत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के नश्वर देह ल त्याग के परमात्मा म विलीन होगे,फेर अपन रचना के माध्यम ले आज भी अपन मौजूदगी के अहसास कराथें । दलित जी के जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण अउ अभाव म बीतीस ,शायद येकरे कारण उमन अपन रचना के प्रकाशन नइ करवा पाइन। आज जरूरत ये बात के हवय कि नवा पीढ़ी उँकर साहित्य के प्रकाशन करवा के गहन अध्ययन भी करयँ।
अजय साहू "अमृतांशु"
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
मो. 9926160451
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*जनकवि कोदूराम 'दलित' के काव्य मा गाँधी जी-*
(पुण्यतिथि विशेष- 28 सितंबर 💐💐💐)
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाव ले प्रसिद्ध गाँधीवादी भावधारा के कवि कोदूराम 'दलित' हास्य व्यंग्य के बेजोड़ कवि रिहिन। गाँधी जी ले प्रभावित होय के सेती उँकर काव्य मा गाँधी जी के विचारधारा बनेच समाहित हे। 'दलित' जी के लेखन 1926 के शुरू होके 1967 तक चलिस। लेखन के शुरुआत मा देश मा सुराज बर लड़ाई जारी रिहिस। उन अपन कविता के माध्यम ले जन-जन मा गाँधी जी के विचार ला लेके देशप्रेम, राष्ट्रीय भाव, मद्य निषेध बर सजग करत खादी के प्रचार-प्रसार ला गाँव तक पहुँचाइस।
'दलित' जी आजादी बर अपन काव्य के माध्यम ले लोगन मन ला जगाय के काम करिस। उन किसान, मजदूर अउ जवान मन ला प्रेरित करत सुराज के लड़ाई मा संग देय बर तैयार करँय। अपनेच बोली मा ठेठ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके लोगन मन आनंदित अउ प्रभावित हो जाये।
'दलित' जी के काव्य कला के कमाल आय कि ओमन हिंदी के छन्द मा छत्तीसगढ़ी कविता लिखय। उँकर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो मा बरोबर अधिकार रिहिस। फेर उँकर छत्तीसगढ़ी मा काव्य रचना ज्यादा हे। कवि के काव्य मा राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता भावना, देशप्रेम, जनजागरण, अनिवार्य शिक्षा, खादी ग्रामोद्योग, विदेशी जिनिस के बहिष्कार, सहकारिता, मद्य निषेध, खेती-किसानी, बाल कविता के संग प्रकृति वर्णन के दर्शन घलो होथे।
कोदूराम 'दलित' सरल स्वभाव के शिक्षक कवि रिहिन। उन परतंत्र भारत अउ स्वतंत्र भारत दूनो के समय ला देखे हें। लोगन ला सुराजी लड़ाई बर जगाइस अउ आजादी के बाद देश के नवनिर्माण बर घलो घातेच जतन करिस। देश ला आजाद कराय के भाव धरे गाँव-गाँव मा सुराज के अलख जगाय अउ गाँधी जी के सत्याग्रह बर लोगन ला प्रेरित करय-
"अब हम सत्याग्रह करबो,
कसो कसौटी-मा अउ देखो।
हम्मन खरा उतरबो,
अब हम सत्याग्रह करबो...
जाबो जेल, देस खातिर अब,
हम्मन जीबो मरबो।
बात मानबो बापू के तब्भे,
हम सब झन तरबो।
अब हम सत्याग्रह करबो...."
गाँधी जी अउ क्रांतिकारी योद्धा मन सही सुराज बर जेल जाय बर जनमानस ला आग्रह करत उँकर सार छन्द के एक बानगी देखव-
"अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।
कतको झिन मन चल देइन, आइस अब हमरो बारी।
कृष्ण-भवन-मा हमु मनन गाँधी जी साहीं रहिबो।
कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।"
देश गाँधी जी के नेतृत्व मा सुराज के लड़ाई लड़ीन। जेमे हमर कतको क्रांतिकारी मन अपन बलिदान देइन। अब्बड़ मुसकुल मा ये सुराज मिले हे। बापू के वंदन करत कवि चौपाई छन्द मा कहिथे-
"जय-जय राष्ट्रपिता अवतारीं।
जय निज मातृभूमि मय हारीं।।
जय-जय सत्य अहिन्सा-धारी।
विश्व-प्रेम के परम पुजारी।।"
गाँधी जी मा स्वावलंबी के गुण कुट-कुटके भरे रिहिस। उन अपन काम खुद करय। चरखा चलाके खादी के कपड़ा बुने अउ पहिने। दूसर लोगन मन ला घलो चरखा चलाए बर कहाय। कवि बापूजी के धन्यवाद करत कहिथे-
"चरखा-तकली, चला-चला के खद्दर पहिने ओढ़े।
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।"
सत्य अहिंसा के पुजारी बापू जी के बताये रद्दा आज घलो प्रासंगिक हे। गाँधी जी के बिचार लेके 'दलित' जी अपन स्कूल के लइका मन ला छत्तीसगढ़ी पारंपरिक राउत दोहा बनाके सुनाय अउ राष्ट्र प्रेम के अलख जगाय-
"गाँधी जी देवाइस भैया, हमला सुखद सुराज।
ओकर मारग में हम सबला, चलना चाही आज।।"
कवि गाँधी जी ला अवतारीं पुरुष कहिके सम्बोधित करे हवय। उन कहिथे उँकर जप, तप के बल ले सुराज मिलिस। अब बापूजी के विचार ला लेके हमर भारत देश ला बैकुंठ असन बनाबो-
"अँवतारी गाँधी जी आइन,
जप तप करिन सुराज देवाइन।
हमर देस ला हमर बनाइन,
सुग्घर रसदा घलो देखाइन।
उँखरे मारग ला अपनाबो,
भारत ला बैकुण्ठ बनाबो।"
सुराज के बाद 'दलित' जी नवभारत के निर्माण बर जुट जाथे। गाँव ला सुंदर बनाए बर लोगन ला चेत कराय। उन मंदहा मन ला बड़ फटकारय। मंद सभ्य समाज बर घातक बीमारी आय। पियइया मन ला व्यंग्य करत कहय-
"मंद पीए बर बरजिस गाँधी,
महाराज, जउन लाइस सुराज।
ओकर रसदा ला तज के तैं,
झन रेंग आज, झन रेंग आज।
पियइ में तोर लगे आगी,
जर जाय तोर ये जिनगानी।
पीथस निपोर तैं ढकर-धकर,
ये सरहा मौंहा के पानी।"
गाँधी सुराज के बाद गाँव ला सुग्घर बनाये बर सबो झन ला जुड़े बर कहय। गाँव के मन ला कर्मशील बनाना चाहत रिहिस। उन चरखा चलाय बर, खादी पहिने बर अउ गाँव के खेती-खार ला अपनाए बर चेताइस। गाँव मा उद्योग-धंधा चालू करे बर सपना देखिस। सहकारिता के लाभ ले बर बताइस। ताकि गाँव के मनखे पलायन के समस्या ले बांचे। गाँधी जी के भारत अइसनेच तो बनही। गाँव के जनजीवन के चित्रण करत कवि के पंक्ति देखव-
"गाँधी जी के गोठ ला भुलावो झन भैया हो रे,
हाथ के कुटे-पीसे, चाँउर, दार, आटा खाव।
ठेलहा बेरा में रोज, चरखा चलाव अउ,
खादी बुनवा के पहिनव अउ ओढ़त जाव।
गाँव-गोढ़ा छोड़ के सहर जाके बसो झन,
गाँव के खेती-बारी, उद्योग-धंधा पनपाव।"
'दलित' जी सुराज के बाद लोगन ला सजग रेहे बर कहिथे। हमर असंख्य वीर-बलिदानी मन के कुर्बानी ले आजादी मिले हे। येला कोई भी कीमत ले संभाल के रखना हमर कर्तव्य हे। गजब दिन बाद हमर देश के भाग खुले हे, अब सुते के बेरा नइ हे।
"झन सुत सँगवारी जाग-जाग।
अब तोर देश के खुलिस भाग।
सत अउर अहिंसा राम-बान।
बापूजी मारिस तान-तान।
सँहराले संगी अपन भाग।
झन सुत सँगवारी जाग-जाग।
अब तोर देश के खुलिस भाग।"
बापू जी के सपना देश मा मंगलमय रामराज के रिहिस। मनखे मन समाज के सुख के कारण बनय। दीन-दुखी, असहाय मन के काम आय। स्वारथ, भेदभाव अउ ऊँच-नीच के बड़का खाई पटा के नवा समाज के निर्माण होय। तभे हमर स्वराज के महत्व हे। 'दलित' जी के सुग्घर राज बनाये के कल्पना अइसन हवय-
"लाने हन जुरमिल के जइसे हम्मन सुराज।
तइसे येला अब सुग्घर राज बनाबो जी।
कतको झन अब तक ले जस का तस परे हवँय।
उन बपुरा मन के सब दुःख दरद मिटाबो जी।
हम संत विनोबा गाँधी अउ नेहरु जी के।
मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चली आज।
तज अपस्वारथ कायरी फूट अउ भेद-भाव।
पनपाई जल्दी अब समाजवादी समाज।"
कोदूराम 'दलित' समाज अउ देश बर सचेत करइया कवि रिहिन। उन आजादी के पहली लोगन ला लड़ाई बर प्रेरित करिन, अउ आजादी के बाद देश के नवा निर्माण करे बर रद्दा देखाइस। बापूजी के बिचार ला धरके गाँव, समाज अउ देश ला आघु लाय के सपना देखिस। अउ ओला पूरा करे बर सही रद्दा घलो बताइस। किसान, मजदूर मन ला खेती के काम बने चेत लगाके करे बर, संगे-संग खदान अउ कारखाना मा उत्पादन बढ़ाय बर जोर देइस। ताकि कड़ी मेहनत के उदिम ले देश के उत्तरोत्तर विकास होवय।
जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा डंडासरन पैलगी।
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया)
राजनांदगाँव
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