भाव पल्लवन-
जीवन क्षणभंगुर हे।
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मनुष्य के जिनगी के कोनो ठिकाना नइ राहय।ये क्षणभंगुर होथे।एक पल पहिली हे ता दूसर पल खतम तको हो जथे। कभू-कभू अइसे देखे-सुने मा तको आथे के फलाना हा एक-दू मिनट पहिली हली-भली हाँसत-गोठियावत रहिसे अउ ये दे वोकर काठी के खबर आगे। कबीरदास जी जिनगी के मरम ला उजागर करत कहे हें--
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस के जात।
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात।
जिनगी पानी के फोटका कस ताय ,देखते- देखत क्षण भर मा फूट जथे। जिनगी हा साँस के चलत भर ले आय ।साँसा के डोरी ह कभू न कभू रट ले टूट जथे।कब कतका बेर जीव रूपी पंछी ये तन के घोसला ला तियाग के उड़ जही तेला कोनो नइ बता सकय। ये जीव अइसे बिचित्र होथे के उड़िच तहाँ ले दुबारा लहुट के नइ आवय। ये सम्बंध मा कवि नाथू राम शास्त्री 'नम्र' जी हा कतका सटीक बात कहे हें--
क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द
सुगन्ध समीर मिली न मिली।
मनखे के मरना अटल होथे।मौत ल कोनो नइ रोक सकय।बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी,बलवान,धन कुबेर मन कोशिश करके हारगें फेर मौत ले पार नइ पा सकिन। इहाँ जेन जन्म लेथे वोला एक न एक दिन मरे ला तको परथे।एक बात अउ सत्य हे के--मनखे हा ये दुनिया मा खाली हाथ जनम लेथे अउ खाली हाथ चल देथे।धन-दोगानी,महल-अटारी,कुटुम-कबीला सब इही मृत्यु लोक मा छूट जथे।संत- महात्मा मन के तेकरे सेती कहना हे के मनखे ला कुछु चीज के घमंड नइ करना चाही। ये जीवन ला ईश्वर के देये अनमोल भेंट कहे गेहे।जतका मिलगे वोतके काफी हे मानके चलना चाही अउ एला सदकर्म मा खपाना चाही। ए हीरा ला छल-कपट, इरखा अउ नाना प्रकार के माया के कचरा मा नइ फेंकना चाही।भूत-भविष्य के चिंता ला छोड़के ,वर्तमान के आनंद मा बूड़के हरिनाम सुमिरन करना चाही। मनुष्य के मरना-मरना मा फरक होथे।ए हा वोकर करम के अनुसार होथे।कबीर दास जी के कहना हे--
आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।
चोवाराम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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