Saturday, 30 September 2023

झपली ले झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ (महेंद्र बघेल)

 झपली ले झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ

                       (महेंद्र बघेल)


बेरा -कुबेरा ल देखत येमा जादा बेर ले गोठियाना फबित नइहे,अभी बहुत अकन वक्ता मन ल सुने के बाचे हवय। इही ओरियावत पुस्तक विमोचन के पहिली वक्ता डहर ले जब गोठ ल लमियाॅंय के बोहनी होथे।तब अइसन माहौल म दूसर वक्ता मन ल सुने के आस म बइठे बपरा श्रोता मन के सबर के संग होवत खुलेआम बलात्कार ल समझे जा सकथे।अउ एती अपन पारी के आवत ले श्रोता मन ह इहाॅं रूक पाहीं कि भाग जाहीं..,इही फिकर म बाकी वक्ता मन के टेंशन ह बढ़के अटेंशन मोड म चले जाय रहिथे।बीच-बीच म बोहनियार (बोहनी करइया) वक्ता ह कोरा पन्ना म लिखे पोथी अउ पुस्तक के पन्ना म खोंच के राखे चिनहा ल देखावत बफलथे:- " मॅंय  चाहॅंव ते अभी येमा दू घंटा ले अउ बोल सकथॅंव फेर समय के अपन सीमा हे,समय के मान रखना हमर जइसे वरिष्ठ मन के तो पहली धरम आय।" येमन हर दस मिनट म इही कहि-कहि के माइक के प्राण पुदक डार रहिथें। माईक ह अपन अंतरात्मा के साफ्ट साईट म जाके मनन घलो करत  होही, ये मोला कब छोड़य त जी भरके सहाॅंस लेंव..।अइसन झेलमझेल वक्ता मन अपन सूसी के पूरत ले बोलथें अउ अभी बहुत कुछ बोलना बाकी हे बोलत- बोलत ले-देके माइक ल छोड़थें..।येमन बपरा श्रोता मन के दिमाग ल चाॅंट -चुॅंटाके अपन स्वरोजगार ल बढ़ावा देथें, येहा श्रोता संग इमोशनल अत्याचार नोहे त अउ का हरे..।

             शुरू म जब अतिथि राखे बर ये वरिष्ठ मन ल पूछबे, तब येमन बड़ भाव खाथें।मोला इहाॅं जाना हे, उहाॅं जाना हे कहिके अपन कद ल कद्दावर बनाय के कोशिश म लग जथें।सही कहिबे त येमन ल काहॅंचो आना-जाना नइ रहय, बस फोकट म फेंक-फेंक के अपन वजन ल बढ़ाना रहिथें। दुनिया जानथे हमर असन के छोड़ येमन ल कन्हो खर्रू तक नइ पूछें। पहुना बनई लेबे त आधा घंटा के समय सीमा में बीस मिनट ले मॅंय -मॅंय ,मॅंय.. के स्टोरी सुनावत विषय अउ समय के दही-मही कर देथें।

                 बोलक्कड़ समाज के सियान मन के कहना हे कि जी भरके माईक म बोलई ह एक ठन तपस्या घलो आय,वो अलग बात आय कि ये तपस्या ह श्रोता मन बर घनघोर समस्या बनके रहि जथे।बोलई अउ सुनई के बीच के साहित्यिक संघर्ष ह जब असकटई के लक्ष्मण रेखा ल छू लेथे तब लफरगंजू मन के बल्ले-बल्ले हो जथे।ये  रसायनिक अभिक्रिया ले निकले दुष्परिणाम ल बिचारा श्रोता मन के तरवा म साफ-साफ पढ़े जा सकथे फेर आयोजक मन ल येकर थोरको गम नइ रहय। जब बोलक्कड़ ह वंदे भारत के रफ्तार म दउड़ना शुरू करथे ते रूकई के नाम नइ लेय।वो तो भला होय गाय -भैंसी के जिनकर हुमेले ले थोकिन सहाॅंस लेय के मौका मिल जथे। भलुक सुनईया मन ल घलव कोई हुमेले के विद्या सिखो पातिन। जिहाॅं एक झन बोलक्कड़ ल सहि पाना बड़ मुश्कुल रहिथे उहाॅं चार-पांच झन ल झेलना (सुनना) मने लंगोट पहिरके दक्षिणी ध्रुव म भ्रामरी प्राणायाम करना।

                  बपरा ह ननपन अउ जवानी ल साहित्य के सेवा म लगा दिस, जिहाॅं -जिहाॅं गोष्ठी होय पानी -पसिया धर-धरके जाय, दरी बिछाय,पानी पीयाय..।तभो ले बर रूख कस वरिष्ठ साहित्यकार मन थोरको भाव नइ दिन।ये तो एकलव्य कहानी के असर आय कि साहित्य ल सुने-समझे के लइक खोपड़ी म बुध आगे।वरिष्ठ साहित्यकार के मकुट पहिरे कहुॅं द्रोणाचार्य मन के चलतिस ते दशा-दिशा के बाते ल छोड़ दरी बिछवाय अउ पानी पीलवाय के बूता म येमन पीएचडी करवा के मानतिन। मने बर रूख के छइहाॅं म थिरा तो सकथस, कभू जाम नइ सकस।राजा बाबू कस सिरिफ अपन चेहरा चमकाय वाले ये गुरूवारी दुनिया म सावित्रीबाई फूले कस पर (दूसर) बर दरी बिछाके रद्दा बतईया भला अब कहाॅं मिल पाहीं।

          अइसन महात्मा मन ल खोजत- खोजत तॅंय खुद सीनियर सिटीजन के शिकार हो जबे अउ जादा खोज-बीन करे के चक्कर म एक दिन आखिर इही बरे रूख म झपाबे। तेकर सेती वरिष्ठ बोलक्कड़ मन के आगू म नेवरिया मन ल सुनक्कड़ बने के साहित्यिक अभ्यास करना मजबूरी हो जथे।दरी बिछइय्या के पदवी पाय के एवज म बरगदाचार्य मन ल कम से कम अंगठा के जगा घंटा दू घंटा सूने के गुरू दक्षिणा तो दिए जा सकथे।हाथ म अंगठा तो दूवे ठन रहिथे ना..,वहू म जेवनी के पूछन्ता हे।जब चार ले पांच झन महा बोलक्कड़ मन ल अतिथि बनाके बइठारबे तब इनला सूने के छोड़ बुचके के कन्हो रद्दा बचिस कहाॅं..।ये दशा म चारों -पाॅंचो झन ल गुरु दक्षिणा देय के उदीम म अंगठा के भला कतिक कुटका कर डारबे।तेकर ले अच्छा हे सुनक्कड़ बरोबर सून अपन पीत ल मार -मार के सून।

             जब पहली नंबर के वक्ता ह चिकमिक- चिकमिक पोठ-पोठ ल निमार- निमार के सुनक्कड़ मन के मगज ल चाटके अपन झंडा फहरा डरथे।तब बाकी वक्ता मन बर भला का बाचिस।वहू मन तो उहीच ल गुरमेट के लाय रहिथें ना..। बाकी वक्ता मन,पूर्व वक्ता ह अइसे कहिस वइसे कहिस के चीख-पुकार करत अपन वक्ता धरम ल निभाथें।अउ जजमान के इज्जत म मान सम्मान के दूबी जमा देथे। देखे जाय तो साहित्य जगत म हर वक्ता के अपन अलग पहचान होथे, जादा पूछ-परख वाले मन के पूछी जामें रहिथे..।कम पूछ-परख वाले मन ह पूछी ट्रांसप्लांट करवाय के जुगाड़ म आयोजक मन ले संपर्क बनाके रखना अपन राष्ट्रीय धरम समझथें।इही अनुशासन ले तो स्वस्थ पूछी जामें के गुंजाइश ह जिंदा रहिथे।

             साहित्य जगत म पूछी वाले अउ भावी पूछी मन ल एक -दूसर के कट्टर आलोचक माने जाथे।फेर कुछ मन बाड़ू (बिन पूछी वाले वक्ता) टाइप के अपवाद घलव होथें, जेन दूनो के माॅंद म खुसरके अपन पुरतिन राॅंध लेथें। इनकर दुनिया म वाद वाले थोरको विवाद नइ रहय तेकर सेती आयोजक मन इनला सिरिफ धन्यवाद दे-दे के आबाद करत रहिथें।कोनो भी कार्यक्रम के कारड म अपन नाम छपे के शर्त म पूछी अउ भावी पूछी वाले मन ह आयोजन म सॅंघरे  बर सहमति देथें।कारड म एक के  नाम ल राखे अउ दूसर ल छोड़े म दूसर ह तुरतेच पूछी उठाके भाग जथे।पूछी वाले के पगरइती म भावी पूछी वाले ह भोरहा म कहुं श्रोता बनके पहुंचगे.., त पूछी वाले ह विषय के चरचा ल बिसराके भावी पूछी वाले ल निपटाय म अपन जिनगी भरके वरिष्ठता ल खपा देथे। साहित्य के खरदरहा मैदान म ये उल्टी-पल्टी वाले खेल ल फेमस करे म दूनो मन के भारी योगदान ह जग-जाहिर हे।एक तो येमन मंच म एक-दूसर के छइहाॅं नइ खूॅंदे अउ कहुॅं ओरभेट्टा होइगे त येमन एक-दूसर के शास्त्रीय ढंग ले बारा बजाय बर थोरको पाछू नइ घूॅंचे।

             एक ठन कार्यक्रम बर भावी पूछी वाले ल माईपहुना बनायेन।अउ पूछी वाले ल मुअखरा नेवता देय बर गेन।सबले पहिली तो वोहा आहूॅं कहिस फेर मोर डहर गुगली फेंकत पूछिस-" कोन-कोन पहुना मन आवत हे।" जुवाब म कलई ल घुमाके स्वीप शाॅट खेले कस मॅंय कहेंव - "भावी पूछी वाले ह माईपहुना हे।" अतका सुनते साट पूछी वाले के हाव-भाव ह हवा -हवई होय लगिस।जनो-मनो ये पिच म भावी पूछी वाले ह तिहरा शतक ठोंक डरे हे।

            पूछी वाले अउ भावी पूछी वाले मन के पुचपुचई ल देखके कभू-कभू बाड़ू मन ल घलव इही पीच म बैटिंग करे के शौक चर्राय रहिथे।फेर जब हिट विकेट हो जथे तब औकात ह तुरते समझ म आ जथे।

कई झन वरिष्ठ साहित्यकार मन अपन जिनगी के अनुभो ल बतावत सावचेत रहे बर कहिथे कि ये साहित्य के दुनिया म कई ठन नमूना एती-ओती मेड़रात रहिथें। जिनकर ले जरा बच के रहना चाही।

             फेर वाह रे दुर्भाग्य.., एक घाॅंव हमर संगवारी के अइसने नमूना ले भेंट होगे। संगवारी ह बेवहार निभाय बर उही नेवता कारड ल भावी पूछी वाले नमूना ल सौप परिस। तहाॅं नमूना के नमूनागिरी शुरू होगे। सबले पहिली ओहा कारड ल उलट-पलट के घेरी-बेरी देखिस फेर अपन अंतस के करू-कासा ल बीखहर जबान डहर ले फेकिस-" येमा हमर का रोल हे, ये..,येमन ह तुॅंहर मंच के कुरसी म बैठहीं अउ हम खाल्हे म बैठे के लइक दिखथन, साहित्य के स मालूम नइहे अउ जुच्छा कारड बाटे बर आगेस, बिना पद नाम लिखे अइसने नेवता दे जाथे का..।" भावी पूछी वाले नमूना ह कारड बटइया के सात पूरखा म पानी रितो दिस। ओकर करू जबान वाले दू सौ चालीस वोल्ट के झटका म संगवारी के टोंटा सूखागे।

            अनुभवी मन बताथें कि सुवारथ के झपली ले निकले अइसन खतरनाक नमूना मन सरकारी साहित्यिक संस्था के पद ल हड़पे बर बिलई कस तुकत रहिथें।अउ मसगिदहा बरोबर झपट्टा मारके पद ल लाइफटाइम बर बुक कर लेथें। पद के मिलते साट ईंखर मन के उपर छपास नाम के वायरस अउ दिखास नाम के बैक्टीरिया ह हमला कर देथे। अब इहाॅं ले शुरू होथे इंखर दिखास, छपास नाम के साहित्यिक यात्रा..।बिहान दिन ले हर साहित्यिक कार्यक्रम के खबर म सिरिफ ईंखर छपे फोटू अउ नाम ल देखे पढ़े जा सकथे। अखबार के खबर म ईंखर नाम के संग दूसर के नाम अउ फोटू छपे म ईंखर अंतस म खस्सू खजरी  अवतरित हो जथे अउ खसर-खसर खजवा- खजवा के येमन हलाकान हो जथें। जानकार मन बताथें कि चार-चउहट म इही खस्सू खजरी के अलहन ले बचे बर दूसर के फोटू ल लतियाके येमन अपने बड़े-बड़े फोटू ल छपवाय के कूटनी चाल चलथें।

        ये नमूना छाप साहित्यकार के झपली म खधवन टाइप के कुछ खास आइटम घलो पाय जाथे। ये आइटम मन के नजर ह हर समय कुरसी म अटके रथे अउ फलास के दमदम ले बइठे बर ईंखर खलपट आत्मा ह कुरसी के एक-भाॅंवर भटकत रहिथे।अउ मान-गउन नइ करबे त जगा-जगा झपली म खुसरे साहित्यात्मा मन झाॅंक-झाॅंक के झाॅंऊ करे के जुगाड़ म फस्स -फस्स करत रहिथें।

         बड़े -बड़े कार्यक्रम के मंच संचालक मनके बाते झन पूछ..,येमन खुद वक्ता बने के चक्कर म दुनिया भर के ज्ञान बाॅंटना शुरू कर देथें अउ वक्ता ल जल्दी-जल्दी समेट कहिके चुक्ता करे म अपन शान समझथें।

        एती काव्य गोष्ठी म अपन कविता ल सब झन ल सुनाय के सपना संजोय पुचपुचहा कवि मनके चाल चरित्तर ह काकरो ले कम रहिथे का..।जब देखबे तब येमन ह पहली नंबर म कविता सुनाय बर बुकबुकात रहिथें।येमन ह दूसर ल कभू नइ सुन सके, फकत अपन ल सुनाथें अउ तुरते टसक के अपन महाकवि होय के धरम ल निभाथें। हद तो तब हो जथे जब संयोजक कवि के कविता ल सुने बर एक मात्र हुमदेवा श्रोता माईक वाले ह बाच जथे।वहू ह सबला सुन-सुन के अब -तब वेंटिलेटर म डारे के लइक हो जाय रहिथे।

             कुलमिलाके काव्य गोष्ठी, परिचर्चा, पुस्तक विमोचन, समीक्षा जइसन कार्यक्रम ह ये पूछी वाले अउ नमूना छाप आइटम मनके छपास, दिखास अउ बोलास के तीन- तिकड़ी म अरहज के रहि जथें। ईंखर चक्कर म आयोजक अउ श्रोता समाज के भाग म घंटा बजाय के छोड़ अउ कुछु बचथे..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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