पसहर चाउर*
-चन्द्रहास साहू
“दोना ले लो ओ …!”
“पतरी मुखारी ले ले ओ..!”
“लाई ले ले ओ…. !”
दुनो मोटियारी ओरी-पारी आरो करत हावय। आज झटकुन उठ गे हावय दुनो कोई। मुड़ी मा गुड़री , गुड़री मा पर्रा , पर्रा मा टुकनी , टुकनी मा लाई दोना पतरी दतोन मुखारी । छोटे दाऊ पारा ला चिचिया डारिस। थोकिन बेच घला डारिस। अब तेली पारा जावत हावय। जम्मो बच्छर बेचथे जम्मो नेग – जोग के जिनिस ला अपन गाँव अउ आने दू चार गाँव मे। दोना पतरी वाली नवइन रेवती अउ केंवटिन हा लाई ला बेचत हावय । फेर आज तो रेवती के अन्तस मा जइसे कोनो पथरा लदकाय हावय।
“का होगे दीदी ! आज तबियत बने हावय न ?”
“हव बहिनी ! बने हावंव।”
रेवती हुकारु दिस फेर मन मा अब्बड़ बादर गरजत रिहिस। गौरा चौरा करा अब थिरागे दुनो कोई। पारा के आने माईलोगिन मन सकेलागे रिहिस। पर्रा के दोना पतरी ला निमारे लागिस।
” मेंहा देवत हंव बहिनी तुमन झन छांटो। आ बहिनी रमेसरी नेग जोग के जिनिस ला बिसा ले।”
रेवती अउ केंवटिन दुनो कोई किहिस।
रमेसरी दुवार लिपत रिहिस। खबल – खबल हाथ धो डारिस। भीरे कछोरा मा आइस महुआ झरे कस हाँसत।
“का होगे या ..?”
अब्बड़ खुलखुल हाँसत हस बाई । केवटिन के आरो ला सुनके किहिस।
“अई तुमन मोर घर मा आये हव तब हाँसहु नही, तब रोहू या…। अब्बड़ धुर्रा होगे रिहिस बहिनी तेखर सेती दुवार लिपत हव। फेर ..।”
“फेर..का ?”
समारिन किहिस।।
“फेर अउ का ? पानी गिरत हावय नइ देखत हस ?”
अब छे सात झन उपासिन मन सकेलागे रिहिस। जम्मो कोई हाँसे लागिस रमेसरी के गोठ ला सुनके। पारा भर गमकत हावय अब।
” सिरतोन काहत हस दीदी ! ये अखफुट्टा इंदर देव हा अइन्ते – तइन्ते बुता करथे । चौमासा मा घाम टड़ेरथे अउ गरमी मा पूरा बोहाथे। तेखर सेती राच्छस मन नंगतेहे कूटथे ओला ओ..।”
बिसाहिन किहिस अउ फेर खुलखुल हाँसीस।
“ओ रोगहा इंदर भगवान के गोठ तो झन कर दीदी ! पर के गोसाइन बर नियत डोला दिस। कुकरा बन के पर घर खुसरगे। भगवान मन अइसने नियत खोंटा करही तब मइनखे मन के का होही ..?”
धरमिन आय। ओखरो गोठ अब मिंझरगे रिहिस। गघरा भर पानी मुड़ी मा बोहो के आवत रिहिस। छलकत पानी अउ पानी मा मिंझरे मांग के लाली कुहकू जतका खाल्हे उतरत हावे ओतकी रंग कमतियावत हावय अउ मन मा उछाह के रंग चढ़े लागिस। माथ ले नाक , नाक ले नरी अउ नरी ले उतरके छाती मा हमागे कुहंकू ले रंगे पानी हा।
“पसहर चाउर बिसाहू बहिनी…?”
“वहु तो अब सोना होगे हावय वो ।”
“धरमिन अउ रमेसरी गोठियावत रिहिस।
कामे तौलही रेवती दीदी हा। तोला मे.., किलो में.., कि पैली मे.. ?”
जम्मो कोई फेर हाँसे लागिस।
” पबित्तर जिनिस हा मँहगा तो रहिबे करही दीदी !” केवटिन किहिस।
” लइका लोग सब बने- बने हावय न बेटी रेवती !”
महतारी कस मंडलीन डोकरी के गोठ सुनके रेवती अब दंदरे लागिस। आँसू के बांध अब रोहो – पोहो होगे। पीरा छलकगे। घो..घो..हि.. हि… हिचकी मार के .. अउ अब गोहार पार के रो डारिस। रेवती के बेटी रितु हा काली मंझनिया ले बिन बताये कही चल देहे। कुछु बताये के उदिम करिस रेवती हा फेर मुँहू ले बक्का नइ फूटे।
“ओ काला बताही ओ ! रेवती के टूरी हा अनजतिया टूरा संग उड़हरिया भगा गे हे तेला।”
कोतवाल आवय। ओखर बीख गोठ ला सुनके झिमझिमासी लागिस रेवती ला।
“कलेचुप रहा कका ! सरकारी दस एकड़ खेत ला पोटारे हस तेखर सेती आनी-बानी के उछरत हावस। माईलोगन के मरजाद ला नइ जानस। गरीबीन ला ठोसरा मारे के टकराहा हस ।”
” कुकुर के पूछी कहा ले सोझियाही।”
रमेसरी अउ धरमिन आवय झंझेटत रिहिन।
रेवती भलुक गरीबीन रिहिस फेर अब्बड़ दुलार अउ मया पाये रिहिस माइके मा। कोनो महल अटारी के नही भलुक कुंदरा के राजकुमारी रिहिस रेवती हा। राजकुमार मिलिस तब तो सिरतोन के राजकुमार बनगे रेवती बर। ....फेर गरीबीन के भाग मा उछाह नइ लिखाये राहय । मंद महुआ पियईया राजकुमार हा टूरी के छट्ठी के पार्टी बच्छर भर ले मनावत रिहिस। पार्टी नइ सिराइस फेर राजकुमार सिरागे।
आँसू के एक- एक बूँद ला सकेलतीस ते समुन्दर ले आगर हो जाही..। कतका दुख के पहार ला छाती मा लदके हावय कि हिमालय कमती हो जाही। कतका ठोसरा अउ अपमान सहे हे …कोनो नइ जाने। बेटी के कल्थी मारत ले बइठत तक। बइठत ले मड़ियावत तक । मड़ियावत ले रेंगत तक। ......अउ रेंगत ले उड़ाहावत तक। …अउ उड़हाये लागिस तब तो झन पुछ ..! काखर आँखी मा नइ गड़े लइका हा..। पांख ले थोड़े उड़ाथे बेटी मन ..? अपन मिहनत मा सब ला जानबा करा देथे। गोड़ तिरइया मन उही मेर भसरंग ले मुड़भसरा गिर जाथे।
बेटी बारवी किलास मा पूरा राज मा पहेला आये हावय। पेपर छपिस जयकारा होइस।
“बेटी! तिही मोर जैजात आवस। न गांव मा दू कुरिया के घर बिसा सकत हंव, न खार मा खेत । .. अउ घर, खेत रहे ले मइनखे पोठ हो जाथे का ? जैजात आवस बेटी ! तोला देख के मालगुजार कस महुं हा छाती फुलोथो। ...अउ अइसना फुलत रहूँ सबरदिन।
फेर आज फुग्गा फुटगे। गुमान टुटगे। हवा निकल गे ।
“भागना रिहिस ते हमर जात सगा के का दुकाल रिहिस ओ ? पठान टूरा संग…छी छी…।”
कोतवाल फेर बीख बान छोड़त रेंग दिस।
रेवती के मन गवाही नइ दिस फेर गाँव के पटवारी कका बताइस तब कइसे नइ पतियाही ? उही तो आय पुरखा घर के एक खोली ला अतिक्रमण हाबे कहिके टोरवाये रिहिस।
“मेहाँ देखे हंव रेवती बेटी ! बड़का अरोना बेग ला पीठ मा लाद के ओ टूरा संग भुर्र होगे तेला।”
पटवारी फेर किहिस।
धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय।
“इंजीनियरिंग कालेज के तीर मा मोटियारी टूरी के लाश मिलिस दू चार दिन पाछू। बदन के जीन्स टी शर्ट जम्मो चिरागे रिहिस। पुलिस केस मा पता चलिस – कबाड़ी वाला के बेटा आवय सलमान । टूरी ला अपन मया मा फँसाये के उदिम करिस अउ नइ फँसिस तब चारो कोई ओरी पारी.... ... छि... छी.....।”
पटइल कका आवय। रेवती के जी कलप गे। मुँहु चपियागे टोटा सुखागे फेर पानी के एक बूँद नइ पियिस।
“आजकल नवा चरित्तर उवे हे भइया ! लव जिहाद कहिथे। आने जात के मन मया मा फँसा लेथे। टूरी ला मुनगा चुचरे सही चुचर लेथे। खेत जोतके बीजा डार देथे अउ छोड़ देथे ..खुरचे बर। ये जम्मो डंफायेन हा बड़का शहर मा चले । अब हमर गाँव देहात मा घला आ गेहे। धन हे श्री राम जी..! तिही बता भगवा रंग ला कइसे अइसन खतरा ले उबारबो तेला।
?”
पुजारी आय मंदिर ला माथ नवावत किहिस।
रेवती काला जानही घरखुसरी हा, लव जिहाद – फव जिहाद ला। अपन बुता ले बुता राखथे। उही पुजारी आवय जौन हा डांग-डोरी, देवी-देवता, देव- आंगा देव ला नचा लेथे।
रेवती बम्फाड़ के रो डारिस।
धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय।
अभिन बारवी पढ़ के निकले हावय कइसे मया के मेकरा जाला मा अरहज जाही ? अरहज सकथे न!,नेवरिया घर बारवी पास नइ होवन पाइस अउ बिहाव कर दिस।.. अउ ओ खोरवा मंडल के दसवीं पढ़इया नतनीन.. अब्बड़ आनी-बानी के गोठ सुनथो। ओमन अइसन करत हावय तब मोर बेटी…? अब्बड़ गुनत-गुनत अंगरी मा गिन डारिस। लइका हा छे बच्छर मा बड़े स्कूल मा भरती होइस। बारा बच्छर ले पढ़ीस । बारा छे अट्ठारा..।
“अई”
रेवती के मुँहु उघर गे। लइका संग्यान होगे। इही उम्मर मा ओखर खुद के बिहाव होये रिहिस।
रेवती के आँसू भलुक सुक्खागे रिहिस फेर आँखी उसवागे रिहिस।
“कोन पठान टूरा आवय रे ..? हमर गाँव के बहु बेटी ला बिगाड़त हे। अभिन थाना मा फोन करथव । भगवा रंग वाला मन ला घला सोरियावत हंव । ओ पठान टूरा के बुकनी झर्रा दिही ओमन।”
सरपंच आवय रखमखा के आइस तमकत हे।
” महूँ देखे हंव ओ रितु नोनी ला । कोन आय तेला नइ चिन्हे हंव फेर टूरा हा सादा कुरता पैजामा अउ मुड़ी मा हरियर टोपी पहिरके तहसील ऑफिस कोती जावत रिहिस।”
गाँव के डॉक्टर आय।
” मोला तो कोर्ट मैरिज करे बर जावत रिहिस अइसे लागथे।”
सरपंच फेर किहिस।
धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय अभिन घला।
रेवती घर अमरगे रिहिस। अउ घर ले दोना पतरी ला उपासिन मन ला बेचत हाबे। फेर मोटियारी बेटी के संसो मा काला धीरज धरही ? कभु डॉक्टर करा जातिस कभु वकील करा, कभु बइगिन करा तब पहटनीन करा । कतको बेरा फोन घला लगाइस फेर स्विच ऑफ आइस।
जेखर संग मया कर तेखर संग बिहाव घला करना चाही । नही ते..? मया ही झन कर। महाभारत मा रूखमणी हा भाग नइ सकिस तभे भगवान किसन ला भगाये बर किहिस । अउ रूखमणी ला हरन करके लेगगे किसन जी हा। रितु हा महाभारत देखत- देखत केहे रिहिस अउ रेवती बरजे रिहिस । नानचुन टूरी अउ आनी – बानी के गोठ करथस। जइसे पढाई मा हुशियार हावय वइसने खेलकूद लड़ई झगड़ा सब मा अगवाये हाबे…अउ मया मा भागे बर…?
धिरलगहा पतियावत- पतियावत अब सिरतोन पतियाये लागिस रेवती हा.. ।
बेरा चढ़गे अब। महुआ पत्ता के दोना पतरी ला कतको झन ला बेचिस अउ कतको झन ला फोकट मा घला दिस। कतको झन ला छे किसम के अन्न राहर जौ तिवरा चना बटरा अउ लाई दिस। छे किसम के खेलउना बनाइस बाटी भौरा गिल्ली डंडा धनुष बाण गेड़ी। पसहर चाउर ( लाल रंग के धान जौन पानी के स्रोत मा अपने आप जाग जाथे। सुंघा/कांटा रहिथे। बाली ला सुल्हर लेथे दीदी मन अउ रमंज के चाउर निकालथे । इही लाल रंग के चाउर ला पसहर चाउर कहिथे ) ला रांधिस बिन जोताये खेत ले छे किसम के भाजी सकेल डारिस अमारी मुनगा कुम्हड़ा लाल पालक बथवा भाजी। गाँव के डेयरी ले दूध मही घीव ले आनिस। अउ अब जम्मो तियारी करके गौरी – गौरा चौक मा रेंग दिस।
मंडप साजे हे। सगरी बने हावय सुघ्घर अउ पार मा खोचाये हे चिरइया फूल कनेर कांसी दूबी अब्बड़ सुघ्घर। दाई माई बहिनी मन घला अपन जम्मो सवांगा पहिरे- ओढ़े । मेहंदी मा रंगे हाथ अउ आलता माहुर मा गोड़। चुरी वाली अउ बिन चुरी वाली सब बइठे हावय संघरा। लइका के उज्जर भविस बर असीस मांगत हावय जम्मो उपासिन मन कमरछठ महारानी ले।
“अब तोरे आसरा हावय ओ कमरछठ दाई !”
रेवती के ऑंसू बोहागे महराज के पैलगी करत। दिन भर के निर्जला उपास । जम्मो कोती अँधियार लागिस। लटपट घर अमरिस अउ सुन्ना घर मा समावत पारबती भोले नाथ के फोटू ला पोटार लिस। बेसुध होगे।
उदुप ले मोहाटी के कपाट बाजिस अउ नोनी हा खुसरिस भीतरी कोती। बटन ला मसक के लट्टू बारिस।
“दाई ! ”
ये आखर रेवती बर संजीवनी बूटी रिहिस। झकनका के उठिस अउ लइका ला पोटार लिस। नोनी रितु के नरी मा झूल गे।
“गाँव भर नाच नचा डारे। पदनी पाद पदो डारे । जिहाँ जाना हे, बता के जाना रिहिस तोला कब बरजे हव बेटी ! झन जा कहि के । ”
रेवती अगियावत रिहिस अउ रोवत किहिस। रितु के गाल घला झन्नागे दाई के चटकन ले।
“दाई रायपुर गे रेहेंव। अब तोर बेटी हा मेडिकल कालेज मा पढ़ही ओ !”
मुचकावत रिहिस रितु हा।
“अउ पइसा ? ”
“लोन लेये हंव, शिक्षा लोन। फरहान भइया जम्मो बेरा पंदोली दिस फारम भरे अउ लोन निकाले बर। मोर संगी रुखसाना के भाई आय ओ ! फरहान हा। रायपुर दुरिहा हे तेखरे सेती अगुवाके काली गे रेहेंव मेहां, रुखसाना अउ फरहान भइया तीनो कोई। आजे आखरी दिन रिहिस काउंसिलिंग के । मोबाइल घला मरगिस तब का करहु। जाथो कहिके पटेलीन डोकरी ला घला बताये रेहेंव । भैरी सुरुजभूलहिन नइ बताइस ? नानचुन गोठ बर झन संसो करे कर। रितु मुचकावत रिहिस अउ रेवती के ऑंसू पोंछत रिहिस।
टूरा के जेवनी कोती अउ टूरी के डेरी कोती पोता मारे के विधान हाबे। नानकुन कपड़ा ला पिवरी छुही मा बोर के रितु के डेरी कोती पोता मारे लागिस रेवती हा। छे बार पोता मारके आसीस दिस खुलखुल हाँसत रेवती हा अब।
बिन जोताये खेत मा उपजे चाउर कस पाबित्तर लागत रिहिस अब रितु हा। अउ गाल मा उछाह के रंग दिखत रिहिस सिरतोन पसहर चाउर कस लाल-लाल।
चन्द्रहास साहू
द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब के पास
श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़
493773
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समीक्षा
छत्तीसगढ़ लोकपरब के भुइयाँ ए। जिहाँ कतको लोकपरब आए दिन मनते रहिथे। ए लोकपरब जन-जन ल मया के सुतरी म जोरे रखे म बड़ भूमिका निभाथे। सामाजिकता के विकास करथे। आने-आने जात-बिरादरी के जम्मो मनखे अपन पुस्तैनी काम धंधा ले एक-दूसर के सहयोग करथें। गँवई जनजीवन म एकता, भाईचारा अउ मया-प्रेम के सतरंगी खुशहाली के दर्शन होथे। विकास के निसैनी चढ़त पउनी-पसारी अब नँदावत हे। अभियो दूराँचल म जिहाँ रोजगार गारंटी के घोड़ा कागज म दउड़त तो हे, फेर रोजगार के गारंटी नइ हे, उहाँ पउनी-पसारी लगके कतकोन मन जिनगी ल पार लगाथें। अइसन उही मन करथें, जेन मन अपन गाँव अपन छाँव के भाव ले अपन जन्मभूमि ल सरग मानथें।
शिक्षा के सुरुज के अँजोर नइ बगरे ले कभू-कभू बिन मुड़ी-कान के गोठ ह जंगल के आगी बरोबर फइलते जाथे। कउँवा कान लेगे कहे म लोगन कउँवा के पीछू दउड़े लगथें। कान ल छू के परछो ले लन कहिके नइ सोच पाँय। एकरे कतकोन झिन मन फायदा उठाथें अउ गरीब अउ लाचार मनखे ल हँसी-मजाक के जिनिस समझथें। उँकर भावना ले खेलथें। जेकर पति नहीं, तेकर गति नहीं। कहावत शिक्षा के अभाव म चरितार्थ हो जथे।
भारत गाँव म बसथे। ए गोठ ल सबो मानथें अउ भारतीयता के दर्शन गाँव म देखब ल मिलथे। जिहाँ लोगन के बीच कोनो किसिम के जाति भेद अउ धरम भेद नइ झलकय। सब मिलके रहिथें आगू बढ़थें।
ताक म रहइया मनखे मन गाँव के हवा म जहर-महुरा घोरे के बुता करथें। भरम जाल के फाँदा म जनता ल फँसा के अपन उल्लू सीधा करथें। इही अवसरवादी मन ल कहानीकार चंद्रहास साहू जी निशाना म रख के पसहर चाउँर कहानी ल लिखे हें। कहानी अपन उद्देश्य ल पूरा करत हे।
आम आदमी लोक लाज जाय के डर ले अधरे अधर काँपत रहिथे। जेकर ले अपन आप के विश्वास ल डगमगा डरथे, अउ अपने लइका ऊपर शक करे धर लेथे। रेवती घलव अपन हुशियार बेटी ऊपर भरोसा करे के स्थिति म नइ राहय। ए गरीबी अउ हँसइया समाज के डर के भूत आय। जउन रेवती के मन म समाज म घटत अनहोनी घटना ले जनम लेथे। ए मनसा पाप कहन ते शक, एला हवा देवइया कतकोन हें, जउन मन इही बगुला भगत सहीं ताकत बइठे रहिथें।
कहानी के भाषा शैली बढ़िया हे। प्रवाह हे। रोचक हे। कहानीकार सिरीफ सपाट बयानी करना नइ चाहय, प्रतीक म अपन बात रखे म उन ल महारत हासिल हे। देखव बानगी---टुरी ल मुनगा चुचरे सही चुचर लेथे। खेत जोतके बीजा डार देथे अउ छोड़ देथे...खुरचे बर।
ए ह अपन आप म गहिर बात ल समेटे हवय। बस विचारे के जरूरत हे।
संवाद मन पात्र मन ल उभारे म सक्षम हवँय।
कहानीकार चंद्रहास साहू जी अपन लेखन शैली ले पाठक ल गँवई-गाँव के जीवन दर्शन करावत कहानी ल आगू बढ़ाय म सफल हे। कहानी काल्पनिकता ले दुरिहा हे।
पाठक रेवती के बेटी रितु के प्रवेश करत ले कहानी का मोड़ लिही? एकर कल्पना नइ कर पाय, अउ पढ़े के मोह घलव छोड़ नइ सकय। कहानीकार के के इही चतुरई पाठक ल अपन शब्द जाल म बाँध लेथे।
पसहर चाउँर ल खमरछठ म जतका पवित्र माने जाथे, रितु ह महतारी रेवती के जिनगी म ओतके पवित्र हे। ओकर मन के शंका ह निराधार रहिस। अनहोनी के शंका के घटा के फरियाय ले खुशी ले दमकत गाल के लाली ह कहानी के शीर्षक ल सार्थक करथे। अइसन सुखांत कहानी हर पाठक ल पढ़ना चाही।
चंद्रकांत साहू जी ल सुग्घर कहानी लिखे बर मँय बधाई देवत हँव।
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
जिला बलौदाबाजार
9977252202
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