Tuesday, 14 January 2025

आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई

 आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती हरे। जम्मो देसवासी अउ खास करके युवा मन ल 'युवा दिवस' के कोठी-कोठी बधाई!💐💐💐


(1)

नारी के सम्मान कइसे करना चाही, वोला स्वामी विवेकानंद ले सीखे के जरूरत हे। स्वामी जी के जीवन के कई ठी अइसे प्रसंग हे जेन ल आज अपन आचरण म उतारे के जरूरत हे। आवव एक ठी अइसने रोचक प्रसंग ल जानन।

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"मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव, स्वामी जी।"

स्वामी विवेकानंद 1893 के शिकागो धर्म सम्मेलन म अतका नामी होइन के अमरीका म सरलग तीन साल ले जघा-जघा ऊँखर भाषण के कार्यक्रम होय लगिस। उहाँ के महिला मन घलो ऊँखर ले प्रभावित होय बिगन नइ रहि सकिन। कई झिन मन तो ऊँखर संग बिहाव करे के सपना घलो देखे लग गे रिहिन। 

एक बखत के घटना हरय। एक बिदेशी महिला अपन इच्छा ल रोक नइ सकिस अउ एक दिन विवेकानंद ले कहि दिस- "स्वामी जी, मैं तोर संग बिहाव करना चाहथँव।"

स्वामी जी पूछिस, "तैं अइसन काबर सोचथस?"

"स्वामी जी, मैं आपे के समान विद्वान अउ चमत्कारी पुत्र पैदा करे के साध पूरा करे बर आप संग बिहाव करना चाहथँव। अउ ये तभे हो सकथे जब आप मोर संग बिहाव करहू।"

तब स्वामी जी कहिथे- "बिहाव करना तो संभव नइ हे। फेर तोर साध पूरा करे के उपाय मोर पास हे।"

महिला पूछिस, "का उपाय हे?"

"आज ले मोही ल तैं अपन बेटा मान ले। तैं मोर माँ बन जा, मैं तोर बेटा बन जाथँव। तोर जम्मो साध पूरा हो जाही।" महिला सपना म भी नइ सोचे रिहिस के कोनो पुरुष अतका महान घलो हो सकथे। वो वोखर चरन म गिर जाथे, "तैं मनखे नइ हो सकस। तैं तो साक्षात भगवान हरस।" 

ओखर आँखी ले प्रेमरस के धार बोहाय लगथे।


ये रिहिन महामानव विवेकानन्द! कोनो महामानव अइसने नइ बन जाय। अउ आज के मनखे का करत हे, जेला हम नेता कहिथन वो खुलेआम देस के बेटी के इज्जत उतारे बर घलो नइ हिचकय।


(2)

12 जनवरी 'युवा दिवस' विशेष


°उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"

"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव"  


भारत भुँइया के महान गौरव स्वामी विवेकानंद के आज जनम दिन हरय। स्वामी जी के जनम 12 जनवरी सन् 1863 के कलकत्ता (अब कोलकाता) म होय रिहिस। ऊँखर पिताजी के नाँव बाबु विश्वनाथ दत्त अउ महतारी के नाँव सिरीमती भुवनेश्वरी देवी रिहिस। ऊँखर माता-पितामन ऊँखर नाँव नरेन्द्रनाथ रखे रिहिन। बचपन ले ही नरेन्द्रनाथ धार्मिक सुभाव के रिहिन। धियान लगाके बइठे के संस्कार उनला अपन माताजी ले मिले रिहिस। एक बार नरेंद्र एक ठी खोली म अपन संगवारी मन संग धियान लगाय बइठे रिहिन के अकसमात कहूँ ले वो खोली म करिया नाग आके फन काढ़ के फुसकारे लगिस। ओखर संगी साथी मन डर के मारे उहाँ ले भाग के उँखर माता-पिता ल खभर करिन। उन दउड़त-भागत खोली म पहुँचिन अउ नरेन्द्र ल जोर-जोर से अवाज देके बलाय लगिन। फेर नरेन्द्र ल कहाँ सुनना हे। वोतो धियान म मगन हे ते मगने हे। एती नाग देवता अपन फन ल समेट के धीरे-धीरे कोठी ले बाहिर होगे। ये घटना ले माता-पितामन ल आरो हो गे नरेन्द्र कोनो छोटे-मोटे बालक नोहे अउ भगवान जरूर वोला बहुत बड़े काम बर भेजे हे। ये बात बाद म साबित होइस तेला आज सरी दुनिया जानत हे। 


इही नरेन्द्रनाथ अपन गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चेला बने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाँव ले दुनियाभर म प्रसिद्ध होइन। स्वामी विवेकानंद आज ले लगभग डेढ़ सौ साल पहिली होइन फेर ऊँखर विचार ल जान के आज के पीढ़ी ल अचरज हो सकथे के ऊँच-नीच, जात-पाँत,  दलित-सवर्ण के जेन झगरा आज देस के बड़े समस्या के रूप धर ले हवय तेखर विरोध उन वो समय म करिन जब समाज म एखर कट्टरता ले पालन करे जाय अउ एखर विरोध करना कोनो हँसी-ठठ्ठा नइ रिहिस। वो समय म उन नारी जागरन, नारी सिक्छा अउ दलित शोषित मनखे बर आवाज उठइन तेन बड़ जीवट के काम रिहिस। नरेन्द्र बचपन ले ही मेधावी, साहसी, दयालु अउ धार्मिक सुभाव के रिहिन। उन रामकृष्ण परमहंस ल गुरू बनाइन फेर ठोक-बजा लिन तब बनइन। हमर छत्तीसगढ़ म एक ठी कहावत हे-"गुरू बनाए जान के पानी पीयय छान के"। अउ नरेन्द्रनाथ अपन गुरू रामकृष्ण परमहंस के महाप्रयान के बाद संन्यास धारन करके स्वामी विवेकानंद कहाइन।


अब वो समय आइस जब दुनियाभर म स्वामी विवेकानंद के नाँव के डंका बजना रिहिस। वो समय रिहिस 11सितंबर 1893 अमरीका के शिकागो सहर म विश्व धर्म महासभा के आयोजन। जेमा स्वामी जी बड़ मुस्किल ले सामिल हो पाइन। अउ जब ऊँखर बोले के पारी आइस तौ अपन गुरुजी के याद करके बोलना सुरू करिन- "अमरीका निवासी बहिनी अउ भाई हो..." बस्स् अतके बोले के बाद धर्म सभा के जम्मो देखइया सुनइया दंग होके खुसी के मारे ताली बजाय लगिन।  हरदम "लेडीज़ एंड जेन्टलमैन" सुनइया मन कभू सपना म नइ सोंचे रिहिन के कोनो वक्ता अइसे घलो हो सकथे जेन उनला बहिनी अउ भाई बोल के सम्मान देही। बाद म अपन भासन म हिन्दू घरम के अइसे ब्याख्या करिन के अमरीकावासी मन सुनते रहि गे। धरम के अतका सुंदर ब्याख्या ओखर पहिली कोनो नइ कर पाय रिहिन। बिहान दिन अमरीका अउ दुनियाभर भर के अखबार स्वामी जी के तारीफ म भर गे राहय। 

30 साल के उमर म स्वामी जी हिंदू धरम के झंडा फहराय बर अमरीका अउ यूरोप सहित दुनियाभर भर म घूमिन अउ अपन जीवन के ये पाँच-छे साल जिहाँ भी गीन उहाँ हिंदू धरम के झंडा गड़ा के ये साबित करिन विश्वगुरु होय के योग्यता यदि कोनो धरम हे तो वो हे हिंदू धरम।

स्वदेस वापिस आके उन जघा-जघा रामकृष्ण मिशन के स्थापना करिन। कुछ दिन बाद उनला आभास होगे के आगे के काम बर ये सरीर के कोई जरूरत नइ रहि गे। अब ये सरीर तियागे समय आ गे हे। स्वामी विवेकानंद 4 जुलाई 1902 महासमाधि धारन करके अपन भौतिक सरीर तियाग दिन अउ मात्र साढ़े 39 बरस म कतको महान कारज करके ये साबित कर दिन के जीवन बड़े होना चाही लंबा नहीं।

सन् 1984 म भारत सरकार दुवारा स्वामी विवेकानंद के जनमदिन ल युवा दिवस के रूप म मनाय के घोसना होय रिहिस। तब से हर साल 12 जनवरी ल युवा दिवस के रूप म मनाय जाथे। ऊँखर देय मूलमंत्र-"उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव" हमेसा युवा मन बर अटूट प्रेरणास्रोत रइही।


-दिनेश चौहान,

छत्तीसगढ़ी ठिहा, 

सितलापारा, नवापारा-राजिम

Thursday, 9 January 2025

नानूक व्यंग्य लेख " रउनिया बर झगरा "

 नानूक व्यंग्य  लेख 

    "  रउनिया बर झगरा "

       -मुरारी लाल साव 


रात के जाड़ बिहनिया के होवत ले रहिथे l बिहनिया के रउनिया बर शरीर काँपत रहिथे

नान नान लइका मन रउनिया तापे बर झगरा होवत रहिस l  बने सोच  लुकाये रहिस बाहिर निकले ला धरलिस l जतके जाड़ अमाथे  कंबल ल ओढ़े भीतरी के गरमी अउ भड़ास ला निकालथे l 

रउनिया बर लड़ई करत आज पछहत्तर बच्छर सिरा गे l समस्या के बदरी म रउनिया तोपा गे हे l कोनो मेऱ ले दिखथे   लोगन झपट पड़थे l  दिन दहाड़े रूनिया ला  कमरा म कंबल ओढ़ाके  मुरकेट डरिन l रउनिया जेन ला मिलथे तौन चपके ला धरथे l जेकर जतका दम पोटार के धरे हे लुका के राखे हे l देने वाला भगवान अबड़ देवत हे फ़ेर भईया भियाँ म राज करत रउनिया दार मन गड्डी अउ गद्दी के बदौलत बगरन नइ देवय l 

जेती देख ओती झगरा l सबला हिस्से दारी चाही l दस बीस परसेंट तो अइसने  घर पहुँच सेवा होवत हे पद वाले मन ला l दस बीस परसेंट बनाने वाला चपकत हे l चालीस पचास परसेंट के रउनिया ला बाँटत हे l उहू म झगरा  चारो कोती l ओला कम दे हमर आदमी नोहय l हमर आदमी ला मिलही त बने जी परान देके काम करही l अस्पताल म रउनिया कइसे पसरे हे l खोरवा बर गाड़ी हे माड़ी नइ उसलत हे l आँखी दिखय झन दिखय लेंस लगवाये ला परही l झुंझुर झंझर म झंझट म पड़े रहिबे l

नर्स ला बाई झन माई कह तभे बात बनही l डॉक्टर मन देवता होथे  मरन देवय फ़ेर बिन दवाई के  जियन नइ देवय l

रउनिया तो सबो बर होथे रउनिया अमीर नइ देखय ना गरीब l सुरुज देवता नइ जानय  रउनिया कोन कइसे सकेलत हे l गद्दी वाले मन धकियाथे अउ गड्डी वाले मन धकियाथे  येला सब देखत सुनत हे l  गद्दी बर कददावर नेता चाही l गड्डी बर तोप तमंचा नहीं  दाँतनीर्पोरेवा चाही l  आँखी लड़रे ले काम बिगड़ जही आँखी मारे के तरीका बने होना चाही lइहू बात ला सुनत हन  एमन ला उंकर गरमी रहिथे l पइसा के गरमी अउ कुरसी के गरमी तेखर सेती जाड़ के आड़ कर लेथे l 

अतका सुख सुविधा रहे के बावजूद दूसर के हक कोती सबके नजर हे l

पुरुष के पीरा*

 कहानीकार 

डॉ पदमा साहू "पर्वणी" 

 खैरागढ़

                 *पुरुष के पीरा* 


"राम-राम माधव भइया।"

"राम-राम बिसउहा भाई। कहाँ जात हस गा?"

"कहाँ जाहूँ माधव भइया। तोरे करा आवत हाववँ। एक झन तहीं तो हस मोर सुख-दुख के संगवारी।"

"कइसे का होगे?"

"आज मोर मन बड़ भारी हे माधव भइया।"

"बिसउहा भाई का बात हे?" 

"माधव भइया हम पुरुष मन ल अपन अंतस के पीरा ल काबर छुपाए ल पड़थे? हमन गोहरा के काबर नइ रो सकन?"

माधव–"का करबे बिसउहा भाई हमन ल अपन अंतस के पीरा ल छिपा के कठोर बने ल पड़थे। हम पुरुष मन अपन घर के मजबूत पिल्लहर कस होथन जेकर ऊपर घर परिवार के गृहस्थी के बोझ ह लदाय रहिथे। हमी मन ह रो के टूट जाबोन त घर परिवार के का होही तहीं सोच तो भला।"

बिसउहा–"हव माधव भइया सिरतोन काहत हस। तें कइसे हस माधव भइया तोर का हाल-चाल हे।"

माधव–"मोरो मन गजब भारी हे बिसउहा भाई। महूँ ह तोर तीर आहूँ कहिके बड़ दिन के सोचत रेहेंव। बने करेस तहींं आगेस ते। आ भीतरी मा बइठबोन। अउ बता बिसउहा भाई लोग लइका मन सब बनें हे न?" 


बिसउहा –"का बताववंँ माधव भइया तैं तो जानथस मोर घर के घटना ल। अभी घर मा बेटा करन ल अकाल मउत मा गुजरे बछर भर नइ होय हे। में वोकर जब्बर दुख ल भुलायच नइ रेहेंव अउ करन के दाई, बेटा करन के दुख मा रो-रो के सरग सिधार गे। बेटा के दुख ह का कमती रहिस अब यहू दुख के आगी ल राख के भीतरी मा लुकाय अंगरा आगी कस अपन अंतस मा दबाय हँव। करन अउ वोकर दाई के अब्बड़ सुरता आथे त कोनो तीर अकेल्ला बइठ के रो लेथों भइया। काखर तीर जाके दुख ल बाँटहूँ तइसे लागथे।"

माधव–"का करबे भाई बिसउहा, जियत भर ले घर परिवार के सुख-दुख के भंवर जाल ह कभू नइ छूटय इही मा जिये मरे ल पड़थे।"

बिसउहा–"बूढ़त काल मा जवान बेटा अउ जोड़ी परानी के छूटे के दुख हा सहे नइ जात हे। उंँकर मन के बिना मोर जग अंधियार होगे हे माधव भइया।"


माधव–"तोरे कस मोरो हाल हे बिसउहा भाई फेर देख तो नारी होवय चाहे पुरुष सबके ठाठ हा हाड़ मांस के बने हे। इही ठाठ मा परमात्मा के अंश जीव ह जब तक रहिथे तब तक नर हो चाहे नारी सबला सुख-दुख, भूख-पियास, जीवन-मरन के भान होथे। ये संसार मा सब नर-नारी  सुख अउ दुख के कोरा मा अपन जिनगी ल जीथें। फेर नारी मन के अंतस मा समाय दुख पीरा ह सबला दिख जथे अउ पुरुष के अंतस मा समाय पीरा ह काबर नइ दिखय बिसउहा भाई?"


बिसउहा–"का करबे माधव भइया हम पुरुष जात के दुख ल कोनों ह कभू समझबे नइ करँय तइसे लगथे।"

          

      अब इही कर ले सोच ले माधव भइया भगवान राम ह अपन प्रजा मन के खातिर राज धरम ल निभाय बर जब माता सीता ल तियाग दिस त प्रभु राम के दुख जउन अपन छाती मा पथरा ल लदक के लक्ष्मण तीर माता सीता ल घर ले दूरिहा बन मा छोड़े बर कहिस होही त वोकर करेजा ह कुटी-कुटी नइ होइस हाेही? तभो ले प्रभु ह बोमिया के रो नइ सकिस। अंतस मा दुख ल छिपा लिस त का वोला पीरा नइ होइस होही? 

फेर भगवान के दुख ला दुनिया कहांँ समझिस।


माधव –सिरतोन कहिथस बिसउहा। वो तो भगवान रहिस तहू अपन दुख ल अंतस मा छिपा लिस अउ हमन तो साधारन मनखे हरन। ये दुनिया कोनों पुरुष ह कभू बोमिया के रो डरथे त माईलोगिन कस भो-भो-भो-भो रोवत हे घलो कही देथें।


बिसउहा –अइसने गोठमन ल सुरता करके महूँ ह घर परिवार ह तीड़ी-बीड़ी झन होय कहिके बहू खाय-पिये ल दिही तभो नइ दिही तभो ले वोकर दुख ल सोच के अपन नाती-नतरा मा मन ल लगाय रहिथों अउ उंकर आगू मा भीतर ले रोवत बहिरी ले हाँस के गोठियाय के नाटक करथवँ भइया माधव। 

  माधव –  भाई बिसउहा हमन ल अपन दुख ल पाछू मा रख के घर परिवार के सुख-शांति खातिर गृहस्थी के गाड़ी ल आगू बढ़ाय बर पड़थे। जउन पुरस ह एक खाँध मा अपन दुख अउ दूसर खाँध मा परिवार के जिम्मेवारी ल धर के बरोबर चलथे वोकरे घर परिवार मा सुख-शांति रहिथे।

माधव –हव भइया सिरतोंन बात आय। काखरो दुख ह भुलाय ले नइ भुलय तभो ले हाँस के गोठियाय ल पड़थे। हमन अपन दुख के डोंगा मा सवार रहिबो त घर-परिवार, गृहस्थी के डोंगा ह डूब जाही। परिवार खातिर हम पुरुष मन ल अपन दुख ल तियागे ल पड़थे।


बिसउहा–"माधव भइया भउजी नइ दिखत हे कहाँ हे गा?"

माधव–"खेत गेहे गा तोर भउजी हा।"

बिसउहा–माधवके नान्हे-नान्हे नाती नतरा ला देख के कहिथे –"त माधव भइया ये दुवारी मा खेलत नान-नान लइका मन के जतन पानी कोन करथे गा?"

माधव–"का करबे बिसउहा घर के लक्ष्मी कस बहू ल गुजरे दु बछर होगे हे। बहू के सुरता मा बेटा ह पगला कस घुमत रहिथे। दूसरा बहू खोजे बर जाथन त वोकर पाछू मा ये नान-नान तीन झन लइका हे तेला बताथन ताहन कोनो ह बेटी नइ देन कही देथे। भरे जवानी मा बेटा के दुख के आगू मा मोर दुख नानकून हे। बेटा अपने दुख चिंता मा डूबे रहिथे। का करवंँ तइसे लगथे भाई। ये नोनी-बाबू हें तीकरें सेवा जतन करत में घर मा रहिथों तोर भउजी खेत जाथे।"


बिसउहा–"करलई हे माधव भइया फेर रांधे गढ़े बर कइसे करथस गा?"


माधव–"जिनगी मा कभू हांड़ी-पानी ल छुये नइ रेहेंव बिसउहा फेर बहू के गुजरे ले अब मिही ह घर के बहू बनगे हों तइसे लगथे।"


बिसउहा–" करम कमई के खेल अउ प्रारब्ध के कोनों भोग ल भोगत हन तइसे लगथे माधव भइया।"


माधव–"तोर भउजी ह बिहनिया के हांड़ी-पानी ल देखत काम-बूता मा चिथिया जथे। अकेल्ला नान-नान तीनों लइका के जतन करत हलाकान हो जथे। मोर तबियत पानी ठीक नइ रहय त सबो काम-बूता ल करे के पाछू खेती किसानी ल देखथे। त संझा बेरा वोकर आवत ले आगी-पानी, गाय-गरुआ ल देखथवँ भाई। का करबे मोर तीनों तिलिक ह दिख जथे।"


बिसउहा–"घर के बेवस्था बर हम पुरुष ला घलो नारी परानी बनके काम करेच ल पड़ही माधव भैया।"


माधव – “हव बिसउहा भाई कभू-कभू तो आरा-पारा के मन माईलोगिन बनगे हस कही देथे फेर अपन घर के हाल अउ अपन दुख ल अपने जानबे।"


बिसउहा–"माधव भैया जेकर ऊपर बीते रहिथे तिही ह दूसर के दुख ल समझथे ग।"


माधव –विसउहा भाई बिन महतारी के नान-नान लइका मन जतका बेर रोवत "दाई कहाँ हे"? कहिके पूछथे त, न बता सकँव न रो सकँव तइसे हो जथे। बूढ़त काल मा ये दुख ह सहे नइ जात हे। तीन बछर ले लोग लइका के इही चिंता फीकर मा भीतरे-भीतर तोर भउजी सन घुरत हन। ये सब दुख ल तोर भउजी अड़ोसीन-पड़ोसीन, बेटी माई तीर गोठिया के मन ल हल्का कर लेथे। फेर में ह वोकर छोड़ काखर तीर गोहराहूँ तइसे लगथे। त आधा पीरा ल तोर भउजी तीर गोहराके वहू ल दुख झन होय कहिके आधा पीरा ल अंतस मा दबाय रहिथों। बेटा बइहा पगला कस घुमत रहिथे। काखरो कर वहू कुछु नइ गोठियाय। वोकरो दुख भारी हे। वोकरो जिनगी सुधर जतिस त मोर दुख कमतिया जतिस।


बिसउहा–"जब्बर दुख आय हे। भगवान ऊपर भरोसा राखे रहा भइया माधव। का करबे परिवार हे तभो नइ हे तभो सबो डहर ले दुख हे फेर हमन ल अपन अंतस के पीरा ल भीतरी मा धर के नइ रखना हे वोला कखरों न कखरों तीर गोठियायच ल लगही तभे हाँस के जी पाबोन।"


माधव बिसउहा के काँध मा हाथ रख के कहिथे – “हव भाई ये दे दूनों झन सुख-दुख ल गोठियाय हन त मन ह हल्का होगे।”


बिसउहा माधव के पाँव परत कहिथे– “ले अब जावत हौं माधव भइया बड़ देर होगे हे। तहूँ अपन लोग लइका ल देख अउ कभू कभार हमरो घर कोती झाँक ले कर सुख-दुख ला गोठियाय बर आय-जाय कर।”


       हव बिसउहा भाई जिनगी के राहत ले सुख-दुख लगे रहिथे। फेर कतको जब्बर दुख ह अंतस के पीरा बनके भीतरी मा धधकत रहिथे त अइसने गोठ बात ले दुख-पीरा ह थोरिक कमती होय असन लगथे त अइसने दया मया ल धरे आवत जात रहिबे भाई नइ ते हम पुरुष मन के पीरा हा अंतस मा अंगरा आगी कस सुलगतेच रही।


कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

सोनकुंवर* चन्द्रहास साहू मो-812057887

 *सोनकुंवर*


  

                                    चन्द्रहास साहू

                               मो-812057887


सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

गवइया के गुरतुर आरो आइस अउ जयघोष

    "बाबा घासी दास की जय !''

मांदर मंजीरा तान दिस। झांझ- झुमका झंझनाये लागिस । अउ अब जम्मो पन्दरा झन जवनहा मन हलु -हलु हाथ गोड़ कनिहा ला हलाए लागिस। संघरा, सरलग, नवा उछाह अउ नवा जोश के संग नाचत हावय पंथी नृत्य। जम्मो के बरन एक्के बरोबर। मुड़ी मा सादा सांफा, नरी मा कंठी माला, बाजू मा बाजूबंद, सादा धोती माड़ी तक । खुनूर- खुनूर करत घुंघरू दमकत माथ मा सादा के तिलक  गजब सुघ्घर दिखत हावय।

पंथी नाच ! नाच भर नोहे येहा साधना आवय। भक्ति, आराधना आय। समाज मा सदभाव राखे बर बबा के संदेश देये के माध्यम आवय। .....अउ बबा के चमत्कार ला बताये के साधन घला आय। जम्मो गाॅंव गमकत हावय सतनाम चौक मा आज । 

                       महुं तो गेये हंव आज नरियर अउ फूल धरके । पंथी नाच हा अब अपन चरम मा हावय। मांदर के ताल ,झांझ के झंकार झुमका के झम्मक -झम्मक अउ छनन-छनन  करत गोड़ के घुंघरू। सुर मा गाना गावत गवइया, ताल मा ताल मिलावत अहा...अहा... बाबाजी अहा...अहा..। आरो हा नाच के सुघराई ला बढ़ा देथे।

"बाबा ! मोर गुरु बाबा ! मोर बनौती बना दे गुरुजी ।'' 

सी..सी.. सुसके लागिस । ........अउ  चिचियाके किहिस। 

"बाबा जी की जय !'' 

सादा लुगरा वाली मोटियारी हा दुनो हाथ जोर के भुइयां मा घोण्डे लागिस आजू- बाजू। देखइया मन अब मोटियारी के पूजा करिस।  चंदैनी गोंदा के माला पहिरा दिस। गवइया मन अब गुरु महिमा ला उच्चा सुर मा गाये लागिस। जम्मो कोई सतपुरुष समागे काहय। तब कोनो हा देवता चढ़े हे काहय। कतको झन बाबा आ गे हे सौहत किहिस । फेर मोर बर तो मनोरोगी रिहिस।  

नर्स आवव न अब्बड़ पढ़नतिन। 


                   स्वास्थ्य जाॅंच बर गाॅंव ला किंजरत हावन आज। उही मोटियारी घर गेयेंव। सुकुरदुम हो गेंव। लोटा मा पानी लान के दिस गोड़ धोये बर। टुटहा खइरपा । ओदराहा  भसकहा कोठ अउ कोठ मा चिपके बाबा जी के फोटू ..। सुरुज नारायेन कस दमकत चेहरा। सिरतोन अब्बड़ सुघ्घर लागत हावय बाबा जी हा । दू कुरिया के घर। बारी मा छिछले तुमा कुम्हड़ा तोरई के नार  अउ सदा सोहगन के फूल- जम्मो ला देखे लागेंव।

                    " फुटहा करम के  फुटहा दोना, लाई गवागे चारो कोना । अइसना होगे हाबे बहिनी मोर जिनगी हा। जस मोर नाव तस मोर करम के डाढ़ होगे हे। नाव दुखियारीन बाई अउ सिरतोन दुख मा चिभोर डारे हावय परमात्मा हा मोला। हमर ददा हा भलुक गरीब रिहिन। फेर काखरो बईमानी नइ करिस। लबारी नइ मारिस। भलुक हमन ठगागेंन।''

दुखियारीन बाई बताये लागिस।

"का होगे बहिनी ?  बता।''

मेंहा पुछेंव अउ दुखियारीन बताइस। 


"ओ दिन के गोठ आवय। जम्मो कोई बाबा जी के जयंती मनाये बर मगन रेहेंन। सरई रुख के एक्काइस हाथ के खम्बा ला अमरित कुंड के पानी ले नहवा-धोवा के सवांगा करत रेहेंन। भंडारी घर ले पालो ला परघाके जैतखाम कर लानेंन अउ सात हाथ के पोठ बांस  मा बांधेंन। 

"पालो का हरे दीदी !''

"सादा रंग के चकौर कपड़ा आवय। जौन हा धजा बरोबर जैतखाम मा फहरावत रहिथे। मनखे-मनखे एक समान। कोनो बड़का नही कोनो छोटका नही। बबा महतारी जम्मो एक बरोबर। नारी के सम्मान समरसता सदभावना एकता भाईचारा  बाबा जी के सप्त सिद्धांत ला बगरावत कतका सुघ्घर दिखथे पालो हा.... ।''

दुखियारीन भाव विभोर होगे, बतावत हे।

            "फेर ...हमन कोनो बात ला मानत हावन का ? रोज अंगरी धर के रेंगाये बर आगू मा ठाड़े हावय बाबा जी हा । फेर हमर आँखी मा छल कपट के परदा बॅंधाये हावय। काला देखबो ?''

दुखियारीन के आँखी रगरगाये लागिस अब।

               "महुं हा ओ मनमोहना ला देखत रेहेंव अउ ओहा मोला। टुकुर-टुकुर , बिन मिलखी मारे। पंथी नाच होवत रिहिस। आरती भजन होइस। सब मगन रिहिस अउ मेंहा मगन रेहेंव ओखर गुरतुर गोठ मा।''

सुरता मा बुड़गे रिहिस दुखियारीन हा अब। 

"आज साँझकुंन ददा ला पठोहू तुंहर घर। तोला मोर बर मांग लिही । तेहां बलाबे न अपन घर ...?'' 

जवनहा  राजकुमार किहिस। मेंहा मुच ले मुचका देंव लजावत। नवा घर बर नेव कौड़ई होवय कि नवा योजना, बर - बिहाव। आज के दिन अब्बड़ फलदायी होथे। ओमन घर आइस हमर अउ गोठ बात घला करिस।

"तुमन अब्बड़ बड़का हावव अउ हमर बियारी ले दे के होथे।''

"उच्च नीच बड़का छोटका के गोठ नइ हे सगा ! जब मन मिल जाथे तब नत्ता जुरथे।'' 

ददा ला समझाये लागिस राजकुमार के ददा हा। मोर दाई हा घला मोर ददा ला समझाइस मोर बिचार पुछिस तब हाॅंव किहिस। 

हमर दूनो के बिहाव होगे। करजा बोड़ी घला करिस फेर उछाह मा कमती नइ होइस।

                  गरीब के बेटी आवंव कहिके आगू - आगू ले जम्मो जिम्मेदारी ला निभायेंव। सास ससुर देवर जेठ , जम्मो कोई ला दाई ददा अउ भाई भइयां मानेंव। कतका ठोसरा मारिस मोला छोटे घर के बेटी आवय कहिके । खाये पीये बर, पहिरे ओढ़े बर, रांधे गढ़े बर। घर के गोठ ला बाहिर नइ लेगेंव भलुक अगरबत्ती बन के ममहायेंव। जतका जरत गेंव ओतकी ममहावत गेंव। दू बच्छर भर नइ बितन पाइस अउ ताना सुने लागेंव। कोनो बांझ काहय, कोनो ठगड़ी , कोनो निरबंसी। अब्बड़ सहेंव सहत भर ले अउ अब नइ सही सकेंव।

"तोर बेटा जोजवा हावय धुन मोर कोरा मा दुकाल परगे हावय। दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही। तोर बेटा ला भेज डॉक्टर करा टेस्ट करवाबो दूनो कोई।''

छे बच्छर ले ठोसरा सुनत रेहेंव। आज मुॅॅंहू उघारेंव सास करा।

"बेसिया , घर के मरजाद ला अब गली खोर मा उछरत हावस। तुमन गरीब अउ छोटे घर के मन का जानहूं कूल अउ कूल के मरजाद ला ?  तोर का करनी..? का चाल..? का पाप आय तेन ला तिही जान..कतका सतवंतिन बनत हस तेहां। कोनो पाप करे होबस तेखर डाढ़ ला देवत हे भगवान हा। अउ तोर संग मा मोर बेटा झपावत हाबे।''

सास अब्बड़ बखानिस, मनगड़हन्त लांछन लगाइस । माइलोगिन के पीरा ला, माइलोगिन जान डारतिस ते कतका सुघ्घर होतिस। नारी परानी के रंदीयाये घांव ला अंगरी मा अउ कोचकथे माइलोगिन मन । तब बेटी दुख भोगही कि राज करही....? 

              जम्मो के ताना सुनत रेहेंव तब छइयां मिलत रिहिस रेहे बर। आज मुॅॅंहू उघार देंव छइयां सिरागे। सास तो आगू ले टुंग - टुंगाये रिहिस घर ले निकाले बर। ससुर अउ गोसइया आज चेचकार के निकाल दिस।

" निरबंसी के का बुता ये डेरउठी मा।'' 

नेवरनीन रेहेंव रौंद डारिस मोला।  अब जुन्ना होगेंव मेंहा। अउ जुन्ना कुरता के का बुता ..? तिरिया का आय ? ओन्हा कुरता आवय ओखर बर। 

"मोर बाबा जी जानथे कतका लबारी के चद्दर ओढ़े हावस तेला। वोला झन ठग। आचरण मा ईमान राख समाज मा ओहदा पाये बर उपरछावा पुजारी बने हस तेहां । फेर सब देखत हावय मोर देवता हा..! देख बाबा जी ! मेंहा मन बचन अउ करम ले कोनो पाप नइ करे हंव ते मोर कोरा मा फूल फूलो देबे । मोर जीवित बबा ! मोरो कोख ला हरियाबे । तहुं सुन मोर पतिदेव रातकुन के सुरता ला अंतस मा बसा के जावत हंव।

                पथरा मा पानी ओगर जाही । अतका आस ले ओ घर ले निकलगेंव महुं हा मायके के रद्दा।

दुखियारीन बतावत रिहिस। आनी-बानी के रंग रिहिस ओखर चेहरा मा।

                  रोजिना पूजा करो जैतखाम के अउ बाबा जी ला गोहरावंव। छातागढ़ पहार के औरा- धौरा के रुख मा आज घला जिंदा बिराजे हस। हवा मा कपड़ा टांग के सुखाये हस। पानी मा रेंगे हस। नांगर के पड़की ला बिन धरे खेत जोते हस। साँझकुंन आगी मा लेसाये भूंजाये फसल ला बिहनिया फेर लहलहाये हस। ..कोन नइ जाने तोर चमत्कार ला। महुं ला बना सपूरन माइलोगिन । तेहां भैरा नइ हस। हिचक - हिचक के रोये लागेंव मेंहा। 

आज एक बेरा बाबाजी ऊपर अउ आस्था बाढ़गे । अपन मयारुक बेटा- बेटी के गोहार ला अनसुना नइ करे। दू महीना बितन नइ पाइस अउ कोरा मा डुंहरु धरे के अनभा होये लागिस।  बेरा पंगपंगाइस अउ डुहरू ले फूल फूलगे अपन बेरा मा। छाती मा गोरस के धार फुटिस। अउ लइका के केहेव - केहेव रोवई ...सुघ्घर। जैतखाम मा घीव के दीया बारके असीस लिस ददा हा आज।  

                       गाॅंव भर तिली लाडू बाॅंटिस  ददा हा अउ गौटिया घला । राजकुमार आगे अपन अधिकार जताये बर। 

"मूल ला भलुक छोड़ देबे ब्याज ला भरोसी ले आनबे ।''

"अइसना तो केहे रिहिस सास हा । लइका ला लेगे बर आय हंव ..।''

गोसइया आवय मुचकावत किहिस।

"... अउ मोला ?''

" त तोला कइसे लेगहूं ? आने मोटियारी ला चुरी पहिराके लाने हावंव हप्ता दिन आगू ।''

राजकुमार किहिस छाती फुलोवत।

"सोज्झे कह ना जुन्ना घिसाये पनही ला फेंक के नवा पनही पहिर डारेंव। माइलोगिन ला पनही तो मानथस न ! मोला बांझ ठगड़ी कहिके निकाल देस । फेर बाबा जी ले बिनती करथो मोर सौत के कोरा झटकुन भर दे।''

"लइका ला दे । जादा भाषण झन झाड़ ..।'' 

गोसइया फेर तनियाये लागिस।

मेंहा मांग मा कुहकू भरे ला नइ छोड़ंव, चुरी बिछिया ला नइ उतारो, मंगलसूत्र ला नइ हेरंव तभो ले तेहां मोर बर मरगे हस अब। मोर बेटा ला छू के देख मोर बाबा जी हा छाहत हाबे...। राजकुमार लइका ला धरे लागिस। हाथ गोड़ काॅंपगे । काया पछिना - पछिना होगे। गोसइया राजकुमार झनझनागे फुलकाछ के थारी बरोबर । आगू कोती कतका उज्जर दिखथे फेर पाछू कोती ...करिया, बिरबिट करिया। जम्मो दंभ अउ गरब चूर - चूर होगे रिहिस राजकुमार के। 

               

 चार दिन के बेटी, दू दिन के दमाद।

ओखर ले जादा कुकुर समान। 


अब अइसना ताना सुने लागेंव। बेरा बीतत गिस  दाई ददा घर, अउ अब भइया भौजी के राज हमागे रिहिस। सतनाम भवन के तीर के एक घर मा रेहेंव । निंदई-कोड़ई, रोपा - पानी, रेजा - मजदूरी जौन मिलथे सब कर लेथन । अउ अइसना लइका बाढ़त हे।...... आज अतका बड़का होगे लइका बर संसो नइ हावय मोला।

                           आँसू मा फिले अपन जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला मोर करा उलट-पुलट डारिस दुखियारीन हा। आँखी के समुन्दर ला पोंछिस। महुं हा  आँखी कोर के आँसू ला पोछेंव। 

खोर के कपाट बाजिस अउ साइकिल के आरो आइस । सांवर बरन, कोवर - कोवर हाथ गोड़, मुचकावत चेहरा.... सुघ्घर। हाथ मा झोला धरे । झोला मा मुर्रा मसाला अउ डिस्पोजल प्लेट। पठेरा मा मड़ाइस अउ आके टुप-टुप पाॅंव परिस।

"का बुता करथस बेटा ? अभिन तो नानकुन हावस।''

"भूख तो छोटका अउ बड़का नइ चिन्हे नरस मैडम जी। जम्मो कोई के पेट लांघन मा बिलबिलाथे।...... मुर्रा भेल बेचथो। उही सुभीत्ता आवय बनाये बर अउ बेचे बर।''

लइका जम्मो  रेसिपी ला घला बताइस । मेंहा लइका के मुॅॅंहू ला देखत रेहेंव। मेहनत के पइसा ला महतारी ला देवत अब्बड़ दमकत रिहिस।

"... अउ पढ़े बर ?''

"सातवी पढ़थो। स्कूल ले छुट्टी होथे तब बेचथो मुर्रा भेल। छुट्टी के दिन, दिनभर बेचथो । अभी जब ले दाई ला गिनहा लागत हाबे तब ले दू-तीन दिन नागा करथो स्कूल जाये बर। तभे तो दाई के ईलाज बर पइसा सकेलहूं।

"अब्बड़ सुघ्घर गोठियाथस। का नाव हाबे तोर ?''

फेर पुछेंव।

"सोनकुंवर नाव हाबे मोर। डॉक्टर बनहूं अउ दाई के ईलाज करहूं । दाई के दू सौ ग्राम के दिल अब्बड़ दुख पीरा सहे हे। ओखरे सेती कुछु बीमारी होगे हे कहिथे। जम्मो ला बने करहूं मेंहा।''

सोनकुंवर किहिस।

"हाॅंव बेटा ! बन जाबे।''

आसीस देयेंव अउ घर जाये बर उठगेंव हाथ जोर के जोहार करेंव।

सिरतोन अब्बड़ दुखियारी हाबे बपरी दुखियारीन हा। कोनो मनोरोगी नइ हावय भलुक गुनवती हाबे दुखियारीन हा। आस्था मा कोनो सवाल नही अउ विज्ञान मा कोनो उत्तर नही।सिरतोन नारी परानी गोड़ के पनही आय का..? मोरो गोसइया महुं ला छोड़ देहे। दहेज मांग के हलाकान करे अउ नइ दे सकेंव तब....।

                     "सोनकुंवर अभी ले कतका कमाबे अभिन पढ़े के उम्मर हावय। पढ़। मोर घर आ। बदला मा अपन घर के अमरित कुंआ ले बाल्टी भर पानी ले आनबे। मोर घर के पानी मा सुवाद नइ हे।''

सोनकुंवर ला अइसना केहेंव। लइका आये लागिस मोर तीर।  कभु चिला फरा खवावंव तब कभु  इडली दोसा उपमा..। घर मा मेंहा पढ़ावंव अउ स्कूल मा...।

"स्कूल के फीस के संसो झन कर।  तोर लइका  होनहार हावय । अब्बड़ उड़याही उप्पर अगास मा।'' 

"तही जान नरस दीदी ! अब तो कोन जन के दिन के संगवारी हावंव मेंहा ते।''

दुखियारीन किहिस ओखर तबियत बिगड़त रिहिस अब। ..... एक दिन दू बेरा हिचकिस अउ पंछी उड़ागे खोन्धरा छोड़ के। 

"दाई ! ''

 मोला पोटार के रो डारिस सोनकुंवर हा। ओला सम्हालेंव समझायेंव। 

             लइका होस्टल मा रही के पढ़त हावय। नव्वी, नव्वी ले दसवी,ग्यारहवी बारवी। पढ़ाई लिखाई तो फोकट मा होवत हावय फेर आने खरच बर पइसा पठो देथंव। सरकार ला धन्यवाद घला देथंव गरीब लइका ला पढ़े बर पंदोली देवत हावय तेखर सेती।

             अब तो मोरो ट्रान्सफर होगे हावय रायपुर। नवा जगा , नवा नत्ता- गोत्ता ,नवा  रस्दा सब नवा। शुरुआत मे हियाव करेंव। फेर तो अपन गिरहस्ती मा महुं रमगेंव। गरीब विधुर के संग मोरो बिहाव होगे रिहिस। पर के लइका बर कतका मोहो राखबे। चिरई चारा चरे ला सीख जाही ! उड़ाये ला तो जानत हावय। सोनकुंवर ला बिसराये लागेंव हलु - हलु।

                 आज जब ले सुने हावंव तब ले मन मंजूर होगे हाबे। अब्बड़ सुने हंव ओखर नाव । बिदेस ले आवत हावय । राज के स्वास्थ्य मंत्री अगवानी करही। डॉ एस के मार्कण्डे आवत  हावय। विश्व प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट । "हार्ट प्रॉब्लम केअर डायग्नोसिस एंड रिसेंटली इनोवेशन इंस्ट्रूमेंट्स ''  इही  टॉपिक मा डॉक्टर  साहब के उदबोधन रिहिस। पेपर मा छपाये फोटू ला देखेंव। चाकर छाती फड़कत भुजा गरब के अंजोर चेहरा मा , फोटू ला दुलार करेंव। सिरतोन सोनकुंवर बरोबर दिखत रिहिस। फेर ..मन के एक कोंटा ले आरो आइस। जेखर दाई ददा कोनो नइ हाबे अतका बिद्वान कइसे हो जाही..? अतका दिन ले कोनो सोर खबर नइ लेये हंव। हा... एक दू बेर पूछे रेहेंव तब रायपुर भोपाल अउ दिल्ली मा पढ़त हंव केहे रिहिस मेडिकल कालेज मा अउ अब........  बिदेस जाके कइसे अतका पढ़ लिही। कोनो हम सकल घला हो सकत हावय। ..आनी-बानी के बिचार आइस।

                        महुं जाहूं मेडिकल कॉलेज दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही । आटो करेंव अउ रेंगे लागेंव  रायपुर के मेडिकल कॉलेज।

दिसम्बर के महिना अपन लछमी ला खेत ले कोठार , कोठार ले कोठी मा परघावत हावय।  बाबा घासीदास अउ प्रभु यीशु मसीह के जन्म के उछाह घला मनावत हाबे , ये दुनो पबित्तर दिन के महीना भर।

                 सभागार मा भाषण होइस बड़का शिक्षाविद वैज्ञानिक डॉक्टर  अउ बड़का वक्ता आये रिहिस। अउ भाषण देवत रिहिस । मोला तो गार्ड छेक दे रिहिस। अब्बड़ बिनती करेंव तब खुसरेंव। जम्मो कोई ला ऑटोग्राफ देवत रिहिस ओहा। अब मोला देखिस अउ प्रोटोकॉल ला टोर के आइस । सुघ्घर उही बरन । दमकत चेहरा अउ गमकत मन। मुचकावत आइस अउ टुप-टुप पाॅंव परिस मोर जवनहा हा।

" दाई तोर बेटा सोनकुंवर।''

"अब सोनकुंवर नही बेटा ! डॉक्टर सोनकुंवर।''

आँखी ले अरपा पैरी के धार बोहाये लागिस। पोटार लेंव।

मोर बेटा ! मोर सोनकुंवर !

मोर दाई ! मोर महतारी !

"नानचुन नरस के बेटा ! अतका बड़का डॉक्टर ?''

विभाग के जोन अधिकारी  हमन ला हिरक के नइ देखे वहुं हा मोर तीर आके बधाई दिस। फोटो खिचवाइस। 

"मोर दाई अब्बड़ जतन करिस मोर। अब्बड़ मिहनत करके पढ़ाइस। अउ नेशनल स्कोलरशिप घला लेये हंव तब काबिल बने हंव।''

जम्मो कोई ला बताइस डॉ सोनकुंवर हा। जम्मो कोई थपोली मारिस। 

                    अब अपन घर के रस्दा मा जावत हावंव सोनकुंवर के गाड़ी मा बइठ के ।  आज घला सतनाम चौक मा पंथी नाच होवत रिहिस । सोनकुंवर गाड़ी ला ठाड़े करवाइस । अब प्रोटोकॉल ला टोरत  मंच मा ठाड़े होइस अउ बाबा जी के गोड़ मा माथ नवाइस। राग अलापिस ।

सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !

सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।

सतनाम के हो बाबा  ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।

पंथीनृत्य ....मन अघागे। उछाह के समुन्दर लहरा मारे लागिस। महुं जोर से जय बोलाएव।


"बोलो गुरु घासीदास बाबा की -  जय !''


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

छत्तीसगढ़ी लघुकथा - " वसीभूत "

 छत्तीसगढ़ी लघुकथा -

     "  वसीभूत "

एक दिन अपन घर के आघू म बैठे रहेंव l एक करिया कुकुर तीर म आथे  अउ टुकुर टुकुर देखथे l ओखर आँखी म लालच के पुतरी एक टक देखत रहिस l अपन हाथ ला बार -बार खीसा म डारंव अउ निकालत रहेंव l 

कुकुर अउ निटोर के देखय एकर सेती कुछु न कुछु दिही l

ओकर लालच अउ बढ़गे l ए दफे मय मुठा भर ला निकाले के आघू म रखेव l  कुकुर अउ तीर म ऊं ऊं ऊं करत आगे l मुट्ठा ला खोल देंव  कुछु नइ गिरिस l कुकुर के जी चुरमुरागे l एक बार फ़ेर हाथ ला खीसा म डारेव अउ निकालेंव  मुठा ला नइ खोलेंव अउ दूसर डहर ला देखे के नाटक करेंव l करिया कुकुर धीरे धीरे सूंघियावत आगे l मुठा ला खोलत ओकर मुड़ी ला खजुवाये ला धर लेंव l कुकुर अपन मुड़ी ला पूरा दता दीस l खजुवाना ओला बने लागिस l तब लालच नइ रहिस ओकर आँखी म बल्कि दूनो आँखी ला मुँद लीस बेफिक्री होगे l शायद जान डरिस देवय नहीं त मारे भगावे तको नहीं l 

कुकुर के भीतर जागे मया भरोसा ला तोड़े के महूँ कोनो उदिम नइ करेंव l ओकर मुड़ी ला छुवत खजूवावत  दस मिनट होगे रहिस होही l बिन हांत -हुत के चुप चाप उठ के दूसर कोती रेंगे ला धर लेंव l कुकुर मोर पीछू पीछू आये ला धर लीस l कुकुर के हिम्मत बढ़गे मोर संग आये ला l दूसर कुकुर मन देख के भूके ला धरिस l करिया कुकुर मोर आघू पाछू घूमत दूसर कुकुर ला ज़वाब दे वत रहिस - " मुठा बंधाये हे अभी नहीं तो कभी भी खोलही मोर हिस्सा हे मोर आदमी हे एखर पाछू संग ला नइ छोड़व l"  

करिया कुकुर ला मोर कुकुर नइ कह पांवत हँव

काबर -"मया अउ लालच म कभू भी ककरो संग ककरो पाछू भाग सकत हे l" 

दूसर दिन फ़ेर अउ  अउ बैठेव l

ए दफे पूरा साहस के साथ मोर गोड़ ला चूमे ला धर लीस l अपन आँखी ला मुँद के लोर्घयाये ला धर लीस l सोचेंव थोकिन मया म अतका अपना पन कुकुर  के मन म आ गेहे l डउकी लइका म नइ दिखय l ओमन तो कुकुर ले जादा मतलबी स्वार्थी होथे l कुकुर के तीर म आये आदत परगे फ़ेर  तीर म रहिके डउकी लइका धुरिहा धुरिहा रहिथे l मौका आही त पूछय  नहीं l 


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

21 दिसंबर - जयंती म विशेष

 21 दिसंबर - जयंती म विशेष 


छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा अउ सामाजिक क्रांति के प्रतीक- पं. सुंदर लाल शर्मा


जब हमर देश ह गुलाम रिहिस त वो समय अशिक्षा अउ छुआछूत के भावना ह समाज म व्याप्त रिहिन। येकर कारण हमर सामाजिक बेवस्था ह खोखला हो गे रिहिस।वइसे छुआछूत के नाता हमर देश से अब्बड़ पुराना हे।विदेशी शासक मन येकर खूब फायदा उठाइस। विदेशी शासक मन भारतीय समाज ल तोड़े बर अउ राजा - महाराजा मन ल आपस म लड़ाय खातिर फूट डालव अउ राज करव के नीति अपनाइस।  विदेशी शासक मुगल, अंग्रेज मन इहां के धार्मिक आस्था ल अब्बड़ चोट पहुंचाइस। मुगल शासन काल म कतको मंदिर तोड़ दे गिस। जनता उपर खूब अतियाचार करे गिस। अइसन बेरा म हमर देस म संत कबीर, गुरुनानक,संत रविदास, धनी धर्मदास साहेब, गुरु घासीदास बाबा अवतरित होइस अउ लोगन मन ल सतमार्ग म चलाय के सुघ्घर कारज करिन। ये सबो संत मन बताइस कि मनखे मनखे एक समान हे। ईश्वर एक हे। ये सबो संत मन धरम के नांव म समाज म व्याप्त छुआछूत, आडंबर,नरबलि, पशुबलि के विरोध करिन। लोगन मन म जागरण फैलाइस कि उंच नीच के भेदभाव ल भगवान नइ मनखे मन अपन सुवारथ खातिर बाद म बनाय हे। आधुनिक काल म स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महात्मा गांधी, डा. भीमराव अम्बेडकर जइसन महापुरुष मन हमर देश म फइले छुआछूत, आडंबर ल दूर करे बर अउ शिक्षा खातिर अब्बड़ उदिम करिन। 

  हमर छत्तीसगढ ह सद्भाव अउ समन्वय के धरती कहे जाथे त येकर पाछु गुरु घासीदास बाबा, धनी धर्मदास साहेब अउ पं. सुंदर लाल शर्मा जइसे महापुरुष मन के सतनाम आंदोलन अउ जन जागरण के सुघ्घर कारज हरे।


छत्तीसगढ़ के गांधी नांव ले प्रसिद्ध पं. सुंदर लाल शर्मा ह हमर छत्तीसगढ म सामाजिक अउ राजनीतिक आंदोलन के अगुवा माने जाथे। वोहा बड़का साहित्यकार के संगे -संग स्वतंत्रता सेनानी अउ समाज सुधारक रिहिन। प्रयागराज राजिम के तीर चमसूर गांव म 21 दिसंबर 1881 म अवतरे शर्मा जी ह "दानलीला" प्रबंध काव्य लिख के प्रसिद्धि पाइस त आजादी के आंदोलन म घलो बढ़ चढ़ के भाग लिन। अनुसूचित जाति मन के उद्धार खातिर अब्बड़ योगदान दिस . वोमन ला राजीव लोचन मंदिर म प्रवेश कराके एक बड़का कारज करिस । येकर बर शर्मा जी ल खुद वोकर समाज ले नंगत ताना सुने ला पड़िस। पर वोहा हार नइ मानिस अउ अछूतोद्धार के कारज ल सरलग जारी रखिस।

। ये कारज ला तो वोहा सन 1917 ले चालू कर दे रिहिन तभे तो जब महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आना होइस त ये काम बर शर्मा जी ल अपन गुरु कहिके अब्बड़ सम्मान दिस।


समित्र मंडल के स्थापना 


 शर्मा जी हा अपन राजनीतिक जीवन के शुरूआत सन 1905 ले करिन। 1906 मा वोहा सामाजिक सुधार अउ जनता मा राजनीतिक जागृति फैलाय खातिर" संमित्र मंडल "के स्थापना करिन। 1907 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन मा शर्मा जी हा भाग लिस। इहां उपद्रव के बेरा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ल मंच म चढ़ाय म जउन लोगन मन के भूमिका रिहिन वोमा नवजवान शर्मा घलो अगुवा रिहिन। ये अधिवेशन म कांग्रेस हा गरम अउ नरम दल म बंटगे। वो समय कांग्रेस अउ देश म गरम दल के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय अउ विपिन चन्द्र पाल ह अब्बड़ लोकप्रिय नेता के रूप मा उभरिन ।


शर्मा जी हा रायपुर मा 'सतनामी आश्रम" खोलिस अउ "सतनामी भजनावली" ग्रंथ के रचना करिन, शर्मा जी हा लाल-बाल-पाल युग म सन 1910 मा राजिम म पहली स्वदेशी दुकान लगाय के कारज करिन। शर्मा जी हा सन 1918 म भगवान राजीव लोचन मंदिर राजिम म कहार मन के प्रवेश के आंदोलन चलाइस। 


कंडेल  नहर सत्याग्रह के अगुवाई 


सन 1920 मा असहयोग आंदोलन के बेरा म हमर छत्तीसगढ मा कंडेल सत्याग्रह चलिस। येकर अगुवाई शर्मा जी, नारायण लाल मेघावाले अउ छोटे लाल श्रीवास्तव हा करिन। किसान मन नहर जल कर ले नंगत परेसान रिहिन, शर्मा जी के मिहनत ले 20 दिसंबर 1920 म गांधीजी के रायपुर, धमतरी अउ कुरूद आना होइस।गांधीजी के पहली बार छत्तीसगढ़ आय ले इहां के जनता मा अब्बड़ उछाह छमागे। अइसन बेरा मा अंग्रेजी शासन ला झुके ल पड़िस अउ किसान मन के नहर जल कर ह माफ कर दे गिस।


जंगल सत्याग्रह के नेतृत्व 


21 जनवरी 1922 मा सिहावा नगरी मा जंगल सत्याग्रह होइस, लकड़ी काट के ये सत्याग्रह के शुरूआत करे गिस। येकर मौखिक सूचना वन विभाग के स्थानीय अधिकारी मन ला दे गिस। येकर अगुवाई शर्मा जी अउ नारायण लाल मेघावाले करिन, इंहा वन विभाग के अधिकारी मन आदिवासी जनता ला कम मजदूरी देवय। संगे संग आने प्रकार ले शोषण करय, आंदोलन के जोर पकड़े ले आदिवासी मन के मांग मान ले गिस। इही बेरा मा शर्मा जी ला अंग्रेज शासन हा गिरफ्तार कर लिस। वोला एक बछर अउ मेघावाले ला आठ माह के सजा सुनाय गिस। ये बेरा मा 1922 मा जेल पत्रिका (श्रीकृष्ण जन्म स्थान) रचना लिखिस। शर्मा जी हा 'भारत में अंग्रेजी राज' रचना लिखे रिहिन तेला अंग्रेज सरकार हा प्रतिबंधित कर दिस।


  अछूतोद्धार आंदोलन चलाइस 


23 नवंबर 1925 मा शर्मा जी के अगुवाई म अछूतोद्धार खातिर अस्पृश्य लोगन के एक बड़का समूह हा राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश करके पूजा- पाठ करिन।अनुसूचित जाति मन ला जनेऊ धारन करवाइस। 23 से 28 नवंबर 1933 के बीच गांधीजी के दूसरइया बार छत्तीसगढ़ मा आना होइस, ये बेरा मा गांधी जी हा अछूतोद्धार कारज के अवलोकन करिन अउ अब्बड़ प्रशंसा करिन । 28 दिसंबर 1940 मा शर्मा जी के निधन होइस। ता ये प्रकार ले हम देखथन कि शर्मा जी के सोर साहित्य के संगे संग आजादी के सेनानी के रूप मा बगरिस, वोहा संवेदनशील रचनाकार के संगे संग मंजे हुए राजनीतिज्ञ रीहिन, शर्मा जी हा प्रथम छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पना करिन । 


रचनाएं.... 

शर्मा जी ह हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म समान रूप ले लिखिन। छत्तीसगढ़ी म महाकाव्य लिख के महतारी भाषा ल समृद्ध करिन।

ऊंकर रचना म दानलीला (महाकाव्य), प्रहलाद चरित्र (नाटक), सच्चा सरदास (उपन्यास), ध्रुव अख्यान (नाटक), करूणा पच्चीसी (काव्य संग्रह), कंसवध (खण्डकाव्य), छत्तीसगढ़ी रामायण (काव्य), सतनामी भजन माला, श्री कृश्ण जन्म स्थान पत्रिका (रायपुर जेल पत्रिका) सामिल हे। छत्तीसगढ़ शासन ह उंकर स्मृति ल संजोय खातिर राज्य स्थापना दिवस म छत्तीसगढ़ी भाषा ल अपन लेखनी ले समृद्ध करइया साहित्यकार मन ल हर बछर पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान ले सम्मानित करथे।


         -ओमप्रकाश साहू अंकुर 

      सुरगी, राजनांदगांव

अहसास* (तीन छत्तीसगढ़ी लघुकथायें : वृद्धजनों की व्यथा-कथा)

 .                          *अहसास*

 (तीन छत्तीसगढ़ी लघुकथायें : वृद्धजनों की

    व्यथा-कथा)


                     -डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


                             ( 1 )


          बिलासा कला मंच के दीपावली मिलन कार्यक्रम इतवार के दिन मँझनिया तिलक नगर स्कूल मा होवत रहिस। मँय उहाँ सपत्नीक पहुँचे रहेंव। स्कूल के मैदान मा कतकोन छोटे-छोटे खेल बिलासा कला मंच के डहर ले आयोजित रहिस..... फूगड़ी, गेड़ी दौड़, रस्सी खींच,नरियर फेंक अउ कतकोन ठिन। नारियर फेंक मा महूँ शामिल रेहेंव, देखेंव कि कतको झन अधेड़ संगवारी मन के नरियर 15 - 20 फुट ले जादा दूरिहा नि गिरत रहिस। तभे एक झिन कच्चा उमर के टूरा नरियर ला 50 फुट दूरिहा फेंक दीस! एक-दू झिन के नारियर 30 फुट दूरिहा मा घलो गिरिस। मने-मन मैं बहुत खुश रहेंव कि कम से कम दूसरा नंबर तो अइच्च जाहूँ। इनाम ले कोई मतलब नि रहिस, मतलब रहिस सिरिफ ये कि उहाँ अपन-आप ला साबित करना हे। कालेज मा नरियर फेंक मा मैं हमेशा अव्वल आवँव। तभे एक झिन नरियर ला 40 फुट दूरिहा फेंक दीस। एकर बाद मोर नंबर रहिस। मने-मन भगवान ला सुमरेंव अउ नरियर ला पूरा जोर लगा के फेकेंव। मोला उम्मीद रहिस कि नरियर 40 फुट ला नहाक जाही। फेर देखेंव त 15 फुट दूरिहा मा नरियर हा गिरे-परे रहे! एक झिन संगवारी पाछू ले कमेंट करिस- ' बुढ़ापा आ गे हे सर जी!  नरियर फेंक ला जीतना हमर-तुँहर बस के बात नि हे!'

          तब मोला पहिली बार अहसास होइस कि सचमुच बुढ़ापा आ गीस हे,.....  तभो ले ये बात ला माने बर मन हा तियार नइ हे!


.                               ( 2 )       


               पूस के महीना। संझाती 06 बजती बेरा। ठंड बढ़ गे  रिहिस। स्वेटर पहिने अउ कनटोप लगाये स्कूटर मा नेहरू चौक के पेट्रोल पंप मा पहुँचेंव। आघू वाला अपन स्कूटर मा पेट्रोल भराय के बाद मोबाईल म बात करे लगिस। तुरते पेट्रोल पंप के कर्मचारी मीठा आवाज मा बोलिस- ' भाई साहब! उमर के  चेत करव....पाछू मा कोन हवय।अतका उमर मा तो आप रेंगे तक नि सकिहव! '

        आगू के स्कूटर वाला ' साॅरी ' बोलिस अउ तुरते हट गे। ओ दिन सचमुच मोला अहसास होइस कि अब मैं सत्तर पार हो गे हवँ! बुढ़ापा आ गीस हे,.......  तभो ले ये बात ला माने बर मन हा तियार नि हे!


.                              ( 3 )


             ट्रेन मा आज भीड़ रहिस। जनरल बोगी मा चढ़ना मुश्किल रहिस त मैं स्लीपर कोच म चढ़ गेंव। रायपुर ले बिलासपुर के सफर दू घंटा के रहिस। मैं जगा के तलाश बर आघू बढ़ेंव.... ट्रेन मा दू घंटा खड़े रहना मुश्किल रहिस। कालेज के जमाना मा पसिंजर ट्रेन मा कतको बखत चार-पाँच घंटा तक खड़े-खड़े सफर करे रहेंव, फेर अब बात अलग हे। आज ट्रेन मा सबो सीट फुल रहिस। थोरकुन अउ आघू बढ़ेव त देखथों कि दू झिन टीसी कुछ हिसाब-किताब निपटावत सीट मा बइठे रहिन। जी धक् ले करिस!..... कहीं फाइन झन ठोंक दें! एमन के का भरोसा..... रेल्वे के नावा-नावा नियम अउ चेकिंग करइया नावा पीढ़ी के कच्चा उमर के लइका!  

          एक टीसी के नजर मोर उपर परिस। ओ खड़े हो गे। मोर जी धक्-धक् करे लगिस.....पता निहीं कतका फाइन ठोंकही?

         ' दादा जी आप बैठ जायें! '- टीसी के मीठा बोली सुन के मन ला ठंडक जुड़वास मिलिस। 

      ' नहीं, आप लोग बैठें। मैं यहीं ठीक हूँ! '

      ' दादा जी आप बैठें। आपकी उमर सत्तर पार है। आपके सामने हमारा बैठे रहना शोभा नहीं देता! '

            मैं ऊँकर सीट मा बइठ गें। फेर ये अहसास आज फेर होइस कि सचमुच अब बुढ़ापा आ गीस हे। आज मोर उमर ला देख के फाइन करना तो दूर टीसी अपन सीट ला घलो दे दीस! देखव तो समय के फेर! आज पहिली बार अहसास होइस कि बढ़ती उमर के घलो अपन अलग दबाब होथे। शायद एहा हमर देश के एक साँस्कृतिक पहिचान घलो हे। नई तो कतकोन पच्छिम के देश मा बूढ़ा मन ला परे-डरे मनखे समझ के परिवार अउ समाज ले दूरिहा टार देथें! ..... तभो ले ये बात ला माने बर मन हा अभी घलो तियार नि हे कि बुढ़ापा आ गे हे!


Story written by-


      डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्, कहानीकार, समीक्षक 


मो-  98263 40331

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आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह

 21 दिसंबर - जयंती म विशेष 


आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह 


आज हमन आजादी के अमृत महोत्सव मनाथन. ये आजादी पाय बर भारत माता ह अपन कतको बेटा -बेटी मन के कुर्बानी दिस. अब्बड़ झन क्रांति कारी मन ल अ़ग्रेज शासन ह फांसी म चढ़ा दिस. भारतीय जनता मन उपर नाना प्रकार ले अत्याचार करे गिस. तभो ले हमर देश अउ प्रदेश के नेता अउ जनता मन हा गोरा मन के आगू नइ झुकिस.


   आजादी के लड़ाई म हमर छत्तीसगढ म पं. सुंदर लाल शर्मा, वामन लाल लाखे, ई.राघवेन्द्र राव, पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर छेदीलाल सिंह अउ ठाकुर प्यारेलाल सिंह जइसे  जुझारू,कर्मठ अउ मातृभूमि बर समर्पित नेता रिहिन  हे. ठाकुर प्यारेलाल सिंह  ल आजादी के आंदोलन के अर्जुन कहे जाथे.




   त्याग अउ न्याय मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के जनम 21 दिसंबर 1891 ई. म राजनांदगांव -खैरागढ़ मार्ग म ठेलकाडीह से  बुरती दिशा म  3 किलोमीटर दूरिहा    सेम्हरा दैहान गांव म होय रिहिस हे. ये ग्राम पंचायत डुमरडीहकला के आश्रित गांव हरे. ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के 


 के पिताजी के नांव ठाकुर दीन दयाल सिंह अउ महतारी के नांव नर्मदा देवी रिहिन हे. ठाकुर साहब के पिताजी राजनांदगांव के प्रतिष्ठित स्टेट स्कूल के प्रथम प्रधानाचार्य रिहिन हे अउ बाद म शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी घलो बनिन.


ठाकुर साहब के पिताजी ह शांत, गंभीर अउ अनुशासन प्रिय मनखे रिहिन. प्यारेलाल के प्राथमिक शिक्षा राजनांदगांव म अउ उच्च शिक्षा रायपुर, नागपुर, जबलपुर अउ इलाहाबाद म होइस हे. बी. ए .पास करे के बाद सन् 1916 म इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत पास करिन . 

छात्र मन के हड़ताल के अगुवाई करिन 




     आजादी के लड़ाई के समय म जब हमर देश म लाल- बाल- पाल के जोर चलत रिहिन हे त ठाकुर साहब बंगाल के कुछ क्रांतिकारी मन के संपर्क म आइस अउ क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार करत  अपन राजनीतिक जीवन शुरू करिन. इही  समय ठाकुर साहब स्वदेशी कपड़ा पहने के व्रत ले लिस . युवावस्था म  विद्यार्थी मन ल संगठित करे के काम करिन. राजनांदगांव म 1905 में ठाकुर साहब के अगुवाई में छात्र मन की पहली हड़ताल होइस. ठाकुर साहब अपन सहयोगी छविराम चौबे अउ गज्जू लाल शर्मा के संग मिलके राजनांदगांव म राष्ट्रीय आंदोलन ल ठाहिल बनाइन.




येहा देश के छात्र मन के पहली हड़ताल माने जाथे.




     राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना 




 सन 1909 म ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन. आगू चल के येहा राजनीतिक गतिविधि के जगह बनगे. आगू  चल के ये पुस्तकालय ल  शासन ह  जब्त कर लिस.


ठाकुर साहब ह पढ़ईया  लइका मन के जुलूस म वंदेमातरम के नारा लगाय. वो बेरा म अइसन करना अपराध माने जाय.पर प्यारे लाल  सिंह जी डरने वाला मनखे  नइ रिहिन  हे. सन 1916 में ठाकुर साहब ह  वकालत चालू करिन. पहली दुर्ग म फेर बाद म रायपुर म वकालत करिन. कम समय म शठाकुर साहब ह  वकालत म प्रसिद्ध होगे.


सितंबर 1920 म कलकत्ता म लाला लाजपत राय के अध्यक्षता म कांग्रेस के विशेष अधिवेशन आयोजित होइस. येमा गांधी जी के नेतृत्व म असहयोग आन्दोलन चलाय के स्वीकृति दे गिस. फेर कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर म 26 दिसंबर 1920 म होइस जेकर अध्यक्षता विजय राघवाचार्य करिन. ये अधिवेशन म हमर छत्तीसगढ ले आने नेता मन के संग ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह घलो शामिल होइन. रोलेट एक्ट अउ जलियांवाला बाग़ हत्या कांड के सेति देश भर म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध चिंगारी सुलगत  रिहिस हे. 




   अइसन समय म गांधी जी ह आह्वान कर चुके रिहिन  कि अंग्रेज सरकार के गुलामी ले छुटकारा  पाय खातिर स्थानीय समस्या ल आधार बना के असहयोग आन्दोलन चालू करय. 






   बी.एन.सी. मिल के बारे म जानकारी




 वो समय राजनांदगांव म बी.एन.सी.मिल्स चलत रिहिसि.बंगाल -नागपुर काटन मिल्स म हजारों मजदूर काम करय. येकर स्थापना 23 जून 1890 म होय रिहिस हे अउ उत्पादन के काम नवंबर 1894 म चालू होइस हे.  वो समय राजनांदगांव म वैष्णव राजा बलराम दास के राज्य चलत रिहिन  हे. राजा साहब मिल के संचालक बोर्ड के अध्यक्ष रिहिन  हे. ये मिल्स के निर्माता बम्बई के मि. जे.वी. मैकवेथ रिहिस हे. कुछ समय चले के बाद मिल ल घाटा होइस. येकर सेति ये मिल ल कलकत्ता के मि. शावालीश कंपनी ह खरीद लिस  जउन ह नांव बदलके बंगाल -नागपुर काटन मिल्स कर दिस. स्थापना के समय येकर नांव


सी.पी. मिल्स रिहिस हे.


मजदूर मन के  36 दिन के ऐतिहासिक हड़ताल के अगुवाई 




सन 1919 ले ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव के मजदूर मन ल एक करके जागृति फैलाय के काम चालू कर दे रिहिन  हे. अंग्रेज शासन के समय म जनता के शोषण जिनगी के हर पहलू म आम बात रिहिस हे. इहां के मजदूर मन के नंगत शोषण होत रिहिस हे. मिल  मालिक ह मजदूर मन ले 12- 13 घंटा काम लेय .येकर ले सन् 1920 म बी.एन.सी. मिल्स के मजदूर मन म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असंतोष फैलगे. 




  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ म मजदूर आंदोलन के प्रमुख केन्द्र राजनांदगांव ह बनगे.ठाकुर प्यारे लाल सिंह अउ डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र मजदूर यूनियन के अगुवाई करय. ये काम म शिव लाल मास्टर अउ शंकर खरे सहयोग करय.




सन्  1920 में असहयोग आंदोलन के बेरा म ठाकुर प्यारेलाल सिंह  के अगुवाई म अप्रैल 1920 में बीएनसी मिल्स  के मजदूर मन  के  36 दिन के  ऐतिहासिक हड़ताल होइस. अत्तिक लंबा समय तक चलने वाला ये  देश के पहली हड़ताल रिहिस हे. ये हड़ताल ले राजनांदगांव के अब्बड़ सोर होइस. ये आंदोलन ले ठाकुर साहब के प्रसिद्धि देश भय म फैलगे. 


संस्कारधानी ह राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्यधारा ले जुड़गे.




     


 असहयोग आंदोलन के समय वकालत छोड़िन




   गांधी जी के नेतृत्व म जब देश भर म असहयोग आंदोलन ह  चालू होइस त ठाकुर साहब ह अपन वकालत छोड़ दिस. राजनांदगांव म  राष्ट्रीय विद्यालय के स्थापना करिन. हजार भर के संख्या में चरखा बनवा के जनता ल  बांटिन ,चरखा के महत्व समझाइस अउ खादी के प्रचार करिन . ठाकुर साहब खुद खादी  पहने  लागिस. राजनांदगांव ले हाथ ले लिखे पत्रिका घलो निकालिन   जउन ह  जन चेतना  बर अब्बड़ सहायक होइस.


झंडा सत्याग्रह म भागीदारी 




  सन 1923 में झंडा सत्याग्रह चालू होइस  त ठाकुर  साहब ल प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिला ले सत्याग्रही भेजे के काम सौंपे गिस . नागपुर म सत्याग्रह आंदोलन चालू होइस.एकदम जल्दी नागपुर सत्याग्रह के केंद्र बन गे.




    मजदूर मन के दुबारा हड़ताल




 सन 1924 में राजनांदगांव के मिल मजदूर मन ठाकुर साहब की अगुवाई में फिर हड़ताल करिन. कतको मन के गिरफ्तारी होइस. ठाकुर साहब पर सभा लेय अउ भाषण देय बर रोक लगा दे गिस. ठाकुर साहब  ल जिला बदर कर दे गिस .राजनांदगांव ले निष्कासित करे के बाद सन 1925 म ठाकुर साहब रायपुर चले गिस अउ आखरी तक ऊंहचे रहिके अपन राजनीतिक काम मन ल संचालन करत रिहिन. 




   सविनय अवज्ञा आंदोलन के नेतृत्व 




     सन 1930 में गांधी जी द्वारा चालू करे गे  सविनय अवज्ञा आंदोलन म  ठाकुर साहब बढ़- चढ़कर भाग लिस.शराब दुकान म धरना दिस. ठाकुर साहब किसान मन मा जागृति फैलाय बर अंग्रेज शासन लगान मत दो, पट्टा मत लो आंदोलन चलाइस. एकर  सेतिज्ञ ठाकुर साहब  ल 1 साल के सजा दे गिस. सिवनी जेल म  भेज दे गिस. गांधी- इरविन समझौता होइस त आने  राज -बंदी मन के संग रिहा होइन.


   सन 1932 में जब सत्याग्रह फिर से चालू होइस त ठाकुर साहब पंडित रविशंकर शुक्ल के संगे संग आने नेता मन संग संचालन के दायित्व संभालिन. 26 जनवरी 1932 में गांधी चौक मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम के संबंध में भाषण देत  समय ठाकुर साहब ल अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर लिस .  2 साल के कठोर सजा अउ जुर्माना लगाय गिस. ठाकुर साहब जब जुर्माना नहीं देइस त अंग्रेज सरकार ह उंकर  संपत्ति  ल कुर्की कर दिस . ठाकुर साहब के वकालत के लाइसेंस ला जप्त कर लिस. जेल के सी क्लास म रखे गिस. जेल से छूटे के बाद  ठाकुर साहब फिर से आजादी के लड़ाई अउ जनसेवा बर समर्पित होगे.




   हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम  




1933 में वह महाकौशल अंग्रेज कमेटी के मंत्री चुने गिस. 1938 तक ये पद म रहिके पूरा प्रदेश के दौरा करिन .  कांग्रेस संगठन ल फिर से मजबूत करे के काम करिन.  सन 1937 में ठाकुर साहब विधानसभा के सदस्य चुने गिस.  रायपुर नगर पालिका के अध्यक्ष घलो निर्वाचित होइस. ये  पद म रहिते  ठाकुर साहब राष्ट्र जागरण और हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम करिन. डॉ बी.एन. खरे के मंत्रिमंडल में कुछ समय तक शामिल रिहिन.




तीसरा मजदूर आंदोलन




 रायपुर म  निष्कासन के समय घलो ठाकुर साहब के धियान राजनांदगांव के मजदूर मन डहर राहय.ये बीच म बी.एन.सी.मिल्स के मालिक मन मजदूर मन के पगार म 10 प्रतिशत कटौती कर दिस. येकर ले मजदूर मन  फेर नाराज होगे अउ हड़ताल के तैयारी करे लागिस. ठाकुर साहब ह मजदूर मन के जायज मांग के समर्थन करिन. इही बीच रूईकर समझौता के कारण 600 मजदूर बेकार होगे. मजदूर मन फिर से त्यागमूर्ति ठाकुर साहब के पास समस्या के निदान बर गोहार लगाइन. ठाकुर साहब ह नया समझौता प्रस्ताव प्रस्तुत करिन जेला मिल प्रबंधन ह स्वीकार कर लिस अउ काम ले निकाले गे मजदूर मन ल फिर से नौकरी मिलगे. ठाकुर साहब के राजनांदगांव ले जिलाबदर के आदेश घलो निरस्त होगे. ये प्रकार ले सन् 1937 म ठाकुर साहब के नेतृत्व म मजदूर मन के तीसरा आंदोलन सफल होइस.  ये प्रकार ले 1918 ले 1940 तक मजदूर आंदोलन के इतिहास म ठाकुर साहब ह सक्रिय भूमिका निभाइन.  छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान 




   छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के कमी ल  दूर करे खातिर 1937 महाकौशल समिति की स्थापना करिन अउ रायपुर म  1938 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान दिस.






1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म ठाकुर साहब बढ़-चढ़ के भाग लिस. ठाकुर साहब के नेतृत्व म  1942 के आंदोलन एकदम सफल होइस. कोनो प्रकार ले हिंसात्मक घटना नहीं घटिस. 1951 में ठाकुर प्यारेलाल कांग्रेस ल छोड़ के अखिल भारतीय किसान मजदूर पार्टी के सदस्य बन गे। 1953 म वोहर रायपुर विधानसभा बर विधायक चुने गिस।चुनाव के बाद आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन ले जुड़ गे।20 अक्टूबर 1954 म ठाकुर साहब के निधन होइस ।

           - ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

            सुरगी, राजनांदगांव।

गाय अब गरू होगे*

 *गाय अब गरू होगे*



तइहा के बेरा  मा पशु धन के बड़ मान सम्मान होवय अउ वइसने इंकर महत्व भी रिहिस भइ ...गाय ला लक्ष्मी के रूप मानंय अउ सब पूजा भी करंय,घरो घर गाय गरू पालय पोंसंय,एकाध घर नइ राहय तहु हा देवारी के दिन पूजा करबो ,कोठा सुन्ना झन परे कहिके... अउ नहिते...नानकुन बछिया ला तहु बिसा के लावय... तहां ले धीरे-धीरे लंजार बाढ़ जाही  कहिके...।

अउ कोनो बछवा पिला आ जाय ता बड़े होय तहां ले किसानी बुता जैसे नांगर‌ ,बक्खर ,दंवरी,गाड़ा,खांसर ,बेलन मा ओकर सहयोग लेवंय...उपयोग करयं।

अउ जबले मशीनी जुग के आगमन होहे..तब ले धीरे-धीरे मनखे मन के झुकाव मशीन डहर होय ला धर लिस अउ  इही मेर ले पशु धन मन के पुछन्ता लगभग कम होय ला धर लिस।

नइते.. बड़े किसान के परसार/कोठा मा दू चार जोंड़ी बइला बंधायच रहितिस अउ एक जोंड़ी बइला तो गइंज अकन घर रहिबेच करय..।

एक ठन समस्या यहु हे के.. आजकाल सबे घर पढ़े लिखे बहु आवत जात हे..ता वहु मन अब गोबर कचरा करे बर हिचकथें ..अउ यहु पाय के कतकोन मन गाय गरू ला बेंचत अउ बरोवत हें...फेर इही मेर आज घलो कइ झन पढ़े लिखे बेटी बहु मन पशु धन के सेवा जतन भी करत हें भइ...यहु ला माने ला परही।

एक ठन बात यहु के आर्थिक रूप ले कमजोर कइ ठन परिवार पलायन घलो कर जथें...वहु मन काकर भरोसा मा इनला छोंड़बो कहिके पालत पोंसत नइ हावयं।

...एक अउ बात.... आजकाल गोबरहिन घलो नइ मिलय...यहु एक ठन समस्या हे....।

.....

अब तो अइसे होगे हे के....पशु धन ला मनखे मन गरू घलो समझे ला धर लेहें लगथे तभे तो पाले पोंसे के बजाय धीरे-धीरे बरोय ला धर लेहें अउ इही कारण हे के आज के स्थिति मा पशु धन के बहुत दुर्गति होवत हे अउ इंकर स्थिति धीरे-धीरे बड़ चिंताजनक होवत जावत हे... जेती जाबे तेती गाय गरू मन लवारिस असन सड़क तीर ता अउ आने जघा मा खड़े अउ बइठे दिखिच जथे।

आजकाल...इही चक्कर मा कइ ठन दुर्घटना घलो घट जावत हें..।

पशु धन मन उप्पर सबले बड़का खतरा एक ठन अउ मंडरावत हे...वो हरय....इंकर तस्करी ,हां आजकाल इंकर तस्करी घलो शुरू हो गे हावय भइ... तभे तो आए दिन समाचार पत्र  मा पढ़े ला मिलथे कि अमुक गांव या शहर म गाय गरू ले भरे वाहन पकड़ाइस......आने...आने...।।

पहिली के मनखे मन पशु धन के सहयोग ऊंकर बुढ़ात ले लेवयं अउ काम बुता के लइक नइ रहय तभो नइ बेंचय भल्कुन ओकर जियत ले सेवा जतन करंय ।

जइसने गाय गरू पालय वइसने ओ जमाना मा......दूध,दही,मही अउ घींव घलो गहगट होवय भइ... ओ समे के मनखे मन के एक खासियत अउ राहय कतको दूध दही होतिस आस पड़ोस मा मिल बांट के खावय...फेर बेंचय कभू नहीं..!

   अब तो भले पाकिट वाला दुध ले लिही... नहिते चंडी बंधा लिहीं फेर गाय गरू नइ पालय पोंसय ...उपराहा मा भले कुकुर पोंस लिहीं, फेर गाय गरू नइ पोसंय ...पहिली अंगना- दुवारी,कोठार-बियारा ला गोबर ले लिपंय अब तो भइगे वहु मन सीमेंटेड हो गे हावय...कुछु नेंग जोग बर गोबर के जरूरत रही ता मांगे जोगे ला पर जथे...अइसन हाल तो हो गे हाबे।

बीच मा गाय गरू मन ला सुरक्षा परदान करे खातिर शासन हा कुछ दिन एक ठन योजना घलो चलाय रिहिस जेकर अंतर्गत गोसंइया के आधार नम्बर ला सिदहा पशु के आई डी ले जोंड़ दे रिहिस अउ बिल्ला बनाके उंकर कान मा पहिरा दे रिहिस,जेकर माध्यम ले लवारिस घुमत हे,ते काकर गाय गरू हरे पता चल जावय अउ इही माध्यम ले लापरवाह गोसइयां मन उपर कार्यवाही घलो हो जात रहिस....अउ इही बहाना  गोसंइया मन सावचेत घलो रहयं,...।फेर यहु नियम कानून चरदिनिया अउ फिसड्डी साबित होगे...।

पहिली के गोसंइया मन तो बरदी आय के बेरा गाय गरू ओइलाए ला लगही कहिके...कहुंचो गांव गंवतरी जाय रहितिस ता.....गाय गरू ओइलाना हे कहिके..एक झन सदस्य जरूर गोधुलि बेला मा वापिस घर आ जावय अउ गाय गरू मन ओइले हे ते नहीं देखय अउ नइ ओइले राहय ता पहटिया ल पुछ परख करयं के बरदी ला कते खार मा चराय बर लेगे रेहेस अउ कोई जघा गिर, हपट या बइठ तो नइ गे रिहिस ना? कहिके खोज खभर लेवयं अउ आज तो भइगे...।, ... आजकाल तो कइ झन गोसंइया मन, उंकर गाय गरू ला कोनो कांदीभूंस मा ओइला दे रहि ते ओला छोंड़ाय तक ला नइ  जावय..।

पहिली गोसंइया मन गाय गरू ला घर ले गौठान छोंड़े बर जावय ता गाय गरू के नरी मा बंधाय घंटी,घुंघरू अउ खड़पड़ी के आवाज हा पुरा गांव भर गुंज जावय अउ इही घंटी अउ घुंघरू मन के आवाज सुन के बरदी ओइले के बेरा के आभास घलो गोसंइया मन ला हो जावय 

.....गांव गांव मा अभी एक ठन समस्या घलो चलत हे...तेकर सेती घलो कतकोन गोसंइया मन अपन गाय गरू ला बेंचत अउ बरोवत हें.....

वो समस्या हरय... कतकोन गांव  मा अब इंकर चरइया चरवहा घलो नइ मिलत हे...?काबर ए ते कोनजनी? हो सकत हे गोसंइया मन जेन जेवर देथें तेमा उंकर परिवार के भरन पोसन नइ हो पावत होही या उंकर गांव मा इनला चराय बर चरी नइ होही अउ कुछु आने कारन भी हो सकत हे..?

 अब तो....कतकोन गांव मा गांव भर के गाय गरू के गोंसंइया मन के आरी पारी चराय वाले सिस्टम घलो चलत हे।

 इंकर विषय मा एक ठन चिंतनीय अउ विडम्बना के विषय यहु घलो हे के एक छोर ले हमन सरकार ले गाय ला राष्ट्रीय पशु घोषित करे के मांग करत हन अउ दूसर छोर ले हमन गाय गरू ले दुरिहावत घलो जावत हन......लगथे!

अमृत दास साहू 

ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

मो.नं.- 9399725588

लघुकथा - " अपील "

 लघुकथा -

      "  अपील "

 

 "हमर आप मन से निवेदन हे कल जरूर अपन सहयोग राशि लेके निश्चित रूप आहूl काली आंदोलन के रुपरेखा  बनाबो lआज के बैठक ला इही मेऱ समाप्त करत हन l " उद्घोषक अतका कहिके सभा ला खतम कर दीस l सभा उसलगे lसब अपन -अपन घर जाये ला धर लीस l गनपत कहिथे -" महिला मन ल आघू  लावव के बात म मनटोरा के बात ला काट दीस सभापति ह l " सुधु पूछिस -

"का बात ला?"

मनटोरा कहत रहिस आघू आथे महिला मन तेन ला पूरा जानबे नइ करय सुनबे नइ करय ओकर गोठ ला l अब जान डरेन कहिके ताली बजवा देथे l" 

"उहू मन तो पूरा बात ला रखे नहीं l पूछ के बताबो कहि देथे l

पूछे के का बात हे? काला पूछही l "

" दारू पीना बंद करो कहे ले काम नइ चलय l पीने वाला ला घर ले बाहिर करो l बाहिर करही त तो l"

" कोन महिला अइसन कर सकत हे, अउ कतका झन ओला साथ दिही, तंही बता l अउ अइसन होही त  ओकर का गत होही l "

" त महिला मन आघू कभू आ नइ सकय l"

'अघुवाही तेन ला का कहि जानथस?

" बताना? "

" फर्जण्ड l कोनो महिला एला सून नइ सकय l"

सुधु अपन बात ला रखिस -" त फ़ेर आंदोलन कइसे चलही l जतके महिला मन के भीड़ रही 

तभे दारू भट्टी बंद होही l दारू पीने वाला मन के घर ले  महिला मन आहे हे, कहत बनही l "

गनपत कहिस -" पीने वाला ल रोका जाय  घर अउ बाहर l "

सुधु -" भइगे  अइसने एती ओती के गोठ हे भैया l राजनीति करने वाला के धंधा हे अउ झंडा हे l  पीने वाला मन मरय झन कहिके  सरकार भट्टी चलावत हे l महिला मन ला सड़क म लाके बेइज्जती झन करवाव l अपन -अपन घर म समझाये के तरीका अपनाव l उही बने हे l  समाज मन रद्दा निकालय l "

"महिला मन के सम्मान  करव जेकर घर म नइ चलय दारू पानी l" 

"वाह! काली अइसने बात रखे बर भउजी ला भेज बे l"

" तैं भेजबे ग तुंहर इंहा जादा पढ़े लिखे हे l"

" जूता मरवाबे का? मोर इंहा सुनय नहीं चप्पल जूता ला देखाथे l  अइसन भीड़ म नइ आवय l "

सुधु हँसत तब आंदोलन सफल होगे... I "


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

अन्न हे त टन्न हे, नइते सना सन्न हे !!

 अन्न हे त टन्न हे, नइते सना सन्न हे !!


भीड़ के कोनो चेहरा नइ होवय, अभाव के चेहरा भलुक आरूग चुकचुक ले होथे। अभाव के दर्षन करे बर होवय त किसान के थोथना ल देख लेवय। चिरहा चेंदरा के आड़ ले पोचकत पेट ल झाँक लेवय। भारत गँवइहा अउ किसनहा देष हरे। इहाँ गाँव के मनमाड़े भीड़ हवय अउ गाँव-गँवई म किसान मन के भीड़ हे। भीड़ माने अभाव के मेला हे। ते हिसाब ले देखबे त भारत के कोनो चेहरा नइहे, मुड़कट्टा हे, फेर भारत ल तो सोनचिरइया ये कहिथे। माने देष दूमुँहा हे, देष के वासीमन दूमुँहा हे। संगे-संग हाथी बरोबर दूदँत्ता तको हे, एक दाँत कुकुर कस सपटके मुसर-मुसुर खाए के, त एक गिजिर-गिजिर करत खबखब ले देखाए के। जब ये हाथी एके ठन हे, देष एके ठन हे त ये चेहरा अउ दाँत दू किसम के कइसे ? सोन के चिरइया दाना-तिनका के मोहताज काबर ? जगमग चमचमावत महल-अटारी बनइया के कुरिया कुलुप अंधियार काबर ? जम्मो बिपत जाँगर टोर जग के पेट भरइया भूँइया के भगवान बर काबर ? 


जगत के जम्मो प्राणी, चाहे वोह रिंगीचिंगी होवय कि साँगर मोंगर, पेट म अन्न परे ले टन्न रहिके अँटियाथे। कतको बड़े पहलवान हो जाय, चार दिन लांघन-भूखन रख दे, जम्मो नस-बल राई छाँई हो जथे। अगास उड़इया के तको एक दिन भूँईया म पाँव माढ़थे अउ छोटे-बड़े सबो ह भूँईया के भगवान के ओगारे पसीना के नून ल चाँटके जीथे। महल के रहइया गुनहगरा, अप्पत अउ घेक्खर मन भले उन्कर अभार ल झन मानय। फेर नून सबो ल लगथे। ये बात अलग हे के कोनो ल जादा लगथे कोनो ल कमती। कोनो नममहलाल हो जथे त  कोनो नमकहराम। ये कमती अउ जादा के निर्वार भगवान नई करय। वो तो जम्मो ल एके आँखी ले देखथे, एकेच लाठी म हाँकथे। भावना के आँखी, मेहनत के लाठी। 


ये भूइँया के भगवान हर खेती अपन सेति कहिथे भर अउ भाव सर्वे भवन्तु सुखिनः के रखथे। इन अपन मेहनत ले कभू जी नई चोरावय। इन कभू जाँगर चोराए बर जानबेच नइ करय, तभे तो कुला खाय माटी तब मुँह खाय भाती के ददरिया गावत-अलापत दिनरात खेत म जीव ल देय जीपरहा बरोबर कमावत रहिथे। ये बात अलग हे कि खैटाहा, गरकट्टा अउ बइमान मन इन्कर संग नियाव नइ कर सकय। 


आज के मनखे करमछँड़हा, नीयतखोर अउ लतखोर होगे हावय। नाक ल ऊँच करके चमकत चमचमावत माँहगी गाड़़ी म चढ़के बाजार जाथे। दस रूपिया के झोला धरे म उन ल नाक कटाए अस लगथे। बेषरमी, बेकदरी अउ अउ बेअदबी के हद तो तब हो जथे जब दस रूपिया के बंगाला ल सात रूपिया म मलोवन माँगथे अउ उपराहा म बंगाला धरे बर झिल्ली तक ल तँही दे कहिथे। किसाने के भीख के दिए धनिया म अपन राषन, आसन अउ भाषण ल महकाथे। इन जीछुट्टा मन के चलय त इन बंगाला के चटनी पसरे म पिसवा के घर लानय। उल्टा कहि देवय - हम तोला पोंसत हन, तैं हमर बर का करे। पद पाए, ताहेन पाद मारे। तभो इन ल लाज नइ लागय। अतेक दुख ल सहिके तको बपुरा बिचारा किसान टूटहा करम के टूटहा दोना, दूध गँवागे चारो कोना कहिके अपन आप ल समझा समोख लेथे। 


डार के चूके बेंदरा, असाड़ के चूके किसान। डार अउ खार दूनो के बेंदरा अपन लक्ष्य ल बिलकुल जानथे-समझथे। तभे तो इन जी परान देके कमाए बर नइ छोड़य। खेती म बने उपज होना इन्कर सौभाग्य होथे अउ फसल के नास होना मऊत बरोबर दुखदायी। जिनगी कतकोन अभाव, बिसम अउ बिपत म बीतय इन जुगजुगावत आसरा के फूचरा अँचरा ल छिन भर नइ छोड़य। आसरा भले चेंदरा-चिथिया जावय, अपन मेहनत के चकमक पथरा ल घिसके उहू म चिनगारी जगो लेथे। ये चिटिक चिनगारी अनन्त-अनन्त उर्जा अउ ऊष्मा के दाहकत रगरगावत भट्ठा होथे। इही चिनगारी संसार ल गति, मति अउ शक्ति देथे। जीत के मुकुट मुड़ म भले नइ परिरै फेर हार काला कहिथे उहू ल नई जानय। बिन मुकुट, बिन खडग, बिन ढार के ये स्वयंभू राजा, अपन हौसला अउ हिम्मत ले हार के रार मता देथे। 


राहेर कोदो के कोनो संग नइ बनै तभो इन एक दूसर के पूरक होथे। तभे तो हिजगा के खेती ल भलुवा खाय काहत माटी म माटी मिल कमाथे अउ कहिथे-अधिया के खेती, सहजी के रोजगार, बजारू औरत के संग अउ उधारी कभू नइ करना। सही म देखे बर मिलथे - उत्तम खेती अपन सेती, मध्यम खेती भाई सेती, निक्कट खेती नौकर सेती, बिगड़ गई तो बलाय सेती। 


आसरा, आष्वासन अउ विष्वास ले दुनिया चलत हे। लेगही राम त रखही कोन, रखही राम त लेगही कोन। इही आसरा के नाँगर म जाँगर पेर किसान जिनगी कुसियार के रसा ल निचो-चुहक लेथे अउ उछाह-उमंग के कतरा बनाके खा लेथे। तभे तो कहिथे- खेती तो थोरी करै, मेहनत करै सवाय, राम चहै वा मानुस को, टोटौ कभूअन आय। इन जानथे कि खेती जुआ हरे। पा गे त पौ बारा, नइतो सरबस वारा-न्यारा। आइस कातिक फुलिस गाल, सावन भादो उही हाल। गाँठ बँधाए जोड़ी संग निभना -निभाना कइसे होथे तेला किसान जानथे। सुख होवय के दुख होवय जिनगी के गाड़ी दूनो पाटा के सुमत बिगर अधबीच्चे म धपोर दिही, तेकर सेती संघेर के चलना अपन परम करम धरम मानथे। जिनगी के संगवारी रिसाए ल धरथे त संगी ल अउ किस्मत रिसाए बर धरथे त किस्मत संग ठट्ठा अउ हाँसी-मजाक करत ओकर सुघरई ल सहिरावत मना लेथे। मन मसोस के भले रहि जाय, फेर मया पझराके जिनगी के मजा उड़ा लेथे। ठाढ़े खेती गाभिन गाय, तब जानौ जब मुँह में जाय। सम-बिसम, सुकाल-दुकाल अउ सम्मत-बिपत म सामंजस्य ल बइठारे बर किसाने जानय। उन जानथे कि पंचमी कातिक शुक्ल की जो होवै शनिवार, तो दुकाल भारी परै मचिहै हाहाकार। जब बरखा चित्रा म होय, सगरी खेती जावय खोय।


ये सुकाल के बेरा ल तको जानथे -रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय, कहै घाघ सुनि घाघिनी स्वान भात नही खाय।

आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय, दिए अन्न कोई न खाय।

आद्रा के बरसे, महतारी के परसे, जऊन नइ अघाइस तऊन जिनगी भर तरसे। 

गाँव म घर नहीं, खार म खेत नहीं, तभो ले इन जिनगी ले हार नइ मानय। अपन मेहनत के भरोसा खुद संग दुनिया के पेट ल पाल-पोस डरथे। शायद इंकर इही जीवटता ल देख के दुनिया जलथे। ठौं-ठौं म इन ल कमजोर करे के ताना -बाना बुनथे। तरीवाले तो तरीवाले ऊपरवाले तको कभू इंकर नरी ल दबा-चपक के राखे बर दूब्बर बर दू असाड़ लान देथे। 


गँहू संग कीरा रमजाए कहिथे, तेन सोला आना सही हे। करनी कोनो करय, भरय कोनो। बिकास के मुकुट पहिरे मटमटावत वर्तमान पवन, पानी अउ माटी ऊपर कतका अति करत हावय। पखरा के अल्लार जंगल उगावत हे। ठौं-ठौं म बिख बोवत हावय अउ मँगरा के आँसू रोवत हावय। सबो जानत हे तभो बिलई कस आँखी ल मूँदके मुँह मिटकियाए बइठे हावय। आँखी ल मूँदके बिलई भले सोच लेवय कि कोनो ल नई दीखत हे, ये ह ओकर भरम हरे। ये भरम के भूत जब तक नई उतरही दुनिया नई उबर सकय। माटी के मान, पानी के जान अउ हवा के शान ल मितान कस मया समोख के बनाए रखना सबो के कर्तव्य हरे। बिलई के गर म घाँटी कोन बाँधय। भूत के छूत ह किसाने भर ल काबर लगय ? मेहनत करय कुकरा, अण्डा खाय फकीर। ये लकीर जब तक नइ मेटाही बिपत के सुरसा अइसनेहे मुँह बाए दुनिया ल खाए बर दँऊड़ते रहिही। अक्कल के न बुध के, बनिया मारे कूदके। एसी रूम म बइठ के किसान अउ किसानी के गोठ करे भर ले किसान के किस्मत नइ सँवरय। 

पानी म गोबर करही तेन उफलबे करही। ऊँचहा अटारी के रहइया, हवा म उड़इया दुनिया भोरहा म झन राहय कि हमरे भर चिक्कन चाँदर रहे ले जग म सुघरई आ जही। करनी दीखय मरनी के बेर। बिपत बताके नई आवय, न ककरो नेवता झोंकय। जब आ परही त कतको आपत्ति कर वो अतेक अप्पत होथे कि अपन जम्मो सँऊख पूरा कर लेही। छिन भर नइ लगय मनखे के जम्मो सँऊख पूरा हो जही।



धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

पूस महीना के महत्तम*

 *पूस महीना के महत्तम*

                                  

                          *डोरेलाल कैवर्त  "हरसिंगार "*

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                    हिन्दी पंचाग के कालगणना मुताबिक एक बछर के बारा महीना होथे अऊ सबो महीना बारा किसीम के अलगेच-अलग होथे। सबो महीना अपन आप म विशेष महत्तम ल तुमा नार असन लपेटे हावे।सबो महीना के अंधियारी अऊ अँजोरी पाख के आरुग पहिचान बने हावे।बारहो महीना के अलगेच चिन्हारी अऊ महत्तम फकफक ले ओग्गर दिख जाथे।

             बारहों महीना ल तीन ऋतु म अलगेच-अलग बांटे गे हावे।चार महीना बरसा ऋतु के होथे जेमा नरवा, नदिया ,तरिया, पोखरी,खेत-खार अऊ कुआँ-बउली जघा-जघा पानीच-पानी दिखथे।धरती दाई हरियर लुगरा पहिरे सोला सिंगार करे कस जनाथे।ओकर बाद चार महीना जाड़ा के ऋतु आथे जेमा जाड़ के मारे हाड़ा तको कांप जाथे,जाड़ दंदोरे लागथे।फेर चार महीना गरमी के ऋतु होथे।गरमी के मउसम म सूरुज ले अँगरा बरसा देथे।भुइयाँ के कुधरा चट ले जरे लागथे।देहें ले नरवा कस पसीना बोहाय ल धर लेथे।जुड़-छांव खोझासथे।चिरइ-चिरगुन,जीव-जन्त मन ल पानी पियाय के पून काम कतको झन मन करथें।

                    वइसे देखे जाय त पूस के महीना सबो ल अगोरा रहिथे, फेर पूस पून्नी के अलगेच महत्तम होथे।सबो किसान मन कोठार म धान के खरही छोटे-बड़े गोल चुकचुक ले गांजे रहिथें।दउंरी अऊ बेलन,टेक्टर ले अपन धान ल मिस-कुट के अन्नकुवांरी दाई ल परघाके घरेच म लानथें।कोठी-ढाबा धान म भराय रहिथे त घर म उछाव रहिथे।ते पाय के अन्नकुवांरी दाई के पाछू म सबो किसान मन गरब करथें अऊ अपन भाग सहरावत रहिथे।

                 पूस के महीना गजब आय बड़ जल्दी बुलक जाथे गम नि मिले।रथिया जबर लम्बा अऊ दिन छोटकून होथे।पूस महीना जाड़ के भराय महीना होथे।जाड़ ह देहें भर ल दंदोरे लगथे,झाँपी म धरे-सइंते सुपेती ,कम्बल ल बउरे बर सबोझन बहिराथें। *" पूस के जाड़ा कंपवा देथे हाड़ा "*। भूर्री बारे,रउनिया लेहे,गोरसी अऊ अंगेठा तापे के गजब मजा आथे।गरमे-गरम चहा अऊ पताल चटनी संग अंगाकर रोटी के सवाद लेहे के अलगेच मजा रहिथे।तरिया,नदिया के पानी सबो ल रहि-रहि के डरवाथे।बबा के गोरसी तपइ,चोंगी पियइ अऊ खोर-खोर खंसइ के आरो मिलत रहिथे।

                  पूस के महीना म सूरुजनारायन अपन सतरंगी रंग ल धरके रुख के छइहाँ म लुकावत ,धुंगिया के चद्दर ओढ़े मुचमुचावत बहिराथे।अइसे लागथे जाना-माना नवा बहुरिया कस लजावत हे।हवा तो बैरी बरोबर जनाथे जून्ना बैरवासी निकालत हावे अइसे लागथे।दांत किटकिटावत घड़ी के कांटा असन सुनावतत रहिथे।छोटे-छोटे बिरवा के ऊपर गोल-गोल शीत के बून्द मोती जइसन चमकत हावे।जेहर देखे म बड़ सुग्घर लागथे।

                  खेत-खार म तिवरा भाजी,चना भाजी,सेरसों भाजी,बटर,बउटरा अऊ मेड़ के राहेर सबो ल लोभावत रहिथे।तिवरा बटकर साग के सवाद लेहे के मजा आथे।बारी-बखरी के साग-भाजी,भांटा, पताल मन भावत हावे।बाम्बी सेमी,चनबुटरी सेमी अऊ पर्री सेमी के नार ढेंखरा म लपटाय अइसे लागथे जइसे मया ल रपोटे अपन छाती म चटकाय हावे।छत्तीसगढ़ के सेव कहाथे बोइर घलो मन भावन हो जाथे । डोहरहा अऊ गेदराय हरियर पिंवर बीही देखत मुहूँ म पानी ओगर जाथे।छत्तीसगढ़ म जघा-जघा रउताही मेला  घुमे अउ रेंहचुल, झूलवा झूले के अलगेच मंजा मिलथे।

               गुनिक सियान मन कहिथे हमर गँवई गाँव म अपन नोनी-बाबू के बर-बिहाव करे बर पूस पून्नी के तिहार मनाय के पाछू वर अऊ कइना खोजे सरेखे निकलंय एकर पाछू कुछू न कुछू कारन जरुर होही ।मोला लगथे जून्ना समे म आय-जाय के साधन सुविधा ओतका जादा नि रहिस ते पाय के रेंगत जावंय,जाड़ अऊ छोटे दिन ,काकरो घर रुके म परेशानी झन होही कहिके पूस महीना नाहक लेवय तेकर पाछू लोग-लइका के सरेखा करे जावंय।कइथे पूस म बरी घलो नि बनावंय।एकरो कारन हावे पूस महीना म बादर घोप देथे जेकर कारन बरी जल्दी नि सुखाय ते पाय के ओकर सवाद अमसुरहा हो जाथे अऊ नि चुरय घलो ।

               हमर देश म बछर भर म कतको अकन परब ल मनाथन।जेमा हमर छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली ले शुरू होके फागुन महीना म मया-दुलार के परब मया के रंग होरी के संगे-संग तिहार ह छेवर होथे।छत्तीसगढ़ म सबो परब ल बड़का उछाव ले मनाय जाथे इहाँ के सबो तिहार म मया-दुलार भराय हावे जेकर सेती सबोझन परब ल मनाय म कोनों प्रकार के कोताही नि करंय।

              पूस पून्नी के दिन हमर छत्तीसगढ़ के लोक संसकृति,लोक परब,दान-पून के तिहार *छेरछेरा* बड़का उछाव ले मनाय जाथे।ये दिन के सबो ल अगोरा रहिथे।लइका रहे चाहे सियान सबो कोनों ल छेरछेरा मांगे जाये के साध लागे रहिथे।छेरछेरा परब बरोबरी के तिहार आय एमा छोटे-बड़े,जात-पांत,ऊंच-नीच के कोनों किसम के भेद नि रहे।येकर सेती ये तिहार ल समरस के तिहार घलो कहे गे हावे।अऊ सबो जुरमिल के मनाथे।

                छेरछेरा परब के दिन गली-खोर म बिहनिया बेरा लइका मन के सेरी-डोरी,आवा-जाही,रेलम-पेला लागे रहिथे।लइका मन के छेरछेरा के गुरतुर बोली कान म मंधरस घोरे रहिथे।झांझ-मंजीरा अऊ मांदर के थाप म कनिहा मटकावत डंडा नाचा गजब सुहाथे।डंडा नाचा के कुहूकी के अलगेच महत्तम रहिथे जेकर भाखा हिरदे ल हिलोर देथे।नोनी मन के सुआ नाचा बिधुन होके नाचथे।सुआ नाचा के सुग्घर गुरतुर गीत अऊ हंथोरी के थाप के सोर ह दुरिहा ले सुनावत रहिथे।

              एती घर के मुहांटी म डोकरी दाई टुकनी म धान धर के ठोम्हा,अँउजरा भर-भर बइठे-बइठे सबो लइका-सियान अऊ छेरछेरा मंगइया मन ल देवत मंजा लेवत हे,जइसे शाकम्भरी दाई सबो ल बइठे -बइठे मया-दुलार बांटत हावे।चूल्हा म माढ़े कराही चन-चन बरा के चुरइ के ममहाई गली-खोर ल तको गमका देवत हे। सबोझन नाचत-गावत,झुमरत खुशियाली मनावत मया-दुलार बांटत छेरछेरा परब मनावत रहिथें।पूस महीना छेरछेरा तिहार के संगे-संग माघ महीना ल सउंपत छेवर हो जाथे।

           आप सबोझन ल जोहार हे।

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जस करनी तस भरनी*

 *जस करनी तस भरनी*


केहे जाथे- जस करनी तस भरनी'। ये संसार मा जउन जइसन करनी करथे वइसने फल घलो भोगथे। निक के निक फल अउ गिनहा के गिनहा।

        पड़ोसी सुभाष अउ कातिक संगे पढ़िन। सुभाष पढ़ई-लिखे मा गजब धियान देवे। खरचा घलो सोच-समझ के करे। कातिक गजब खर्चीलहा रिहिस। सुभाष आज के संगे-संग अवइया भविस के बारे मा घलो सोचे। कातिक ल न घर के फिकर न अवइया भविस के। 

       संसार मा सुख अउ दुख एक सिक्का के दू भाग होथे। परानी के जिनगी मा आरी-पारी ले आथे। पहिली सुख मिलथे त पाछु दुख। अउ पहिली दुख मिलथे त पाछु सुख। 

          सुभाष अपन पढ़ई जिनगी मा गजब दुख झेलिस। स्कूल जाय बर घर मा साइकिल घलो नइ रिहिस। कभू संगी मन के साइकिल मा जावय कभू रेंगत। सुभाष रात अउ दिन एक करके कॉलेज के  पढ़ई करिस अउ अव्वल नम्बर मा पास घलो होगे। उहीं  कातिक पढ़े-लिखे बर टालमटोल करय। दसवीं कक्षा ल पास नइ कर सकिस। सुभाष पढ़ लिख के कलेक्टर ऑफिस मा बाबू बनगे अउ कातिक खेतिहार होगे। सुभाष कर आज मोटरसाइकिल अउ कार दुनो हे। कातिक कर साइकिल के टायर लगवाये बर रुपिया नइ हे।

     ए बछर कातिक के नोनी उषा के बिहाव होवइया हे। कुछु जोरा होय नइ हे। मने मन मा कातिक गुनत हे कि नोनी बर गहना लेवाय नइ हे। नइ पहिनाये मा खुदेच के फदित्ता हे। सगा-सोदर, घर-परिवार बर कपड़ा-लत्ता के लेन-देन तो आम बात हे। सबो ल नइ देबे त चल जाही फेर जिंकर घर के कपड़ा-लत्ता ल पहिरे हावन वो मन ल तो देना ही पड़ही। दहेज देना अउ लेना भले कानूनन  अपराध हे। फेर अपन बेटी ल कोनों मॉं-बाप जुच्छा विदा घलो कइसे करे। खुद के इज्जत मा बट्टा लगही। हाँड़ी के मुँह मा परई ल तोपबे, मनखे के मुँह मा का ला। रहि-रहिके ये बात ह कातिक के दिमाग ल अइसे खावत हे जइसे लकड़ी ल घुना।

         कातिक आज अपन बीते दिन ल सुरता करके पछतावत हे। जब कातिक के बाप जीयत रिहिस, तब दू पइसा आवक खातिर कातिक बर किराना दुकान खोलिस। कातिक किराना दुकान ल घलो सफल नइ कर पाइस। काबर कि कातिक के नवा-नवा जघा मा घूमे-फिरे के गजब सउँख रिहिस। कातिक अपन सउँख ल पूरा करे खातिर किराना दुकान मा होय नफा के संगे-संग मूल ल घलो घूमे-फिरे मा उरकाये। कातिक के ददा किसुन कातिक ल गजब समझाये कि- बेटा, कुछ रुपिया बचाय बर सीख। आज बचाबे त तोरेच भविस मा काम आही। समय-बेसमय ल कोनों नइ जाने। जब रुपिया के जरूरत पड़ही, तब काकर कर हाथ फैलाबे? बचा के रखबे त तोरेच परिवार के काम आही। हमर का कब साँस ठग दिही का भरोसा। मनखे ल अपन आवक ले जादा कभू खर्चा नइ करना चाही।  फेर कातिक मा कुछु असर नइ परे। उल्टा खुदे ज्ञान बाँटे लगे कि घूमे-फिरे के दिन मा नइ घुमहूँ तब का बूढ़ा जहूँ तब घुमहूँ? बाप ल सरग सिधारे दू बछर होइस हे अउ कातिक के गृहस्थी बिगड़े लागिस। घर के जरूरत के पूर्ति मुश्किल होय लागिस। कातिक काम-बुता मा धियान तो देवय नहीं, बस खरचा बर ही आगू रहय। आज कातिक ल अहसास होवत हे कि सउँख तो  माँ-बाप के कमई ले ही पूरा होथे, अपन कमई ले तो सिरिफ जरूरत पूरा होथे।

          कातिक के ददा किसुन बहुत मेहनती रिहिस। अपन लहू-पसीना एक करके दू एकड़ जमीन घलो बिसाइस। आज ओकर बेटा कातिक उही जमीन में से एक एकड़ ल बेचे बर तियार हे। वोला अपन बेटी उषा के बिहाव जउन करना हे। रुपिया के आज सख्त जरूरत हे। कातिक ल भरोसा हे कि ओकर जमीन के जादा कीमत राममोहन ही दे सकत हे। काबर कि वो जमीन राममोहन के जमीन ले लगे हे। राममोहन ल घलो ये बात पता हे कि कातिक ल रुपिया के सख्त जरूरत हे। तेकर सेती जादा तान के कीमत दे बर तियार नइ हे। मउका के फायदा सबो मन उठाना चाहथे। तब राममोहन घलो काबर चूकही। अटके बनिया  का करे, गिराहिक के मर्जी ल स्वीकार करे।मजबूरी मा कातिक अपन एक एकड़ जमीन ल चार लाख मा राममोहन कर बेच के पछतावत हे। अपन करम ल सोच-सोच के आँसू ढारत हे। 'जस करनी तस भरनी' के कहावत आज कातिक के जिनगी मा सिरतोन होगे।

           

             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

छत्तीसगढ़ के चमकत हीरा मेहत्तर राम साहू-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 *पुण्य तिथि के बेरा मा छत्तीसगढ़ माटी महतारी के दुलरुवा बेटा गायक,कवि रामायणाचार्य मेहत्तर राम साहू जी ल कोटिशः नमन*


छत्तीसगढ़ के चमकत हीरा मेहत्तर राम साहू-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  धन धन हे हमर छत्तीसगढ़ के माटी, जिहाँ 01 जुलाई सन 1933 के एक अनमोल हीरा गरियाबंद ले लगे ग्राम पांडुका मा अलालराम साहू अउ सुकवारो बाई के घर जनम धरिन। वो अनमोल, चमकत हीरा आय मेहत्तर राम साहू जी। नान्हेंपन म ददा तेखर पाछू दाई के मया ले दुरिहाय के बाद, मेहतर राम साहू जी ऊपर दुख के पहाड़ लदागे। डोकरी संग, छोटे भाई अउ बहिनी संग पूरा परिवार के जिम्मेदारी ओखरे ऊपर आगे। पेट पाले बर जांगर टोर महिनत अउ बीड़ी बनाए के बूता घलो उन ला करेल लगिस। संझा बिहना जिम्मेदारी के बोझ म लदे लदे कटत रिहिस। लइकुसहा उम्मर मा ही उन मन घर परिवार के नेव ल बोहे रिहिन। साहू जी बचपन ले ही प्रतिभावान रिहिस। भगवान घलो बिरवान के भाग ला गढ़थे। अउ उही होइस घलो। देवदूत बरोबर उजियार लेके नारायण लाल परमार जी गांव पांडुका मा गुरुजी बनके आइन अउ सबले बढ़िया बात ये के गांव भर मा उंखरे घर मा रहे लगिन। ताहन का कहना? परमार गुरुजी के नजर मेहत्तर राम साहू जी के प्रतिभा ला परख डरिस, अउ काम बूता के संगे संग ओखर हाथ मा कलम थमा दिन। उंखर डोकरी दाई ल समझा बुझा के स्कूली शिक्षा बर हामी भरवाइस। परमार गुरुजी के प्रताप ले साहू जी मन काम बूता के संगे संग पढ़ाई लिखाई अउ कला के रदद्दा मा दौड़ेल लगिन। टेलरिंग मा घलो साहू जी के जवाब नइ रिहिस।नाचाकूदा, खेलकूद, गीत संगीत, रंगमंच नाटक, गायन,रामलीला, राम कथा वाचन, गीत कहानी लेखन कस कतकोन सुघर उदिम मा साहू जी मन बचपन के ही अघवा बनके चले लगिन। विद्यार्थी काल मा ही अपन गुरुजी फकीर राम देवांगन जी के मार्गदर्शन मा साहू जी, वो समय आयोजित होवइया परिक्षा ला पास करके रामायणाचार्य के उपाधि पाए रिहिन।

                       पढ़ाई के बेरा मा जीवन लाल साहू जेन बाद मा विधायक बनिन, साहू जी के खाँटी मितान रिहिन। जीवन जी के संगे संग साहू जी के अनन्दराम, चैतराम, उधोराम झकमार, रामप्यारे, नरसिंह, भगीरथ तिवारी जइसे व्यक्तित्व मन संग मेलजोल रिहिन। छत्तीसगढ़ महतारी के खाँटी सेवक मेहत्तर राम साहू जी के नाचा कूदा, कला संगीत, गीत कविता के कोनो शानी नइ रिहिस। तभे तो भूदान आंदोलन ले प्रेरित गीत- "दे देव भुइयाँ के दान ग" आकाशवाणी भोपाल ले प्रसारित होइस। तेखर बाद चैतराम साहू जी के आवाज मा गाए "भुइयाँ ला सरग बनाबों" जइसे मनभावन गीत बजे लगिस। आज के दौर मा कलाकार,कवि लेखक मन प्रसिद्धि बर सामदण्डभेद अउ कतकोन जुगत जुगाड़ बनाथे, फेर वो दौर मा बिन जैक जुगाड़ के घलो असल हीरा के परख करत करत प्रस्तुत कर्ता अउ प्रयोजक मन पा गिन मेहत्तर लाल साहू जी ला। वो बेरा के बड़े छोटे सबे प्रकार के पत्रिका पेपर मन मा साहू जी मन खूब छपे अउ कवि सम्मेलन मा घलो भाग लेवँय। आकाशवाणी रायपुर बने के बाद कोरी ले घलो आगर गीत 1975-76 मा आकाशवाणी रायपुर ले रिकार्डिंग होइस। मेहत्तर राम साहू जी के अइसन अइसन मनभावन गीत, जे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन के अन्तस् मा रच बस गिस। कुछ गीत के सुरता महूँ ला आवत हे, यदि आपो मन रेडियो ले जुड़े रेहे होहू ता आपो ला सुरता आ जही--

 सुवा लहकत हे डार मा,

 तहू जाबे महूँ जाहूँ राजिम मेला,

 सारस बोले रे तरैया मा,

 लाल लुगरा रे पिंयर धोती गँवन के,

 झुनकी तरोई रे भाई,

 लक्ष्मण रेखा पारेल लगही,

 मोंगरा फूल फुलगे,

 दे तो दीदी दे तो दीदी,दही वो बासी 

 झूम झूम नाचौ

             ये सब गीत आजो सुने बर मिल जथे, अउ जे बेर सुनबे ते बेर अन्तस् मा समा जथे। साहू जी कलमकार तो रबे करे रिहिन संगे संग उम्दा गायकी घलो करे। लगभग अपन गीत ला खुदे सुर साज में ढाल के गाए। सतत कलम चलावत मेहत्तर राम साहू जी मन अपन जीवन काल मा 13 ठन छत्तीसगढ़ी पुस्तक निकालिन।  न सिर्फ गीत कविता बल्कि कहानी,एकांकी,कथा,लघुकथा अउ गजल जइसे लगभग सबे विधा मा छत्तीसगढ़ी मा सृजन करिन। कुछ पुस्तक के नाम प्रस्तुत हे-

कौवा लेगे कान ला(काव्य संग्रह), 

होही अँजोर (गीत संग्रह),

 मया के बंधना (एकांकी संग्रह),

हमरेच भीतरी सब कुछ हे(कहानी संग्रह),

बूड़े म मोती मिलथे जी(कथा संग्रह),

सब परे हे चक्कर म (गम्मत),

कैकेयी (लघु प्रबंध काव्य),

रतना बपरी ( खंड काव्य),

राजिम लोचन ( कहानी),

                       स्कूली शिक्षा अउ मैट्रिक के बाद साहू जी मन गुरुजी के नौकरी करिन। कुछ बछर बाद उंखर पदस्थापना गरियाबंद ले बागबाहरा खोपली होगिस। उहें बछर 1980 में कला के पुजारी मेहत्तर राम साहू जी मन "तुलसीदल लोककला मंच खोपली बागबाहरा नाम के एक संस्था बनाइन। अउ अपन कमाई ला परिवार ले जादा कला, संस्कृति, साहित्य अउ समाज के बढ़वार मा लगा दिन। साहू जी के सुपुत्र धनराज साहू जी मन अपन ददा के जगाए पौधा ल लगातार बढ़ावत हें, चाहे कला होय, या साहित्य सबे के बढ़वार बर लगातार उदिम करत हें। वइसे तो कला साहित्य के समागम बागबाहरा मा रोजे होथें, फेर बछर मा एक अउ दू तीन बेर घलो छत्तीसगढ़ भर के कला अउ साहित्य प्रेमी मन जुरियाथें। कला अउ साहित्य के क्षेत्र मा कई आवासीय कार्यशाला के संगे संग सुरता श्री मेहत्तर राम साहू जी के बेरा मा, कई सम्मान जइसे--  नारायण लाल परमार, मेहत्तर राम साहू, प्रभंजन शास्त्री, हरिकृष्ण श्रीवास्तव, पी एल कोरी, साहित्य सन्देश, बी सी दास आदि आदि सम्मान  छत्तीसगढ़ भर के साहित्कार मन ला, मेहत्तर राम साहू सृजन संस्थान द्वारा दिये जाथे। मेहत्तर राम साहू जी जब फिंगेश्वर मा प्रामरी स्कूल मा गुरुजी रिहिन ता सन्त कवि पवन दीवान वो समय हाई स्कूल मा पढ़त रिहिन। बागबाहरा के गौटिया अनवर शेख खाँ, प्रभंजन शास्त्री, तरुण सोलंकी,  हरीश पांडे, जग्गू,गौरी, छाया आदि व्यक्तिव मन संग मिलना जुलना अउ बढ़िया सम्बंध साहू जी के रिहिस। कला अउ साहित्य के पुजारी श्री मेहत्तर साहू जी जिनगी भर माटी महतारी के सेवा करिन अउ सेवा करते करत 25 दिसम्बर 2010 के ये दुनिया ले बिदा ले लिन। 

                   मेहत्तर राम साहू जी के कलम ले कुछु नइ छूटे हे, खेती बारी, भर्री भाँठा, संस्कृति समाज, पार परम्परा, तीज तिहार, ऊंच नीच, छोड़े बड़े, दुख सुख, सृंगार, धरती, आगास,पाताल, नदी,ताल,जनजागरूकता आदि आदि---- का विषय मा कलम नइ चलाए हे? आवन कुछ काव्य के बानगी देखथन----


"*धन दौलत, रुपिया पइसा ला तो मनखें मन बिन बोले बाँट डरथें, फेर जब दुख आथे ता मनखें अकेल्ला हो जथे, उहू ला बाँटे के किलौली करत साहू जी मन लिखथें"*--

आवव 

मिलके

बँटवारा कर लेवन

भूख पियास ल,

बासी के हँड़िया

बरोबर

पोटारे-पोटारे,

जुन्ना-जुन्ना

आस ल।।


*"मनखें के अधिकार के बात होय या करम के या फेर जगजागरुकता के साहू जी सबे स्वर ला मुखर रूप मा उठाए हे"*-

जाग जावन

साँप के बिख ल

टोरे बर,

दूध के कटोरा म

मुंह ल बोरे-बर।

संकलप के रुख तरी

सुंता के कुंदरा बनाबो

शब्द कोश म 

नावा अध्याय के

बीज ल उपजाबो।।


*"नायिका ला संबोधित करत प्रकृति के शानदार मानवीकरण करत नायक के माध्यम ले सृंगारिक घटा बगरावत साहू जी मन गजल रूप मा कहिथें"*-

ये रात तोर असन मांग ला,सँवारे हे।

बहार तोर असन, मुस्की घलो ढारे हे।।


*"नई कविता के बानगी घलो साहू जी के रचना मन मे दिखथें। बने चीज के खुल्लम खुल्ला पलोंदी अउ गिनहा के मुँह फटकार के विरोध,साहू जी के रचना मन मा सहज दिखथें"*-

काम के 

साधत ले

धरम के 

नकली धोती ल

पहराथे,

उही ह

फाँसी के 

फांदा होके

हमरे गला मेर

लहराथे

अब तो जानो

मोर कहना मानो।।


*"साहू जी मन के बचपना के समय आजादी के छटपटाहट रिहिस अउ जवानी मा देश आजाद होय के बाद सृजन के चुनौती, दुनों रंग मा रंगे के बाद रचना मन मा देशभक्ति के बिगुल तो बजबे करहीं। ओज, प्रेरणा के कतकोन स्वर साहू जी मन अपन कविता के माध्यम के जनमानस ला दिये हें"*-

हाथ-हाथ ल चलो जोर के

एकता म आघु बढ़ जाबो।

हमर देश हे, हमर भुयां हे

दुश्मन के छाती चढ़ जाबो।।


*"छत्तीसगढ़ के सुख समृद्धि अउ बढ़वार के बात करइया साहू जी मन छत्तीसगढ़ रॉज निर्माण के सपना घलो देखिन अउ उंखर जीते जीयत नवा राज घलो बनिस। फेर रॉज निर्माण के बाद राज करइया आने आगे, जबकि लड़इया कोई दूसर रिहिस। तभे तो  साहू जी मन कथें"*-

छत्तीसगढ़ के राज पाए बर

बहाँ जोर के करिंन लड़ाई।

जे मन खुसरे रिहिन बिला में

नाँचत हावय मेला मड़ाई।।


*"बात बात मा बड़े अउ गाहिर बात ला सरल सहज ढंग ले कहि देना साहू जी जे कलम के गजब के विशेषता रिहिस। बिंब प्रतीक अउ अलंकार के बानगी के तको जवाब नइ रिहिस"*-

साँच बिचारा जीवत हावय,भटक-भटक के।

लबरी मोटियारी नाचत हे, मटक-मटक के।।


संझिया राँड़ी पहिरे हे, चिकमिकहा चूरी।

पुनमासी के रात, चिरागे कूरी -कूरी।।


*"दुख दरद धरे महिनत के थेभा मा सुख के रद्दा खोजइया मेहत्तर राम साहू जी शोषण, ऊंच नीच, गरीबी सब ला खुदे जीये अउ झेले हे"- एखरे बर सब ला सावधान करत कथें कि"*-

सोहबती-मोहबती म मेटागेंन

दार घोटरे कस घेटागेंन।

हमरे तन अउ लहू ह

दिया अउ तेल होथे।

उँकर बर देवारी म

शुभ-लाभ के मेल होथे।।


*"छत्तीसगढिया सबले बढ़िया" ये कोनो हाना नही बल्कि छत्तीसगढिया मन के सिधवापन के पहिचान ए। मनखें मनखें ला एक मनइया,नता रिस्ता के बीड़ा बोह के सबर दिन चलइया, छत्तीसगढिया मन ला जगावत, जेला देखे हे तेला हूबहू शब्द देवत साहू जी कथें"*-

कतका दिन ले ममा-भांचा

अउ मितान मानहौ।

कतका बेरा ले

मनखे तन ल सानहौ।।

कब ले मुँह ताकहौ

पर-पर के।

कब तक जिहौ

मर-मर के।।

पंदोली देथो

तेकरे सेती मरथो।

अपन हाथ म


*"जेन भी राज पाठ संभालिन आखिर मा छोट मंझोलन ल ही रौंदिन। फेर उंखर चालबाजी ला छत्तीसगढिया मन नइ समझ पाए अउ करम ल दोष देय बर धर लेथें, इही बात ला साहू जी कथें"*-

निच्चट होगेंन सिधवा

ओमन होगे, चील-गिधवा

ठोंनक के झींक लेथे मास ल

हमन दोष लगाथन अपन सांस ल।।


*"साहू जी मन अपन जिनगी ला कला, साहित्य,शिक्षा अउ समाज के बढ़वार बर खपा दिन। छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटा मेहत्तर राम साहू जी,अपन माटी महतारी ला माथ नवावत कहिथें"*-

मेंहा पिलवा हँव,छत्तीसगढ़ महतारी के।

में हँव बजरंगी,छत्तीसगढ़िया संगवारी के।।

मुस्काथँव बादर झर जाथे

कमल फूल मोर हाँसी।

बिजली के रंग घलो लजाथे

अइसे चिगबिग आँखी।।

हँव अलबेला नार बरोबर,

मैंहा तोर फुलवारी के....


*"कथा, कहानी, तीज तिहार, संस्कृति संस्कार के संगे संग प्राकृतिक सुंदरता ला घलो साहू जी मन खूब उकेरें हे। जेमा अलंकारिक छटा ला अलग से खोजे के जरूरत नइहे, साहू जी के रचना मन मा काव्य गत सबो विषेशता दिखे बर मिल जथे"*-

खेतखार म

चिगबिग-चिगबिग,रूप रुपौती

लकलिक-लकलिक

जीव लुभवती।।

जानो-मानो,भूरी भइंस के

जम्मो गोरस,

छलल-छलल बोहाथे

रंग बिरंगी मेड़पार म

इंदर धनुष लजाथे।।

गाँव के बरगद रुख

बबा कस

भाँग पिए अस,डोलत हे

आमा-पीपर एक पार में

जय जय जय जय बोलत हे।।


               अइसने अलग अलग विषय, विधान अउ विशेषता लिए कतकोन रचना हे, सबो ला ओरियाना मोर बस के बात नइहे। ये सब के संगे संग कहानी, एकांकी, जनउला, प्रबन्ध काव्य,गजल, खंडकाव्य,कथा कस अउ कतकोन विषय विधा मा साहू जी मन कलम चलाए हें। फेर यहू बात सच हे कि आज साहू जी के रचना जादा झन तीर बगरे घलो नइहे। वो दौर मा ज्यादातर कवि मन हिंदी मा रचना करें, मेहत्तर राम साहू जी मन घलो हिंदी मा लिखिन,फेर माटी महतारी के करजा उतारे बर छत्तीसगढ़ी के जादा सेवा करिन। साहू जी के रचना मा भावपक्ष बड़ बेजोड़ हे अउ कलापक्ष के सुघराई के का कहना? अलंकार, बिम्ब,प्रतिबिम्ब, प्रतीक, हाना, मुहावरा, बिस्कुटक, लोकोक्ति के संग सरल सहज ठेठ छत्तीसगढ़ी रचना,जे नाना प्रकार के रस ले भरे रसमलाई बरोबर साहू जी के कलम के निकले हें। साहू जी के रचना ला पढ़े बर छत्तीसगढ़ी जानना जरूरी हे, चलती छत्तीसगढ़ी के जघा ठेठ छत्तीसगढ़ी हे, जेमा रायपुर, बिलासपुर के छत्तीसगढ़ी के मिश्रण दिखथें। कतको मन  छत्तीसगढ़ी मा ष,श नइ होय कहिके विवाद घलो पैदा करथें, फेर मेहत्तर राम साहू जी मन ष,श, ढ़, ढ, ङ, ड़, व ,चन्द्रबिन्दु आदि सबे ला बेधड़क बउरें हें। धनराज साहू जी द्वारा मोला भेजे, साहू जी के हस्तलिखित कविता एखर सबूत हे। कोई कोई जघा हिंदी के अपभ्रंश हे, फेर ज्यादातर जब हिंदी के शब्द ल लेना पड़े हे त जस के तस ले हे, जइसे प्रकृति, स्कूल, ऑफिस, पर्यावरण---- आदि आदि। देश के आजादी के पहली ले घलो छत्तीसगढ़ी महतारी के सेवा करइया माटी के दुलरुवा बेटा मेहत्तर राम साहू जी के कला, गीत, संगीत अउ महतारी भाँखा में साहित्यिक योगदान कखरो ले छुपे नइहे, तभो उंखर नाम आज कला साहित्य जगत मा धूमिल हे। उंखर गीत संगीत ला सुन के हम सब खुश हो जाथन फेर नाम ला नइ जानन, ये हमर समाज,राज अउ शासन प्रशासन के दुर्भाग्य ये।


जीतेन्द्र वर्मा" खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


नमन

देख जी आँखी सुन जी कान, मनखे-मनखे एक समान*

 *देख जी आँखी सुन जी कान, मनखे-मनखे एक समान*


18 दिसम्बर सन 1756 के गुरु घासीदास बाबा के अवतरण होइस, ओ समय हमर देश म अंग्रेज मनके फूट डारव अउ शासन करव के नीति ह मनमाड़े डारा-थांघा फेंकत फुलत-फलत रहिस। गाँव-शहर जहाँ देखते भेदभाव ह अपन चरम म दिखतिस। अंग्रेज मन हम भारतीय मन संग रंगभेद करँय अउ हम भारतीय मन अपने भाई-बन्धु मन संग बरन अउ जाति भेद करन। स्थिति अइसे होगे राहय के भेद-भाव के घिन मानसिकता ह हजारों हजार व्यक्ति अउ वोकर घर-परिवार ल रोजे अपमानित करय। कभू-कभू तो मनखे अपन मान-सम्मान, इज्जत-मरजाद के संग जान-माल ल घलो गवाँवय। निसैनी कस खड़े जाति व्यवस्था म ऊपर अउ तरी ल छोड़के बाकी के जाति बर ऊपर के जाति हर बड़े अउ नीचे के जाति हर छोटे होवय। भेदभाव के भरम अउ दंभ म जीयत जाति, एक डहर अपन ले ऊपर वाले जाति कर अपमानित होवय त दूसर डहर अपन ले नीचे पायदान वाले जाति ल अपमानित करय। जाति-भेद के नाँव म गाँव-गाँव खँड़ाय लग गे। झगरा-लड़ाई के बँवर्रा ह गाँव-बस्ती ल उजारे लग गे। माटी के चूल्हा घर-घर हे जिनगी भर सुख-दुख छँइहा-घाम लगेच रहना हे एक जघा जुरमिल के रहिबो त भार ह नइ लगय कहिके गाँव बसा के बसे मनखे मन एक-दूसर ले दूरिहाय लग गें। फूट अउ बिखराव के पोषक भेदभाव के आचरण ह जिनगी अउ जरूरत के हर क्षेत्र म केवल घाटा के ही सौदा साबित होइस, कखरो फुरमान नइ दिखिस। आपसी संघर्ष अउ असहमति के बाढ़े ले सबल समृद्ध देश ह निबल अउ गरीब असन होगे। उन्नति विकास के गति ह दँउड़े के जघा रेंगे लग गे, रेंगे का घिसले लग गे। व्यक्ति विकास तो होइस पर हर देश ल समष्ठि विकास चाही रहिथे, जेन ह नइ हो पाइस। चिंता के चित्र अइसे होगे के बरकस मन खावँय अउ हिनहर मन टुकुर-टुकुर देखँय।


अमानवीय आचरण के काँटा-तार ह अदमी के घर-दुवार, अंगना-बारी, खेत-खार, मेंड़-पार, इचार-बिचार ल कटकटा के घेर लिही त सुमता सलाह समन्वय अउ सहकारिता के उन्नत सोंच धरे अवसर सन वोकर भेंट-मिलाप कइसे हो पाही? माथा म अज्ञानता के अँधियार अउ आँखी म छूत-अछूत के अंधरौटी रइही त मनखे ह मनखेपन के मंजिल ल नइ पा सकय। भेद-भाव के कारण एकता सुमता समता समरसता सद्भावना सहयोग अउ भाईचारा जइसन समाजसेतु भाव-शब्द मन लड़भड़ाय लग गें। पीड़ित मन बर उज्जर भविष्य के सपना ह जइसे सपने रहिगे। घर परिवार, जाति-समाज के मानस म कोर-कपट, किंचा अउ कुमता जइसन करुहा भाव के घर होय लग गे, गोरसी के आगी कस तरीत्तरी सुलगत गुंगवावत अनदेखी-जलन के आगी ह रुमरुम-रुमरुम बरे लग गे। परिणाम ये होइस के एके ठन गाँव के रहवासी मनके अलग-अलग कुआँ, अलग-अलग तरिया अउ अलग-अलग मरघटिया बनगे। नानचन गाँव ह पारा-पारा म बँटागे। फूट के फायदा उठावत मुठा भर अंग्रेज मन हमर अतेक बड़ देश ल अपन मुठ्ठी म कर डारिन अउ हम आँखी म आँसू धरे बोकबाय देखत रहि गेन।


अंतस के अँधियार ल सुरुज ह नइ छाँटे सकय, वोला छाँटे बर संत अउ सतगुरु के अँवतरण होथे। गुरु के बारे ज्ञान के दीया के अँजोर ह बगरथे तब जाके अंतस के अँधियारी ह छँटथे। भेदभाव के कारण उपजे पीरा देवइया स्थिति-परिस्थिति ल देख सुन अउ गुन के गुरु घासीदास बाबा ल घोर पीड़ा अउ दुख होइस, प्रबुद्ध कहाने वाला मनखे से वोला ये उम्मीद नइ रिहिस, वोकर ज्ञान अउ ध्यान अब ये विकृत स्थित-परिस्थिति के सुधार म लगे लग गे। भेदभाव ह मुँह ल कइसे टारय, कई-कईठन कुप्रथा ल मानत मनखे के मइलाय मन कइसे उजरावय तेखर गुनान अउ जुगत म लगे लग गे। गुरु घासीदास बाबा के प्रयास ह रंग लाइस, वोकर ज्ञान के आवा म पक के निकले दीया मन जगमग-जगमग अँजोर करे लग गें। भेदभाव के अँधियार ह छँटे लग गे समता अउ समरसता के उजियार बगरे लग गे। गुरु घासीदास बाबा के योग तप ध्यान ज्ञान-विज्ञान शोध-साधना के केन्द्र छातापहाड़ अउ शहीद वीर नारायण सिंह के धरा धाम सोनाखान के बीच बहत जोंकनदी के कंचफरी पानी ह वो परछइहाँ बनगे जेमा सुख-सुराज के सुखदेवा चित्र ल बेरा ह देखे लगगे। दिसम्बर के पावन महिना मा वो महान सतनाम आंदोलन छिड़गे, जिहाँ हजारों हजार लोग मन सतगुरु घासीदास बाबा के सुर म सुर मिलावत एक सुर म कहे लग गें- देख जी आँखी सुन जी कान, मनखे-मनखे एक समान।


▪️महंत सुखदेव सिंह ‘अहिलेश्वर’

   गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Wednesday, 8 January 2025

पुस्तक : ठग अउ जग, दुर्लभ छत्तीसगढ़ी हास्य लोककथा संग्रह”

 “पुस्तक : ठग अउ जग, दुर्लभ छत्तीसगढ़ी हास्य लोककथा संग्रह”


लेखक - वीरेंद्र सरल


प्रकाशक - कल्पना प्रकाशन, बी - 208 / ए, गली नं - 2, मजलिस पार्क, आदर्श नगर, दिल्ली 110033


मूल्य - ₹450/-


ISBN 978-81-19366-09-2


प्रथम संस्करण - 2023


                      “समीक्षा”


समीक्षक : अरुण कुमार निगम, आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़


“लोककथा” - 


साहित्य की दो प्रमुख विधाएँ हैं, गद्य विधा और पद्य विधा। मुझे ऐसा लगता है कि गद्य विधा का जन्म लोक कथाओं से और पद्य विधा का जन्म माँ की लोरियों से हुआ होगा। दोनों ही विधाएँ वाचिक परम्परा की हैं। लोक कथा की बात करें तो पुरातन काल में कृषि ही मुख्य व्यवसाय हुआ करता था और कृषि कार्य के उचित निष्पादन के लिए संयुक्त परिवार हुआ करते थे। युवा और अधेड़ तो दिन के समय में खेतों में चले जाते थे और घरों में रह जाते थे वृद्ध जन और बच्चे। इनके पास समय ही समय होता था। तब खाली समय में परिवार के दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों के मनोरंजन के लिए उन्हें काल्पनिक कथाएँ सुनाया करते थे। इन कथाओं में नीतिपरक संदेश भी शामिल हुआ करते थे ताकि बच्चे संस्कारवान बन सकें। लोक कथाओं के पात्र प्रायः ग्रामीण परिवेश के ही होते थे। कुछ कथाओं में राजा-रानी होते थे तो कुछ कथाओं में भूत-प्रेत, दैत्य-परी जैसे काल्पनिक पात्र भी होते थे। इनके अलावा पशु-पक्षी, जीव-जंतु, वनस्पति और निर्जीव वस्तुओं का मानवीकरण भी हुआ करता था। लोक कथाओं के महत्व को किसी भी काल में नकारा नहीं जा सकता। नयी पीढ़ी को सुसंस्कृत करने के लिए लोक कथाएँ एक सशक्त साधन हैं। छत्तीसगढ़ में एक लोक मान्यता यह भी है कि अधूरी लोक कथा कहने या सुनने से उनका मामा रास्ता भूल जाता है। 


“जीवन शैली में बदलाव” - 


मानव समाज ज्यों-ज्यों विकसित होता गया, जीवन-शैली बदलती गयी। मनोरंजन के अनेक साधन बनते गये। संयुक्त परिवार, एकल परिवारों में टूटते गए। दादा-दादी, नाना-नानी और नाती-पोते एक दूसरे से दूर होते गये। दादा-दादी और नाना-नानी को छोड़ कर सभी के पास समय का अभाव होता गया। लोक कथाएँ स्मृति-पटल से धुँधलाती हुई लुप्त होने के कगार पर पहुँच गईं। आधुनिक जीवन की भागमभाग में लोक कथाओं की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। हाँ, कुछ विचारशील और प्रबुद्ध लोगों ने लुप्त होती हुई लोक कथाओं को संकलित कर संरक्षित करने का बीड़ा अवश्य उठाया है। ऐसे ही विचारशील और प्रबुद्ध लोगों में मगरलोड के साहित्यकार वीरेंद्र सरल का नाम अग्रणी पंक्ति में आता है। 


“लोक कथाओं पर वीरेंद्र सरल की किताबें” -


वीरेंद्र सरल ने “कथा आय न कंथली” शीर्षक से एक किताब प्रकाशित करवाई जिसमें छत्तीसगढ़ी लोक कथाओं का संकलन है। इस किताब के प्रकाशन के बाद भी उनका मन नहीं माना तो उन्होंने अब “ठग अउ जग” शीर्षक से एक किताब और प्रकाशित करवा ली है। इस किताब में बत्तीस लोक कथाओं का संकलन है।

वाचिक परम्परा की लोक कथाओं का संकलन अत्यंत ही कठिन कार्य है क्योंकि लोक कथाएँ सुनाने वाली पीढ़ी के अधिकांश लोग इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, कुछ लोगों की स्मरण शक्ति समाप्त हो चुकी है। बस गिनती के कुछ लोग ही बचे हैं जिन्हें वे लोक कथाएँ याद हैं। दूसरा सबसे कठिन काम है, मौखिक लोक कथाओं को लिपिबद्ध करना। सुनने के साथ-साथ लिखते जाना व्यावहारिक रूप से संभव भी नहीं हो पाता। सुनाने का एक प्रवाह होता है, बस सुनकर याद रखते जाओ और बाद में उसे लिखित स्वरूप प्रदान करो। वीरेंद्र सरल जी ने अपने उपनाम को सार्थक करते हुए, अत्यंत ही कठिन कार्य को सरल करके बताया है, इस हेतु वे साधुवाद के पात्र हैं। प्रत्येक वृद्ध के पास अलग-अलग लोक कथाएँ होती है। वे न जाने कितने वृद्धजन से मिले होंगे, उनसे लोक कथाएँ सुनी होंगी, याद रखा होगा फिर लिखा होगा। निस्संदेह वीरेंद्र सरल जी का यह कार्य सराहनीय है। 


“श्रवण और लेखन” - 


कानों सुनी कथाओं को लिपिबद्ध करना भी कोई आसान काम नहीं होता है। कथानक में भाषा का ध्यान रखना होता है। आंचलिक शब्दों के प्रयोग के प्रति सचेत रहना पड़ता है। लोकोक्तियों और मुहावरों का सटीक प्रयोग करना पड़ता है। पात्र अनुसार वाक्य-विन्यास और भावों में संतुलन रखना पड़ता है। इन सबको साधते हुए कथा के प्रवाह को बनाये रखना पड़ता है। 


“इस संकलन में प्रयुक्त कुछ लुप्त होते हुए शब्द देखिए” - 


जीव बिट्टागे, अम्मल, पान रोटी, बेंझहारत, डेरौठी, निझमहा, कुल-बोरूक, मनटूटहा


“इसी तरह से मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी देखिए” - 


हरियर खेती, गाभिन गाय, जभे बियाय तभे पतियाय। दूसर के आँखी मे सपना नइ दिखे।

जिनगी के चिट्ठी चिराना।

टेटका के पहिचान बखरी तक।

उही जबान आ कहिथे अउ उहीच ह जा।

करम के नाँगर ला भूत जोते।

अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान।

दुब्बर बर दू आषाढ़।

खाय बर लरकू, कमाय बर टरकू।

देखा सीखी लागे बाय, चुम-चाँट के सबो जाय।

रोगहा ला छोड़ के बनाये रोगही, तोर करम के भोग ला कोन भोगही।


“लोक कथाओं में छत्तीसगढ़ के खान-पान”-


पान रोटी, चुनी-भूँसी के रोटी, भाजी-कोदई के साग, गुड़हा चीला, मुठिया रोटी, दूध-भात, मछरी-भात, बरा-रोटी, रोटी-पीठा, बरा-भजिया, खीर-सोंहारी, डुबकी-कड़ही, डुबकी-बफौरी, मालपुआ, गुलगुल भजिया, महरी-पेज


“लोक कथाओं में छत्तीसगढ़ का पहनावा”-


बारह हाथ की धोती, खुमरी-कमरा, 


“ठग अउ जग लोककथा संग्रह” : 


इस लोक कथा संग्रह में बत्तीस लोक कथाएँ संकलित हैं। प्रत्येक लोक कथा में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था दिखाई देती है। इनमें ग्रामीण पत्रों के अलावा राक्षस, देवी-देवता जैसे काल्पनिक पात्र हैं। कुछ कथाओं में पात्र को लेड़गा बताया गया है किंतु यही लेड़गा बड़ी चतुराई से बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य करने में सफल होता दिखाई देता है। कुछ लोक कथाओं में प्रकृति, पशु-पक्षी, जीव जन्तु, पेड़ पौधे, कीट पतंगे आदि का भी मानवीकरण किया गया है। कुछ कथाओं में चमत्कार, तिलस्म और जादू जैसी पारलौकिक शक्तियों का भी वर्णन किया गया है। कुछ कथाएँ कमरछठ पर केंद्रित हैं। कुछ कथाएँ श्राप पर आधारित हैं तो कुछ कथाओं में अंधविश्वास भी दिखाई देता है। जिज्ञासा बढ़ाती हुई इन लोक कथाओं का प्रवाह प्रशंसनीय है। ये लोक कथाएँ मनोरंजक, ज्ञानवर्द्धक और शिक्षाप्रद हैं। ये लोक कथाएँ बच्चों में कल्पनाशीलता बढ़ाएंगी जिससे उनमें रचनात्मकता का विकास होगा। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इस किताब की लोक कथाएँ बच्चों के चरित्र निर्माण में सहायक साबित होंगी।


“कमियाँ” : 


यह एक समीक्षा है अतः किताब की कुछ कमियों की ओर भी ध्यान आकर्षित करना मेरा कर्तव्य बनता है। पहली कमी - मुख पृष्ठ पर “दुर्लभ छत्तीसगढ़ी हास्य” शब्द-समूह निरर्थक लग रहा है क्योंकि संकलित सभी लोककथाएँ हास्य-प्रधान नहीं हैं। दूसरी कमी - व्याकरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी भाषा में अनुनासिक (चन्द्र बिंदु) का प्रयोग अपरिहार्य होता है। कुछ स्थानों पर अनुनासिक का प्रयोग ही नहीं किया गया है और कुछ स्थानों पर अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया गया है। हालाँकि यह टंकण त्रुटि भी हो सकती है। इन दो त्रुटियों के अलावा मुझे और कोई कमी नजर नहीं आई।


शुभकामनाएँ - 


राष्ट्रीय स्तर पर व्यंग्यकार के रूप में स्थापित वीरेंद्र सरल जी ने छत्तीसगढ़ की लोक कथाओं के संकलन में रुचि दिखाते हुए अथक परिश्रम से छत्तीसगढ़ी लोक कथाओं को पुस्तक का आकार देकर न केवल नयी पीढ़ी बल्कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के खजाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है इस उत्कृष्ट कार्य हेतु उन्हें मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ। 


शुभेच्छु एवं समीक्षक - 


अरुण कुमार निगम

संस्थापक : “छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल”

छत्तीसगढ़

संपर्क - 9907174334

जीमेल - arun.nigam56@gmail.com

कहानी - रिश्तेदारी

 कहानी - रिश्तेदारी 


‘पंखा तको अबड़ दिन होगे, पोंछावत नइहे।’ सोनिया चाऊँरधोवा गंजी म नल ले पानी झोंकत कहिस। सुनिस धुन नहीं ते योगेश अपन सुर म गाड़ी धोते रिहिस। 

‘डेना मन म भारी गरदा माड़ गेहे, पोंछ देते। बने ढंग के हवा आबेच नइ करय ...ऊपराहा म ये गर्मी लाहो लेवत हे।’

‘अरे ! पहिली एक ठिन बूता ल सिरजावन दे, ताहेन उहू ल कर देहूँ। तोर तो बस... एक सिध नइ परे राहय दूसर तियार रहिथे। मशीन नोहवँ भई मनखे औं। दू ले चार हाथ थोरे कर डारवँ।’

‘बतावत भर हौं जी, तोला अभीच करदे नइ काहत हौं।’ योगेश के भोगावत मइन्ता म झाड़ू पोंछा करत सोनिया सफई मारिस।

‘एकात ठिन अउ बूता होही, तेनो ल सुरता करके राखे रही। आज इतवार ये न, छुट्टी के दिन ल कइसे काटहूँ।’ - कंझावत कहिस अउ गुने लगिस योगेश - ’उल्टा के उल्टा छुट्टी के दिन अउ जादा बूता रहिथे बूजा हँ।‘

‘तोला तो कुछु कहना भी बेकार हे’ -सोनिया तरमरागे, चनचनाए लगिस अब - ‘दू मिनट नइ लगय, अतेक बेर ले घोरत हस घोरनहा मन बरोबर। एक घंटा ले जादा होगे, कोन जनि अउ कतेक नवा कर डरबे ते।’


’अरे ! तैं नइ समझस पगली ! मनखे बने बने पहिरे ओढ़े भर ले बने नइ होवय। लोगन सब ल देखथे। चेहरा बने हे त कपड़ा-लत्ता बने पहिरे हे कि नहीं। बने बने कपड़ा-लत्ता पहिरे त, गाड़ी बने साफ सुग्घर हे कि नहीं। गाड़ी साफ सुग्घर हे, त मुड़ कान म बने तेल-फूल लगे हे कि नहीं। तेल-फूल लगे हे, त कंघी-उँघी कोराए हे कि नहीं..... वोकर लमई ल सुनके सोनिया मुँह ल फारके गुने लगिस- ‘का होगे ये बैसुरहा ल आज।’

योगेश रेल के डब्बा कस लमाते रिहिस - ‘सुघराई सबो डाहर ले देखे जाथे। चिक्कन चिक्कन खाए अउ गोठियाए भर ले सुघरई नइ होवय। चिक्कन चिक्कन रेहे, खाए अउ गोठियाए भर ल दिखत के श्याम सुन्दर उड़ाए म ढमक्का कहिथे’ - अइसे काहत जोर से खलखलाके हाँस तको भरिस।

‘बात म तो ...... तोर ले कोनो नइ जीते सकय। गोठियाबे ते गदहा ल जर आ जही।’ सोनिया के मुँह थोरिक फूलगे।

मनाए के मुड म योगेश कहिस - ’कोन जनि हमरेच घर म अतेक कहाँ ले गरदा आथे, चीन्हे जाने अस।’ सोनिया ओकर गोठ ल सुनके कलेचुप रंधनीखोली कोति रेंग दिस।

योगेश जब गाड़ी धोथे त एक-डेढ़ घंटा लगि जथे। तरी-ऊपर, इतरी-भीतरी फरिया-अंगरी डार-डारके धोथे। सबले पहिली सादा पानी मारके धुर्रा-माटी ल भिंजोथे। फेर वोला शैम्पू पानी लगे फरिया म रगड़थे। तेकर पीछु साफ पानी म फेर कपड़ा मारके धोथे। तभे तो देखइया मन कहिथे -‘भारी जतन के रखे हस गा अपन गाड़ी ल ?’ 

कोनो कहिथे - ’अतेक दिन ले बऊरे तभो अभीन ले नवा के नवच हे जी।‘ 

अइसन सब सुनके योगेश ल गरब नइ होवय भलकुन कहइया मन ल वो खुदे कहिथे- ’गाड़ी हमर हाथ गोड़ होथे, एकर देखभाल बने करबोन त ये हली-भली हमर संग देही। इहीच ल बने नइ रखबोन त कतेक संग देही।’ बने तको ल कहिथे।

‘फरी पानी मारके बस तीरियावत रिहिसे। ओतके बेरा दुवार कोति ले सिटकिनी के आरो आइस। योगेश देखथे - बनवारी अउ सुनीता दुवार म खड़े हे। 

बनवारी भीतर आवत हाँसत पूछिस -’अंदर आ सकथन नहीं वकील साहब।‘ 

’अरे ! आवव आवव‘ - योगेश आत्मीयता के पानी ओरछत कहिस - ‘अपने घर म तको पूछे बर लगथे ?’

बनवारी अउ सुनीता पहिली पइत योगेश घर आवत हे। योगेश जब गाँव म राहत रिहिसे त उहाँ इन्कर आना जाना होते रिहिसे। बनवारी के आए ले योगेश के मन म आसरा के बिरवा फूटगे -‘कहूँ इन केस के पइसा चुकाए बर तो नइ आवत हे।’ 

बनवारी के दसों ठिन केस चार सौ बीसी के। जेन बेरोजगार ओकर नजर म आइस उही ल चिमोटके पकड़िस। 

‘मंत्रालय म मोर अबड़ जोरदरहा पकड़ हावय।’ 

‘तोला नौकरी लगा देहूँ।’ 

‘तैं तो घर के आदमी अस, तोर ले का पइसा लेहूँ। हाँ, साहब सुधा मन ल खवाए-पियाए बर परथे। जादा नहीं एक लाख दे देबे।’

आखरी म सब चुकुम, बिन डकारे सब्बो हजम। कतको झिन जिद्दी मनखे मन धरके कूट तको दीन। सबो केस ल योगेश ह निपटाइस। सबो म बाइज्जत बरी। तबले बनवारी योगेश तीरन आए जाए लगे हे। एक दू पइत फोन म तगादा करिस योगेश ह त कहि दे रिहिसे-‘तैं पइसा के टेंशन झन ले, मिंजई होवइया हे, बस पइसा हाथ आइस अउ मैं लेके आतेच हौं।’

एक पइत कहि दे रिहिस -‘चना मिंजा कूटागे हे भइया, दू चार दिन म बेंचके तोर जम्मो फीस ल चुकता कर देथौं।’

योगेश अब वकीली के पइसा म शहरे म घर बना डारे हावय। तीज-तिहार म गाँव आना जाना होथे। सुनीता -बनवारी वोकर दीदी भाँटो हरे। तीर के न, दुरिहा के। अतेक तीर तको नहीं जिन्कर बर कुकरी-बोकरा के पार्टी मनावय अउ अतेक दुरिहा तको नहीं जिन ल भाजी-भात तको नइ खवाए जा सकय।


फेर मया, जुराव अउ लगाव हँ रिश्ता नता के बीच के दूरी ल नइ नापय। अपन अउ बिरान ल नइ चिन्हय।

‘अइ ... घर कोति ले आवत हौ कि कोनो डाहर ले घूमत-फिरत आवत हौ’ - सोनिया पानी देके पैलगी करत पूछिस। 

’घरे ले आवत हावन भाभी‘-सुनीता जवाब दिस। ननद भौजाई घर म निंग गे। योगेश अउ बनवारी अपन गोठियाए लगिन। उन्कर नहावत, जेवन करत ले मंझनिया अइसेनेहे निकल गे। संझा सारा-भाटो बाजार जाए बर निकल गे। 

घरे तीरन नानकुल हटरी लगथे। योगेश उही मेरन घर के जम्मो जरूरत के समान बिसा लेथे। साग-भाजी, किराना, कपड़ा-लत्ता तको। घूमे फिरे के मन करथे, तभे बाहिर जाथे। नइते इही मेरन दूनों प्राणी संघरा घूम लेथे। तीर तखार म उन्कर बने मान सम्मान तको हवय। सब कोनो वकील-वकीलीन कहिथे।

किराना के दूकान म डायरी चलथे। साग भाजी ल हाल बिसा लेथे। सबो झिन चिन्हथे जानथे तेकर सेति चिल्हर नइ रेहे या कुछू कमी बेसी म साग भाजी तको उधार दे देथे। योगेश घलो काकरो हरे खंगे म संग निभा देथे। अपन अउ बिरान के लगाव-दुराव व्यवहार ले बनथे, रिश्ता -नता के जुराव भर ले नइ होवय।

’पाला भाजी का भाव लगाए हस पटैलीन ?’ -योगेश पूछिस।

’चालीस रूपिया ताय ले ले ... के किलो देववँ ?’ पटैलीन एक हाथ म तराजू बाट ल सोझिवत अउ दूसर हाथ म भाजी के जुरी ल उठावत कहिस। 

’आधा किलो दे दे।’ 

’भाजी मन बने ताजा हावय।’ - बनवारी मुचमुचावत कहिस।

’हौ ..... मैं सरीदिन ताजा लानथौं .... पूछ ले वकील साहब ल ..... न वकील साहब’ - पटैलीन भाजी तऊलत योगेश ल हुँकारू बर संग जोरिस। 

’इन्कर बहुत बड़े बारी हावय। आठो काल बारा महीना इमन इही बूते करथे।‘ योगेश, बनवारी ल बताए लगिस।

बाजू म बइठे बिसौहा कहिस - ’खीरा नइ लेवस वकील साहब !’

’पहिली फर आय तइसे लगथे, बने केंवची-केंवची दीखत हे‘ - बनवारी कहिस।

योगेश के मन तो नइ रिहिसे। बनवारी ल खीरा के बड़ई करत देख माँगी लिस -’ले आधा किलो दे दे।‘

’एक दे देथौं न .....‘ बनवारी के बड़ई ले बिसौहा के आसरा बाढ़गे रिहिस। योगेश इन्कार नइ करे सकिस -’कइसे किलो  लगाए हस ?‘

’तोर बर तीस रूपिया हे, दूसर बर चालिस रूपिया लगाथौं‘.........बिसौहा खुश होवत कहिस - तैं तो जानते हस ... तोर बर कमतीच लगाथौं।’ अउ हें हें हें करत हाँसे लगिस।

एकात दू ठिन अउ साग भाजी लेके दूनों घर लहुट गे। सुनीता नान्हे लइका ल सेंक-चुपरके वोकर हाथ गोड़ ल मालिस करत रहय। वकील घर ठऊँका नान्हे लइका आए हवय। वोकरे अगोरा अउ सुवागत के तियारी के चलते गजब दिन होगे रिहिस सोनिया मइके नइ गे पाए रिहिसे। एक तो एकसरूवा मनखे उपराहा म नान्हे लइका के देखभाल, उहू फीफियागे रिहिसे। मन होवत रिहिसे दू चार दिन बर मइके जाए के। उन्कर आए ले वोकर बनौती बनगे। 

‘दीदी मन आए हे त इन्कर राहत ले मइके होके आ जातेवँ कहिथौं।’ - रतिहा बियारी करे के पीछु सोनिया पूछिस। 

’सगा-सोदर के सेवा सत्कार ल छोड़के, इन्करे मुड़ म घर के बोझा ल डारके मइके जवई नइ फभय भई।‘ -योगेश कहिस।

‘जावन दे न भैया, मैं तो हाववँ। कतेक मार बूता हे इहाँ, घर के देखरेख ल मैं कर डारहूँ।’

’हौ...बने तो काहत हे, सुनीता सबो ल कर डारही, नइ लगय।‘ बनवारी सुनीता ल पंदौली दीस।

बिहान भर सोनिया मइके गै। रहिगे तीन परानी - वकील, बनवारी अउ सुनीता। योगेश आन दफे कछेरी ले आवय त हटरी जाए के, कभू राशन के, त कभू अहू काँही लगेच राहय। सोनिया के जाए ले उल्टा दिन हली भली कटे लगिस। होवत बिहनिया नाश्ता पानी तियार करके सुनीता घर के जम्मो बूता ल सिरजा डारय। योगेश के कपड़ा लत्ता ल तको धो डारय। वोकर कछेरी के आवत ले बनवारी नवा-नवा, ताजा-ताजा साग भाजी लान डारय। जेवन बेरा म तियार मिल जाय गरमागरम। सुनीता रहय त कभू बाँचे भात के अंगाकर बना देवय, त कोनो दिन ओकरे फरा बना देवय।

योगेश कहय -‘तैं काबर तकलीफ करथस, मैं आतेवँ त साग भाजी ल ले लानतेवँ।’ 

’का होही जी, आखिर हमीच मन ल तो खाना हे।’ बनवारी टोंक देवय।

’एकेच तो आवय भैया ! तैं लानस कि इही लानय।’ सुनीता के गोठ सुनके योगेश के मुँह बँधा जाय। 

हफ्ता भर कइसे कटिस पतेच नइ चलिस। शनिच्चर के दिन रतिहा सोनिया के फोन आगे -‘कालि लेहे बर आबे का ?’

‘नइ अवावय, सगा सोदर ल छोड़के मैं कइसे आहूँ तँही बता ? तोर भाई एक कनक छोड़ देही .... त नइ  बनही।’

सुनीता कहिस -’चल देबे न भइया, हमूमन कालि घर जाबोन, अइसे तइसे पन्द्रही निकलगे, हमरो घर म काम बूता परे हावय।‘

‘तैं ओति चल देबे हमन गाँव कोति निकल जबो।’ बनवारी एक सीढ़ी अउ चढ़ गिस।

बिहान भर संझा योगेश सोनिया ल लेके लहुट आइस। चहा पानी पीके झोला धरके हटरी निकल गै। 

‘अबड़ दिन बाद आवत हस वकील साहब, का देवौं बता ?’ पसरा लमाए बिसौहा कहिस।

‘ससुरार चल दे रेहेंव, उहाँ अबड़ अकन साग-भाजी जोर दे हावय, पताल, मिर्चा अउ धनिया भर दे।’

ओतके ल झोला म झोंका के पूछिस -’के पइसा ?‘ 

’अढ़ई सौ।‘

’अढ़ई सौ ?‘ योगेश मजाक समझ हाँसत चेंधिस।

बिसौहा फोरियाके बताइस -‘बीच म दमांद बाबू आवत रिहिसे न, ओकरे हाथ के तीन किलो खीरा, दू किलो करेला अउ भाँटा के पइसा बाँचे रिहिस।’ 

योगेश कुछु नइ बोलिस, बिसौहा के पइसा ल जमा करके रेंगे लगिस। बाजू म बइठे पटैलीन ओतेक बेर ल चुप रिहिसे। वोला रेंगत देखिस त चिचियाइस -‘मोरो ल देवत हस का वकील साहेब !’

‘तोर कतेक असन आवत हे ?’

‘जादा नइहे ... अस्सी रूपिया ताय।’

योगेश ओकरो चुकारा ल करिस। घर आके पूछिस -‘राशन दूकान थोरे जाए बर लगही। लगही त दे, ले लानथौ।’ सोनिया अपन काम म लगे रिहिस। कुछु आरो नइ मिलिस। वोह अपन गाहना गुरिया, चुरी चाकी  ल हेरे-धरे, सहेजे-सिरजाए म लगे रहय। माईलोगन मन कतको दुरिहा ले आए रहय, कतकोन थके हन कहत रहय, फेर अपन घर दुवार के साफ सफई, गहना गुरिया के हेरई तिरियई करे बर थोरको थकास नइ मरय, न कभू बिट्टावय। योगेश वोकर परवाह करे बिगर झाँकत-ताकत रंधनी कुरिया म गइस अउ सब समान ल तलाशे-तवाले लगिस। ओला बड़ ताज्जुब होइस। रसोई के सबो समान उपराहा उपराहा रिहिस। काँहीच के कमी नइ रिहिसे। सूजी रवा, साबुनदाना अउ शक्कर तको पर्याप्त रिहिस। जबकि सुनीता बीच बीच म सूजी के हलवा, साबूनदाना के बड़ा अउ एक दिन खीर तको बनाए रिहिस। योगेश राशन दूकान के डायरी ल निकालिस।

डायरी ल देखिस त ओमा हफ्ता भर म तीन पइत ले समान आए रिहिसे। वो तीन पइत म कम से कम हजार भर के समान आए रिहिसे।

‘अतेक अकन समान कइसे अउ काबर आए रिहिस’ - योगेश इही गुणा भाग लगाते रिहिसे, ओतके म सोनिया के आरो आइस - ’कस जी ..... सुनत हस ?‘

‘हाँ, बता।’-योगेश मनढेरहा जवाब दिस।

‘मोर कान के झुमका, दूनो नवा पैरी अउ सोन के अँगूठी मन नइ दीखत हे, कहूँ तिरिया के रखे हस का ?’

’का ? मैंहँ तो गोदरेज ल तोर गए के बाद खोल के देखेच नइ हौं।‘ योगेश के मन म कुछ-कुछ शंका उभरे लगिस। वोकर समझ म हफ्ता भर के सबो घटना रहि-रहिके आए जाए लगिस। छाती के धुकधुकी बाढ़े लगिस।

’त सबो गहना मन गै कहाँ ?‘ अब सोनिया के बिफड़े के बेरा रिहिसे।

’पहिन के तो गे रेहेस न ..... अउ चाबी तको तोरे तीरन रहिथे।‘

योगेश के बात सुनके सोनिया के जी धक्क ले होगे -’सबो गाहना ल थोरे पहिनके गे रेहेंव..... अउ चाबी ल तको इहेंचे छोड़ दे रेहेंव, ........गोदरेज के ऊपर म .......।‘ वो रोवाँसू होवत चिचियाइस।

अब मुड़ धरे के बारी योगेश के रिहिसे- 

‘निभगे रिश्तेदारी हँ।’

धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346