Monday, 27 January 2025

आजादी के लड़ाई म राजनांदगांव जिले के योगदान

 








आजादी के लड़ाई म राजनांदगांव जिले के योगदान 


  जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस म गरम दल के नेता मन के धाक जमे लगिस तब भारतीय जनता म अंग्रेजी सासन के विरुद्ध भीतरे- भीतर आगी सुलगत 

गिस। वो समय लाल- बाल -पाल के रूप म लाला लाजपतराय, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक अउ विपिनचंद्र पाल के अब्बड़ सोर रिहिस। 1905 म बंगाल विभाजन ले ये चिंगारी ह आगी बन गे अउ जनता मन अंग्रेज़ी सासन बर बागी बनगे। हमर देश के नेता मन जनता ल समझाय लगिस कि अंग्रेजी सासन फूट डालव अउ राज करव के नीति ल अपना के शुरू ले सासन करत आवत हे अउ बंगाल के विभाजन येकर एक बड़का उदाहरण हे।  देशभर म अंग्रेजी सासन के विरुद्ध वातावरण बनिस। अइसन बेरा म 1905  म राजनांदगांव में ठाकुर साहब के अगवाई म छात्र मन के पहली हड़ताल होइस ।ठाकुर साहब अपन सहयोगी छविराम चौबे अउ गज्जू लाल शर्मा के संग मिलके राजनांदगांव म राष्ट्रीय आंदोलन ल ठाहिल बनाइस। ये देश के छात्र मन के पहली हड़ताल माने जाथे।

अइसन दौर म छत्तीसगढ़ के कांग्रेस सदस्य मन घलो गरम दल के नेता मन ले प्रभावित होके उंकर संग सामिल होगे। बछर 1907 म सूरत म आयोजित कांग्रेस अधिवेशन म कांग्रेस दू भाग म बंट गे। अब उदारवादी नेता मन के जगह उग्रवादी दल के नेतामन के दौर चालू होगे अउ अंग्रेजी सासन के सोसन के विरुद्ध जनता संगठित होय लगिस। अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले म घलो आजादी खातिर जन जागृति फैलाय बर सुघ्घर कारज होइस। छत्तीसगढ़ म स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के अर्जुन ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह बछर 1909 म राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन। आगू चलके सरस्वती पुस्तकालय ह राजनीति गतिविधि के ठउर बनगे। अंग्रेजी सासन ल पता चलिस त सरस्वती पुस्तकालय ल जब्त कर लिस।


  बछर 1915 म महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका ले भारत लहुंटिस अउ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस म सामिल होगे। गांधी जी ह देश के दसा ल जाने खातिर दौरा करिन। अंग्रेज मन के सोसन ल जानके वोहा अहिंसक ढंग ले लड़ाई के योजना बना के जन जागृति के सुघ्घर कारज करिन। धीरे से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस म गांधी जी के धाक जमगे जेहा आजादी तक जारी रिहिस। गांधी जी के मानना रिहिस कि अंग्रेजी सासन ले अहिंसा अउ सत्याग्रह ल अपनाके लड़ना ठीक रहि। येकर प्रयोग गांधी जी ह दक्षिण अफ्रीका म मजदूर मन के हक खातिर लड़ाई म कर चुके रिहिन। भारत म खेड़ा सत्याग्रह के माध्यम ले गांधी जी अहिंसक आंदोलन के सुरुआत करिन। सितंबर 1920 में कलकत्ता म लाला लाजपत राय के अध्यक्षता म कांग्रेस के विशेष अधिवेशन आयोजित होइस ।येमा गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाय के स्वीकृति दे गिस ।फेर कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर में 26 दिसंबर 1920  म होइस जेकर अध्यक्षता विजय राघवाचार्य करिन ।ये अधिवेशन म हमर छत्तीसगढ़ ले आने नेता मन  संग ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह सामिल होइन।रोलेट एक्ट जइसे करिया कानून अउ जलियांवाला बाग हत्याकांड के सेति देश भर म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध चिंगारी सुलगत रिहिस हे। अइसन समय म गांधी जी का आह्वान कर चुके रिहिन कि अंग्रेज

 सरकार के गुलामी ले छुटकारा पाय खातिर स्थानीय समस्या ल आधार बना के असहयोग आंदोलन चालू करय। 

ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह असहयोग आंदोलन के समय वकालत छोड़के राजनांदगांव म राष्ट्रीय विद्यालय के स्थापना करिन ।हजार भर के संख्या म चरखा बनवा के जनता ल बांटिस । चरखा के महत्तम समझाइस अउ खादी के प्रचार करिन। ठाकुर साहब खादी पहने लागिस।राजनांदगांव ले हाथ में लिखे पत्रिका घलो निकालिन जउन ह जन चेतना बर अब्बड़ सहायक होइस। 


 गांधी जी जब पहिली बार 20 दिसंबर 1920 म छत्तीसगढ़ आइस त  इहां के नेतामन के संगे -संग जनता मन म अब्बड़ उछाह छागे। गांधी जी कंडेल नहर सत्याग्रह के सिलसिले म आय रिहिन। गांधी जी के छत्तीसगढ़ आय ले अंग्रेजी सासन म हड़कंप मचगे।गांधी जी के कंडेल जाय से पहिलीच अंग्रेजी सासन ह आंदोलनरत किसान अउ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के बात ल मान लिस।


सन 1923 में जब झंडा सत्याग्रह चालू होइस त ठाकुर साहब ल प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिला ले सत्याग्रही भेजे के काम सौंपे गिस।नागपुर म सत्याग्रह आंदोलन चालू होइस ।झटकुन  नागपुर सत्याग्रह के प्रमुख ठउर  बनगे। 1924 में जब बीएनसी मिल के दुबारा हड़ताल चालू होइस तब ठाकुर प्यारेलाल सिंह ल जिला बदल कर दे गिस। राजनांदगांव ले निष्कासित करे के बाद सन 1925 म ठाकुर साहब रायपुर चले गे अउ अपन जिनगी के आखिरी तक ऊंहचे रहि के अपन राजनीतिक काम मन ल संचालन करत रिहिन। ठाकुर साहब के उदिम ले राजनंदगांव,  छुईखदान, खैरागढ़ रियासत मन मा कांग्रेस संगठन के निर्माण होइस।


बछर 1929 म भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन म पंडित जवाहरलाल नेहरू के अध्यक्षता म पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव पारित होइस ।येकर बाद  26 जनवरी 1930 म स्वाधीनता दिवस के रूप म मनाय गिस । गांधी जी देशवासी मन ले आह्वान कर चुके रिहिन कि स्थानीय समस्या ल लेके  आंदोलन चालू करय। अइसन बेरा म राजनांदगांव ,छुई खदान, मोहला ,मानपुर , कौड़ीकसा,डोगरगढ़ डोगरगांव ,  सहित छुरिया क्षेत्र के बादराटोला, चिरचारीकला, घोघरे, बापूटोला ( चिचोला)क्षेत्र ह आंदोलन के प्रमुख केंद्र बन गे।

   राजनांदगांव म विद्रोही कवि कुंज बिहारी  चौबे छात्र जीवन म  अंग्रेज शासन के झंडा ल उतार के भारतीय झंडा फहरा दिस । येकर सेति वोला बेत ले अब्बड़ मारे गिस पर वोहा महात्मा गांधी के जय अउ भारत माता के जय कहत गिस। 

1930 में गांधीजी ह नमक कानून तोड़ो आंदोलन चालू करिन अउ येकर असर  राजनांदगांव जिला म देखे ल मिलिस। सन 1930 में राजनांदगांव म स्टेट कांग्रेस के स्थापना  आर . एस. रूईकर के मार्गदर्शन म होइस ।कांग्रेस के प्रथम बैठक मानिक भाई गोंदिया वाले के मकान म रखे गिस जेमा जिले के 162 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन भाग लिस। फरवरी 1932 में देश -प्रदेश के  संगे- संग राजनंदगांव, छुईखदान ,छुरिया के बादराटोला बापूटोला (चिचोला), मानपुर , कौड़ीकसा,मोहला ,डोंगरगांव, डोंगरगढ़  क्षेत्र म ब्रिटिश शासन अउ स्थानीय राजशाही के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन आवाज बुलंद करिन। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्राम दास बैरागी ला आजादी के लड़ाई म भाग ले खातिर सिद्ध दोष कैदी के रूप म  1932 म पहले रायपुर केंद्रीय जेल म रखे गिस फेर वोला अमरावती जेल में स्थानांतरित कर दे गिस।


22 नंबर 1933 म महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ म द्वितीय प्रवास के रूप म आइस। येकर सुरूआत दुर्ग ले होइस।हरिजन मन के उत्थान, तिलक फंड अउ स्वराज्य फंड खातिर आयोजित कार्यक्रम म दुर्ग के मोती तालाब मैदान म गांधी जी के सभा म 50,000 ले अधिक लोगन मन  सामिल होइस। गांधी जी के दौरा 22 नवंबर ले 28 नवंबर तक रिहिन हे। 24 नवंबर 1933 म गांधी जी ह पं. सुंदर लाल शर्मा द्वारा संचालित सतनामी आश्रम के निरीक्षण करिन।  येकर बार सभा ल संबोधन करे के बेरा म शर्मा जी द्वारा करे गे हरिजन उद्धार के कारज बर गांधी जी ह उंकर अब्बड़ तारीफ करिन अउ ये काम खातिर शर्मा जी ल अपन गुरु कहिस। शर्मा जी ह गांधी जी ले 8 बछर पहिली हरिजनोंद्धार के बुता ल चालू कर दे रिहिन।


 गांधी जी के ये दूसरा दौरा  ह राजनांदगांव जिला के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  मन ल अब्बड़ प्रभावित करिन अउ गांधी जी के दर्शन लाभ पाय बर इहां के कतको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन दुर्ग पहुंचिस । घोघरे, छुरिया के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वेश्वर प्रसाद यादव जउन ह लालूटोला स्कूल म शिक्षक रिहिन वोहा अपन स्कूल ल बंद करके गांधी जी के दर्शन करे खातिर अपन चचेरा भाई विद्या प्रसाद यादव जी के संग गिस।

सन 1938 म हरिपुर कांग्रेस अधिवेशन म राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ह रियासती जनता मन ले आजादी के आंदोलन म भाग लेय के आह्वान करिन। ए बछर छुईखदान म जंगल सत्याग्रह चालू होगे। गोवर्धन लाल वर्मा, गुलाब दास वैष्णव, अमृतलाल महोबिया मन सत्याग्रह के अगुवाई करिन।ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह अपन प्रमुख सहयोगी राम नारायण हर्षुल मिश्र ल  कांग्रेस संगठन के मार्गदर्शन बर कवर्धा भेजिस ।राजनांदगांव जंगल सत्याग्रह के अगवाई ठाकुर लोटन सिंह के हाथ म रिहिन।


छत्तीसगढ़ ह वन संपदा ले भरपूर हावय। येहा इहां के रहवासी मन के जिनगी गुजारे के प्रमुख साधन हरे। अंग्रेजी सासन के गलत वन नीति के सेति जंगल क्षेत्र के रहवासी मन ल नंगत तकलीफ उठाय ल पड़त रिहिस। अंग्रेज जंगल ल अपन संपत्ति समझय। रक्षित वन क्षेत्र म मवेशी मन ल घास चराय खातिर कांजी हाउस म डाल दय येकर ले पशुपालक मन ल अब्बड़ परेसान होवय।अइसने जब लोगन मन जंगल ले लकड़ी अउ कांदी ( घास)काट के लाय त अंग्रेज मन नाना प्रकार के अतियाचार करय अउ गिरफ्तार कर लेय। येकर ले अंग्रेजी सासन के विरुद्ध जनता  मन म अब्बड़ गुस्सा छमागे।येकर परिणाम जंगल सत्याग्रह के रूप म सामने आइस। हमर छत्तीसगढ म सिहावा नगरी डाहर के जंगल सत्याग्रह ह देशभर म एक मिसाल बनगे।


जंगल सत्याग्रह अउ बादराटोला गोलीकांड 


राजनांदगांव रियासत म बछर 1939 म जंगल सत्याग्रह चालू होइस।  येकर सूचना भेज दे गिस।21 जनवरी 1939 के दिन राजनांदगांव जिले के छुरिया विकासखण्ड के बादराटोला म आस -पास  गांव  के जनता मन जंगल सत्याग्रह खातिर इकट्ठा होय लगिस। हजारों के भीड़ बादराटोला म सकला गे। इहां जंगल सत्याग्रह के अगुवाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बुध लाल साहू करत रिहिन। तहसीलदार सुखदेव देवांगन ह 50 सशस्त्र पुलिस बल के संग बादराटोला पहुंच के सबले पहिली जंगल सत्याग्रह के मुखिया बुध लाल साहू ल गिरफ्तार कर लिन। येकर ले बादराटोला म सकलाय लोगन मन ल अब्बड़ गुस्सा आगे अउ तहसीलदार ल भीड़ ह घेर लिन।  बुधलाल साहू के चरवाहा रामाधीन गोंड ह तहसीलदार के सामने आके खड़े होगे अउ  महात्मा गांधी के जय,भारत माता के जय,वंदे मातरम के नारा लगा के गिरफ्तारी के विरोध करिस। भीड़ के  गुस्सा ल देखके तहसीलदार घबरा गे अउ जनता ल तितर बितर करे खातिर पुलिस मन ल गोली चलाय के आदेश दे दिस। ये गोली काण्ड म रेवती दास ल गोली लगिस अउ घायल स्थिति म अस्पताल ले जाय गिस। रामाधीन गोंड के छाती म गोली लगिस अउ शहीद होगे। सिरिफ 27 बछर के उमर म रामाधीन अपन मातृभूमि के रक्षा खातिर सहीद होगे अउ इतिहास म अमर होगे।  1939 म

जंगल सत्याग्रह म सामिल होय खातिर विश्वेश्वर प्रसाद यादव, विद्या प्रसाद यादव, तुलसी प्रसाद मिश्रा अउ आने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन ल जेल म डाल दे गिस।


राजनांदगांव , खैरागढ़ - छुईखदान - गंडई अउ मानपुर -मोहला -अंबागढ़ चौकी जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन म  ठाकुर प्यारेलाल सिंह,लोटन सिंह ठाकुर,  गोवर्धन लाल वर्मा, गुलाब दास वैष्णव, अमृत लाल महोबिया, दामोदर प्रसाद त्रिपाठी, छवि राम चौबे, गज्जू लाल शर्मा 

रामाधीन गोंड,विश्राम दास बैरागी, बुध लाल साहू,रेवती दास, बहुर सिंह,विश्वेश्वर प्रसाद यादव, विद्या प्रसाद यादव, तुलसी प्रसाद मिश्रा, दामोदर दास टावरी,पी. वी. दास,देव प्रसाद आर्य, कुंज बिहारी चौबे,कन्हैया लाल अग्रवाल, दशरथ साहू,ईशना पवार , सतानंद साहू के संगे -संग आने नांव सामिल हे। वनांचल मानपुर -मोहला क्षेत्र म कतको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रिहिन। अइसन भूले बिसरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन उपर काम करे के जरूरत हे।


                ओमप्रकाश साहू अंकुर 

           सुरगी, राजनांदगांव।


Thursday, 23 January 2025

नवा साल मा का नवा

 नवा साल मा का नवा


                   मनखे मन कस समय के उमर घलो बाढ़थे, येदे देखते देखत एक साल अउ बाढ़गे। 2024 ले 2025 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 

              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का चौबीस अउ का पच्चीस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।

           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन। वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।

               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। बहर हाल सरी दुनिया मा जनम मरण, दिन तिथि इही अनुसार चलत हे ता, नवा बछर के बधाई बनबेच करथे, सादर सादर बधाई -----जोहार


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कहानी - रिश्तेदारी

 कहानी - रिश्तेदारी 


‘पंखा तको अबड़ दिन होगे, पोंछावत नइहे।’ सोनिया चाऊँरधोवा गंजी म नल ले पानी झोंकत कहिस। सुनिस धुन नहीं ते योगेश अपन सुर म गाड़ी धोते रिहिस। 

‘डेना मन म भारी गरदा माड़ गेहे, पोंछ देते। बने ढंग के हवा आबेच नइ करय ...ऊपराहा म ये गर्मी लाहो लेवत हे।’

‘अरे ! पहिली एक ठिन बूता ल सिरजावन दे, ताहेन उहू ल कर देहूँ। तोर तो बस... एक सिध नइ परे राहय दूसर तियार रहिथे। मशीन नोहवँ भई मनखे औं। दू ले चार हाथ थोरे कर डारवँ।’

‘बतावत भर हौं जी, तोला अभीच करदे नइ काहत हौं।’ योगेश के भोगावत मइन्ता म झाड़ू पोंछा करत सोनिया सफई मारिस।

‘एकात ठिन अउ बूता होही, तेनो ल सुरता करके राखे रही। आज इतवार ये न, छुट्टी के दिन ल कइसे काटहूँ।’ - कंझावत कहिस अउ गुने लगिस योगेश - ’उल्टा के उल्टा छुट्टी के दिन अउ जादा बूता रहिथे बूजा हँ।‘

‘तोला तो कुछु कहना भी बेकार हे’ -सोनिया तरमरागे, चनचनाए लगिस अब - ‘दू मिनट नइ लगय, अतेक बेर ले घोरत हस घोरनहा मन बरोबर। एक घंटा ले जादा होगे, कोन जनि अउ कतेक नवा कर डरबे ते।’


’अरे ! तैं नइ समझस पगली ! मनखे बने बने पहिरे ओढ़े भर ले बने नइ होवय। लोगन सब ल देखथे। चेहरा बने हे त कपड़ा-लत्ता बने पहिरे हे कि नहीं। बने बने कपड़ा-लत्ता पहिरे त, गाड़ी बने साफ सुग्घर हे कि नहीं। गाड़ी साफ सुग्घर हे, त मुड़ कान म बने तेल-फूल लगे हे कि नहीं। तेल-फूल लगे हे, त कंघी-उँघी कोराए हे कि नहीं..... वोकर लमई ल सुनके सोनिया मुँह ल फारके गुने लगिस- ‘का होगे ये बैसुरहा ल आज।’

योगेश रेल के डब्बा कस लमाते रिहिस - ‘सुघराई सबो डाहर ले देखे जाथे। चिक्कन चिक्कन खाए अउ गोठियाए भर ले सुघरई नइ होवय। चिक्कन चिक्कन रेहे, खाए अउ गोठियाए भर ल दिखत के श्याम सुन्दर उड़ाए म ढमक्का कहिथे’ - अइसे काहत जोर से खलखलाके हाँस तको भरिस।

‘बात म तो ...... तोर ले कोनो नइ जीते सकय। गोठियाबे ते गदहा ल जर आ जही।’ सोनिया के मुँह थोरिक फूलगे।

मनाए के मुड म योगेश कहिस - ’कोन जनि हमरेच घर म अतेक कहाँ ले गरदा आथे, चीन्हे जाने अस।’ सोनिया ओकर गोठ ल सुनके कलेचुप रंधनीखोली कोति रेंग दिस।

योगेश जब गाड़ी धोथे त एक-डेढ़ घंटा लगि जथे। तरी-ऊपर, इतरी-भीतरी फरिया-अंगरी डार-डारके धोथे। सबले पहिली सादा पानी मारके धुर्रा-माटी ल भिंजोथे। फेर वोला शैम्पू पानी लगे फरिया म रगड़थे। तेकर पीछु साफ पानी म फेर कपड़ा मारके धोथे। तभे तो देखइया मन कहिथे -‘भारी जतन के रखे हस गा अपन गाड़ी ल ?’ 

कोनो कहिथे - ’अतेक दिन ले बऊरे तभो अभीन ले नवा के नवच हे जी।‘ 

अइसन सब सुनके योगेश ल गरब नइ होवय भलकुन कहइया मन ल वो खुदे कहिथे- ’गाड़ी हमर हाथ गोड़ होथे, एकर देखभाल बने करबोन त ये हली-भली हमर संग देही। इहीच ल बने नइ रखबोन त कतेक संग देही।’ बने तको ल कहिथे।

‘फरी पानी मारके बस तीरियावत रिहिसे। ओतके बेरा दुवार कोति ले सिटकिनी के आरो आइस। योगेश देखथे - बनवारी अउ सुनीता दुवार म खड़े हे। 

बनवारी भीतर आवत हाँसत पूछिस -’अंदर आ सकथन नहीं वकील साहब।‘ 

’अरे ! आवव आवव‘ - योगेश आत्मीयता के पानी ओरछत कहिस - ‘अपने घर म तको पूछे बर लगथे ?’

बनवारी अउ सुनीता पहिली पइत योगेश घर आवत हे। योगेश जब गाँव म राहत रिहिसे त उहाँ इन्कर आना जाना होते रिहिसे। बनवारी के आए ले योगेश के मन म आसरा के बिरवा फूटगे -‘कहूँ इन केस के पइसा चुकाए बर तो नइ आवत हे।’ 

बनवारी के दसों ठिन केस चार सौ बीसी के। जेन बेरोजगार ओकर नजर म आइस उही ल चिमोटके पकड़िस। 

‘मंत्रालय म मोर अबड़ जोरदरहा पकड़ हावय।’ 

‘तोला नौकरी लगा देहूँ।’ 

‘तैं तो घर के आदमी अस, तोर ले का पइसा लेहूँ। हाँ, साहब सुधा मन ल खवाए-पियाए बर परथे। जादा नहीं एक लाख दे देबे।’

आखरी म सब चुकुम, बिन डकारे सब्बो हजम। कतको झिन जिद्दी मनखे मन धरके कूट तको दीन। सबो केस ल योगेश ह निपटाइस। सबो म बाइज्जत बरी। तबले बनवारी योगेश तीरन आए जाए लगे हे। एक दू पइत फोन म तगादा करिस योगेश ह त कहि दे रिहिसे-‘तैं पइसा के टेंशन झन ले, मिंजई होवइया हे, बस पइसा हाथ आइस अउ मैं लेके आतेच हौं।’

एक पइत कहि दे रिहिस -‘चना मिंजा कूटागे हे भइया, दू चार दिन म बेंचके तोर जम्मो फीस ल चुकता कर देथौं।’

योगेश अब वकीली के पइसा म शहरे म घर बना डारे हावय। तीज-तिहार म गाँव आना जाना होथे। सुनीता -बनवारी वोकर दीदी भाँटो हरे। तीर के न, दुरिहा के। अतेक तीर तको नहीं जिन्कर बर कुकरी-बोकरा के पार्टी मनावय अउ अतेक दुरिहा तको नहीं जिन ल भाजी-भात तको नइ खवाए जा सकय।


फेर मया, जुराव अउ लगाव हँ रिश्ता नता के बीच के दूरी ल नइ नापय। अपन अउ बिरान ल नइ चिन्हय।

‘अइ ... घर कोति ले आवत हौ कि कोनो डाहर ले घूमत-फिरत आवत हौ’ - सोनिया पानी देके पैलगी करत पूछिस। 

’घरे ले आवत हावन भाभी‘-सुनीता जवाब दिस। ननद भौजाई घर म निंग गे। योगेश अउ बनवारी अपन गोठियाए लगिन। उन्कर नहावत, जेवन करत ले मंझनिया अइसेनेहे निकल गे। संझा सारा-भाटो बाजार जाए बर निकल गे। 

घरे तीरन नानकुल हटरी लगथे। योगेश उही मेरन घर के जम्मो जरूरत के समान बिसा लेथे। साग-भाजी, किराना, कपड़ा-लत्ता तको। घूमे फिरे के मन करथे, तभे बाहिर जाथे। नइते इही मेरन दूनों प्राणी संघरा घूम लेथे। तीर तखार म उन्कर बने मान सम्मान तको हवय। सब कोनो वकील-वकीलीन कहिथे।

किराना के दूकान म डायरी चलथे। साग भाजी ल हाल बिसा लेथे। सबो झिन चिन्हथे जानथे तेकर सेति चिल्हर नइ रेहे या कुछू कमी बेसी म साग भाजी तको उधार दे देथे। योगेश घलो काकरो हरे खंगे म संग निभा देथे। अपन अउ बिरान के लगाव-दुराव व्यवहार ले बनथे, रिश्ता -नता के जुराव भर ले नइ होवय।

’पाला भाजी का भाव लगाए हस पटैलीन ?’ -योगेश पूछिस।

’चालीस रूपिया ताय ले ले ... के किलो देववँ ?’ पटैलीन एक हाथ म तराजू बाट ल सोझिवत अउ दूसर हाथ म भाजी के जुरी ल उठावत कहिस। 

’आधा किलो दे दे।’ 

’भाजी मन बने ताजा हावय।’ - बनवारी मुचमुचावत कहिस।

’हौ ..... मैं सरीदिन ताजा लानथौं .... पूछ ले वकील साहब ल ..... न वकील साहब’ - पटैलीन भाजी तऊलत योगेश ल हुँकारू बर संग जोरिस। 

’इन्कर बहुत बड़े बारी हावय। आठो काल बारा महीना इमन इही बूते करथे।‘ योगेश, बनवारी ल बताए लगिस।

बाजू म बइठे बिसौहा कहिस - ’खीरा नइ लेवस वकील साहब !’

’पहिली फर आय तइसे लगथे, बने केंवची-केंवची दीखत हे‘ - बनवारी कहिस।

योगेश के मन तो नइ रिहिसे। बनवारी ल खीरा के बड़ई करत देख माँगी लिस -’ले आधा किलो दे दे।‘

’एक दे देथौं न .....‘ बनवारी के बड़ई ले बिसौहा के आसरा बाढ़गे रिहिस। योगेश इन्कार नइ करे सकिस -’कइसे किलो  लगाए हस ?‘

’तोर बर तीस रूपिया हे, दूसर बर चालिस रूपिया लगाथौं‘.........बिसौहा खुश होवत कहिस - तैं तो जानते हस ... तोर बर कमतीच लगाथौं।’ अउ हें हें हें करत हाँसे लगिस।

एकात दू ठिन अउ साग भाजी लेके दूनों घर लहुट गे। सुनीता नान्हे लइका ल सेंक-चुपरके वोकर हाथ गोड़ ल मालिस करत रहय। वकील घर ठऊँका नान्हे लइका आए हवय। वोकरे अगोरा अउ सुवागत के तियारी के चलते गजब दिन होगे रिहिस सोनिया मइके नइ गे पाए रिहिसे। एक तो एकसरूवा मनखे उपराहा म नान्हे लइका के देखभाल, उहू फीफियागे रिहिसे। मन होवत रिहिसे दू चार दिन बर मइके जाए के। उन्कर आए ले वोकर बनौती बनगे। 

‘दीदी मन आए हे त इन्कर राहत ले मइके होके आ जातेवँ कहिथौं।’ - रतिहा बियारी करे के पीछु सोनिया पूछिस। 

’सगा-सोदर के सेवा सत्कार ल छोड़के, इन्करे मुड़ म घर के बोझा ल डारके मइके जवई नइ फभय भई।‘ -योगेश कहिस।

‘जावन दे न भैया, मैं तो हाववँ। कतेक मार बूता हे इहाँ, घर के देखरेख ल मैं कर डारहूँ।’

’हौ...बने तो काहत हे, सुनीता सबो ल कर डारही, नइ लगय।‘ बनवारी सुनीता ल पंदौली दीस।

बिहान भर सोनिया मइके गै। रहिगे तीन परानी - वकील, बनवारी अउ सुनीता। योगेश आन दफे कछेरी ले आवय त हटरी जाए के, कभू राशन के, त कभू अहू काँही लगेच राहय। सोनिया के जाए ले उल्टा दिन हली भली कटे लगिस। होवत बिहनिया नाश्ता पानी तियार करके सुनीता घर के जम्मो बूता ल सिरजा डारय। योगेश के कपड़ा लत्ता ल तको धो डारय। वोकर कछेरी के आवत ले बनवारी नवा-नवा, ताजा-ताजा साग भाजी लान डारय। जेवन बेरा म तियार मिल जाय गरमागरम। सुनीता रहय त कभू बाँचे भात के अंगाकर बना देवय, त कोनो दिन ओकरे फरा बना देवय।

योगेश कहय -‘तैं काबर तकलीफ करथस, मैं आतेवँ त साग भाजी ल ले लानतेवँ।’ 

’का होही जी, आखिर हमीच मन ल तो खाना हे।’ बनवारी टोंक देवय।

’एकेच तो आवय भैया ! तैं लानस कि इही लानय।’ सुनीता के गोठ सुनके योगेश के मुँह बँधा जाय। 

हफ्ता भर कइसे कटिस पतेच नइ चलिस। शनिच्चर के दिन रतिहा सोनिया के फोन आगे -‘कालि लेहे बर आबे का ?’

‘नइ अवावय, सगा सोदर ल छोड़के मैं कइसे आहूँ तँही बता ? तोर भाई एक कनक छोड़ देही .... त नइ  बनही।’

सुनीता कहिस -’चल देबे न भइया, हमूमन कालि घर जाबोन, अइसे तइसे पन्द्रही निकलगे, हमरो घर म काम बूता परे हावय।‘

‘तैं ओति चल देबे हमन गाँव कोति निकल जबो।’ बनवारी एक सीढ़ी अउ चढ़ गिस।

बिहान भर संझा योगेश सोनिया ल लेके लहुट आइस। चहा पानी पीके झोला धरके हटरी निकल गै। 

‘अबड़ दिन बाद आवत हस वकील साहब, का देवौं बता ?’ पसरा लमाए बिसौहा कहिस।

‘ससुरार चल दे रेहेंव, उहाँ अबड़ अकन साग-भाजी जोर दे हावय, पताल, मिर्चा अउ धनिया भर दे।’

ओतके ल झोला म झोंका के पूछिस -’के पइसा ?‘ 

’अढ़ई सौ।‘

’अढ़ई सौ ?‘ योगेश मजाक समझ हाँसत चेंधिस।

बिसौहा फोरियाके बताइस -‘बीच म दमांद बाबू आवत रिहिसे न, ओकरे हाथ के तीन किलो खीरा, दू किलो करेला अउ भाँटा के पइसा बाँचे रिहिस।’ 

योगेश कुछु नइ बोलिस, बिसौहा के पइसा ल जमा करके रेंगे लगिस। बाजू म बइठे पटैलीन ओतेक बेर ल चुप रिहिसे। वोला रेंगत देखिस त चिचियाइस -‘मोरो ल देवत हस का वकील साहेब !’

‘तोर कतेक असन आवत हे ?’

‘जादा नइहे ... अस्सी रूपिया ताय।’

योगेश ओकरो चुकारा ल करिस। घर आके पूछिस -‘राशन दूकान थोरे जाए बर लगही। लगही त दे, ले लानथौ।’ सोनिया अपन काम म लगे रिहिस। कुछु आरो नइ मिलिस। वोह अपन गाहना गुरिया, चुरी चाकी  ल हेरे-धरे, सहेजे-सिरजाए म लगे रहय। माईलोगन मन कतको दुरिहा ले आए रहय, कतकोन थके हन कहत रहय, फेर अपन घर दुवार के साफ सफई, गहना गुरिया के हेरई तिरियई करे बर थोरको थकास नइ मरय, न कभू बिट्टावय। योगेश वोकर परवाह करे बिगर झाँकत-ताकत रंधनी कुरिया म गइस अउ सब समान ल तलाशे-तवाले लगिस। ओला बड़ ताज्जुब होइस। रसोई के सबो समान उपराहा उपराहा रिहिस। काँहीच के कमी नइ रिहिसे। सूजी रवा, साबुनदाना अउ शक्कर तको पर्याप्त रिहिस। जबकि सुनीता बीच बीच म सूजी के हलवा, साबूनदाना के बड़ा अउ एक दिन खीर तको बनाए रिहिस। योगेश राशन दूकान के डायरी ल निकालिस।

डायरी ल देखिस त ओमा हफ्ता भर म तीन पइत ले समान आए रिहिसे। वो तीन पइत म कम से कम हजार भर के समान आए रिहिसे।

‘अतेक अकन समान कइसे अउ काबर आए रिहिस’ - योगेश इही गुणा भाग लगाते रिहिसे, ओतके म सोनिया के आरो आइस - ’कस जी ..... सुनत हस ?‘

‘हाँ, बता।’-योगेश मनढेरहा जवाब दिस।

‘मोर कान के झुमका, दूनो नवा पैरी अउ सोन के अँगूठी मन नइ दीखत हे, कहूँ तिरिया के रखे हस का ?’

’का ? मैंहँ तो गोदरेज ल तोर गए के बाद खोल के देखेच नइ हौं।‘ योगेश के मन म कुछ-कुछ शंका उभरे लगिस। वोकर समझ म हफ्ता भर के सबो घटना रहि-रहिके आए जाए लगिस। छाती के धुकधुकी बाढ़े लगिस।

’त सबो गहना मन गै कहाँ ?‘ अब सोनिया के बिफड़े के बेरा रिहिसे।

’पहिन के तो गे रेहेस न ..... अउ चाबी तको तोरे तीरन रहिथे।‘

योगेश के बात सुनके सोनिया के जी धक्क ले होगे -’सबो गाहना ल थोरे पहिनके गे रेहेंव..... अउ चाबी ल तको इहेंचे छोड़ दे रेहेंव, ........गोदरेज के ऊपर म .......।‘ वो रोवाँसू होवत चिचियाइस।

अब मुड़ धरे के बारी योगेश के रिहिसे- 

‘निभगे रिश्तेदारी हँ।’

धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

चौपाल-(तब अउ अब)*

 *चौपाल-(तब अउ अब)*





तइहा के बेरा मा गांव के चौपाल के बड़ महत्तम राहय कहिथें ...समस्या नान्हे होवय चाहे बड़का...गांव के सब समस्या के हल माने...गांव के चौपाल... समस्या कइसनो राहय ? .... सब चौपालेच मा निपट जावय...कहिथें।

पहिली चौपाल के विषय मा कोनों वर्ग,समाज वाले बातेच घलो नइ राहय तइसे घलो लागथे...भई...तभे तो गांव के कोनों वर्ग,समाज वाले के समस्या राहय...सब के समस्या के हल..निपटारा माने ...चौपाल... अउ वइसने एकर आदेश निर्देश के पालन घलो एकतरफा होवय कहिथें भई...फेर हो सकत हे ,वहु समे मा काहीं कुछु के अभाव मा सियान मन ले थोर मोर गलत नियांव नइते कोनों संग अनियांव  भोरहा मा हो जावत रिहिस होही...तेकर भुगतना कोनो गरीब नइते अउ आने परिवार ला पर जावत रिहिस होही....यहु ला माने ला परही..यहु असंभव बात नोहे।

फेर....पहिली के मनखे मन हा कोट,कछेरी अउ थाना वाना के चक्कर मा जादा पड़बेच नइ करयं अउ पड़ना घलो नइ चाहयं तइसे घलो लागथे...काबर.. ओमन समझय के थाना कछेरी जाना मतलब... बड़का समस्या ....अउ बड़का समस्या माने... जेन समस्या के हल चौपाल मा संभव नइहे...?अब तो नान्हे नान्हे बात मा लोगन मन थाना अउ कोट कछेरी ला उमड़े घुमड़े ला धर लेथें ...थोरको धीर नइ धरयं....ताहने.. रेंगत हें कस के टूटत ले..पेशी...अउ पुरखा मन के सकेले जमीन ,जायदाद ला सिरवावत हे... अउ काहे...।

पहिली के सियान मन केहें घलो हे ...थाना अउ कोट, कछेरी के चक्कर...माने सरी धन,दौलत के सिरई... बर्बादी..।

...अब तो अपन-अपन वर्ग समाज के समस्या ला अपन-अपन स्तर मा घलो निपटा डरत हें भई...अउ कुछु सरकारी योजना ले संबंधित समस्या हे ता... पंचायत मा निपट जावत हे... अउ सुग्घर बात ‌घलो हे...होना भी चाही..फेर...डांड़ बोड़ी ले दे के...अउ उही डांड़ बोड़ी के पइसा ले गांव,समाज के विकास करत हन कहना...कहां तक उचित अउ सहीं हे? 

...समझ ले परे हे...अउ कोनों गरीब परिवार हा?...हमर इही डांड़ बोड़ी के चक्कर मा... समाज ले दुरिहावत जावत हे...हमर ले दुरिहावत जावत हे...गांव समाज के मुख्य धारा ले दुरिहावत जावत हें--कहिके आज के सियान मन काबर नइ सोचयं ?काबर एक घांव पाछू मुड़क के नइ देखय...काबर विचार मंथन नइ करयं?... के हमन जेन फैसला सुनाए हन, नियांव करे हन,तेन उचित हे के नहीं कहिके...।

काबर के ...तहां ले इही शोषित अउ पीड़ित वर्ग मन ही धीरे-धीरे हमर गांव ,समाज ले दुरिहावत जाथें अउ दूसर मन ,इंकर इही कमजोरी के फायदा उठा के...इन ला अपन शिकार बनाके... कुछ लालच देके...अपन उल्लू सिदहा कर लेत हें अउ अपन जनसंख्या ला बढ़ावत जावत हें...ता कहां ले गांव समाज के विकास...?ये तो सीधा-सीधा गांव समाज के विनाश होवत हे।

पहिली के नियांव करइया मन सोंचय,एक घांव पाछु मुड़ के देखयं,के सामने वाला ला हमर फैसला ले जादा पीरा तो नइ होवत हे...अउ काहीं उन ला लागय ता फैसला मा फेरबदल घलो करयं... तभे तो तइहा के बेरा मा चौपाल के निर्णय विश्वसनीय अउ सर्वमान्य रहय।

....अइसे बात नइहे के पहिली डांड़ बोड़ी नइ होवत रिहिस...!पहिली घलो जिंकर कोनों गलती राहय,नइते जेन मन गांव ,नइते कोनो वर्ग समाज के नीति ,नियांव के उल्लंघन करयं, तेन मन ला चौपाल के माध्यम ले गांव, वर्ग ,समाज के सभ्यता बने रहय अउ इन फेर गांव समाज के मुख्य धारा ले जुड़ जावयं कहिके‌‌ इन ला सुधार स्वरूप कुछ दंडित जरूर करयं... फेर उन ला गांव ,समाज ले दुरिहावयं नाहीं.... फेर अब काबर उही मन दुरिहा जाथे..? मतलब सीधा हे के वर्तमान व्यवस्था हा कुछ तो दोषपूर्ण हावय...। 

अब तो चौपाल सिरिफ नाम मात्र कुछु सरजनिक समस्या अउ कुछु  आयोजन करे के निमित्त बर ही सकलाथें तइसे घलो लगथे ...वहू मा कोनो मान मर्यादा घलो नइ रहय...भई...।

 कोनो नशापान करके आ जाय  रही, ता कोनो अउ कहीं...ता कोनो कुछु बोलत हे ता कोनो अउ काहीं.... कहूं-कहूं जघा अइसनो..देखे सुने मा आथे...।

... हो सकत हे, जेन मन विरोध करथें तेन मन ला,अपन सियाने मन मा ही कुछु खामी नजर आवत होही? नइते इन ला वर्तमान सिस्टमे हा दोषपूर्ण लगत होही...तभे तो इन अंगरी उठाथें अउ विरोध करथें.. एमा काकरो व्यक्तिगत समस्या भी हो सकत हे।

...अउ एक बात..का पाय के ते?अभी के सियानी अउ नियांव मा मनखे मन पहिली जइसे बने बिस्वांस घलो नइ करयं भई.....।

फेर...हां !पहिली के चौपाल के विषय मा एक ठन यहु बात हे के पहिली के सियान मन जइसन निष्पक्ष अउ निःस्वार्थ सियानी अपन समे मा करयं,फैसला सुनावयं...नियांव करयं...। वइसन तो अब संभवेच घलो नइ हे...तइसे घलो लगथे...काबर? तभे तो ओ पहिंत इन ला *पंच परमेश्वर* काहय भई ...अउ तइहा के रहन-सहन,सोंच-विचार ,मान- मर्यादा अउ परिवेश असन...अब कुछु कहां घलो हे?

पहिली चौपाल के निर्णय मतलब सर्व मान्य रहय अउ वइसने निष्पक्ष अउ निःस्वार्थ सियानी घलो होवय भई... सामने वाला के आर्थिक,मानसिक, पारिवारिक अउ शारीरिक क्षमता ले वाकिफ होय के बाद ही सियान मन अपन निर्णय देवयं,नियांव करयं ताकि सामने वाला हा गांव समाज ले झन दुरिहावय कहिके.....? 

... अब तो अइसन सिस्टम घलो चलत हे..एक्के घांव मा गांव समाज ले दुरिहा घलो देत हें.....अउ अगड़म सगड़म, डांड़ बोड़ी ले दे के ..एक्के घांव म अपना घलो लेत हें... अइसन तो हाल ...घलो हो गे हावय..लगथे।

... आजकाल एक ठन अउ बात देखे अउ सुने ला मिलथे...के ...अपन समस्या के निमित्त, कोनो चौपाल सकेलवाय रहि ...अउ फैसला ओकर पक्ष मा झन तो होवय... तहां ले देख ले...ओ अपन गलती ला मानबेच नइ करय...अउ एकेकन मा थाना कछेरी ला उमड़े ला धर लेथे...। 

मतलब...आज के मनखे मन अपन गलती ला आसानी ले स्वीकारेच घलो नइ करयं अउ स्वारथ मा ही डूबे रहिथें...तइसे घलो लागथे।

....... अउ आजकाल के कुछ अइसने विशेष प्रजाति के सब रंगा ढंगा,चालाबानी अउ लंदर फंदर के सेती... घलो,कुछ हद तक आज हमर चौपाल अस्तित्व विहीन होय के कगार मा खड़े होगे हे तइसे घलो लगथे...... अउ हमर पुरखा मन तो केहे घलो हावय ना !..कुछ गंदा मछरी के सेती जम्मो तरिया बस्साथे अउ मतला जाथे कहिके... अउ लगथे घलो आजकाल के सब चरित्तर ला देख के...अब तो धीरे-धीरे लोगन मन के विश्वास चौपाल ले उठत घलो जावत हे लगथे....भई..तभे तो आज...चौपाल ला सोरियावय ला छोंड़ के गइंज लोगन मन एकर जघा थाना अउ कोट कछेरी के बाट जोहे ला धर लेहें... जेन हा चौपाल के विषय मा हम सब बर... आज बड़ चिंतन अउ मंथन के विषय‌ घलो होगे हे ...काबर के चौपाल मतलब सीधा-सीधा हमर ग्राम्य अंचल के वास्तविक स्वरूप के दर्शन....हमर धरोहर...हमर थाथी....जेला बचाए रखना, हमर ग्राम्य अंचल के अस्मिता ला बचाए राखे के बरोबर हे.....अउ एला बचाए अउ संजोय राखे खातिर ...हम सब के जिम्मेदारी भी बनथे भई...... चाहे एकर बर हम सब ला कतनो जतन करे ला काबर नइ पर जावय...?....।

अमृत दास साहू 

ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

मो.नं.-9399725588

कहिनी // *माछी के पीत* //

 कहिनी               //  *माछी के पीत*  //     

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                      ए दुनिया म अलगेच-अलग सुभाव के मनखे देखे म मिल जाथे।सबो के बेवहार घलो अलगेच होथे कोनों अपनेच सुवारथ म मस्त रहिथें त कोनों काकरो सुख-दुख के संग-संगवारी बनके "*नार असन लपटा*" जाथें अऊ कोनों जतका मिलय सबो ल रपोटे अऊ पोगरिया के धरौ अइसन सुभाव के मनखे घलो रहिथें।कतको झन तो धन जोगानी के पाछू भागत रहिथें।दुनिया म संतोष रुपी धनले बढ़के कोनों धन नइ हें।समे म धन-जोगानी काम नि आवय,मनखे के बेवहार जिनगी भर पूरथे। "*मनखे के सुग्घर बेवहार ओकर असल पूँजी आय*" मनखे के गुन ल आकब करे म घलो पता चल जाथे कोन किसम के आय,जइसे हांड़ी म भात ह चुरे हे के नि चुरे एक-दू दाना ल छूए म पता चल जाथे। "*बेवहार मनखे के असलियत बता देथे*"।

                गुमान गंवटिया जबर कंजूस सुभाव के मनखे रहिस।खार म चक के चक खेती रहय।तीन-चार जोड़ी नांगर रहय।घर म कोठी-ढाबा छलकत रहे।मुसवा कोठी तरी बिल बनाके कतको अकन ल नकसान कर देवैं,फेर कोनों गरीबहा ल एक मूठा कभू देहे नि जानिस।गंवटिया घर के बारी म बीही,छीता,अरमपपई,दरमी अऊ आमा बनेच लगे रहे।बारी के चारो कोती थुहा अऊ बोईर कांटा के छेका करे रहे।एतका छेका रहे के टेटका घलो बारी म नि खुसर सके।गुमान ह अपन बारी के बीही,छीता अरमपपई,दरमी अऊ आमा के रखवारी करतेच रहे,लइका तो लइका इहां तक के "*चिलहरा तको ल चाटन*" नि देवै।

             गुमान गंवटिया के दस कोस गाँव तक गंवटानी के सोर बगरे रहय,तेन ल सबो मनखे मन जानय।ओखर घर म धन जोगानी भरे रहय,फेर कोनों गरीब दुखिया ल एक मुठा छिटकारे तको नइ।अइसन चीज बस रहे के का काम जेन कोनों ल बांट-बिराज नि खाय जाने। "*सूम के धन ल खाय घून*",गुमान लेहे भर जानय देहे तो अपन जिनगी म कभू जानबेच नि करिस।

             दू कोस दूरिहा गाँव के रिझू अपन घर के हालत ल देख के गंवटिया के घर उधार-बाढ़ी मांगे जाथे। "*मुसकुल घरी म मनखे ल आसरा के जरूरत होथे*"। पैलगी जोहार हे गंवटिया साहेब... पांव तरी ढोंकरत रिझू कहिथे।खुशी रह...कइसे आय हावस...आशीष देवत गंवटिया कहिस।पसिया बर लइका मन  ललावत हावें दुख ल गोहरावत... रिझू कहिथे। हमन ल कइसनहों करके धान-चउंर उधारी-बाढ़ी दे देतव....रिझू कहिस।तैं अइसे कर कालि बिहनिया आ जाबे आज कोठी ले धान नि हेरे हन अउ आती बेरा म एक कांवर कांटा बोह लानबे...गंवटिया कहिस।जेन दिन कोनों कुछू जिनीस मांगे आतीस त वो दिन गंवटिया तो कभू नि देवय।कुछू न कुछू चीज मंगावत दूसर दिन बलाबेच करे।बपरा पेट के दुख म काय नि करे गंवटिया के कहे मुताबिक लानबेच करे।रिझू घलो दूसर दिन एक कांवर कांटा बोह के लानिस।

             गुमान गंवटिया दू किसिम के तामी रखे रहिस।उधारी-बाढ़ी देहे के बेरा अपन छोटकी बहुरिया ल तामी लेके आय बर आरो करे।एकर मतलब रहिस के छोटे तामी ल लाने बर कहय।बाढ़ी लेहे के बेरा अपन के बड़की बहुरिया ल तामी लाने बर आरो करे।एकर मतलब रहिस के बड़े तामी ल मंगावय।देहे के समे छोटे तामी म अऊ लेहे के बेर बड़े तामी बउरे। "*जेन ह दूसर ल धोखा देथे एकदिन अपनेच धोखा खाथे*" ।अइसनहे करके चीज के बढ़ोवन करे रहिस।

                गुमान गंवटिया घर फेर दूसर कोनों बाढ़ी मांगे आवय त ओमन ल कहे,अभी बहुरिया मन असनांदे नि हे,ओतका ले कांवर म कांटा हावे वोला थोरिक बारी ल रुंध के आ जाबे तंह ले बहुरिया मन घलो असनान कर के तियार हो जाही।बपरा मन काय करे पेट के खातिर करे बर परे।गुमान गंवटिया के फोकट म सबो बुता हो जावत रहिस।अइसनहे सबो करा बेगारी करावत चीज बस ल जोरे रहिस।कतको झन करा अइसनेच बूता करवातिस।कोनों ल खेत के मुंही भेजे त कोनों ल बिंआरा के रांचर ल बनवातिस अऊ कोनों ल कुछू बूता जोंगबेच करे।

               एक दिन गुमान गंवटिया बीमार पर गिस।गोड़-हाथ,मूड़ी पीरा अऊ जर-बुखार म हंकरत रहे।मोर मूड़ी म तेल लगाके थोरिक ठोंक दे... खटिया म सूते-सूते अपन नाती ल कहिस।ओकर नाती काबर करे... नीं करंव कहत गली खोर कोती खेले बर भाग गीस।फेर अपन बड़की बहुरिया ल हंकरत ...गुमान आरो करथे।काय होगे बाबू.....कहत बड़की बहुरिया आइस। गोड़ हाथ के पीरा अऊ जर-बुखार म हंकरत हौं थोरिक डाक्टर ल बलवा देते।हव कहत बड़की बहुरिया चल देथे अऊ डाक्टर बलाय बर अपन लइका ल ओकर संगवारी संग भेज देथे।

                थोरिक बेरा म गंवटिया घर डाक्टर आथे।राम-राम गंवटिया जी ...का होगे हावे... डाक्टर पूछथे।राम-राम डाक्टर साहेब आवौ बइठव ... मोला हाथ गोड़ पीरा अऊ बुखार चढ़ाय हावें ...कलहरत गंवटिया कहिथे।डाक्टर अपन थरमामीटर निकाल के झटकारत ओकर खखोरी म चीप दिस।थोरिक बेरा म निकाल के देखिस त एक सौ दू डिगरी बुखार चढ़ाय रहे।गंवटिया तुंहला एक सौ दू डिगरी बुखार चढ़ाय हे थरमामीटर ल देखावत कहिस...। डाक्टर ईलाज करे पातिस तेकर ले पहिली कतेक खरचा आ जाही पूछत....गंवटिया कहिस...।दू सूजी लगही,बोतल चघाय अऊ खून जांच करे परही... डाक्टर बताइस।कतेक खरचा आ जाही.. गंवटिया फेरेच पूछिस।दवाई मांदी,सूजी अऊ बोतल सबो मिलाके बारा तेरा सौ लग जाही।बनेच जादा बतावत हौ,एमा कुछू कम नि होही डाक्टर साहेब....गंवटिया पूछथे।

             गुमान तो देहे-लेहे ल कभू जाने नहीं ते पाय के ओला कीमत ह जादा लागिस।डाक्टर साहेब मोला एकोठन गोली अभी दे देवौ पाछू सूजी अऊ बोतल लगवा लेबो... गुमान कहिस।डाक्टर गुमान ल गोली दे दिस अऊ अपन घर चल दिस।एती गंवटिया के गोली म बुखार उतरबे नि करिस।एक गोली म थोरे उतर जाही।अपन के छोटे बेटा सरवन ल बलाइस अऊ कहिस ...जा तैं परउ बईद ल बलाबे थोरिक फूंकतिस अउ जरी-बूटी के दवाई घलो दे देतिस।अऊ ओहर दू बछर होगे धान के बाढ़ी ल घलो नि दे हावे।

           परउ बईदराज कहत ले लागय ओकरो नांव ह दस कोस ले जगजाहिर रहिस।अपन झाड़-फूंक अऊ जरी-बूटी ले बनेच बीमरहा मन ल ठीक कर देवै।ओहर ईमानदार घलो रहय।ते पाय के परउ करा एक-दू मनखे रोजेच ईलाज कराय आतेच रहंय। राम-राम बईदराज...गुमान के बेटा सरवन कहिस।राम-राम आ बइठ छोटे गंवटिया..खटिया कोती इशारा करत परउ कहिस।एदे मउंहार भांठा के मन आय रहिन ईलाज कराय बर अभिच घर गइन हे उही मन ल बिदा करके जरी-बूटी खने जंगल कोती जाहूँ सोचत हंव....परउ कहिस।हमर घर थोरिक चलते का हमर सियनहा ल दू दिन होगे हे देहें पीरा अऊ बुखार उतरतेच नि हे... गंवटिया के लइका सरवन कहिस।ले चल आवत हंव...परउ कहिस।अपन झोला झंकर धरिस अऊ गंवटिया घर जाय बर निकल गिस।

               परउ लकर-धकर गंवटिया के घर पहुंचिस।राम-राम गंवटिया...जोहारत परउ कहिस।आ बइठ परउ देख तो हाथ नारी ल थोरिक तउल दू दिन होगे पीरा अऊ बुखार उतरतेच नि हे.. डाक्टर घलो चेक करिस अऊ दवाई दे रहिस तेमा छोड़बेच नि करिस तहीं कुछू जरी-बूटी अऊ झाड़-फूंक करके थोरिक देख तो...पीरा म हंकरत गुमान कहिस।तुंहर हाथ ल देखावौ गंवटिया...परउ कहिस।गुमान अपन हाथ ल परउ कोती लमा दिस।परउ ओकर हाथ ल अपन अंदाज लगावत तउलिस।सात दिन के दवाई खाय बर परही तंह ले पूरा ठीक हो जाबे घबराय अऊ चिंता करे के बात नि हे गंवटिया... हिम्मत बढ़ावत परउ कहिस।सात दिन के दवाई के कीमत कतेक लाग जाही ....गुमान पूछिस। "*मनखे ह धन-जोगानी के पीछू भागथे जब तक ओहर मर नि जावे*" जरी-बूटी थोरिक मंहगा मिलथे तभो ले सात दिन के ओई एक हजार के भीतर म हो जाही ...परउ कहिस।

           दू बछर के बाढ़ी लेगे हे तेला देहे निहे ठउका मउका मिले हे इही म कटौती करवा देहूं ...मने-मन गुमान सोचत रहिस।सात दिन के खुराक देवत हौं दू प्रकार के दवाई।एकठन ल काढ़ा बनाके पीये ल परही अऊ दूसर ल करंज तेल ल कड़का के ओमा दवाई ल मिलाके बने फेंट के देहे भर चुपरे म सबो पीरा-बीथा छोड़ दीही अऊ बुखार घलो उतर जाही ...परउ समझावत कहिस।सबो झन ल गंवटिया बेगारी करवाथे,अभी मैं ठउका मउका पाय हौं कहिके ....परउ मन म सोचिस।अइसनहे गंवटिया के बदला लेहे बर कतको झन मउका खोजत रहिन। "*बरी के तेल ल बरा*" म निकालहूं...परउ मने-मन खुश होवत रहय।  "*राजा खोजे दांव अऊ माछी खोजे घाव*" ।अइसे कर परउ तैं मोला एक खुराक पहिली दे,ठीक लागही त फेर ले लेहूं गांवेच म तो रहिथस...गुमान कहिस।एक खुराक के दवाई दे दिस अऊ परउ घलो अपन घर चल दिस।

          परउ के जाय के पाछू बईदराज के कहे मुताबिक गुमान करे लागिस त ओकर बुखार अऊ देहें भर के पीरा छोड़ दिस।एक खुराक म तो छोड़ दिस एकेच खुराक के पइसा ल बाढ़ी लेहे तेमा कटौती करवा देहूं।अब दवाई के जरुरत नि परे....गुमान मन म सोचे धर लीस।बुखार अऊ पीरा छोड़ दिस कहिके गुमान अब दवाई नि लिस। पूरा दवाई नि लेहे के खातिर ओकर बीमारी जरमूल ले नि कटे पाइस फेर उबकगे।ए पइत परउ बईदराज करा ईलाज करवाय पातिस तेकर ले पहिली गुमान के नांव सगरो दिन बर संसार ले गुम होगे। "*समे ह अच्छे-अच्छा मन ल नवा देथे*"।एकरे सेथी कहे गे हावे शरीर के रख-रखाव बर ध्यान देवौ समे म पइसा-कौड़ी धन-जोगानी काम नि आवै।जादा "*माछी के पीत*" हेरे म काम कभू नि बने।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

         *तिलकेजा, कोरबा( छ.ग.)*

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विवरन अउ दरपन दुनों के दुनों :विमर्श के कसौटी म समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य* ----------------------------------------------------- *(पुस्तक समीक्षा)*

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*विवरन अउ दरपन दुनों के दुनों :विमर्श के कसौटी म समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य*

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             *(पुस्तक समीक्षा)*


       ये छोटकुन लेख हर समीक्षा के समीक्षा अउ विमर्श के विमर्श लिखई ये।श्री पोखन लाल जायसवाल के लिखे किताब 'विमर्श के कसौटी म समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य' ठीक अइसन बेरा म प्रकाशित होइस हे; जब अइसन ग्रन्थ मन के आवश्यकता हे। अभी के समय हर,हर जिनिस के दस्तावेजीकरण चाहत हे।अइसन संक्रांति कालीन समे म, बिखरे छत्तीसगढ़ी साहित्यिक कारज मन ल,एकठन ठीहा म लान के बांधे के बुता ये किताब हर करत हे।येकर पीछू केवल अउ केवल लेखक के सद्भावना अउ निज भाखा प्रेम  हर ही कारण यें, जेमन लेखक ले अइसन गुरुतर गरू बुता करवा लिन हें। आज के समे म भी, हमर छत्तीसगढ़ी लेखन हर झागदार गजमजहा के गजमजहा हे। आज भी  हमन विधा मन ल लेके संशय म रहत हावन; आज भी हमन लेखन म क्रिया अउ काल ल लेके  सार -चेत नई अन।पूरा के पूरा किताब ल चाहे वो कहानी हो कि उपन्यास...गंगाराम अपन महतारी ल कथे (गंगाराम अपनी महतारी को कहता है) लिखत लिखत छेवर कर देथन।जबकि वोहर -गंगाराम अपन महतारी ल कहिस, होना चाहिए। अइसन गढ़ अनगढ़ प्रयोग अउ प्रयोगधर्मिता मन ले ऊबुक- चुबुक होत छत्तीसगढ़ी लेखन ल, विमर्श के कसौटी म कसे के हिम्मत दिखाना ,जबर हिम्मत के बुता आय।ठीक अइसन हिम्मत डॉ. विनोद वर्मा के पुस्तक 'विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी(2018) म देखे बर मिलथे, फेर वोहर हिंदी के किताब ये। छत्तीसगढ़ी भाखा म लिखाय ये नावा समीक्षा ग्रन्थ हर,छत्तीसगढ़ी भाखा ल आधार पाठ लेके समीक्षा शास्त्र रचत हे; येहर बड़ बात ये। ये किताब के अठारा शीर्षक म,अठारा रचनाकार मन ल,अभी के समकालीन रचनाकार मान के, मान दिये गय हे।वो रचनाकार अउ रचना मन खचित रूप ले प्रतिनिधि आंय,ये बात म कनहुँ ल कोई शंका नई ये। फेर अतका झन के छोड़ अउ हजार- बजार छत्तीसगढ़ी साहित्यिक चेतना हें जेमन बिना हल्ला हो हल्ला करे,निच्चट मौन होके, बड़ श्रद्धा भाव ल भरके सिरजन करत हें। वोमन के भी पड़ताल होना हे।ये बुता ल पोखन अपन दूसर पाली म करहीं कि कनहु आन करही।फेर कोई न कोई ल तो करेच बर लागही।


            ये किताब हर येकर बर अउ महत्वपूर्ण बन जात हे कि पहिली तो येहर छत्तीसगढ़ी म लिखे गय क्रिएटिव राइटिंग मन के क्रिटिसिज्म लानत हे।दूसर छत्तीसगढ़ी भाखा के निजता ल बनेच बंचा के राखत लेखक हर समीक्षा शास्त्र खड़ा करे हे।सबो अठारा रचना मन के नीर -क्षीर विवेक ले भल -अनभल ल बेबाकी ले उजागर करत, समीक्षा अउ विमर्श के एकठन नावा अध्याय खोलत हे ये किताब हर।अउ श्री पोखन लाल जायसवाल ले अभी येहर तो शुरुआत ये।ये किताब जरूर पढ़ना चाही।


*रामनाथ साहू*


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समरथन* *(नानकुन कहिनी)*

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                     *समरथन*

                *(नानकुन कहिनी)*



                कूदत धाँवत... हँफरत मानसी अपन महतारी तीर म अइस अउ वोला तुरंतेच पूछे लागिस -दई ओ दई ! हमन पहिली भारतीय होवन कि पहिली छत्तीसगढ़िया?

"भारतीय..."महतारी वोतकिच तुरंत जवाब दिस।

" देख न !वो दु -चार मनखे मन चउक म ठुलाय हें अउ अइसन कहत हें।"

"का कहत हें वोमन?"

"कि हमन पहिली छत्तीसगढ़िया हावन बाद म कुछु आन।"मानसी झरझरात कहिस।

"वोमन टोपी वाला होहीं।वोमन टोपी खापे रहिन?"

"हाँ...!"मानसी नानकुन उत्तर दिस।

"चल जेवन कर। वोमन के गोठ ल झन धर।वोमन जइसन लागथे वइसन कर लेथें,कह लेथें।" महतारी वोला जेवन परोसत कहिस।


                अब तो जेवन करत मानसी के चेहरा म अथाह संतोष हर उतर आय रहिस। वोकर गुरु के बताय गोठ ल , ये महागुरू महतारी के समरथन जो मिल गय रहिस।


*रामनाथ साहू*


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छेरी के छेरा छेर बरकनिन......छेरछेरा !!

 छेरी के छेरा छेर बरकनिन......छेरछेरा !!


जन मानस के उछाह, उमंग अउ उल्लास ह उत्सव बनके उपजथे-सिरजथे-पनपथे। इही परब अउ उत्सव पानी कस धार एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी, एक ठऊर ले दूसर ठऊर म बोहावत जाथे त परम्परा बन जथे। परम्परा अउ संस्कृति कोन्हो भी समाज, देश अउ राज के आरूग चिन्हारी होथे।


दान के पीछू दर्शन तको लुकाए हवय। दान ह मया, मोह अउ ममता के मइल ल धोके मन ल शुद्ध करथे। कहिथे संतोषी सदा सुखी। जेकर मन म संतोष, सहनशीलता, सादगी, सरलता, सहजता, सहानुभूति, सौहार्द्र अउ उदारता होथे वो दान के महात्तम ल भलीभांति समझथे। स्कंदपुराण के अनुसार मनखे ल अपन कमई के दसवा हिस्सा ल दान म लगाना चाही। दान कभू अबिरथा नई जावय। दान के मान, गान अउ शान अबड़े, अलगे अउ अमोल-अतोल होथे।


देश, काल अउ वातावरण के सपेटा म परके परब, परम्परा, रीत-रिवाज अउ संस्कृति के चोला, रंग-रूप अउ सँवागा भले बदल जथे फेर ओकर आत्मा नई बदलय। आत्मा ठुसठुस ले ठस अउ ठाहिल रहिथे। गीता म तको आत्मा ल अजर, अमर अउ अजन्मा बताए हवय। ओइसनेहे दान के कई ठो रूप हवय - अन्नदान, गोदान, भूदान, स्वर्णदान, कन्यादान वस्त्रदान। समे के संगत म बइठत -उठत दान अब रक्तदान, नेत्रदान, अंगदान अउ अब देहदान तक आके बगर-पसर गे हवय। 


एक ठो पौराणिक कथा के अनुसार राजा मोरध्वज अउ रानी अपन बेटा ताम्रध्वज ल आरा म काटके ओकर अंग ल भूखाए शेर ल परोस दिस। आरा म अंग काटे के सेति वो जगा के नाम आरंग होगे। छत्तीसगढ़ के भूइँया ये हिसाब ले धानी, दानी अउ मानी होए के संगे-संग जबर स्वाभिमानी तको हवय। दान के संस्कार म सनाए छत्तिसगढ़िया अपन उठे कौंर ल थामके दुवार आए भूखाए मनखे ल अपन थारी ल परोस देथे, फेर डेरौठी-दुवार आए याचक ल जुच्छा हाथ नई लहुटावय। बइरी बर ऊँच पीढ़ा के ये हाना छत्तीसगढ़ के दानशीलता के सबले बड़े वैध अउ सिद्ध प्रमाणपत्र हरे। धान के कटोरा धरे अउ मन म दान, दया अउ सरल-सहज सुभाव भरे मनखे ल देख अब कतको कटोरा अउ चरूधारी मन इहाँ आके पइध गे। अब उही बिधरमी, बेशरम अउ बेंवारस मन छत्तीसगढ़ के तिजौरी ऊपर बइठ, छत्तिसगढ़िये मन ल आँखी देखावत हे।


दान के महिमा अउ मान, नाँगर के मितान अउ जाँगर के खदान किसान ले जादा कोनो नई जानय। किसानी के बूता एक साधना हरे जऊन कोन्हो यज्ञ ले कम नई होवय। किसान के जिनगी के यात्रा परब ले शुरू होके परब में पूरा होथे। परब के श्रीगणेश अक्ती ले शुरू हो जथे जेमा प्रकृति ल जल दान करे के पीछु किसान खुर्रा बोनी करके भगवान भरोसा छोड़ देथे। ये ह कोनो छिछला, पनियर अउ रिंगीचिंगी अंधविश्वास नोहय भलकुन उत्कट अउ उद्दाम विश्वास के गूढ़ गहरई अउ आस्था के तिलिंग ऊँचाई हरे। हरेली म किसानी ले जुड़े सजीव-निर्जीव सब्बो सहचर, सहयोगी अउ संगवारी के पूजन करे जाथे। छेरछेरा वो यज्ञ के पूर्णाहूति हरे जेमा किसान प्रसन्न मन से अन्नपूर्णा ले भरे माई कोठी ल उलीचके दान करथे अउ धरती के कुबेर बन जथे। अन्न दान ल सबले बड़का दान माने गे हवय। छेरछेरा अन्नदान के महा उत्सव हरे।


छेरछेरा पूस अंजोरी के पुन्नी के माने जाथे। येला शाकम्भरी दिवस तको कहिथे। 


गाँव गँवई के जिनगी म छेरछेरा परब के अलगे ठऊर, ठिहा अउ ठसन हवय। सीधवा गँवई शहर संग संघरके लाज म अपन संस्कार ल चपके-धरे-लुकाए भले कलेचुप बइठे हे, फेर ये भोला गँवई ह भलई ल भुलाए नई हे। ये बात अलग हे कि चमचमावत चकाचौंध म चमक चिटिक चौंधिया, चीथिया अउ चिटियागे हवय।


सबो परब के एक कहिनी होथे। आने आने जन अउ जगा भले अलग हो सकथे, फेर सबो के मूल म उछाह, एकता, अउ सहकार के भावना छुपे रहिथे। छेरछेरा तको ओइसनेहे छीटीबूँदी, रंगबिरंगी अउ छतरंग छितरियाए कहिनी मन के छाता तनियाए-ओढ़े हवय। 


कहिथे एक पइत बरसा के रिसाए-बगियाए ले धरती म बारह बछर के घोर अकाल परिस। त्राहि-त्राहि मच गे। संत बिपत म तको अपन सुमत ले सुपथ के दुवार खोल देथे। कोनो महात्मा कहिस कि शताक्षी देवी के पूजा करे ले अकाल काल के मुँह टर सकत हे। शताक्षी माने सौ आँखी वाली। सबो शताक्षी देवी के पूजन-अर्चन करीन। देवी माँ के प्रसन्न होए ले मारे खुशी के ओकर सबो आँखी ले अतेक आँसू बोहाइस कि धरती के पियास बूझागे। अन्न -धन के संगे संग किसम-किसम के साग-पान के बरसा होए लगिस। इही दिन ले अन्न बरसे के सेति खेत-खार सोनबरसा अउ शाक-पान बरसे के सेति धरती शाकम्भरी कहाए लगीस। सुकाल के आए ले दुकाल के बारा हाल होगे। सबो प्राणी प्रार्थना करे लगीन। देवी माँ प्रसन्न होके ‘श्रेय‘ ‘श्रेय‘ माने कल्याण हो, कल्याण के असीस दीस। इही ‘श्रेय श्रेय’ शब्द बेरा के धक्का खावत घीसा-पीटा के छेरछेरा होगे। ये घटना ह पूस पुन्नी के घटे रिहिसे। कतकोन झन मन मानथे, हो सकत हे शाक-पान, कंदमूल संग अन्न के बरसा ह ‘छर -छर -छर -छर’ सुनाइस, उहेंचे ले छेराछेरा नाम अवतरिस होही।


शिव के उपासक शैव सम्प्रदाय म येहू कहिनी हे कि राजा हिमाँचल के बेटी पार्वती ह शिव ल मने-मन पति रूप म स्वीकार कर डारे रिहिसे। शिव ल पाए बर पार्वती घोर तपस्या करत रिहिसे। ओकर परीक्षा लेहे बर बहुरूपिया शंकर नट रूप धरके भिक्षा माँगे के ओखी करके पार्वती तीरन गइस। ओकरे सुरता म लोगन आनी बानी के रूप धरके घुँघरू-घाँघरा माने पैंजन-करधनी पहिन के आनी बानी के रूप बनाके माँगे बर टोली बनाके अउ अकेल्ला-दुकेल्ला तको निकलथे।


छेरछेरा म छेरछेराए के कोनो उमर, जात-पात अउ ऊँच-नीच नई राहय। लइका सियान बुढ़वा जवान कोनो छेरछेरा माँग सकथे।


अइसे तको कहे जाथे कि रूरू नाम के रक्सा के अत्याचार ले बाँचे बर जनता, देवी माँ के प्रार्थना करीन। देवी माँ अपन सखी मन संग मिलके रूरू ल डंडे -डंडा पीट-पीटके मार डारीन। एकरे सुरता म ये परब मनाथे। इहीच कथा ल कोनो अइसे तको बताथे कि छै-अरि माने छै झिन बइरी काम, क्रोध, लोभ, मोह, तृष्णा अउ अहंकार ले मुक्ति पाए बर याचक दुवार-दुवार घूमत हे। माई कोठी के मायने हिरदय अउ दात्री ल सऊँहत-साक्षात देवी माँ माने गे हवय।


एतिहासिक कहिनी येहू हवय कि जुन्ना बेरा म राजा के प्रतिनिधि मन गाँव म ढोल‘-मँजीरा अउ बाजा-गाजा संग मुनादी कराके कर/लगान (टैक्स) सकेलय। ये वार्षिक लगान हरेक बछर पूस पुन्नी के सम्पन्न होवय। यानि छेरछेरा पुन्नी तइहा जुग के वित्तीय वर्ष के आखरी दिन होवय। अभीन के आधुनिक जुग म रूपिया-पैसा लेनदेन के साधन होगे हे। पहिली लेनदेन के एकलऊता साधन वस्तु-विनिमय रिहिसे जेमा वस्तु के बदला वस्तु देहे जावत रिहिसे। वो समे कर म अनाज देहे जावय। कर वसूली के ये बूता ल रतनपुरिहा कलचुरी शासनकाल म राज्योत्सव के रूप मनावय। मराठा शासनकाल म ये प्रक्रिया नँदागे अउ राज्योत्सव एक तिहार बनके समाज म पसर के संघर-समागे। 


छत्तीसगढ़ के जुन्ना नाम कोसल रिहिसे जेकर राजधानी रतनपुर रिहिस। कोनो-कोनो येहू बताथे कि कोसलपति राजा कल्याण साव राज-पाठ के गहिर गुर सीखे बर दिल्ली के महाराजा इहाँ आठ बछर ले रिहिन। राजा के कौशल होके सकुशल कोसल लहुटे म प्रजा के खुशी के ठिकाना नई रिहिस। उन कोसलपति के सुवागत म रतनपुर पहुँच गे अउ जय-जयकार करे लगीन। प्रजा के अपार भीड़ अउ उन्कर प्रेम अउ आनन्द ल देखके रानी मगन होके महल के अटारी ले दूनो हाथ ले सोन-चाँदी के सिक्का ल प्रजा म लुटाए लगीस। वो बछर धान कटोरा छत्तीसगढ़ म धान के भरपूर पैदावार होए रिहिसे। राजा अउ प्रजा दूनो के घर-दुवार धन-धान्य अउ खजाना ले भरगे रहय। राजा उही पइत अपन जम्मो छत्तीसो गढ़पति ल ये आदेश जारी करीन कि मोर घर-वापसी के खुशी म हर बछर पूस पुन्नी के तिहार के रूप म मनाए जाय।


झगरा के नाम ओखी तइसे परब के नाम कहिनी-पोथी। जोरे म कतको कहिनी जुरिया जही अउ सकेले म कतकोन पोथी सकेला जही। कहिनी कुछू राहय, कतकोन राहय, फेर सबो के मूल म उमंग अउ उछाह उछरत-बोकरत ले भरे हे। सहकारिता अउ सहयोग के भावना भरे ये महान अन्नदाता परब के कोख ले कतकोन सहकारी संस्था, रामायण मंडली, लीला मंडली, भजन मंडली अउ सहकारी बैंक के रूप म ‘रामकोठी’ अउ शिक्षा मंदिर के रूप म सहकारी स्कूल मन खुले हवय। ये किसम ले छेरछेरा ले सकेलाए दान के अन्न ले गरीब, असहाय अउ बिपत परे मनखे मन के सहयोग हो जथे। छेरछेरा के सबले जबर अउ पोठ पाठ सहकारिता के भावना ल जागृत करना अउ ओला सींचके ओकर बिरवा ले पेड़ बनाना हे जेकर ले समाज विकास के रद्दा म सरलग-सरपट बाढ़त रहय।

छेरछेरा के दिन कान छेदाए बर शुभ माने गे हवय। तेकर सेति ये दिन गाँव-गँवई म लोहार अउ सोनार मन के पूछ-परख अउ महत्व बाढ़ जथे। साहूकार मन इही दिन अपन जुन्ना खाता-बही के हिसाब-किताब करके नवा खाता तको चालू करथे।

कतको जगमग अँजोर करय फेर दीया तरी अँधियार घर बनाके रही जथे, तइसे कस किस्सा कोनो शुभ घड़ी के तको एकात ठन ऐब निकल जथे। ये तिहार म तको ओइसनेहे एक ठो समाजिक बुराई ह बसर कर ले हवय। ये दिन कोनो मनखे अपन रिश्तेदार घर सगा बनके नई जावय। कहूँ चली देथे त ओला लोटा म पानी नई दे जाय। जबकि हमर छत्तीसगढ़ के परम्परा म सगा के सबले पहिली सेवा-सत्कार स्वरूप एक लोटा पानी दे जाथे। एकर पीछलग ये अंधविश्वास हवय कि ये दिन सगा ल लोटा म पानी दे ले बछर भर सगा के रेम लगे रहिथे जेकर ले घर के कुल देवी, धन देवी या लक्ष्मी रिसा जथे अउ घर ल छोड़के चल देथे।


पूस पुन्नी के दान ह नैमित्तिक दान कहाथे। ये बेरा म लइका मन टोली बनाके नाचत गावत छेरछेरा माँगे बर निकलथे। कतको जगा माईलोगन मन सुवा गीत गाथे त जवान मन कुहकी पारत डंडा नाचत छेरछेराथे। छेरछेरा माँगे के बूता ल छेरछेरई कहे जाथे। कुहकी एक विशेष प्रकार के कूक हरे जऊन उछाह अउ उमंग के प्रतीक  होथे।

जावत खानी महू आप मन के असीस खातिर थोरिक छेरछेरा लेथवँ-


छेरी के छेरा छेर बरकनिन छेर-छेरा 

माई कोठी के धान ल हेर हेरा

अरन बरन कोदो दरन

तभे देबे तभे टरन

धनी रे पुनी ठबक नाचे डुवा रे...


अंडा के घर बनाएन 

पथरा के गुंड़ी।

तीर-तीर मोटियारी नाचै

मांझा म बूढ़़ी।

कारी कुकरी करकराए

कुसियारी सेवय।

बुढ़िया ल मानुस मिलय

मोटियारी रोवय।

तारा रे तारा पीपर के तारा

जल्दी जल्दी बिदा करव जाबोन दूसर पारा



धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

छेरछेरा- परब अन्नदान*

 *छेरछेरा- परब अन्नदान*


हमर छत्तीसगढ़ ह किसान, मजदूर अउ बनिहार मन के धरती आय। खेती किसानी म रमे छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म तीज-तिहार के अपन एक अलग महत्व अउ पहचान हवय। तिहार ह कहूँ किसानी तिहार मने लोक के तिहार हो जाय त का अउ पूछना हे। छत्तीसगढ़ म तिहार मतलब जन-जन के अंतस म समरसता और मंगल भावना के उदात्त स्वरूप।अकती, जुड़वारो, सवनाही, ऋषि पंचमी, हरेली, पोरा, नवापानी (नवाखाई) , सुरहुत्ती, देवारी के संगे संग एक ठन हमर बिशेष तिहार जेमा सबो तिहार ले कतको जादा समता  के भाव हा देखब मा आथे, जेकर नाम हवय छेरछेरा।येला पूस महीना के पुन्नी शुभ तिथि म मनाय के विधान हवय। 

      किसान ह दुनिया के भूख भगाय के काम करथे, इही उदीम मा असाढ़ महिना म धान बोंवई ले लेके पूस महिना म धान मिंजाई तक किसान बर सात महिना हर जाॅंगर टोर कमाई के बेरा रहिथे। तब हाड़ाटोर काम मा थके तन अउ मन ला बीच- बीच म सुस्ताय बर अइसन तीज तिहार के महत्तम ह कई गुना बाढ़ जथे।

हरेली के शुभ बेला म चारो मूड़ा हरियर-हरियर खेत-खार ह देखके किसान के अंतस म कई ठन नवा सपना ह जनम धरथे त जुन्ना सपना ह उदूप ले हरियर घला हो जथे। गरभाही बखत धान ल पोटरी पान खींचत देखके ओकर सपना ह  उम्मीद के पाखी पहिरे दूर गगन म विचरण करथे।जब खेत मा पिंयर-पिंयर सोन कस झूमरत धान ला देखथे तब देवारी तिहार बर कोठी ल लीप-बहार के धान पान के अगोरा करत किसान के माथा म सपना के सपूरन होय के आस अउ खुशियाली के भाव ह जगजग ले दिखन लगथे।

सात महिना ले सेवा जतन के पाछू जब फसल ह कोठार डहर ले अन्न के रूप म कोठी म अमरथे तब किसान के अंतस ह खुशी के मारे कुलकन लग जथे।

              बीजा(धान) ल कोठी ले निकाल के खेत म बोंवई अउ खेत ले कोठी तक अमरई के बीच म कई ठन कहानी हे जे साॅंझर-मिंझर होके किसानी नामक उपन्यास बनके हमर बीच म आथे अउ येकर एक-एक ठन मरम ल हम सबला समझाथे।

अषाढ़ ले शुरू होके पूस महिना तक मुख्य पात्र किसान के काम होथे बरोबर-बरोबर सबला हिस्सेदारी बाॅंटना , चाहे वोहा पौनी-पसारी होय नइ ते कन्हो अउ। सेर-चाउर , बीजकुटनी (हरेली के पौनी मन बर अन्न दान) अउ सुखधना ( देवारी/ जेठोनी म हाथा अउ सोहई खातिर बरदिहा-बरदिहीन बर अन्न दान) हर तो पौनी मन के हिस्सा आय। किसान के कमई म बाम्हन-बसदेवा, भठरी ,हरबोलवा अउ मगंइया-झगंइया के घलव हिस्सा लिखाय रहिथे।चिरई-चिरगुन बर झालर, लइका मन बर सीला , आखरी लुवई म बढ़ोना, आखरी कोठार ( मिंजाई के आखरी दिन जब धान के हरेक दाना हर कोठी म पहुॅंच जथे) म बढ़ोना।

थोरिक पुरातन काल म लहुटके इतिहास के पन्ना मन ल खोधियाय म हमला बहुत कुछ जाने बर मिलथे , अपन अउ समाज के संपत्ति के बिसकुटा।

आखेट युग म जब मनखे मन कबिला म रहय तब उनकर मन म अपन-तूपन के भाव नइ रहय, शिकार ल आगी म भूंजत चारों मुड़ा म बैठके सबोझन बरोबर-बरोबर बाॅंट-बिराज के खावँय। मोर-मोर वाले थोरको सुवारथ नइ रहय। जब सभ्यता ह

पशुपालन युग म प्रवेश करिस तब मनखे-मनखे के सोच म तोर-मोर के भाव ह जनम धरिस। फेर आइस कृषि युग जेमा सुवारथ के घात बोल-बाला होगे।समाजिकता ह व्यक्तिगत सुवारथ म बदलगे। येकर ले गरीब मन रोटी बर मोहताज होय लगिन, समाज म असंतुलन के बीज बोंवागे, गरीब अउ धनी म असंतुलन बढ़गे, मने पूंजीवाद के जन्म होगे। आज पूंजीवाद के कारण समाज के बीच म सामूहिकता के भाव ल सिरावत आप खुदे देख सकथव। फेर येकर ले उलट व्यक्तिगत सुवारथ ले दूरिहा समाजिकता के भाव ह हमर लोक के तीज-तिहार म आजो देखे बर मिलथे। तब इतिहास अउ वर्तमान के तुलना करत हम कहि सकथन कि आखेट युग के बराबर-बराबर बाॅंटे के गुण ह हमर लोक-परब मन म आज घलव साफ-साफ दिखाई देथे। एक महापरब के रूप मा छेरछेरा के दिन येहा अउ स्पष्ट हो जथे। 

आज के दिन बिहनिया च ले का लइका अउ का सियान जम्मों झन घरों-घर छेरछेराय बर निकल जाथें। अलग-अलग टोली बनाके निकल जथें छेरछेरा माॅंगे बर।बिहनिया ले लेके रतिहा तक छेरिक-छेरा छेर मरकनिन छेर-छेरा के शोर मा गाॅंव-गली ह गमकेन लगथे। डंडा-नाच अउ सुआ-नाच सही कई ठन दल मन ह खुशी खुशी ले ये तिहार ल मनाथें। जेन घर के चौखट म छेरछेरइया मन पहुॅंचथे ओ घर वाले मन ले जतिक बन पड़थे ततिक दान-दक्षिणा देके सबला बिदा करथें। अउ वोहर अपन ईश ल सुमिरन करत गरब महसूस करथे कि मोर मेहनत के फल म जादा नइ ते कमती सबके  हिस्सेदारी हे।

                    तब हम कहि सकथन पूस पुन्नी मा अन्न दान के महापरब के दिन किसान हर अपन ॲंगना म आय चेलिक-चेला ( छेरिक छेरा) मन ला हाॅंसत- हाॅंसत  अवइया बरस म समे-सुकाल के मंगलकामना करत अन्न के दान- महादान के पूर्णाहुति करथे।


महेंद्र बघेल

खैरझिटिया: छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र

  खैरझिटिया: छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


                          कृषि हमर राज के जीविका के साधन मात्र नोहे, बल्कि संस्कृति आय, काबर कि खेती किसानी के हिसाब ले हमर परब संस्कृति अउ जिनगी दूनो चलथे। उही कड़ी के एक परब आय, छेराछेरा। जे पूस पुन्नी के दिन मनाय जाथे। ये तिहार ला दान धरम के तिहार केहे जाथे। वइसे तो ये तिहार मानये के पाछू कतको अकन किवदंती जुड़े हे, फेर ठोसहा बात तो इही आय कि, ये बेरा मा खेत के धान(खरीफ फसल) लुवा मिंजा के किसान के कोठी मा धरा जावत रिहिस, उही खुशी मा एक दिन अन्न दान होय लगिस, जेला छेरछेरा के रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मनाथें। हमर छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज हरे, येती छेराछेरा परब ला, घोटुल मा रहिके सबे विधा मा पारंगत होय, युवक युवती मनके स्वागत सत्कार के रूप मा मनाये जाथें, अउ दान धरम करे जाथें। पौराणिक काल मा इही दिन,भगवान शिव के पार्वती के अँगना मा भिक्षा माँगे के वर्णन मिलथे। सुनब मा आथे कि भगवान शिव अपन विवाह के पहली माता पार्वती तिर नट के रूप धरके उंखर परीक्षा लेय बर गे रिहिस, अउ तब ले लोगन मा उही तिथि विशेष मा दान धरम करत आवँत हें। 

                     ये दिन ले जुड़े एक पौराणिक कथा अउ सुनब मा मिलथे, कथे कि एक समय धरती लोक मा भयंकर अंकाल ले मनखे मन दाना दाना बर तरसत रिहिन, तब आदि भवानी माँ, शाकाम्भरी देवी के रूप मा अन्न धन के बरसा करिन। वो तिथि पूस पुन्नी के पबरित बेरा पड़े रिहिस। उही पावन सुरता मा, माता शाकाम्भरी देवी ला माथ नवावत, आज तक ये दिन दान देय के पुण्य कारज चलत हे। भगवान वामन अउ राजा बली के प्रसंग घलो कहूँ मेर सुनब मा आथे।

                रतनपुर राज के कवि बाबूरेवाराम के पांडुलिपि मा घलो ये दिन के एक कथा मिलथे, जेखर अनुसार राजा कल्याणसाय हा, युद्धनीति अउ राजनीति मा पारंगत होय खातिर मुगल सम्राट जहाँगीर के राज दरबार मा आठ साल रेहे रिहिस, अउ इती ओखर रानी फुलकैना हा अकेल्ला रद्दा जोहत रिहिस। अउ जब राजा लहुट के आइस ता ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, रानी फुलकैना मारे खुशी मा अपन राज भंडार ला सब बर खोल दिस, अउ अन्न धन के खूब दान करें लगिस, अउ सौभाग्य ले वो तिथि रिहिस, पूस पुन्नी के। कथे तब ले ये दिन दान धरम के  परम्परा चलत हे।

                  कोनो भी तिथि विशेष मा कइयों ठन घटना सँघरा जुड़ सकथे, जइसे दू अक्टूबर गाँधी जी के जनम दिन आय ता शास्त्री जी घलो इही दिन अवतरे रिहिन, दूनो के आलावा अउ कतको झन के जनम दिन घलो होही। वइसने पूस पुन्नी के अलग अलग कथा, किस्सा, घटना ला खन्डित नइ करे जा सके। फेर सबले बड़का बात ये तिथि ला, दान पूण्य के दिन के रूप मा स्वीकारे गेहे। अउ दान धरम कोनो भी माध्यम ले होय, वन्दनीय हे। छेराछेरा तिहार मा घलो वइसने दान धरम करत,अपन अँगना मा आय कोनो भी मनखे ला खाली हाथ नइ लहुटाय जाय, जउन भी बन जाये देय के पावन रिवाज चलत हे, अउ आघु चलते रहय। ये परब मा देय लेय के सुघ्घर परम्परा हे, छोटे बड़े सबे चाहे धन मा होय चाहे उम्मर मा आपस मा एक होके ये परब मा सरीख दिखथें। लइका सियान के टोली गाजा बाजा के संग सज सँवर के हाँसत गावत पूरा गांव मा घूम घूम अन्न धन माँगथे, अउ सब ओतके विनम्र भाव ले देथें घलो। छेरछेरा तिहार के मूल मा उँच नीच, जाति धरम, रंग रूप, छोटे बड़े, छुवा छूत,अपन पराया अउ अहम वहम जइसे घातक बीमारी ला दुरिहाके दया मया अउ सत सुम्मत बगराना हे। फेर आज आधुनिकता के दौर मा अइसन पबरित परब के दायरा सिमित होवत जावत हे। बड़का मन कोनो अपन दम्भ ला नइ छोड़ पावत हे, मंगइया या फेर गरीब तपका ही माँगत हे, अउ देवइया मा घलो रंगा ढंगा नइहे। *एक मुठा धान चाँउर या फेर रुपिया दू रुपिया कोनो के पेट ला नइ भर सके, फेर देवई लेवई के बीच जेन मया पनपथे, वो अन्तस् ला खुशी मा सराबोर कर देथे। एक दूसर के डेरउठी मा जाना, मिलना मिलाना अउ मया दया पाना इही तो बड़का धन आय। छेरछेरा मा मिले एक मुठा चाँउर दार के दिन पुरही, फेर मिले दया मया, मान गउन सदा पुरते रइथे।* इही सब तो आय छरछेरा के मूलमंत्र। कखरो भी अँगना मा कोनो भी जा सकथे, कोनो दुवा भेद नइ होय। फेर आज अइसन पावन परम्परा देखावा अउ स्वार्थ के भेंट चढ़त दिखत हे, शहर ते शहर गांव मा घलो अइसन हाल दिखत हे। ये तिहार मा ज्यादातर लइका मन झोरा बोरा धरे, गाँव भर घूम अन्न धन माँगथे, सबे घर के एक मुठा अन्न धन अउ मया पाके, उंखर अन्तस् मा मानवता के भाव उपजथे, उन ला लगथे, कि सब हम ला मान गउन देथे, छोटे बड़े,धरम जाति, ऊँच नीच, गरीब रईस सब कस कुछु नइ होय, अइसनो सन्देशा घलो तो हे, ये परब मा। छोट लइका मनके मन कोमल होथे, दुत्कार अउ भेदभाव देखही सुनही ता निराश हताश तो होबे करही।

                 छेरछेरा अइसन पबरित परब आय जे गांव के गांव ला जोड़थे, वो भी सब ला अपन अपन अँगना दुवार ले, दया मया देवत लेवत अन्तस् ले, दान धरम ले या एक शब्द मा कहन ता मनखे मनखे ले। ये खास दिन मा जइसे माता पार्वती अँगना मा नट बन आये शिव जी ला सर्वस्व न्योछावर कर दिन, राजा बली भगवान वामन ला सब कुछ दे दिस,माँ शाकाम्भरी भूख प्यास मा तड़पत धरतीवासी ला अन्न धन ले परिपूर्ण कर दिस, रानी फुलकैना अपन परजा मन ला अन्न धन दिस, अउ किसान मन अपन उपज के खुशी ला  थोर थोर सब ला बाँटथे, वइसने सबे ला विनयी भाव ले अपन शक्तिनुसार दान धरम करना चाही। लाँघन, दीन हीन के पीरा हरना चाही, अहंकार दम्भ द्वेष, ऊँच नीच ला दुरिहागे सबे ला अपने कस मानत मान देना चाही, मया देना चाही।

*दान धरम अउ मया पिरीत के तिहार ए छेरछेरा।*

*मनखे के मानवता देखाय के आधार ए छेरछेरा।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

[1/13, 12:28 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छेरछेरा अउ डंडा नाच


                     डंडा नाच हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख नाच मा शामिल हे। जेला अधिकतर  पूस पुन्नी याने छेरछेरा के समय मा नाचे जाथे। ये नाच मा मुख्यतः धँवई या तेंदू के छोट छोट डंडा के प्रयोग होथे, काबर कि एखर लकड़ी मजबूत अउ बढ़िया आवाज करथे। डंडा के आवाज के ताल मा ही नचइया मन गोल घेरा मा घूम घूम एक दूसर के डंडा ला एक निश्चित लय ताल मा बजाथें, अउ कमर मुड़ी ला हला हला के झुमथें। कुहकी पारना घलो डण्डा नाच के विशेषता आय। आजकल डंडा के संग ढोलक,झांझ अउ मन्जीरा तको ये नाच मा देखे बर मिलथे। ये नाच के एक विशेष लय ताल युक्त गीत होथे। डंडा नाच ला मुख्य रूप ले लड़का मन द्वारा किये जाथे। ये नाच मा लगातार घूम घूम के नाचे अउ डंडा टकरावत गीत ला दोहराए बर घलो लगथे। जब किसान मन के खेत के धान घर के कोठी मा धरा जथे ता दान पुण्य के ओखी मा मनाए जाथे छेरछेरा के तिहार, अउ इही बेरा घर घर जाके डंडा नाचत लइका सियान मन अन्न के दान पाथें। हमर छत्तीसगढ़ मा होरी के समय घलो डंडा नाचे जाथे, जेला डंडारी नाच कहिथे, फेर दुनो नाच अलग अलग बेरा व अलग अलग हावभाव के नाच आय। डंडारी विशेषकर पहाड़ी क्षेत्र मा होली के बेरा नाचे जाथे। मैदानी भाग मा डंडा नाच अउ पहाड़ी भाग मा इही सैला नृत्य कहे जाथे। जनश्रुति के अनुसार आदिवासी मन आदि देवाधिदेव महादेव ला मनाए बर येला नाचथे ता मैदानी भाग मा भगवान श्रीकृष्ण के रास नृत्य के रूप मा नाचे गाये जाथे। आदिवासी मन येला अपन पारम्परिक नृत्य मानथे। सुनब मा यहु आथे कि एखर शुरूवार राम रावण युद्ध के बाद राम विजय के समय आदिवासी  मन राम जी के स्वागत मा नाचिन, ता कहूँ कहिथे के एखर शुरुवात कृष्ण के रास लीला के समय होइस। ये नाच मा राम कॄष्ण के गीत के संग संग  शुरुवात मा भगवान गणेश, मां सरस्वती अउ गुरु वन्दना करे जाथे। पंडित मुकुटधर पांडेय जी हा ये नृत्य ला छत्तीसगढ़ के "रास नृत्य" घलो कहे हे। कतको झन मन एला छत्तीसगढ़ के डांडिया घलो कहिथे।

                      डंडा नाच मा समयानुसार साज सज्जा मा बदलाव होवत दिखथें। पहली धोती कुर्ता, कलगी, पागा,मोरपंख, कौड़ी, घुंघरू नचइया मनके सँवागा रहय, जे पारम्परिक रूप ले अभो दिखथे, फेर आजकल सुविधानुसार नचइया मन अपन अपन सँवागा के व्यवस्था करथें। ढोलक,झांझ मंजीरा संग मांदर, हारमोनियम,बासुरी  व अन्य कतको वाद्य यंत्र आज डंडा नाच के शोभा बढ़ावत दिखथे। नाचा पार्टी या फेर  हमर संस्कृति संस्कार ला देखाय के बारी आथे ता ये नाच ला कभू भी कलाकार मन मंच के माध्यम ले लोगन बीच परोसथे। नाच के बीच परइया कुहकी ला कइसे लिख के बतावँव? उह उह एक लय मा अउ एक विशेष बेरा मा नचइया मन एक साथ चिल्लाथें। देखत सुनत ये नाच बड़ मनभावन लगथे। आजकल डंडा नाच मा कतको प्रकार के करतब तको कलाकार मन करत दिखथें। आजकल बांस के डंडा घलो चलन मा आगे हे। डंडा नाचे बर सम संख्या मा नर्तक होथे, जिंखर दुनो हाथ मा  एक एक डंडा होथे। गोल घेरा मा डंडा ला दाएं बाए नाचत साथी मनके डंडा ला ठोंकत ये नृत्य ला करे जाथे।

                    वइसे तो डंडा नाच मा बड़ अकन गीत गाये जाथे, सबके वर्णन करना सम्भव नइहे, तभो कुछ पारम्परिक गीत ला लमाये के प्रयास करत हँव। सुमरनी ले ये नृत्य चालू होथे। गणेश वंदना, सरस्वती वंदना, रामकृष्ण अउ माता पिता गुरु के वन्दना घलो ये नृत्य मा सुने बर मिलथे।। सुमरनी गीत के एक बानगी,---

'पहिली डंडा ठोकबो रे भाई, काकर लेबो नाम रे ज़ोर,

गावे गउंटिया ठाकुर देवता, जेकर लेबो नाम रे ज़ोर।

आगे सुमिरो गुरु आपन ला, दूजे सुमिरों राम रे ज़ोर,

माता-पिता अब आपन सुमिरों गुरु के सुमिरों नाम रे ज़ोर।'


कुछ अउ गीत, ज्यादातर गीत के शुरुवात "तरीहरी नाना रे नाना रे भाई" काहत चालू होथे, जेखर बीच मा कहानी, कथा अउ बारी बखरी, खेती-खार संग परब तिहार के वर्णन रहिथे।


1, "एकझन राजा के सौ झन पुत्र,

    उनला मँगाइस हे मुठा मुठा माटी।"


2,  ओरिन ओरिन मुनगा लगाएंव।

     वो मुनगा फरे रहे लोर रे केंवरा, 

      तैं डँगनी मा मुनगा टोर।


3,   मन रंगी सुआ नैना लगाके उड़ भागे।

      उड़ि उड़ि सुवना, घुटवा पे बइठे।

      घुटवा के रस ला ले भागे, मन रंगी


4,  मैं बन जा रे लमडोर,

     नेकी मैं बन जा।


5,   हाय डारा लोर गे हे न।


6, तहूँ जाबे महूँ जाहुँ, राजिम मेला


ये सब पारम्परिक गीत के आलावा आजकल नवा नवा गीत भी देखे सुने बर मिलथे।

                  डंडा नचइया मन दुनो हाथ मा डंडा लेके, गोल किंजरत अलग अलग प्रकार के डंडा नाचथे। डंडा नाच के कतको प्रकार हे, एखर बारे मा हमर पुरखा कवि डॉ प्यारेलाल गुप्त जी मन अपन पुस्तक "प्राचीन छत्तीसगढ़"मा घलो विस्तार ले लिखें हें। गुप्त जी अनुसार दुधइया नृत्य, तीन डंडिया, पनिहारिन सेर, कोटरी झलक, भाग दौड़, चरखा भांज आदि कतको रूप प्रचलित हे। एखर आलावा सियान मन आधा झूल, टेटका झूल,पीठ जुड़ी, समधी भेंट, घुचरेखी आदि प्रकार के डंडा नाच के बारे मा घलो बताथे। ये सब नाच ल नाचे के अलग अलग तरीका हे, कहे के मतलब सबके अलग अलग परिभाषा हे,नाच शैली हे। जेखर विस्तार मा चर्चा फेर कभू करहूँ।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बदलाव चन्द्रहास साहू मो 8120578897

 बदलाव

                                              चन्द्रहास साहू

                                       मो 8120578897


सिरतोन जम्मो कोती बदलाव होवत हाबे अउ बदलाव होना प्रकृति के नियम आवय। रुख-राई अपन जुन्ना पाना ला छोड़ के नवा फूल पाना के सवांगा कर लेथे । तभे तो पतझड़ के पाछू सावन के हरियर आथे। सिरतोन बदलाव संग बदलना सुघ्घर होथे फेर जम्मो बदलाव हा सुघ्घर होथे का ...? आज संस्कृति, संस्कार,परंपरा अउ रीति-नीति मा बदलाव होवत हाबे। सलुखा, धोती-कुर्ता,मुड़ी मा पगड़ी पहिरे कोनो दिखथे का....? जम्मो कोती फुलपैंट जींस वाला दिखथे। अब शहर के सवांगा गाॅंव देहात मा खुसरगे हाबे। सिरतोन इही तो विकास आवय। टूरा हा टूरी  बरोबर चुन्दी बढ़ा के किंजरथे अउ टूरी हा टूरा बरन धरे किंजरत हे। टूरी के हाथ मा चूरी कमतियावत हाबे अउ टूरा हा कान मा बारी, नाक मा नथनी पहिरत हे। ये कइसन बदलाव आवय ? 

जम्मो ला गुणत-गुणत शहर जावत हावंव मेंहा आज। 

                   भलुक टीवी अउ मोबाइल ले ग्लोबलाइजेशन होइस। एक दूसर देश ले आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति-सभ्यता के  लेन-देन होइस फेर मोर गाॅंव देहात मा बदलाव के तीन पोठ कारण हाबे। गाॅंव के उत्ती कोती के प्रगति मैदान मा बड़का फेक्ट्री खुले हे , दइहान मा बड़का इंजीनियरिंग काॅलेज अउ सदभावना चौक मा दारु भट्ठी। चार झन रेजा अउ छे झन कुली  बस कमाथे ये फेक्ट्री मा।  गाॅंव के कोनो मनखे फेक्ट्री मा अधिकारी अउ साहब नइ हाबे भलुक परदेसिया मन गोंजाये हाबे खोसखिस ले। गाॅंव के कोनो लइका नइ पढ़े ये काॅलेज मा फेर  मोटियारी अउ जवनहा ला जादा प्रभावित करे हाबे। टूरा ला कोन कहाय टूरी मन घला सिगरेट फुंकत भरर-भरर गाड़ी चलाथे। 

टूरा टूरी दूनो एक बरोबर कोनो फरक नहीं। अब नवा चलागन देखे ला मिलत हाबे ये हाई सोसायटी मा। लिव-इन रिलेशनशिप मा राहत हाबे टूरा-टूरी एक संघरा । फेर गाॅंव मा क्रांति लाने के बुता करे हाबे तेन आय-दारु भट्ठी। सिरतोन जनम भर के अबोला मनखे घला एके गिलास मा पीयत हाबे। जात-पात, ऊंच-नीच के कोनो भेद नइ हाबे इहां। .....अउ न कोनो मुहूर्त लागे। जब मन तब शीशी ला बिसा सकत हस। अपरंपार महिमा हाबे येकर......अब्बड़ बदलाव ?

यहूं तो मोर गाॅंव के बदलाव आवय। 

           चकाचक करत रोड मा अब मोर फटफटी के टाॅप गेयर लगा के दउड़ाये लागेंव। थोकिन बेरा मा अम्बेडकर चौक अमर गेंव अउ अब सिहावा चौक कोती जाये के उदिम करत हॅंव फेर ये का....? भीड़ मा फदक गेंव। नगर सैनिक पुलिस अधिकारी मोला छेंक लिस। मेंहा सकपका गेंव। खीसा ले मोर आइडेंटिटी कार्ड ला निकालेंव। ससन भर देखिस मोला अउ मोर आइडेंटिटी कार्ड ला। 

"अच्छा तो तुम पत्रकार हो...?''

"जी सर!''

मुचकावत मेंहा हुंकारु देयेंव। 

"लगते तो नही हो  ?''

डरवा डारिस अब मोला वोकर प्रश्न हा। छत्तीसगढ़िया आवन साहब ! चेहरा ले ही गरीब दिखथन तब का कर डारबो ?  मने मन मा फुसफुसायेंव।

"पंदरा बच्छर हो गया साहब पत्रकारिता करते। भलुक पत्रकारिता की पढ़ाई कोनो युनिवर्सिटी ले नही किया हूं फेर नवा पीढ़ी के भावी पत्रकार लोग मुझसे पत्रकारिता सीखने आते हैं दोरदिर ले।''

महूं फेंके लागेंव अब। 

साहब मुचकावत रिहिस। करु मुचकासी। मेंहा अब आगू बाढ़ेंव। सत्ता पार्टी के जिला अध्यक्ष ले जोहार भेंट करेंव अउ पुछेंव घला।

"का के भीड़ आवय कका ?''

हमर मंत्री जी हा आज ले जेल यात्रा मा जावत हाबे। गोबर घोटाला मा जमानत लेये बर इंकार कर दिस वोकरे सेती एण्टी करप्शन ब्यूरो  हा गिरफ्तार कर के जेल लेगत हाबे हमर मंत्री जी ला।  पहिली चक्का जाम करके विरोध प्रदर्शन करबो ताहन चंदन-बंदन, रंग-गुलाल, फूल-माला पहिराके आरती उतारके पठोबो हमर नेता ला जेल।''

कका किहिस हाथ मा फूल दुबी नरियर के भेला धरे रिहिस अउ नेताजी जिन्दाबाद के नारा लगावत चक्का जाम करे बर चल दिस।

का होही भगवान हमर देश के अइसने मा। अब संसो करे लागेंव मेंहा। स्वतंत्रता सेनानी मन गली खोर ले गुजरे तब अइसना स्वागत सत्कार होवय फेर अब नेता मन के....? 

ये कइसन बदलाव आवय परमात्मा ?

जी कलपगे मोर।

"ट्रिन..... ट्रिन........ !''

मोर फोन के घंटी बाजिस। 

"हलो ! सीताराम महापरसाद!''

"सीताराम महापरसाद !''

महापरसाद आवय । पैलगी जोहार करेंव। अब्बड़ दिन मा सुरता करत हाबे।

"सुना महापरसाद ! सब बने-बने हाबे न ?''

"का बतावंव महापरसाद ! मोर एकलौता बेटा पप्पू ला समझा दे गा ! मर जाहूं कहिथे।''

मेंहा संसो मा परगेंव। बने तो रिहिस लइका हा। पढ़े-लिखे मा अगवा रिहिस । बैंगलोर मा कम्प्यूटर कोर्स करके साफ्टवेयर इंजीनियर हाबे। न पइसा के कमती हाबे न कोनो रोकइयां-छेंकइया। अपन हिसाब ले जिनगी जी सकथे। फेर का दुख परगे ? 

"का होगे महापरसाद ! बने फरिहा के बताबे तब जानहूं जी।''

मेंहा पुछेंव फेर अब मोर आगू मा बाधा बिपत आगे।  हिन्दू जागरण मंच के रैली, गाड़ी मोटर के ची.......पो...... अउ नारा जयकारा।  आज वेलेंटाइन डे आवय। स्कूल काॅलेज गार्डन मा पहरादारी करे बर रैली निकाले हाबे। सड़क तीर के पीपर छइयाॅं मा  ठाड़े होयेव अउ अब फोन लगा के समझाये लागेंव महापरसाद ला।

"एकलौता बेटा आवय-कुल के दीपक। मरे हरे ले छेंक अउ मनाये के उदिम कर तब बनही महापरसाद !'' 

"इही तो संसो आवय महापरसाद ! वोहा  काकरो ले मानत नइ हे।''

"आजकल के लइका मन अब्बड़ ढीठ हाबे गा ! जौन मांग करथे तौन ला मनवा के रहिथे। जान रही तब कइसनो जी खा लेबो फेर कोनो अनीत हो जाही तब...? तिही हा झुक जा अब। मान ले वोकर गोठ ला।''

मेंहा संसो करत केहेंव।

"कइसे मान जावंव महापरसाद ! माने के लइक बर कभू मना नइ करो। फेर येहां ?''

"बने फोरिहा के बता महापरसाद!''

''टूरा पप्पू हा पप्पी बनहूं कहिथे।'' 

"का.....?''

"हहो...! टूरा  पप्पू हा अब पप्पी बनहूं कहिके धोरन धरे हाबे।''

"का गोठियाथस जी आनी-बानी के....?''

"सिरतोन भइयाॅं ! टूरा पप्पू हा अब लिंग चेंज करवाके टूरी बनहूं कहिथे। मेंहा संसो मा बुड़गे हावंव। कइसे काहंव टूरा ले, जा टूरी बन जा अइसे।''

मोर महापरसाद के गोठ सुनके मोला झिमझिमासी लाग गे । अकचका गेंव । 

"अइसना घला होथे महापरसाद ?''

मेंहा पुछेंव।

"हहो ! दिल्ली, बम्बई बैंगलोर अउ विदेश मा तो होथे फेर  ..... हमर रायपुर के गली-गली,खोर-खोर मा टूरा ले टूरी अउ टूरी ले टूरा बनाये के, सेक्स आर्गन इंप्लांट करे के दुकान खुलगे हाबे।''

"अरे...!''

मोर मुहूॅं उघरा रहिगे अकचकाये लागेंव। मोर गोसाइन के गोठ के सुरता आगे उदुप ले। 

तेंहा काला जानथस भोकवा नही तो ...! दुनिया कहाॅं ले कहाॅं पहुंच गे अउ कुआं के मेचका बरोबर हाबस तेंहा। उप्पर ले पत्रकार ...? पत्रकार मन तो कुकुर टाइप होना चाहिए खबर ला सुंघ के जान डारथे। न तोला सुंघे ला आवय न हाड़ा चुचरे ला। माइके ले कुछू पंदोली मिल जाथे तब घर चलत हाबे नही ते कोन जन.....? गोसाइन अइसना तो कहिथे बेरा-बखत मा। 

बेरोज़गारी मा का नइ करे हॅंव..? पनही बेचे के धंधा तक करेंव फेर उधारी अउ किराया मा बोजा गेंव। छोड़ ये गोठ ला....?

जी घुरघुरासी लाग गे मोला। मकई चौक मा बिराजे संकटमोचक दक्षिण मुखी हनुमान जी ला पैलगी करेंव अब अउ महापरसाद के आगू के गोठ ला सुने हॅंव।

"महापरसाद ! लइका हा बैंगलोर पढ़े बर गेये रिहिन तब कोनो आने टूरा संग रुम पार्टनर रिहिन। संगे संग उठना-बैठना, खेलना-कूदना, खाना-पीना, पढ़ना-लिखना, सुतना-बसना जम्मो बुता ला करे। एके थारी मा खाये तब गहरी दोस्ती घलो होगे। रुम पार्टनर तक तो सुघ्घर हाबे फेर अब लाईफ पार्टनर बन के जीबो खाबो कहिथे तब का करंव....?''

"ये तो अप्राकृतिक हावय भइयाॅं ! देश समाज अउ नवा पीढ़ी मा का असर पड़ही ? भगवान हा दुनियां बनाइस तब नारी अउ पुरुष ला घलो सिरजे हाबे। ...अउ वोकरे मेल-मिलाप ले नवा पीढ़ी हा जनम धरथे। इही तो प्रकृति आवय जी ! ...अउ जौन हा प्रकृति के विरोधी हाबे तौन हा गैर कानूनी आवय।''

मेंहा कानूनी  गोठ करे लागेंव छाती फुलोवत, गरब करत।

"नही महापरसाद ! तेंहा नइ जानस अब तो संविधान मा बदलाव होगे हाबे। कोनो घला बालिग हा अपन हिसाब ले जिनगी जी सकथे। कोनो संग बिहाव कर सकथे। बस दूनो के आपसी सहमति होना चाही। अमेरिका इंग्लैंड रुस जापान मा तो कानूनी मान्यता घला हाबे। हमरो देश के मेट्रो शहर दिल्ली बम्बई बैंगलोर कलकत्ता मा समलैंगिक समूह मन के धरना-प्रदर्शन चलत हाबे। कोर्ट मा बहस चलत हाबे। गे समलैंगिक अउ एल जी बी टी क्यू ग्रुप के नाव ले जाने जाथे येमन ला। टूरा मन तो हाबेच फेर टूरी मन के घलो अब्बड़ संख्या हाबे।''

"का.....?  टूरी मन घलो झपावत हे....?''

मुँहूॅं उघारत पुछेंव महापरसाद ला। आरुग भोकवा हस गोसाइन के गोठ के फेर सुरता आगे।

"हाॅंव जी ! कोनो कमती नइ हाबे। जइसे टूरा टूरा मिलके बिहाव रचावत हाबे वइसना टूरी टूरी घला बिहाव करथे। अइसन जमाना आ गे हाबे।''

"ये का जबाना आवय भैया ? ये तो घोर कलजुग झपागे महापरसाद ! अइसना मा का होही ये सुघ्घर दुनियां के....?''

मेंहा संसो करे लागेंव।

"दुनियां का होही तेखर अभिन संसो नइ हाबे भइयाॅं ? अभिन तो मोर लइका कइसे बाॅंच जावय येकर संसो हाबे। ले झटकुन आ हमर घर। कोनो उदिम करबोन।''

"हाॅंव महापरसाद !आवत हावंव झटकुन।''

मेंहा केहेंव अउ महापरसाद के गाॅंव कोती के रद्दा मा दउड़े लागेंव अब। 

"ट्रिन...... ट्रिन.......!''

मोर फोन फेर घरघराईस। मोर तो बीपी बाढ़गे। हाथ पाॅंव फूले लागिस। लहू के संचार बाढ़गे। ...अउ हइफो... हइफो.... सांस चले लागिस। मोर आफिस के फोन आवय ब्यूरो चीफ सिंग साहब रिहिस। नाम मा सिंग तो हाबेच फेर बुता बर घला हुदेनत रहिथे। फेर मुहूॅं....? जब गोठियाथे भूरी बिच्छी बरोबर झार चढ़ जाथे।  आगी लग गे हाबे, .... अब्बड़ करु, अब्बड़ बीख.....! थरथरावत फोन उठायेंव।

"हलो !''

"कस बे कोढ़िया, साले आधा दिन निकल गे अउ अभिन तक ब्रेकिंग न्यूज नही भेजे। कितने ही जोड़ीया हाॅटल मे रंगरेलियां मना रहे हैं, कोई सड़क किनारे मार खा रहा है तो कोई खुलेआम मार रहा है, कोई गार्डन में, कोई टाकिज में एवरी पब्लिक प्लेस मा माहौल है। किसी को भी दबोच और आफिस लेकर आओ। उसको कैसे ऐंठना है हम बतायेंगे। ..... लिव-इन रिलेशनशिप मे रहने वाली लड़की का बलात्कार करके फांसी पर लटका दिया गया था उसमे क्या तफ्तीश हुई एस आई से मिलकर बताना। ऐसे ही कोई और मामला हो तो लेकर आओ...नही तो अपना सूरत मत दिखाना.......। टू....टू.... !''

फोन कटगे अइसनेच आवय लपरहा  हा । इहाॅं अपन हा आने राज ले पतरी चांटे बर आये हे अउ छत्तीसगढ़िया मन ला जुटहा कहिथे। सड़े बासी खाने वाला कहिथे। भलुक आगू मा नइ बखान सकेंव तभो ले मन के भड़ास ला निकालत नंगतहे बखानेव अउ अब ब्रेकिंग न्यूज खोजे लागेंव। ...फेर ये ढ़ोगियाहा नेता मन हा ब्रेकिंग न्यूज हो सकथे का ? ब्रेकिंग न्यूज बना के वोकरे राजनीति ला चमकावत हाबे खउवा टाइप पत्रकार मन। आज के दिन दू मयारुक मिलत हाबे तौन पहरे दारी....? इही तो उम्मर आवय भई !  जीयन खावन दे फेर अश्लीलता झन होवय अपन सामाजिक दायित्व ला निभाये के उदिम करत ब्रेकिंग न्यूज खोजे लागेंव। 

                 सिरतोन जतका विकास होइस संस्कृति अउ संस्कार के वोतका विनाश होवत हाबे। गड़वा बाजा नंदागे, पतरी वाला मांदी नइ दिखे। बिहाव के नेंग-जोग अंधियागे। ....का बाचिस ?  आधा ले जादा बिहाव तो अब कछेरी मा होवत हाबे। ....अउ अब बिहाव के जरूरत घला का हे....? लिव-इन रिलेशनशिप मा सब हो जाथे तब। इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गे हाबे न गाॅंव देहात मा अपसंस्कृति तो आबेच करही ?  हमरो गाॅंव देहात मा अब अइसना रहे लागे हाबे टूरा टूरी मन।  एक बेरा ऐकर विश्लेषण करत लेख लिखे रेहेंव। आज अउ देख के संशोधन कर दुहूं। ...या महापरसाद के लइका ला बचा लुहूं यहूं तो ब्रेकिंग न्यूज रही। 

जम्मो ला गुणत-गुणत अब ब्रेकिंग न्यूज खोजत महापरसाद के गाॅंव के रद्दा मा जावत हावंव। थोकिन दुरिहा गेयेंव तभे गार्डन तीर के घर मा भीड़ सकेलाये हाबे।  

"का होगे...?  का होगे....?''

जम्मो कोई बरोबर महूं आरो करेंव।

"आजकल तो जवनहा ले जादा अधेरहा उम्मर वाला मन उप्पर जवानी के जोश छावत हाबे।'"

"का होगे भाई ! कुछू बताबे तब तो जी।''

मेंहा फेर पुछेंव।

"बहू-बेटा, नाती-पंथी घर-दुवार जम्मो ला छोड़ के लिव-इन रिलेशनशिप मा रेहे बर चल दिस डोकरा हा।''

"थोड़को लाज शरम नइ आवय येमन ला।''

"कलजुग झपागे रे !''

"जवनहा मन ले जादा तो बुढ़वा मन अगवा गे।''

"नवा पीढ़ी ला का सीखोही अइसन मन ?''

जम्मो कोई एक दूसर संग गोठ बात करत हाबे। 

"..... नाक कटा देस पापा !''

बेटा काहत हाबे।

"कहान्चो मुहूॅं देखाये के पुरती नइ होयेंन। माई मायके तक मा तोर करतुत के सोर अमरगे। ...वोकर ले मर जातेस ते अतका बदनामी नइ होतिस।''

बहुरिया मन बफलत हे। सिरतोन डोकरा मन ला अइसन करे के का जरुरत हाबे। एक मुठा खातिस अउ परे रहितिस राम भजन करत। ....फेर ये मन तो रावण ले घला अगवा गे हाबे। 

महूं मिंझरगे रेहेंव अब वो भीड़ मा। मोरो सोच अब वोकरे मन बरोबर होये लागिस। फेर अइसन करे के नौबत काबर आइस। येकर जर तक जाये ला लागही। 

मोर पत्रकार मन मा अब डोकरा-डोकरी ले मिलके वोकर पक्ष ला जाने के होइस। रत्नाबांधा चौक मा अमरगेंव अब। माइलोगिन हा बबाजात करा आथे तब उड़हरिया खुसरगे कहिके गोठ होथे फेर ये मामला मा तो डोकरा हा चल दिस। 

गुणत-गुणत वोकर घर अमरगेंव।

इहिन्चो अब्बड़ भीड़ सकेलाये हाबे। जौन ला जइसन सुझत हाबे वइसने गोठियावत हाबे। 

नानकुन माटी वाला घर खपरा छानी के। डेखरा मा चढ़े  कुंदरु के नार छतराये हाबे अंगना मा। कोठा मा गाय पैरा खावत हे। बछरू दूध पीयत हे चपर-चपर। डोकरी गोरसी सपचावत हे आँखी रमंज-रमंज के। बैरी गुंगवा हा डोकरी के आँखी ले आँसू निकाल दिस अउ आँखी लाल कर डारिस। जम्मो ला देखत हॅंव मेंहा। कतको झन अब्बड़ पुछे रिहिस लिव-इन रिलेशनशिप के बारे मा फेर सब कोई के भादो उजार कर दे रिहिस बखान-बखान के डोकरी हा। 

हमू मन ला चैन ले जीये के अधिकार तो हाबे तब काबर पाछू परे हव जम्मो कोई। समाज के ठेकेदार अउ रोटी सेंकइया मन ला अब्बड़ बखाने रिहिस। फेर ये बुढ़त काल मा काबर अइसन करत हाबे ये जानना जरुरी हाबे न ?

सामरथ करके कुछू उदिम करत मोहाटी के खैरपा ला टारेंव अउ वोकर घर गेयेंव। 

"पाॅंव परत हॅंव दाई !''

डोकरी के पैलगी करत केहेंव। पहिली ससन भर देखिस मोला डोकरी हा अउ चिन्हे के उदिम करिस। 

"भटगांव वाला लक्ष्मण साहू के बेटा आवंव। मोर दाई हा तोर बर खाई खजाना जोरे हे अउ सोर संदेश लानबे कहिके पठोये हाबे।''

मेंहा जलेबी ला देवत केहेंव। महापरसाद घर जुच्छा थोड़े जातेंव जी ? चौक मा बिसा डारे रेहेंव।

अब मचोली ला लान के दे दिस मोला। 

"हहो, अब बुढ़त काल मा नइ चिन्हाय। का कर डारबे ? उहिन्चो अब्बड़ परिवार अउ गोतियार हाबे।  सब्बो कोई हा नइ चिन्हाय अब। अब्बड़ बाटूर सांगुर घला होगे हाबे। काला जानबे। सब बने-बने हाबे लइका लोग मन, सियान मन ?''

डोकरी पुछिस। अनचिन्हार संग हाॅंव मे हाॅंव मिलाये लागेंव अब।

डोकरा घला खटिया मा ढ़लंगे रिहिस। खाॅंसत घला रिहिस। बाम लानिस अब डोकरी हा अउ डोकरा के छाती मा लगा के गोरसी के आगी मा सेके लागिस। डोकरा के टुप टुप पाॅंव परके जोहार भेंट कर डारे रेहेंव। 

"कोन गाॅंव के सगा आवय डोकरी दाई ? मेंहा नइ चिन्हंव वो !''

"....अब का सगा ? ....का अपन...? का बिरान बाबू ...? अब हम एक दूसर के आवन।''

"बिन बिहाव के दाई !''

"का करबे ? जौन अपन रिहिस तौन तो दगा दे दिस।... जीवन के बीच रद्दा मा दगा दे दिस। मोला छोड़के परलोकी होगे। अब मेंहा अकेल्ला परगेंव। न लइका न लोग  ? बुढ़ापा बर कोनो सहारा तो लागही। ये सियान के तो भरे पूरे परिवार हाबे फेर सब अबिरथा आवय कोनो साथ नइ दिस।''

डोकरी बताइस। अब डोकरा के गोठ मिंझरगे।

हाॅंव बाबू ! डोकरी सिरतोन काहत हाबे। एक दिन बाथरूम मा गिरगेंव। माड़ी कोहनी छोलागे। कोनो नइ उठाइस। कोनो दवई पानी नइ करिस। जम्मो कोई बेटा बहुरिया मन अब्बड़ पइसा कमाथे। कोनो हा बिजनेस करथे। कोनो बड़का अधिकारी हाबे। तब कोनो हा समाजसेवी नेता हाबे फेर बाप के हाल चाल जाने बर काकरो करा समय नइ हे। .....अउ अब जम्मो जैजात हा उकरे मन के नाव मा होगे तब मोर मरे अउ जीये ले कोन ला का फरक पड़ही....। वृध्दाश्रम पठोवत रिहिस तब इही डोकरी हा मोला पंदोली दिस। कोन जन डोकरी ला कोन बताइस ते...? जब सब बने-बने रिहिस तब डोकरी हा मोर घर बुता करे ला आ जावय कभु-कभु अतकी तो चिन्ह-पहिचान आवय।''

डोकरा बताइस।

"संस्कृति बचाओ संस्था हा अब्बड़ हुड़दंग मचाइस अउ अब्बड़ धमकी घला दिस। समाज के ठेकेदार मन बिपत के बेरा नइ आइस अउ एक संघरा रहे ला धरे हावन तब दोरदिर ले आगे। गारी बखाना दिस। मुर्दाबाद के नारा लगाइस। लिव-इन रिलेशनशिप मा रहिथो कहिके दुतकारिस, थू थू करिस फेर का करंव.....? । जीयत हंव तब सहे ला पड़ही। एक दूसर के सेवा करे बर संग मा राहत हन बाबू ! कोनो लिव-इन रिलेशनशिप फिव इन रिलेशनशिप ला नइ जानंन। ....बस राहत हॅंन। जम्मो ला 

डोकरी बताइस अउ रोये लागिस।

सिरतोन येहां पाश्चात्य के लाईफ स्टाइल नोहे भलुक एक दूसर के संग जीये-मरे के बंधना आवय। ... अनजान बंधना। मोला ब्रेकिंग न्यूज मिल गे रिहिस अब। 

"ले बने राहव दाई बबा हो। कूछू बुता पर जाही तब सोरिया लुहूं। अपन विजिटिंग कार्ड ला देवत केहेंव अउ बिदा लेये लागेंव। अदौरी बरी अउ  आमा अथान ला जोरत किहिस।

"लइका मन खाही बाबू लेग जा। कोनो-कोनो बरी हा घोटराहा हाबे बाबू ! बेटी मन ला कहिबे जादा बेर ले चूरोही बता देबे अउ डोकरी ला गारी बखाना झन देये ला कहिबे घोटराहा बरी बर।''

डोकरी मोला बरजे लागिस हाॅंसत-हाॅंसत। सिरतोन डोकरी के मया दुलार अउ आसीस पाके मेंहा अघा गेंव।

"ट्रिन..... ट्रिन.....!''

मोबाइल फेर घरघराईस। महापरसाद आवय फेर फोन करत रिहिस। हरियर बटन ला दबायेंव। 

"हलो! आवत हावंव  महापरसाद मेंहा।''

"झटकुन आ महापरसाद अउ हमन दूनो कोई ला बचा ले।''

रोवत किहिस महापरसाद हा। मेंहा अकचका गेंव अउ संसो करे लागेंव।

"अब का होगे भईयां तोला ?''

"टूरा हा खेत खार अउ ज़मीन जायदाद ला बेच दिस। घर ले खेदार दिस हमन दूनो कोई ला। तारा बेड़ी लगा देहे । एकाउंट  के जम्मो पइसा ला निकाल लिस अउ बैंगलोर भाग के अपन गे पार्टनर के संग बिहाव करहूं कहिथे। अपन लिंग के बदलाव करके टूरी बनहूं कहिथे। ये कइसन बदलाव आवय महापरसाद । अइसन बदलाव होही तब हमन काकर अधार मा जीबो....? कइसे जिनगी कटहीं....? हमन तो जिते जियत मर गेंन हो....हो.....।''

महापरसाद अब रोये लागिस। सिरतोन ये कइसन बदलाव आवय। महूं गुणे लागेंव। ब्रेकिंग न्यूज मिले कि झन मिले। अब महापरसाद ला सम्हाले बर चल देयेंव मेंहा वोकर घर।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

सकट चतुर्थी

 सकट चतुर्थी

       


              चंदा, सुरुज, ग्रह नक्षत्र के पूजा पाठ बारो महीना चलते रथे। वइसने एक पूजा व्रत होथे, सकट तिहार। ये तिहार के दिन चौथ के चंदा मा भगवान गणेश ला विराजे मानके।ओखर दर्शन करके बेटी बहिनी मन, अपन निर्जला ब्रत ला तोड़थे, अउ अपन लइका लोग के सुख समृद्धि के कामना करथें। ये सन्दर्भ मा एक कथा आथे कि, भगवान शिव हा, पार्वती द्वारा मइल ले बनाय गणेश जी के मुड़ी ला काट देथे, जेखर ले पार्वती बहुत दुखी हो जथे, अउ जब गणेश जी ला जिंदा करे बर कथे, ता ओखर मुड़ मा हाथी के मूड़ लगाथे। पावर्ती देख के खुश होथे, फेर जब अपन लइका के पहली वाले कटे मुड़ी ला देखथे ता विलाप करे लगथे। पार्वती ला विलाप करत देख, ओखर प्रण, व्रत अउ इच्छा अनुसार वो मुड़ी ला चन्द्रमा मा,शिव जी हा शुशोभित कर देथें। अउ उही दिन ले सकट तिहार के उत्तपत्ति माने जाथे। माता पार्वती अपन लइका गणेश के पुर्नजीवन अउ कटे मुड़ी के संसो बर निर्जला व्रत रहिके, भगवान शिव ला अपन बात मनवाथे। तपोबल ले प्रभावित भगवान शिव, चन्द्रमा मा मुड़ ला स्थापित करे के बाद, ये आषीश देथें कि सकट के दिन जउन भी महतारी मन, चाँद ल देखत पूजा पाठ करहीं, उंखर लइका लोग के सब संकट दुरिहा जही। उपास धास के ये सिलसिला आदि काल ले चलत आवत हे।    

                      ज्यादातर ये उपास ला लोधी कुर्मी समाज के बेटी माई मन रहिथे। पहली कस आजो ये तिहार मा, बेटी माई मन, अपन मइके मा जुरियाके सबो सँवागा सजाके रतिहा चंदा ला नमन करत अपन निर्जला व्रत ला तोड़थें अउ लइका लोग घर परिवार के सुख समृद्धि के कामना करथें। ये दिन माटी के खिलौना, जेमा डोंगा, बाँटी के साथ साथ पापड़, तिली लाड़ू, कोमहड़ा पाग,पूड़ी खीर आदि पकवान बनाये जाथे,अउ भगवान चन्द्र गणेश ला भोग लगाय जाथे। ये परब ला सकट चतुर्थी घलो कथे। ददा भाई मन ये तिहार के पहली अपन बेटी बहिनी ला घर ले आथे। बेटी माई मन मइके मा ये उपास ला रथें। व्रत तिहार कोनो भी होय सबके मूल मा सुख समृद्धि के कामना जुड़े रथे। वइसनेच मया मेल,सुख समृद्धि के परब आय सकट।।


सकट तिहार-कुंडलियाँ


मइके मा जुरियाय हें, दीदी बहिनी आज।

सकट तिहार मनात हें, थारी दिया सजात।

थारी दिया सजात, हवैं बेटी माई मन।

लाड़ू पापड़ खीर, बनावत हें दाई मन।।

माँगे मया दुलार, गजानन ले व्रत रइके।

हाँसत खेलत रोज, रहै ससुरार अउ मइके।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सपना के पांखी*//-

 कहिनी             -// *सपना के पांखी*//-

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           पं.सिरीधर श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर के पुजारी रहिस।जबर सिधवा,ऊंचपुर फकफक उज्जर देहें अऊ माथा के भरभर त्रिपुंड चन्दन के टीका लगाय रहे।चोटइया जबर लंबा अऊ मोटहा रहिस ते पाय के कतको झन चोटइया वाले महराज के नांव ले चिन्हारी करंय।पं.सिरीधर पोथी पुरान के जबर गुनिक कतको अकन दोहा-चौपाई अऊ श्लोक ल मंतरा कस मुअखरा पढ़त रहय।ओहर धोती कुर्ता पहिरे, पांव म खड़ाऊ पहिर के रेंगय।पं.सिरीधर संतोषी किसिम के रहिस ते पाय के कतको झन संतोषी महराज घलो कह देवंय।श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर ओतका जादा बड़े नि रहिस फेर ओकर महत्ता जबर रहय।

             ओहर मंदिर के पूजा-पाठ करय,काकरो धार्मिक अनुष्ठान,बर-बिहाव ,कथा घलो बांचे जावे।जजमान मन कतको दे देवय ओला झोंक लेवय कोनों प्रकार के अऊ देवा कहिके कभू नि रुंगे ते पाय के सबोझन संतोषी महराज कहबेच करय।पूजा-पाठ करवाय बर सबो बलाबेच करंय।चेला-चपाटी मन घर म पूजा-पाठ एतका जादा रहय के महराज जी ल फुर्सत नि रहय।कभू-कभू तो आने दिन करबो कहिके करारा कर देवय।

              पूजा-पाठ करे म सबो डहर चिन्हारी होगे रहिस।लक्ष्मीनारायण मंदिर शहर के बीचोबीच म रहिस,मंदिर के पाछू कोती महराज मन के रहे के ठउर-ठीहा रहिस।ऊंहा अपन गोसाईंन सबितरी अऊ दू झन लइका संग रहय।पूजा-पाठ अऊ कथा-भागवत के चढ़ोतरी ले गुजर-बसर समे के समे हो जावत रहय।समे कतका बेर केरवटिया लेथे गम नि मिले।नगर निगम के ठउका चुनाव के बेरा आय रहिस।जेन जघा म मंदिर रहय ओहर वार्ड क्रमांक - 20 म आवत रहिस जेन ह अनारक्षित महिला सीट होगे रहय।महराज जी के प्रभाव घलो उहीच वार्ड म जादा रहय।

             जेन वार्ड म महराज मन रहंय तेन वार्ड म कोनों किसिम के विकास कारज नि होय रहिस ते पाय के सबो जनता मन कतको परेशानी ल झेलत रहिन।पहिली के पार्षद रहिन तेमन कुछू काम नि करे रहे।चुनाव के लकठियाय म कतको झन अपन-अपन दावेदारी करे बर धर लिन।चुनाव के बेरा म कतको शिक्षित, मिलनसार शुभचिंतक, सुख-दुख के संगवारी, बुधियार तको मन बिल भितरी ले बहिराय के आरो देखे म मिल जाथे।

                महिला सीट रहे के खातिर उहीच वार्ड के एकझन जजमान पिलउ ह एकदिन पंडित जी करा जाके कहिथे..... ' हमर वार्ड क्रमांक 20 म कुछू विकास कारज नि होवत हे महराज '!एकठन गोठ कहत हौं महराज नराज झन होइहा। ' ले गोठिया न पिलउ का बात आय तेन ल '....महराज कहिस!नराज नि होइहा त कहत हौं....थोरिक डरावत पिलउ कहिस! ' ले गोठिया न काय बात आय तेन ल ओमा का के नराज होये के बात हे भई  '.....महराज मुसकावत कहिस! ' हमर वार्ड म आज तक कोनों विकास के कारज नि होय ते पाय के आपमन के महराजिन ल पार्षद चुनाव म ए पइत प्रत्याशी बनातेन कहिके अंदाजे हावन ' महराज.....पिलउ सकपकावत कहिस ! ' अऊ ठउका ए वार्ड ह सामान्य महिला सीट होगे हावे '......बतावत कहिस।

             ' अरे ! भई हमन ल अपन पूजा-पाठ ले फुरसत नि मिले कहाँ के चुनई -फुनई एकर ले हमन दूरिहा रहिथन,राजनीति के दांव-पेच ल नि समझ सकन ग '......महराज अपन जजमान ल कहिस।' ए दारी सामान्य महीला सीट हावे तेकर ले कहत हंव थोरिक चेत करव महराज '......पिलउ फेरेच कहिस ! ' त तैं सुन पिलउ आज हमन दूनोझन सलाव हो जावत हन फेर बताहूंँ ' .....महराज कहिस!

                    संझा जुवार मंदिर के पूजा आरती भोग के बाद रतिहा अपन महराजिन सबितरी संग सलाव होय बर धर लिन।' पिलउ आय रहिस अऊ कहत हावे के ए दारी के पार्षद चुनाव म तोला उम्मीदवारी करे बर कहत हांवै तोर का बिचार हे ' बता.......महराज अपन गोसाईंन ल कहिस!' पिलउ आय रहिस त ओला काय बोले हौ '......सबितरी कहिस! ' घर म सलाव हो जावत हन तेकर पाछू बताहूंँ कहे हंव '........महराज कहिस!' पिलउ ठीक कहत हावे ए दारी हमरो भाग ल अजमा के देख लेथन मउका मिलत हे त ' .......सबितरी खुशी मन ले कहिस। " ठीक कहत हस तैं वइसे ए वार्ड क्रमांक 20 म हमर जजमान घलो जादा हावें '.....महराज कहिस!

                दूसरावन दिन पिलउ फेर आइस,' का सलाव होय हौ महराज '...... पैलगी करत पिलउ पूछिस!बइठ पिलउ.....कुर्सी कोती इशारा करत महराज कहिस। ' देख पिलउ हमन चुनाव ल जानन नहीं पूजा-पाठ के करइया तो आन '..... महराज कहिस!'आप मन तियार भर हो जावौ बाकी कुछू करे बर नि लागय हमन सब देख लेबो '......पिलउ कहिस! ' देख अइसनहा हे त महराजिन ल तियार करत हौं '......महराज कहे लागिस!' फेर पाछू कोनों प्रकार के धोखा नि होना चाही ' .....पिलउ ल समझावत कहिस।' ठीक हे महराज चिंता करे के बात नि हे '....पंदोलत पिलउ कहिस। ' एमा धोखा के बातेच नि हे '।

               दूसरावन दिन वार्ड के मन सबो जुरमिल के पार्षद बर फारम भरे कलेक्टर आफिस के निर्धारित ठउर म महराज अऊ ओकर गोसाईंन सबितरी संग जाके भर के आगिन।उहीच वार्ड ले केकती घलो फारम भरे रहिस।केकती घलो आकब करे म कम नि रहिस अपन वार्ड के जबर कमइलिन,मिलनसार अऊ बने  गोटकारिन घलो रहय।जेन दिन फारम के स्कूटनी होइस तेमा केकती के फारम म कुछ कमी पाय गिस ते पाय के फारम रिजेक्ट हो गिस अऊ महराजिन सबितरी निर्विरोध चुनाव जीत गिस।सबोझन महराज अऊ महराजिन ल बधाई देवत रहिन।चुनाव जीते के बाद कोनों किसिम के देखावा जादा नि करिन।

               महराजिन के चुनाव जीते के पाछू वार्ड म विकास के काम दिखे लागिस।नाली बजबजावत रहे तेन साफ होय लागिस,सड़क खंचवा खनाय रहिस तेन सिरमिट के नांवा सड़क बनगे,पीये के पानी ठीक से नल म नि आवत रहिस ओहू समे म मिले धर लिस।गली म बिजली घलो लग गे जेकर ले रतिहा आय-जाए म कोनों किसीम के डर-भय नि रहे।सबो के राशन कारड घलो बनगे।वृद्धा, विधवा, समाजिक सुरक्षा पेंशन लाईक रहिन तेमन ल मिले लागिस।कतको झन ल प्रधानमंत्री आवास घलो देवाइस वार्ड के सबो मनखे महराजिन सबितरी के कारज ल सहरावत खुश रहिन।

            अइसने करत पं. सिरीधर अऊ महराजिन के मान सम्मान अऊ बाढ़त गिस।बढ़िया कारज करंय ते पाय के हर बार चुनाव म उहीच मन निर्विरोध चुनाव जीत जावत रहिन।लगातार चार पंचवर्षीय तक उहीच वार्ड ले कभू महराज पार्षद बने त कभू महराजिन।धीरे-धीरे पद -प्रतिष्ठा पूरा शहर म फइल गे।पं. सिरधर मन म सोचत रहिस के ' ए पइत के चुनाव म महापौर के फारम भरबेच करहूँ '।महराज के मन म  "*लोभ के पीकी फुटे* " धर लिस।महापौर के सपना देखत रहय।

             महापौर बने के सपना ल सिरजाय बर पं. सिरीधर तियारी करे लागिस।तिहार-बार लकठियाय त बड़का-बड़का फ्लेक्स चउंक-चौराहा म टंगवाबेच करे।घाम के दिन जघा-जघा शरबत पानी पियावय,जड़कल्ला म कम्मल बांटे, तीजा म माई लोगन मन के सम्मेलन करवा के लुगरा बांटे, राखी तिहार म घलो लुगरा अऊ मिठई बंटवाबेच करे।डाक्टर, वकिल,साहित्यकार, लोक कलाकार सबो मन के मंदिर म ओसरी-पारी सम्मेलन करवाए सबो ल नरियल अऊ साल भेंट करत जावे।सबो समाज के मुखिया मन के घलो सम्मेलन करवाईस।पं.सिरधर महापौर बने के अपन जम्मो ताकत ल झोंक दिस।जघा-जघा सोर घलो होवत रहिस के ' ए पइत पं. सिरीधर महापौर बन जाही अइसे लागत हावे '।

                चुनाव लकठियावत गिस एती पं.सिरीधर के तियारी घलो बाढ़त गिस।शहर के सबो वार्ड म पं.सिरीधर के गोठबात होवय जेमा कहंय के ए ' पइत महराज महापौर बनबेच करही '।चुनाव आयोग डहर ले चुनाव के तियारी होय लागिस।मतदाता सूची तियार होइस अऊ ओकर प्रकाशन होगिस।महापौर पद के आरक्षण करे के दिन राज्य निर्वाचन आयोग डहर ले निर्धारित होइस।एती महराज पहिली ले टी.बी. ल समाचार सुनहूं कहिके चालू करके बइठे रहिस।

               महराज जी पहिली *आज तक* समाचार चेनल लगाइस, त ओमा विज्ञापन आवत रहिस।विज्ञापन घलो जबर लंबा तक चलत रहय,असकटा के रिमोट ल दबा के *रिपब्लिक भारत* समाचार लगाइस ओमा अर्नब गोस्वामी अऊ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संग प्रयाग महाकुम्भ के गोठबात होवत रहय,फेर तुरतेच आई बी सी 24 लगाईस ओमा ठीक समाचार बोलइया समाचार बोले के शुरू करत रहय।'रायपुर, बिलासपुर,दुरुग रायगढ़,सरगुजा अऊ बस्तर कोती के आरक्षण ल बतावत गिस ' महराज कान ल बने टेंड़ के सुनत रहय,जइसे कोरबा के नांव लेवत रहिस तइसने... लाईट गोल होगे।भइगे महराज तो लाईन वाला मन ल भंसेड़े के शुरु कर दिस।इहीच बेरा रहिस लाइट गोल करे बर....मने मन बड़बड़ावत रहय।

               ' आज महराज ल नींद नि आवत रहय '।सुकवा उवे के पहिली ले जाग गे रहिस।पंगपंगाती भिनसरहा होईस तंह ले महराज जी असनान करके पूजा-पाठ ल जल्दी कर डारिस ,पेपर म समाचार पढ़े बर पेपर बंटोइया ल अगोरत रहय।पेपर बंटोइया घलो आने दिन कस जल्दी नि आइस थोरिक अबेर होगिस त पेपर बंटोइया ऊपर भड़कत अऊ खिसियावत रहय,तइसनहे पेपर बंटोइया आइस।झटकून पेपर ल देखे धर लिस।पहिली पेज के ऊपर म बड़का हेडिंग म लिखाय रहे छत्तीसगढ़ के सबो "*नगर निगम,नगरपालिका अऊ नगर पंचायत के आरक्षण सूची* "!ऊपर ले पढ़त उतरत गिस कोरबा करा आइस त कोरबा के आघू म " अनुसूचित जनजाति महिला " लिखाय रहे।महराज ल विश्वास नि होत रहिस अपन चश्मा ल फेर बने पोंछ के देखिस।कोरबा महापौर के पद अनुसूचित जनजाति महिला रहिस।

               आरक्षण सूची ल देख के पं.सिरधर ' अकबका ' गिस।ओकर " *चेहरा के चमक*" उड़िया गिस।जाड़ म घलो पसीना ओगर गे।ओकर मुँहरन देखे के लइक होगे।महापौर बने के "*सपना म पानी फिर*" गिस।महापौर बने बर एतका जादा मिहनत करे रहिस तेन सबो ह "*बाढ़े पूरा* " म बोहागे।महापौर के सपना "*ताश के घर* " कस भरभरा के गिर गिस।पं.सिरीधर के देखे "*सपना ह पांखी* " लगाके बंड़ोरा के संगे-संग अगास कोती उड़िया गिस।एकरे सेती कहे गे हावे कोनों जिनीस म जादा " *चिभीक अऊ लगाव* " नइ रखना चाही।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

          *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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बीस रूपिया के झूठ* (छत्तीसगढ़ी कहानी)

 # एक ठिन मध्यमवर्गीय परिवार के व्यथा-कथा #


     *बीस रूपिया के झूठ* (छत्तीसगढ़ी कहानी)


                           -डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


                             ( 1 )


             ' भाई तोला एक खुशखबरी सुनावत हौं! ' मोबाईल मा मनीष के आवाज ला सुनके सुमित बड़ खुश हो गे। 

           ' का बात हे भाई! बड़ दिन बाद फोन मा तोर आवाज सुने ला मिलत हे। का खुशखबरी हे? '

          ' भाई मोर सुकुमा ले बिलासपुर ट्रांसफर हो गे हे। '

        ' अरे वाह, मैं तो समझत रहेंव कि तैं उहें मर-खप जाबे! नक्सली मन के बड़ जोर हे तुँहर इहाँ? '

.     ' नहीं, कुछु जोर नि हे नक्सली मन के। ओमन आम लोगन मन ला कुछु नइ करें।  ओमन के झगड़ा पुलिस अउ मुखबिरी करने वाला मन सो हे! अउ जेन बड़े ठेकेदार मन ओमन ला जबरिया उगाही नइ देवँय ओमन सो झगरा-लड़ाई करथें। बाकी सब ठीक हे। '

       '  अपन ट्रांसफर कइसे कराये भाई? बस्तर क्षेत्र तो अगम दरहा हे, उहाँ ले निकलना बड़ मुश्किल काम हे! '

     ' का बात बताओं भाई, तीन बछर ले लगे रहेंव तब ले-दे के ये साल ट्रांसफर होइस हे। पुरा किस्सा बिलासपुर आये के बाद सुनाहूँ! बड़ पापड़ बेले ला परिस। ..... भाई एक ठिन किराया के मकान ढूँढ दे- वन बीएचके या फेर टू बीएचके। तीन हजार रूपिया मंथली तक चल जाही। ओकर ले जादा देय के मोर कूबत नइ हे। '

.          ' टू बीएचके खाली हे हमरे मोहल्ला मा। मोर पहचान वाला हे, सस्ता मिल जाही! मैं आजे बात कर लेवत हौं। तुमन कब तक आवत हव ? '

         ' जुलाई  पहिला हप्ता मा आ जाबो। '

        ' ठीक हे, तैं अपन बोरिया-बिस्तर ला बाँध। एती ला मैं देखत हौं। '


.                            ( 2 )


                 मनीष उइके अउ  सुमित साहू बचपन के खाँटी मितान रहिन। स्कूली पढ़ाई के बाद दुनों सीएमडी कालेज के होस्टल मा एके संग रहिके गणित विषय मा ग्रेजुयेशन अउ फेर कम्प्यूटर के डिप्लोमा कोर्स पूरा करिन। साल-दू-साल के भीतर प्रतियोगी परीक्षा देहे के बाद क्लर्क के पद मा मनीष के नौकरी सुकुमा के पंचायत आफिस मा  अउ सुमित के नौकरी बाल विकास विभाग बिलासपुर मा लग गे। दुनों मितान के पाछू 12 साल ले कोई भेंट-मुलाकात नि होय रहिस फेर फोन मा कभू-कभू गोठ-बात होवत रहिस। ये बीच दुनों संगी के बर-बिहाव अउ लोग-लइका घलो होगे। दुनों अपन-अपन परिवार के संग राजी-खुशी रहिन अउ अइसने दिन बीतत-बीतत 12 साल गुजर गे।

          अब बिलासपुर मा दुनों मितान के सुख-दुख मा साथ देवत दिन ठीके-ठाक गुजरत रहिस। एक दिन सुमित कमीज खरीदे बर मनीष के संग मोटर साइकिल मा बाजार जावत रहिस। त मनीष पुछिस- ' भाई, तोर कमीज बड़ सुग्घर दिखत हे। एला कहाँ ले खरीदे रहेव? '

        ' अरे झन पूछ भाई, मोर पिछले साल के बर्थ डे मा तोर भाभी एला सरप्राइज गिफ्ट देहे रहिस। ब्राँडेड कमीज हे, 1200 रूपिया के! '

       एकर बाद दुनों एक ठिन कपड़ा दुकान मा कमीज देखे लगिन। तभे दुकानदार पुछिस- भाई साहब, ये कमीज ला कहाँ ले खरीदे हौ? ब्राँडेड लगत हे! '

       ' हाँ, ब्राँडेड कमीज हे, पाछू साल 1200 रूपिया मा खरीदे रहेंव। '

      थोरकुन देर बाद ठीक ओइसनेच्च कमीज दुकानदार भीतर ले ला के दिखावत कहिस- ' भाई साहब, ये कमीज ला मैं सात सौ रूपिया मा बेंचत हौं! कलर भर के फरक हे, ले जावव! .....  साहब आपमन फालतू ब्राँडेड के चक्कर मा पड़े रहिथा। ओमन नावा लेबल लगा के दुगुना कीमत वसूल लेथें ! '

       वोही कमीज ला खरीदे के बाद दुनों सुमीत के घर मा चाय पीये बर रूक गीन। सुमित अपन घरवाली ला कहिथे- ' देख तो, ओइसनेच्च कमीज खरीद के लाने हौ॔। '

         ' कतका मा मिलिस? '

      ' अरे, एक सौ रूपिया सस्ता मिलिस। 1100 रूपिया मा खरीदे हँव! '

     ' हाँ हाँ ठीक हे! ब्राँडेड दुकान म कुछ मंहगा मिलथे ना!'

      मनीष आश्चर्य से अपन मितान के चेहरा ला देखत रहिगे!  ...... कतका सफेद झूठ भाभीजी ला आज बोलिस हे! 

    बाहर निकले के बाद मनीष अपन मितान ले बोलिस- ' झूठ बोले के का जरूरत रहिस भाई! '

    ' एला अभी नि समझाय सकौं भाई। सही बखत म कहूँ त समझ पइबे। '


.                           ( 3 )


            एक दिन शनिच्चर के बिहनिया 10 बजे सुमित अपन मितान के घर पहुँचिस। काल बेल दबाय नि पाय रहिस कि भीतर ले भाभीजी के तल्ख आवाज सुनाई परिस- ' का जरूरत रहिस कि 40 रूपिया पाव मा तिंवरा खरीदे के? अतका मा तो दू किलो पताल आ जातिस! तिंवरा साग बने मिठाथे का कहि पारेंव 40 रूपिया पाव मा खरीद के ले आया!  20 रूपिया पाव मा मिलतिस त कोनो बात नि रहिस! अतका मंहगी साग कोनो खाथें का? मैं एक-एक पैसा बचा के घर चलाथौं अउ तूँ एके पँइत सब ला फूँक देथव ! ' - भाभीजी के गुस्सा सप्तम मा रहिस। मनीष सफाई देवत रहिस फेर भाभीजी ओला सुने बर बिलकुल भी तियार नि रहिस!

        सुमित काल बेल ला दबाईस त भाभीजी दरवाजा खोले आइस। भाभीजी के हाव-भाव अउ चेहरा मा अभी घलो गुस्सा छलकत रहय अउ आँखी मा आँसू। घर के भीतर जाय के बाद सुमित बोलिस- भाभीजी ये 20 रूपिया ला धरव। सब्जी वाली 40 रूपिया के आधा किलो तिंवरा बेचत रहिस अउ मनीष एक पाव खरीद के 40 रूपिया दे के आ गे। ओ तो अच्छा होइस कि सब्जी वाली हमन दुनों ला पहिचानथे त मोला 20 रूपिया वापिस करिस त वोही ला पहुँचाय आय हौं! ..... अच्छा भाभीजी लाल चाय पियावव। तुँहर बीस रूपिया बचा देय हवँ  आज! '

      भाभीजी के चेहरा म मुस्कुराहट आ गे! एती मनीष अपन मितान के चेहरा ला अबक हो के ताके लगिस। सुमित के झूठ हा कालीमाई कस प्रचण्ड प्रकोप ले आज मनीष के रक्षा कर दीस!


                            ( 4 )


          लाल चाय पिये के बाद दुनों मितान घर ले बाहर निकल के घुमत-घुमत गाँधी गार्डन के बेंच मा आ के बइठ गीन। एही बेरा मनीष बोलिस- ' भाई तैं झूठ काबर बोले अउ 20 रूपिया लौटाये? '

       सुमित कहिस- ' भाई परिवार ला चलाय बर कलह-क्लेश अउ शाँति के बीच संतुलन बनाय बर परथे। तैं लाल चाय पीथस अउ महूँ पीथौं काबर कि खरीदे दूध ला लइका मन पी सकें। कालेज मा तो हमन दूध के चाय पीयत रहेंन न! सही बात हे कि निही? '

        ' तोर बात तो सही हे भाई। नानकुन नौकरी के भरोसा मा परिवार चलाना बहुत मुश्किल हे।  लइका मन के पढ़ाई-लिखाई,  देखभाल, परिवार के भरन-पोषण के खर्चा उठा पाना ये मंहगाई के जमाना मा अलकर कठिन हो गे हे। हमन सारा जीवन नौकरी करके लोग-लइका मन के परवरिश करे के बाद छोटकुन घर ला खरीद पाबो त बहुते बड़का बात होही। कार खरीदना तो हमन के सपना हो गे हे! '

       ' देख भाई, ये सब तो जीवन म चलतेच रइही। बड़े नौकरी पातेन त बात अलग रहितिस। ...... मैं आज 20 रूपिया के झूठ बोलेंव त तुमन के आपस के लड़ाई बन्द हो गे अउ भाभीजी के चेहरा मा खुशी आगे। तिंवरा ला बीस रूपिया पाव मा खरीदे हौं कहिके झूठ बोल देते त तोर का बिगड़ जातिस? का तोर धरम भ्रष्ट हो जातिस ? ..... उल्टा भाभीजी खुश हो जातिन कि सस्ता मा तिंवरा खरीद के लाने हस। तोर झूठ या सच बोले ले तोर घर के आर्थिक स्थिति मा कोई बदलाव नि हो जातिस। घर मा कलह-क्लेश होना ठीक बात नोहे भाई! कतका दिन के जिनगानी हे! दाल मा नून के बरोबर झूठ तो बोले जा सकत हे। द्वापर जुग मा युधिष्ठिर कस न्यायवादी घलो एक बार आधा सच अउ आधा झूठ बोले रहिस! .....  एमा भाभीजी के घलो गलती नि हे भाई, ओमन एक -एक पैसा बचा के अउ सहेज के रखथें। अलकरहा संकट के बेरा मा तो ओही हा काम आथे! '

      ' फेर ओ दिन भाभीजी ला कमीज के रेट ला जादा काबर बताय तैं ? मोला समझा तो। '

      ' देख मनीष, मैं सही रेट ला बता देतेंव त तोर भाभी पहिली तो खुश होतिस। फेर जादा कीमत मा मोर शर्ट ला ब्राँडेड दुकान ले खरीदे के पछतावा वोला कई महीना तक घोरतिस! .....  हमन तो नुकसान ला सहि सकत हन मनीष, काबर कि नौकरी ले दू पैसा कमाके लावत हन, फेर पाँच सौ रूपिया के नुकसान गृहणी मन बर बहुत बड़े होथे, जेमन घर-गृहस्थी ला तो पैसा बचा-बचा के सुचारू रूप ले चलावतेच हें मगर पैसा बर हमर उपर आश्रित हें! पैसा के नुकसान ला सोच के ओमन या तो चिड़चिड़ा हो जाथें या डिप्रेशन मा आ जाथें! '

       मनीष ला आज समझ मा आइस कि सच-झूठ तो सापेक्षिक होथे, ओकर जादा महत्व नि हे। महत्व ए बात के हे कि घर मा शाँति के पलड़ा भारी रहना चाही। गिलास मा आधा पानी भरे हे- एहा सकारात्मक सोच हे। गिलास हा आधा खाली हे- एहा नकारात्मक सोच हे। हालाकि दुनों बात एकेच हे, पानी के मात्रा मा कोई बदलाव नि होवत हे।

        ' ठीक हे सुमित, भाई तोर बात ला मैं सबो दिन सुरता राखहूँ। '- मनीष के आँखी डबडबा गे। वइसे रोये वाला तो कोई बात रहिस निहीं फेर आँखी के का करी,ओहा तो अपन कन्ट्रोल मा नि रहे! ......  सही मायने मा जीवन के एक छोटकुन सूत्र हा आज मनीष के पकड़ मा आ गे जेकर ओला बहुतेच जरूरत रहिस। शायद वोहा अपन सच बोले अउ पैसा के तंगी के कारण रोज-रोज के घर के कलह-क्लेश ले हलाकान रहिस, फेर आज ओकर चेहरा मा डर या खीझ के भावना लेशमात्र घलो नि रहिस बल्कि निश्चिंतता अउ संतोष के भाव झलकत रहिस। 

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Story written by-


       *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 


मो- 98263 40331