*छेरछेरा- परब अन्नदान*
हमर छत्तीसगढ़ ह किसान, मजदूर अउ बनिहार मन के धरती आय। खेती किसानी म रमे छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म तीज-तिहार के अपन एक अलग महत्व अउ पहचान हवय। तिहार ह कहूँ किसानी तिहार मने लोक के तिहार हो जाय त का अउ पूछना हे। छत्तीसगढ़ म तिहार मतलब जन-जन के अंतस म समरसता और मंगल भावना के उदात्त स्वरूप।अकती, जुड़वारो, सवनाही, ऋषि पंचमी, हरेली, पोरा, नवापानी (नवाखाई) , सुरहुत्ती, देवारी के संगे संग एक ठन हमर बिशेष तिहार जेमा सबो तिहार ले कतको जादा समता के भाव हा देखब मा आथे, जेकर नाम हवय छेरछेरा।येला पूस महीना के पुन्नी शुभ तिथि म मनाय के विधान हवय।
किसान ह दुनिया के भूख भगाय के काम करथे, इही उदीम मा असाढ़ महिना म धान बोंवई ले लेके पूस महिना म धान मिंजाई तक किसान बर सात महिना हर जाॅंगर टोर कमाई के बेरा रहिथे। तब हाड़ाटोर काम मा थके तन अउ मन ला बीच- बीच म सुस्ताय बर अइसन तीज तिहार के महत्तम ह कई गुना बाढ़ जथे।
हरेली के शुभ बेला म चारो मूड़ा हरियर-हरियर खेत-खार ह देखके किसान के अंतस म कई ठन नवा सपना ह जनम धरथे त जुन्ना सपना ह उदूप ले हरियर घला हो जथे। गरभाही बखत धान ल पोटरी पान खींचत देखके ओकर सपना ह उम्मीद के पाखी पहिरे दूर गगन म विचरण करथे।जब खेत मा पिंयर-पिंयर सोन कस झूमरत धान ला देखथे तब देवारी तिहार बर कोठी ल लीप-बहार के धान पान के अगोरा करत किसान के माथा म सपना के सपूरन होय के आस अउ खुशियाली के भाव ह जगजग ले दिखन लगथे।
सात महिना ले सेवा जतन के पाछू जब फसल ह कोठार डहर ले अन्न के रूप म कोठी म अमरथे तब किसान के अंतस ह खुशी के मारे कुलकन लग जथे।
बीजा(धान) ल कोठी ले निकाल के खेत म बोंवई अउ खेत ले कोठी तक अमरई के बीच म कई ठन कहानी हे जे साॅंझर-मिंझर होके किसानी नामक उपन्यास बनके हमर बीच म आथे अउ येकर एक-एक ठन मरम ल हम सबला समझाथे।
अषाढ़ ले शुरू होके पूस महिना तक मुख्य पात्र किसान के काम होथे बरोबर-बरोबर सबला हिस्सेदारी बाॅंटना , चाहे वोहा पौनी-पसारी होय नइ ते कन्हो अउ। सेर-चाउर , बीजकुटनी (हरेली के पौनी मन बर अन्न दान) अउ सुखधना ( देवारी/ जेठोनी म हाथा अउ सोहई खातिर बरदिहा-बरदिहीन बर अन्न दान) हर तो पौनी मन के हिस्सा आय। किसान के कमई म बाम्हन-बसदेवा, भठरी ,हरबोलवा अउ मगंइया-झगंइया के घलव हिस्सा लिखाय रहिथे।चिरई-चिरगुन बर झालर, लइका मन बर सीला , आखरी लुवई म बढ़ोना, आखरी कोठार ( मिंजाई के आखरी दिन जब धान के हरेक दाना हर कोठी म पहुॅंच जथे) म बढ़ोना।
थोरिक पुरातन काल म लहुटके इतिहास के पन्ना मन ल खोधियाय म हमला बहुत कुछ जाने बर मिलथे , अपन अउ समाज के संपत्ति के बिसकुटा।
आखेट युग म जब मनखे मन कबिला म रहय तब उनकर मन म अपन-तूपन के भाव नइ रहय, शिकार ल आगी म भूंजत चारों मुड़ा म बैठके सबोझन बरोबर-बरोबर बाॅंट-बिराज के खावँय। मोर-मोर वाले थोरको सुवारथ नइ रहय। जब सभ्यता ह
पशुपालन युग म प्रवेश करिस तब मनखे-मनखे के सोच म तोर-मोर के भाव ह जनम धरिस। फेर आइस कृषि युग जेमा सुवारथ के घात बोल-बाला होगे।समाजिकता ह व्यक्तिगत सुवारथ म बदलगे। येकर ले गरीब मन रोटी बर मोहताज होय लगिन, समाज म असंतुलन के बीज बोंवागे, गरीब अउ धनी म असंतुलन बढ़गे, मने पूंजीवाद के जन्म होगे। आज पूंजीवाद के कारण समाज के बीच म सामूहिकता के भाव ल सिरावत आप खुदे देख सकथव। फेर येकर ले उलट व्यक्तिगत सुवारथ ले दूरिहा समाजिकता के भाव ह हमर लोक के तीज-तिहार म आजो देखे बर मिलथे। तब इतिहास अउ वर्तमान के तुलना करत हम कहि सकथन कि आखेट युग के बराबर-बराबर बाॅंटे के गुण ह हमर लोक-परब मन म आज घलव साफ-साफ दिखाई देथे। एक महापरब के रूप मा छेरछेरा के दिन येहा अउ स्पष्ट हो जथे।
आज के दिन बिहनिया च ले का लइका अउ का सियान जम्मों झन घरों-घर छेरछेराय बर निकल जाथें। अलग-अलग टोली बनाके निकल जथें छेरछेरा माॅंगे बर।बिहनिया ले लेके रतिहा तक छेरिक-छेरा छेर मरकनिन छेर-छेरा के शोर मा गाॅंव-गली ह गमकेन लगथे। डंडा-नाच अउ सुआ-नाच सही कई ठन दल मन ह खुशी खुशी ले ये तिहार ल मनाथें। जेन घर के चौखट म छेरछेरइया मन पहुॅंचथे ओ घर वाले मन ले जतिक बन पड़थे ततिक दान-दक्षिणा देके सबला बिदा करथें। अउ वोहर अपन ईश ल सुमिरन करत गरब महसूस करथे कि मोर मेहनत के फल म जादा नइ ते कमती सबके हिस्सेदारी हे।
तब हम कहि सकथन पूस पुन्नी मा अन्न दान के महापरब के दिन किसान हर अपन ॲंगना म आय चेलिक-चेला ( छेरिक छेरा) मन ला हाॅंसत- हाॅंसत अवइया बरस म समे-सुकाल के मंगलकामना करत अन्न के दान- महादान के पूर्णाहुति करथे।
महेंद्र बघेल
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