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*विवरन अउ दरपन दुनों के दुनों :विमर्श के कसौटी म समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य*
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*(पुस्तक समीक्षा)*
ये छोटकुन लेख हर समीक्षा के समीक्षा अउ विमर्श के विमर्श लिखई ये।श्री पोखन लाल जायसवाल के लिखे किताब 'विमर्श के कसौटी म समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य' ठीक अइसन बेरा म प्रकाशित होइस हे; जब अइसन ग्रन्थ मन के आवश्यकता हे। अभी के समय हर,हर जिनिस के दस्तावेजीकरण चाहत हे।अइसन संक्रांति कालीन समे म, बिखरे छत्तीसगढ़ी साहित्यिक कारज मन ल,एकठन ठीहा म लान के बांधे के बुता ये किताब हर करत हे।येकर पीछू केवल अउ केवल लेखक के सद्भावना अउ निज भाखा प्रेम हर ही कारण यें, जेमन लेखक ले अइसन गुरुतर गरू बुता करवा लिन हें। आज के समे म भी, हमर छत्तीसगढ़ी लेखन हर झागदार गजमजहा के गजमजहा हे। आज भी हमन विधा मन ल लेके संशय म रहत हावन; आज भी हमन लेखन म क्रिया अउ काल ल लेके सार -चेत नई अन।पूरा के पूरा किताब ल चाहे वो कहानी हो कि उपन्यास...गंगाराम अपन महतारी ल कथे (गंगाराम अपनी महतारी को कहता है) लिखत लिखत छेवर कर देथन।जबकि वोहर -गंगाराम अपन महतारी ल कहिस, होना चाहिए। अइसन गढ़ अनगढ़ प्रयोग अउ प्रयोगधर्मिता मन ले ऊबुक- चुबुक होत छत्तीसगढ़ी लेखन ल, विमर्श के कसौटी म कसे के हिम्मत दिखाना ,जबर हिम्मत के बुता आय।ठीक अइसन हिम्मत डॉ. विनोद वर्मा के पुस्तक 'विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी(2018) म देखे बर मिलथे, फेर वोहर हिंदी के किताब ये। छत्तीसगढ़ी भाखा म लिखाय ये नावा समीक्षा ग्रन्थ हर,छत्तीसगढ़ी भाखा ल आधार पाठ लेके समीक्षा शास्त्र रचत हे; येहर बड़ बात ये। ये किताब के अठारा शीर्षक म,अठारा रचनाकार मन ल,अभी के समकालीन रचनाकार मान के, मान दिये गय हे।वो रचनाकार अउ रचना मन खचित रूप ले प्रतिनिधि आंय,ये बात म कनहुँ ल कोई शंका नई ये। फेर अतका झन के छोड़ अउ हजार- बजार छत्तीसगढ़ी साहित्यिक चेतना हें जेमन बिना हल्ला हो हल्ला करे,निच्चट मौन होके, बड़ श्रद्धा भाव ल भरके सिरजन करत हें। वोमन के भी पड़ताल होना हे।ये बुता ल पोखन अपन दूसर पाली म करहीं कि कनहु आन करही।फेर कोई न कोई ल तो करेच बर लागही।
ये किताब हर येकर बर अउ महत्वपूर्ण बन जात हे कि पहिली तो येहर छत्तीसगढ़ी म लिखे गय क्रिएटिव राइटिंग मन के क्रिटिसिज्म लानत हे।दूसर छत्तीसगढ़ी भाखा के निजता ल बनेच बंचा के राखत लेखक हर समीक्षा शास्त्र खड़ा करे हे।सबो अठारा रचना मन के नीर -क्षीर विवेक ले भल -अनभल ल बेबाकी ले उजागर करत, समीक्षा अउ विमर्श के एकठन नावा अध्याय खोलत हे ये किताब हर।अउ श्री पोखन लाल जायसवाल ले अभी येहर तो शुरुआत ये।ये किताब जरूर पढ़ना चाही।
*रामनाथ साहू*
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