छेरी के छेरा छेर बरकनिन......छेरछेरा !!
जन मानस के उछाह, उमंग अउ उल्लास ह उत्सव बनके उपजथे-सिरजथे-पनपथे। इही परब अउ उत्सव पानी कस धार एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी, एक ठऊर ले दूसर ठऊर म बोहावत जाथे त परम्परा बन जथे। परम्परा अउ संस्कृति कोन्हो भी समाज, देश अउ राज के आरूग चिन्हारी होथे।
दान के पीछू दर्शन तको लुकाए हवय। दान ह मया, मोह अउ ममता के मइल ल धोके मन ल शुद्ध करथे। कहिथे संतोषी सदा सुखी। जेकर मन म संतोष, सहनशीलता, सादगी, सरलता, सहजता, सहानुभूति, सौहार्द्र अउ उदारता होथे वो दान के महात्तम ल भलीभांति समझथे। स्कंदपुराण के अनुसार मनखे ल अपन कमई के दसवा हिस्सा ल दान म लगाना चाही। दान कभू अबिरथा नई जावय। दान के मान, गान अउ शान अबड़े, अलगे अउ अमोल-अतोल होथे।
देश, काल अउ वातावरण के सपेटा म परके परब, परम्परा, रीत-रिवाज अउ संस्कृति के चोला, रंग-रूप अउ सँवागा भले बदल जथे फेर ओकर आत्मा नई बदलय। आत्मा ठुसठुस ले ठस अउ ठाहिल रहिथे। गीता म तको आत्मा ल अजर, अमर अउ अजन्मा बताए हवय। ओइसनेहे दान के कई ठो रूप हवय - अन्नदान, गोदान, भूदान, स्वर्णदान, कन्यादान वस्त्रदान। समे के संगत म बइठत -उठत दान अब रक्तदान, नेत्रदान, अंगदान अउ अब देहदान तक आके बगर-पसर गे हवय।
एक ठो पौराणिक कथा के अनुसार राजा मोरध्वज अउ रानी अपन बेटा ताम्रध्वज ल आरा म काटके ओकर अंग ल भूखाए शेर ल परोस दिस। आरा म अंग काटे के सेति वो जगा के नाम आरंग होगे। छत्तीसगढ़ के भूइँया ये हिसाब ले धानी, दानी अउ मानी होए के संगे-संग जबर स्वाभिमानी तको हवय। दान के संस्कार म सनाए छत्तिसगढ़िया अपन उठे कौंर ल थामके दुवार आए भूखाए मनखे ल अपन थारी ल परोस देथे, फेर डेरौठी-दुवार आए याचक ल जुच्छा हाथ नई लहुटावय। बइरी बर ऊँच पीढ़ा के ये हाना छत्तीसगढ़ के दानशीलता के सबले बड़े वैध अउ सिद्ध प्रमाणपत्र हरे। धान के कटोरा धरे अउ मन म दान, दया अउ सरल-सहज सुभाव भरे मनखे ल देख अब कतको कटोरा अउ चरूधारी मन इहाँ आके पइध गे। अब उही बिधरमी, बेशरम अउ बेंवारस मन छत्तीसगढ़ के तिजौरी ऊपर बइठ, छत्तिसगढ़िये मन ल आँखी देखावत हे।
दान के महिमा अउ मान, नाँगर के मितान अउ जाँगर के खदान किसान ले जादा कोनो नई जानय। किसानी के बूता एक साधना हरे जऊन कोन्हो यज्ञ ले कम नई होवय। किसान के जिनगी के यात्रा परब ले शुरू होके परब में पूरा होथे। परब के श्रीगणेश अक्ती ले शुरू हो जथे जेमा प्रकृति ल जल दान करे के पीछु किसान खुर्रा बोनी करके भगवान भरोसा छोड़ देथे। ये ह कोनो छिछला, पनियर अउ रिंगीचिंगी अंधविश्वास नोहय भलकुन उत्कट अउ उद्दाम विश्वास के गूढ़ गहरई अउ आस्था के तिलिंग ऊँचाई हरे। हरेली म किसानी ले जुड़े सजीव-निर्जीव सब्बो सहचर, सहयोगी अउ संगवारी के पूजन करे जाथे। छेरछेरा वो यज्ञ के पूर्णाहूति हरे जेमा किसान प्रसन्न मन से अन्नपूर्णा ले भरे माई कोठी ल उलीचके दान करथे अउ धरती के कुबेर बन जथे। अन्न दान ल सबले बड़का दान माने गे हवय। छेरछेरा अन्नदान के महा उत्सव हरे।
छेरछेरा पूस अंजोरी के पुन्नी के माने जाथे। येला शाकम्भरी दिवस तको कहिथे।
गाँव गँवई के जिनगी म छेरछेरा परब के अलगे ठऊर, ठिहा अउ ठसन हवय। सीधवा गँवई शहर संग संघरके लाज म अपन संस्कार ल चपके-धरे-लुकाए भले कलेचुप बइठे हे, फेर ये भोला गँवई ह भलई ल भुलाए नई हे। ये बात अलग हे कि चमचमावत चकाचौंध म चमक चिटिक चौंधिया, चीथिया अउ चिटियागे हवय।
सबो परब के एक कहिनी होथे। आने आने जन अउ जगा भले अलग हो सकथे, फेर सबो के मूल म उछाह, एकता, अउ सहकार के भावना छुपे रहिथे। छेरछेरा तको ओइसनेहे छीटीबूँदी, रंगबिरंगी अउ छतरंग छितरियाए कहिनी मन के छाता तनियाए-ओढ़े हवय।
कहिथे एक पइत बरसा के रिसाए-बगियाए ले धरती म बारह बछर के घोर अकाल परिस। त्राहि-त्राहि मच गे। संत बिपत म तको अपन सुमत ले सुपथ के दुवार खोल देथे। कोनो महात्मा कहिस कि शताक्षी देवी के पूजा करे ले अकाल काल के मुँह टर सकत हे। शताक्षी माने सौ आँखी वाली। सबो शताक्षी देवी के पूजन-अर्चन करीन। देवी माँ के प्रसन्न होए ले मारे खुशी के ओकर सबो आँखी ले अतेक आँसू बोहाइस कि धरती के पियास बूझागे। अन्न -धन के संगे संग किसम-किसम के साग-पान के बरसा होए लगिस। इही दिन ले अन्न बरसे के सेति खेत-खार सोनबरसा अउ शाक-पान बरसे के सेति धरती शाकम्भरी कहाए लगीस। सुकाल के आए ले दुकाल के बारा हाल होगे। सबो प्राणी प्रार्थना करे लगीन। देवी माँ प्रसन्न होके ‘श्रेय‘ ‘श्रेय‘ माने कल्याण हो, कल्याण के असीस दीस। इही ‘श्रेय श्रेय’ शब्द बेरा के धक्का खावत घीसा-पीटा के छेरछेरा होगे। ये घटना ह पूस पुन्नी के घटे रिहिसे। कतकोन झन मन मानथे, हो सकत हे शाक-पान, कंदमूल संग अन्न के बरसा ह ‘छर -छर -छर -छर’ सुनाइस, उहेंचे ले छेराछेरा नाम अवतरिस होही।
शिव के उपासक शैव सम्प्रदाय म येहू कहिनी हे कि राजा हिमाँचल के बेटी पार्वती ह शिव ल मने-मन पति रूप म स्वीकार कर डारे रिहिसे। शिव ल पाए बर पार्वती घोर तपस्या करत रिहिसे। ओकर परीक्षा लेहे बर बहुरूपिया शंकर नट रूप धरके भिक्षा माँगे के ओखी करके पार्वती तीरन गइस। ओकरे सुरता म लोगन आनी बानी के रूप धरके घुँघरू-घाँघरा माने पैंजन-करधनी पहिन के आनी बानी के रूप बनाके माँगे बर टोली बनाके अउ अकेल्ला-दुकेल्ला तको निकलथे।
छेरछेरा म छेरछेराए के कोनो उमर, जात-पात अउ ऊँच-नीच नई राहय। लइका सियान बुढ़वा जवान कोनो छेरछेरा माँग सकथे।
अइसे तको कहे जाथे कि रूरू नाम के रक्सा के अत्याचार ले बाँचे बर जनता, देवी माँ के प्रार्थना करीन। देवी माँ अपन सखी मन संग मिलके रूरू ल डंडे -डंडा पीट-पीटके मार डारीन। एकरे सुरता म ये परब मनाथे। इहीच कथा ल कोनो अइसे तको बताथे कि छै-अरि माने छै झिन बइरी काम, क्रोध, लोभ, मोह, तृष्णा अउ अहंकार ले मुक्ति पाए बर याचक दुवार-दुवार घूमत हे। माई कोठी के मायने हिरदय अउ दात्री ल सऊँहत-साक्षात देवी माँ माने गे हवय।
एतिहासिक कहिनी येहू हवय कि जुन्ना बेरा म राजा के प्रतिनिधि मन गाँव म ढोल‘-मँजीरा अउ बाजा-गाजा संग मुनादी कराके कर/लगान (टैक्स) सकेलय। ये वार्षिक लगान हरेक बछर पूस पुन्नी के सम्पन्न होवय। यानि छेरछेरा पुन्नी तइहा जुग के वित्तीय वर्ष के आखरी दिन होवय। अभीन के आधुनिक जुग म रूपिया-पैसा लेनदेन के साधन होगे हे। पहिली लेनदेन के एकलऊता साधन वस्तु-विनिमय रिहिसे जेमा वस्तु के बदला वस्तु देहे जावत रिहिसे। वो समे कर म अनाज देहे जावय। कर वसूली के ये बूता ल रतनपुरिहा कलचुरी शासनकाल म राज्योत्सव के रूप मनावय। मराठा शासनकाल म ये प्रक्रिया नँदागे अउ राज्योत्सव एक तिहार बनके समाज म पसर के संघर-समागे।
छत्तीसगढ़ के जुन्ना नाम कोसल रिहिसे जेकर राजधानी रतनपुर रिहिस। कोनो-कोनो येहू बताथे कि कोसलपति राजा कल्याण साव राज-पाठ के गहिर गुर सीखे बर दिल्ली के महाराजा इहाँ आठ बछर ले रिहिन। राजा के कौशल होके सकुशल कोसल लहुटे म प्रजा के खुशी के ठिकाना नई रिहिस। उन कोसलपति के सुवागत म रतनपुर पहुँच गे अउ जय-जयकार करे लगीन। प्रजा के अपार भीड़ अउ उन्कर प्रेम अउ आनन्द ल देखके रानी मगन होके महल के अटारी ले दूनो हाथ ले सोन-चाँदी के सिक्का ल प्रजा म लुटाए लगीस। वो बछर धान कटोरा छत्तीसगढ़ म धान के भरपूर पैदावार होए रिहिसे। राजा अउ प्रजा दूनो के घर-दुवार धन-धान्य अउ खजाना ले भरगे रहय। राजा उही पइत अपन जम्मो छत्तीसो गढ़पति ल ये आदेश जारी करीन कि मोर घर-वापसी के खुशी म हर बछर पूस पुन्नी के तिहार के रूप म मनाए जाय।
झगरा के नाम ओखी तइसे परब के नाम कहिनी-पोथी। जोरे म कतको कहिनी जुरिया जही अउ सकेले म कतकोन पोथी सकेला जही। कहिनी कुछू राहय, कतकोन राहय, फेर सबो के मूल म उमंग अउ उछाह उछरत-बोकरत ले भरे हे। सहकारिता अउ सहयोग के भावना भरे ये महान अन्नदाता परब के कोख ले कतकोन सहकारी संस्था, रामायण मंडली, लीला मंडली, भजन मंडली अउ सहकारी बैंक के रूप म ‘रामकोठी’ अउ शिक्षा मंदिर के रूप म सहकारी स्कूल मन खुले हवय। ये किसम ले छेरछेरा ले सकेलाए दान के अन्न ले गरीब, असहाय अउ बिपत परे मनखे मन के सहयोग हो जथे। छेरछेरा के सबले जबर अउ पोठ पाठ सहकारिता के भावना ल जागृत करना अउ ओला सींचके ओकर बिरवा ले पेड़ बनाना हे जेकर ले समाज विकास के रद्दा म सरलग-सरपट बाढ़त रहय।
छेरछेरा के दिन कान छेदाए बर शुभ माने गे हवय। तेकर सेति ये दिन गाँव-गँवई म लोहार अउ सोनार मन के पूछ-परख अउ महत्व बाढ़ जथे। साहूकार मन इही दिन अपन जुन्ना खाता-बही के हिसाब-किताब करके नवा खाता तको चालू करथे।
कतको जगमग अँजोर करय फेर दीया तरी अँधियार घर बनाके रही जथे, तइसे कस किस्सा कोनो शुभ घड़ी के तको एकात ठन ऐब निकल जथे। ये तिहार म तको ओइसनेहे एक ठो समाजिक बुराई ह बसर कर ले हवय। ये दिन कोनो मनखे अपन रिश्तेदार घर सगा बनके नई जावय। कहूँ चली देथे त ओला लोटा म पानी नई दे जाय। जबकि हमर छत्तीसगढ़ के परम्परा म सगा के सबले पहिली सेवा-सत्कार स्वरूप एक लोटा पानी दे जाथे। एकर पीछलग ये अंधविश्वास हवय कि ये दिन सगा ल लोटा म पानी दे ले बछर भर सगा के रेम लगे रहिथे जेकर ले घर के कुल देवी, धन देवी या लक्ष्मी रिसा जथे अउ घर ल छोड़के चल देथे।
पूस पुन्नी के दान ह नैमित्तिक दान कहाथे। ये बेरा म लइका मन टोली बनाके नाचत गावत छेरछेरा माँगे बर निकलथे। कतको जगा माईलोगन मन सुवा गीत गाथे त जवान मन कुहकी पारत डंडा नाचत छेरछेराथे। छेरछेरा माँगे के बूता ल छेरछेरई कहे जाथे। कुहकी एक विशेष प्रकार के कूक हरे जऊन उछाह अउ उमंग के प्रतीक होथे।
जावत खानी महू आप मन के असीस खातिर थोरिक छेरछेरा लेथवँ-
छेरी के छेरा छेर बरकनिन छेर-छेरा
माई कोठी के धान ल हेर हेरा
अरन बरन कोदो दरन
तभे देबे तभे टरन
धनी रे पुनी ठबक नाचे डुवा रे...
अंडा के घर बनाएन
पथरा के गुंड़ी।
तीर-तीर मोटियारी नाचै
मांझा म बूढ़़ी।
कारी कुकरी करकराए
कुसियारी सेवय।
बुढ़िया ल मानुस मिलय
मोटियारी रोवय।
तारा रे तारा पीपर के तारा
जल्दी जल्दी बिदा करव जाबोन दूसर पारा
धर्मेन्द्र निर्मल
9406096346
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