Sunday, 23 February 2025

ऋतु के राजा बसंत"

 "ऋतु के राजा बसंत" 


हमर भारत देश मा प्रमुख रूप ले छः ऋतु माने गे हे। सबो ऋतु ला दो-दो महीना मा बाँट दे गे हे।  बरसा ऋतु असाढ़ ले सावन, शरद ऋतु भादो ले कुँवार, हेमन्त कातिक ले अगहन अउ शिशिर ऋतु पूस ले माघ, बसंत ऋतु फागुन ले चइत, गरमी बइसाख ले जेठ तक। दो-दो महिना तक सब ऋतु अपन-अपन महिमा दिखाथे। सबो के अपने-अपन महता हे फेर बसत ऋतु ल अतका काबर मान मिलथे येला काबर ऋतु के राजा कहिथें आवव जानन। 

      जम्मों ऋतु के परिवर्तन हमर भौगोलिक कारण ले होथे जेन हा भौतिक दुनिया के संगे-संग मानव मन ला घलो परिवर्तित कर देथे। जब वर्षा ऋतु आथे त रिमझिम बरखा बहार, करिया-करिया बादर जम्मों प्रकृति ल सुन्दर बना देथे चारो कोती हरियर-हरियर हो जाथे अउ सबो प्रानी मन के भन बरखा के पानी ले अघा जाथे। अइसने शरद, हेमन्त, शिशिर, ग्रीष्म हा घलो अपन-अपन प्रभाव ला देखाथें। फेर बसंत ऋतु के आगमन हा प्रकृति जगत के संगे-सँग मनखे के अन्तरमन मा प्रेम के भाव जगा देथे। ये ऋतु मा मौसम के तापमान समान रहिथे न जादा गर्मी न जादा ठंडा। ये ऋतु मा रुखराई के पत्तामन झर के नवा पत्ता ले भर जाथें। चारो कोती खेत-खार मा घलो सरसों के पिंवरा-पिंवरा फूल अइसे लगथे के धरती दाई ला पिंवरा चुनरी ओढ़ा दे हे। परसा के लाल-सफेद, केसरिया फूल हा धरती मा  अपन महक बगराथे। आमा के पेड़ मन मा सुग्घर सोहना बौर लग जाथे। जेकर महक हा प्रकृति ल सुगंधित कर देथे। ताल तलैया कमल कुमुदनी के फूल ले सुग्घर दिखे लागथे। ये सबो मन बसंत ऋतु के अगुवई करथें त बसंत ऋतु के राजा काबर नइ कहलाही।


       बसंत ऋतु के वर्णन करत  महाकवि कालिदास हा अपन "ऋतुसंहार" मा कहिथें –


"सर्व प्रिये चातुर बसंते" 


अर्थात बसंत ऋतु सबला प्रिय हे।

आयुर्वेद के दुनिया मा "नवीनीकरण कायाकल्प" के समय माने गे हे बसंत ऋतु ला।

भगवान श्री कृष्ण हा गीता के दसवाँ अध्याय पैतीसवाँ श्लोक मा बताय हे –


"मासानां मार्गशीर्षो अहम ऋतुनाम कुसुमाकरः" ।


अर्थात ऋतुओं में "मैं बसंत हूँ" कहिके बसंत ला श्रेष्ठ बताय हे।


       बसंत ऋतु मनखे के अंतर मन ला प्रकृति के सुग्घर दर्शन करा के प्रेम के उछाह  देथे। त दूसरा कोती इहीइच मौसम मा एकाकीपन के घलो अनुभव होथे। पौराणिक कथा मन‌ मा बसंत ला कामदेव के बेट‌ा कहे गे हे। येला सृष्टि रचना के आधार मानेगे हे। फेर कोनो येकर भाव बिगड़ जाथे  तब ये "अनंग" घलो बन जाथे। इही बसंत ऋतु मा माता पार्वती अउ भोलेनाथ के मिलन होय जेन हा सृष्टि बर अनासक्त प्रेम के उदाहरण आय। येकर ले बसंत ऋतु के महता बाढ़ जाते। इही बसंत मा माघ अंजोरी पाख के पंचमी के दिन माता सरस्वती के जनम दिवस बसंत पंचमी के रूप मा  मनाथन। येमा दाई सरस्वती के ज्ञान, कामदेव के काम अउ विवेक अनश्वर ऊर्जा के स्रोत बन जाथें।

         बसंत प्रकृति ला अपन माध्यम बना के मनखे के नीरस जीवन मा रस भर देथे अउ अनासक्त प्रेम के भाव जगाथे। फेर आज मनखे मन उन्माद मा आके प्रेम के गलत अर्थ समझ लेथें जेन हा सही नइ हे। आज मनखे ला बसंत के सही अर्थ ला समझ के जीवन मा निर्लिप्त प्रेम के भाव ला समझे ला पड़ही।अउ "ऋतु के राजा बसंत" के

महिमा ला जाने ला पड़ही।


डॉ पद्‌मा साहू "पर्वणी"

 खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

छत्तीसगढ़ के भीम-- दाऊ चिंताराम टिकरिहा जी*

  *छत्तीसगढ़ के भीम-- दाऊ चिंताराम टिकरिहा जी*

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छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा मा अनेक महा मानव मन खेले-कूदे हें अउ वोकर अँचरा के छँइहा पाके सरी दुनिया मा जस बगराये हें।

उही विभूति मन मा शामिल हें छत्तीसगढ़ के भीम, बहुतेच बलवान- पहलवान,कर्मठ कृषक दाऊ चिंता राम जी।

 दाऊ चिंता राम के जनम ब्रिटिश शासनकाल मा मध्यप्रांत वर्त्तमान मा छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला,तहसील-तिल्दा के छोटे से गाँव कुम्हारी(कठिया) मा ईस्वी सन् लगभग 1880 मा माता श्रीमती सुखिया बाई अउ पिता दाऊ दौवाराम टिकरिहा जी के घर होये रहिसे।दाऊ जी के चार बेटा अउ चार बेटी मा चिंता राम हा सबले बड़े रहिस हे।

कहे गे हे के- " पूत के पाँव पालना मा देखे ला मिल जथे। बालक चिंता राम फुंडा-फुंडा गाल के मजबूत शरीर के पैदाइसी ले रहिसे।आन लइका मन के तुलना मा वो जल्दी मढ़ियाये अउ रेंगे-दँउड़े ला धरलिस।बचपने मा कोनो भारी जिनिस ला उठा लेवय जेला देख के लोगन भारी अचरज करयँ।

   श्री दौवाराम टिकरिहा जी हा तीन गाँव कुम्हारी, मुसवाडीह अउ बुड़गहन के हजारों एकड़ के खेती वाला बड़का दाऊ रहिसे फेर वोमा बिल्कुल अहंकार नइ रहिसे।उन बहुत मृदुभाषी, मिलनसार अउ धार्मिक प्रवृत्ति के रहिन हे ।पूरा परिवार बहुतेच संस्कार वान अउ धार्मिक रहिस हे जेकर प्रभाव बालक चिंताराम मा बहुते परे रहिस।

  बालक के शिक्षा-दीक्षा नजदीक के गाँव कठिया(कुम्हारी) मा शुरु होइस।लोहा जइसे मजबूत शरीर वाला ये बालक पढ़ई-लिखई के संगे संग खेल-कूद मा तको तेज रहिसे। कबड्डी मा तो विरोधी टीम के जम्मों झन ला अकेल्ला ईंचत माई डाँड़ मा ले आवय।रस्सा खींच मा पूरा कक्षा भर के लइका एक तरफ ता वो अकेल्ला एक कोती भारी परय।कुश्ती मा तो वोकर सो कोनो लड़े बर तइयारे नइ होंवयँ। धीरे- धीरे स्कूल के लइका मन वोकर संग खेले बर छोंड़ देइन।बालक चिंताराम एक जगा बइठे टुकुर-टुकुर देखत राहय। ये बात के पता गुरुजी मन ला चलिस ता वोमन वोकर बल के कई प्रकार ले जाँच करिन ता दंग रहिगें।

 पढ़ाई-लिखाई पूरा होइस तहाँ ले महाबली युवा चिंता राम हा अपन पिताजी के खेती-बारी ला सम्हाले ला धर लेइस। वोकर दादा दाऊ श्री गंगा राम जी ला गौपालन के बहुते चाह रहिसे। युवा चिंता राम वोमा अपन दादा के बहुत जादा सहयोग करे ला धर लेइस।दूनो झन गउ माता के सेवा मा लगे राहयँ। नाती-बबा के जोड़ी तको जोरदार जमय।

  जब चिंता राम जी के उमर बिहाव के लाइक होइस ता वोकर मँगनी-जँचनी एक झन नोनी सो होइस फेर दुर्भाग्य ले बिहाव के पहिली वोकर इंतकाल होगे।परिवार के मन कुछ दिन पाछू युवा चिंता राम के शादी सिरवे के दाऊ  रामेश्वर सिंह के सुपुत्री विक्टोरिया बाई ले कर देइन।दूनों के गृहस्थी के गाड़ी सुग्घर चले ला धर लेइस अउ ये दम्पति ला दू पुत्र अउ तीन कन्या रत्न के प्राप्ति होइस।

सही बात ये - "समे अबड़ बलवान " होथे।विधि के विधान समझ मा नइ आवय। भगवान हा अच्छा इंसान ला मनमाड़े कस के देखथे। श्रीमती विक्टोरिया बाई के असमय इंतकाल होगे।पूरा परिवार मा दुख के पहाड़ टूटगे। धीर-ज्ञानी दाऊ चिंताराम हा बैरागी बरोबर होगे।खाना-पीना छोड़के दूबी के रस पीके जीये ला धरलिस।

    परिवार के बड़े बुजुर्ग मन समझाइन के-- 'दाऊ बेटा! तैं धीर धर।तहीं दुखी रहिबे त लोग लइका अउ हमर का होही? पूरा परिवार तहस-नहस हो जही। पाँच झन लइका अउ बड़का परिवार के जिनगी के खियाल करके दाऊ चिंता राम हा धीरे-धीरे थिरबाँव होइस अउ लोगन से मिले जुले ला धरलिस अउ दुबारा खेती- किसानी मा रमगे।

  कुछ साल पाछू परिवार के मन समझा बुझाके वोकर एक अउ बिहाव सेजा के दाऊ हरीराम पैकरा जी के बेटी बतिबाई से कर देइन।ये खुशहाल जोड़ी ले 2 पुत्र अउ 9 पुत्री के रूप मा संतान प्राप्त होइस।

  मनखे के जिनगी मा उतार-चढ़ाव,सुख-दुख तो आते-जाते रहिथे।दाऊ चिंताराम के परिवार मा भाई बँटवारा के मौका आगे।बँटवारा होइस फेर मया के डोरी कभू नइ टूटिस।बड़े भाई के अपन निस्वार्थ धरम ला निभावत वो हा अपन दूनों भाई ला गद खेतवार वाला गाँव मुसवाडीह अउ कुम्हारी ला दे देइस अउ अपन हा बलौदाबाजार ले लगभग 15 कि० मी० दूरिहा,जमनइया के खँड़,टापू मा बसे गाँव बुड़गहन ला जिहाँ वो जमाना मा आये जाये बर चिखला माते गाड़ा रवान धरसा के अलावा कोनो सड़क नइ रहिसे,जेन गाँव ले चउमास के चार महिना बाहिर निकलना मुश्किल राहय तेला मंजूर कर लेइस। बाद मा दाऊ चिंताराम हा अपन अथक मिहनत ले इहाँ ला सरग बना देइस।नौ सौ एकड़ के खेती जेला देखे बर अतराफ के लोगन आँवय। आजू बाजू 25कि०मी० के बनिहार-भूतिहार मन के दाऊ जी हा काम देके अपन परिवार कस पालन पोसन करय।वोकर किसानी उन्नत खेती के नमूना राहय।वो अँचल मा वोकरे सो रूस के बने टेक्टर युनिवर्सल 650 रहिसे जेला देखे बर मेला कस लोगन जुरिया जवयँ। वो जमाना मा अँचल मा रोपा पद्धति ले धान लगाये के शुरुआत उही हा करे रहिसे। वोकर सो जूहा मतलब अइसे नाँगर रहिसे जेमा 15--20 नास राहय अउ एक संग  15- 20 भँइसा या बइला फँदावय।येला वो खुदे जोंतय या फेर वो नौकर-चाकर मन जेला उन ट्रेनिंग दे राहय।

   दाऊ जी हा बहुते पशु प्रेमी रहिसे।भँइसा मन घाम मत पावय कहिके ऊँकर ले सुबे 10 बजे तक अउ बइला मन ले सुबे 10 ले 1 बजे तक काम लेवय तहाँ ले ढिलवा देवय।वोहा कुशल घुड़सवार तको रहिसे।वोकर बाँड़ा मा कोठा भर गाय के सेवा होवत राहय।गाय,बइला ,भँइसा, घोड़ा, 25-30 ठो पोंसवा कुकुर मन ला राउत-पहाटिया मन दवा-पानी अउ  ऊँकर पौष्टिक खुराक देवत राहयँ।बेरा-बेरा मा अलसी,सोंठ अउ गुड़ के बने लाड़ू खवावयँ।

   धनी-मानी होये के बावजूद दाऊ जी ला चिटको अंहकार नइ रहिसे।मेहनती अतका के लुंहगी या फेर पटकू-पंछा पहिन के खुला बदन खेत मा बूड़े राहय। वोकर ये वेषभूषा हा तभे बदलय जब वोहा पँचहत्थी धोती अउ सलुखा पहिन के सगा-सोदर घर या कहूँ अन्ते जावय।

ब्रह्ममुहूर्त मा उठके नहाँ धोके हनुमान जी के पूजा पाठ करके, कम से कम एक हजार डंड बइठक लगाके,अउ सैकड़ो पइत बड़ भारी दूनों हाथ मा मोदगर ला घुमाके,व्यायाम करके खेत पहुँच जावव अउ बनिहार मन के आये के पहिली दसों झन के पुरता अकेल्ला काम कर डरे राहय।वोकर एके ठा खेत हा 15--20 एकड़ के एकदम पट भाँठा कस समतल राहय।दाऊ जी हा अपन खेत मा रसायनिक खातू के उपयोग नइ करके सिरिफ घुरवा खातू(आर्गेनिक खाद) डारय।

  दाऊ चिंता राम जी हा  धार्मिक,समाज सेवी अउ महादानी रहिस हे।हनुमान के परम भक्त दाऊ जी हा प्राचीन तुरतुरिया मंदिर के जीर्णोद्धार मा तन मन धन ले योगदान देइस। 80- 85 साल के उमर मा डेड़ दू कुंटल के पथरा मन ला अपन बगल मा दबा के पहाड़ मा चढ़ावय वो पथरा मन आजो उहाँ माढ़े हें। अपन खाँध मा काँवर बोह के समान पहुँचावय।सन् 1969 ले सन्1974 तक वोकर कठिन मेहनत,त्याग-तपस्या ले मंदिर के जीर्णोद्धार सम्पन्न होइस।वोकर जलाये अखंड जोत मंदिर मा आजो जलत हे।अपन गाँव मा खुद स्कूल बनवाके देइस।बुड़गहन ले करमदा तक सड़क बनवाये बर अपन जमीन ला दान करिस। सरकारी नहर जेन अंते ले जावत रहिसे तेला बुड़गहन कोती लाइस।अपन गाँव अउ आजू-बाजू गाँव के गरीब, मजदूर मन के कोनो भी सुख-दुख मा आगू राहय।छट्ठी, छेवारी,शादी-बिहाव अउ मरनी-हरनी मा अन्न-धन ले सहायता करै।

     100 किलो वजन के गठीला शरीर वाले दाऊ जी के बल अउ भोजन अति रहिसे।ये मामला मा वो समे बीसवीं सदी मा पूरा भारत देश मा दुये झन-- छत्तीसगढ़ ले दाऊ चिंताराम अऊ आंध्रप्रदेश के कोडी राममूर्ति नायडू हा श्रेष्ठ गिने जावयँ।

 चाय अउ माँस-मदिरा,लसून-प्याज ले दूर दाऊ जी के शुद्ध सात्विक भोजन भारी भरकम राहय। एक पइत मा 4 से 6 किलो तक भोजन वो करय जेमा35 ले 40 ठो रोटी,2 किलो चाँउर के भात,लगभग 2 किलो साग-भाजी ,सलाद,1 किलो दार,1पाव घी या मक्खन ,लगभग 2 किलो दूध शामिल राहय। वोकर थारी ,लोटा,गिलास मन बड़का-बड़का राहय।आन घर जातिच त जानकर मन बड़े कोपरा मा भोजन परोसयँ। दाऊ जी हा नल के पानी कभू नइ पियत रहिसे वोहा कुँआ के साफ पानी पियय। वो हा मीठा खाये के बड़ शौकीन रहिस हे। 3--4 किलो जलेबी ला अइसने झड़क दय।100-200 गुलाब जामुन ला वोकर चासनी सहित गटक दय।एक पइत एक झन पहलवान ले शर्त लगिस ता अस्सी ठो पूड़ी ला खाके डकार तको नइ मारिस।

  दाऊ चिंता राम हा अति बलशाली रहिसे। धनहा मा बोजहा भराये कोनो गाड़ा सटक जावय(धँस जय) अउ कोनो उपाय करे मा नइ निकलय तब उहाँ दाऊ जी पहुँच जवय अउ एक कोती जुड़ा मा खुद फँदा के जोर लगाके खींच के गाड़ा ला निकाल देवय। 2-3 कुंटल वजनी लकड़ी ला देखते-देखत उठाके तिरिया देवय-- बोह के कहूँ ले जावय। सन् 1940 मा जब मुसुवाडीह गाँव के ऊँकर घर बनत रहिसे ता फीट 22 के बहुतेच गरू लगभग 15 ले 20 कुंटल पथरा ला एक कोती 10-15 आदमी ता एक कोती अकेल्ला बोह के डोहार देइस। वो पथरा आजो हे। वो हा70-80 किलो धान भराये दू दी बोरा ला अपन अगल- बगल मा दबा के डोहार लेवय।बड़े -बड़े वजनी सील-लोढ़ा ला तो वोहा अइसने मुठा मा धरके एती ले वोती पहुँचा देवय। एक पइत कुर्रा-बंगोली जावत समे वोकर बइला गाड़ी(इही गाड़ी मा या घुड़सवारी करके वो यात्रा करय) हा माड़ी भर चिखला मा धँसगे।वोकर हट्टा-कट्टा हजरिया बइला मन नइ इँचे सकिच ता वो हा बइला मन ला ढिलके खुदे इँच के निकाल देइच।एक दिन वो हा जमनइया घाट मा दतवँन करत रहिसे ता एक झन मजाक मा कहि देइच-- 'का दाऊ नान नान बम्हरी डारा के दतवँन करथव '? दाऊ कहिच--'अच्छा ये बात हे।' ले भई कहिके गेइस अउ जाँघ असन मोट्ठा बम्हरी के पेंड़ ला जर सहित उखाड़ देइस जबकि वो पेंड़ ला पचासोंआदमी

मिलके नइ उखाड़े सकतिन। एक पइत दू ठन भँइसा मन गली मा मनमाड़े लहूलुहान के होवत ले लड़त राहँय।भँइसा बैर तो जग जाहिर हे।उन हटबे नइ करयँ। एक ठन पटकाय अउ एक ठन हुबेलत राहय।लोगन दाऊ जी ला जाके बताइन।वो हा आके हुबेलत भँइसा के पूछी ला धरके इँचीस अउ फेंक दिच।

एक पइत दाऊ जी हा लगभग सन् 1935-36 मा चित्रकूट के यात्रा मा गेइस ता का देखथे के परिक्रमा के रसता मा बड़े जान पथरा माढ़े हे।लोगन ला बड़ परेशानी होवत हे।पुजेरी हा पूछे मा बताइस के ये पहाड़ ले गिरके आये हे। येला रसता ले टारे के अबड़ कोशिश करे गेहे फेर ये हटाये नइ जा सकिच।दाऊ चिंताराम हा वोला उठाके अंते हटा दिच।वो पथरा मा पुजेरी हा ' श्री चिंता राम टिकरिहा, ग्राम-बुड़गहन(छत्तीसगढ़)' लिखवाये रहिसे जेन हा सन् 1994 तक रहिसे।

दाऊ चिंता राम के बल के जतका जादा बखान करे जाय वो कमतीच होही।बड़े-बड़े पहलवान मन वोकर बल के थाह पाये बर आवयँ अउ मात खा जावयँ।

  सादा जीवन- उच्च विचार वाले चिंता राम जी कभू गंभीर रूप ले बीमार नइ परिच।वो आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी के जानकर रहिस। अपन बनाये दवाई ले लोगन के सेवा करत राहय।

 ये मृत्युलोक मा मौत हा अटल सत्य ये।वो हा कोनो ला नइ छोड़य।कोनो न कोनो बहाना बनाके आ धमकथे।  सन 1980 के बात होही।दाऊ चिंता राम ला साँस लेये मा दिक्कत आगे।परिवार के मन इलाज करवाये बर रायपुर ले गेइन। डाक्टर मन के अथक प्रयास करे के बावजूद दाऊ जी ला नइ बँचाये जा सकिच। परिवार के उपर दुख के पहाड़ गिरगे।दाऊ के मृत शरीर ला बुड़गहन लाये गेइस। अंतिम यात्रा मा रोवत गावत हजारों नर-नारी के रेला लगगे। दशगात्र के दिन गाँव मा अतका लोगन सकलाइन के पाँव रखे के जगा नइ बाँचिस।

     आज दाऊ जी के निशानी के रूप मा वोकर पुश्तैनी घर के मंदिर मा वो मोद्गर माढ़े हे जेला वो चालय, वोकर आराध्य श्री हनुमान जी के मूर्ति हे जेकर दर्शन करे बर लोगन जाथें।

   ग्राम बुड़गहन अब तो साधन सम्पन्न होगे हे जिंहा छत्तीसगढ़ के भीम दाऊ चिंता राम जी के यशस्वी सुपुत्र स्व०श्री झाड़ू राम टिकरिहा,श्री दुर्गा टिकरिहा, श्री दौलत टिकरिहा अउ श्री धनेश टिकरिहा जी के परिवार जन निवास करथें।

धन्य हे छत्तीसगढ़ महतारी अउ धन्य हे वोकर माटीपुत्र छत्तीसगढ़ के भीम स्व० दाऊ चिंता राम टिकरिहा जी।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

[2/13, 12:41 PM] कवि बादल: 👆विशेष--- दाऊ चिंता राम जी के संबंध मा एक उर्जावान विद्वान नवयुवक श्री एस०अंशु धुरंधर जी हा, 9वर्ष के अथक मेहनत ले शोध ग्रंथ अउ डाक्यूमेंट्री फिल्म के निर्माण करे हे जेकर भव्य विमोचन समारोह 6जनवरी 2025 ग्राम बुड़गहन मा  आयोजित रहिसे। जेमा भाग लेये के सौभाग्य मिले रहिसे।डाक्यूमेंट्री में वो क्षेत्र के सामाजिक सेवक होये के नाते वक्तव्य देये के सौभाग्य मिले हे।

  ये डाक्यूमेंट्री ला "रायपुर आर्ट, फिल्म एवं लिटरेचर फेस्टिवल मा  हजारों प्रविष्टि मा चयनित करके 8 फरवरी 2025 के पं दीनदयाल आटोडोरियम रायपुर मा देखाये गेइस।

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वैलेंटाइन डे अउ मातृ-पितृ दिवस"

 "वैलेंटाइन डे अउ मातृ-पितृ दिवस"


वैलेंटाइन डे नाम ला सुन के आज के  टूरा-टूरी अउ जवान मन एक दिन पहिली पुचपुचावत रहिथें अउ वैलेंटाइन मनाय बर किसम-किसम के उदिम करत मटर-मटर करत रहिथें। आजकल के लोग लइका मन वैलेंटाइन डे के दिन ला प्रेम दिवस के रूप मा  मनाय जाथे कहिके आनी-बानी के चोचला करथें अपन मयारु मनला मनाय-पथाय बर लगे रहिथें। कोनों मन बाग बगीचा मा  गुलाब के फूल देइक देवा होथें ता कोनों मन अपन मनसरवा बर आनी-बानी के उपहार लेथें। फेर-वैलेंटाइन डे के सही अर्थ काय हरे तेला भूला के वोकर गलत ढंग ले मतलब निकालथें। आज के हमर नौजवान लइका मनला वैलेंटाइन डे के सही ज्ञान होना जरूरी हे अउ ये ज्ञान लइका मनला घर के दाई-ददा परिवार के सदस्य मन बताहीं तभे वो मन ला सही दिशा मिलही। काबर के आज के लइका मन सिरिफ बहिरी रूप-रंग के सुन्दरई ला देख के एक दूसर मा मोहा जाथें अउ उही ला प्रेम मान बइठथें।

       

        आज के नौजवान लइका, टूरा-टूरी मन अपन दिशा ले भटकत हावँय। वोमन ला जानना जरूरी हे  कि "वैलेंटाइन डे:" के सही अर्थ का हे। ये हमर परंपरा मा नइ रहिस। फेर धीरे-धीरे विदेश के ये रिवाज हा आज के लोग लइका मन ला अपन तीर खींचत हावय। दूसर के  रीति रिवाज ला अपनाय मा  कोनो बुरई नइ हे फेर ये बात ला समझना जरूरी हे कि वो हमर बर सही हे कि नहीं। 

      वइसने वैलेंटाइन डे ला घलो जानना जरूरी हे कि वैलेंटाइन डे काबर मनाथें। वैलेंटाइन रोम के एक पादरी संत रहिस जेन हा रोम के सैनिक मन के प्रेम विवाह के समर्थन करे रहिस उनकर जीवन ला सँवारे बर।  रोम के राजा सम्राट क्लॉडियस द्वितीय ला वैलेंटाइन के ये काम हा पसंद नइ आइस ता वोहा संत वैलेंटाइन ला मृत्युदंड के सजा सुना दिस।  सैनिक मन के प्रेम विवाह  रोम के राजा ला पसंद नइ रहिस। अउ ये खातिर पसंद नइ रहिस कि प्यार के चक्कर मा आके सैनिक मन के मन हा भटकत रहिस। वो मन अपन काम मा धियान नइ देत रहिन। तेकर सेती संत वैलेंटाइन ला मृत्यु दंड के सजा 14 फरवरी के दे गीस।  वैलेंटाइन के मउत हा प्रेमी मन बर प्रेम बलिदान के प्रतीक बनगे। अइसे इतिहास मा पढ़े सुने ला मिलथे । संत वैलेंटाइन हा सच्चा प्रेम के समर्थन करे रहिस। आज के बेरा बखत मा प्रेम के वो जम्मो परिभाषा बदलत हे।

       

        हमर आज के पीढ़ी मन वैलेंटाइन डे ला रोज डे, प्रामिस डे, प्रेमी जोड़ा डे,  प्रपोज डे कहिके येला फैशन बनाके मान मर्यादा सबो ला भूलाके  अनुचित बेवहार करथें  जेन हा हमर संस्कृति  के हिनमान आय। अइसन चोचला के मया पिरित हा बछर भर नइ होवन पाय अउ मुरझाय गुलाब के पंखुड़ी कस टूट के ऐती-ओती छरिया जाथे। कोनों-कोनों मन होही जेकरे वैलेंटाइन डे जिनगी भर निभत अउ निभात होही। 

     

       इही सब चीज ला देखत अउ नौजवान लइका टूरा-टूरी मनला बिगड़त देख के हमर देश राज मा 2007 ले "वैलेंटाइन डे" ला मातृ-पितृ दिवस के रूप मा मनाय के परम्परा शुरु होइस। अब 14 फरवरी  ला "वैलेंटाइन डे" के संगे-संग दाई-ददा के पूजन दिवस के रूप मा मना के दाई-ददा मन ला सनमान  करे के उदिम शुरू होय हे। अउ ये कार्यक्रम ला हर बछर ईस्कूल मन मा घलो मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप मा मनाय जाथे। जेकर ले लइका मन ला संस्कार के सीख मिलथे।

        मातृ-पितृ दिवस मनाय के ये उदिम बड़ सुग्घर हे। फेर देखे मा मिलथे कि ये दिन मातृ-पितृ दिवस ले जादा वैलेंटाइन डे के धूम रहिथे। बीते कुछ बछर ले ये दिन हा हमर देश राज मा फैशन बरोबर होगे हे। हमन ला ऐला फैशन नइ बना के ये दिन ला सच्चा मया पिरित के दिन बनावन अउ पबरित मया के परिभाषा ला जानन अउ जिनगी ला सँवारन। मया पिरित के चिन्हारी मा सब एक दूसर ला अइसन गुलाब के फूल देवन जेन हा कभू झन मुरझावै अउ वोकर महक हा जिनगी के बगीचा मा महर-महर महकत राहय। अउ हमर मया हा दाई-ददा, भाई-बहिनी, संगी-संगवारी सब मन ले बने रहे  सबके मान मर्यादा हा सुग्घर एक दूसर ले बँधे रहे। एकरे ले वैलेंटाइन डे अउ मातृ-पितृ दिवस हा सार्थक होही।


         डॉ पद्‌मा साहू "पर्वणी"     

        खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

तइहा के निस्तारी...गहिरावत जल स्तर*

 *तइहा के निस्तारी...गहिरावत जल स्तर*





तइहा के बेरा मा ,गांव के अधिकतर मनखे मन अपन निस्तारी.... अपन तीर-तखार के प्राकृतिक जल स्रोत-नंदिया,झरिया अउ मनखे मन द्वारा बनाए आने जल स्रोत तरिया,कुंआ अउ बावली के पानी ला बउर के ही अपन रोजमर्रा के क्रियाकलाप ला करयं अउ अपन गुजर बसर करयं।

कोनों-कोनों गांव मा तो एक ले जादा,कई ठन तरिया घलो रहय ...जेमे एक ठन तरिया‌ ला... तो खास तौर ले गांवे के मनखेच मन के निस्तारी बर रखयं अउ कोनो-कोनो तरिया मा मनखे अउ पशु धन दूनों के निस्तारी घलो होवय..अइसनो राहय....।

गांव के गइंज लोगन मन पहिली...तरियच मा नहंई अउ कपड़ा-लत्ता धोवई-कंचई ले लेके के....देवी-देंवता के मूर्ति विसर्जन,जोत जंवारा विसर्जन अउ मरनी- हरनी के नेंग जोब ला घलो तरियच मा करयं अउ अइसे बात नइहे...आज नइ होवत हे?आज घलो होवत हें फेर... ओ पहिंत जइसे नइ होवय ?....आज सिर्फ फार्मेल्टी भर होवत हे......हां एकर अलावा पहिली गांव मा या काकरो घर मा कोनो बड़का सामाजिक अउ सरजनिक आयोजन होवय ता चउंर दार ला तरिया मा घलो धो देवयं कहिथें.... मतलब ए बात ले अंदाजा लगाए जा सकत हे के ओ बेरा मा तरिया नंदिया कतना साफ-सुथरा रहय...। .....अउ आज तो इंकर ए स्थिति हो गे हे के कोनो-कोनो गांव के तरिया के पानी ला मुहुं मा डारे बर सोंचे ला परथे....।

      ओ पहिंत.....तरिया के पानी ले कभु-कभु एन वक्त मा तीर-तखार के खेत-खार ला घलो पलो डरयं... ।

हां... एक बात यहु हे के.. पहिली सब आर्थिक रूप ले थोरिक कमजोरहा घलो रहय ते पाय के सब सुख सुविधा के अभाव घलो रहय... फेर ये विषय मा अइसन बात नइहे? कमजोर रहय चाहे सजोर गांव के सबे मनखे मन तरियच मा नहावयं धोवयं....भई ...बिरले लोगन ला छोंड़ के...भले कोनो बिहनिया,मंझनिया चाहे संझा नहावयं...फेर.......तरियच मा नहावयं ...।

.... नंदिया कछार के तीर मा बसे गांव के मनखे मन ओ पहिंत नंदिया के तीर मा झरिया बनाके ओकर पानी ला रांधे गढ़े,पिये खाय अउ रोजमर्रा के क्रियाकलाप बर बउरयं‌ कहिथें....तइहा के बेरा मा जल के स्तर अतका उप्पर राहय कहिथे.... के कुआं अउ झरिया खने ता पानी बड़ जल्दी अउ उप्परे मा ओगर जावय अउ नंदिया तीर के बसाहट वाले मन तो ...नंदिया के रेती ला दू चार हांथ टारे असन करे अउ पानी ओगर जावय तहां ले पहिली के ओगरे मतलहा पानी ला हांथ मा डुम-डुम के फेंक दे...बस ..पानी निरवा फरिहर अउ पिये अउ बउरे के लइक हो जावय...तहां ले ... छोटे बर्तन मा डुम-डुम के बड़े बर्तन मा कपड़ा के छन्ना लगाके भर लेवयं.....अउ एक के उप्पर एक पानी भराय बर्तन ला मुड़ मा बोही के पनिहारिन मन कतको दुरिहा ले रोजमर्रा के बउरे बर भरयं अउ डोहारयं....पुरूष वर्ग मन कांवर मा घलो डोहारयं...कोनो बड़का आयोजन के बेरा मा गाड़ा बइला मा बड़े बड़े डराम अउ गंज ला रख के घलो डोहारंय...।

..धीरे-धीरे इही...झरिया ला...बसाहट के लोगन मन आर्थिक रूप ले थोरिक सजोर होवयं तहां ले कुंआ अउ बावली के रूप घलो दे देवयं .... जेन ला धसके झन अउ जान माल के नुकसान झन होवय कहिके.... ईंटा अउ पखरा ले अपन सुविधा अनुसार बांध घलो डरयं.....अउ कुंआ के चारो कोति पार,चबुतरा घलो बनावयं....सहुलियत बर गड़गड़ी घलो लगा लेवयं।

....अउ बावली मा तो स्रोत तक पहुंचे बर सिढ़िया घलो बनावयं....फेर बावली मा कुंआ ले जादा लागत लगय....ते पाय के इन कुंआ बनाय मा जादा जोर देवयं ।

बावली के निर्माण जादातर ,जादा बसाहट वाले गांव अउ आवागमन के हिसाब से चारोमुड़ा के चउंक वाले जघा मन मा जादा करयं...नइते...ओ समय के शासन द्वारा आर्थिक सहयोग मिले तिहां....संभव राहय..।

आज घलो आप मन देखे होहू अउ देखेल मिलथे अधिकतर बावली...राजा रजवाड़ा मन के महल अटारी परिसर अउ कोनो चउंक चौराहा वाले जघा मा ही जादा देखे ला मिलथे।

....पहिली कोनों भी गांव ले बिहने नइते संझा बेरा मा गुजर तेन ता कुंआ के चारो मुड़ा पनिहारिन मन पानी भरत दिखिच जावयं ...अउ उही कुंआ पार... पनघट मा पनिहारिन मन अपन सुख दुख ला... गांव के सोर खभर ला... घलो गोठिया डरयं...अउ कभु-कभु उही पनघट मा कोनो गोठ बात मा लड़ई-झगरा घलो मात जावय ...एक ठन बड़ सुग्घर बात... कोनो... पनघट मा काकरो हांथ ले रस्सी बाल्टी मा ढरकाके... दूनों हांथ मा, मुंहुं ला दंताके पानी पिए के तो कोनो बखानेच नइहे...अइसनहा पानी पिये के तो अलगे मजा अउ मिठास रहय....ओ पहिंत पानी के जादा खइत्ता घलो नइ होवय....काबर परम्परागत जिनिस मन ही  जादा बउरायं... बारी- बखरी मा‌ टेंड़ा के उपयोग जादा होवय अउ  *ओ समे के लोगन मन जतका जरूरत रहय वतकच पानी कुआं ले निकालय....अउ बउरयं ...अउ वहु पानी हा व्यर्थ नइ जावय...अइसे ब्यवस्था बने रहय के बारी-बखरी मा बोंवाय साग भाजी मा पल जावय...अब तो मशीनी जुग... कलयुग आगे हावय ता पानी के बड़ दुरूपयोग...खइता घलो होवत हे....एती मोटर पंप ला चालू कर देहे अउ नहावत हे बपरा बपरी मन अउ पानी हा व्यर्थ बोहावत हे ते बोहातेच हे...कोनो ब्यवस्था च नइहे अउ पहिली के एक बाल्टी पानी मा नहवइया मनखे हा आज कई बाल्टी पानी ला भलभल ले रूतो के नहावत हावय... खइत्ता करत हावयं....ता कहां ले पानी हा ...जल स्रोत हा उप्पर मा रही? वो तो गहिरी मा जाबेच करही ना? आज के समे मा जेन बड़ चिंतन के विषय घलो हो गे हे...अउ जल संकट गहिराय के पाछू इही दू चार कारण नइहे अउ कतरो कारण घलो हे भई...अहादे.... अंधाधुंध रूख-राई कटात हे....कतरो जंगल उजड़त हे.....तेकर सेती दिन-ब-दिन पानी घलो कम गिरत हे...कतरो पानी बड़े-बड़े करखाना मा खपत हे यहु सब बड़का कारण हे...।*

गइंज अकन लोगन मन आज अपन खेत-खार मा बोर कराके कई ठन डबल तिबल फसल घलो बोंवत हे....आर्थिक रूप ले सजोर होय बर...यहु जरूरी हे....तभे तो देश भी आर्थिक रूप ले सजोर होही ... भई।

अउ एती सरकार हा भविष्य के  चिंता करत...जल संवर्धन बर कई ठन योजना घलो बनावत अउ चलावत जावत हें...जइसे पक्का मकान के छत मा वाटर हार्वेस्टिंग कराना ,गांव ले सँटे नंदिया नरवा मा रपटा कम स्टाप डेम बनवाना, छोटे-छोटे बंधिया घलो बनावत हें,गर्मी फसल मा धान बोंय के बजाय आने फसल ला प्राथमिकता देना ,आने आने...अउ कइ ठन योजना... सरकार हा चलावत हे।

... कुछ पहिंत पहिली तो सरकार हा चउंक-चउंक अउ आरा पारा मा बोरिंग घलो खनवाय रिहिस फेर गांव-गांव मा नल-जल योजना के आए ले...धीरे-धीरे वहु हा नंदावत जावत हे....काबर अब तो घरो घर नल घलो लग गे हावय....अउ कतकोन मन अपन समर्थ अनुरूप पराभिट बोर घलो करा लेत हें...अउ बने बात ए भई ...ता...अभी के पीढ़ी के लइका मन बर..का तरिया?का नंदिया?का झरिया?का कुंआ?अउ का बावली वाले हिसाब घलो हो गेहे..तइसे लगथे..काबर....कुंआ,तरिया अउ नंदिया ला तो थोरिक जानबेच करहीं ... झरिया अउ बावली के तो बातेच छोंड़ देव... भइगे..वाले हिसाब किताब हो गेहे...।

 ..अब तो अइसे लगथे ... .. कोनों-कोनों‌ गांव मा तरिया के कोनो भेलुच नइहे,तइसे घलो लागथे.... सिरिफ फार्मेल्टी भर बर ही रहिगे हे...नंदिया ले तो कम से कम सिंचाई होथे....पहिली के लइका मन नंदिया, तरिया मा कूद-कूद के नहावयं,पानी भीतरी घलो रेसटीप अउ छु-छुववला खेलयं एप्पार ले ओप्पार नाहकयं...लइका मन कइसे तउंरे ला सिख जावय? पतच नइ चलय...?पहिली अइसने कतरो एक्सरसाइज हो जावय ...अउ अब के लइका मन तो झार घर भीतरी बाथरूम मा नहावत हे....अउ कोनो-कोनो हा कभु स्वीमिंगपूल...?ता आज के लइका मन कहां ले तउंरे ला सिख पाहीं...?तेकरे सेती कभु कहुंचो घुमे- घामेला जाय रही ता ,तउंरे-वउंरे ला तो आवय नहीं अउ सउंखे-सउंख मा एक दूसर ला देखके...बिना सोंचे समझे नंदिया-नरवा मा घलो कुद देथें अउ इही चक्कर मा आजकाल कई ठन अलहन घलो हो जावत हें...अउ अब तो कुंआ बावली के बातेच छोंड़ देव....काबर कतकोन कुंआ ला तो पाट दिन अउ कतकोन पटावत घलो हें...कतकोन कुंआ हा बेंवारस घलो परे हे...बिन जतन रतन के....?

हां...ए सब के पाछू बदलत जमाना अउ कलयुग के परभाव हे...तभे तो आज सब, पारम्परिक जिनिस अउ सभ्यता मन ले दुरिहावत जावत हें...अउ मशीनी अउ आयता माल के पाछू भागत दिखत हें.... सरी सुख-सुविधा बाढ़ गेहे....कपड़ा लत्ता धोय बर वाशिंग मशीन आगे हवय,पानी खींचे बर किसम-किसम के मोटर पंप आगे हवय...अउ आने-आने ...ए सब तो आज सामान्य बात हो गे हे.... सबले अचरज अउ विडम्बना के बात ये हे के आज पानी... बोतल अउ पाउच मा बिके ला धर लेहे.... अउ कोनों-कोनों मनखे मन अब बिसलरी अउ फिल्टर पानी पियई ला अपन शान समझे‌ ला धर लेहें....कोन जनी आज के लोगन मन उपर का भूत सवार हो गेहे ते... तुरते के निकाले पानी ला पिये ला छोंड़ के... कब के बोतल मा भराय रहिथे तेला पिये के आदी होवत जावत हें... अउ अइसने कुछ लोगन मन कुआं बोरिंग के पानी ला तो भले पियास मरत रही जही फेर नइ पिययं...अपन शान के खिलाफ समझथें.....ता कतकोन के कहना हे...कोन आज के जमाना मा तरिया,नंदिया अउ कुंआ, झरिया के चक्कर काटही....साफ-सफई ला भी तो देखे ला परथे परम्परा अउ  पुराना सभ्यता ला बनायच रखना हे कहिके....कहुंचो थोरी नहा लेही ... कहुंचो के पानी ला थोरे पी लेहीं...कोनो नइ चाहे के अपन परिवार के कोनो सदस्य ला कोनों तकलीफ होवय.... अउ आजकाल सब चाहथें के अपन घरे मा ही सरी सुख सुविधा रहय....यहु सिरतोन बात हरे...कोनो काबर फिकर करही भविष्य के?....अवइया भविष्य बर कांही बांचे चाहे झन बांचे...?मोला काहे...?में एके झन चिंता करके का कर लेहूं?अउ सब जानतेच हे भविष्य बर कांही बांचे चाहे झन बांचे?रूपया पइसा तो बांचबेच करही...काहीं ला बंचाय चाहे झन बंचाय पइसा ला तो सब बंचाबेच करही अउ रूपया पइसा रही तहां ले का नइ हो सकय?...अपना काम बनता..... अउ दुनिया जाए भाड़ मा...... वाले हिसाब किताब चलत हे......... हां !ये बात सच हे के ....आज वैज्ञानिक मन द्वारा धीरे-धीरे कई ठन एक ले बढ़के एक मशीन मन के आविष्कार घलो होवत जावत हे...... कलयुग आगे हे...विज्ञान के जुग आ गेहे भई...यहु ला तो माने ला परही... स्वीकारे ला परही...आज बिना कल पुर्जा के काहीं संभव नइहे...आज वर्तमान पीढ़ी शत् प्रतिशत एकरे उप्पर निर्भर हे.... आदी हो गे हवय, एकर बिना जी नइ सकय? यहु ला नकारे नइ जा सकय?अउ येकर ले लोगन के सुख सुविधा हा तो घलो बाढ़ गे हावय....हां!एक ठन चिंतन के विषय यहु हे के परंपरागत...के चक्कर मा रहिबो ता.....अंतरराष्ट्रीय स्तर मा देश के साख ला भी तो बचाके राखे ला परही....अउ ये सब ला नइ अपनाबो ता देश के आर्थिक विकास भी तो संभव नइहे....ता का करन अउ का करे जाय...जेकर ले हमर जुन्ना पररम्परा अउ सभ्यता भी बने रहय अउ अवइया पीढ़ी मन बर जल संकट घलो झन होवय....काबर हम सब बर एक ठन चुनौती यहु हे के आने देश मन...ए सब के बावजूद अपन जम्मो जुन्ना परम्परा अउ सभ्यता ला घलो संजोके राखत हावय.....ता हमन काबर नइ कर सकन?

अमृत दास साहू 

ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)

कहिनी *// सुमता के डोर //*

 कहिनी              *// सुमता के डोर //*

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                  करमडीह गाँव के सुमता सबो ले अलगेच चिन्हारी हावे।उहां के सुमता के सोर दुरिहा-दुरिहा ले सेमी नार असन फइले रहय।करमडीह डोंगरी के खाल्हे म बसे हावे।जिहां नरवा के धार खल-भल,खल-भल दूरिहा ले गीत गावत असन सुनावत रहिथे।नरवा के तीरे-तीर बारी बिरछा लगे रहिंथे।ओ गाँव के मनखे मन के मया ह *मुर्रा लाड़ू असन ढिंढ़याय* हावे।खेती-किसानी अउ जम्मो बूता-काम ल सबो जुरमिल के करंय।रीति-रिवाज अपन जुन्ना संस्कृति अउ पौनी-पसारी म रचे-बसे हावे अउ तीज तिहार ल घलो जूरमिल के बड़का उछाव ले मनावंय।

            गाँव ओतका जादा बड़का नि हे फेर गाँव के *सुमता के डोर* बड़ दुरिहा ले सूरुज के जोत असन जगमगावत रहय।गाँव म सबो जाति के मनखे मन रहंय।गिनती लगाय म उंहा के जनसंख्या दू-अढ़ाई हजार रहिस होही।जेन अपन-अपन काम-बूता ल मगन होके करंय।सियान मन के गोठ *अमरीत* कस जनावय।इही अमरीत बानी के खातिर सबो मनखे मन एके *गुरलाटा* रहंय।गाँव म नानमून लड़ाई झगरा गाँवेच म निपट जावे कभू नालिस फिरयाद नि होइस अउ न तो कभू कोर्ट-कछेरी के फइरका के *सकरी हलाय* के जरुरत परिस।गाँव के सबो लोगन मन पढ़े लिखे रहिन ते पाय के पूर्ण साक्षर के ईनाम सरकार डहर ले पाय रहिन।

               गाँव के सुमता ल देख के परोसी गाँव ह *ईरखा पोसे* के शुरू करे रहिन फेर उंकर इरादा कभू पूरा नि होय पाइस।कोनों मंथरा असन *मति ल थरे* ल धर लिन त कोनों शकुनि जइसन *पासा के चाल ल फेकें* के उदीम घलो करके देखिन।फेर बपुरा मन ल *मुँहूं लुकउल* होगिन।करमडीह गाँव के मनखे मन के मति ह *मया मंधरस म सनाय* रहिस ते पाय के काकरो इहाँ *दार नि गल* सकिस।

               सुमता के डोरी ल टोरे के कतको झन मन उदीम खोझत रहिन।तइसनहे ठउका ग्राम पंचइत के चुनाव लकठियावत रहिस। सबो ल मउका के अगोरा रहिस कि गाँव ल कइसनहों करके सुमत के डहर ल *पांव तरी रउंदना* हे।सबो ल चुनाव ह बने मउका पाय हन कहिके मने-मन उछाव करत जोहत रहिन।काबर कि पंचइत चुनाव ह घर-घर अउ मनखे-मनखे म *बैरवासी के पीकी* उलहोय धरथे।

            घासीराम गाँव के बने गुनिक सियान रहय।गाँव विकास बर उदीम करय,सबोझन ल सुमता के डहर म रेंगे बर जोगंय।ओहा गाँव म मंद-मउंहा,जुआ-चित्ती बुराई ल तीर म ओधकन नि देवै।काबर कि ये बुराई मन मनखे ल आघू बढ़े बर पनपन नि देवय,भलुक तरीच-तरी *मनखे ल खोखरा* कर देथे। येकर ले पूरा परिवार के *बेंदरों बिनाश* हो जाथे। ओहा बने नियाव पंचइती ल *दूध के दूध* अउ *पानी के पानी* कर देवय।ते पाय के गाँव के मनखे मन ओकर कहना मानें,आदर सन्मान करंय।

                ' का हालचाल हे ! घासी कका ' ?....फिरु पूछथे।' सबो तो बने-बने हावे फेर तैं कहाँ जावत हस ' ?.... मुसकावत घासी पूछथे।' कहाँ जाबे ! बस तोरेच करा तो आय हौं '.....फिरु कहिस।' बता का काम परगीस गाँव म सबो बने हावे न ' ?....घासी कहिस।' अब चुनाव लकठियावत हे कका '......फिरु बताइस।' त ओमा काय हे पाँच साल पुरगे चुनाव तो आबेच करही '...... घासी कहे लगिस।' ओ तो आबेच करही कका फेर मोला ये साल के चुनाव डर लागत हावे '....फिरु कहिस।' का के डर येमा पाछू बछर निर्विरोध चुनाव होय रहिस ओइसनेच येहू बछर होही '.....समझावत कहिस।

             ' हमर परोसी गाँव के चोखी नजर हमरे गाँव म गड़ियाय हावे '....फिरु फेरेच कहिस।' ले गड़ियाय हे तेमन ल गड़ियाय रहन दे '.......घासी कहिस।' गाँव के सबो समाज के मुखिया मन ल बलवाय बर घासी जोंगिस '।संझवाती बेरा सबो गाँव के गुड़ी म सकलाइन।' सुना भई हो चुनाव लकठिया गे हावे चुनाव बर अपन-अपन विचार अउ सुझाव दिहौ '......घासी समझावत पूछिस।' हमर गाँव म पन्दरा वार्ड हावे अउ पन्दरा समाज के घलो हावन सबो समाज ले एक-एक झन पंच बन जाबो '.........सीटू कहिस।' केवट समाज इहाँ जादा हावे त केवट समाज ले सरपंच बना देतेन कका '.....मोहित कहिस।' सबो के विचार ल सुनिस अउ ठीकेच कहत हौ '.....घासी कहिस।

                  भुरवा केवट जबर सामाजिक कारज म लगे रहय,अपन के जिनगी ल समाजिक सेवा म गुजार दिस हे,फेर अब ओहा ये दुनिया ले सरग सिधार गे हावे।ओकर बहुरिया फेकनी बाई हावे तेन ह बने पढ़े-लिखे के संगे-संग समाजिक सेवा म निसुवारथ भाव ले लगे रहिथे।ओहर *गउ जइसन* सिधवी अउ *सतवन्तिन* हावे। माईलोगन मन संग बने हिले-मिले रहिथे,अउ संगे-संग ओहा सुग्घर कारज घलो करत हावे।ओही ल सरपंच बना देतेन, गाँव के सबोझन कहे ल धर लिन।अउ फेर का सबोझन के सहमति म गाँव के सरपंच पद बर फेकनी बाई के नांव टिपा गिस।

               गाँव करमडीह के ग्राम पंचायत के चुनाव म फेकनी बाई सरपंच पद के फारम भरिस अउ सबो जाति के मन एक-एकझन पंच पद के फारम भरिन।सरपंच अउ सबो पंच मन निर्विरोध निर्वाचित होगिन।गाँव म सुमता रहिस ते पाय के अइसन हो पाइस।गाँव के नांव सबो जघा सूरुज के अँजोर कस जग-जग ले बगर के अँजोर करे लागिस।गाँव छोटकून हावे फेर *सुमता के डोरी* जबर लम्बा लमे हावे।

                  गाँव के सियान घासीराम के नियाव,गुनिक गोठ अउ उहां के मनखे के सूझ-बूझ ले गाँव के विकास के धार बोहाय लागिस।मंथरा असन मति थरइया अउ शकुनि जइसन मन के पासा फेकइंया चाल घलो काम नि आइस।ओमन *माथा पिटत* थथमराय रहि गिन। सरकार डहर ले गाँव म निर्विरोध पंच सरपंच बने के इनाम घलो पाइन।ओ गाँव म गोसाईं तुलसीदास जी के बानी ह सहिच म देखे म मिल गिस।

         *जिहां सुमति तिहां जिनिस सारी।* 

         *जिहां कुमति तिहां दुखेच हे भारी।।*

✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*

         *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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बाई के बड़ई

 बाई के बड़ई

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कका --- कका ! थोकुन रुकतो--पड़ोस के भतीजा कहिस।

'काये बता ?'--मैं पूछेंव।

चल ना आज रायपुर जाबो कका।

कइसे--काबर ?

कुछु नहीं।एकक हजार के दू ठो टिकट कटा डरे हँव।एक झन अगमजानी महराज के दरबार में जाये बर।

मैं नइ जाववँ।मोला अइसन अरबार-दरबार पसंद नइये।अइसने कतेक झन ढग-जग मन धंधा चलावत हें। तैं दू ठन टिकट कटाये हस त दूनो परानी जावव न जी।

अब काला बताववँ कका तोर बहू ला रतिहा ले कसके बुखार हे।वो नइ जाववँ कहि दिस तेकर सेती ताय --तोला काहत हँव।मोर एक हजार के टिकट बेकार हो जही।

मैं हा थोकुन हर गुन के कहेंव- 'तैं काहत हस त चल देहूँ फेर कुछु पूछवँ- पाछँव नहीं।'

'ले कुछु नइ होवय कका।संगवारी बरोबर चल देबे ततके काफी हे,मुँहाचाही हो जही' --वो कहिस।

 रायपुर के बड़े जान होटल मा दरबार लगे लागय।हमर पहुँचत ले हाल हा खचाखच भरगे राहय टिकट के बुकिंग के अनुसार कुर्सी लगे राहय।हमन ला आगूच मा जगा मिलगे।

 उहाँ दू झन सुंदर नोनी मन माईक धरे एकर-वोकर सो जात राहँय।जेकर सो जायँ तेन हा अपन समस्या ला-परेशानी ला बतावय तहाँ ले भारी सजे-धजे मंच मा बइठे -- वेषभूषा ले भारी तपसी-महात्मा कस लागत महराज हा दू चार ठन प्रश्न पूछ के बतावय के भगवान के किरपा एमा अटके हे, वोमा अटके हे तहाँ ले उपाय तको बतावय।

 वो एक झन माईक वाले नोनी मोरो सो आके दँतगे अउ बोले ला कहिस।मैं हा माईक ला भतीजा कोती टरका देंव।वो तो तइयार बइठे राहय।माईक ला धरके टिंग ले खड़ा होगे।

महराज बोलिस-- बताओ बच्चा क्या परेशानी है?

 काला बताववँ महराज बहुत परेशानी मा जिनगी चलत हे। मोला थरथरासी- थरथरासी लागत रहिथे।बाई हा सीधा मुँह बात नइ करै।लोग लइका मन बात नइ मानैं।खेती-खार चौंपट होगे।नानचुक दुकान खोले हँव तेनो दिनों-दिन खिरावत जावत हे।ग्राहक नइ आवयँ।।पइसा कमाथँव तेन टिकबे नइ करय।कोनो जादू-टोना करदे हें तइसे लागथे।बँचालव महराज जी---बोलत बोलत भतीचा के गला भर्रागे।आँखी ले आँसू बोहागे।

महराज ढाँढ़स बँधावत कहिस-- बहुत दुखी हो बच्चा सब ठीक हो जायेगा।अच्छा ये बतावो-- मिर्ची भजिया कब खाये हो?

'आजे दू घंटा पहिली खाये हवँ महराज।'

और जलेबी?

'उहू ल आजे वोकरे संग होटल मा नाश्ता करत खाये हँव।'

सुनके महराज थोकुन चुप होके -- अपन आँखी ला मूँद के एक ठन माला ल अपन मूँड़ मा घुमाके ,काय-काय बुदबुदाइस तहाँ ले बोलिस-- 'अच्छा ये बताओ बेटा।तुम्हारी पत्नी है न?'

'हाँ हाँ हाबय न महराज।'

वो भोजन बनाती है कि कोई और?'

'उही बनाथे महराज।मैं कहाँ रसोईया राखे सकहूँ।मोर हैसियत नइये।'

अच्छा ठीक है ।ये बताओ अपनी पत्नी के बनाये खाने का तरीफ कब किये हो?'

'मोला तो सुरता नइ आवत ये महराज।शायदे करे होहूँ।'

बस-बस कारण समझ में आ गया।कृपा वहीं अटकी है।जाओ आज ही तारीफ करना सब ठीक हो जायेगा।'

भतीजा हा हव महराज कहिके चुपचाप बइठगे।

ऊँकर सवाल-जवाब ला सुनके मोला खलखलाके हाँसी आवत रहिसे तभो मुँह ला तोपके चुपचाप बइठे रहेंव।

दरबार सिरइच तहाँ ले घर  लहुटत ले जेवन के बेरा होगे।वोकर जिद्द करे मा महूँ हा सँघरा वोकरे घर जेवन करे बर बइठगेंव।बहू हा लाके जेवन पानी देइस।भतीजा हा एके कौंरा मुँह मा लेगिस तहाँ ले शुरु होगे-- अजी कमला सुन तो।आज के भोजन जोरदार बने हे।आलू साग ला तो झन पूछ----अँगठी ला चाँट- चाँट के खाये के मन करत हे।'

वोतका सुनके बहू हा भन्नावत कहिस-- तोला लाज तको नइ लागय।आलू साग ला फूटे आँखी नइ भावच तेन हा।थारी-कटोरी ला फेंक के औंखर-औंखर गारी देथच तेन हा।तोला तो कुकरी-बोकरा अउ दारू चाही।'

'मैं  दिन भर बुखार मा हँफरत हँव।तोला हरियर सूझे हे।वो तो परोसिसन रम्हला काकी बेचारी हा अलवा-जलवा राँध दे हे त खाये ला मिलगे नहीं ते लाँघन सुते रइते।'

'आँय -का कहे? येला तैं नइ राँधे अच?'

'हव। बताये हँव न।'--बहू कहिस।

मोला लागिस के इँकर कुकरी झगरा मात जही का? भतीचा ला चुपेचाप खाये ला कहेंव अउ भोजन करके अपन घर लायेंव तहाँ ले समझावत कहेंव--'देख बाबू फोकट के ढोंगी मन के चक्कर मा आके दू -ढाई हजार रूपिया ला फूँक देयेच। कृपा तो अभो अटके हे।एक बात ला मान जबे ता सदा दिन भगवान के किरपा बरसे ला धर लिही।तैं हा रात-दिन दारू पियई ला छोंड़ दे।तोर तबियत घलो ठीक हो जही।घर के पूरा माहौल दारू के सेती खराब कर डरे हस।लोग लइका,बाई सब टेंशन मा रहिथें। दारू पीके दुकान मा बइठतच त भला कोन ग्राहिक आही? थोक बहुत कमाथस तेन ला दारू मा उड़वाथस त पइसा कहाँ ले बाँचही। एक बात अउ- बहू ले अच्छा बरताव करबे तभे तो गृहस्थी बने चलही।बाई के बड़ई करे मा,वोकर सम्मान करे मा बरकत आथे जी।बात समझ मा आइस न?'

वो हा हव कहिके मुँड़ी ला हलाइस।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

साहित्य म नारी शक्ति के योगदान

 21 फरवरी -  विश्व महतारी भाषा दिवस म विशेष 


साहित्य म नारी शक्ति के योगदान 


महतारी भाषा ह दाई के दूध कस अमरीत बरोबर होथे। अपन भाषा म गोठियाय अउ लिखे ले वो भाषा ह समृद्ध होथे। अपन महतारी भाषा म गोठियाय अउ लिखे ले हिरदे ल

जउन उछाह मिलथे वोहा आने भाषा म नइ मिलय। आने भाषा ल सीखना बने बात हे पर अपन महतारी भाषा ल कभू नइ भूलना चाही। जउन मन अपन महतारी भाषा ल भुला जाथे वोमन धीरे ले अपन संस्कृति, संस्कार अउ सभ्यता ले घलो दूर हो जाथे। महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अउ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संगे- संग कतको महापुरुष अउ बुधियार साहित्यकार मन महतारी भाषा म शिक्षा देय के समर्थन करे हावय। जउन

भाषा ल नइ बउरे जाय वोहा एक न एक दिन नंदा जाथे। 



साहित्य ल समाज के दर्पन कहे जाथे। साहित्य के बारे म कहे गे हावय कि तोप अउ तलवार ले जादा साहित्य म जादा सक्ति होथे।  वो देस मुर्दा जइसे होथे जिहां साहित्य नइ हे।  इतिहास ले जानकारी होथे कि साहित्य अउ अखबार के बदउलत कतको देस के बेवस्था म बदलाव घलो होय हे। साहित्य म सबके हित छुपे रहिथे। जउन साहित्य म सुघ्घर संदेश रहिथे उही ह निक साहित्य हरे। जउन साहित्य ह लोगन मन ल बुराई डहन ढकेल देथे वोहा उथला साहित्य माने जाथे। 

   साहित्य  म पुरुष मन के संगे -संग नारी शक्ति के अब्बड़ योगदान हावय। नारी शक्ति मन अपन निक लेखनी ले साहित्य जगत  ल समृद्ध करे हावय। एक कोति नारी शक्ति मन कतको सामाजिक बुराई मन उपर कलम चलाके समाज अउ देस ल सुधारे बर सुघ्घर उदिम करे हावय त दूसर कोति स्त्री विमर्श पर कलम चला के नारी समाज के दयनीय दसा ल सुधारे बर समाज अउ देस के मुखिया मन के आंखी ल उघारे के काम करे हावय। त आवव वो नारी शक्ति मन के सुरता करथन जउन मन अपन कलम के ताकत दिखाय हे। जिंकर मन के लेखनी ह समाज अउ देस के बेवस्था ल बदल दिस। जिंकर मन के सुघ्घर लेखनी ले साहित्य के ढाबा ह लबालब भरे हावय।


    कृष्ण प्रेम म डूबे मीरा बाई के गिनती हमर देस के महान महिला साहित्यकार म होथे।  मीरा बाई भक्ति काल के कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख रचनाकार म सामिल हे।महान संत रैदास उंकर गुरु रिहिन। भगवान कृष्ण उपर कतको पद के रचना करिन हे। नरसी जी का मायरा उंकर आख्यानक काव्य हरे। उंकर रचना म गीत गोविंद टीका,रंग गोविंद,राग सोरठ ( पद संग्रह) सामिल हे।सरोजिनी नायडू ह अंग्रेजी म रचना करिन। उंकर सुघ्घर रचना खातिर महात्मा गांधी जी ह वोला "भारत कोकिला" के उपाधि ले सम्मानित करिन।

अमृता प्रीतम हिंदी अउ पंजाबी म अपन लेखनी लेअपन एक अलग छाप छोड़िस।उंकर" पिंजर में " कहानी म भारत के बंटवारा के समय के स्थिति के मार्मिक बरनन करे गे हावय। शिवानी के उपन्यास अउ कहानी म कुमाऊं अंचल के संस्कृति झलकथे।


   आधुनिक मीरा के नांव ले प्रसिद्ध महादेवी वर्मा के गिनती छायावाद के  चार प्रमुख रचनाकार के रूप म होथे।उंकर रचना म  नीहार, रश्मि,नीरजा,आत्मिका, परिक्रमा,संधिनी, यामा,गीत पर्व,दीप गीत, स्मारिका, नीलांबरा के अब्बड़ सोर हे। उंकर निबंध म भारतीय संस्कृति के स्वर संकल्पिता, संस्मरण म " पथ के साथी", रेखा चित्र म " अतीत के चलचित्र",सुभद्रा कुमारी चौहान के रचना( आख्यानक काव्य)- खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.... के सुघ्घर सोर बगरे हे। उंकर कहानी म बिखरे मोती,उन्मादिनी अउ काव्य रचना म मुकुल, त्रिधारा सम्मिलित हे।अइसने बंग महिला ( दुलाईवाली),महाश्वेता देवी, मन्नू भंडारी के उपन्यास म एक इंच मुस्कान,आपका बंटी,महाभोज अउ स्वामी अउ कहानी म मैं हार गई,रानी मां का चबूतराअउ आत्मकथा म "एक कहानी यह भी") के सोर होइस।

।शोभा डे, मृणाल पांडे( कहानी -एक स्त्री का बिदा गीत, शब्द बेधी,दरम्यान)मृदुला गर्ग, मृदुला सिन्हा के उपन्यास ज्यों मेंहदी के रंग,अंजुम हसन,इंदिरा , कृष्णा अग्निहोत्री,चित्रा मुद्गल( कहानी- जहर ठहरा हुआ), बंग महिला ( दुलाईवाली), सूर्यबाला ( गृह प्रवेश),शिवानी (लाल हवेली), कृष्णा सोबती ( सिक्का बदल गया),  उषा प्रियंवदा ( वापसी), ममता कालिया,डा. वीणा सिन्हा, मैत्रेयी पुष्पा यात्रा वृत्तांत- अगन पांखी, कहानी -अब फूल नहीं खिलते),इंदिरा मिश्रा, इंदिरा राय, डा. कृष्णा अग्निहोत्री ( जीना मरना), वासंती मिश्रा ( मेरी स्मरण यात्रा), मालती जोशी,मेहरून्निसा परवेज,अनिता सभरवाल, उर्मिला शिरीष,स्वाति तिवारी,रेखा कस्तवार,अल्पना मिश्रा, 


इस्मत चुगताई,निर्मला देशपांडे,सुनीता देशपांडे,लीला मजूमदार, अरूंधति राय, तसलीमा नसरीन , शम्पा शाह, वंदना राग, मनीषा कुलश्रेष्ठ, इंदिरा दांगी जइसन कतको विदुषी साहित्यकार मन के सुघ्घर लेखनी के कारन साहित्य जगत म अब्बड़ पहिचान हावय।


 हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन  पोठ लेखनी के माध्यम ले साहित्य जगत म अपन एक अलगे पहिचान बनाय म सफल होय हे। छत्तीसगढ़ के सोना बाई के नांव ले प्रसिद्ध डा.निरुपमा शर्मा हमर छत्तीसगढ के पहिली कवयित्री माने जाथे।उंकर कविता  संग्रह म "पतरेंगी" रितु बरनन, दाई खेलन दे अउ" बूंदो का सागर" सामिल हे।  निबंध संग्रह म इन्द्रधनुषी छत्तीसगढ़, डा. सत्यभामा आडिल ह छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी म दूनों म कलम चलाय हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म गोठ,ठीहा, रतिहा पहागे अउ हिंदी काव्य संग्रह म नर्मदा की ओर,काला सूरज, नि: शब्द, उपन्यास म प्रेरणा बिंदु से निर्वेद तट तक, यात्रा कथा म पहाड़ की ढलान से समुंद्र की सतह पर , रेडियो रूपक म एक पुरुष , चंपू काव्य म दस्तक देता सूरज सम्मिलित हावय।


डा . सुधा वर्मा ह छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी म पोठ साहित्य के रचना करे हावय। उंकर छत्तीसगढ़ी रचना मन म उपन्यास - बन के चंदैनी, तरिया के आंसू,  काव्य संग्रह म कइसे हस धरती, कहानी संग्रह म धनबहार के छांव म, निबंध संग्रह म बरवट के गोठ,परिया धरती के सिंगार अउ तरिया के आंसू, नाटक म श्रीरामचरितमानस सामिल हावय। आप मन अरबी लोककथा के अनुवाद करे हौ। हिंदी काव्य संग्रह म क्षितिज के पार,नदी के किनारों का परिणय, कहानी संग्रह म मुन्नी का पौधा, संस्मरण म" वे दिन भी अपने थे," चित्रकथा म डा. खूबचंद बघेल, छत्तीसगढ़ अउ हिंदी काव्य संग्रह म कोख म बसेरा के सुघ्घर सोर बगरिस। देशबंधु के मड़ई अंक के संपादक हौ।


सरला शर्मा के  छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी  म दर्जनभर रचना प्रकाशित हो चुके हे। उंकर छत्तीसगढ़ी रचना म  -आखर के अरघ ( निबंध),  सुन संगवारी ( कविता, कहानी, निबंध), सुरता के बादर ( संस्मरण), माटी के मितान ( उपन्यास) अउ हिंदी म पंडवानी और तीजन बाई ( व्यक्ति परिचय), बहुरंगी ( निबंध संग्रह), वनमाला ( काव्य संग्रह) अउ कुसुमकथा ( उपन्यास) जइसे पोठ साहित्य हे। 

शकुंतला तरार ह  त्रैमासिक पत्रिका नारी संबल के संपादन करिन। नव साक्षर मन बर लघु पुस्तक बन कैना अउ "बेटिया छत्तीसगढ़ की" प्रकाशित होइस। उंकर हिंदी काव्य संग्रह के नांव "मेरा अपना बस्तर"हे।



शकुंतला शर्मा छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी म अब्बड़ कलम चलाय हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म चंदा के छांव म,चन्दन,कोसला,  महाकाव्य म कुमार संभव, लघुकथा म करगा, छंद काव्य संग्रह म "छंद के छटा "अउ गजल संग्रह म बूड़ मरय नहकौनी दय के सुघ्घर सोर हे। आप मन के हिंदी म दर्जनभर के करीब काव्य संग्रह, बेटी बचाओ, महाकाव्य अउ निबंध संग्रह प्रकाशित हो चुके हे।

शकुंतला वर्मा के "छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और लोक साहित्य का अध्ययन",( शोध ग्रंथ),संतोष झांझी के हिंदी काव्य संग्रह म हथेलियों से फिसलता इन्द्रधनुष,डा. उर्मिला शुक्ला के छत्तीसगढ़ी रचना छत्तीसगढ़ के अउरत ( काव्य संग्रह), महाभारत म दुरपति (खंडकाव्य), गोदना के फूल ( कहानी संग्रह) के संगे संग हिंदी म इक्कीसवीं सदी के द्वार पर ( काव्य संग्रह), गुलमोहर ( गजल संग्रह) , अपने- अपने  मोर्चे पर ( कहानी संग्रह) अउ आलोचना म छत्तीसगढ़ी संस्कृति और हिंदी कथा साहित्य प्रकाशित होय हे।


, गीता शर्मा ह संस्कृत महाकाव्य शिवमहापुराण अउ इशादि नौ उपनिषद् के छत्तीसगढ़ी म गद्य अनुवाद करे हावय।  वसंती वर्मा हछत्तीसगढ़ी म सुघ्घर रचना करे हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म मोर अंगना के फूल, मितानिन अउ मउरे मोर आमा के डारा सामिल हावय। आप मन के छंदबद्ध रचना बर घलो अब्बड़ सोर हे।

डा. शैल चंद्रा के छत्तीसगढ़ी लघु कथा संग्रह म गुड़ी अब सुन्ना होगे, (गोदावरी ,28नवंबर 2024

म विमोचित)अउ हिंदी रचना म विडंबना,घोंसला ( लघु कथा संग्रह),  इक्कीसवीं सदी में भी ( काव्यसंग्रह), जुनून और अन्य कहानियां ( कहानी संग्रह) के चर्चा होथे।  डा. अनसूया अग्रवाल के छत्तीसगढ़ी रचना म छत्तीसगढ़ के ब्रत - तिहाउ अउ कथा - कहानी, छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियां अउ जन जीवन, हिंदी म नव साक्षर किताब मन म कहावतों की कहानियां अउ वसीयत, यात्रा वृत्तांत म "यात्रा द्वारिका धाम की" सामिल हावय। गिरिजा शर्मा ह संस्कृत म लिखे किताब कातिक महात्म के छत्तीसगढ़ी म गद्य अनुवाद करे हे। तुलसी देवी तिवारी के छत्तीसगढ़ी रचना म केजा ( कहानी संग्रह)अउ हिंदी रचना  म पिंजरा,मेला ठेला,परत दर परत, आखिर कब तक,सदर दरवाजा अउ उपन्यास म कमला अउ कहानी म शाम से पहले की स्याही सम्मिलित हे


अइसने हमर छत्तीसगढ के महिला साहित्यकार मन म, संध्यारानी शुक्ला,डा . मीता अग्रवाल, डा . जयाभारती  चंद्राकर( छत्तीसगढ़ी महिला कलमकार ले मुंहचाही,28 नवंबर 2024 म विमोचित)डा. कल्याणी महापात्र, डा. शोभा श्रीवास्तव, ज्योति गवेल , आशा देशमुख( छंद चंदैनी),शोभा मोहन श्रीवास्तव, जया जादवानी( उपन्यास-तत्वमसि, कहानी- समंदर में सूखती नदी,आर्मीनिया की गुफा), अर्चना पाठक, वंदना केंगरानी,शांति यदु, स्नेहलता मोहनीश, आभा श्रीवास्तव,आभा दुबे,विद्या गुप्ता,जनक दुर्गवी,पूनम वासम,ऋचा रथ, गायत्री शुक्ला,शोभा निगम,सुमन मिश्रा, दुर्गा हाकरे, इंद्रा राय(कहानी-तुम इतनी अच्छी क्यों थी),कुंतल गोयल, मृदुला सिंह, विश्वासी एक्का,अनामिका सिंह, गुरप्रीत कौर चमन, डा. सरिता साहू , डा. बी. एन. जागृत,


आशा झा,डा. वीणा सिंह, हंसा शुक्ला,लता शर्मा,लता राठौड़, केंवरा यदु, शशि साहू, संगीता वर्मा, मेनका वर्मा,नीरमणि श्रीवास,सरोज कंसारी, इन्द्राणी साहू सांची(  छंदबद्ध रचना -सांची साधना),द्रोपदी साहू सरसिज, डा.पदमा साहू पर्वणी, नीलम जायसवाल,शुचि भवि( छंद फुलवारी),धनेश्वरी गुल,(बरवै छंद कोठी, सवैया छन्द संग्रह, गुल की कुंडलियां,( रिया के चाय-28 नवंबर 2024 म विमोचित),

रश्मि गुप्ता, मनोरमा चंद्रा,सुमित्रा कामड़िया,  चित्रा श्रीवास, गायत्री श्रीवास, प्रिया देवांगन प्रियू, शैल शर्म,माधवी गणवीर, जागृति सार्वा, शकुन शेंडे, शशि तिवारी महुआ, गीता विश्वकर्मा,निशा तिवारी, संतोषी महंत श्रद्धा,  सुषमा शुक्ला,डा. रीना कोमरे,संध्या राजपूत, सुजाता साहू प्राची साहू , धनेश्वरी साहू, अर्चना साहू,केशरी साहू जइसन कतको नांव सम्मिलित हावय। छंदविद् अरूण कुमार निगम द्वारा संचालित आन लाइन गुरुकुल क्लास " छंद के छ" के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ के सैकड़ों प्रतिभा मन साहित्य के क्षेत्र म पोठ उदिम करत हावय जेमा कोरी भर ले जादा महिला साहित्यकार मन के नांव घलो सम्मिलित हावय।  छंद के छ परिवार ले जुड़े दर्जन भर महिला साहित्यकार मन के कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हे जिंकर साहित्य जगत म सुघ्घर तारीफ होय हे। त ये प्रकार ले हमन देखथन कि हमर देस अउ हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन साहित्य डहन अपन एक अलगे पहिचान बनाय हावय। साहित्य के सबो विधा म सुघ्घर कलम चलावत हे अउ साहित्य के माध्यम ले जन जागरन के अंजोर बगरावत हे। 

हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर इंहां के  भाषाविद्, बुधियार साहित्यकार, कुछ अखबार के संपादक के संगे -संग कुछ व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक, ब्लाग, ई-पत्रिका मन ह सुघ्घर उदिम करत हे।  लोकाक्षर ग्रुप, छंद के छ परिवार ,  छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग,आरूग चौरा,नंदन झांपी, कला परंपरा,मयारू माटी, गुरतुर गोठ, अरई तुतारी, हमर गंवई गांव, महतारी भाखा,छत्तीसगढ़ी मान सरोवर, वक्ता साहित्य मंच,बाल साहित्यकार,  लोकाक्षर पत्रिका,देशबंधु के मड़ई , हरिभूमि के चौपाल, पत्रिका के पहट, अपन डेरा, विचार विथि , विचार विन्यास,सुघ्घर छत्तीसगढ़ के सुघ्घर साहित्य, लोक सदन के झांपी, खबर गंगा, चैनल इंडिया, छत्तीसगढ़ आस पास, साकेत स्मारिका सुरगी,अपन चिन्हारी, गुड़ी के गोठ ,लोक असर, कृति कला एवं साहित्य परिषद सीपत, शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगांव,भोरम देव साहित्य मंच कबीरधाम,  मधुर साहित्य परिषद बालोद,पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा, छुरिया सहित कतको माध्यम ले सुघ्घर उदिम चलत हे। हमर छत्तीसगढ के बुधियार साहित्यकार मन ह पद्म के संगे संग गद्य विधा म अपन कलम चला के छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करत हावय।

 


                 ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

                सुरगी, राजनांदगांव

Saturday, 22 February 2025

छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण ( छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग ले प्रकाशित) संस्करण - 2024 ( तीसरा) प्रकाशक - वदान्या पब्लिकेशन


 


किताब - छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण 


( छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग ले प्रकाशित)


संस्करण - 2024 ( तीसरा)

प्रकाशक - वदान्या पब्लिकेशन, नेहरू नगर, बिलासपुर 

लेखक -  डा. विनय कुमार पाठक 

              डा. विनोद कुमार वर्मा 





छत्तीसगढ़ी के संपूर्ण व्याकरण के तीसरा संस्करण हे खास 


किताब हमर  मितान  जइसे होथे। येकर ले जउन मितानी कर लिस वोहा अकेला नइ राहय। किताब म नाना प्रकार के जानकारी मिलथे। किताब ले हमर गियान म बढ़ोत्तरी होथे। बने किताब हमर जिनगी ल सही रस्दा म ले जाथे त अश्लील साहित्य जिनगी ल नरक कोति ढकेल देथे। त हमला बने किताब पढ़ के बुधियार बनना चाही न कि गलत किताब पढ़ के मूरख बनना चाही।  


  छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, व्याकरण ले संबंधित कतको किताब पढ़े ल मिलथे। अइसने एक सुघ्घर किताब हावय  - छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण ( छत्तीसगढ़ी व्याकरण के मानक मार्गदर्शिका) के तीसरा संस्करण। येकर लेखक हे आदरणीय डा. विनय कुमार पाठक जी अउ आदरणीय डा. विनोद कुमार वर्मा जी। ये किताब ह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग ले प्रकाशित होय हे। ये किताब ह प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी म लगे लइका मन  बर अब्बड़ उपयोगी हावय त साहित्यकार अउ साहित्यप्रेमी मन बर घलो बने काम के चीज हावय। ये किताब ह 388 पेज के हे अउ 9 खंड म बंटे हावय।


  ये किताब म छत्तीसगढ़ी के उत्पत्ति के विकासक्रम, छत्तीसगढ़ के भाषिक स्थिति अउ छत्तीसगढ़ म लिपि के इतिहास, छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि, छत्तीसगढ़ के प्रमुख बोलियां, शब्द साधन , संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, वाच्य,अव्यय/ अविकारी शब्द,कारक,काल, लिंग, वचन, छत्तीसगढ़ी म विराम चिह्न मन के प्रयोग, छत्तीसगढ़ी म सन्धि,समास,रस, छंद, अलंकार, लोक साहित्य अउ लोकोक्तियां,हाना, मुहावरा,जनउला , छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ भाषा के विकास म समाचार पत्र -पत्रिका, रेडियो अउ सिनेमा के भूमिका ,छत्तीसगढ़ी भाषा ले संबंधित थोरकुन जरूरी सवाल - जवाब,छत्तीसगढ़ी के महिला साहित्यकार अउ  उंकर रचना ,छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार अउ उंकर , लोक व्यवहार म छत्तीसगढ़ी ,पाद टिप्पणी (टिप्पण लेखन ),विलोम शब्द, अनेक शब्द मन बर  एक शब्द छत्तीसगढ़ी भाषा: तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज, संकर शब्द ,लोक व्यवहार म प्रयोग होवइया जरूरी शब्दावली: हिंदी -अंग्रेजी -छत्तीसगढ़ी,  संख्याएं, छत्तीसगढ़ी -हिंदी _संस्कृत_- अंग्रेजी,  छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, प्रशासनिक शब्दकोश: हिंदी- अंग्रेजी- छत्तीसगढ़ी के सुघ्घर समावेश करे गे हावय। 

किताब म हिंदी के 52 वर्ण ल छत्तीसगढ़ी म घलो बउरे पर जोर दे गे हावय। अपभ्रंश शब्द के उपयोग ले बांचे बर बल दे गे हावय। येमा उदाहरण देके समझाय गे हावय कि कइसे अपभ्रंश के उपयोग ले अर्थ के अनर्थ हो जाथे। ये किताब म एक चीज अउ हट के हे वोहे छंद के बारे म। किताब म छ्न्द के बारीकी पक्ष के बारे म जानकारी दे गे हावय जउन ह आने छत्तीसगढ़ी शब्दकोश म नइ देखे ल मिलय। कतको छत्तीसगढ़ी छंद के नियम उदाहरण सहित बताय गे हावय। छंद के छ आंदोलन के बारे म चर्चा हावय अउ येकर ले जुड़े खास छंदकार मन के किताब अउ उंकर प्रमुख रचना के उल्लेख हावय। ये अंक म छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के जुन्ना पीढ़ी के संगे -संग नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन के हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म योगदान के उल्लेख करे गे हावय।  किताब के ये तीसरा संस्करण  खास हे।  त बुधियार साहित्यकार अउ अउ प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी म लगे लइका मन ल ये किताब ल जरूर पढ़ना चाही। छत्तीसगढ़ी के संपूर्ण व्याकरण के तीसरा अंक खातिर भाषाविद आदरणीय डा. विनय कुमार पाठक जी अउ आदरणीय डा. विनोद वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।


        ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

     सुरगी, राजनांदगांव

Wednesday, 19 February 2025

श्यामलाल चतुर्वेदी : मंदरस घोरे कस झरय जेकर बानी ले छत्तीसगढ़ी

 


20 फरवरी जयंती //

श्यामलाल चतुर्वेदी : मंदरस घोरे कस झरय जेकर बानी ले छत्तीसगढ़ी

    पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी जी एक अइसन साहित्यकार रिहिन हें, जेला सरलग सुनतेच रेहे के मन लागय. मोला तो कई पइत अइसनो जनावय के उनला कविता पाठ करत सुने ले जादा एक वक्ता के रूप म सुनत रेहे जाय. अइसन कई बखत अवसर आवय जब उनला मन भर सुनई ह गजब भावय. 

   मोला उनला सबले पहिली देखे अउ सुने के अवसर दिसम्बर 1987 के आखिर म तब मिले रिहिसे जब दाऊ महासिंग चंद्राकर जी के 'सोनहा बिहान' के बैनर म बिलासपुर जिला के एक गाँव म 'लोरिक चंदा' के प्रस्तुति होए रिहिसे. संयोग ले दाऊजी मोला अपन संग उहाँ अपन कार्यक्रम देखाए खातिर लेगे रिहिन हें, अउ आदरणीय चतुर्वेदी जी ल घलो उहीच मंच म सम्मान करे खातिर घलो आमंत्रित करे रिहिन हें. ठउका वोकर पंद्रहीच पहिली छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन 9 दिसम्बर के होए रिहिसे, जेकर पहला अंक ल धर के  मैं वो कार्यक्रम म संघरे रेहेंव अउ आदरणीय चतुर्वेदी जी ल उहीच मंच म सम्मान करत भेंट करे रेंहेंव. 'मयारु माटी' के ए अंक म चतुर्वेदी जी के कहानी 'जंगो के जोमर्दी' ल हमन छापे घल़ो रेहेन. चतुर्वेदी जी घलो तब मोला अपन कविता संकलन 'पर्रा भर लाई' ल भेंट करे रिहिन हें. लोगन के फरमाइश म उन तब अपन सम्मान के आभार प्रकट करत वक्तव्य संग 'बेटी के बिदा' कविता के पाठ घलो करे रिहिन हें.

   बिलासपुर जिला (अब जांजगीर-चांपा) के गाँव कोटमी म 20 फरवरी 1926 के जनमे चतुर्वेदी जी के जिनगी म एक अइसन अद्भुत संयोग घलो आए हे, जब उनला अपन खुद के लिखे कविता ऊपर परीक्षा म जुवाब लिखे बर परे रिहिसे. बिरले लोगन के जिनगी म अइसन संयोग आवत होही. बात सन् 1976 के आय. तब उन एम.ए. (हिन्दी) के परीक्षा म ऐच्छिक विषय के रूप म छत्तीसगढ़ी भाखा के रूप म छत्तीसगढ़ी भाखा के पाठ घलो संघरे रिहिसे. चतुर्वेदी जी तब अकबकागें जब उन देखिन के  उंकर प्रश्न पत्र म उंकरेच कविता के बारे म पूछे गे रिहिसे.

     चतुर्वेदी जी साहित्य अउ पत्रकारिता दूनों के माध्यम ले एक कलमकार के कर्तव्य ल पूरा करिन हें. संगे-संग उन एक निर्विरोध सरपंच के रूप म घलो आदर्श जीवन के गाथा गढ़े हें. सन् 1965 म उन अपन गाँव कोटमी के निर्विरोध सरपंच बने रिहिन हें. तब वो मन गाँव वाले मनला संगठित कर के शराब बंदी, जंगल के संरक्षण, सड़क बनई, कुआँ खनवाए के संग तरिया मन के साफ-सफाई करे के ठोसलग बुता करे रिहिन हें.

     हमन अक्सर सुनथन के आजादी के आन्दोलन के बखत पत्रकार मन के जीवन एक ऋषि तुल्य जीवन राहय. वो मन तब एकेच संग अबड़ अकन भूमिका निभा लेवंय. पत्रकारिता के संगे-संग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक, स्वदेशी अउ स्वावलंबन के उपासक राहंय. चतुर्वेदी जी म घलो ए जम्मो रूप के दर्शन होवय. फेर अब के पत्रकार मन म अइसन दर्शन दुर्लभ होगे हवय. चतुर्वेदी जी नई दुनिया, युगधर्म, हिन्दुस्तान समाचार के संगे-संग छत्तीसगढ़ के अउ कतकों समाचार पत्र मन म सरलग समाचार भेजत राहंय. सन् 1949 ले वोमन पत्रकारिता के श्रीगणेश करिन माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के संवाददाता के रूप म करिन. महाकौशल, लोकमान्य, नवभारत, नवभारत टाइम्स, युगधर्म, जनसत्ता आदि समाचार पत्र मन म प्रतिनिधि के रूप म जन-समस्या मनला उठावत राहंय. सन् 1981 म हिन्दुस्तान समाचार के श्रेष्ठ संवाद लेखन खातिर तब के मुख्यमंत्री द्वारा उनला सम्मानित घलो करे गे रिहिसे. 

   चतुर्वेदी जी के साहित्यिक कृति के रूप म कविता संकलन 'पर्रा भर लाई', कहानी संकलन 'भोलवा भोलाराम बनिस' अउ लघु खण्डकाव्य 'राम-बनवास' उल्लेखनीय हे. छत्तीसगढ़ी संस्कृति मन ऊपर आधारित उंकर विभिन्न विषय के लेख कतकों पत्र-पत्रिका मन म सरलग छपत राहय. आकाशवाणी केन्द्र मनले घलो बेरा-बेरा म उंकर वार्ता सुने बर मिलत राहय. 

   छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सन् 2008 म गठित करे गे 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग'  के प्रथम अध्यक्ष बने के गौरव घलो आदरणीय चतुर्वेदी जी ल मिले हे. 2 ग 2018 के उनला तत्कालीन राष्ट्रपति जी के हाथ ले पद्मश्री के सम्मान घलो मिलिस. 

   अद्भुत प्रतिभा के धनी अउ सहज-सरल स्वभाव के ऋषि तुल्य जिनगी जीयइया साहित्य पुरोधा ह 7 दिसम्बर 2018 के ए नश्वर देंह ल के त्याग कर परमधाम के रद्दा रेंग दिन.

उंकर सुरता ल पैलगी जोहार🙏

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

Saturday, 8 February 2025

सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा

 सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा




       आज माँदी भात के कोनो पुछारी नइहे, मनखे बफे सिस्टम कोती भागत हे। जिहाँ के साज-सज्जा अउ आनी बानी के मेवा मिष्ठान, खान पान के भारी चरचा घलो चलथे। भले मनखे कहि देथे, कि पंगत म बैठ के खवई म ही आदमी मनके मन ह अघाथे, फेर आखिर म उहू बफे कोती खींचा जथे। मनखे के मन ला कोन देखे हे, आज तन के पहिरे कपड़ा मन के मैल ल तोप देथे। आज कोट अउ सूटबूट के जमाना हे, ओखरे पुछारी घलो हे ,चिरहा फटहा(उज्जर मन) ल कोन पूछत हे। अइसने बफे सिस्टम आय साहित्य अउ साहित्यकार बर सोसल मीडिया। भले अंतस झन अघाय पर पेट तो भरत हे, भले खर्चा होवत हे, पर चर्चा घलो तो होवत हे। कलम कॉपी माँदी बरोबर मिटकाय पड़े हे। 


         सोसल मीडिया के आय ले अउ छाय ले ही पता लगिस कि फलाना घलो कवि, लेखक ए। जुन्ना जमाना के कतको लेखक जे पाठ, पुस्तक, मंच अउ प्रपंच ले दुरिहा सिरिफ साहित्य सेवा करिस, ओला आज कतकोन मन नइ जाने। अउ उँखर लिखे एको पन्ना घलो नइ मिले। फेर ये नवा जमाना म सोसल मीडिया के फइले जाला जमे जमाना ल छिन भर म जनवा देवत हे कि फलाना घलो साहित्यकार ए, अउ ए ओखर रचना। सोसल मीडिया ,साहित्य कार के जरूरत ल चुटकी बजावत पूरा कर देवत हे, कोनो विषय , वस्तु के जानकारी झट ले दे देवत हे, जेखर ले साहित्यकार मन ल कुछु भी चीज लिखे अउ पढ़े  म कोनो दिक्कत नइ होवत हे। पहली  प्रकृति के सुकुमार कवि पंत के रचना ल पढ़ना रहय त पुस्तक घर या फेर पुस्तक खरीद के पढ़े बर लगे, फेर आज तो पंत लिखत देरी हे, ताहन पंत जी के जम्मो गीत कविता आँखी के आघू म दिख जथे। 


             सोसल मीडिया ल बउरना घलो सहज हे, *न कॉपी न पेन-लिख जेन लिखना हे तेन।* शुरू शुरू म थोरिक लिखे पढ़े म अटपटा लगथे ताहन बाद म आदत बनिस, ताहन छूटे घलो नही। सोसल मीडिया के प्लेटफार्म सिर्फ साहित्यकार मन भर बर नही,सब बर उपयोगी हे। गूगल देवता बड़ ज्ञानी हे, उँखर कृपा सब उपर बरसत रइथे, बसरते माँग अउ उपयोग के माध्यम सही होय। आज साहित्यकार मन अपन रचना ल कोनो भी कर भेज सकत हे, अपन रचना ल कोनो ल भी देखाके सुधार कर सकत हे। पेपर  अउ पुस्तक म छपाय के काम घलो ये माध्यम ले सहज, सरल अउ जल्दी हो जावत हे। आय जाय के झंझट घलो नइहे। सोसल मीडिया म कोनो भी चीज जतेक जल्दी चढ़थे ,ओतके जल्दी उतरथे घलो, येखर कारण हे मनखे मनके बाहरी लगाव, अन्तस् ल आनंद देय म सोसल मीडिया आजो असफल हे। कोरोनच काल म देख ले रंग रंग के मनखे जोड़े के उदिम आइस, आखिर म सब ठंडा होगे। चाहे कविता बर मंच होय या फेर मेल मिलाप, चिट्ठी पाती अउ बातचीत के मीडिया समूह। पहली कोनो भी सम्मान पत्र के भारी मान अउ माँग रहय फेर ये कोरोना काल के दौरान अइसे लगिस कि सम्मान पत्र फोकटे आय। कोनो भी चीज के अति अंत के कारण बनथे, इही होवत घलो हे सोसल मीडिया म। सोसल मीडिया म सबे मनखे पात्र भर नही बल्कि सुपात्र हे, तभे तो कुछु होय ताहन ,जान दे तारीफ। *वाह, गजब, उम्दा, बेहतरीन जइसे कतको शब्द म सोसल मीडिया के तकिया कलाम बन गेहे।* सब ल अपन बड़ाई भाथे, आलोचना आज कोनो ल नइ रास आवत हे। मनखे घलो दुरिहा म रहिगे कखरो का कमी निकाले, तेखर ले अच्छा वाह, आह कर देवत हे। सात समुंद पार बधाई जावत हे, हैपी बर्थ डे, हैपी न्यू इयर,  हैपी फादर्स डे,हैपी फलाना डे। फेर उही हैपी फादर्स डे या मदर डे लिखइया मन ददा दाई ल मिल के बधाई , पायलागि नइ कर पावत हे, सिर्फ सोसल मीडिया म दाई, ददा, बाई, भाई, संगी साथी के मया दिखथे, फेर असल म दुरिहाय हे। अइसे घलो नइहे कि सबेच मन इही ढर्रा म चलत हे, कई मन असल म घलो अपनाय हे।


       सोसल मीडिया हाथी के खाय के दाँत नइ होके दिखाय के दाँत होगे हे। जम्मो छोटे बड़े मनखे येमा बरोबर रमे हे। सोसल मीडिया साहित्यकार मन बर वरदान साबित होइस। लिख दे, गा दे अउ फेसबुक वाट्सअप म चिपका दे। नाम, दाम ल घलो सोसल मीडिया तय कर देवत हे। सोसल मीडिया म जतका लिखे जावत हे, ओतका पढ़े नइ जावत हे, ते साहित्य जगत बर बने नइहे। ज्ञान ही जुबान बनथे, बिन ज्ञान के बोलना या लिखना जादा  प्रभावी नइ रहे। सोसल मीडिया के उपयोग ल साहित्यकार मन नइ करत हे, बल्कि सोसल मीडिया के उपयोग साहित्यकार मन खुद ल साबित करे बर करत हे, खुद ल देखाय बर करत हे। कुछु भी पठो के वाहवाही पाय के चाह बाढ़ गेहे। कुछु मन तो कॉपी पेस्ट म घलो मगन हे, बस पठोये विषय वस्तु ल इती उती बगराये म लगे हे, वो भी बिन पढ़े। कॉपी पेस्ट म सही रचनाकार के नाम ल घलो कई झन मेटा देवत हे। सोसल मीडिया सहज, सरल, कम लागत अउ त्वरित काम करइया प्लेटफार्म आय, जे साहित्य, समाज, ज्ञान ,विज्ञान के साथ साथ  दुर्लभ जइसे शब्द ल भी हटा देहे। येखर भरपूर सकारात्मक  उपयोग करना चाही। छंद के छ परिवार सोसल मीडिया के बदौलत 200 ले जादा, प्रदेश भर के साधक मन ल संघेरके 50, 60 ले जादा प्रकार के छंद आजो सिखावत हे। 2016 ले  छंदपरिवार सरलग  छत्तीसगढ़ी साहित्य के मानक रूप म  काम  करत हे। इसने अउ कई ठन समूह घलो हे जे येखर सकारात्मक उपयोग करत हे। 




जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा

आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह

 आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह 








आज हमन आजादी के अमृत महोत्सव मनाथन. ये आजादी पाय बर भारत माता ह अपन कतको बेटा -बेटी मन के कुर्बानी दिस. अब्बड़ झन क्रांति कारी मन ल अ़ग्रेज शासन ह फांसी म चढ़ा दिस. भारतीय जनता मन उपर नाना प्रकार ले अत्याचार करे गिस. तभो ले हमर देश अउ प्रदेश के नेता अउ जनता मन हा गोरा मन के आगू नइ झुकिस.


   आजादी के लड़ाई म हमर छत्तीसगढ म पं. सुंदर लाल शर्मा, वामन लाल लाखे, ई.राघवेन्द्र राव, पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर छेदीलाल सिंह अउ ठाकुर प्यारेलाल सिंह जइसे  जुझारू,कर्मठ अउ मातृभूमि बर समर्पित नेता रिहिन  हे. ठाकुर प्यारेलाल सिंह  ल आजादी के आंदोलन के अर्जुन कहे जाथे.




   त्याग अउ न्याय मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के जनम 21 दिसंबर 1891 ई. म राजनांदगांव -खैरागढ़ मार्ग म ठेलकाडीह से  बुरती दिशा म  3 किलोमीटर दूरिहा    सेम्हरा दैहान गांव म होय रिहिस हे. ये ग्राम पंचायत डुमरडीहकला के आश्रित गांव हरे. ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के 


 के पिताजी के नांव ठाकुर दीन दयाल सिंह अउ महतारी के नांव नर्मदा देवी रिहिन हे. ठाकुर साहब के पिताजी राजनांदगांव के प्रतिष्ठित स्टेट स्कूल के प्रथम प्रधानाचार्य रिहिन हे अउ बाद म शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी घलो बनिन.


ठाकुर साहब के पिताजी ह शांत, गंभीर अउ अनुशासन प्रिय मनखे रिहिन. प्यारेलाल के प्राथमिक शिक्षा राजनांदगांव म अउ उच्च शिक्षा रायपुर, नागपुर, जबलपुर अउ इलाहाबाद म होइस हे. बी. ए .पास करे के बाद सन् 1916 म इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत पास करिन . 

छात्र मन के हड़ताल के अगुवाई करिन 




     आजादी के लड़ाई के समय म जब हमर देश म लाल- बाल- पाल के जोर चलत रिहिन हे त ठाकुर साहब बंगाल के कुछ क्रांतिकारी मन के संपर्क म आइस अउ क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार करत  अपन राजनीतिक जीवन शुरू करिन. इही  समय ठाकुर साहब स्वदेशी कपड़ा पहने के व्रत ले लिस . युवावस्था म  विद्यार्थी मन ल संगठित करे के काम करिन. राजनांदगांव म 1905 में ठाकुर साहब के अगुवाई में छात्र मन की पहली हड़ताल होइस. ठाकुर साहब अपन सहयोगी छविराम चौबे अउ गज्जू लाल शर्मा के संग मिलके राजनांदगांव म राष्ट्रीय आंदोलन ल ठाहिल बनाइन.




येहा देश के छात्र मन के पहली हड़ताल माने जाथे.




     राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना 




 सन 1909 म ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन. आगू चल के येहा राजनीतिक गतिविधि के जगह बनगे. आगू  चल के ये पुस्तकालय ल  शासन ह  जब्त कर लिस.


ठाकुर साहब ह पढ़ईया  लइका मन के जुलूस म वंदेमातरम के नारा लगाय. वो बेरा म अइसन करना अपराध माने जाय.पर प्यारे लाल  सिंह जी डरने वाला मनखे  नइ रिहिन  हे. सन 1916 में ठाकुर साहब ह  वकालत चालू करिन. पहली दुर्ग म फेर बाद म रायपुर म वकालत करिन. कम समय म शठाकुर साहब ह  वकालत म प्रसिद्ध होगे.


सितंबर 1920 म कलकत्ता म लाला लाजपत राय के अध्यक्षता म कांग्रेस के विशेष अधिवेशन आयोजित होइस. येमा गांधी जी के नेतृत्व म असहयोग आन्दोलन चलाय के स्वीकृति दे गिस. फेर कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर म 26 दिसंबर 1920 म होइस जेकर अध्यक्षता विजय राघवाचार्य करिन. ये अधिवेशन म हमर छत्तीसगढ ले आने नेता मन के संग ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह घलो शामिल होइन. रोलेट एक्ट अउ जलियांवाला बाग़ हत्या कांड के सेति देश भर म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध चिंगारी सुलगत  रिहिस हे. 




   अइसन समय म गांधी जी ह आह्वान कर चुके रिहिन  कि अंग्रेज सरकार के गुलामी ले छुटकारा  पाय खातिर स्थानीय समस्या ल आधार बना के असहयोग आन्दोलन चालू करय. 






   बी.एन.सी. मिल के बारे म जानकारी




 वो समय राजनांदगांव म बी.एन.सी.मिल्स चलत रिहिसि.बंगाल -नागपुर काटन मिल्स म हजारों मजदूर काम करय. येकर स्थापना 23 जून 1890 म होय रिहिस हे अउ उत्पादन के काम नवंबर 1894 म चालू होइस हे.  वो समय राजनांदगांव म वैष्णव राजा बलराम दास के राज्य चलत रिहिन  हे. राजा साहब मिल के संचालक बोर्ड के अध्यक्ष रिहिन  हे. ये मिल्स के निर्माता बम्बई के मि. जे.वी. मैकवेथ रिहिस हे. कुछ समय चले के बाद मिल ल घाटा होइस. येकर सेति ये मिल ल कलकत्ता के मि. शावालीश कंपनी ह खरीद लिस  जउन ह नांव बदलके बंगाल -नागपुर काटन मिल्स कर दिस. स्थापना के समय येकर नांव


सी.पी. मिल्स रिहिस हे.


मजदूर मन के  36 दिन के ऐतिहासिक हड़ताल के अगुवाई 




सन 1919 ले ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव के मजदूर मन ल एक करके जागृति फैलाय के काम चालू कर दे रिहिन  हे. अंग्रेज शासन के समय म जनता के शोषण जिनगी के हर पहलू म आम बात रिहिस हे. इहां के मजदूर मन के नंगत शोषण होत रिहिस हे. मिल  मालिक ह मजदूर मन ले 12- 13 घंटा काम लेय .येकर ले सन् 1920 म बी.एन.सी. मिल्स के मजदूर मन म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असंतोष फैलगे. 




  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ म मजदूर आंदोलन के प्रमुख केन्द्र राजनांदगांव ह बनगे.ठाकुर प्यारे लाल सिंह अउ डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र मजदूर यूनियन के अगुवाई करय. ये काम म शिव लाल मास्टर अउ शंकर खरे सहयोग करय.




सन्  1920 में असहयोग आंदोलन के बेरा म ठाकुर प्यारेलाल सिंह  के अगुवाई म अप्रैल 1920 में बीएनसी मिल्स  के मजदूर मन  के  36 दिन के  ऐतिहासिक हड़ताल होइस. अत्तिक लंबा समय तक चलने वाला ये  देश के पहली हड़ताल रिहिस हे. ये हड़ताल ले राजनांदगांव के अब्बड़ सोर होइस. ये आंदोलन ले ठाकुर साहब के प्रसिद्धि देश भय म फैलगे. 


संस्कारधानी ह राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्यधारा ले जुड़गे.




     


 असहयोग आंदोलन के समय वकालत छोड़िन




   गांधी जी के नेतृत्व म जब देश भर म असहयोग आंदोलन ह  चालू होइस त ठाकुर साहब ह अपन वकालत छोड़ दिस. राजनांदगांव म  राष्ट्रीय विद्यालय के स्थापना करिन. हजार भर के संख्या में चरखा बनवा के जनता ल  बांटिन ,चरखा के महत्व समझाइस अउ खादी के प्रचार करिन . ठाकुर साहब खुद खादी  पहने  लागिस. राजनांदगांव ले हाथ ले लिखे पत्रिका घलो निकालिन   जउन ह  जन चेतना  बर अब्बड़ सहायक होइस.


झंडा सत्याग्रह म भागीदारी 




  सन 1923 में झंडा सत्याग्रह चालू होइस  त ठाकुर  साहब ल प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिला ले सत्याग्रही भेजे के काम सौंपे गिस . नागपुर म सत्याग्रह आंदोलन चालू होइस.एकदम जल्दी नागपुर सत्याग्रह के केंद्र बन गे.




    मजदूर मन के दुबारा हड़ताल




 सन 1924 में राजनांदगांव के मिल मजदूर मन ठाकुर साहब की अगुवाई में फिर हड़ताल करिन. कतको मन के गिरफ्तारी होइस. ठाकुर साहब पर सभा लेय अउ भाषण देय बर रोक लगा दे गिस. ठाकुर साहब  ल जिला बदर कर दे गिस .राजनांदगांव ले निष्कासित करे के बाद सन 1925 म ठाकुर साहब रायपुर चले गिस अउ आखरी तक ऊंहचे रहिके अपन राजनीतिक काम मन ल संचालन करत रिहिन. 




   सविनय अवज्ञा आंदोलन के नेतृत्व 




     सन 1930 में गांधी जी द्वारा चालू करे गे  सविनय अवज्ञा आंदोलन म  ठाकुर साहब बढ़- चढ़कर भाग लिस.शराब दुकान म धरना दिस. ठाकुर साहब किसान मन मा जागृति फैलाय बर अंग्रेज शासन लगान मत दो, पट्टा मत लो आंदोलन चलाइस. एकर  सेतिज्ञ ठाकुर साहब  ल 1 साल के सजा दे गिस. सिवनी जेल म  भेज दे गिस. गांधी- इरविन समझौता होइस त आने  राज -बंदी मन के संग रिहा होइन.


   सन 1932 में जब सत्याग्रह फिर से चालू होइस त ठाकुर साहब पंडित रविशंकर शुक्ल के संगे संग आने नेता मन संग संचालन के दायित्व संभालिन. 26 जनवरी 1932 में गांधी चौक मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम के संबंध में भाषण देत  समय ठाकुर साहब ल अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर लिस .  2 साल के कठोर सजा अउ जुर्माना लगाय गिस. ठाकुर साहब जब जुर्माना नहीं देइस त अंग्रेज सरकार ह उंकर  संपत्ति  ल कुर्की कर दिस . ठाकुर साहब के वकालत के लाइसेंस ला जप्त कर लिस. जेल के सी क्लास म रखे गिस. जेल से छूटे के बाद  ठाकुर साहब फिर से आजादी के लड़ाई अउ जनसेवा बर समर्पित होगे.




   हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम  




1933 में वह महाकौशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री चुने गिस. 1938 तक ये पद म रहिके पूरा प्रदेश के दौरा करिन .  कांग्रेस संगठन ल फिर से मजबूत करे के काम करिन.  सन 1937 में ठाकुर साहब विधानसभा के सदस्य चुने गिस.  रायपुर नगर पालिका के अध्यक्ष घलो निर्वाचित होइस. ये  पद म रहिते  ठाकुर साहब राष्ट्र जागरण और हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम करिन. डॉ बी.एन. खरे के मंत्रिमंडल में कुछ समय तक शामिल रिहिन.




तीसरा मजदूर आंदोलन




 रायपुर म  निष्कासन के समय घलो ठाकुर साहब के धियान राजनांदगांव के मजदूर मन डहर राहय.ये बीच म बी.एन.सी.मिल्स के मालिक मन मजदूर मन के पगार म 10 प्रतिशत कटौती कर दिस. येकर ले मजदूर मन  फेर नाराज होगे अउ हड़ताल के तैयारी करे लागिस. ठाकुर साहब ह मजदूर मन के जायज मांग के समर्थन करिन. इही बीच रूईकर समझौता के कारण 600 मजदूर बेकार होगे. मजदूर मन फिर से त्यागमूर्ति ठाकुर साहब के पास समस्या के निदान बर गोहार लगाइन. ठाकुर साहब ह नया समझौता प्रस्ताव प्रस्तुत करिन जेला मिल प्रबंधन ह स्वीकार कर लिस अउ काम ले निकाले गे मजदूर मन ल फिर से नौकरी मिलगे. ठाकुर साहब के राजनांदगांव ले जिलाबदर के आदेश घलो निरस्त होगे. ये प्रकार ले सन् 1937 म ठाकुर साहब के नेतृत्व म मजदूर मन के तीसरा आंदोलन सफल होइस.  ये प्रकार ले 1918 ले 1940 तक मजदूर आंदोलन के इतिहास म ठाकुर साहब ह सक्रिय भूमिका निभाइन.  छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान 




   छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के कमी ल  दूर करे खातिर 1937 महाकौशल समिति की स्थापना करिन अउ रायपुर म  1938 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान दिस.






1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म ठाकुर साहब बढ़-चढ़ के भाग लिस. ठाकुर साहब के नेतृत्व म  1942 के आंदोलन एकदम सफल होइस. कोनो प्रकार ले हिंसात्मक घटना नहीं घटिस. 1951 में ठाकुर प्यारेलाल कांग्रेस ल छोड़ के अखिल भारतीय किसान मजदूर पार्टी के सदस्य बन गे। 1953 म वोहर रायपुर विधानसभा बर विधायक चुने गिस।चुनाव के बाद आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन ले जुड़ गे।20 अक्टूबर 1954 म ठाकुर साहब के निधन होइस ।

           - ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

            सुरगी, राजनांदगांव।

छत्तीसगढ़ के गांधी - सुंदर लाल शर्मा

 छत्तीसगढ़ के गांधी - सुंदर लाल शर्मा 


जब हमर देश ह गुलाम रिहिस त वो समय अशिक्षा अउ छुआछूत के भावना ह समाज म व्याप्त रिहिन। येकर कारण हमर सामाजिक बेवस्था ह खोखला हो गे रिहिस।वइसे छुआछूत के नाता हमर देश से अब्बड़ पुराना हे।विदेशी शासक मन येकर खूब फायदा उठाइस। विदेशी शासक मन भारतीय समाज ल तोड़े बर अउ राजा - महाराजा मन ल आपस म लड़ाय खातिर फूट डालव अउ राज करव के नीति अपनाइस।  विदेशी शासक मुगल, अंग्रेज मन इहां के धार्मिक आस्था ल अब्बड़ चोट पहुंचाइस। मुगल शासन काल म कतको मंदिर तोड़ दे गिस। जनता उपर खूब अतियाचार करे गिस। अइसन बेरा म हमर देस म संत कबीर, गुरुनानक,संत रविदास, धनी धर्मदास साहेब, गुरु घासीदास बाबा अवतरित होइस अउ लोगन मन ल सतमार्ग म चलाय के सुघ्घर कारज करिन। ये सबो संत मन बताइस कि मनखे मनखे एक समान हे। ईश्वर एक हे। ये सबो संत मन धरम के नांव म समाज म व्याप्त छुआछूत, आडंबर,नरबलि, पशुबलि के विरोध करिन। लोगन मन म जागरण फैलाइस कि उंच नीच के भेदभाव ल भगवान नइ मनखे मन अपन सुवारथ खातिर बाद म बनाय हे। आधुनिक काल म स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महात्मा गांधी, डा. भीमराव अम्बेडकर जइसन महापुरुष मन हमर देश म फइले छुआछूत, आडंबर ल दूर करे बर अउ शिक्षा खातिर अब्बड़ उदिम करिन। 

  हमर छत्तीसगढ ह सद्भाव अउ समन्वय के धरती कहे जाथे त येकर पाछु गुरु घासीदास बाबा, धनी धर्मदास साहेब अउ पं. सुंदर लाल शर्मा जइसे महापुरुष मन के सतनाम आंदोलन अउ जन जागरण के सुघ्घर कारज हरे।


छत्तीसगढ़ के गांधी नांव ले प्रसिद्ध पं. सुंदर लाल शर्मा ह हमर छत्तीसगढ म सामाजिक अउ राजनीतिक आंदोलन के अगुवा माने जाथे। वोहा बड़का साहित्यकार के संगे -संग स्वतंत्रता सेनानी अउ समाज सुधारक रिहिन। प्रयागराज राजिम के तीर चमसूर गांव म 21 दिसंबर 1881 म अवतरे शर्मा जी ह "दानलीला" प्रबंध काव्य लिख के प्रसिद्धि पाइस त आजादी के आंदोलन म घलो बढ़ चढ़ के भाग लिन। अनुसूचित जाति मन के उद्धार खातिर अब्बड़ योगदान दिस . वोमन ला राजीव लोचन मंदिर म प्रवेश कराके एक बड़का कारज करिस । येकर बर शर्मा जी ल खुद वोकर समाज ले नंगत ताना सुने ला पड़िस। पर वोहा हार नइ मानिस अउ अछूतोद्धार के कारज ल सरलग जारी रखिस।

। ये कारज ला तो वोहा सन 1917 ले चालू कर दे रिहिन तभे तो जब महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आना होइस त ये काम बर शर्मा जी ल अपन गुरु कहिके अब्बड़ सम्मान दिस।


समित्र मंडल के स्थापना 


 शर्मा जी हा अपन राजनीतिक जीवन के शुरूआत सन 1905 ले करिन। 1906 मा वोहा सामाजिक सुधार अउ जनता मा राजनीतिक जागृति फैलाय खातिर" संमित्र मंडल "के स्थापना करिन। 1907 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन मा शर्मा जी हा भाग लिस। इहां उपद्रव के बेरा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ल मंच म चढ़ाय म जउन लोगन मन के भूमिका रिहिन वोमा नवजवान शर्मा घलो अगुवा रिहिन। ये अधिवेशन म कांग्रेस हा गरम अउ नरम दल म बंटगे। वो समय कांग्रेस अउ देश म गरम दल के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय अउ विपिन चन्द्र पाल ह अब्बड़ लोकप्रिय नेता के रूप मा उभरिन ।


शर्मा जी हा रायपुर मा 'सतनामी आश्रम" खोलिस अउ "सतनामी भजनावली" ग्रंथ के रचना करिन, शर्मा जी हा लाल-बाल-पाल युग म सन 1910 मा राजिम म पहली स्वदेशी दुकान लगाय के कारज करिन। शर्मा जी हा सन 1918 म भगवान राजीव लोचन मंदिर राजिम म कहार मन के प्रवेश के आंदोलन चलाइस। 


कंडेल  नहर सत्याग्रह के अगुवाई 


सन 1920 मा असहयोग आंदोलन के बेरा म हमर छत्तीसगढ मा कंडेल सत्याग्रह चलिस। येकर अगुवाई शर्मा जी, नारायण लाल मेघावाले अउ छोटे लाल श्रीवास्तव हा करिन। किसान मन नहर जल कर ले नंगत परेसान रिहिन, शर्मा जी के मिहनत ले 20 दिसंबर 1920 म गांधीजी के रायपुर, धमतरी अउ कुरूद आना होइस।गांधीजी के पहली बार छत्तीसगढ़ आय ले इहां के जनता मा अब्बड़ उछाह छमागे। अइसन बेरा मा अंग्रेजी शासन ला झुके ल पड़िस अउ किसान मन के नहर जल कर ह माफ कर दे गिस।


जंगल सत्याग्रह के नेतृत्व 


21 जनवरी 1922 मा सिहावा नगरी मा जंगल सत्याग्रह होइस, लकड़ी काट के ये सत्याग्रह के शुरूआत करे गिस। येकर मौखिक सूचना वन विभाग के स्थानीय अधिकारी मन ला दे गिस। येकर अगुवाई शर्मा जी अउ नारायण लाल मेघावाले करिन, इंहा वन विभाग के अधिकारी मन आदिवासी जनता ला कम मजदूरी देवय। संगे संग आने प्रकार ले शोषण करय, आंदोलन के जोर पकड़े ले आदिवासी मन के मांग मान ले गिस। इही बेरा मा शर्मा जी ला अंग्रेज शासन हा गिरफ्तार कर लिस। वोला एक बछर अउ मेघावाले ला आठ माह के सजा सुनाय गिस। ये बेरा मा 1922 मा जेल पत्रिका (श्रीकृष्ण जन्म स्थान) रचना लिखिस। शर्मा जी हा 'भारत में अंग्रेजी राज' रचना लिखे रिहिन तेला अंग्रेज सरकार हा प्रतिबंधित कर दिस।


  अछूतोद्धार आंदोलन चलाइस 


23 नवंबर 1925 मा शर्मा जी के अगुवाई म अछूतोद्धार खातिर अस्पृश्य लोगन के एक बड़का समूह हा राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश करके पूजा- पाठ करिन।अनुसूचित जाति मन ला जनेऊ धारन करवाइस। 23 से 28 नवंबर 1933 के बीच गांधीजी के दूसरइया बार छत्तीसगढ़ मा आना होइस, ये बेरा मा गांधी जी हा अछूतोद्धार कारज के अवलोकन करिन अउ अब्बड़ प्रशंसा करिन । 28 दिसंबर 1940 मा शर्मा जी के निधन होइस। ता ये प्रकार ले हम देखथन कि शर्मा जी के सोर साहित्य के संगे संग आजादी के सेनानी के रूप मा बगरिस, वोहा संवेदनशील रचनाकार के संगे संग मंजे हुए राजनीतिज्ञ रीहिन, शर्मा जी हा प्रथम छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पना करिन । 


रचनाएं.... 

शर्मा जी ह हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म समान रूप ले लिखिन। छत्तीसगढ़ी म महाकाव्य लिख के महतारी भाषा ल समृद्ध करिन।

ऊंकर रचना म दानलीला (महाकाव्य), प्रहलाद चरित्र (नाटक), सच्चा सरदास (उपन्यास), ध्रुव अख्यान (नाटक), करूणा पच्चीसी (काव्य संग्रह), कंसवध (खण्डकाव्य), छत्तीसगढ़ी रामायण (काव्य), सतनामी भजन माला, श्री कृश्ण जन्म स्थान पत्रिका (रायपुर जेल पत्रिका) सामिल हे। छत्तीसगढ़ शासन ह उंकर स्मृति ल संजोय खातिर राज्य स्थापना दिवस म छत्तीसगढ़ी भाषा ल अपन लेखनी ले समृद्ध करइया साहित्यकार मन ल हर बछर पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान ले सम्मानित करथे।


         -ओमप्रकाश साहू अंकुर 

      सुरगी, राजनांदगांव

व्यंग्य) चींव चाँव--काँव काँव

 (व्यंग्य)


चींव चाँव--काँव काँव

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तरिया ले इसनान करके अपन घर लहुटत मितान हा अपने अपन बड़बड़ावत राहय।मैं अपन चँवरा मा बइठे रहेंव ।वोला देखके राम रमउव्वल करे बर खड़ा होयेंव।लकठा मा आइस ता जादा ते नहीं बस अतके ला सुन पायेंव वो बड़बड़ावत राहय-- बड़े बिहनिया ले बस चींव चाँव--काँव काँव। 

जै जोहार,राम रमउव्वल होये के पाछू कहेंव--चिटिक बइठ ले मितान।का होगे तेमा बड़बड़ावत हव। कती बर तू मन ला बड़े बिहनिया ले चिरई मन के चींव-चाँव अउ कउवाँ मन के काँव-काँव सुनागे ते।ये तो बड़ा अच्छा बात ये।हम ला तो पाँच बजे बिहनिया ले उठे रहिथन तभो ले चिरई मन के चहकई अउ बरेंडी मा बइठे कउवाँ के काँव काँव सुनाबे नइ करय। चिरई के चहकई ला कोन काहय -- चिरईच नइ दिखय। बामँहन चिरई अउ कँउवा मन तो सिरागे तइसे लागथे।हाँ एक दिन बखरी के पेंड़ तरी साँप निकलगे रहिसे त पता नहीं कहाँ ले चिरई अउ कउवाँ मन सकलाके मनमाड़े चींव -चाँव ,काँव-काँव करत रहिन हें। तहूँ मन कोनो जगा देख डरेव का।वो थोकुन मुस्कावत कहिस-- हाँ मितान पूरा गाँव भर मा साँप निकलगे हें तेकरे सेती चींव- चाँव,काँव-काँव होवत हे। मैं कहेंव --- मजाक झन करव भई,का बात ये तेला चिटिक फोरिया के बतावव? वो कहिस--का मितान तहूँ हा? अरे माहौल ला सुँघियाके तको बात ला समझ जाना चाही।नइ जानच का पंयायती चुनाव के फारम भरा गेहे।गाँव के जतका बिखहर नाग-नागिन हे ते मन निकलके गली-गली,घरो-घर चुनाव प्रचार करत हें।माईलोगिन मन ला देख ले बोरिंग -कुआँ मेर पानी भरत,तरिया घठौंदा मा नाँहवत-खोरत बस ईंकरे बात करत हें।ऊकर गोठ ला सुनबे त चिरई असन चींव चाँव लागथे।अउ बेहाड़ू टूरा मन येकर ला पीके वोकर ला पीके बड़े बिहनिया ले फलाना भइया जिंदाबाद--ठेकानीन भउजी जिंदाबाद चिल्लावत काँव-काँव करे ला धर लेथे।सुन सुनके माथा झन्नाये ला धर लेहे।मितान के गोठ ला सुनके मैं हाँसत कहेंव-- छिमा करबे मितान ,मैं तुँहर गहिर अरथ वाले बात ल नइ समझ पावत रहेंव।अब समझ म आगे।

थोकुन मजा लेये बर गोठ बात ल लमियावत पूछेंव --- त सरपंची बर कोन-कोन खड़े हें मितान? वो हा अपन खिसा मा नोट कस चपिया के धरे दस-बारा ठो पांपलेट ल निकाल के देखावत कहिस-- ये देख --ये हा मनमोहन के पांपलेट आय। ये उही टूरा आय जेन पाछू बछर परोसी महिला ले छेड़कार के केस मा जेल जाके जमानत मा छूटे हे।ये दे देला दो देख येहा भंगीलाल के पाम्पलेट आय जेमा लिखाय हे--गाँव मा सुख शांति लाये बर,विकास के गंगा बोहाये बर भारी मतों से विजयी बनावें।दुष्ट कहीं के दारू कोंचिया हा गाँव भर मा दारू बेंचवा के टूरा टनका मन दरुहा बनाके अशांति फइला डरे हे तेन हा सुख शांति लाही।शरम तको नइ लागय --मितान हा भन्नावत कहिस।

मैं पूछेंव अउ कोनो हे का मितान।

हाँ हाबय न।अभी तो कोरी खइरका बाँचे हे।ये देख--ये हाथ जोरे खड़े हे तेन  हा सेवा राम ये। ये उही सेवाराम ये जेन हा बिना टेंचरही मारे ककरो सो नइ गोठियावय।अपन दाई ददा ला टेंपा देखावथ रहिथे तेन हा का लिखवाये हे तेला पढ़त हँव--- सरल हृदय--मिलन सार--सेवा भावी अपन बेटा ला सबो झन वोट देके भारी मत ले विजयी बनानव।येला तो खनके गाड़े के मन करथे। ये देख ये भूरे लाल के पांपलेट ये--- धरती पुत्र तुँहर सुख-दुख के साथी। ये हा गाँव के गौंटिया ये। गरीब मन ला चुहक-चुहक के एकर पुरखा मन चीज बस सकेले हें।तहीं बता मितान ये कइसे मा धरती पुत्र होइस--कभू नाँगर के मुठिया ला धरे होही? ककरो घर के मरनी-हरनी,शादी बिहाव, छट्ठी-छेवारी म हिरक के नइ निहारय तेन सुख-दुख के साथी बने फिरत हे। ये देख ये हा पुराना सरपंच दुर्जनसिंग के पाम्पलेट आय।ये मा लिखाय हे--गाँव ला सरग बनाये बर।गली-गली ला चकाचक करे बर।हर हाथ ला काम देये बर। महिला के सम्मान बर-- नौजवान मन के रोजगार बर भारी मत ले फेर एक पइत सेवा के मौका दव। देखे मितान एकर परपंची ला।पक्का चार सौ बीस आदमी।पाछू बछर अस्सी लाख के गबन मा बर्खास्त होवत होवत बाँचिस।कती ले कइसे करके स्टे ले आइस।पंच मन ला अउ गाँव के दू चार धिंगरा मन ला खवा-पिया के पटा लिस। गली कांक्रेटी करण मा अइसे जमके चूना लगाये हे के जम्मों उखड़ के खउराहा होगे।स्कूल के छत हा एके साल मा भोसकगे।असादी मा पूरा गाँव ला नरक बना दिस।पइसा खा खाके बेजा कब्जा करवा डरिस।चरागन तको नइ बाँचिस।हा वोकर दू कुरिया के घर म बिल्डिंग टिकगे।हूँह येला जितवाबो--?

 मैं कहेंव--- ले बाँकी ल घरिया दे मितान। ऊँकर का हे- नँकटा के नाक काटे सौ हाथ बाढ़े।तोर-मोर  बी० पी० बाढ़ जही।मैं समझगेंव गाँव के जम्मों डोमी मन फुसकारत चुनाव मा खड़े हें। अच्छा ये बता मितान-- ये चुनाव म कोनो बने असन आदमी नइ खड़े ये का?

वो कहिस खड़े हे न। वो भइया भिखारी दास खड़े हे।जेन सच मा संत बरोबर हे।सब के सुख दुख मा आगू खड़े रहिथे।हमीं मन फारम भरवाये हन। फेर वो बेचारा सो पांपलेट छपवाये बर तको पइसा नइये।अइसने मुँह अँखरा सब ला गोहरावत हावन।

मैं कहेंव ठीक हे मितान। यहा बिखहर मन के राहत ले-- वो आदमी बाँच जही त बड़े बात हो जही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गाँधी चौरा चन्द्रहास साहू मो- 8120578897

 गाँधी चौरा

                                   चन्द्रहास साहू

                             मो- 8120578897

                             

जब ले जानबा होइस कि मेंहा अपन पार्टी के युवा प्रकोष्ठ के मुखिया बन गेंव-अहा ह... अब्बड़ उछाह होइस। अतका उछाह तो तीसरइया बेरा मा बारवी पास करेंव तब नइ होइस। सिरतोन मोर मन अब्बड़ गमकत हावय। ये पद के दउड़ मा दसो झन रिहिन। बड़का अधिकारी के बेटा, नेता, बैपारी अउ विधायक के टूरा मन घला रिहिन फेर पद मिलिस- मोला। 

                     महुं पद पाये के पुरती अब्बड़ बुता करे हंव। टोटा के सुखावत ले नारा बोलाये हंव। पार्टी के बैनर पोस्टर बांधे हंव, झंडा ला बुलंद करे बर अब्बड़ पछिना बोहाये हंव.... लहू घला बोहाये हंव। आज युवा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष...काली मूल पार्टी मा जगा ..परनदिन विधायक.. मंत्री... मुख्यमंत्री अउ बने-बने होगे तब प्रधानमंत्री। अब्बड़ सपना संजोवत हावंव मन मा। जब चायवाला हा बड़का खुरसी मा बइठ सकत हे तब मेंहा काबर नही.....? बन सकत हंव, लोकतंत्र मा सब हो सकथे। मुचकावत ददा ला बतायेंव, मोर पद प्रतिष्ठा ला।

"ददा ! मोला ढ़ाई हजार रुपिया देतो गा ! मोर पार्टी वाला मन ला मिठाई बाटहूं।''

ददा भैरा होगे। कोन जन ओखर कान कइसे बने हाबे ते...? पइसा मांगबे तब नइ सुनाये अउ फायदा वाला गोठ करबे तब झटकुन सुना जाथे। अभिन दुसरिया दरी केहेंव तब सुनिस।

"येमा का उछाह के गोठ आय बाबू ! नेता गिरी तो सबसे घटिया बुता आवय। बेटा सुनील ! चपरासी  के बुता करतेस... पनही खिलतेस  तभो उछाह होतिस मोला फेर...?''

ददा ला टोंकत केहेंव।

"तेहां काला जानबे। कुँआ के मेचका ..? आजकल नेता मन के जतका मान-गौन हाबे ओतका काखरो नइ हाबे। भुइयाँ के भगवान आवय ये कलजुग मा इही मन।''

"लुहुंग-लुहुंग नेता मन के पाछू-पाछू जाना, जय बोलाना.. कोनो भक्ति नोहे सुनील। चापलूसी आवय...।''

ददा रट्ट ले किहिस।

"तेहां तो जीवन भर मोर बिरोध करथस ददा ! ओखरे सेती तो आगू नइ बढ़ सकेंव। गुजरात कमाये ला जाहूं केहेंव तब छत्तीसगढ़ ला छोड़ के झन जा कहिके बरजेस। आर्मी मा जाहू केहेंव तब एकलौता हरस केहे। दारू ठेकेदारी मा अब्बड़ पइसा कमाये ला मिलत रिहिस तब जम्मो बुता ला बिगाड़ देस...। तब का करो...?''

ददा संग तारी नइ पटिस कभू, आज घला होगे बातिक-बाता। दुलारत तीन हजार रुपिया दिस दाई हा अउ मेंहा चल देंव बाजार-हाट कोती।

                   सबले आगू मोर बुलेट मा पार्टी के नाव ला चमकायेंव। रेडियम ले यूथ प्रेसिडेंट लिखवायेंव। पाछू कोती नेम प्लेट मा शहीद भगत सिंह के फोटू छपवायेंव। फटफटी दुकान ले हाई-साउंड वाला भोपू लगवायेंव -वीआईपी हॉर्न। मार्केट मा नवा उतरे हाबे भलुक कमजोर दिल वाला मन झझकके मर जाही फेर जियईया मन जान डारही यूथ प्रेसिडेंट के गाड़ी आय अइसे।

               अब सब जान डारिस। अब्बड़ स्वागत वंदन होइस मोर। बाइक रैली निकलिस, जय बोलाइस.... माला पहिराइस।  पोस्टर बेनर सब लग गे मोर नाव के। घर मा मिलइयां-जुलइयां के भरमार होगे।

                 शहर के बड़का अखबार मा मोर फोटू छपे रिहिस आज। दाई के चेहरा मा गरब रिहिस, मुचकावत रिहिस फेर ददा तो मुरझाये रिहिस।

"देख मोर बेटा सुनील ला ! पेपर मा छपे हे। टीवी मा आथे। कतका नाव कमावत हाबे मोर दुलरवा हा। तोर तो... मास्टर जीवन मा एके पईत फोटू आइस- बइला बरोबर मतदान पेटी ला लाद के चुनाव करवाये बर जावत रेहेस तब।''

दाई किहिस छाती फुलोवत। ददा रगरगगाये लागिस तभो ले- मुक्का। कुछु नइ किहिस। ससन भर दाई ला देखिस अउ भगवान खोली कोती चल दिस। 

"बाबू अइसनेच आय मम्मी ! दीदी मन पचर्रा साग रांधही तहुं ला हाँस- हाँस के गोठियाही,चांट-चांट के खाही, तारीफ करही अउ मोर बर.... कंतरी हो जाथे। मुॅॅंहू उतरे रहिथे। सौहत ब्रम्हदेव ले वरदान मांगे के होही तब न दाई... बाबू ला उछाह होये के वरदान माँगबो। दिन भर हाँसत रही।''

ददा के खिल्ली उड़ाये लागेंव मेंहा।

"टार रे तहुं हा..., मोर तबियत बने नइ लागत हे तोर धरना प्रदर्शन ला निपटा ताहन डॉक्टर करा लेके जाबे मोला, चार दिन होगे काहत...।''

दाई हुंकारु दिस अउ हाँसत अपन कुरिया मा चल दिस।

                 फोन बाजिस। प्रदेश अध्यक्ष के फोन रिहिस।

"हलो ! भइया जी परनाम। सादर पैलगी भैया !''

" देख सुनील ! बाढ़त मँहगाई उप्पर सरकार ला जगाये बर धरना प्रदर्शन करना हे। मंत्री जी के पुतला दहन करना हे। तोर नेतृत्व मा होही गाँधी चौक मा ये जम्मो काज हा। बढ़िया परफॉर्मेंस करबे। जादा ले जादा मिडिया कवरेज होना चाही भलुक सरकारी संपत्ति ला जतका जादा ले जादा नुकसान हो जावय ओतकी जादा मिडिया कवरेज मिलही..।''

"जी भइया जी ! जिला भर के जम्मो यूथ अउ महिला विंग ला घला संघेरबो अउ सरकार ला जमके घेरबो फेर ..पुलिस के तगड़ा बंदोबस्त रही तब ...?'' 

संसो करत पुछेंव मेंहा।

"संसो झन कर। पुलिस के बुता ही हरे मारना, नही ते... मार खाना। यूथ मन ला मारही तभो बने हे अउ मार खाही तभो बने हे। चीट घला हमर अउ पट्ट घला हमर। रायपुर अम्बिकापुर कोरबा कवर्धा के घटना ला जानथस। जतका हंगामा ओतकी प्रसिद्धि...। देश भर मा गोठ-बात होवत हे आज ले...। जादा संसो झन कर एसपी ले बात कर लुहुं अपनेच आदमी हरे ओहा। अरे हा ...गाँधी जी के मूर्ती ला कुछु नइ होना चाही..। धियान राखबे एक खरोच घला नइ होना हे। आजकल बिचारा गाँधी जी वाला मामला बहुत संवेदनशील होगे हे। पाछू दरी गाॅंधी जी के मुर्ति ला नुकसान पहुंचाये रिहिन तेखर ले अब्बड़ फभित्ता होये रिहिन हमर पार्टी के। कुछ कार्यकर्ता मन अभिन घला जेल मा धंधाये हाबे। अपन धियान राखबे।''

"जी भइया जी ! परनाम।''

प्रदेश अध्यक्ष भइया जी हा मंतर दे दे रिहिस।

                       गाँव-गाँव ले गाड़ी निकलिस। भर-भर के जवनहा मन आइस अउ गाँधी चौक मा सकेलाये लागिस। मंच साजगे। सफेद कुरता वाला मन अब माइक मा आके संसो करत हे नून-तेल, दार-आटा, पेट्रोल-डीजल के बाढ़े कीमत उप्पर। जवनहा मन के लहू मा उबाल मारत हे तब मोटियारी मन कहाँ पाछू रही...? अवइया-जवइया मन ला आलू गोंदली के माला पहिराके समर्थन मांगत हे। कोनो थारी बजावत हे तब कोनो बेलन धरे हे। अब्बड़ क्रिएटिव हाबे ये पढ़े-लिखे जवनहा मन। मार्केटिंग करे ला बढ़िया जानथे। चौमासा मा हाइवे के गड्डा मा रोपा लगाके बिरोध प्रदर्शन करे रिहिन । देश भर मा छा गे,अभिन सड़क मा जेवन बनाथे। पाछू दरी तो एक झन जवनहा हा पेट्रोल डीजल के बाढ़त कीमत के बिरोध करत पेट्रोल मा नहा डारिस। धन हे पुलिस वाला मन बेरा राहत ले अपन कस्टडी मा ले लिस नही ते तमासा देखइया बर काखरो जान तो संडेवा काड़ी आवय... कभू भी बार ले।

              भीड़ बाढ़े लागिस। सादा ओन्हा वाला के भाषण अब बीख उलगत रिहिस।  पुलिस वाला मन घला अपन लौठी ला तेल पीया डारे हे। भीड़ ले मंत्री जी के पुतला ला आनिस जी भर के बखानिस अउ पेट्रोल डार के बारे के उदिम करिस। पुलिस डंडा भांजे लागिस। अब झूमा-झटकी, धर-पकड़, लड़ई-झगरा, गारी-बखाना होये लागिस। पुलिस वाला मन पुतला ला नंगाये अउ यूथ नेता मन लुकाये लागिस। मैदान ले अब सदर मा आगे। दुकान साजे हे-किराना,कपड़ा, लोहा, सोना-चांदी,मेडिकल अस्पताल, बुक डिपो ...।

मंत्री जी के पुतला मा आगी लगगे। अब छीना-झपटी अउ बाढ़गे। कतको झन बाचीस कतको झन रौंदाइस।...अउ अब बरत पुतला अइसे उछलिस कि अस्पताल के मोहाटी मा ठाड़े माईलोगिन के काया मा चिपकगे। गिंगिया डारिस। ....बचाओ ! बचाओ के आरो । पागी-पटका, लुगरा-पाटा बरे लागिस। पुलिस वाला मन बचाइस अउ अस्पताल मा भर्ती करिस। अब जम्मो जवनहा मोटियारी मन जीत के उछाह मनावत हे। मिडिया वाला मन घला मिरचा- मसाला लगाके जनता ला बतावत हे। अउ मेंहा ..? महुं बतावत हंव।

"हलो, भइया जी परनाम ! भैया जी टीवी मा न्यूज देख लेबे। अब्बड़ कवरेज मिलत हाबे। जम्मो कोती हमर प्रदर्शन के गोठ-बात होवत हे।

"हांव, तोर असन कर्मठ जुझारू अउ माटीपुत्र के जरूरत हे। लगे रहो.. अब्बड़ तरक्की पाबे।''

           भइया जी आसीस दिस अउ फोन कटगे। 

                    तभे मोर  गाल मा काखरो झन्नाटेदार थपरा परिस। आँखी बरगे। गाल लाल होगे। लोर उपटगे।आँखी उघारेंव बाबूजी आगू मा ठाड़े रिहिस। हफरत रिहिस, खिसियावत रिहिस। 

"बेटा ! तोला पहिली मारे रहितेंव ते बने होतिस। समाज बर कलंक तो नइ होतेस। मंत्री जी के पुतला दहन करत मोर गोसाइन ला आगी मा  लेस देस आज। अपन दाई ला मार डारेस। ददा रोवत रिहिस। अउ चीर घर कोती रेंग दिस। मेहाँ अब गाँधी चौरा मा ठाड़े हावंव...अकेल्ला। सब चल दिस मोला छोड़के।....थरथराये लागेंव।....बइठ गेंव गाँधी चौरा मा।

                         अब गुने लागेंव जम्मो ला, धरना प्रदर्शन के बहाना हम का करत रेहेंन......?  गांधी जी के मूर्ति के आगू मा का होवत रिहिन...? महामानव गाँधी जी के  आत्मा रोवत होही जम्मो ला देख के। कतका बलिदान दिन। साधु बनके एक धोती पहिरके जिनगी पहाइस। सत्य अहिंसा के पाठ पढ़ाइस अउ हमन......? मोटियारी-जवनहा हो तुही मन भारत के भविस आवव। काखर भभकी मा आके मइलावत हव। जौन डारी मा ठाड़े हव उही ला कांटहु तब भकरस ले गिर नइ जाहूं...? जौन घर मा हाबो तौने ला बारहु तब भूंजा लेसा नइ जाहू तहुं मन.....? भलुक भगतसिंह बरोबर फांसी मा झन झूल, सुभाष चन्द्र बोस बरोबर कोनो सेना टोली झन बना, शहीद वीर नारायणसिंह  बरोबर काखरो गोदाम ला झन लूट...। बस एक बुता कर मोर मयारुक जवनहा मोटियारी हो ! लांघन ला जेवन करा दे, पियासा ला पानी पीया दे, आने के दुख ला अपन मान अउ सरकारी सम्पति ला अपन मान के हिफाजत कर...। 

आनी-बानी के बिचार आवत हे। जइसे गाँधी जी सौहत गोठियावत हे मोर संग। आँखी ले ऑंसू बोहावत हे कभू दाई के दुलार आँखी मा झूलत हे तब कभू ये गाँधी चौरा के गाँधी जी के चेहरा...। 

                 अब मन ला धीरज धराके उठेंव संकल्प के साथ। इस्तीफा दुहूं अपन पार्टी ले। अउ इहीं गाँधी चौरा के चार झन गरीब मन ला दू-दू रोटी दुहूं। बाल्टी भर पानी पियाहूँ अउ सरकारी संपत्ति ला  अपन मानहूं। तब मोर दाई के आत्मा ला मोक्ष मिलही...। संकल्प आवय जौन कभू नइ टूटे...। 

"दाई !''

बम्फाड़ के रो डारेंव अउ ऑंसू पोंछत दाई के आरो करत चीर घर कोती रेंग देंव अब ददा के सहारा बने बर।


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

धर्मेंद्र निर्मल: चुनई तिहार

 [1/30, 10:56 PM] धर्मेंद्र निर्मल: चुनई तिहार

चुनई चक्रवात के सक्रिय होए ले पूरा प्रदेस के जन समुंदर म चारो मुड़ा चुनावी लहर फइल गे हे। जेती देखबे तेती खाली चुनई के गोठ-बात चले लगिस। मानसून के आये ले किसान कनिहा म धोती ल कड़िक के बाँध लेथे। कछोरा ल भीड़के तियार हो जथे। बाँध-भीड़के खेती-बारी के जोखा मढ़ाए लगथे। नाँगर-बक्खर ल छोल-चाँच के तियार करथे। उही किसम पगरइत मन अपन झक सफेद पैजामा-कुर्ता ल निकाल डरिन। चुक-चुकले धो-धा डरिन। पानी परे फफोलाए -भरभराए भिथिया कस बिन पानी के अपन देंहे ल लीप-बरंड, पोत-चिकना डरिन। करिया मन के ओग्गर देह म उज्जर-उज्जर सँवागा ओरमाए लगिन।

पीछु चुनाव के जीते-हारे दूनो किसम के पगरइत मन के कनिहा-कुबर हँ अब नवे-झुके ल धर ले हे। पाँच-पाँच साल ले फूल माला के लदई म कतेक दिन ले अँकड़े-ठढ़िहाए रहिही। एक न एक दिन तो झुकेच् ल परही। झुके-झुके के घलो मुहुरत होथे। भगवान घलो मुहुरत-मुहुरत के हिसाब से नवे-झुके के फल देथे। 

हारे पगरइत मन सत्ता-सुख के दुख-चिंता म दुबरा-सिकुड़के नवथे । 

जीते पगरइत-मंतरी मन दूध सिराए के बाद बाचे-खुचे करौनी चाँटे के चक्कर म नवथे-झुकथे।

कोन्टा के खूँटी म टँगाए गाँधी टोपी हँ मेचका कस ‘पिच्च ले’ कूदके उन्कर मुड़ म माढ़े लगे हे, थोथना के सोभा बढ़ाए लगे हे। उन्कर कान के मूँदाए छेदा ले कनघऊवा निकल गे हे। जेकर ले अब उन ल जनता के फुसुर-फासर गोठ-बात ‘फरी-फरा’ सुनाए लगे हे। ‘बरी-बरा’ जनाए लगे हे। उन अब उही बरा अउ बरी ल मिंझारके ‘बराबरी’ के गोठ फोर-फारके फरर-फरर, फरी-फरी गोठियाए लगे हे। 

मानसून के आए ले सिरिफ किसान भर के मन नइ सरसरावय। प्रकृति के जम्मो प्रानी ऊपर एकर बरोबर प्रभाव परथे। 

चुनाव हँ घलो एकठन मानसूने हरे। चुनाव के आए ले पगरइत अउ पाल्टीच् वालेमन भर जोड़-तोड़, गुना-भाग नइ करय। किसान-धनवान, बयपारी-गुनवान, लइका-सियान जम्मो अपन-अपन गनित ल बइठारे लगे हे।

बरखा के आए ले जइसे किसान का करत हे ? नाँगर जोतत हे के परहा लगावथे, के निंदई-गुड़ई करत हे। ये सबले ओला का नफा-नुकसान होवइया हे ? ओकर ले बतर अउ कनकट्टा कीरा मन ल कोनो मतलब नइ रहय। उन ल तो जेती अंजोर दीखिस ओती झपाना हे। 

ओइसने लइकामन होथे। लइकामन बतर अउ कनकट्टा ले कम नइ होवय । चुनाव ले कोन ल का फायदा हे, कोन ल का नुकसान ? एकर ले उन ल का मतलब ? उन ल तो रंग-बिरंगी फोटू, झंडा, बेनर अउ पोंगा टँगाए गाड़ी देखिन ताहेन ‘बोट-बोट’ कहत चिल्लावत गाड़ी के पीछू दऊड़ना हे। जेन पाल्टी के गाड़ी देखिन। जेन छाप के परची पाइन। उही छाप के नाँव लेके चिचियाना हे। 

उम्मीद्वारे कहूँ लइका मन के बीच परगे त, झन पूछ ! कोनो बैट-बाल माँगथे। कोनो बैंड-बाजा माँगथे। उम्मीद्वारे के बेंड बज जथे। नइ देही माने नाक कटाही । नकटा के नौ नाँगर चुनई के बाद भले फँदाही, फेर अभीन कहाँ जाही ? डार के चुके बेंदरा, असाड़ के चुके किसान कस हाल उम्मीद्वार मन के हो जथे।

चुनई के चुके पगरइत, सत्ता के चुके पार्टी दूनो के कुकुरे गत होथे ।

जइसे बोंबे तइसे लूबे। पाँच साल ले बइठे-बइठे कुटुर-कुटुर कतर-कतर काला खाबे। तुरत दान महा कल्यान बाबू ! अभीन बाँट, ताहेन चाट खाबे चाँट-चाँट।

बिचारामन लइकन ले उबरथे ताहेन सियान मन घेर-धर लेथे। सियान मन के गनित अउ भारी रहिथे । सियानमन फोकटइहा घाम म बइठ के थोरे चुँदी ल पकोए-पँड़रियाए होथे। चुनाव हँ अभीन के बात तो नोहय, जेन ल नइ जानही-समझही । उन तो रोजे देखत-सुनत-गुनत, मुड़ धुनत जिनगी के पहाड़ ल फोरत-पहावत आवत हे।

ये डारा ले वो डारा बेंदरा कस कोन कूदथे ? सत्ता वाले सही करय चाहे गलत, विपक्षी के काम भूँकई रहिथे। चुनाव ये। पाँच साल ले आ मोर कटाए अँगरी म मूत कहिबे त इन नइ मूतय। अभी तोर गोड़ के धूर्रा ल रपोटे- चाँटे बर गिरत-अपटत दऊड़त हे।

जनता के मन घलो चुनई के दिन-बादर ल करियावत-उमड़त-घुमड़त देखके मँजूर कस पाँखी आसरा ल लमाए-छितराए उमर-घुमरके नाचे लगिस। चुनाव आइस त उन्करो कईठन माँग हँ बिला ले निकलके डोमी साँप कस फन फइलाए लगिस। 

जे आदमी बाप पुरखा बोतल नइ देखे-सुँघे रिहिस, तेनो ल बोतल वाले टॉनिक के चुलूक लगे लगिस। जेन हँ बाकी बेरा म ले-लेके पीयत रिहिस तिन्कर तो चुनाव हँ तिहारे ये। ओमन रोज उही म आँखी धोवत हे अउ जूठा मुँह अचोवत हे।


जेन घर म पियाग नइ हे उन्कर घर मिठई के डब्बा पहुँचत हे। घर- घर साड़ी पहुँचत हे। कतकोन घर नोट के गड्डी दूर देस के मतलबिया अनचिन्हार सगा कस पता-ठिकाना पूछत-सोरियावत पहुँचे लगे हे। न रासन के चिन्ता, न पानी के फिक्कर । 

जनता के बीच कतको मनखे मलाज मछरी ले आवय न जाय। एक ठन मलाज मछरी होथे। जेकर मुँह डिक्टो साँप अउ पूछी हँ मछरी बरोबर होथे । साँप आथे त मलाज अपन मुड़ी ल बाहिर निकाल देथे। साँप् हँ मलाज ल सगा समझके अनते रेंग देथे। न डरवावय न कुछु करय। मछरी आथे त मलाज हँ पूछी ल हलू-हलू हलाके देखा देथे। मछरी मन मछरी समझ लेथे। न डर्रावय न कुछु करय।

खग जानय खग ही के भाखा। 

मलाज मछरी के ये चक्कर, चलाकी अउ चरित्तर ल ढीमरेच मन जानथे । 

अइसन मनखे मन जेन उम्मीद्वार आथे ओला इहीच् कहिथे-

‘हम तो तोरेच् अन।’

ओकर से कुछु ले के बिदा कर देथे। दूसर उम्मीद्वार आथे, त कहिथे-‘हम तो तोरेच्च् अन।’

ओकरो से कुछू लेके उहू ल बिदा कर देथे। अइसने कहि-कहिके एक मनखे कतको उम्मीद्वार ल निपटा डरथे। 

उम्मीद्वारो मन ये बात ल समझथे। उहूमन जनता बर चारा फेंके रहिथे। जेमा जनता फँस के बयकूप तो हावैच्चे, बिचारा तको हो जथे। 

जेमन मलाज कस दूनो मुड़ा रेंगथे, तेमन चुनई के राहत ले छकल-छकल खूब मजा उड़ाथे। उन्कर बीसो अँगरी दारू अउ बत्तीसो दाँत समोसा-मिच्चर म होथे। 


पाल्टी ले जुड़े मनखेमन हँ दुरिहा म खड़े चुचुवावत चुँहू देखत रहि जथे। ओमन झंडा के डंडा ल धरे-पोटारे भर बर पाथे। उही ल हलावत लुहुंग-लुहुंग किंदरत रहिथे। काबर के उन्कर घर अपन पाल्टीवाले ये कहिके नइ जावय कि हमला छोड़के आखिर जाहिच् कहाँ - बयकूप हे ? अउ दूसर पाल्टी के उम्मीद्वार ये सोचके नइ जावय के येहँ तो हमला बोट देबेच् नइ करय- गरकट्टा हे। 

धोबी के कुकुर घर के न घाट के। गंगा नहा डरथे पतरी ल चाँट के।


चुनई के असली मजा तो चमचेच् मन उड़ाथे। पाल्टी ले खरचा पानी मिलथे। प्रचार-प्रसार बर गाड़ी मिलथे। प्रचार के गाड़ी म ओमन ठसन से जंगल सफारी घूमथे। सवारी डोहारथे। खरचा-पानी मिलथे ओमा अपन घर के खरचा चलाथे। अपन पेट के आँत-नाली म पेट्रोल-पानी पलोथे अउ पलथे-पालथे। 

कतकोन उम्मीद्वार चुनई म फार्म भरे बर तो भर देथे। कोनो बइठे बर कहिथे त ‘सुट्ट-ले’ सौदा पटा लेथे। भरे परचा ल भर-रपोटके के सटर-पटर उठा लेथे। सौदा के रकम अलग अउ पाल्टी के अलग। दूनो ल गठियाके पछीत कोती दबा-चपकके बइठ जथे। उन्कर अइसने कमई हो जथे।

कई झिन एकरे सेती चुनई म नाममांत्र के खड़ा होथे।

टुटपुँजिया उम्मीद्वार देखथे के ये दफे के उम्मीद्वार बने गोल्लर कस रोंठ, पोठ अउ चेम्मर हे । एकर ले टक्कर लेवब म चक्कर आ जही । उन दिन भर अपन पाल्टी के झंडा धरे घूमथे अउ रात कन जाके गोल्लर के डिल्लर म अपट के गिर जथे-

‘कका मोला बचा लेबे । महूँ खड़े भर हौं। फेर तोर बिरोध नइ करत हाववँ । वो तो पाल्टी टिकिट दे दिस, त मैं नाम गिनती लड़त हाववँ। तोर अपोजिट कइसे जा सकथौं, मोर माई-बाप ! मोर ददामन के माई-बाप तहीं रहे। मोर लइकामन के माई-बाप घलो तहींच रहिबे। येमा कोनो दू मत के बात नइहे। यकीन नइ होवत होही त डीएनए टेस्ट करवा सकत हस। तोर असन माई बाप के राहत ले मोला कोई आपत्ति नइ हे, न काँही विपत्ति नइहे।’

ओतका म गोल्लर खुस -‘जा बेटा बछवा कस फुसर-फुसर के खा अउ मेछरा। अपन पाल्टी के थन ल थुथन-थुथनके चुहक-पी।’

नेता के थपियाए अउ छेरी के चरे कभू नई उल्होवय। ए मेर दूनो के काम बनगे।

नाम के देस सेवा काम के लाड़ू मेवा। नेता उही जेन नेत देखके गत मारथे।

चुनई के आए ले पद म बइठे उम्मीद्वारमन नरियर फोरई करथे। दूसर उम्मीद्वारमन गुल्लक टोरई करथे। ये टोरई-फोरई दूनो के गठबंधन हँ चुनाव के बाद जनता ऊप्पर गाज बनके गिरथे। जेन हँ पाँच साल ले उन्कर मुड़ पीरा बनके रेहे रहिथे। न पीरा जावय न ओकर दवई आवय।

चुनाव म नवा उम्मीद्वारमन ल बाँटे बर जादा परथे। काबर के सबो ओकर बर नवा होथे। कार्यकर्ता घलो, जनता घलो। कभू-कभू जगा घलो। अइसन उम्मीद्वार जनता बर बाढ़े पूरा म चौपट होए फसल के मुवायजा बरोबर होथैं। क्षतिपूर्ति के राहत होथे। कार्यकर्तामन बर देवरिहा बोनस बरोबर होथे। ये ठँऊका मऊका ल कोनो अपन हाथ ले गँवाना नइ चाहय। इही समे कार्यकर्तामन के असल अगिन परीक्षा होथे। 

चुनई टेम परखिए चारि, धीरज धरम मितान अउ नारि। 

भीतरघातिया मन बिला म घुसरे-घुसरे मुड़ी ल निकाले डोमी कस ताकत रहिथे। इही अवसर होथे जब दाँव देखके दुस्मनी ल भाँजे-भँजाए जाथे। भूँज-बघारके सफल करे जाथे। जिनगी ल सार्थक करे जाथे। पाल्टी एके हे ते का भइगे जी ? सबो के अपन-अपन सुवारथ होथे। पाँचो अंगरी बरोबर तो नइ होवय। तइसे जम्मो कार्यकर्ता पाल्टीच् के बढ़वार बर काम नइ करत राहय। आजकाल पाल्टी के कम अपन बढवारके रद््दा जादा खोजे-तलासे-तरासे जाथे। फायदा देखके ही पाल्टी म जुड़े-जोड़े जाथे। 

हाथ जोड़, गोड़ धर, पद पाके पुरखा सम्मेत तर। 

माने आजकाल राजनीति सुग्घर टनाटन कड़कड़ावत नोट छपइया नवा धँधा होगे हवय। 

चुनई बजार के गरम होए ले चारो कोती गहमागहमी मात गेहे। जम्मो पाल्टी अपन-अपन मुरचाए औजार ल टें-टाँ के बख्तरबंद होके मैदान म उतरगे हवय। कन्या रासि वाले मन घला एक ले बढ़के एक सबद के बान चलावत बयानबीर बन गे हे। अपन अपंग, निजोर अउ मुरझाए-मुरचाए पौरूसता के फर्जी प्रमान पत्तर देखावत चिचियाए-चिल्लाए लगे हे-

‘चलव, अब बोट डारे के बेरा होवत हे।’

धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

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हम ठहरेन पढ़े लिखे छोटकुन वेतन भोगी आदमी।हमर घर के वित्तमंत्री हा हर महिना बजट पेश करथे तहाँ ले वोला लागू करे बर घानी के बइला कस जोंतावत रहिथँव।

    पिछू दू बछर ले वो ह महिना पुट कटौती उपर कटौती वाला बजट पेश करत हे।अब देख न मोरे कमाये पइसा के जेब खर्चा अउ पेट्रोल पानी बर पहिली दू  हजार अनुदान देवत रहिसे तेनो ह कटा-कटा के बुचड़ी होके अधियागे हे।अइसे लागथे के अब चार बजे रात के उठके मार्निंग वाक करत ड्यूटी जाये ला परही काबर के ये एक हजार ल पेट्रोल के दिन दूना रात चौगुना बाढ़े दाम ह पाके आमा कस चुहक देही त मैं ह कभू कभार चाय पानी ल कामा पी हँव।अइसे भी अबड़ दिन होगे हे चोंगी माखुर ल संगवारी मन सो माँग के खाये पिये ल परथे। हप्ता म दाढ़ी मेंछा बनवाववँ तेनो म कटौती होगे हे। सकल-सूरत बइहा कस दिखथे।

       कटौती के बात चलिस त हम का बतावन--पहिली किराना समान म चार किलो फल्ली तेल आवय तेन अब डेड़ किलो आथे। भितरहीन ह पानी के छिंटा मार-मार के साग ल भुंजथे तइसे लागथे।पापड़-सापड़ के बाते छोंड़ दव वोकर तो दरशने दुर्लभ होगे हे। सगा-सोदर आये म कभू तिहार मना लन तेमा अघोषित प्रतिबंध लगे हे। भाजी पाला म काम चल जथे। लइका मन कभू पिकनिक-सिकनिक बर देवता चढ़े कस घोंडइया मारथें त आलू चिप्स बर पाँच रुपिया देके कइसनो करके मना लेथन।ये पाँच-दस रुपिया तको भारी पर जथे।

         आप मन सोचत होहू--ये तो बने बात ये--भारी बँचत होवत होही।हाँ--महूँ अइसनेच सोचत रहेंव। हम तो ये मान के चलत रहेंन के बाई ह चरपी के चरपी दबिया के रखे होही।एक दिन मजाके मजाक में हम ये कहि परेन --तैं बँचा के दू चार हजार धरे होबे त दे न--काम हे। अतका ल सुनते वो भड़क के कहिस--तोला कुछु लागथे , धन नहीं। जतका कमाथच तेन महिना भर तको नइ पूरय। मोर टिकली-फुँदरी बर तको रुपिया- दू रुपिया नइ बाँचय अउ तैं ह दू चार हजार के गोठ करथच।ये काय नौकरी ये तोर-ठकठक ले तनखा बस ल लाके धरा देथस।हमीं जानबो के हम घर ल कइसे चलावत हन तेला।एक ठन नवा लुगरा लेये बर तरस जथँव। तोला कुछु चिंता-फिकर हे धन नहीं ते--कोरोना म बीमार परे रहेच त मोर मइके ले उधारी पइसा माँग के लाये हँव तेनो एको पइसा छुटाये नइये। हूँह---बँचत के बात करथस---तोर सबो पास बुक मन ल झर्राये म कतका झरे रहिस-- फुक्का। ये मँहगाई डायन हा अइसे चुहक देथे के महिना पूरे नइ पावय--उधारी चढ़ जथे। दूध वाला के पाछू महिना के तको देवाये नइये।


       हम वोकर चंडी रूप ल देख के सकपकागेंन। अइसे लागिस के ये मजाक ह मँहगा परगे।हम समझगेन बँचत कहाँ ---इहाँ तो घाटे-घाटा के बजट हे।बँचत बिन बिकास कइसे---बेंदरा बिनास तो होबे करही। हम चुपेचाप गली कोती सरकगेंन।


        बिहान भर एक फरवरी रहिस। महिना भर  पहिली ले ये दिन ल टकटकी लगाये हम ओइसने जोहत रहेन जइसे कोनो प्रेमी-प्रेमिका मन एक दूसर ल जोहथें या फेर दाना-पानी मिलही सोच के चिरई के नान-नान पिलवा मन झाँकत रहिथे या फेर जइसे माँगन-जाँचन मन जोहथें। आशा रहिसे के ये दरी के केंद्रीय बजट म हमर कल्याणे-कल्याण होगी। इंकमटेक्स म छूट मिलही। फेर जब बजट आइस त पता चलिस के हमर बर पाछू बछर के मुरझाये फूल ल सूँघे बर मढ़ाये गेहे।आशा के डोरी रट ले टूट गे।हम ला अइसे लागिस के कल्याण सागर म बूड़के स्वर्गवासी हो जवँ।फेर का करबे मरना अतका सरल थोड़े हे? टी वी के कान ल कई पइत अँइठ-अँइठ के पूछ डरेंव के हमर लइक कुछू होही त बता न रे भाई? फेर उहाँ जेन भइया मन सुनावत रहिन मतलब बड़बड़ावत रहीन तेन हा कुछु समझे नइ आइस।मूड़़ी -पूछी के पतेच नइ चलिस।अतके जनइस के संसद म झगरा माते हे।


      दूसर दिन साँझकुन गुड़ी चँवरा कोती बइठे ल गेंव त उहाँ बहुत झन सकलाये राहयँ। उहों बजटे उपर जुबानी खर्चा मतलब चर्चा होवत राहय। हम सोचेन ए मन ल, मोरे जइसे ,बजट के बारे म--वो कइसे बनथे--काबर बनथे --थोरको पता नइ होही फेर ये मन चिल्ल पों काबर मतायें हें।


    हमूँ जाके भेंड़िया धसान म कूद गेन।मंगलू कहिस--ये बजट म कुछ नइये। एकदम बेकार, फालतू हे।जीरो बटे सन्नाटा हे।


   वोतका ल सुनके झंगलू कहिस--'कइसे कुछु नइये।बने पावर वाले चश्मा ल ओरमा के पेपर ल पढ़। देख एमा धड़धड़ावत बुलेट ट्रेन हे, ड्रोन हे, एंड्राइड फोन हे, चाँदी हे सोन हे। अउ ये नइ दिखत ये का-अँधरा के बेटा जिरजोधन--दू करोड़ नौकरी हे, बरा हे, बरी हे, जिनिस सरी हे। स्टार्ट अप हे--वादा लबालब हे।सड़क हे-तड़क भड़क हे।' 


   अतका ल सुनके पंच पंचूराम ह ठोलियावत  कहिस--'हाँ ,कका बने बताये। सब कागज म अउ भाषण म दिखत हें फेर राशन म नइ दिखत ये।'

'वाह कइसे नइ दिखत ये। बिन पइसा के झोला-झोला चाँउर नइ दिखत ये का। तोर बाई के खाता म महतारी वंदन होवत नइ दिखत ये का? पी एम, सी एम म बने घर-कुरिया नइ दिखत ये का। खाता म आये पइसा नइ दिखत ये का '-- सियनहा मेहतरु ह कहिस।


     बात के उत्तर बात म देवत रमेशर भिंड़गे-- सब टकटक ले दिखत हे बड़े ददा।  यूरिया, पोटाश के बाढ़े कीम्मत दिखथे। दू सौ रूपिया किलो दार दिखथे। बादर ला अमरत तेल के भाव दिखथे। सब जिनिस के मनमाड़े बाढे दाम दिखथे। सुसाईट अउ सुसाईटी दिखथे। बोरा के किल्लत दिखथे--किसान के जिल्लत दिखथे। एम एस पी ल अगोरत अनाज दिखथे--बिगड़े सब काज दिखथे।'

इँकर तनातनी ल सुनके एक झन सियनहा हा समझावत कहिस- दैखौ बाबू हो तुमन धीर धरौ।धीर म खीर मिलथे। तुमन ल ये बजट म जेन थोड़-बहुत मिल जही उही म संतोष करौ। अइसे भी खाँटी रबड़ी तो बड़े-बड़े पेटल्लू मन ल मिलथे।वो मन ल कइसनों करके मिल जही। तुमन काबर नइ सोचव-- ये बजट भविष्य के सपना ये ,पच्चीस साल आगू ल देख के बनाये गेहे।'

सबके ल सुनत वो मेर बइठे बेरोजगार नवयुवक मनोज कहिस--वो तो सब ठीक हे फेर हमर वर्तमान के का होही कका?


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़