ढेखरा
धमतरी जिला म मगरलोड नाव के कसबा तिर धौंराभाँठा नाव के नानुक गाँव रहय जिंहा रामाधीन नाव के मनखे रहय । ओकर सुवारी परबतिया हा धमतरी ले आये रहय तेकर सेती रामाधीन ला गाँव के मन धमतरिहा कहय । धमतरिहा हा हटर हटर खेती किसानी के बुता करय तब ले दे के बछर भर खाये पिये के पुरतन फसल हो पाये । फेर रात दिन के अकाल दुकाल म कोठी डोली हा जुच्छा के जुच्छा हो जाय । दूसर कोति परिवार घला बाढ़हत रहय .. । पेट के संख्या अऊ आकार दुनों के बढ़होत्तरी म उधारी बाढ़ही के नौबत आये लगिस । धमतरिहा हा बईगा कस रहय .. धीरे धीरे बइदई बुता घला सीखगे रहय । पेट चलाये बर किसानी संग गाँव गाँव किंजर किंजरके बइदई अऊ बइगई दुनों बुता म महारत हासिल कर डरे रहय । थोकिन पढ़े लिखे रहय तेकर सेती पुस्तक संग घला मितानी रहय । ज्ञानिक धमतरिहा हा अपन लोग लइका मनला घला गाँव ले धुरिहा स्कूल म पढ़े भर घला भेजय । राम रमायन नाटक लिल्ला म अव्वल रहय तेकर सेती चारों खुँट म रामाधीन के नाव बगरे रहय । सब कुछ भगवान के दया ले बने बने चलत रहय .. तइसने म एक ठिन दुख के बड़ोरा अइस अऊ ओकरे उपर खपलागे । ओकर सुवारी परबतिया हा नवजात बाबू ला जनम देवत पुट ले आँखी ला मुँद दिस । धमतरिहा के न तो बइदई काम अइस न बइगई .. । धमतरिहा हा टूटगे । चार झन बड़े लइका के जतन के ओतेक फिकर नइ रिहिस जतका फिकर दुधपिया बाबू के रिहिस । बपरा हा घर बाहिर परिवार सम्हालत सम्हालत जवानी म बुढ़ा गिस । ओला कुछ बछर म बुढ़ापा के रोग रई धर लिस .. खुद बइद रिहिस जरूर फेर अब सरी बइगई अऊ बइदई बुता ला अतेक बड़ परिवार के जुम्मेवारी उचावत उचावत भुला चुके रिहिस । परिवार ला सम्हाले बर ओकर भाई बंधु मन दूसर बिहाव करे के सलाह दिन फेर धमतरिहा हा ओला नइ मानिस अऊ जिनगी भर साधु जीवन जिये के सनकलप ले लिस । ईमारी बीमारी के सेती बहुत जल्द रामाधीन हा काम बुता बर अशक्त होगे तब घर के सरी जुम्मेवारी हा बड़े बेटा कातिकराम के खांध म आगे । तब तक कातिकराम हा पंद्ररा बछर के हो चुके रिहिस । जम्मो लइकामन के स्कूल छूटगे ।
कातिकराम हा निचट मनचलहा रिहिस । दिन भर एती वोती संगवारी मन संग स्कूल जाये के बहाना लठंग लठंग किंदरना ओकर दिनचर्या रिहिस । उदुपले ओकर खांध म घर के जुम्मेवारी खपलागे । ओकर सरी बुध पतरागे । का करे का नइ करय .. समझ नइ आवत रहय । घर म चीज बस रहय निही । कमाना धमाना मजबूरी रहय । रोज कमाये धमाये के नाव म बिहिनिया ले घर ले रापा कुदारी धरके निकलय .. दिन भर गाँव के बाहिर तरिया खालहे के आमा बगीच्चा म संगवारी मन संग ताश खेलय । बेरा ढरके ले वापिस लहुँट के सुक्खा हाथ झर्रावत इही कहय के आज काम बुता नइ मिलिस । धमतरिहा ला रोज रोज के इही बहाना म अपन बेटा उपर शक होगे .. ओहा अपन ईमारी बीमारी ले उबर नइ सकत रहय तेकर सेती कुछ कहि नइ सकत रहय । एती घर मा दार चऊँर सिरावत रहय । एक टेम चुरय एक बेर लांघन ..... घर के नावा मुखिया कातिकराम के मन म उथल पुथल माते रहय । ओहा परिवार के जुम्मेवारी उचाये बर अपन आप ला खपाना नइ चाहत रहय । अपन जुम्मेवारी छोंड़के घर ले भाग जाये के मन बनावत रहय । फेर नान नान भाई बहिनी मनला भूख म कलपत देख ओकर मन हा भागे बर गवाही नइ दे । कभू मर जाँव तइसे सोंचय । रात रात भर सुत नइ सकय । कातिकराम का करथे तेहा धमतरिहा ला पता लगगे रहय । दसना म सुते सुते हफरत धमतरिहा हा ... कातिक राम ला एक दिन बड़ खिसियइस ... अतेक बड़ ढेखरा कस बाढ़गे हस । कहीं काम के न धाम के । बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय , घर के जमा पूंजी हा कतेक दिन पुरही ......... । खेत खार बेंच के कतेक दिन ले खाबो । कहूँ काम बूता करते तब घर म दू पइसा आतिस तब घर के रंधनी म कुहरा गुंगुंवातिस । नान नान भाई बहिनी मन भूख म मर जही तब तोला बने लागही ...... ? कमाये के नाव म जाके तरिया खाल्हे के आमा बगीच्चा म बइठ के ताश खेलथस .. गांजा बिड़ी पियत बइठे रहिथस .. एकर ओकर बर माखुर रमंजथस .. तोला बने लागथे रे .. । हमन भूख पियास म मरीच जबो तभे तोर सुसी बुताही । कातिकराम के मन तो कहूँ अऊ रहय .. ओला ददा के बात ले कोई फरक नइ परिस .. । ओहा जुम्मेवारी के बोझा तरी अपन ददा कस मरना घिलरना नइ चाहय ।
कुछ दिन म .. घर म बांचे खोंचे दार चऊँर कोदो कनकी जम्मो सिरागे । एक दिन अइसे अइस जब ... न मंझनिया हाँड़ी चइघिस न रथिया । जम्मो झिन फकत पानी पीके सुतिन । रथिया पहाड़ होगे । कातिकराम हा घर ले भागे के तै कर डरिस । रात भर नइ सुतिस । एती भूख के मारे नान नान भाई बहिनी मन कलकलागे रहय । दु बछर के नानुक भाई हा भूख के मारे रात भर कलपिस । अतका देखके घला .. ओकर मन नइ पसीजिस .. बिहिनिया बिहिनिया जम्मो झिन ला सुते दसना म छोंड़ कातिकराम हा बखरी के रसता ले भागे लगिस । भागत भागत रसदा म माढ़हे पथना म हपटगे । मनमाने अकन नार बियार बखरी भर बगरे रहय । नार बियार म हांथ गोड़ फँसगे । नार बियार हा नइ छेंकतिस त आगू म माढ़हे बढ़का पथना म मुड़ी फूट जतिस अऊ अतका जोर ले लागतिस के बाँचतिस घला निही । तिर म गड़े ढेखरा ला बाँहां भर पोटारके .. दहाड़ मारके रोय लगिस । जुम्मेवारी ले भागे के सजा देवत रेहे का भगवान ..... चिंतन सुरू होगे । तैं अतेक बड़ ढेखरा कस बाढ़गे हस कहींच कमावस धमावस निही .......... ददा के बात हा मन ला रहि रहिके उदवेलित करे लगिस । नान नान भाई बहिनी के आँसू हा कातिक राम के हिरदे म सूल कस गड़े लगिस । दिशा परिवरतन होय लगिस । नार बियार मन ढेखरा म चइघके कइसन फरत फूलत अपन मंजिल पावत रहय तेला धियान लगाके देखे लगिस कातिक हा । तैं मोला ढेखरा केहे न ददा ....... सहींच म तोला ढेखरा बनके देखा देहूँ ताकि मोर संग रहवइया मन अपन अपन मंजिल तक पहुँचके खूब फरय फूलय ......... मने मन ढेखरा बने के सनकलप ले डरिस ।
नान नान भाई बहिनी के मुहुँ म चारा डारे बर काकरो तिर माँगे बर हाथ नि लमइस .. मंडल घर बिहिनिया ले रकस रकस कमाके .. दु पैली चऊँर ले आनिस । कातिकराम के छोटे बहिनी हा चौदा बछर के होगे रहय । ओकरे हाँथ म घर के हाँड़ी रहय । अपन मुहुँ म बिगन पसिया डारे .. रापा अऊ गैंती धर मंडल के खेत म मंझनी मंझना कमाये बर निकलगे । ये खेत ले वो खेत .. दिन बुड़त ले गोदी खनिस । पहिली दिन के खाये नइ रहय । गोदी के खनत ले केऊ बेर चक्कर अइस । हांथ भर फोरा परगे । दरद पिरा के मारे गैंती ला फटिक दे के मन होत रहय .. फेर भूख म कुलबुलावत नान नान भाई बहिनी के चेहरा हा नजर भर झूलगे । हाँथ म परे फोरा ले पानी चुचुवाये बर धर लिस फेर गैंती हा तब रूकिस जब डेचकी के पानी पियत पियत उरकगे । एती घर म हाँड़ी चुरिस जरूर .. फेर कमइया के घर बिगन .. काकरो मुहुँ म जेवन नइ गिस । सांझकुन अइस तब पता लगिस के ओकर बिगन घर म कोन्हो नइ खाये हे ... मई पिल्ला एक दूसर ला पोटारके एक परत के रो डरिन । ताते तात भात चुरिस । थारी म पोरसागे । फेर हाँथ भर फोरा परे रहय । कइसे भात खवाय । भात म माड़ी भर पानी रुको लिस अऊ नून मिंझारके गटर गटर पी डरिस । हांथ ला कन्हो ला देखा नइ सकिस । अब इही दिनचर्या बनगे । जे दिन दूसर घर बुता नइ मिलय ते दिन अपन बाँचे खोंचे खेत ला सुधारे बर भिड़ जाय । फेर एको कनिक एको दिन सुरताये के नइ सोंचय । दिन भर खेत बाहिर म कमावय अऊ अधरतिया होवत ले घर म माढ़े माँगा मँगठा म लग जावय । घर के जम्मो मुहुँ ला दुनों बेर चारा मिले लगिस । चौंथी पास कातिकराम ला जिनगी के बहुत समझ आ चुके रहय । ओहा अपन भाई बहिनी मनला ... गाँव तिर के स्कूल म फेर भर्ती करा दिस । ओकर मेहनत के आगू म गरीबी हारे लगिस । सच म मेहनत म समे के चक्र बदले के बहुत ताकत हे । भाई बहिनी मनला खड़ा करे बर मेहनती कातिकराम हा ढेखरा बनगे । घर के कन्हो मनखे ला कोनो बुता करन नइ दिस । भाई बहिनी मन पढ़हे लगिन । बने सगा देख सग्यान होवत बहिनी के बिहाव कर दिस ... संगे संग ददा के इच्छा अऊ आज्ञा ले .. कातिकराम के बिहाव घला होगे । बहुरिया के संग घर म लछमी खुसरगे । कातिकराम के किसमत बदले लगिस । चौंथी पढ़हे कातिकराम हा बिगन ट्रेनिंग .. मास्टर बनगे । रापा कुदारी के जगा हाथ म चाक आगे । कातिकराम के सेवा म ददा बाँचगे । मंझला भाई घला पढ़ लिख के तियार होके मास्टरी के नौकरी पागे । घर सम्हले लगिस तइसने म ददा हा .. उदुपले आंखी मूंद दिस । कातिकराम के मजबूत खांध हालगे । फेर ओहा अपन सनकलप ले भागिस निही । छोटे भाई ला घला एक दिन खड़ा करके दुनिया ला देखा दिस । कातिकराम के अनुसासन सीख मया अऊ दुलार म भाई बहिनी मन ओकर गोड़ पीठ पेट म फलंगके चढ़के बिगन बिघन बाधा के छतराये फरे फूले लगिन । कातिकराम हा अपन चाहतिस तो खुदे बहुत आगू बढ़ सकत रिहीस .. फेर फकत ढेखरा बने के सनकलप म अपन भाई बहिनी ला ऊँकर मंजिल तक पहुँचाके दम लिस ।
भाई मन नौकरी चाकरी के चक्कर म दूसर दूसर जगा बस गिन । फेर कातिकराम हा उही जगा म ढेखरा कस गड़े रहय । अब ओकर बेटी बेटा मन .. नावा नावा नार ब्यार बनके सनसनऊँवा बाढ़े लगिस । अब बेटा बेटी मन बर ढेखरा बनगे कातिकराम हा ....... । येमन ला बढ़हाये बर अपन जान लगा दिस । अतेक सार सम्भाल करत ले बाँचे खोंचे सरी खेत खार बेंचा चुके रिहिस । मास्टरी के तनखा कतेक पुरय । जाँगर के चलत ले ... कभू हांथ नइ लमइस फेर जब अपन नोनी बाबू ला फरे फूले छतराये के आवसकता परिस .. तब लजइस निही । गुरूजी ला देखत हस गा ... माँगत फिरत हे .. अइसन कहवइया के कमी नइ रिहिस .. तभो काकरो परवाह नइ करिस । बेटा मनके कालेज के फीस भरे बर गाँव के मंडल तिर अपन मान ला गिरवी रख के उधारी ले आने । बेटा मन काये करत हे अऊ काये कर सकत हे तेकर पूरा ध्यान देवत अपन सरी देंहे अऊ समे ला खपा दिस । उहू दिन आगे जब बेटा मन कातिकराम कस हरियर धरती के फरियर पानी निरोगिल हवा अऊ घाम पीके .. बाढ़त मोटावत कनसावत अपन अपन जिनगी ला सफल करत ढेखरा छोंड़ परवा के साध म लगगे ।
जिनगी के गाड़ी बने दू कदम रेंगे पाये निही के फेर कन्हो मुसीबत ठड़ा हो जाये । ये पइत चालीस बछर के उमर म बड़े बहिनी ला ओकर गोसईंया हा घर बइठे बर मजबूर कर दिस । तैं ससुराल म दुख पावत झिन रहा नोनी अइसन घर म .. कहत बहिनी ला अपन घर म बिरोध के बावजूद सरन दे दिस । जम्मो के सहारा ढेखरा आय न ओहा । दुब्बर होइस त का होइस । फेर अब्बड़ चेम्मर ........ बिगन कांटा के देंहे पाये .. ढेखरा कातिकराम हा बहिनी फिरन ला .. अपन बाँचे खोंचे संसा तक राखे के भरोसा दे दिस । असमय म छोटे बहिनी के बैधव्य के सहारा बनके ओकर बिपदा म सिनसिनहा रेहे ले बंचा लिस । बेटा मन उड़ानुक हो चुके रिहिस । भाई मन कस .. वहू मन बाहिर चल दिन । अब उनला कातिकराम रूपी ढेखरा के सहारा के कोई आवसकता नइ रिहिस । बेटा मन अपन अपन परिवार धरके शहर म बस गिन । कातिकराम हा सरकारी नौकरी ले रिटायर होगिस अऊ अभू घला अपन बई अऊ बइठे बहिनी संग गाँव के टुटहा फुटहा घर म रेहे बर मजबूर हे । बेटा मन ओला अपन तिर म रेहे बर बलावय जरूर फेर ओकर संग न बात करे के फुरसत न बइठे के । कातिकराम घला अपन बेटा मन तिर रहि के ओमन ला ढेखरा बनके सहारा देना चाहय .. फेर ओकर सहारा ला बेटा मन काये करही .. । ओमन अपन गोड़ म खुदे तान के खड़े रहय । घर म बइठे बहिनी हा .. आजो नार बियार कस ओकर छाती ला लपेट के अपन पोसन अऊ संरक्षण बर कातिकराम कोति निहारत रहय । एक दिन वहू छोंड़ दिस । अब कातिकराम हा केवल नाव के ढेखरा रहिगे ।
जेकर भाग म दुख संघर्स अऊ पीरा लिखाये रहिथे तेला .. कभू सुख के कल्पना करना चाही .. फेर उम्मीद नइ राखना चाहि । कभू परिवार बर .. कभू समाज बर जिनगी भर ढेखरा के अभिनय निभावत कातिकराम के पोहाती उमर म ओकर सुवारी बिसा बाई ला दुनिया ले बिदा कराके भगवान हा ओकर एक ठिन बाँहा ला टोर दिस । बाँहां टूटगे फेर हिम्मत अऊ भगवान उपर भरोसा नइ टूटिस । जिनगी के गाड़ी एक पहिया म कइसे चल सकत हे ......... ? फेर यहू ला अपन किसमत मान भगवान ला धन्यवाद देवय कातिकराम हा ...... । समय पहाड़ ले जादा भारी हो चुके रिहीस । नार बियार मन ढेखरा छोंड़ चुके रिहीन । अकेलापन हा ओला भितरे भितर खाय लगिस । ढेखरा अभू भी अगोरय के कन्हो आतिस ओकर उपर चइघतिस अऊ अपन मंजिल पातिस । फेर अभू नार बियार ला परवा के सवाद मिल चुके रिहीस । नार बियार ला ढेखरा तिर म ओधे म .. ओकर सुखाये देंहें के महक आय लगिस । जिनगी भर दूसर ला सहारा देवइया हा अतेक बाटुर के बीच नितांत अकेल्ला होगे । एक कनिक प्यार .. मीठ बोली के चार आखर .. संग म रेहे बर दू फुरसत के पल बर तरसगे ओहा । ओला लगे जे तिर गड़े हँव ते तिर ला छोंड़ के जाहूँ त ओकर अस्तित्व खतम हो जहि .. । बेटा मन लेगे के कोशिस करिन फेर कातिकराम हा काकरो संग जाये के बजाय अकेल्ला रहना स्वीकार करिस । ओकर ये सोंचना रिहिस के काकरो तिर बोझा बनके नइ रहना हे .. जिनगी भर ढेखरा रेहे के सनकलप ला मरे के पहरों म काबर टोरँव ? अपन तिर रेहे बर गोठियाये बर .. अपन देंहे म लिपटाये बर .. बेटा नाती मनला पुचकारे बर गाँव म बलाये .. फेर कोन नानुक झोफड़ी म आही ?
कातिक महिना म जनम धरे रहय तेकर सेती ओकर नाव कातिक रहय । नब्बे बछर उमर होवत रहय । बेटा मन ला देवारी तिहार के बहाना ... अपन जनमदिन म बलाये बर सोंचिस । बेटा बहू मन .. मरे के पहरो म .. यहा का जनमदिन कहिके .. एक परत के हाँसिन घला । तुकड़ा तुकड़ा बंट चुके परिवार हा इही बहाना सकला जाये के भीतरे भीतर खुसी म कातिकराम हा जिनगी म पहिली बेर अपन बर उपहार के इच्छा जाहिर करिस । बेटी बेटा मन सोंचिन .. बुढ़हापा सहींच म बचपन के पुनरागमन आय । ओमन ददा बर काये उपहार लेना हे तेकर बिचार मंथन म लगगे । परिवार के हरेक जोड़ी मन आपस म चरचा करत रहय । कन्हो कहय का लेबो सियान बर । ये उमर म ओला का चाही तेमा ......... लइकामन कस मुहुँ फुटकार के मांगत हे ..... । दू जून के रोटी अऊ दू जोड़ी कपड़ा के अलावा ये उमर म दूसर समान ला कायेच करही तेमा ...... ? सोन चांदी के कहीं समान बिसाबो तहू कायेच काम के ....... । तेकर ले उही ला पूछ लेथन के ओला का चाही ..... ? बेटा बहू मन किथे .. लिस्ट बनाके दे देतेव तहन ओमा के एकेक समान अपन अपन हैसियत मुताबिक ले आनतेन ....। कातिकराम किथे .. लिस्ट ला बना डरे हांबव फेर ओला उही दिन देखाहूँ जे दिन तूमन सकलाहू ...... ।
जनमदिन के दिन कातिकराम के हांथ म बहुत लम्बा चौंड़ा लिस्ट देख जम्मो दिल धकधकागे । लिस्ट एक ले दूसर हांथ घूमे लगिस । कन्हो पढ़े के हिम्मत नइ करिन । आखिर म कागज ओकर बेटी के हांथ म अइस । ओहा बांचे लगिस ... “ जिनगी भर मेंहा ढेखरा बनके एक जगा खड़े रेहेंव । जे अइस ते मोर देंहें म चइघके अपन मंजिल तक अमर गिस । मेंहा अपन बर आज तक कुछ नइ मांगेंव फेर आज तुँहर से कुछ चाहत हँव ...... । हो सके तो मोर बर कन्हो दुकान ले एक कनिक प्यार बिसा लातेव । मोर खोये सममान ला गिरवी ले छोंड़ा लातेव । मोर बर इज्जत ला कहूँ तिर नपवाके ले लेतेव । बजार म परे फुरसत के एक पल बीन आतेव । “ एक हांथ खो चुके हँव बेटा ...... । मोर गोड़ घला भुँइया के साथ छोंड़त हे । को जनी कोन दिन पटले गिर जहूँ ... ठिकाना निये । मोला मौत से डर नइ लागे । घर म होवत अंधियार से मोला डर होगे हे । मरना तो शास्वत हे । ओला टारे नइ जा सके । जिनगी भर भीड़ म रहिके रंग रंग के नार बियार ला अपन देंहें म चइघाके बढ़हायेंव तेकर सेती .. मोला अकेलापन ले घबराहट होथे बेटा । हो सके तो कन्हो दुकान ले दू जून के साथ जुटा देतेव ........ । मोर देंहें ला एक कन छू देतेव बेटा ....... मोर मन भर जतिस । तुँहर आँखी के एक बूंद मोती म मोर अंग अंग भीज जतिस ....... । मोर संग कुछ देर खड़े हो जतेव .. बिगन दिया बारे मोर जिनगी रोशन हो जतिस । बचपन म पथरा म हपटके मरे ले मोला नार बियार मन बचाये रिहीन । अब तुँही मन नार बियार अव । मोला मालूम हे अब मोर देंहे म चइघके कोनो ला अपन मंजिल नइ मिल सकय .. तभो ले केवल एक बार अऊ मोर सुखाये देंहें म लिपटके .. जनम भर ढेकरा रेहे के मोर परन ला सच साबित कर देतेव ताकि में तुँहर घेरा के बीच अराम से आँखी मूंद सकँव .......... । मोला जनमदिन के इही उपहार दे दव बेटा ............... ।
ददा ला जनमदिन म भेंट दे खातिर बेटा बेटी मनके हांथ म धराये साल स्वेटर अऊ काजू किसमिस हा .. हाथेंच म धराये रहिगे । ददा के अइसन इकछा अऊ अइसन आस के कलपना नइ करे रिहीन । लइकामन ला पहिली बेर समझ अइस के .. ददा रूपी ढेख़रा ला भौतिक पोसन निही बलकि मानसिक संरक्षन चाही । नार बियार रूपी हरेक लइका हा .. ढेखरा रूपी ददा ले लिपटना चाहिस .......... तब तक बहुत देर हो चुके रिहीस । ढेखरा टूटके गिरके बिखरके माटी म मिल चुके रिहीस ........... ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा .
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