*छत्तीसगढ़ म इतवारी तिहार मनाय के परम्परा*
*- दुर्गा प्रसाद पारकर*
छत्तीसगढ़ म महाभारत ल प्रस्तुत करे के सबले बढ़िया तरीका आय पंडवानी। पंडवानी गवइया मन एदे प्रसंग ल मनमोहक ढंग ले सुनाथे-'बोल दव बिन्दा बन बिहारी लाल की जय | पांचो पांडो नाव अउ भेस बदल के बिराट नगर के राजा घर अज्ञात वास काटत रिहिन हे रागी। उहें सहदेव ल सैनिग्वाल के नाव से जानय। जऊन ह बरदी चरावय। एक दिन कौरव दल राजा बिराट के गरुआ ल चोराए बर सुन्ता बांधिन। सैनिग्वाल ह कौरव मन ल गरुआ लेगत देख तो डरिस फेर सक नइ चलिस उंखर ले लड़े के। गरुआ ल रोके खातिर मंत्र पढ़ के धनुष बान बना के ढिल दिस बान ताहन सना नना मोर नना नना कका। बान ह जा के जब गरूआ मन के खुर म लगत गिस रागी। लगते भार जिही मेर के तिही मेर खड़ा होगे। काबर कि बान लगे ले मवेशी मन ल खुरहा बीमारी होगे। गरूआ ल टस के मस नइ होवत देख के, पांडो के बेटा ह दउड़त जावय भइया। राजा ल घटना सुनावन लागे कका। गरुआ के चोरी ल सुन के राजा बिराट तमतमागे। चोर मन के बूता बनाए बर राजा बिराट अपन हिरदे के कुटका उत्तरा कुमार ल पठोथेे। उत्तरा कुमार के रथ हंकइया कोन रिहिस रागी? जानत हस। रागी-नही। ओखर नाव वृहन्ला रिहिस जऊन असली के अर्जुन आय। अर्जुन अपन हिसाब से रथ ल दउंडावन लागे। उत्तरा कुमार ल पता घलो नइ चलिस कि रथ ह कते डाहर जात हे। अर्जुन ह रथ ल जंगल म लेगे जिंहा ओहा गांडिव धनुष ल लुकाए रिहिस हे। अर्जुन ह जब गांडिव धनुष ले धरती म बान मारिस। बान के परते भार पताल गंगा परगट होगे। छरछीर-छरछीर पताल गंगा के पानी ह वृहन्ला ऊपर परत गीस ताहन अर्जुन ह अपन असली रूप म आवत गिस तस-तस गरुआ मन के खुरहा बीमारी ह मिटावत गिस। इसी पाए के छत्तीसगढ़ के किसान सउनाही के दिन अर्जुन के दसो नाव (अर्जुन, पार्थ, विजयी, किरीट, विभत्स, धनंजय, सब्यसांची, श्वेतबाजी, कपिध्वज, शब्द भेद) लिख के गरुआ मन ल खुरा चपका बीमारी मनले बचाए बर बिनती करथे। खुरा बीमारी ह सावन-भादो म जादा होथे। बिमरहा मवेशी के खुर म अंडी, अरसी नही ते मिलवा के तेल ल लगा के इलाज करथे। मान ले अइसन करे ले फुरसुद नइ लागे त बइगा ह कोठा म घी, गुड़, नही ते गंगुल (दसांग) के हुम दे के तिली तेल, अरसी तेल नहीं ते फल्ली तेल के दीया बार के गरुआ के आरती उतार के बने होय बर बिनती करथे। कतको मन अइसनो कथे कि खपरा के गाड़ी, पांच ठन करिया कुकरी अऊ नरियर ल एके संघरा गांव के बाहिर बरोए ले बीमारी के अंत हो जथे। एक बात जरूर हे कि बीमारी ह भभूत अऊ ठुवा-ठामना ले नइ माड़े। फिर भी जन भावना ल एकाएक नइ उधेने जा सकय। मवेशी मन ल सावन-भादो म खुरहा चपका, दांवा धक्का, माता मताही, बघर्रा, एकटंगी, मेंह पाठ के बीमारी झन अभरय कहिके असाढ़ के सिराती शनिच्चर रात के पहाती सउनाही बरो के गांव बनाथे। सउनाही बरोए बर पोंई, कुकरी अंडा, कठवा के गाड़ा, खड़ऊ, लिम्बू, बंदन, एक्कइस ठन धजा (तीन रंग के), एक्कइस ठन नरियर, चार ठन नांगर के नास के जरूरत परथे, करिया रंग के धजा खडऊ अऊ लिम्बू ल काली माई के सनमान म चघाथे। सादा रंग के धजा ल शीतला माता अऊ सत्ती माता के नाव ले देथे। लाली रंग के धजा, बंदन ल महावीर के नाव ले सोपरित करथे। बइगा गांव के देवी-देवता म हूम धूप दे के लिम्बू भारथे अऊ नरियर फोरथे। एखर बाद बइगा अऊ ओखर संगवारी मन तीन सिया जाथे। उहां पूजा-पाठ करके कारी पोंई (कुकरी पीला) के माथ म बंद बुक के ओरियाए सामान के बीचों-बीच बरो देथे। गांव के जतेक अएब हे ओहा कुकरी के संग चले जाय गांव म सउनाही बरोइया मन के गांव म आय के बाद कोतवाल हांका पार के इतील्ला देथे-'पानी कांजी भर सकथव, गोबर कचरा कर सकथव हो....।इतवार के दिन मनखे मन अपन घर के चारो मूड़ा कोठ म गोबर के घेरा बना के बीच-बीच म पुतरा-पुतरी बना के घर के रखवारी करवाथे। ताकि घर म मरी मसान झन झपा सकय। असाढ़ के आखरी इतवार ले सरलग पांच इतवारी ताहन बुधवारी तिहार मनाना जरूरी हे। काम बूता के दिन म इतवारी अऊ बुधवारी तिहार कहां तक उचित हे। मनाना हे त एक इतवार ल जोरदार मना के बाकि इतवारी तिहार ल कुकरी के संग बरोए ल परही ताकि हमर किसानी काम म तिहार ह बाधक झन बन सकय। तभे तो हमन सर्व सम्पन्न छत्तीसगढ़ राज के कल्पना कर सकथन नही ते फूस्का।
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